Class 12

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

HBSE 12th Class Sociology औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
अपने आसपास वाले किसी भी व्यवसाय को चुनिए-और इसका वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में कीजिए-
(क) कार्य शक्ति का सामाजिक संघटन-जाति, लिंग, आयु, क्षेत्र;
(ख) मज़दूर प्रक्रिया-काम किस तरह किया जाता है;
(ग) वेतन एवं अन्य सुविधाएँ;
(घ) कार्यवस्था-सुरक्षा, आराम का समय, कार्य के घंटे इत्यादि।
अथवा
ईंटें बनाने के, बीड़ी रोल करने के, सॉफ्टवेयर इंजीनियर या खदान के काम जो बॉक्स में वर्णित किए गए हैं के कामगारों के सामाजिक संघटन का वर्णन कीजिए। कार्यावस्थाएँ कैसी हैं और उपलब्ध सुविधाएँ कैसी हैं? मधु जैसी लड़कियाँ अपने काम के बारे में क्या सोचती हैं?
उत्तर:
मैंने अध्यापन व्यवसाय का चुनाव किया है।
(i) कार्यशक्ति का सामाजिक संघटन-जिस स्कूल में मैं पढ़ाता हूँ वहां पर सभी जातियों तथा दोनों लिंगों के लोग कार्य करते हैं। स्त्री-पुरुष इकठे मिलकर कार्य करते हैं तथा जाति से संबंधित कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। वृद्ध युवा इत्यादि सभी इकट्ठे मिलकर कार्य करते हैं। वृद्ध अध्यापक युवा अध्यापकों को दिशा दिखाते हैं ताकि वह ठीक ढंग से पढ़ा सकें।

(ii) मज़दूर प्रक्रिया-सवेरे सभी अध्यापक स्कूल जाते हैं। सभी को अपनी-अपनी क्लास, टाईम टेबल के बारे में पता होता है। सभी समय तथा पीरियड के अनुसार अपनी-अपनी कक्षाएं लेते हैं। विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को दूर-दराज के क्षेत्रों से लाने के लिए स्कूल की बसें भी चलती हैं। अध्यापकों को उनकी योग्यता तथा अनुभव के अनुसार ही परिश्रम दिया जाता है।

(iii) आराम का समय-अध्यापकों को पढ़ाने के पीरियडों के बीच आराम भी दिया जाता है ताकि वह अधिक थक न जाएं।

(iv) कार्य के घंटे-स्कूल में अध्यापकों को लगभग 7 घंटे बिताने पड़ते हैं तथा बच्चों को पढ़ाना पड़ता है।
अथवा
इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी स्वयं दें।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

प्रश्न 2.
उदारीकरण ने रोज़गार के प्रतिमानों को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर:
हमारा देश एक कषि प्रधान देश है। उदारीकरण के कारण अधिक-से-अधिक लोग सेवा क्षेत्र जैसे कि दुकानों, बैंक, आई.टी., उद्योग, होटल्स तथा और सेवाओं के क्षेत्रों में आ रहे हैं। इससे नगरों में मौजूद मध्यवर्ग की संख्या भी बढ़ रही है। शहरों में मौजूद मध्यवर्ग के साथ उन मूल्यों की भी बढ़ौतरी हो रही है जो हमें टी.वी. सीरियलों तथा फिल्मों में दिखाई देते हैं। परन्तु हमें यह दिखाई देता है कि देश में काफ़ी कम लोगों के पास सुरक्षित रोजगार हैं तथा जिनके पास है वह भी अनुबंधित श्रमिकों के कारण असुरक्षित हो रहे हैं।

अब तक सरकारी नौकरियां ही अधिकतर लोगों के कल्याण करने का बड़ा रास्ता थी परंतु अब वह भी कम होती जा रही हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार विश्वव्यापी उदारीकरण तथा निजीकरण के साथ व्यक्तियों की आय के बीच असमानताएँ भी बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ-साथ बड़े-बड़े उद्योगों में सुरक्षित रोज़गार के मौके कम होते जा रहे हैं।

सरकार बड़े-बड़े उद्योग लगवाने के लिए किसानों की भूमि अधिग्रहण कर रही है। यह उद्योग उस क्षेत्र के लोगों को रोजगार नहीं देते क्योंकि उद्योगों के लिए पेशेवर तथा सिलाई प्राप्त कामगारों की आवश्यकता होती है बल्कि यह तो वहाँ पर हरेक प्रकार का जबरदस्त प्रदूषण फैलाते हैं।

बहुत से किसानों, जिनमें से मुख्य आदिवासी हैं, ने जमीन की कम कीमत देने का विरोध किया है। इन्हें मजबूरी में दिहाड़ीदार मज़दूर बनना पड़ा तथा इन्हें बड़े उद्योगों के फुटपाथ पर कार्य करते हुए देखा जा सकता है। इस प्रकार उदारीकरण ने रोज़गार के प्रतिमानों को कई प्रकार से प्रभावित किया है।

औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास HBSE 12th Class Sociology Notes

→ यह अध्याय मुख्यतः हमें औद्योगीकरण तथा उदारीकरण के प्रभावों के बारे में बता रहा है कि किस प्रकार औद्योगीकरण ने हमारे समाज को प्रभावित किया है। यह अध्याय हमें यह भी बताता है कि किस प्रकार प्रौदयोगिकी में होने वाले परिवर्तनों से उदयोगों तथा सामाजिक संबंधों में परिवर्तन आते हैं।

→ औद्योगीकरण एक ऐसी धारणा है जिसमें मशीनों का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है। बड़े-बड़े उद्योगों में क मशीनों तथा श्रम विभाजन की सहायता से कार्य किया जाता है। हरेक श्रमिक एक छोटा सा पुर्जा बनाता है तथा वह मुख्य उत्पाद को देख तक नहीं पाता है।

→ सन् 2000 में भारत के लगभग 60% लोग प्राथमिक क्षेत्र, 17% द्वितीयक क्षेत्र तथा 23% लोग तृतीयक क्षेत्र के कार्यों से जुड़े हुए थे। इस समय में कृषि कार्यों के हिस्से में काफ़ी तेजी से कमी आयी तथा औद्योगिक क्षेत्र से जुड़ने वाले लोग तेज़ी से बढ़ गए।

→ भारत में स्वतंत्रता से पहले औद्योगिक प्रगति न के बराबर थी। चाहे स्वतंत्रता के बाद सरकार ने उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया परंतु इतनी तेज़ी से उद्योग विकसित न हो पाए। परंतु 1990 के दशक में सरकार ने उदारीकरण की नीति को अपनाया जिससे लाइसेंस नीति को खत्म किया गया। इसके बाद भारत में उद्योग तेजी से विकसित हुए।

→ 1991 के बाद सरकार ने विनिवेश की नीति अपनायी जिसमें सार्वजनिक कंपनियों को निजी उद्योगों को बेचा गया। निजी कंपनियों ने अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए कर्मचारियों की छंटनी शुरू की। यह छंटनी केवल भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण संसार में ही हो रही है।

→ आजकल उद्योगों में कर्मचारियों को पक्के तौर पर नहीं बल्कि ठेके या संविदा के अनुसार रखा जाता है। कर्मचारी को निश्चित समय के लिए निश्चित तनखाह पर रखा जाता है। अगर उसका कार्य अच्छा हो तो ठेका आगे बढ़ा दिया जाता है नहीं तो नौकरी से निकाल दिया जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

→ आजकल उद्योगों में मैनेजर रखे हुए होते हैं जिनका मुख्य कार्य है कामगारों को नियंत्रित रखना तथा उनसे अधिक काम करवाना। उनके कार्य के घंटों में वृद्धि कर दी जाती है तथा कार्य को संगठित रूप से करवाकर उत्पादन भी बढ़ा लिया जाता है। उद्योगों में श्रमिकों से काफ़ी अधिक काम लिया जाता है तथा विश्राम का काफ़ी कम समय दिया जाता है। रोज़ाना इतना अधिक कार्य करते-करते श्रमिक इतना थक जाते हैं कि 40 वर्ष की आयु तक पहुँचते पहुँचते वह निढाल हो जाते हैं।

→ उद्योगों में कार्य करने की अवस्थाएं शोषण से भरपूर होती हैं। उदाहरण के तौर पर कोयले की खानों में कार्य करने के स्पष्ट नियम बनाए गए हैं परंतु ठेकेदार इनका पालन नहीं करते। दुर्घटना के समय किसी को मुआवजा नहीं दिया जाता तथा गड्ढ़ों को भरा नहीं जाता।

→ घरों पर किया जाने वाला कार्य आर्थिकी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जो महिलाओं तथा बच्चों द्वारा किया जाता है। उन्हें कच्चा माल पर पीस के हिसाब से दे दिया जाता है तथा उनसे प्रत्येक पीस के हिसाब से उत्पादित माल ले लिया जाता है तथा पैसे दे दिए जाते हैं।

→ बहुत बार काम की बुरी दशाओं के कारण श्रमिक हड़ताल भी कर देते हैं। वे काम पर नहीं जाते हैं, तालाबंदी हो जाती है तथा बिना वेतन के कामगारों के लिए रहना मुश्किल हो जाता है।

→ औद्योगीकरण-देश में उद्योगों के बढ़ने की प्रक्रिया।

→ मिश्रित आर्थिक नीति-वह आर्थिक नीति जिसमें कुछ क्षेत्र सरकार के लिए आरक्षित होते हैं तथा कुछ निजी क्षेत्रों के लिए खुले होते हैं।

→ उदारीकरण-वह प्रक्रिया जिसमें विदेशी फर्मों को देश में निवेश करने के लिए प्रोत्सहित किया जाता है।

→ विनिवेश-सार्वजनिक कंपनियों के शेयर्स को निजी क्षेत्र की कंपनियों को बेचने की प्रक्रिया।

→ विस्थापति-वह लोग जिन्हें अपनी भूमि से बेदखल कर कहीं और बसाने का प्रयास किया जाता है।

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HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Haryana State Board HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

HBSE 12th Class English Deep Water Textbook Questions and Answers

Question 1.
How does Douglas make clear to the reader the sense of panic that gripped him as he almost drowned? Describe the details that have made the description vivid. (डगलस ने पाठकों को किस प्रकार अपने भय की वह भावना स्पष्ट की जिसने उसे उस समय जकड़ लिया जब वह लगभग डूब गया था ? उस विस्तार का वर्णन करो जो इसे स्पष्ट बनाता है।)
Or
Narrate briefly the writer’s emotions and fears when he was thrown into the pool ? What plans did he make to come to the surface ? (लेखक की भावनाओं और उसके भयों का वर्णन करो जब उसे पानी में फेंक दिया गया ? उसने सतह पर आने के लिए क्या योजनाएँ बनाई ?)
Answer:
Douglas was alone at the pool. He sat at the edge of the pool. He could not imagine what was going to happen to him. Suddenly a big boy came and threw him into the pool. He landed at the bottom of the pool in its deepest part. Douglas was greatly frightened. But still he had not lost his presence of mind. He was planned to touch the bottom of the pool with his feet and jump upwards. He thought that he then swim on the surface of the water towards the edge of the pool. But it took a long time going down. The nine feet appeared to be more than ninety. His feet touched the bottom.

As planned, he hit the bottom with his feet and started coming up. But he was coming up very slowly. He opened his eyes and saw nothing but water. He grew panicky. It appeared to him as if a great force was pulling him down. His leg seemed to be paralyzed. He made another jump upwards. But that made no difference. He thought that he was going to die. He called for help, but nothing happened. When he came to his senses, he was lying beside the pool, vomiting. Someone had saved him from drowning.

(डगलस ताल के पास अकेला था। वह ताल के किनारे पर बैठा था। वह इस बात की कल्पना नहीं कर सकता था कि उसके साथ क्या होने जा रहा था। अचानक ही एक बड़ा लड़का आया और उसे ताल में फेंक दिया। वह तालाब के सबसे गहरे सिरे में ताल के तल पर जा गिरा। डगलस बहुत अधिक डर गया था। लेकिन फिर भी उसने अपनी बुद्धि को नहीं खोया था। वह नीचे जा रहा था, उसने योजना बनाई कि जब वह अपने पैरों के साथ ताल के तल को स्पर्श करेगा तो वह ऊपर की ओर छलाँग लगाएगा। उसने सोचा कि वह पानी से बाहर आ जाएगा। तब वह पानी की सतह पर तैर कर ताल के सिरे तक आ जाएगा।

लेकिन नीचे जाने में काफी समय लगा। नौं फुट, नब्बे फुट से भी गहरे प्रतीत हो रहे थे। उसके पैरों ने तल को स्पर्श किया। योजना के अनुसार, उसने अपने पैरों के साथ तल पर प्रहार किया और ऊपर आना शुरू कर दिया। लेकिन वह बहुत धीरे-धीरे ऊपर आ रहा था। उसने अपनी आँखें खोली और उसे पानी के सिवाय और कुछ भी दिखाई नहीं दिया। वह भयभीत हो गया। उसे ऐसा लगा कि कोई बहुत बड़ी ताकत उसे नीचे की ओर खींच रही थी। उसकी टाँगें सुन्न हो गई थीं। उसने ऊपर की ओर एक और छलाँग लगाई। लेकिन उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने सोचा कि अब वह मर जाएगा। वह मदद के लिए चिल्लाया लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। जब उसे होश आया, तो वह ताल के पास में पड़ा हुआ उल्टियाँ कर रहा था। किसी ने उसे डूबने से बचा लिया था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Question 2.
How did Douglas overcome his fear of water? [H.B.S.E. 2017 (Set-A)] (डगलस ने पानी के प्रति अपने भय पर किस प्रकार काबू पाया ?)
Answer:
After that incident, a haunting fear remained in his heart. He never went back to the pool. He feared water and tried to avoid it. The fear of water remained with him as years rolled by. He tried his best to overcome this fear but it remained with him. Finally, one October, he got an instructor. With him he practiced for five days a week. The instructor taught him step by step how to swim. He taught him how to put his face under water and exhale. And then how to raise his nose and inhale. He repeated the exercises hundreds of time.

Still, he wondered whether he would be terrified when he would be alone in a pool. In order to overcome his fear, the author went to Lake Wentworth in New Hampshire. He dived off a dock at Triggs Island. He swam two miles across the lake to Stamp Act Island. Only once he felt some fear when he was in the middle of the lake. But soon he overcame that fear. Then he swam back. He shouted with joy. Thus finally, he was able to conquer his fear of water and swimming.

(उस दुर्घटना के पश्चात्, उसके मन में डर रहने लगा। वह फिर कभी ताल पर नहीं गया। वह पानी से डरता था और उससे दूर रहने का प्रयास करता था। जैसे-जैसे वर्ष बीतते गए उसके अंदर पानी का डर उसी प्रकार से बना रहा। उसने अपने डर के ऊपर काबू पाने का पूरा प्रयास किया लेकिन यह डर उसके अंदर बना ही रहा। अंततः एक अक्तूबर मास में उसे एक प्रशिक्षक मिला। उसके साथ उसने सप्ताह में पाँच दिन अभ्यास किया। प्रशिक्षक ने उसे क्रमवार सिखाया कि कैसे तैरा जाता है। उसने उसे बताया कि पानी के अन्दर मुँह से कैसे साँस छोड़ना है। और फिर कैसे अपनी नाक ऊपर करके साँस लेना है।

उसने इन अभ्यासों को सैंकड़ों बार दोहराया। फिर भी वह हैरान था कि जब कभी वह ताल में अकेला होगा तो उसे फिर भी डर लगेगा। अपने डर पर विजय हासिल करने के उद्देश्य से, लेखक न्यू हैम्पशायर में वेंटवर्थ झील पर गया। उसने एक डॉक से ट्रिग्स आइलैंड पर छलाँग लगा दी। वह झील में स्टैम्प एक्ट आइलैंड तक दो मील तक तैरता रहा। केवल एक बार उसे कुछ डर लगा। जब वह झील के मध्य में था। लेकिन शीघ्र ही उसने उस डर पर विजय हासिल कर ली। तब वह तैर कर वापस आया। वह खुशी से चिल्ला उठा। इस तरह अंततः वह पानी से भय और तैराकी पर विजय हासिल करने में सफल रहा।)

Question 3.
Why does Douglas as an adult recount a childhood experience of terror and his conquering of it? What larger meaning does he draw from this experience? (वयस्क होने पर डगलस अपने बचपन के भय के अनुभव और उस पर काबू पाने का वर्णन क्यों करता है ? वह इस अनुभव से क्या वृहत अर्थ निकालता है ?)
Answer:
In ‘Deep Water’, Douglas recounts a childhood experience of terror. He was almost drowned in a pool. Douglas also tells us about his determination to overcome his fear of water. When he was a boy, one day William Douglas went to a swimming pool. He sat at the edge of the pool. Suddenly a muscular boy came and threw him into the pool. Douglas was nearly drowned in the water. That incident created a fear of water in him.

That fear remained with him till he grew up. Then he decided to overcome that fear. He made determined efforts and learnt swimming. In the end, he was able to overcome his fear of water and swimming. This experience has a symbolic meaning. Douglas wants to convey the idea those persons can appreciate an experience who have gone through it. Secondly his experience tells us that with determination we can overcome our fears.

The fear of water was created in Douglas’ mind after a boyhood experience. One day a big boy threw him into a swimming pool. He was nearly drowned. That fear remained with him as he grew up. Finally he made up his mind to get rid of that fear. He got a swimming instructor. He taught Douglas how to swim. Still he was not fully free from fear. Then one day, he went to Lake Wentworth in New Hampshire.

He dived off a dock at Triggs Island. He swam two miles across the lake to Stamp Act Island. Only once he felt some fear when he was in the middle of the lake. But soon he overcame that fear. Then he swam back. He shouted with joy. Thus finally, he was able to conquer his fear of water and swimming.

(‘डीप वॉटर’ अध्याय में डगलस बचपन की अति आतंकित करने वाली बचपन की एक घटना याद करता है। वह एक ताल में लगभग डूब ही गया था। डगलस हमें पानी से लगने वाले डर पर विजय पाने के अपने दृढ़ निश्चय के बारे में बताता है। जब वह एक लड़का था, एक दिन विलियम डगलस एक तरणताल पर गया। वह ताल के किनारे पर बैठा था। अचानक ही एक हृष्ट-पुष्ट लड़का आया और उसने डगलस को पानी में फेंक दिया। डगलस पानी में लगभग डूब ही चुका था। इस घटना ने उसके अंदर भय पैदा कर दिया। यह भय उसके अंदर बड़ा होने तक भी बना रहा। तब उसने इस डर पर विजय हासिल करने का निर्णय लिया। उसने दृढ़-निश्चय भरे प्रयास किए और तैरना सीख लिया। अंत में, वह पानी और तैराकी से लगने वाले डर पर काबू पाने में सफल रहा।

इस अनुभव का एक सांकेतिक अर्थ है। डगलस इस विचार को प्रसारित करना चाहता है कि जो लोग किसी अनुभव से गुजरते हैं वे लोग ही उस अनुभव की प्रशंसा कर सकते हैं। दूसरी बात यह अनुभव हमें बताता है कि दृढ़-निश्चय के साथ हम अपने डर पर काबू पा सकते हैं। पानी से डर लगने की बात डगलस के मन में बचपन के एक अनुभव के बाद पैदा हुई थी। एक दिन एक बड़े लड़के ने उसको एक तरणताल में फेंक दिया। वह लगभग डूब ही चुका था। यह डर उसके अन्दर तब भी बना रहा जब वह बड़ा हो गया। आखिरकार उसने इस डर से छुटकारा पाने का निर्णय कर लिया। वह एक तैराकी प्रशिक्षक से मिला। उसने डगलस को तैरना सिखाया, लेकिन अभी भी वह पूरी तरह डर से मुक्त नहीं हुआ था। तब एक दिन वह न्यू हैम्पशायर में वेंटवर्थ लेक पर गया। वहाँ उसने एक डॉक से ट्रिग्स आइलैंड पर छलाँग लगा दी। वह स्टैम्प एक्ट आइलैंड तक दो मील तक झील में तैर कर गया। केवल एक बार उसे डर लगा जब वह झील के मध्य में था। लेकिन शीघ्र ही उसने उस डर पर काबू पा लिया। तब वह तैर कर वापस आया। वह खुशी से चिल्ला उठा। अंततः वह पानी और तैराकी से डर पर काबू पाने में सफल रहा।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Think As You Read

Question 1.
What is the “misadventure” that William Douglas speaks about? (विलियम डगलस किस “दुर्घटना” का वर्णन करता है ?) [H.B.S.E. 2017 (Set-C)]
Answer:
When he was a boy, William Douglas went to the YMCA swimming pool. He was alone there. Just then a big boy came there. He was physically stronger than the author. He picked up the author and threw him into the deep end of the pool. William Douglas went at once to the bottom of the pool. He feared that he would be drowned. However, some people saved him. This is the misadventure, he speaks about.

(जब विलियम डगलस एक बालक था, तो वह YMCA के तरणताल गया। वह वहाँ अकेला था। तभी वहाँ एक बहुत बड़ा लड़का आया। वह लेखक की तुलना में शारीरिक रूप से अधिक शक्तिशाली था। उसने लेखक को ऊपर उठाया और ताल के गहरे वाले सिरे में फेंक दिया। विलियम डगलस एकदम से ताल के गहरे तल में चला गया। वह भयभीत था कि वह डूब जाएगा। हालाँकि कुछ लोगों ने उसे बचा लिया। यह वही दुर्घटना है, जिसके बारे में वह बात कर रहा है।)

Question 2.
What were the series of emotions and fears that Douglas experienced when he was thrown into the pool? What plans did he make to come to the surface?
(जब डगलस को ताल में फेंक दिया गया तो उसने किन भावनाओं एवं भय का अनुभव किया ? उसने सतह पर आने के लिए क्या योजनाएँ बनाईं ?)
Answer:
A big boy threw Douglas into the pool. He landed in a sitting position at the bottom. He was frightened. But he did not lose heart. He planned that as soon as his feet touched the bottom, he would make a big jump upwards. It would bring him to the surface. He would float on the surface and then would paddle to the edge of the pool.

(एक बड़े लड़के ने डगलस को ताल में फेंक दिया। वह तल पर बैठने की स्थिति में पहुँच गया। वह डरा हुआ था। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने योजना बना ली थी कि जैसे ही उसके पाँव तल को छूएँगे, तो वह ऊपर की ओर एक बड़ी छलाँग लगाएगा। इससे वह सतह पर आ जाएगा। वह सतह के ऊपर तैर जाएगा और वहाँ से तैरते हुए वह ताल के किनारे तक पहुंच जाएगा।)

Question 3.
How did this experience affect him? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-A)] (इस अनुभव ने उसे किस प्रकार प्रभावित किया ?)
Or
Mention any two long term consequences of the drowing incident on Douglas. (डगलस पर डूबने की घटना के किसी भी दो दीर्घावधिक परिणामों का उल्लेख करें।) [H.B.S.E. 2019 (Set-D)]
Answer:
Douglas was nearly drowned in the swimming pool. This experience greatly affected him. He was afraid of water. He never went back to the pool. He tried to avoid it whenever he could. Whenever he tried to swim, the memory of that painful experience came back to him. His fear would return. Then he started trembling and his legs were paralyzed.

(डगलस तरणताल में लगभग डूब ही चुका था। उसके इस अनुभव ने उसको बुरी तरह प्रभावित किया। उसे पानी से डर लगने लगा। वह फिर कभी ताल पर नहीं गया। जब भी कभी मौका होता था तो वह वहाँ जाने से बचता था। जब कभी वह तैरने का प्रयास करता था तो उस भयानक अनुभव की यादें उसे ताजा हो जाती थीं। उसका डर लौट आता था। तब वह काँपने लग जाता था और जैसे उसकी टाँगें तो सुन्न हो जाती थीं।)

Question 4.
Why was Douglas determined to get over his fear of water? [H.B.S.E. 2017, 2018 (Set-B)] (डगलस पानी के प्रति अपने भय पर काबू पाने के लिए दृढ़ संकल्प क्यों था ?)
Answer:
In his boyhood, Douglas was nearly drowned in a pool. That incident created in him a fear of water. This fear stayed with him as the years rolled by. That fear ruined his joy of boating, fishing and swimming. So he was determined to get rid of this fear of water.

(बचपन में, डगलस एक ताल में लगभग डूब ही गया था। उस घटना ने उसके मन में पानी के प्रति एक भय पैदा कर दिया था। जैसे-जैसे साल बीतते गए उसका डर उसके साथ बना रहा। उस डर ने उसके नौका चालन करने, मछली पकड़ने और तैरने का मजा लेने को समाप्त कर दिया था। इसलिए उसने पानी के डर से मुक्ति पाने का पक्का निश्चय कर लिया था।)

Question 5.
How did the instructor “build a swimmer” out of Douglas? (प्रशिक्षक ने डगलस को किस प्रकार तैराक बना दिया ?) Or What special method did the instructor use to teach the writer (Douglas) to swim? (प्रशिक्षक ने लेखक (डगलस) को तैराकी सिखाने के लिए कौन-सा तरीका अपनाया?) [H.B.S.E. 2020 (Set-B)]
Answer:
Douglas got an instructor to teach him how to swim. The instructor put a belt around him. A rope was attached to this belt. It went through a pulley that ran on an overhead cable. Thus Douglas was able to go back and forth across the pool. He was taught to put his face under water and exhale and to raise his nose and exhale. Gradually Douglas shed his fear of water. In this way the instructor built a swimmer out of Douglas.

(डगलस को तैराकी सिखाने वाला एक प्रशिक्षक मिला। प्रशिक्षक ने उसके चारों ओर एक बेल्ट बाँध दी। उसकी बेल्ट से एक रस्सी बंधी हुई थी। यह एक पुली से होकर ऊपर बंधी केबल तक जाती थी। इस तरह से डगलस ताल में अंदर-बाहर जाता रहा और पुल को पार करने लायक हो गया। उसे पानी के अन्दर मुँह डालकर साँस छोड़ना और नाक ऊपर उठाकर साँस लेना सिखाया गया। धीरे-धीरे डगलस का पानी के प्रति भय समाप्त हो गया। इस तरह से प्रशिक्षण ने डगलस को एक तैराक के रूप में तैयार कर दिया।)

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Question 6.
How did Douglas make sure that he conquered his old terror? (डगलस ने यह किस प्रकार सुनिश्चित किया कि उसने अपने पुराने भय पर काबू पा लिया है?) Or Why did Douglas go to Lake Wentworth in New Hampshire?[H.B.S.E.2019 (Set-A), 2020 (Set-D)] (डगलस न्यू हैम्पशायर में लेक वेटवर्थ पर क्यों गया?)
Answer:
Douglas learnt how to swim. But whenever he was alone in the pool, the memories of the old terror were revived. He was still not fully confident. He wanted to make sure that he was free from fear. For this purpose, he went to Lake Wentworth. There he dived off a dock at Triggs Island. He swam for two miles. In this way he conquered his fear of water.

(डगलस ने तैरना सीख लिया। लेकिन जब कभी वह ताल में अकेला होता था, तो पुराने वाले भय की यादें ताजा हो जाती थीं। वह अभी भी पूरी तरह से विश्वास से भरा हुआ नहीं था। वह इस बात का यकीन करना चाहता था कि वह भय से मुक्त था। इस लक्ष्य को लेकर वह वेंटवर्थ झील पर गया। वहाँ उसने ट्रिग्स आइलैंड पर डॉक से छलाँग लगा दी। वह दो मील तक तैरता रहा। इस तरह से उसने अपने भय पर विजय हासिल कर ली।)

Talking About The Text

Question 1.
“All we have to fear is fear itself.” Have you ever had a fear that you have now overcome? Share your experience with your partner. (“हमें जिससे डरना है वह केवल डर है।” क्या आपको कभी कोई भय हुआ है, जिस पर आपने काबू पा लिया है ? अपने अनुभव को अपने मित्र के साथ बांटिए।)
Answer:
Roosevelt rightly said, “All we have to fear is fear itself.” These words have a deeper meaning. Often some fears remain with us for a long time. But if we take courage and face them, we find that most of our fears are baseless. As a child, I was afraid of darkness and ghosts. I had often heard the stories that there are ghosts in the darkness. As a result, I could not sleep in the darkness. My parents tried their best to remove that fear. As the years passed, I was able to sleep in the dark in the presence of others. But I could never sleep alone in a dark room.

One day, my parents had to go to Delhi because of the death of some relative. I could not go as my exams were to start the next day. They told me that they would come the next day and I would have to remain alone. As the night came, my fear of the dark returned. I slept in my room with the lights on. But at about midnight, the lights went off and I woke up. I started trembling with fear. I looked out of the window.

There was a tree in our courtyard. I saw something white on it. I thought that it was a ghost. I tried to cry, but could not. I kept trembling for the whole night. As the day dawned, I looked out of the window again. There was a white shirt on the tree. It had been flown into the tree by the wind. I laughed at my folly. After that I was determined to overcome that fear. I started sleeping with lights off. At first, I felt fear. But with the passage of time, I was able to overcome that fear.

(रूजवेल्ट ने ठीक कहा था, “हमें जिससे डरना है वह केवल डर है।” इन शब्दों का एक बहुत गहरा अर्थ है। प्रायः कुछ डर एक लंबे समय तक हमारे अंदर बने रहते हैं। लेकिन यदि हम हिम्मत दिखाते हैं और उनका सामना करते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे अधिकतर डर आधारहीन होते हैं। जब मैं बच्चा था, तो मुझे भी अंधेरे और भूतों से डर लगता था। मैने हमेशा ऐसी कहानियाँ सुनी थीं कि अंधेरे में भूत होते हैं। फलस्वरूप, मैं अंधेरे में नहीं सो सकता था।

मेरे माता-पिता ने इस डर को दूर करने का पूरा प्रयास किया। जैसे-जैसे साल बीतते गए, तो मैं दूसरे लोगों के साथ में अंधेरे में सोने लग गया था। लेकिन मैं कभी भी अकेला अंधेरे कमरे में नहीं सो सकता था। एक दिन किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो जाने की वजह से मेरे माता-पिता को दिल्ली जाना पड़ा।

लेकिन मैं नहीं जा सकता था क्योंकि अगले दिन मेरी परीक्षा शुरू होनी थी। उन्होंने मुझे बताया कि वे अगले दिन आएँगे और मुझे अकेले रहना होगा। जैसे ही रात हुई, तो अंधेरे से लगने वाला डर मुझ में लौट आया। मैं अपने कमरे में लाइट जगाकर सो गया। परन्तु लगभग आधी रात को लाइट चली गई और मैं उठ गया। मैं डर के मारे काँपने लगा। मैंने खिड़की में से बाहर देखा। हमारे आँगन में एक पेड़ था। मैंने उस पेड़ पर कोई सफेद-सी चीज देखी। मैंने सोचा कि वह भूत था।

मैंने चीखने का प्रयास किया, लेकिन चीख नहीं पाया। मैं सारी रात काँपता रहा। जब दिन निकला, मैंने फिर से खिड़की के बाहर देखा। पेड़ के ऊपर एक सफेद कमीज थी। वह हवा के साथ उड़कर पेड़ में आ अटकी थी। मैं अपनी मूर्खता पर हँसा। उसके बाद से मैंने उस डर पर काबू पाने का दृढ़-निश्चय कर लिया। मैंने लाइटें बंद करके सोना शुरू कर दिया। पहले तो मुझे डर लगता था। लेकिन समय के साथ-साथ, मैं उस डर पर काबू पाने में सफल रहा।)

Question 2.
Find and narrate other stories about conquest of fear and what people have said about courage. For example, you can recall Nelson Mandela’s struggle for freedom, his perseverance to achieve his mission, to liberate the oppressed and the oppressor as depicted in his autobiography. The story We’re Not Afraid To Die, which you have read in Class XI, is an apt example of how courage and optimism that helped a family survive under the direst stress.
(भय पर काबू पाने के बारे में और लोग साहस के बारे में क्या कहते हैं, के बारे में अन्य कहानियाँ ढूंढिए और वर्णन कीजिए। उदाहरण के तौर पर आप नेल्सन मंडेला के आजादी के बारे में संघर्ष, अपने लक्ष्य को पाने के बारे में उसके धैर्य, दलित लोगों को आजाद करवाना आदि जैसा कि उसकी आत्मकथा में लिखा है, का वर्णन कर सकते हैं। कहानी ‘हम मरने से नहीं डरते’ जो तुमने कक्षा 11 में पढ़ी है इस बात का सही उदाहरण है कि किस प्रकार साहस एवं आशा ने एक परिवार को खतरे का सामना करने की हिम्मत दी।)
Answer:
It is said that fortune favours the brave. History is full of stories of human courage and conquest of fear. Brave people as Mahatma Gandhi and Nelson Mandela are two examples of conquest of fear. They both fought against the British for freedom of their countries. Gandhi told the peasants and the common people of India not to fear the British. Fear is the main culprit, he told the people. Himself was fearless. Many a time, he was thrown into the jail. But he never lost courage. In the end, his efforts brought fruit and the British left India.

In the same way, Nelson Mandela fought for the freedom of his country. He was put into jail for demanding freedom for the black people of his country. But he did not lose courage. His courage affected others. The blacks of South Africa became united and rose against the white rulers. Mandela spent all his youth in prison. In the end, he was freed. It was because of his courage and fearlessness that the blacks of South Africa got their rights. In this way, the stories of great men remind us that we should not be afraid. We must shed our fear if we want to forge ahead in life.

(ऐसा कहा जाता है कि भाग्य बहादुरों का साथ देता है। इतिहास मानव के शौर्य और डर पर विजयों की कहानियों से भरा पड़ा है। महात्मा गाँधी और नेल्सन मंडेला डर पर विजय पाने वाले बहादुर लोगों के दो उदाहरण हैं। वे अपने देशों की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के साथ लड़े। गाँधी ने किसानों और भारत के जन साधारण से कहा कि वे अंग्रेजों से न डरें। उन्होंने लोगों को बताया कि मुख्य अपराधी डर है। वह स्वयं भी निडर था। उसको कई बार जेल में डाला गया। लेकिन उसने कभी भी हिम्मत नहीं हारी। अंत में, उनके प्रयास सफल रहे और अंग्रेज भारत को छोड़कर चले गए।

इसी तरह से, नेल्सन मंडेला भी अपने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े। अपने देश के काले लोगों की स्वतंत्रता की माँग करने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसके साहस ने दूसरों को प्रभावित किया। दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत लोग संगठित हो गए और श्वेत शासकों के खिलाफ उठ खड़े हुए। मंडेला ने अपनी सारी जवानी जेल में बिता दी। अंत में, उसे स्वतंत्र कर दिया गया। यह सिर्फ उसके साहस और निडरता की वजह से हुआ कि दक्षिण अफ्रीका के अश्वत लोगों को उनके अधिकार मिल सकें। इस तरह से महान् लोगों की कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि हमें डरना नहीं चाहिए। हमें अपने डर को दूर भगा देना चाहिए यदि हम जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Thinking About Language

Question 1.
If someone else had narrated Douglas’s experience, how would it have different from this account? Write out a sample paragraph or paragraphs from this text from the point of view of a third person or observer, to find out which style of narration would you consider to be more effective? Why? (अगर डगलस के अनुभव का वर्णन कोई अन्य व्यक्ति करता तो वह उसके स्वयं के वर्णन से कैसे अलग होता ? तीसरे व्यक्ति या पर्यवेक्षक के दृष्टिकोण से एक या अधिक गद्यांश लिखो ताकि पता लगे कि आप किस वर्णन को अधिक प्रभावशाली 9 ? R ?)
Answer:
If someone else had narrated Douglas’s experience, it would have been in the third person narrative. The first-person narrative is the best form for expressing one’s experiences. Sample Paragraph Douglas was alone at the pool. He sat at the edge of the pool. He could not imagine what was going to happen to him. Suddenly a big boy came and threw him into the pool. He landed at the bottom of the pool in its deepest part. Douglas was greatly frightened.

But still, he had not lost his presence of mind. As he was going down, he planned to touch the bottom of the pool with his feet and jump upwards. But it took a long time going down. The nine feet appeared to be more than ninety. His feet touched the bottom. As planned, he hit the bottom with his feet and started coming up. But he was coming up very slowly. He opened his eyes and saw nothing but water. He grew panicky.

He called for help, but nothing happened. When he came to his senses, he was lying beside the pool, vomiting. Someone had saved him from drowning. That fear remained with him as he grew up. Finally, he made up his mind to get rid of that fear. He got a swimming instructor. He taught Douglas how to swim. Still, he was not fully free from fear. Then one day, he went to Lake Wentworth in New Hampshire.

He dived off a dock at Triggs Island. He swam two miles across the lake to Stamp Act Island. Only once he felt some fear when he was in the middle of the lake. But soon he overcame that fear. Then he swam back. He shouted with joy. Thus finally, he was able to conquer his fear of water and swimming.

Writing
Question 1.
Doing well in any activity, for example, a sport, music, dance or painting, riding a motorcycle or a car, involves a great deal of struggle. Most of us are very nervous to begin with until gradually we overcome our fears and perform well. Write an essay of about five paragraphs recounting such an experience. Try to recollect minute details of what caused the fear, your feelings, the encouragement you got from others or the criticism. You could begin with the last sentence of the essay you have just read: “At last, I felt released-free to walk the trails and climb the peaks and to brush aside fear.”
(किसी भी काम में विलक्षणता दिखाना, उदाहरणतया, खेल, संगीत, नाच या चित्रकला, मोटरसाइकिल या कार चलाना, में बहुत संघर्ष की जरूरत पड़ती है। हममें से अधिकतर आरम्भ में बहुत घबराते हैं मगर धीरे-धीरे हम अपने भय पर काबू पा लेते हैं और सही काम करते हैं। लगभग पाँच गद्यांशों का निबन्ध लिखिए जिसमें ऐसे अनुभव का वर्णन करो। प्रयत्न करो कि उन बातों का गहन वर्णन हो जिनसे आपको भय हुआ, तुम्हारी भावनाएँ, तुम्हें अन्य लोगों से जो प्रोत्साहन या आलोचना मिली। आप इस पाठ के अन्तिम वाक्य से आरम्भ कर सकते हो जो आपने अभी-अभी पढ़ा है।)
Answer:
“At last I felt released-free to walk the trails and climb into peaks and to brush aside fear.” This statement of Douglas fits my experience. When I was in tenth class, I wanted to learn how to drive a scooter. I told my elder brother to teach me scooter driving. He agreed. One Sunday, he took me to the grounds outside the city. He gave me preliminary verbal lessons about the various functions of the scooter.

Then I sat on the seat and he sat behind me. I placed my hands on the handlebars. I drove scooter three or four days with my brother behind me. Then it was time for me to go solo. With a trembling heart, I kicked, started the scooter, and sat on it. My brother encouraged me. I started driving. My heart was trembling with fear, but I drove on. Soon I was at the end of the ground. Then instead of turning back, I went on as I could neither turn back nor apply brakes. I came on the road and suddenly a car came from left. I tried my best, but I was paralyzed. Luckily the car driver slowed down but it collided against my scooter and I was injured. I remained on bed for one week.

Now the fear of driving entered my mind. I gave up the idea of learning how to drive the scooter. But my friends laughed at me and called me a coward. At last I decided that I would have to come out of that fear. I knew the technique. I had only to fight my fear. I started the scooter and immediately came on the road. With great courage I kept driving and avoiding the other vehicles. After about one hour, my fear was gone. I could now drive with confidence.

Question 2.
Write a short letter to someone you know about your having learnt something new. (अपने किसी परिचित को संक्षिप्त पत्र लिखो जिसमें किसी नई चीज़ को सीखने पर अपनी भावनाएँ बताओ।)
Answer:
275 Gandhi Nagar
Pathankot
September 21, ….
My Dear Rishi.

You will be glad to know I have learnt something new. It is paper pulp modeling. For this purpose, I collected small bits of rough paper. I put them down in an earthen pot and covered it them with water. After a few days, the paper pieces became soft. I took them out and beat them into a pulp. Then I added some Multani clay and added more water. Now I kneaded it like dough. It became a fine pulp.

Then I took an earthen vase. I covered it all around with a fine layer of the pulp prepared by me. After it had dried, I cut it out with a knife. I joined the cut edges with fevicol. Then I made it smooth with sandpaper. hite paint on it. Then I painted a picture on it. It became a fine piece of art. Everyone praised my effort. Since then I have made three more such pieces. I will show you my creations when we meet next.

Yours sincerely,
Abhishek Shrivastava

Things To Do

Question 1.
Are there any water sports in India? Find out about the areas or places which are known for water sports. (क्या भारत में पानी के खेल हैं ? ऐसे स्थानों का पता लगाओ जहाँ पर ऐसे खेल होते हैं।)
Answer:
For self-attempt with the help of the teacher.

HBSE 12th Class English Deep Water Important Questions and Answers

Short Answer Type Questions
Answer the following questions in about 20-25 words : 

Question 1.
What did the author’s mother tell him about the Yakima river? (लेखक की माता ने उसे याकीमा नदी के बारे में क्या बताया ?)
Answer:
When he was ten or eleven years old, the author decided to learn how to swim. He could learn swimming in the Yakima River. But his mother forbade him to do so. She told him that the Yakima River was treacherous. She reminded him about the details of each drowning in the river.
(जब लेखक दस या ग्यारह वर्ष का था तो उसने तैराकी सीखने का निर्णय लिया। वह याकीमा नदी में तैराकी सीख सकता था। लेकिन उसकी माँ ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया। उसने उसे बताया कि याकीमा नदी खतरनाक है। उसने उसको नदी में डूबने की घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया।)

Question 2.
Why did Douglas think that the YMCA pool was safe? [H.B.S.E. 2017 (Set-D)] (डगलस ने ऐसा क्यों सोचा कि YMCA पूल सुरक्षित है ?) Or
When did the writer join the YMCA pool and why? [H.B.S.E. 2020 (Set-A)] (लेखक YMCA ताल से कब और क्यों जुड़ा?)
Answer:
Douglas wanted to learn how to swim. He decided to learn swimming in the YMCA pool. He felt that it was a safe pool. This pool was only two or three feet deep at the shallow end. It was nine feet deep at the other end. But the drop was gradual.
(डगलस तैराकी सीखना चाहता था। उसने YMCA के ताल में तैराकी सीखने का निर्णय लिया। उसने महसूस किया कि वह एक सुरक्षित ताल था। यह ताल उथले सिरों की ओर केवल दो या तीन फुट गहरा था। दूसरे सिरे की ओर यह नौ फुट गहरा था। लेकिन ताल की गहराई धीरे-धीरे बढ़ती थी।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Question 3.
What misadventure took place when Douglas was ten or eleven years old? (जब डगलस दस या ग्यारह साल का था तो क्या दुर्घटना हुई ?)
Answer:
One day, Douglas went to the Y.M.C.A. swimming pool. He was alone at the pool. He sat at the edge of the pool. Suddenly, a big boy came. He picked up Douglas and threw him into the pool. Douglas landed at the deepest part of the pool. He was nearly drowned in the pool. That incident created a fear of water in him. It took him many years to get rid of that fear.

(एक दिन डगलस YMCA के तरणताल पर गया। वह ताल पर अकेला था। वह ताल के तट पर बैठा था। अचानक ही एक बड़ा लड़का आया। उसने डगलस को ऊपर उठाया और उसको ताल के अन्दर फेंक दिया। डगलस ताल के सबसे अधिक गहरे भाग में गिरा। वह ताल में लगभग डूब ही चुका था। इस घटना ने उसके मन में पानी से भय पैदा कर दिया। इस भय पर काबू पाने में उसे कई साल लग गए।)

Question 4.
When and why did Douglas develop an aversion for water when he was in it? (पानी में होने पर डगलस को कब और क्यों पानी से नफरत हो गई ?)
Answer:
When Douglas was three or four years old, his father took him to the beach in California. They stood together in the surf. Suddenly the waves came and swept over him. He was knocked down. He was frightened. Then Douglas developed aversion for water when he was in it.

(जब डगलस तीन या चार साल का था तो उसका पिता उसे कैलिफोर्निया के समुद्री तट पर ले गया। वे पानी की लहरों से उठने वाली झाग में इकट्ठे खड़े थे। अचानक ही लहरें आई और उसे बहा दिया। लहरों के प्रहार से वह नीचे गिर गया। वह डर गया। इस तरह से डगलस जब भी पानी के अंदर होता था तो उसके मन में पानी के प्रति नफरत पैदा हो गई।)

Question 5.
What did Douglas do when once he went to the swimming pool when no one was there? (जब डगलस स्विमिंग पूल में गया तब वहाँ कोई नहीं था तो उसने क्या किया ?)
Answer:
One day, Douglas went to the Y.M.C.A swimming pool. He found that there was no one there. The water was still and the tiled floor of the swimming pool was clean. He was alone to go into the water alone. So he sat on the side of the pool and waited for others.

(एक दिन डगलस YMCA के तरणताल पर गया। उसने देखा कि वहाँ पर कोई भी नहीं था। पानी शांत था और ताल का पक्का फर्श बिल्कुल साफ था। वह पानी के अन्दर जाने के लिए बिल्कुल अकेला था। इसलिए वह ताल के किनारे बैठकर किसी अन्य के आने का इन्तजार करने लगा।)

Question 6.
What did Douglas plan to do when the big boy threw him into the pool? (जब बड़े लड़के ने उसे पूल में फेंक दिया तो डगलस ने क्या योजना बनाई ?)
Answer:
A big boy threw Douglas into the pool. He was frightened. But he did not lose his presence of mind. He planned that when his feet hit the bottom of the pool, he would make a big jump upwards and come to the surface. Then he would lie flat on the surface for some time. After that he would paddle to the edge of the pool.

(एक बड़े लड़के ने डगलस को ताल के अन्दर फेंक दिया। वह डर गया। लेकिन उसने अपनी बुद्धि को नहीं खोया। उसने योजना बनाई कि जैसे ही उसके पाँव ताल को स्पर्श करेंगे तो वह ऊपर की ओर छलाँग लगाएगा और पानी की सतह पर आ जाएगा। तब वह कुछ समय तक पानी की सतह पर चपटा पड़ा रहेगा। उसके बाद वह तैरते हुए ताल के तट तक आ जाएगा।)

Question 7.
How did Douglas feel when he went down in the water and there was water all around him? (जब डगलस पानी के नीचे गया और उसके चारों तरफ पानी था तो उसने क्या महसूस किया ?)
Answer:
When he was in the water, he opened his eyes. He saw water all around him. He was not coming up quickly. He was seized with terror. He felt that he would die. He started shrieking. But even his screams were frozen in his throat. He felt alive only because he could hear the beating of his heart and the pounding in his head.’
(जब वह पानी के अन्दर था तो उसने अपनी आँखें खोली। उसने अपने चारों ओर पानी देखा। वह तेजी से ऊपर की ओर नहीं आ रहा था। वह डर से भरा हुआ था। उसने महसूस किया कि वह मर जाएगा। उसने चीखना शुरू कर दिया। लेकिन उसकी चीखें भी उसके गले में जमकर रह गई थीं। उसे अपने जिंदा होने का मात्र एहसास हो रहा था क्योंकि वह अपने हृदय तथा सिर की धड़कन को सुन सकता था।)

Question 8.
Who threw Douglas into the swimming pool? [H.B.S.E. 2017 (Set-A)] (डगलस को स्विमिंग पूल में किसने फेंका ?)
Answer:
Douglas was sitting alone at the edge of the swimming pool. He did not want to go into the water alone. Suddenly an eighteen-year-old boy came there. He was strongly built. He had strong muscles on his arms and legs. He called Douglas skinny. Then he lifted Douglas and threw him into the deep end of the pool.

(डगलस तरणताल के तट पर अकेला बैठा था। वह पानी के अन्दर अकेला नहीं जाना चाहता था। अचानक ही एक अठारह वर्ष की आयु का लड़का वहाँ आया। वह मजबूत शरीर वाला था। उसकी बाँहों और टाँगों की माँसपेशियाँ बहुत मजबूत थीं। उसने डगलस को दुबला कहा। तब उसने डगलस को ऊपर उठाया और उसे ताल के गहरे वाले सिरे में फेंक दिया।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Question 9.
What was Douglas’s condition when he was under water in the pool? . (जब वह पूल में पानी के नीचे था तो डगलस की अवस्था कैसी थी ?)
Answer:
Douglas made a jump upwards. But he was coming very slowly. He opened his eyes. He found only water around him. Once his eyes and nose came out of the water. But then he went down again. He felt suffocating under the water. He tried to bring his legs up. But they seemed lifeless and paralyzed. His lungs ached and his head throbbed. He thought that he was going to die.

(डगलस ने ऊपर की ओर छलाँग लगाई। लेकिन वह बहुत धीरे-धीरे ऊपर आ रहा था। उसने अपनी आँखें खोलीं। उसने अपने चारों ओर केवल पानी ही पानी पाया। एक बार उसकी आँखें और नाक पानी से बाहर आए। लेकिन वह फिर से पानी के नीचे चला गया। पानी के अन्दर उसका दम घुट रहा था। उसने अपनी टाँगों को ऊपर लाने का प्रयास किया। लेकिन वे बेजान और सुन्न प्रतीत हो रही थीं। उसके फेफड़े पीड़ा कर रहे थे तथा सिर धक-धक कर रहा था। उसने सोचा कि वह मर जाएगा।)

Question 10.
What did Douglas do to save himself? Did he succeed? (डगलस ने स्वयं को बचाने के लिए क्या किया ? क्या वह सफल हुआ ?)
Answer:
Douglas was seized with fear. He felt paralyzed. Suddenly, an idea came to him. He planned to make a jump when his feet touched the bottom. He jumped with all his energy. But the jump made no difference. Now fear seized him. He cried and called for help. But nothing happened.

(डगलस अति भयभीत था। वह सुन्न हो चुका था। अचानक ही उसे एक विचार सूझा। उसने योजना बनाई कि जब उसके पाँव तल को स्पर्श करेंगे तो वह ऊपर की ओर एक छलाँग लगाएगा। उसने अपनी पूरी ताकत के साथ छलाँग लगाई। लेकिन इस छलाँग का कोई असर नहीं पड़ा। अब उसका डर और अधिक बढ़ गया। वह चिल्लाया और मदद के लिए पुकारा। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।)

Question 11.
What did Douglas find when he became conscious? . (जब उसे होश आया तो डगलस ने क्या देखा ?)
Answer:
When Douglas went down for the third time, he felt that he would die. All efforts seized. A blackness swept over him. Now there was no panic. All was quiet and peaceful. He crossed into oblivious. When he came to his senses, he found that he was lying on his stomach by the side of the pool and was vomiting.

(जब डगलस तीसरी बार नीचे गया, तो उसे लगा कि वह मर जाएगा। सारे प्रयास थम चुके थे। उसके ऊपर अंधेरा-छा चुका था। अब कोई भय शेष नहीं बवा था। सब कुछ एक दम से शांत हो चुका था। वह सब कुछ भूल जाने की स्थिति में आ चुका था। जब उसे होश आया तो उसने पाया कि वह ताल के पास में अपने पेट के बल लेटा हुआ पड़ा था और उल्टियां कर रहा था।)

Question 12.
Why did the boy who had thrown him into the pool say in the end? (अन्त में उस लड़के ने क्या कहा जिसने उसे पूल में फेंका था ?)
Answer:
A big boy threw Douglas into the pool. He was nearly drowned in the pool. When he came to his senses, he found the big boy standing by him. He defended himself by saying that he was only ‘fooling’. Someone told him, “The kid nearly died.’
(एक बड़े लड़के ने डगलस को ताल के अन्दर फेंक दिया। वह ताल में लगभग डूब ही चुका था। जब उसे होश आया, तो उसने उस बड़े लड़के को अपने पास खड़े पाया। उसने यह कहते हुए अपना बचाव किया कि वह तो केवल मजाक कर रहा था। किसी ने उसे बताया, “बच्चा तो लगभग मर ही चुका था’।)

Question 13.
How did Douglas feel when he wanted to get into the waters of the Cascades? (जब डगलस जलप्रपातों के पानी में जाना चाहता था तो उसने क्या महसूस किया ?)
Answer:
Douglas’s boyhood misadventure created a fear of water in him. Whenever he wanted to get into the waters of the Cascades or other places, the old fear came back. It would take possession of him completely.
(डगलस की बचपन की दुर्घटना ने उसके अन्दर पानी के प्रति एक भय पैदा कर दिया। वह जब कभी भी झरने या किसी अन्य स्थान पर जल के अन्दर प्रवेश करने का प्रयास करता था, तो वहीं पुराना डर उसके अन्दर लौट आता था। वह डर उसके ऊपर पूरी तरह से काबू पा लेता था।)

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Question 14.
How did the fear of water ruin Douglas’s trips and other joys? (पानी के डर ने डगलस की यात्राओं एवं अन्य खुशियों को कैसे बर्बाद कर दिया ?)
Answer:
The fear of water stayed with Douglas as he grew up. Wherever he went, this fear accompanied him. In canoes on the Maine Lakes or fishing for trout and salmon, he always felt the old fear. It ruined his fishing trips. It deprived him of the joys of swimming and boating.
(जब डगलस बड़ा हो गया तो पानी से लगने वाला डर फिर भी उसके अन्दर बना रहा। जब कभी भी वह पानी के पास जाता तो उसका डर भी उसके साथ ही रहता। मेन की झीलों में नौका चालन करने या ट्राउट और सेलमन मछली पकड़ते समय, उसे हमेशा ही पुराने डर का एहसास होता था। उसने उसकी मछली पकड़ने की यात्राओं का मजा ही खो दिया था। इसने उसके तैराकी करने और नौका चालन करने के मजे को भी खो दिया था।)

Question 15.
What did Douglas do get rid of his fear of the water? Did he succeed? (डगलस ने स्वयं को पानी के भय से छुटकारा दिलाने के लिए क्या किया ? क्या वह सफल हुआ ?) Or Where did Douglas finally learn to Swim? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-D)] (आखिर डगलस ने तैरना कहाँ सीखा?)
Answer:
Douglas tried his best to overcome his fear of the water. But he did not get much success. Finally, one October, he got an instructor and decided to learn how to swim. He went to a pool and practiced five days a week, an hour each day. Douglas succeeded in overcoming his fear of water. He became a swimmer.
(डगलस ने पानी से लगने वाले डर पर काबू पाने के लिए अपना पूरा प्रयास किया। लेकिन उसे कोई अधिक सफलता नहीं मिली। अंततः ‘एक अक्तूबर मास में’ वह एक प्रशिक्षक से मिला और तैराकी सीखने का निर्णय ले लिया। वह एक ताल पर गया और वहाँ सप्ताह में पाँच दिन और हर दिन एक घंटा अभ्यास करने लगा। डगलस पानी से लगने वाले भय पर काबू पाने में सफल रहा। वह एक तैराक बन गया।)

Question 16.
How did Douglas finally overcome his fear of the water? (आखिर डगलस ने पानी के भय से छुटकारा कैसे पा लिया ?)
Answer:
The instructor made Douglas a perfect swimmer. Yet he was not satisfied. He was not sure whether the fear of water had completely left him. So he went to Lake Wentworth and dived off a dock at Triggs Island. He swam for two hours across the lake. Only once did he feel afraid of the water. But it fled soon and he swam on. In this way, he conquered his fear of the water.
(प्रशिक्षक ने डगलस को एक संपूर्ण तैराक बना दिया। लेकिन फिर भी वह संतुष्ट नहीं था। उसे इस बात का अभी भी पक्का यकीन नहीं था कि उसका पानी से लगने वाला डर पूरी तरह से समाप्त हो चुका था। इसलिए वह वेंटवर्थ लेक पर गया और एक डॉक से ट्रिग्स आइलैंड पर छलाँग लगा दी। वह पूरे दो घंटे तक झील में तैरता रहा। उसे केवल एक बार ही पानी से डर लगा। लेकिन उसका यह डर शीघ्र ही भाग गया और वह तैरता गया। इस तरह से, उसने पानी से लगने वाले भय पर काबू पा लिया।)

Question 17.
What message does Douglas convey in this lesson ? (इस पाठ में डगलस क्या सन्देश देता है ?)
Answer:
Douglas conveys the message that all we have to fear is fear itself. All fears and terrors are only in the mind. A determined man does not feel any fear. Douglas felt fear of water only till he had not made up his mind to get rid of it. Finally, he was able to overcome his fear of the water.
(डगलस हमें संदेश देता है कि हमें जिस चीज से डरना है वह है स्वयं डर। सारे डर और दहशत सिर्फ मन के अन्दर होते हैं। एक दृढ़-निश्चय वाला आदमी किसी भी डर से नहीं डरता। डगलस को पानी से केवल तभी तक डर लगा जब तक कि उसने अपने मन को इस डर से मुक्त कराने का इरादा नहीं कर लिया। अंततः वह अपने इस भय पर काबू पाने में सफल रहा।)

Long Answer Type Questions
Answer the following questions in about 80 words

Question 1.
How did Douglas develop an aversion and then fear of water? How did he overcome his fear of water? [HB.S.E. March, 2019 (Set-A)] (डगलस को पानी के प्रति घृणा और फिर डर कैसे पैदा हो गया ? उसने इस डर पर काबू कैसे पाया ?)
Answer:
Douglas developed an aversion for water when he was only three or four years old. One day his father took him to the California Beach. They stood in the surf. Suddenly a huge wave came and swept over him. He was knocked down. He developed an aversion for water. Then a boyhood ‘misadventure’ changed that aversion into fear. One day when he was ten or eleven years old, he went to the Y.M.C.A. swimming pool.

He sat at the edge of the pool. A big boy came and threw him into the pool. He was nearly drowned in the pool. Now the fear of water seized him. This fear remained with him as he grew up. Finally, he made up his mind to get rid of that fear. He engaged an instructor to teach him how to swim. He practiced swimming one hour daily for fives days a week. The instructor made him a perfect swimmer. Yet the writer was not completely sure that the fear had left him. So he went to Lake Wentworth and dived off a dock at Triggs Island. He swam for two hours across the lake. Only once did he feel afraid of the water. But it fled soon and he swam on. In this way, he conquered his fear of the water.

(जब डगलस केवल तीन या चार साल का था तो उसके मन में पानी के प्रति नफरत पैदा हो गई। एक दिन उसका पिता उसको कैलिफोर्निया के समुद्री तट पर ले गया। वे लहरों के बीच खड़े थे। अचानक ही एक बड़ी लहर आई और उसके ऊपर से बह गई। वह नीचे गिर गया। उसके मन में पानी के प्रति नफरत पैदा हो गई। बालपन की दुर्घटना की यह नफरत डर में बदल गई। एक दिन जब वह दस या ग्यारह वर्ष का था तो वह YMCA के तरणताल पर गया। वह ताल के एक सिरे पर बैठा था। एक बड़ा लड़का आया और उसने उसे ताल के अंदर फेंक दिया। वह ताल के अन्दर लगभग डूब ही चुका था। तब पानी से लगने वाले डर ने उसे जकड़ लिया। यह डर उसके अंदर तब भी बना रहा जब वह बड़ा हुआ। अंततः, उसने उस डर से छुटकारा पाने के लिए अपना मन पक्का कर लिया।

उसने एक प्रशिक्षक की व्यवस्था की जो उसे तैराकी सिखा सके। वह सप्ताह के पाँच दिन हर रोज एक घंटे तक तैराकी का अभ्यास करता था। प्रशिक्षक ने उसको एक संपूर्ण तैराक बना दिया। लेकिन लेखक को इस बात का अभी भी पूरा यकीन नहीं था कि उसका भय उसको छोड़ चुका था। इसलिए वह वेंटवर्थ लेक पर गया और वहाँ एक डॉक के ऊपर से ट्रिग्स आइलैंड पर छलाँग लगा दी। वह दो घंटे तक झील में तैरता रहा। उसे केवल एक बार तो पानी से डर लगा। लेकिन वह डर जल्दी ही भाग गया और वह तैरता रहा। इस तरह से, उसने पानी से लगने वाले अपने डर पर विजय हासिल कर ली।)

Question 2.
Describe the ‘misadventure’ of Douglas and how he survived it. (डगलस की दुर्घटना का वर्णन करो और वह कैसे इससे बचा।) Or What was misadventure at the Y.M.C.A. pool that the writer William Douglas speaks about? (Y.M.C.A. ताल में लेखक विलियम डगलस के साथ क्या घटित हुआ जिसका वह वर्णन करता है?) [2020 (Set-C)]
Answer:
Douglas describes a ‘misadventure’ of his boyhood days. One day, when he was ten or eleven years old, Douglas went to the Y.M.C.A. swimming pool. He was alone there and sat at the edge of the pool. Suddenly a big boy came and threw him into the pool. He landed at the bottom of the pool in its deepest part. Douglas was greatly frightened. But still, he had not lost his presence of mind. He was going down, he planned to touch the bottom of the pool with his feet and jump upwards. He thought that he would come out of the water. He would then swim on the surface of the water towards the edge of the pool. But it took a long time going down.

The nine feet appeared to be more than ninety. His feet touched the bottom. As planned, he hit the bottom with his feet and started coming up. But he was coming up very slowly. He opened his eyes and saw nothing but water. He grew panicky. It appeared to him as if a great force was pulling him down. His leg seemed to be paralyzed. He made another jump upwards. But that made no difference. He thought that he was going to die. He called for help, but nothing happened. When he came to his senses, he was lying beside the pool, vomiting. The boy who had thrown him into the water was standing near. He said that he had only been ‘fooling’ with Douglas.

(डगलस अपने बचपन के दिनों की एक दुर्घटना का वर्णन करता है। एक दिन, जब वह दस या ग्यारह वर्ष की उम्र का था, डगलस YMCA के तरणताल पर गया। वह वहाँ अकेला था और ताल के एक किनारे पर बैठ गया। अचानक ही एक बडा लडका आया और उसने उसे ताल के अन्दर फेंक दिया। वह ताल के सबसे गहरे हिस्से में ताल के तल पर जा गिरा। डगलस बुरी तरह से डर गया था। लेकिन फिर भी उसने अपनी बुद्धि को नहीं खोया था। जब वह नीचे की ओर जा रहा था तो उसने ताल के तल को अपने पैरों से छकर ऊपर की ओर छलाँग लगाने की योजना बनाई। उसने सोचा कि वह पानी से बाहर आ जाएगा।

तब वह पानी की सतह पर तैरकर ताल के सिरे तक आ जाएगा। लेकिन नीचे जाने में उसे बहुत लंबा समय लगा। नौ फुट की दूरी नब्बे फुट से भी अधिक प्रतीत हो रही थी। उसके पाँवों ने तल के छूआ। योजना के अनुसार, उसने अपने पैरों से तल पर प्रहार किया और ऊपर आना शुरू कर दिया। लेकिन वह बहुत ही धीरे-धीरे ऊपर आ रहा था। उसने अपनी आँखें खोली और उसको पानी के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं दिया। वह आतंकित हो गया। उसे ऐसा लगा कि कोई बड़ी ताकत उसे नीचे की ओर खींच रही थी। उसकी टाँगों को मानो लकवा मार गया था। उसने ऊपर की ओर एक और छलाँग लगाई। लेकिन उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने सोचा कि वह मर रहा था। उसने मदद के लिए आवाज लगाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। जब उसे होश आया, वह ताल के पास में पड़ा हुआ उल्टियाँ कर रहा था। जिस लड़के ने उसे अंदर फेंका था, वह पास में ही खड़ा था। उसने कहा कि वह तो डगलस के साथ सिर्फ मजाक कर रहा था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Question 3.
How did the fear of water stay with Douglas as the years rolled by? (समय के बीतने के साथ भी पानी का भय डगलस के साथ किस प्रकार रहा ?)
Answer:
When he was a boy, a misadventure created in him a deep fear of water. Once he went to the Y.M.C.A swimming pool. There, a big boy threw him into the water. He was nearly drowned. But the incident created a fear of water in him. After a few years, he came to know the waters of the Cascades. He wanted to get into them. But whenever he tried to do so, the old fear of water returned. That fear would take possession of him completely. His legs would become paralyzed. The fear of water remained with him for many more years.

It ruined his joy of swimming, fishing or boating. In canoes on Maine Lakes, fishing for salmon, he felt the same old fear. The paralyzing fear came back when he went for bass fishing in New Hampshire or trout fishing on the Deschutes and Metolius in Oregon. The same fear troubled him while fishing for salmon on the Columbia or at Bumping lake in the Cascades. Whenever he went, the haunting fear of water followed him. It deprived him of the joy of canoeing, boating, and swimming.

(जब वह एक लड़का था तो एक दुर्घटना ने उसके अन्दर पानी के प्रति गहरा भय पैदा कर दिया। एक बार वह YMCA के तरणताल पर गया। वहाँ पर एक बड़े लड़के ने उसको पानी के अन्दर फेंक दिया। वह लगभग डूब ही चुका था। लेकिन उस घटना ने उसके अंदर पानी से भय पैदा कर दिया। कुछ वर्षों के पश्चात्, उसे झरनों के जल के बारे में जानकारी मिली। वह झरनों के जल का आनन्द लेना चाहता था। लेकिन जब भी वह ऐसा करने का प्रयास करता था तो उसका पुराना भय फिर से लौट आता था। यह डर पूरी तरह से उसे अपने काबू में कर लेता था। उसकी टाँगें सुन्न हो जाती थीं। पानी से लगने वाला डर उसके अन्दर कई सालों तक बना रहा। इस डर ने उसके तैराकी करने, मछली पकड़ने और नौका चालन से मिलने वाले आनन्द को खो दिया था।

जब वह मेन झीलों में नौका चलाता था या सेलमन मछली पकड़ता था तो उसे उसी पुराने डर का एहसास होता था। उसका वही पुराना डर उसको सुन्न कर देता था जब वह न्यू हैम्पशायर में बास मछली पकड़ने और आरेगन के मेटोलियस, डेस्यूट्स में ट्राउट मछली पकड़ने जाता था। वही पुराना डर उसे उस समय भी कष्ट पहुँचाता था जब वह कोलम्बिया या बम्पिंग लेक के झरनों में सेलमन मछली को पकड़ने जाता था। वह जहाँ भी जाता था, वह आतंकित कर देने वाला भय उसके साथ ही बना रहता था। इस डर ने उसके छोटी नाव चलाने, बड़ी नाव चलाने और तैराकी करने के आनन्द को नष्ट कर दिया था।)

Question 4.
“I still wondered if I would be terror-stricken when I was alone in the pool.” How did Douglas overcome that terror? (“मुझे अभी भी हैरानी थी कि जब मैं पूल में अकेला होऊँगा तो क्या मैं भयभीत होऊँगा।” डगलस ने उस डर पर काबू कैसे पाया ?)
Answer:
Douglas developed an aversion for water when he was only three or four years old. One day his father took him to the California Beach. They stood in the surf. Suddenly a huge wave came and swept over him. He was knocked down. He developed an aversion for water. Then a boyhood ‘misadventure’ changed that aversion into fear. One day when he was ten or eleven years old, he went to the Y.M.C.A. swimming pool.

He sat at the edge of the pool. A big boy came and threw him into the pool. He was nearly drowned in the pool. Now the fear of water seized him. This fear remained with him as he grew up. Finally, he made up his mind to get rid of that fear. He engaged an instructor to teach him how to swim. He practiced swimming one hour daily for fives days a week. The instructor made him a perfect swimmer. Yet the writer was not completely sure that the fear had left him. So he went to Lake Wentworth and dived off a dock at Triggs Island. He swam for two hours across the lake. Only once did he feel afraid of the water. But it fled soon and he swam on. In this way, he conquered his fear of the water.

(जब डगलस केवल तीन या चार साल का था तो उसके मन में पानी के प्रति नफरत पैदा हो गई। एक दिन उसका पिता उसको कैलिफोर्निया के समुद्री तट पर ले गया। वे लहरों के बीच खड़े थे। अचानक ही एक बड़ी लहर आई और उसके ऊपर से बह गई। वह नीचे गिर गया। उसके मन में पानी के प्रति नफरत पैदा हो गई। बालपन की दुर्घटना की यह नफरत डर में बदल गई। एक दिन जब वह दस या ग्यारह वर्ष का था तो वह YMCA के तरणताल पर गया। वह ताल के एक सिरे पर बैठा था। एक बड़ा लड़का आया और उसने उसे ताल के अंदर फेंक दिया। वह ताल के अन्दर लगभग डूब ही चुका था। तब पानी से लगने वाले डर ने उसे जकड़ लिया। यह डर उसके अंदर तब भी बना रहा जब वह बड़ा हुआ। अंततः, उसने उस डर से छुटकारा पाने के लिए अपना मन पक्का कर लिया।

उसने एक प्रशिक्षक की व्यवस्था की जो उसे तैराकी सिखा सके। वह सप्ताह के पाँच दिन हर रोज एक घंटे तक तैराकी का अभ्यास करता था। प्रशिक्षक ने उसको एक संपूर्ण तैराक बना दिया। लेकिन लेखक को इस बात का अभी भी पूरा यकीन नहीं था कि उसका भय उसको छोड़ चुका था। इसलिए वह वेंटवर्थ लेक पर गया और वहाँ एक डॉक के ऊपर से ट्रिग्स आइलैंड पर छलाँग लगा दी। वह दो घंटे तक झील में तैरता रहा। उसे केवल एक बार तो पानी से डर लगा। लेकिन वह डर जल्दी ही भाग गया और वह तैरता रहा। इस तरह से, उसने पानी से लगने वाले अपने डर पर विजय हासिल कर ली।)

Question 5.
What message does Douglas want to convey? (डगलस क्या सन्देश देना चाहता है ?)
Or
What is the theme of the lesson ‘Deep Water’? (‘डीप वाटर’ पाठ का विषय क्या है ?)
Answer:
In ‘Deep Water’, Douglas recounts a childhood experience of terror. He was almost drowned in a pool. Douglas also tells us about his determination to overcome his fear of water. When he was a boy, one day William Douglas went to a swimming pool. He sat at the edge of the pool. Suddenly a muscular boy came and threw him into the pool. Douglas was nearly drowned in the water. That incident created a fear of water in him. That fear remained with him till he grew up. Then he decided to overcome that fear.

He made determined efforts and learnt swimming. He engaged an instructor to teach him swimming. Finally, he went alone to Lake Wentworth and dived off a dock at Triggs Island. He swam for two hours across the lake. Only once did he feel afraid of the water. But it fled soon and he swam on. In the end, he was able to overcome his fear of water and swimming. This experience has a symbolic meaning. Douglas wants to convey the idea those persons can appreciate an experience who have gone through it. Secondly, his experience tells us that with determination we can overcome our fears.
(‘डीप वॉटर’ अध्याय में, डगलस बचपन के एक आतंकित कर देने वाले अनुभव का वर्णन करता है। वह एक ताल में लगभग डूबने ही वाला था। डगलस हमें अपने पानी से लगने वाले डर पर विजय हासिल करने के निश्चय के बारे में भी बताता है। जब विलियम डगलस एक लड़का था तो एक दिन वह एक तरणताल पर गया। वह ताल के किनारे पर बैठा था। अचानक ही एक हृष्ट-पुष्ट लड़का आया और उसने उसे ताल के अन्दर फेंक दिया। डगलस पानी में डूबते-डूबते ही बचा। इस घटना ने उसके अन्दर पानी के प्रति भय पैदा कर दिया। यह भय उसके अन्दर बड़ा होने तक भी बना रहा।

तब उसने उस डर पर काबू पाने का निर्णय लिया। उसने दृढ़-निश्चय वाले प्रयास किए और तैरना सीख लिया। उसने स्वयं को तैराकी सिखाने के लिए एक प्रशिक्षक का प्रबन्ध किया। अंततः, वह अकेला वेंटवर्थ लेक पर गया और एक डॉक से ट्रिग्स आइलैंड पर छलाँग लगा दी। वह झील में दो घंटे तक तैरता रहा। उसे केवल एक बार तो पानी से भय लगा। लेकिन उसका यह भय जल्दी ही भाग गया और वह तैरता रहा। अंत में, वह अपने को पानी से लगने वाले भय पर काबू पाने और तैराकी सीखने में सफल रहा। इस अनुभव का एक सांकेतिक अर्थ है। डगलस यह संदेश देना चाहता है कि वही लोग किसी अनुभव की प्रशंसा कर सकते हैं जिन लोगों ने उस अनुभव को भुगता हो। दूसरा उसका अनुभव हमें यह बताता है कि दृढ़-निश्चय के साथ हम अपने भय पर काबू पा सकते हैं।)

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The Deep Water MCQ Questions with Answers

1. Who is the writer of the story ‘Deep Water’?
(A) William Douglas
(B) William o Douglas
(C) Tagore
(D) R.K. Narayan
Answer:
(A) William Douglas

2. For what thing did the author have a version since his childhood?
(A) air
(B) earth
(C) water
(D) sky
Answer:
(C) water

3. When the author was three years old, where did his father take him?
(A) to a theatre
(B) to a college
(C) a farm
(D) the beach in California
Answer:
(D) the beach in California

4. When the author went to a beach with his father, why was he frightened?
(A) he saw a whale
(B) the waves knocked him down and swept over him
(C) he saw a ship
(D) he saw a crocodile
Answer:
(B) the waves knocked him down and swept over him

5. When the author was ten or eleven years old, what did he decide to learn?
(A) to swim
(B) to dance
(C) to play
(D) to play guitar
Answer:
(A) to swim

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6. What did the big boy do to the author?
(A) he helped the author
(B) he offered him ice-cream
(C) he threw the author into the pool
(D) he gave money to the author
Answer:
(C) he threw the author into the pool

7. When the big boy threw the author into the pool, he did not lose his presence of mind?
(A) true
(B) false
(C) both (A) and (B)
(D) none of these
Answer:
(A) true

8. What did author do when his feet touched the bottom of the pool?
(A) he remained there
(B) he was drowned
(C) he started swimming underwater
(D) he made a spring upwards
Answer:
(D) he made a spring upwards

9. What happened when he opened his eyes and saw nothing but water?
(A) he became panicky
(B) he did not lose courage
(C) he started swimming
(D) he was drowned
Answer:
(A) he became panicky

10. What was the condition of his legs?
(A) they were active
(B) they seemed paralyzed
(C) they were soft
(D) his legs were kicking
Answer:
(B) they seemed paralyzed

11. Suddenly the author saw light. What did that mean?
(A) there was a bulb in the water
(B) some people came with a torch
(C) he was coming out of the water
(D) he saw the light of heaven
Answer:
(C) he was coming out of the water

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

12. What happened when his eyes and nose were out of the water?
(A) he took a sigh of relief
(B) he came out
(C) he started swimming
(D) he again found himself going down
Answer:
(D) he again found himself going down

13. What did the author do when his feet touched the bottom again?
(A) he remained there
(B) he made a leap
(C) he swam underwater
(D) he was drowned
Answer:
(B) he made a leap

14. Why did Douglas cease all efforts?
(A) he felt as if he was going to become unconscious
(B) he did not want to live
(C) he wanted to remain underwater
(D) he was already out of danger.
Answer:
(A) he felt as if he was going to become unconscious

15. Where did Douglas find himself when he regained consciousness?
(A) in a hospital
(B) in a room
(C) lying near the pool
(D) near the sea-shore
Answer:
(C) lying near the pool

16. Who was standing near him when he regained consciousness?
(A) a doctor
(B) a nurse
(C) his teacher
(D) the boy who had thrown him into the pool
Answer:
(D) the boy who had thrown him into the pool

17. What did the big boy said to the author?
(A) I did the right thing
(B) “But I was only fooling.”
(C) I’ll throw you again
(D) I like throwing boys into the pool
Answer:
(B) “But I was only fooling”

18. How did the author feel when he walked back to his home after becoming alright?
(A) his legs were trembling
(B) he was happy
(C) he was weeping
(D) he had temperature
Answer:
(A) his legs were trembling

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19. After the incident in the pool what feeling remained in the author’s heart?
(A) love for water
(B) fear for water
(C) fear for a pool
(D) fear for sea
Answer:
(B) fear for water

20. Where did the author go in order to overcome his fear of water?
(A) in the same pool where he had accident
(B) to a sea beach
(C) into a well
(D) Lake Wentworth in New Hampshire
Answer:
(D) Lake Wentworth in New Hampshire.

The Deep Water Important Passages for Comprehension

Seen Comprehension Passages
Read the following passages and answer the questions given below:

Type (i)
Passage 1
Yet I had residual doubts. At my first opportunity 1 hurried west, went up the Tieton to Conrad Meadows, up the Conrad Creek Trail to Meade Glacier, and camped in the high meadow by the side of Warm Lake. The next morning I stripped, dived into the lake, and swam across to the other shore and back — just as Doug Corpron used to do. I shouted with joy, and Gilbert Peak returned the echo. I had conquered my fear of water.

Word-meanings :
Hurried = went in a hurry (जल्दी से गया)
stripped = took off clothes (कपड़े उतारे);
meadow = grassland (चरागाह)।

Questions :
(i) Name the chapter from which this passage has been taken.
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(C) Deep Water

(ii) Where did the writer go at his first opportunity?
(A) Went to West
(B) Went to North
(C) Went to South
(D) None of these
Answer:
(A) Went to West

(iii) The next morning he stripped and ………………………. into the lake.
(A) hurried
(B) dived
(C) pride
(D) none of these
Answer:
(B) dived

(iv) He shouted with joy as he had conquered his …………………….. of water.
(A) fear
(B) love
(C) both (A) and (B)
(D) none of these
Answer:
(A) fear

(v) Find word from the passage having the meaning same as ‘grassland’:
(A) Shouted
(B) Stripped
(C) Meadow
(D) Opportunity
Answer:
(C) Meadow

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Passage 2
I went to the pool when no one else was there. The place was quiet. The water was still, and the tiled bottom was as white and clean as a bathtub. I was timid about going in alone, so I sat on the side of the pool to wait for others. · I had not been there long when in came a big bruiser of a boy, probably eighteen years old. He had thick hair on his chest. He was a beautiful physical specimen, with legs and arms that showed rippling muscles. He yelled, “Hi, Skinny! How’d you like to be ducked?”

Word-meanings :
Bruiser = muscular man (हट्टा-कट्टा व्यक्ति);
specimen = sample (नमूना);
rippling waving = (हिलते हुए)।

Questions :
(i) Name the lesson from which this passage has been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(C) Deep Water

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(C) William Douglas

(iii) When did the author go to the pool?
(A) when there was a great rush
(B) when no one else was there
(C) in the evening
(D) at midnight
Answer:
(B) when no one else was there

(iv) Why did the author sit on the side of the pool?
(A) he was timid about going in alone
(B) he was feeling very tired
(C) Both (A) and (B)
(D) none of the above
Answer:
(A) he was timid about going in alone

(v) What was true about the other boy?
(A) he had thick hair on his chest
(B) he was eighteen years old
(C) he was muscular
(D) all the above
Answer:
(D) all the above

Passage 3
I struck at the water as I went down, expending my strength as one in a nightmare fights an irresistible force. I had lost all my breath. My lungs ached, my head throbbed. I was getting dizzy. But I remembered the strategy – I would spring from the bottom of the pool and come like a cork to the surface. I would lie flat on the water, strike out with my arms, and thrash with my legs. Then I would get to the edge of the pool and be safe. I went down, down, endlessly. I opened my eyes. Nothing but water with a yellow glow – dark water that one could not see through.

Word-meanings :
Expending = spending (फैलाना);
nightmare = terrifying dream (डरावना स्वप्न);
ached = pained (दर्द होने लगा);
throbbed = palpitated (धड़का)।

Questions :
(i) Name the lesson from which this passage has been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(C) Deep Water

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(C) William Douglas

(iii) What did the writer do when he went down?
(A) he floated at the water
(B) he struck at the water
(C) he swam at the water
(D) all the above
Answer:
(D) all the above

(iv) What is true about his condition when he was going down?
(A) his lungs ached
(B) his head throbbed
(C) he was getting dizzy
(D) all the above
Answer:
(D) all the above

(v) Why couldn’t he see through the water?
(A) his eyes were closed
(B) the water was dark
(C) he had died
(D) his eyes were watery
Answer:
(B) the water was dark

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Passage 4
But the jump made no difference. The water was still around me. I looked for ropes, ladders, water wings. Nothing but water. A mass of yellow water held me. Stark terror took an even deeper hold on me, like a great charge of electricity. I shook and trembled with fright. My arms wouldn’t move. My legs wouldn’t move. I tried to call for help, to call for mother. Nothing happened.

Word-meanings :
Stark = complete (पूर्ण);
fright = fear(डर)।

Questions :
(i) Name the lesson from which this passage has been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(C) Deep Water

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William Douglas
(D) Selma Lagerl Of
Answer:
(C) William Douglas

(iii) What did the author find when he looked for something?
(A) ropes
(B) ladders
(C) water wings
(D) water
Answer:
(D) water

(iv) What was the colour of the water?
(A) Black
(B) Yellow
(C) Blue
(D) Green
Answer:
(B) Yellow

(v) How did the terror grip the author?
(A) like a great charge of electricity
(B) like a gust of wind
(C) like the striking of lightning
(D) all the above
Answer:
(A) like a great charge of electricity

Passage 5
Then all effort ceased. I relaxed. Even my legs felt limp, and a blackness swept over my brain. It wiped out fear; it wiped out terror. There was no more panic. It was quiet and peaceful. Nothing to be afraid of. This is nice …………. to be drowsy ……… to go to sleep ……………. no need to jump ……………. to tired to jump ……………. it’s nice to be carried gently………. to float along in space ……….. tender arms around me …….. tender arms like Mother’s …….. now I must go to sleep …………………. .

Word meanings :
ceased = stopped (बंद हो गए);
limp = lifeless (बेजान);
wiped of = removed (हटा दिया);
drowsy = slepy (निंद्राग्रस्त)।

Questions :
(i) Name the lesson from which this passage has been taken?
(A) The Last Lesson
(B) Lost Spring
(C) Deep Water
(D) The Rattrap
Answer:
(C) Deep Water

(ii) Name the writer of this passage.
(A) Alphonse Daudet
(B) Anees Jung
(C) William Douglas
(D) Selma Lagerl of
Answer:
(C) William Douglas

(iii) What for efforts were being made that ceased?
(A) To escape drowning
(B) To climb a mountain
(C) To cross the river
(D) To win the first prize
Answer:
(A) To escape drowning

(iv) “It wiped out fear’ This means ……………………………. .
(A) it increased fear
(B) it lessened fear
(C) it eliminated fear
(D) it deepened fear
Answer:
(B) it lessened fear

(v) How did ‘l’ feel at last?
(A) very panicky
(B) very nervous
(C) quiet and peaceful
(D) alarmed
Answer:
(C) quiet and peaceful

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Type (ii)
Passage 6
It had happened when I was ten or eleven years old. I had decided to learn to swim. There was a pool at the Y.M.C.A. in Yakima that offered exactly the opportunity. The Yakima River was treacherous. Mother continually warned against it, and kept fresh in my mind the details of each drowning in the river. But the Y.M.C.A. pool was safe. It was only two or three feet deep at the shallow end; and while it was nine feet deep at the other, the drop was gradual. I got a pair of water wings and went to the pool. I hated to walk naked into it and show my skinny legs. But I subdued my pride and did it. [H.B.S.E. 2017 (Set-B)]

Word-meanings :
Opportunity = chance (अवसर);
treacherous = dangerous (खतरनाक);
skinny = very thin (बहुत पतला)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) What does Y.M.C.A. stand for?
(iii) Which river is mentioned in this passage?
(iv) Did the writer enter the Y.M.C.A. pool?
(v) Find words from the passage which mean the same as :
(a) chance, (b) dangerous.
Answers :
(i) Chapter: Deep Water.
Author: William Douglas.
(ii) Y.M.C.A. stands for Young Men’s Christian Association.
(iii) The Yakima river is mentioned in the passage.
(iv) Yes, the writer entered the Y.M.C.A. pool.
(v) (a) opportunity, (b) treacherous.

Passage 7
With that, he picked me up and tossed me into the deep end. I landed in a sitting position, swallowed water, and went at once to the bottom. I was frightened, but not yet frightened out of my wits. On the way down I planned: When my feet hit the bottom. I would make a big jump, come to the surface, lie flat on it, and paddle to the edge of the pool.

It seemed a long way down. Those nine feet were more like ninety, and before I touched bottom my lungs were ready to burst. But when my feet hit bottom I summoned all my strength and made what I thought was a great spring upwards. I imagined I would bob to the surface like a cork. Instead, I came up slowly. I opened my eyes and saw nothing but water – water that had a dirty yellow tinge to it.

Word-meanings :
Frightened = afraid (डर) ;
summoned = gathered (एकत्रित की);
tinge =colour (रंग)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) What did the big boy to do the author?
(iii) What is the author talking of when he says “long way down”?
(iv) What did the author see when he opened his eyes?
(v) Find words from the passage which mean the same as :
(a) afraid, (b) collect.
Answers :
(i) Chapter: Deep Water.
Author: William Douglas.
(ii) He picked him up and tossed him into the deep end of the pool.
(iii) When the author says “Long way down” he is talking of the depth of the Y.M.C.A. pool.
(iv) When the author opened his eyes he saw water all around.
(v) (a) frightened, (b) summoned.

Passage 8
My introduction to the Y.M.C.A. swimming pool revived unpleasant memories and stirred childhood fears. But in a little while, I gathered confidence. I paddled with my new water wings, watching the other boys and trying to learn by aping them. I did this two or three times on different days and was just beginning to feel at ease in the water when the misadventure happened. [H.B.S.E. March 2018 (Set-C)]

Word-meanings :
Revived = reminded (याद दिलाया);
aping = imitating (नकल करना);
misadventure accident = (दुर्घटना)।

Questions :
(i) Name the chapter from which the above lines have been taken.
(ii) Name the author of the chapter.
(iii) What stirred childish fears in the author?
(iv) What did the author do two or three times?
(v) When did the misadventure happen?
Answers:
(i) Deep Water.
(ii) William Douglas.
(iii) The author’s introduction to the Y.M.C.A. swimming pool stirred childish fears in him.
(iv) The author tried to learning two or three times.
(v) The misadventure happened when the author was just trying to learn swimming.

Deep Water Summary in English and Hindi

Deep Water Introduction to the Chapter
William Douglas was an American writer. He was born in Maine, Minnesota. This lesson has been taken from his book “Of Men and Mountains’. This deals with a childhood experience of the author. One day he went to a swimming pool. A boy threw him into the pool. He was nearly drowned in the swimming pool. That was a terrifying experience for him. This childhood incident created fear of water in his mind. It took several years of his life to overcome this fear. But he was able to conquer his fear with courage and determination.

(William Douglas एक अमेरिकी लेखक था। उसका जन्म मेन, मिनेसोटा में हुआ था। यह पाठ उनकी पुस्तक } “Of Men and Mountains’ से लिया गया है। यह लेखक के बचपन के एक अनुभव का वर्णन करता है। एक दिन वह एक तरणताल पर गया। एक लड़के ने उसे ताल में फेंक दिया। वह तरणताल में लगभग डूबने ही वाला था। यह उसके लिए एक डरावना अनुभव था। बचपन की इस घटना ने उसके मन में पानी से भय को भर दिया। इस भय पर काबू पाने के लिए उसके जीवन के कई साल लग गए। लेकिन वह साहस और दृढ़-निश्चय के साथ अपने भय पर विजय पाने में सफल रहा।)

Deep Water Summary

The author had an aversion for water since his childhood. When he was only three or four years old, his father took him to the beach in California. He and his father stood together in the waves. He hug on to his father. But the waves knocked him down and swept over him. He was frightened. His father laughed, but the waves created a fear in the author’s mind. When the author was ten or eleven years old, he decided to learn to swim.

There was a pool at the Y.M.C.A in Yakima. It offered him a good opportunity to learn swimming. The pool was only two or three feet deep at the shallow end, while it was nine feet deep at the other end. The drop was gradual. One day, he took a pair of water wings and went to the pool. He was alone at the pool. He felt afraid to go into the water alone. He sat on the side of the pool. Just then a big eighteen-year-old boy came there. He picked up the author and threw him into the pool.

The author was terrified. But he did not lose his presence of mind. He thought that when his feet touched the bottom of the pool, he would make a jump upwards and would come to the surface. Finally he would lie flat on it and paddle to the end of the pool.

But when he went down, the nine feet seemed like ninety to him. But when his feet touched the bottom, he gathered courage and made a spring upwards. He came up rather slowly. Whenever he opened his eyes, he saw nothing but water. He was suffocating. He became panicky. He tried to cry but no words came out. His legs seemed paralyzed and were rigid.

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Instead of coming up, he went down and down. A great force seemed to pull him under water. He tried to scream but could not. Only his heart and pounding in his head showed that he was alive. He sucked for air, but got water. He looked for ropes, ladder, water wings, but there was nothing except water.

And then there was light. He was coming out of the water. He felt that his eyes and nose were out of the water. But his mouth was still under water. Then he again found himself going down. He again remembered to make a leap when his feet touched the bottom. But nothing happened. He thought that he was going to die. He ceased all efforts. He felt as if he was going to become unconscious.

After some time, Douglas regained consciousness. He found himself lying on his stomach near the pool. He was vomiting. The boy who had thrown him into the pool was standing near him. He was saying, “But I was only fooling.” Someone said that Douglas had nearly died. But he was alright now. After some hours, he walked back to his home. But he was weak and his legs were trembling.

After that incident, a haunting fear remained in his heart. He never went back to the pool. He feared water and tried to avoid it. The fear of water remained with him as years rolled by. He tried his best to overcome this fear but it remained with him. Finally, one October, he got an instructor. With him he practiced for five days a week. The instructor taught him step by step how to swim. He taught him how to put his face under water and exhale. And then how to raise his nose and inhale. He repeated the exercises hundreds of time. Still he wondered whether he would be terrified when he would be alone in a pool.

In order to overcome his fear, the author went to Lake Wentworth in New Hampshire. He dived off a dock at Triggs Island. He swam two miles across the lake to Stamp Act Island. Only once he felt some fear when he was in the middle of the lake. But soon he overcame that fear. Then he swam back. He shouted with joy. Thus finally, he was able to conquer his fear of water and swimming.

(लेखक को अपने बचपन से ही पानी के प्रति नफरत थी। जब वह केवल तीन या चार साल का था, उसके पिता उसे कैलिफोर्निया के समुद्र तट पर ले गए। लहरों के बीच में वह और उसका पिता एक साथ खड़े थे। उसने अपने पिता को पकड़ रखा था। लेकिन लहरों ने उसे नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर से बह गईं। वह भयभीत था। उसका पिता हँस रहा था लेकिन लहरों ने लेखक के मन में भय उत्पन्न कर दिया।

जब लेखक दस या ग्यारह वर्ष का था, उसने तैराकी सीखने का निर्णय लिया। याकीमा के Y.M.C.A में एक तरणताल था। इसने उसे तैराकी के लिए एक अच्छा अवसर प्रदान किया। छिछले सिरे पर तालाब केवल दो या तीन फुट गहरा था और दूसरे सिरे पर वह नौ फुट गहरा था। यह गहराई धीरे-धीरे बढ़ रही थी। एक दिन उसने अपने जलपरों की एक जोड़ी ली और तरणताल पर चला गया। ताल पर वह अकेला था। पानी के अंदर अकेले जाने से उसे डर लग रहा था। वह ताल के सिरे पर बैठ गया। तभी अट्ठारह वर्ष का एक बड़ा लड़का वहाँ आया। उसने लेखक को उठाया और उसे ताल के अंदर फेंक दिया।

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लेखक भयभीत था। लेकिन उसने अपनी दिमागी तत्परता को नहीं खोया। उसने सोचा कि जब उसके पाँव पानी के तल पर लगेंगे तो वह ऊपर की ओर कूदेगा और सतह पर आ जाएगा। अंततः वह पानी की सतह पर सीधा लेट जाएगा और तैर कर ताल के सिरे तक आ जाएगा। लेकिन जब वह नीचे गया तो उसे नौ फुट नब्बे फुट के समान प्रतीत हुए। लेकिन जब उसके पाँवों ने तली को स्पर्श किया, उसने साहस एकत्र किया और ऊपर की तरफ छलांग लगाई।

वह थोड़ा धीरे-से ऊपर आया। जब कभी भी उसने अपनी आँखें खोलीं, उसे पानी के सिवाय कुछ नज़र नहीं आया। उसका दम घुट रहा था। वह भयभीत हो गया। उसने चिल्लाने का प्रयास किया लेकिन शब्द ही बाहर नहीं निकले। उसकी टाँगें लकवाग्रस्त और अकड़ी हुई प्रतीत हो रही थीं।

ऊपर आने की बजाय, वह नीचे-ही-नीचे जाता रहा। जैसे कोई बड़ी ताकत उसे पानी के नीचे की ओर खींच रही थी। उसने चिल्लाने का प्रयास किया लेकिन चिल्ला नहीं सका। केवल उसकी दिल की धड़कन और दिमागी हलचल से उसे लगा कि वह जीवित है। उसने हवा को ग्रहण करना चाहा, लेकिन पानी मिला। उसने रस्सियाँ, सीढ़ी, जलपरों की खोज की लेकिन पानी के सिवाय कुछ भी नहीं था।

और तब प्रकाश नजर आया। वह पानी से बाहर आ रहा था। उसने महसूस किया कि उसकी आँखें और नाक पानी से बाहर आ रहे थे। लेकिन उसका मुँह अभी भी पानी के अंदर था। तब उसने पुनः स्वयं को नीचे की ओर जाते पाया। उसने पुनः छलाँग लगाने के बारे में याद किया कि जब उसके पाँव जमीन से स्पर्श करेंगे। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। उसने सोचा कि वह मरने जा रहा है। उसने सारे प्रयास बंद कर दिए। उसे ऐसा लगा जैसे कि वह बेहोश होने जा रहा था।

कुछ समय के पश्चात्, डगलस को होश आ गया। उसने स्वयं को पेट के बल ताल के पास लेटे पाया। वह उल्टियाँ कर रहा था। जिस लड़के ने उसे पानी के अंदर फेंका था वह उसके पास खड़ा था। वह कह रहा था, “मैं तो केवल मजाक कर रहा था” किसी ने कहा कि डगलस लगभग मर ही चुका था। लेकिन अब वह बिल्कुल ठीक था। कुछ घंटों के पश्चात्, वह अपने घर लौट आया। लेकिन वह कमजोर था और उसकी टाँगें काँप रही थीं।

उस घटना के पश्चात्, उसके हृदय में बार-बार आने वाला भय बैठ गया था। वह कभी भी ताल पर वापिस नहीं गया। उसे पानी से भय लगता था और वह उससे बचने का प्रयास करता था। वर्षों के बीतने के बाद भी यह भय उसके मन में बना रहा। उसने इस भय पर नियंत्रण पाने के लिए पूरे प्रयास किए लेकिन वह उसके साथ बना रहा। अंततः अक्तूबर के एक दिन उसे एक अनुदेशक मिला। उसके साथ उसने सप्ताह में पाँच दिन अभ्यास किया। अनुदेशक ने उसे कदम-दर-कदम तैरना सिखाया। उसने उसे सिखाया कि पानी के नीचे अपना चेहरा कैसे रखा जाता है और साँस कैसे छोड़ा जाता है। और तब अपने नाक को ऊपर उठाकर कैसे साँस लिया जाता है। उसने सैकड़ों बार इसी अभ्यास को दोहराया। फिर भी वह जानने को उत्सुक था कि क्या अभी भी वह भयभीत होगा जब वह ताल में अकेला होगा।

अपने भय पर नियंत्रण पाने के लिए, लेखक न्यू हैम्पशायर में लेक वेटवर्थ पर गया। उसने ट्रिग्स द्वीप पर एक जहाज से कूद लगा दी। वह झील में दो मील तक स्टैंप एक्ट द्वीप तक तैर कर गया। केवल एक बार तो उसे कुछ भय लगा जब वह झील के मध्य में था। लेकिन शीघ्र ही उसने उस भय पर काबू पा लिया। तब वह तैर कर वापिस आया। वह खुशी से चिल्ला उठा। तब अंततः वह पानी और तैराकी के प्रति अपने भय पर विजय पाने में सफल रहा।)

Deep Water Word Meanings

[Page 23] :
Graduating (receiving a bachelor’s degree) = स्नातक की उपाधि मिलना;
pursue (to follow) = अनुसरण करना;
excerpt (part)= अंश, भाग;
pool (swimming pool) = तैरने का ताल (तालाब);
offered (provided)= पेश किया;
opportunity (chance) = अवसर;
treacherous (dangerous)=खतरनाक;
shallow (not deep)= उथला;
gradual (by degrees) = शनै: शनैः ।

[Page 25] :
Skinny (very thin) = बहुत पतला;
subdued (overcame) = काबू पाया;
aversion (dislike) = नफरत;
surf (wave) = लहर;
beach (seashore) = सागर तट;
buried (dug in ) = गाड़ा;
frightened (terrified)= भयभीत;
terror (fear) = डर;
revived (reminded) = याद दिलाया;
unpleasant (not enjoyable)=अप्रिय;
stirred (arose)=पैदा की;
paddled (moved on water)=पानी पर तैरा;
aping (imitating)=नकल करना;
misadventure (accident)=दुर्घटना;
timid (lacking courage)= कायर;
bruiser (muscular man) = हट्टा-कट्टा व्यक्ति;
specimen (example)=उदाहरण;
rippling (waving) = हिलते हुए;
yelled (shouted) = चिल्लाया;
duck (dive) = डुबकी लगाना;
toss (throw)=फेंकना;
swallow (gulp down) = निगलना;
summoned (gathered) = एकत्रित की;
bob (come up) = ऊपर आना।

[Page 26]:
Tinge (colour)=रंग;
panicky (afraid)=भयभीत;
grab (grip)=पकड़ना;
clutched (grabbed)= पकड़ा;
suffocating (choking)=दम घुटना;
choked (blocked)= रोकना;
paralyzed (unable to move)=सुन्न होना;
rigid (stiff) = सख्त;
struck (thumped) = थपथपाया;
expending (spending) = फैलाना;
nightmare (a bad dream)= बुरा स्वप्न;
throbbed (palpitated) = धड़का;
dizzy (feeling giddy)=सिर चकराना;
strategy (plan) = योजना;
thrash (strike) = प्रहार करना;
stark (complete) = पूर्ण;
sheer (only) =केवल;
endlessly (completely)=पूरी तरह;
shrieking (crying)= चिल्लाना;
seized (caught) = पकड़ा;
frozen (choked) = जम गया;
midst (in the middle of) = के बीच में;
mass (heap) = ढेर;
charge (current) = घाटा;
fright (fear) = डर ।

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[Page 27]:
Awful(fearful) =भयानक;
sucked (inhaled)= सांस अन्दर ली;
ceased (ended) =समाप्त हुआ;
relaxed (eased) = आराम मिला;
limp (lifeless) = निर्जीव;
drowsy (sleepy) = ऊँघना;
oblivion (forgetfulness) = भुलक्कड़पन;
haunting (coming again and again)= बार-बार आना;
slightest (least) = कम से कम;
exertion (tiredness)=थकान;
wobbly (unstable) = अस्थिर;
cascade (waterfall) = जलप्रपात;
wading (walking through water)=पानी में से चलना;
bumping (bouncing)= उछलना;
handicap (hindrance) = रुकावट;
canoes(small boats)=छोटी नौकाएँ;
salmon, basstrout (kind of fish) = मछली की जातियाँ ।

[Page 28]:
Ruined (destroyed) = नष्ट किया;
trips (journeys) = यात्राएँ;
forth (ahead) = आगे;
relaxed (let loose) = ढीला छोड़ा;
hold (grip) = पकड़ना;
tension (stress)=तनाव;
slack (lessen)= कम करना;
exhale (breathe out) = सांस बाहर निकालना;
inhale (breathe in) = सांस अन्दर लेना;
shed (gave up) = त्याग दिया;
command (order/direct)= आदेश;
integrated (complete)= पूर्ण;
tiny (little)= छोटा;
vestiges (signs)=चिह्न;
frown (scowl)=लोरी।

[Page 29] :
Dock (part of port) = बन्दरगाह;
sensation (strong feeling) = भावना;
residual (left over) = बचा हुआ;
hurried (went in a hurry) = जल्दी में गया;
meadow (grassland) = चरागाह;
stripped (took off clothes)= कपड़े उतारे;
appreciate (praise) = प्रशंसा करना;
intensity (power/strength) = शक्ति;
released (freed) =आजाद किया;
trails (paths) = रास्ते।

Deep Water Translation in Hindi

It had happened when I was ten or eleven years old. I had decided to learn to swim. There was a pool at Y.M.C.A. in Yakima that offered exactly the opportunity. The Yakima River was treacherous. Mother continually warned against it, and kept fresh in my mind the details of each drowning in the river. But the Y.M.C.A. pool was safe. It was only two or three feet deep at the shallow end; and while it was nine feet deep at the other, the drop was gradual. I got a pair of water wings and went to the pool. I hated to walk naked into it and show my skinny legs. But I subdued my pride and did it.

(यह बात तब हुई जब मैं दस या ग्यारह वर्ष का था। मैंने तैरना सीखने का फैसला किया था। याकीमा में वाई०एम०सी०ए० के अन्दर एक तालाब था जो ठीक ऐसा अवसर देता था। याकीमा नदी खतरनाक थी। माँ सदा इसके खिलाफ चेतावनी देती रहती थी और हर डूबने की दुर्घटना का विस्तृत वर्णन मेरे दिमाग में ताजा बनाए रखती थी। परन्तु वाई०एम०सी०ए० का ताल सुरक्षित था। उथले किनारे पर तो यह केवल दो या तीन फुट ही गहरा था और यद्यपि दूसरे किनारे पर यह नौ फुट गहरा था और गहराई धीरे-धीरे बढ़ती थी। मैंने जल-परों का एक जोड़ा लिया और ताल की ओर चल पड़ा। उसके अन्दर नंगे जाकर अपनी पतली-पतली टाँगें दिखाने से मुझे नफरत थी। पर मैंने अपने अभिमान को दबाया और ऐसा ही किया।)

From the beginning, however, I had an aversion to the water when I was in it. This started when I was three or four years old and father took me to the beach in California. He and I stood together in the surf. I hung on to him. Yet the waves knocked me down and swept over me. I was buried in water. My breath was gone. I was frightened. Father laughed, but there was terror in my heart at the overpowering force of the waves.

(पर प्रारम्भ से ही, पानी के अन्दर होने पर मुझे पानी से घृणा थी। यह तब से प्रारम्भ हुई थी जब मैं 3-4 साल का था और मेरे पिता मुझे कैलीफोर्निया के समुद्र तट पर ले गए थे। वह और मैं लहरों के बीच खड़े थे। मैं उन्हें पकड़े हुए था, फिर भी लहरों ने मुझे गिरा दिया और मेरे ऊपर से गुजर गईं। मैं पानी के अन्दर दब-सा गया था। मेरी साँस रुक गई थी। मैं डर गया था। पिता जी हँस रहे थे, परन्तु लहरों की पराजित करने वाली शक्ति का आतंक मेरे दिल में था।)

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My introduction to the Y.M.C.A. swimming pool revived unpleasant memories and stirred childish fears. But in a little while, I gathered confidence. I paddled with my new water wings, watching the other boys and trying to learn by aping them. I did this two or three times on different days and was just beginning to feel at ease in the water when the misadventure happened.

(मेरे वाई०एम०सी०ए० के तरण-ताल के परिचय ने दुःखद यादों को पुनर्जीवित कर दिया और बचपन के डर को जगा दिया। पर कुछ देर में ही मुझमें आत्मविश्वास आ गया। अपने नए जल-परों को पहनकर मैंने तैरना प्रारम्भ किया और दूसरे लड़कों की नकल करके सीखने का प्रयत्न किया। अलग-अलग दिनों में मैंने तीन-चार बार ऐसा किया और मैंने पानी में अच्छा महसूस करना आरम्भ ही किया था कि दुर्घटना घट गई।)

I went to the pool when no one else was there. The place was quiet. The water was still, and the tiled bottom was as white and clean as a bathtub. I was timid about going in alone, so I sat on the side of the pool · to wait for others.

(जब कोई और वहाँ नहीं था, मैं ताल पर पहुँचा। वहाँ पर सन्नाटा था। जल शान्त था और टाइल लगा हुआ तल स्नानघर के टब की तरह सफेद और साफ था। अकेले अन्दर प्रवेश करते मैं डर रहा था, अतः दूसरों की प्रतीक्षा करते हुए मैं तालाब के एक तरफ बैठ गया।)

I had not been there long when in came a big bruiser of a boy, probably eighteen years old. He had thick hair on his chest. He was a beautiful physical specimen, with legs and arms that showed rippling muscles. He yelled, “Hi, Skinny! How’d you like to be ducked ?”

(मुझे अभी वहाँ अधिक देर नहीं हुई थी कि एक हट्टा-कट्टा(शक्तिशाली) लड़का वहाँ आया जो लगभग अठारह साल का होगा। उसकी छाती पर घने काले बाल थे। वह सुन्दर स्वास्थ्य का एक उदाहरण था, उसकी टाँग और बाजू की मांसपेशियाँ लहरा रही थीं। वह चिल्लाकर बोला, “ओए पतलू, तू पानी में छलाँग लगाना चाहेगा, क्या ?”)

With that, he picked me up and tossed me into the deep end. I landed in a sitting position, swallowed water, and went at once to the bottom. I was frightened, but not yet frightened out of my wits. On the way down I planned : When my feet hit the bottom, I would make a big jump, come to the surface, lie flat on it, and paddle to the edge of the pool.

(इसी के साथ उसने मुझे उठाया और ताल के गहरे छोर की तरफ फेंक दिया। मैं बैठे होने की अवस्था में गिरा, पानी निगला और फौरन तल पर पहुँच गया। मैं डरा हुआ था, मगर मैंने होश नहीं खोए थे नीचे जाते हुए मैंने योजना बनाई; जब मेरे पैर तली को छुएँगे तो ऊपर की ओर छलाँग लगाऊँगा, सतह पर आऊँगा, इस पर लेट जाऊँगा और पुल के किनारे तक तैरता हुआ पहुँच जाऊँगा।)

It seemed a long way down. Those nine feet were more like ninety, and before I touched bottom my lungs were ready to burst. But when my feet hit bottom I summoned all my strength and made what I thought was a great spring upwards. I imagined I would bob to the surface like a cork. Instead, I came up slowly. I opened my eyes and saw nothing but water-water that had a dirty yellow tinge to it. I grew panicky. I reached up as if to grab a rope and my hands clutched only at water. I was suffocating. I tried to yell but no sound came out. Then my eyes and nose came out of the water-but not my mouth.

(नीचे जाते हुए काफी देर लगती हुई प्रतीत हुई। वे नौ फुट नब्बे जितने लगे और इससे पहले कि मैं तल को छूता मेरे फेफड़े फटने को हो रहे थे, परन्तु जैसे ही मेरे पैरों ने तली को छुआ तो मैंने अपनी सारी शक्ति बटोरी और मेरे विचार में मैंने एक बहुत बड़ी कूद ऊपर की तरफ लगाई। मैंने कल्पना की कि मैं एक कॉर्क की तरह सतह पर उछलकर आ जाऊँगा। इसके विपरीत मैं धीरे-धीरे आया। मैंने अपनी आँखें खोली और पानी के अलावा कुछ नहीं देखा-पानी जो एक मैला पीला रंग लिए हुए था। मैं बौखला गया। मैंने ऊपर हाथ किए मानो एक रस्सी पकड़ने के लिए और मेरे हाथों में केवल पानी आया। मेरा दम घुट रहा था। मैंने चीखने की कोशिश की पर कोई आवाज़ नहीं निकली। फिर मेरी आँख व नाक पानी से बाहर आए परन्तु मेरा मुँह बाहर नहीं आया।)

I flailed at the surface of the water, swallowed, and choked. I tried to bring my legs up, but they hung as dead weights, paralyzed and rigid. A great force was pulling me under. I screamed, but only the water heard me. I had started on the long journey back to the bottom of the pool.

(मैंने पानी की सतह पर हाथ-पाँव पटके, पानी को निगला और मेरा गला रुंध गया। मैंने अपनी टाँगों को ऊपर लाने की कोशिश की, मगर वे निर्जीव बोझ बनी लटकी रहीं, बिल्कुल लकवाग्रस्त एवं कठोर। एक बड़ी शक्ति मुझे नीचे खींच रही थी। मैं चीखा पर मेरी आवाज़ सिर्फ पानी ने सुनी। ताल के तल की ओर की लम्बी यात्रा मैंने पुनः प्रारम्भ कर दी थी।)

I struck at the water as I went down, expending my strength as one in a nightmare fights against an irresistible force. I had lost all my breath. My lungs ached, my head throbbed. I was getting dizzy. But I remembered the strategy: I would spring from the bottom of the pool and come like a cork to the surface. I would lie flat on the water, strike out with my arms, and thrash with my legs. Then I would get to the edge of the pool and be safe.

(नीचे जाते हुए मैंने पानी को धकेला, मैं अपनी शक्ति उस तरह लगा रहा था जैसे भयानक स्वप्न में कोई किसी अपराजय शक्ति से लड़ रहा हो। मेरी साँस फूल गई थी। मेरे फेफड़ों में दर्द हो रहा था, मेरा सिर धड़क रहा था, मुझे चक्कर आ रहे थे। पर मुझे योजना याद थी मैं ताल के तल से ऊपर को कूदूंगा और कार्क की तरह सतह पर आऊँगा। मैं पानी के ऊपर सीधा लेट जाऊँगा, अपने बाजू से पानी काटूंगा और टाँगें मारूँगा। इस प्रकार मैं ताल के ऊपर आ जाऊँगा और सुरक्षित हो जाऊँगा।

I went down, down endlessly. I opened my eyes. Nothing but water with a yellow glow-dark water that one could not see through. And then sheer, stark terror seized me, terror, that knows no understanding, terror that knows no control, terror that no one can understand who has not experienced it. I was shrieking underwater. I was paralyzed under water-stiff, rigid with fear. Even the screams in my throat were frozen. Only my heart, and the pounding in my head, said that I was still alive.

(मैं नीचे, नीचे लगातार चलता गया। मैंने अपनी आँखें खोलीं। पीले पानी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था-अन्धेरा-सा पानी जिसके पार कुछ नज़र न आता था। और तब घोर भय ने मुझे काबू कर लिया, वह भय जहाँ समझ काम नहीं करती, वह भय जो काबू के बाहर हो जाता है, वह भय जो वही जान सकता है जिसने उसे अनुभव किया हो। मैं पानी के नीचे चीख रहा था। मैं पानी के नीचे संज्ञाशून्य हो गया था-डर से कठोर और जड़वत। मेरे गले से निकलने वाली चीखें भी जम गई थीं। केवल मेरा दिल और मेरे सिर की धड़कन कह रही थी मैं अभी जीवित था।)

And then in the midst of the terror came a touch of reason. I must remember to jump when I hit the bottom. At last I felt the tiles under me. My toes reached out as if to grab them. I jumped with everything I had. But the jump made no difference. The water was still around me. I looked for ropes, ladders, water wings. Nothing but water. A mass of yellow water held me. Stark terror took an even deeper hold on me, like a great charge of electricity. I shook and trembled with fright. My arms wouldn’t move. My legs wouldn’t move. I tried to call for help, to call for mother. Nothing happened.

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(और तब डर के मध्य शक्ति लगाने का विचार आया। जब मैंने तल को छुआ तो मुझे कूदना याद आया। आखिरकार मैंने अपने नीचे टाइलें महसूस की। मेरे पैरों की उंगलियाँ ऐसे पहुँची जैसे उन्हें पकड़ना हो। मैं अपनी पूरी शक्ति से कूदा। लेकिन कूदने से भी कोई फर्क नहीं पड़ा। पानी अब भी मेरे चारों ओर था। मैंने रस्सियों, सीढ़ियों, पानी के पंखों को ढूँढ़ा। कुछ नहीं था सिवाय पानी के। पीले पानी का बोझ मुझे जकड़े हुए था। घोर भय ने मुझे और भी गहराई से जकड़ लिया था, बिजली के तेज चार्ज की तरह। मैं हिला और भय के साथ काँपा। मेरी बाँहें हिलती नहीं थीं। मेरी टाँगें हिलती नहीं थीं। मैंने सहायता के लिए पुकारने की कोशिश की, माँ को पुकारने की कोशिश की। कुछ नहीं हुआ।)

And then, strangely, there was light. I was coming out of the awful yellow water. At least my eyes were. My nose was almost out too. Then I started down a third time. I sucked for air and got water. The yellowish light was going out.

(और तब, अजीब तरह से, वहाँ रोशनी थी। मैं इस भयानक पानी से बाहर आ रहा था। कम-से-कम मेरी आँखें तो बाहर थी हीं। मेरी नाक भी लगभग बाहर थी। फिर मैं तीसरी बार नीचे जाना शुरु हुआ। मैंने हवा को अन्दर खींचने की कोशिश की और मुझे पानी मिला। पीली रोशनी जा रही थी।)

Then all effort ceased. I relaxed. Even my legs felt limp, and a blackness swept over my brain. It wiped out fear; it wiped out terror. There was no more panic. It was quiet and peaceful. Nothing to be afraid of. This is nice ………. to be drowsy …… to go to sleep …….. no need to jump ……… to tired to jump ………. it’s nice to be carried gently….to float along in space ……. tender arms around me ……… tender arms like Mother’s ……… now I must go to sleep …………………. I crossed to oblivion, and the curtain of life fell.

(तब सभी प्रयत्न समाप्त हो गए। मैंने आराम किया। मेरी टाँगें अपंग महसूस हुईं; और मेरे दिमाग पर एक कालापन छा गया। इसने डर को दूर कर दिया था; इसने मेरे भय को दूर कर दिया। अब और बौखलाहट नहीं थी। चुप्पी और शान्ति थी। डरने के लिए कुछ नहीं। यह अच्छा है ………. निद्राजनक होना नींद में चले जाना ………… कूदने की कोई ज़रूरत नहीं……इतना थका हुआ कि कूद नहीं सकता ……….. इतनी कोमलता से ले जाता हुआ कि अच्छा लगता था ……… खाली जगह में तैरना ………. मेरे चारों ओर कोमल बाँहें ………. माँ की बाँहों जैसी कोमल ………. अब मुझे सोना पड़ा ………. । मैं सब कुछ भूल गया था और जीवन का पर्दा गिर गया था।)

The next I remember I was lying on my stomach beside the pool, vomiting. The chap that threw me in was saying, “But I was only fooling.” Someone said, “The kid nearly died. Be all right now. Let’s carry him to the locker room.”
(अगली बात जो मुझे याद थी वह थी कि मैं उलटी करता हुआ अपने पेट के बल ताल के किनारे लेटा हुआ था। वह लड़का जिसने मुझे अन्दर फेंका था, कह रहा था, “परन्तु मैं केवल मजाक कर रहा था।” किसी ने कहा, “बच्चा मरते-मरते बचा है। अब सब ठीक हो जाए। चलो इसे लॉकर रूम में ले चलते हैं।”)

Several hours later, I walked home. I was weak and trembling. I shook and cried when I lay on my bed. I couldn’t eat that night. For days a haunting fear was in my heart. The slightest exertion upset me, making me wobbly in the knees and sick to my stomach. I never went back to the pool. I feared water. I avoided it whenever I could.

(कई घण्टे बाद, मैं घर गया। मैं कमजोर था, काँप रहा था। जब मैं बिस्तर में लेटा तो मैं काँपा और रोया, मैं उस रात को खा नहीं पाया। कई दिनों तक मेरे दिल में डर छाया रहा। थोड़ी-सी भी मेहनत मुझे परेशान कर देती थी, मेरे घुटने लड़खड़ाने लगते और पेट बीमार-सा लगता। उसके बाद मैं कभी भी ताल में नहीं गया। मुझे पानी से डर लगता था और जहाँ तक हो सकता था, मैं पानी से दूर रहने की कोशिश करता था।)

A few years later when I came to know the waters of the Cascades, I wanted to get into them. And whenever I did-whether I was wading the Tieton or Bumping River or bathing in Warm Lake of the Goat Rocks-The terror that had seized me in the pool would come back. It would take possession of me completely. My legs would become paralyzed. Icy horror would grab my heart.

(कुछ सालों बाद जब मैंने झरनों के पानी को देखा, तब मैं उनमें जाना चाहता था और जब भी मैंने ऐसा किया चाहे वह टीटन या बमपिंग नदी को लांघना हो या गोट रॉक्स की गर्म झील में नहाना हो वह आतंक जो ताल में मुझे वशीभूत कर चुका था, वापस मेरे पास आ जाता था। मैं पूरी तरह इसके वश में हो जाता था। मेरी टाँगें संज्ञाशून्य हो जाती थीं। एक बर्फीला डर मेरे दिल को जकड़ लेता था।)

This handicap stayed with me as the years rolled by. In canoes on Maine lakes fishing for landlocked salmon, bass fishing in New Hampshire, trout fishing on the Deschutes and Metolius in Oregon, fishing for salmon on the Columbia, at Bumping lake in the Cascades-wherever I went, the haunting fear of the water followed me. It ruined my fishing trips; deprived me of the joy of canoeing, boating, and swimming.

(साल पर साल बीतते गए और अपंगता मेरे साथ बनी रही। मेन की झीलों में नौकाओं में बैठ जमीन से घिरी सेलमन मछली को पकड़ना, न्यू हैम्पशायर में बास मछली का शिकार और आरेगन के मेट्रोलियस, डेस्यूट्स में ट्राउट मछली को पकड़ना, कोलम्बिया और बमपिंग लेक के झरनों में सेलमन को पकड़ना-मैं जहाँ भी जाता, पानी का आतंकित करने वाला डर मेरा पीछा करता रहता। यह मेरी मछली के ट्रिप को तबाह कर देता, मुझे छोटी नाव, बड़ी नाव चलाने और तैरने के आनन्द से वंचित कर देता।)

I used every way I knew to overcome this fear, but it held me firmly in its grip. Finally, one October, I decided to get an instructor and learn to swim. I went to a pool and practiced five days a week, an hour each day. The instructor put a belt around me. A rope attached to the belt went through a pulley that ran on an overhead cable. He held on the to end of the rope, and we went back and forth, back and forth across the pool, hour after hour, day after day, week after week. On each trip across the pool a bit of the panic seized me.

Each time the instructor relaxed his hold on the rope and I went under, some of the old terror returned and my legs froze. It was three months before the tension began to slack. Then he taught me to put my face under water and exhale, and to raise my nose and inhale. I repeated the exercise hundreds of times. Bit by bit I shed part of the panic that seized me when my head went underwater.

(मैंने अपने इस भय पर काबू पाने के लिए वह हर तरीका अपनाया जो मैं जानता था, मगर इसने मुझे जकड़े रखा। आखिर एक अक्टूबर में मैंने तैरना सीखने के लिए एक प्रशिक्षक लेने का निर्णय किया। मैं एक ताल पर जाकर एक सप्ताह में पाँच दिन, प्रतिदिन एक घण्टे तक अभ्यास करता। प्रशिक्षक मेरे चारों ओर एक पेटी बाँध देता। पेटी से एक रस्सी बंधी होती जो एक पुली से होकर जाती जो सिर के ऊपर एक तार की रस्सी चलती थी। वह रस्सी के किनारे को पकड़े रहता और हम आगे-पीछे जाते रहते। घण्टा के बाद घण्टा, दिन के बाद दिन, हफ्ते के बाद हफ्ता हम ताल में एक तरफ से दूसरी तरफ आगे-पीछे जाते रहे। ताल के आर-पार की हर यात्रा में कुछ भय मेरे मन में बना रहता। हर बार जब प्रशिक्षक रस्सी पर अपनी पकड़ ढीली करता और मैं पानी के अन्दर चला जाता, पुराने भय का कुछ अंश लौट आता और मेरी टाँगें जम जातीं। मेरा तनाव कम होने में तीन महीने लग गए। तब उसने मुझे पानी के अन्दर मुँह डालकर सांस छोड़ना सिखाया और नाक उठाकर सांस लेना। मैंने यह व्यायाम सैकड़ों बार किया। धीरे-धीरे करके, उस भय का एक भाग जाता रहा जो मुझे पानी के अन्दर सिर डालने पर होता था।)

Next, he held me at the side of the pool and had me kick with my legs. For weeks I did just that. At first my legs refused to work. But they gradually relaxed, and finally, I could command them.
(उसके बाद ताल के किनारे पर वह मुझे पकड़े रहता और मैं पानी में टाँगें मारता रहता। हफ्तों तक मैं यही करता रहा। पहले-पहले तो मेरी टाँगों ने जवाब ही दे दिया, पर धीरे-धीरे वे तनाव-हीन होने लगी और अन्ततः मैं उन्हें आज्ञा दे सकता था।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 3 Deep Water

Thus, piece by piece, he built a swimmer. And when he had perfected each piece, he put them together into an integrated whole. In April he said, “Now you can swim. Dive off and swim the length of the pool, crawl or stroke.”
I did. The instructor was finished.

(इस प्रकार धीरे-धीरे उसने मुझे तैराक बनाया। और जब उसने हर भाग को त्रुटिहीन कर लिया, उसने उन सबको जोड़कर एक पूर्ण वस्तु बना ली। अप्रैल में वह बोला, “अब तुम तैर सकते हो। गोता लगाओ और ताल की पूरी लम्बाई तैरकर पार कर लो, धीरे-धीरे जाओ चाहे तेजी से।” मैंने यह किया। प्रशिक्षक का कार्य पूरा हो चुका था।)

But I was not finished. I still wondered if I would be terror-stricken when I was alone in the pool. I tried it. I swam the length up and down. Tiny vestiges of the old terror would return. But now I could frown and say to that terror, “Trying to scare me, eh ? Well, here’s to you! Look!” And off I’s go for another length of the pool.

(परन्तु मेरा कार्य पूरा नहीं हुआ था। मैं अब भी डरता था कि कहीं ताल के अन्दर अकेला होने पर मैं भयभीत तो नहीं हो जाऊँगा। मैंने ऐसा करके देखा। मैं ताल के एक किनारे से दूसरे और फिर वापस उसी किनारे पर तैरकर गया। पुराने आतंक के छोटे चिह्न लौटा करते थे। पर अब मैं क्रोधित होकर उस भय से कह सकता था, “अच्छा, तू मुझे डराना चाहता है ? ठीक है, वह तुम्हारे नाम पर! देख! और मैं पुनः ताल की लंबाई को एक बार और पार कर देता।”)

This went on until July. But I was still not satisfied. I was not sure that all the terror had left. So I went to Lake Wentworth in New Hampshire, dived off a dock at Triggs Island, and swam to miles across the lake to Stamp Act Island. I swam the crawl, breaststroke, side stroke, and backstroke. Only once did the terror return. When I was in the middle of the lake, I put my face under and saw nothing but bottomless water. The old sensation returned in miniature. I laughed and said, “Well, Mr. Terror, what do you think you can do to me?” It fled and I swam on.

(जुलाई तक यही काम चलता रहा। मगर मैं सन्तुष्ट नहीं हुआ। मुझे विश्वास नहीं था कि मेरा सारा भय समाप्त हो गया है। अतः मैं न्यू हैंपशायर की लेक वैन्टबर्थ गया, ट्रग्स आयलैण्ड में डॉक से कूदा और दो मील झील में तैरकर स्टैंप ऐक्ट आयलैंड पहुँचा। मैंने क्राल, ब्रेस्ट स्ट्रोक, साइड स्ट्रोक और बैक स्ट्रोक को तैरने में प्रयोग किया। केवल एक बार भय लगा जब मैं झील के बीच में था तब मैंने जल में सिर डाला और मुझे अतल जल के अतिरिक्त कुछ नज़र नहीं आया। पुरानी भावना छोटे रूप में लौट आई। मैं हँसा और बोला, “अच्छा, आतंक साहब, आपके ख्याल में आप मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं ?” वह भाग गया और मैं तैरता हुआ आगे चला गया।)

Yet I had residual doubts. At my first opportunity, I hurried west, went up the Tieton to Conrad Meadows, up the Conrad Creek Trial to Meade Glacier, and camped in the high meadow by the side of Warm Lake. The next morning I stripped, dived into the lake, and swam across to the other shore and back-just as Doug Corpron used to do. I shouted with joy, and Gilbert Peak returned the echo. I had conquered my fear of water.

(फिर भी मेरे मन में शंका का अंश बाकी था। पहला अवसर मिलते ही मैं पश्चिम की ओर गया, टीटन से ऊपर कोनार्ड मीडोज तक गया, कोनार्ड ग्रीक ट्रेल से मीडे ग्लेशियर तक और वार्म लेक के किनारे हाई मीडोज में पड़ाव डाला। अगले दिन प्रातः मैंने कपड़े उतारे, झील में गोता लगाया और तैरकर दूसरे किनारे तक पहुँचा और फिर तैरकर ही वापस आया-बिल्कुल वैसे जैसे डग कार्पन किया करता था। मैं खुशी से चीख पड़ा और गिलवर्ट पीक ने गूंजकर चीख दोहराई। मैं अपने पानी के भय पर विजय पा चुका था।)

The experience had a deep meaning for me, as only those who have known stark terror and conquered it can appreciate it. In death there is peace. There is terror only in the fear of death, as Roosevelt knew when he said, “All we have to fear is fear itself.” Because I had experienced both the sensation of dying and the terror that fear of it can produce, the will to live somehow grew in intensity. At last, I felt released-free to walk the trails and climb the peaks and to brush aside fear.

(इस अनुभव का मेरे लिए गहरा अर्थ था जिसे सिर्फ वही समझ सकते हैं जिन्होंने शुद्ध भय को जाना है और इस पर विजय पाई है। मृत्यु में एक शान्ति होती है। आतंक तो केवल मृत्यु के भय में होता है जैसा कि रूजवैल्ट जानता था तब उसने कहा, “हमें जिस वस्तु से डरना है वह डर ही है।” क्योंकि मैंने मरने का और मरने के भय के कारण पैदा होने वाले भय, दोनों का ही अनुभव किया था, जीवित रहने की इच्छा कुछ अधिक ही तेज हो गई थी। अन्ततः मुझे मुक्ति का अनुभव हुआ मैं आज़ाद था पगडण्डियों पर चलने के लिए और पहाड़ की चोटियों पर चढ़ने के लिए और भय को एक तरफ छोड़ देने के लिए।)

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत किस प्रकार का देश है?
(A) कल्याणकारी
(B) तानाशाही
(C) राजतंत्र
(D) कुलीनतंत्र।
उत्तर:
कल्याणकारी।

2. …………………. एक कानूनी किताब या दस्तावेज़ है जिसमें देश को चलाने के सभी नियम दिए गए हैं?
(A) महाकाव्य
(B) आचार संहिता
(C) संविधान
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
संविधान।

3. भारतीय संविधान कब लागू हुआ था?
(A) 26 जनवरी, 1947
(B) 26 जनवरी, 1950
(C) 26 जनवरी, 1952
(D) 26 जनवरी 1949
उत्तर:
26 जनवरी, 1950.

4. संविधान बनाने वाली Drafting Committee के अध्यक्ष कौन थे?
(A) लाल बहादुर शास्त्री
(B) महात्मा गांधी
(C) जवाहर लाल नेहरू
(D) डॉ० अंबेदकर।
उत्तर:
डॉ० अंबेदकर।।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

5. सभी भारतीयों को कितने मौलिक अधिकार दिए गए हैं?
(A) छः
(B) चार
(C) पाँच
(D) सात।
उत्तर:
छः।

6. …………….. एक समूह है जिसकी वैधानिक संस्थाएं उसके नाम से जानी जाती हैं, जिसका अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है तथा जिसे शक्ति के शारीरिक पक्ष को प्रयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है?
(A) देश
(B) सरकार
(C) राज्य
(D) राजनीतिक दल।
उत्तर:
राज्य।

7. सामाजिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(A) देश का सर्वपक्षीय विकास
(B) देश के एक पक्ष का विकास
(C) अपने देश के साथ और देशों का विकास
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
देश का सर्वपक्षीय विकास।

8. आज तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएं बन चुकी हैं?
(A) नौ
(B) दस
(C) आठ
(D) बारह।
उत्तर:
बारह।

9. देश में योजना आयोग कब बना था?
(A) 1952
(B) 1951
(C) 1954
(D) 1950
उत्तर:
1950

10. योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता है?
(A) प्रधानमंत्री
(B) वित्त मंत्री
(C) राष्ट्रपति
(D) वित्त सचिव।
उत्तर:
प्रधानमंत्री।

11. पहली पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या था?
(A) 1950-1955
(B) 1952-1957
(C) 1951-1956
(D) 1953-1958
उत्तर:
1951-1956

12. पंचवर्षीय योजनाओं का माडल किस देश से लिया गया था?
(A) यू० एस० एस० आर०
(B) ब्रिटेन
(C) अमेरिका
(D) जर्मनी।
उत्तर:
यू० एस० एस० आर० (U.S.S.R.)।

13. स्थानीय स्वः संस्थाओं में स्त्रियों को कितना आरक्षण दिया गया है?
(A) एक तिहाई
(B) पाँचवां हिस्सा
(C) एक चौथाई
(D) दसवां हिस्सा।
उत्तर:
एक तिहाई।

14. सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जनजातियों को कितना आरक्षण दिया गया है?
(A) 10%
(B) 15%
(C) 7.5%
(D) 27%
उत्तर:
7.5%

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

15. संसद् में अनुसूचित जनजातियों के लिए कितने स्थान आरक्षित हैं?
(A) 39
(B) 41
(C) 49
(D) 46
उत्तर:
41

16. पहली पंचवर्षीय योजना का क्या उद्देश्य था?
(A) कृषि व्यवस्था को सुदृढ़ करनाड्ड
(B) औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना
(C) सामाजिक कल्याण के अधिक-से-अधिक कार्यक्रम बनाना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

17. सभी भारतीयों को कितने मौलिक कर्तव्य दिए गए हैं?
(A) छः
(B) दस
(C) आठ
(D) नौ।
उत्तर:
दस।

18. पंचवर्षीय योजनाओं से देश में क्या परिवर्तन आया?
(A) शिक्षा का फैलाव
(B) स्त्रियों की स्थिति में सुधार
(C) पिछड़े वर्गों का उत्थान
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

19. नियोजित विकास का क्या लाभ है?
(A) समय की बचत
(B) सभी क्षेत्रों का विकास
(C) पैसे की बचत
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

20. इनमें से कौन-सा पंचायती राज का एक स्तर है?
(A) पंचायत
(B) ब्लॉक समिति
(C) जिला परिषद्
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

21. ………………. एक नियमों की व्यवस्था है जिसे सरकार द्वारा लोगों पर लागू किया जाता है?
(A) कानून
(B) संविधान
(C) राज्य
(D) सरकार।
उत्तर:
कानून।

22. देश के लिए कानून कौन बनाता है?
(A) संसद्
(B) लोक सभा
(C) राज्य सभा
(D) प्रदेश की वैधानिक संस्था।
उत्तर:
संसद्।

23. राज्य के लिए कानून कौन बनाता है?
(A) संसद्
(B) राज्य विधान सभा
(C) राज्य सभा में
(D) लोकसभा।
उत्तर:
राज्य विधान सभा।

24. भारत में पंचायती राज्य व्यवस्था कब लागू हुई थी?
(A) 1952
(B) 1959
(C) 1955
(D) 1962
उत्तर:
1959

25. ग्राम सभा की अधिक-से-अधिक समयावधि कितनी होती है?
(A) 4 साल
(B) 5 साल
(C) 6 साल
(D) असीमित।
उत्तर:
5 साल।

26. पंचों और सरपंचों की नियुक्ति कैसे होती है?
(A) प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा
(B) जिले के डी० सी० द्वारा नियुक्ति
(C) जिले के संसद् सदस्य द्वारा नियुक्ति
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा।

27. पंचायती राज्य की तीन स्तरीय संरचना में सबसे निम्न स्तर कौन-सा है?
(A) ब्लॉक समिति
(B) पंचायत
(C) जिला परिषद्
(D) नगर कौंसिल।
उत्तर:
पंचायत।

28. पंचायती राज्य की तीन स्तरीय संरचना में बीच का स्तर कौन-सा है?
(A) ब्लॉक समिति
(B) पंचायत
(C) नगर कौंसिल
(D) जिला परिषद्।
उत्तर:
ब्लॉक समिति।

29. पंचायती राज्य की तीन स्तरीय संरचना में सबसे उच्च स्तर कौन-सा है?
(A) नगर निगम
(B) ब्लॉक समिति
(C) पंचायत
(D) जिला परिषद्।
उत्तर:
जिला परिषद्।

30. पंचायत समिति द्वारा बनाई गई योजनाओं को कौन लागू करता है? .
(A) B.D.O.
(B) S.S.P.
(C) D.C.
(D) S.D.M.
उत्तर:
B.D.O.

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31. किस कानून से बहु-विवाह की प्रथा समाप्त कर दी गई थी?
(A) हिंदू तलाक कानून, 1955
(B) हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
(C) हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956
(D) दहेज निषेध कानून, 1961.
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955

32. अस्पृश्यता अपराध अधिनियम कब पास हुआ था?
(A) 1949
(B) 1954
(C) 1955
(D) 1961
उत्तर:
1955

33. नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम कब पास हुआ था?
(A) 1975
(B) 1974
(C) 1977
(D) 1976
उत्तर:
1976.

34. प्राचीन पंचायती राज्य व्यवस्था में क्या कमी थी?
(A) लगातार चुनाव की कमी
(B) वित्तीय साधनों की कमी
(C) लोगों द्वारा दिलचस्पी न लेना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

35. इनमें से कौन-सा पंचायत का कार्य है?
(A) पीने के पानी का प्रबंध
(B) सड़कें बनाना
(C) स्कूल का प्रबंध
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

36. ग्राम सभा में गाँव के सभी ………………… सदस्य होते हैं।
(A) बालिग
(B) बच्चे
(C) जवान
(D) स्त्रियाँ।
उत्तर:
बालिग।

37. इनमें से कौन-सा पंचायत समिति की आय का स्रोत है?
(A) अनुदान
(B) मेलों से आय
(C) मार्कीट से आय
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

38. विकेंद्रीकरण का अर्थ है ……………….. का ऊपर से नीचे तक विभाजन।
(A) कार्यों
(B) शक्तियों
(C) व्यवस्था
(D) देश।
उत्तर:
शक्तियों।

39. पंचायत का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए?
(A) वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
(B) वह दिवालिया घोषित न किया गया हो
(C) उसकी आयु 21 वर्ष से अधिक होनी चाहिए
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

40. भारतीय संविधान की प्रस्तावना इनमें से किसे सुनिश्चित करने का प्रयास करती है?
(A) धार्मिक न्याय
(B) सामाजिक न्याय
(C) राजनीतिक न्याय
(D) उपर्युक्त सभी को।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी को।

41. इनमें से कौन-सा 1931 के कराची कांग्रेस संकल्प घोषणा पत्र में शामिल था?
(A) धार्मिक स्वतंत्रता
(B) धर्म निरपेक्ष राज्य
(C) वयस्क मताधिकार।
(D) उपर्युक्त सभी को।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक नियोजन का मुख्य उदेश्य क्या होता है?
उत्तर:
सामाजिक नियोजन का मुख्य उदेश्य देश का हर तरफ से विकास करना होता है।

प्रश्न 2.
हमारे देश में अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएं बन चुकी हैं?
उत्तर:
हमारे देश में अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएं बन चुकी हैं।

प्रश्न 3.
हमारे देश में अब तक कितनी एकवर्षीय योजनाएं लागू हो चुकी हैं?
उत्तर:
हमारे देश में अब तक तीन एकवर्षीय योजनाएं 1966-69 तक लागू हो चुकी हैं।

प्रश्न 4.
हमारे देश के योजना आयोग को कब बनाया गया था?
उत्तर:
हमारे देश के योजना आयोग को 1950 में बनाया गया था।

प्रश्न 5.
योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर:
योजना आयोग का अध्यक्ष हमेशा प्रधानमंत्री होता है क्योंकि हमारे संविधान के अनुसार योजना आयोग का अध्यक्ष हमेशा प्रधानमंत्री ही होगा।

प्रश्न 6.
महिला अधिकारिता दिवस कब मनाया गया था?
उत्तर:
महिला अधिकारिता दिवस सन् 2001 में मनाया गया था।

प्रश्न 7.
पहली पंचवर्षीय योजना की अवधि क्या थी?
अथवा
प्रथम पंचवर्षीय योजना कब लागू की गई?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना की अवधि 1951-1956 तक थी।

प्रश्न 8.
पहली पंचवर्षीय योजना में कितने रुपये खर्च करने का प्रावधान था?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना में ₹ 1960 करोड़ खर्च करने का प्रावधान था।

प्रश्न 9.
दूसरी तथा तीसरी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल बताएं।
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना 1956-1961 तक थी तथा तीसरी पंचवर्षीय योजना 1961-1966 तक थी।

प्रश्न 10.
दूसरी तथा तीसरी पंचवर्षीय योजना में कितने रुपये खर्च करने का प्रावधान था?
उत्तर:
दूसरी योजना में ₹ 4672 करोड़ तथा तीसरी पंचवर्षीय योजना में ₹ 8577 करोड़ खर्च करने का प्रावधान था।

प्रश्न 11.
तीन एकवर्षीय योजनाओं में कितने रुपये खर्च किए गए?
उत्तर:
तीन एकवर्षीय योजनाओं में ₹ 6625 करोड़ खर्च किए गए।

प्रश्न 12.
चौथी, पाँचवीं तथा छठी पंचवर्षीय योजनाओं का कार्यकाल बताएं।
उत्तर:
चौथी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1969-74, पाँचवीं का 1974-79 तथा छठी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1979-85 तक था।

प्रश्न 13.
इन तीन योजनाओं में कितने पैसे खर्च किए गए?
उत्तर:
चौथी योजना में ₹ 15779 करोड़, पाँचवीं योजना में ₹ 39,426 करोड़ तथा छठी पंचवर्षीय योजना में ₹ 1,10,467 करोड़ खर्च किए गए।

प्रश्न 14.
सातवीं तथा आठवीं पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि बताएं।
उत्तर:
सातवीं तथा आठवीं पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि क्रमशः 1985-90 तथा 1992-97 थी।

प्रश्न 15.
सातवीं तथा आठवीं पंचवर्षीय योजनाओं में कितने पैसे खर्च किए गए?
उत्तर:
सातवीं योजना में ₹ 2,21,436 करोड़ तथा आठवीं पंचवर्षीय योजना में ₹ 4,74,121 करोड़ खर्च किए गए।

प्रश्न 16.
नौवीं तथा दसवीं पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि बताएं।
उत्तर:
नौवीं योजना की अवधि 1997-2002 तथा दसवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 2002-2007 तक है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 17.
नौवीं योजना में कितने रुपये खर्च किए गए?
उत्तर:
नौवीं योजना में ₹ 8,59,200 करोड़ खर्च किए गए।

प्रश्न 18.
दसवीं पंचवर्षीय योजना में कितने रुपये खर्च किए जाएंगे?
उत्तर:
दसवीं पंचवर्षीय योजना में ₹ 15.92,300 करोड़ खर्च किए जाएंग।

प्रश्न 19.
पंचवर्षीय योजनाओं का मॉडल भारत ने किस देश से लिया था?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं का मॉडल भारत ने सोवियत संघ (U.S.S.R.) से लिया था।

प्रश्न 20.
आर्थिक विकास मख्यतः किन बातों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
आर्थिक विकास मुख्यतः उद्योगों के होने तथा अधिक उत्पादन होने, कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी, विदेशी निवेश के बढ़ने, देश में सामान की खपत, आयात-निर्यात इत्यादि पर निर्भर करता है।

प्रश्न 21.
भारतीय संविधान की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान इतना लचकीला तथा आसान है कि इसमें परिवर्तन किया जा सकता है तथा साथ ही साथ इतना कठोर है कि इसे परिवर्तित करने के लिए संसद् तथा राज्य विधानसभाओं के दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता है।

प्रश्न 22.
बहु विवाह की प्रथा किस कानून द्वारा खत्म की गई थी?
उत्तर:
बहु विवाह प्रथा को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के द्वारा खत्म किया गया था।

प्रश्न 23.
पुत्र गोद लेने का कानून कब पास हआ था?
उत्तर:
पुत्र गोद लेने या हिंदू दत्तक पुत्र गोद लेने का कानून 1950 में पास हुआ था।

प्रश्न 24.
दहेज निरोधक कानून कब पास हुआ?
उत्तर:
दहेज निरोधक कानून पहली बार 1961 में तथा दूसरी बार 1986 में पास हुआ था।

प्रश्न 25.
अस्पृश्यता अपराध कानून कब पास हुआ था?
उत्तर:
अस्पृश्यता अपराध कानून 1955 में पास हुआ था पर यह कारगर सिद्ध नहीं हुआ था। इसलिए इसमें संशोधन करके नागरिक संरक्षण अधिकार कानून 1976 में पास हुआ था।

प्रश्न 26.
विधवा पुनर्विवाह कानून कब पास हुआ था?
उत्तर:
विधवा पुनर्विवाह कानून 1856 में पास हुआ था।

प्रश्न 27.
सती प्रथा विरोधी कानून कब पास हुआ था?
उत्तर:
सती प्रथा विरोधी कानून 1829 में पास हुआ था।

प्रश्न 28.
प्रभुत्व जाति होने के लिए कौन-सी विशेषताएँ आवश्यक हैं?
उत्तर:
प्राचीन समय में उच्च जाति, धन का होना प्रभुत्व जाति होने के लिए आवश्यक था। परंतु आधुनिक समय में जाति का प्रभाव कम हो गया है। इसलिए अधिक जनसंख्या का होना ही प्रभुत्व जाति के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 29.
भारत किस प्रकार का राज्य है?
उत्तर:
भारत एक कल्याणकारी राज्य है जिसका मुख्य उद्देश्य जनता के कल्याण में कार्य करना है।

प्रश्न 30.
संविधान क्या होता है?
उत्तर:
संविधान एक कानूनी किताब या दस्तावेज़ है जिसमें देश पर शासन करने के तरीके तथा प्रणालियाँ लिखी हुई हैं।

प्रश्न 31.
भारत देश का संविधान कब लागू हुआ था?
उत्तर:
भारत देश का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था, तभी हमारा देश गणतंत्र बना था।

प्रश्न 32.
संविधान बनाने वाली Drafting Committee के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
संविधान बनाने वाली Drafting Committee के अध्यक्ष डॉ० अंबेदकर थे।

प्रश्न 33.
भारत के नागरिकों को कितने मौलिक अधिकार दिए गए हैं?
उत्तर:
भारत के नागरिकों को छः (6) मौलिक अधिकार दिए गए हैं।

प्रश्न 34.
राज्य क्या होता है?
अथवा
राज्य की परिभाषा दें।
अथवा
राज्य क्या है?
अथवा
राज्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
राज्य वह समूह है जिसमें समाज में चल रही विभिन्न वैधानिक संस्थाएं उसके नाम से जानी जाती हैं तथा उसका निश्चित भू-भाग होता है जिसमें उसे शक्ति के शारीरिक पक्ष का प्रयोग करने का पूरा अधिकार होता है।

प्रश्न 35.
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य देश का हर तरफ से विकास करना है तथा राज्यों को उनके हक के मुताबिक विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए पैसा देना है। इससे देश का सामाजिक तथा आर्थिक विकास होता है।

प्रश्न 36.
कल्याणकारी राज्य क्या होता है?
उत्तर:
कल्याणकारी राज्य में राज्य अपने नागरिकों तथा जनता के कल्याण करने की ज़िम्मेवारी उठाता है तथा उनके कल्याण के प्रयास करता है।

प्रश्न 37.
कल्याणकारी राज्य किस प्रकार की भूमिका निभाता है?
उत्तर:
कल्याणकारी राज्य देश में नागरिकों के कल्याण में सबसे अहम भूमिका अदा करता है। देश के कमजोर तथा पिछड़े वर्गों के आर्थिक विकास के लिए वह कार्य करता है। महिलाओं तथा बच्चों के लिए विधान रखता है ताकि कोई उनका शोषण न कर सके। इस तरह कल्याणकारी राज्य बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

प्रश्न 38.
नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
नियोजन एक व्यवस्था होती है जिसके आधार पर समाज या व्यक्तिगत तौर पर लक्ष्यों की पूर्ति के लिए प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न 39.
सामाजिक नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
यह वह व्यवस्था या विधि है जिसकी मदद से समाज की विभिन्न प्रकार की सामाजिक तथा सांस्कृतिक समस्याओं के समाधान के प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न 40.
आर्थिक नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
यह वह योजना या कार्यक्रम है जिसमें हम आर्थिक तौर के सभी पक्षों जैसे कृषि, व्यापार, संपत्ति, संचार, परिवहन के साधनों के विकास के कार्य या प्रयास करते हैं।

प्रश्न 41.
हमारे देश में सामाजिक नियोजन की क्या ज़रूरत है?
उत्तर:
हमारे देश में विभिन्न धर्मों, जातियों के लोग रहते हैं। इन सबको एक-दूसरे के निकट लाने के लिए तथा इस निकटता में से निकली समस्याओं के समाधान के लिए सामाजिक नियोजन की बहुत ज़रूरत है।

प्रश्न 42.
राज्य तथा सरकार में क्या अंतर है?
उत्तर:
राज्य स्थायी होती है उसे कोई हिला नहीं सकता पर सरकार अस्थायी होती है जोकि पाँच साल या उससे पहले भी बदल सकती है। राज्य के कुछ लक्ष्य होते हैं, सरकार उन लक्ष्यों को प्राप्त करने का साधन है।

प्रश्न 43.
पंचायत किसे कहते हैं?
उत्तर:
पंचायत का अर्थ है-पाँच व्यक्तियों की सभा यां पंचों का समूह। पंचायती राज का अर्थ पंचों या पाँच व्यक्तियों द्वारा शासन करने के आधार पर समझा जा सकता है। इसे स्थानीय स्वशासन भी कह सकते हैं।

प्रश्न 44.
पंचायती राज के तीन स्तर कौन-कौन से हैं?
अथवा
नई पंचायती राज व्यवस्था के तीन स्तर कौन से हैं?
अथवा
पंचायती राज संस्थाओं के स्तरों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
पंचायती राज के तीन स्तर हैं-

  • पंचायत-गांव के स्तर पर
  • पंचायत समिति-ब्लॉक स्तर पर
  • जिला परिषद्-ज़िला के स्तर पर।

प्रश्न 45.
कानून क्या हैं?
अथवा
सामाजिक अधिनियम किसे कहते हैं?
उत्तर:
नियमों व सिद्धांतों की वह व्यवस्था जिसे जनता पर सरकार द्वारा लागू किया जाता है उसे कानून कहते है।

प्रश्न 46.
देश के लिए कानून कौन बनाता है?
उत्तर:
देश के लिए कानून देश की संसद् बनाती है तथा राज्य के लिए कानून राज्य के विधानमंडल बनाते हैं।

प्रश्न 47.
भारत में पंचायती राज व्यवस्था कब लागू हुई थी?
उत्तर:
भारत में पंचायती राज व्यवस्था 1959 में लागू हुई थी।

प्रश्न 48.
ग्राम पंचायत का गठन कितने समय के लिए होता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत का गठन 73वें संशोधन के अनुसार 5 साल के लिए होता है पर इसे पहले भी भंग किया जा सकता है।

प्रश्न 49.
ग्राम पंचायत में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
हमारे देश में ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं है। हरेक राज्य में यह भिन्न-भिन्न है। हरियाणा में यह संख्या 6 से 20 तक है।

प्रश्न 50.
ग्राम पंचायत के सदस्यों तथा प्रधान का चुनाव कैसे होता है?
उत्तर:
भारत में प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली चलती है ताकि लोगों के प्रतिनिधियों को चुना जा सके। इस तरह ग्राम पंचायत के पंचों तथा सरपंच का चुनाव भी प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से होता है।

प्रश्न 51.
पंचायत समिति तथा जिला परिषद् किस स्तर पर गठित होते हैं?
उत्तर:
पंचायत समिति ब्लॉक स्तर पर तथा जिला परिषद् जिला स्तर पर गठित होते हैं।

प्रश्न 52.
पंचायत समिति द्वारा बनाई योजनाओं को कौन लागू करता है?
उत्तर:
पंचायत समिति द्वारा बनाई गई योजनाओं को ब्लॉक विकास अधिकारी (Block Development Officer) लागू करता है।

प्रश्न 53.
पुरानी पंचायत राज व्यवस्था में क्या त्रुटियां थीं?
उत्तर:

  1. नियमित चुनावों का अभाव था।
  2. पंचायतों के पास वित्तीय साधन नहीं थे।
  3. लोगों की इन संस्थाओं में कम रुचि थी।
  4. सरकारी अधिकारियों का इनके ऊपर अत्यधिक नियंत्रण था।

प्रश्न 54.
कानून कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
कानून दो प्रकार के होते हैं-

  1. दीवानी कानून
  2. फ़ौजदारी कानून।

प्रश्न 55.
गाँवों के विकास के लिए पंचायती राज में कौन-सी संस्थाएं कार्य करती हैं?
उत्तर:
गाँवों के विकास के लिए पंचायती राज में तीन संस्थाएं कार्य करती हैं।

  1. गाँव में पंचायत
  2. ब्लॉक में पंचायत समिति
  3. जिले में जिला परिषद्।

प्रश्न 56.
ग्राम सभा क्या है?
उत्तर:
यह सभा गाँव में बनती है। गाँव के सभी बालिग मर्द तथा औरतें इसके सदस्य होते हैं तथा यही लोग पंचायत का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 57.
पंचायत की आय के कोई दो साधन बताओ।
उत्तर:

  1. सरकार से मिलने वाली ग्रांट
  2. मकानों पर लगे टैक्स से आमदनी
  3. शामलाट ज़मीन से आमदनी।

प्रश्न 58.
पंचायत के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर:

  1. गाँव में पीने के पानी का प्रबंध करना।
  2. गाँवों में सड़कों का निर्माण करना।
  3. गाँवों की सफाई रखने की व्यवस्था करनी।
  4. गाँवों में बिजली का प्रबंध करना।

प्रश्न 59.
पंचायत समिति की आय के कोई तीन साधन बताओ।
उत्तर:

  1. सरकार से ग्रांट मिलना
  2. मेलों से आमदनी
  3. मंडियां लगने से आय की प्राप्ति।

प्रश्न 60.
पंचायत समिति के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर:

  1. अपने क्षेत्र के विकास के लिए योजनाएं बनाना तथा उन्हें लागू करना।
  2. अपने क्षेत्र के अंतर्गत आती पंचायतों के काम-काज की निगरानी करना।

प्रश्न 61.
जिला परिषद् की आय के कोई दो साधन बताओ।
उत्तर:

  1. सरकार द्वारा प्राप्त ग्रांट
  2. अपनी संपत्ति से मिलती आमदनी
  3. उस क्षेत्र में से इकट्ठे हुए करों का कुछ भाग।

प्रश्न 62.
जिला परिषद् के प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर:

  1. अपने क्षेत्र में आती पंचायत समितियों के काम का निरीक्षण करना।
  2. अपने क्षेत्र में चल रहे विकास कार्यों का निरीक्षण करना।

प्रश्न 63.
ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यता चाहिए?
उत्तर:
ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए 21 वर्ष की आयु होनी चाहिए। चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने तथा पंचायतों का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य न ठहराया गया हो।

प्रश्न 64.
उदारीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से अनावश्यक प्रतिबंध हटाना अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं। यह एक आर्थिक प्रक्रिया है तथा यह समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया हैं।

प्रश्न 65.
निजीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देशों में मिश्रित प्रकार की व्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक उपक्रम होते हैं। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपना, ताकि यह अधिक लाभ कमा सकें, निजीकरण कहलाता है।

प्रश्न 66.
मौलिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं?
अथवा
मौलिक अधिकार क्या हैं?
अथवा
मौलिक अधिकारों की परिभाषा दें।
उत्तर:
हमारे देश के संविधान ने देश के सभी नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार प्रदान किए हुए हैं जिन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। यह अधिकार व्यक्ति के लिए अच्छा जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं जिस कारण इन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 67.
भारतीय नागरिकों को संविधान में दिए गए प्रमुख मौलिक अधिकारों का वर्णन करें।
अथवा
मौलिक अधिकारों का एक उदाहरण दें।
अथवा
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
किन्हीं दो मौलिक अधिकारों का वर्णन करें।
अथवा
कोई दो मौलिक अधिकार लिखिए।
उत्तर:

  1. समानता का अधिकार
  2. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  3. स्वतंत्रता का अधिकार
  4. सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार
  5. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 68.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह अधिकार देश के सभी नागरिकों को दिया गया है। इसके अनुसार अगर कोई और व्यक्ति, राज्य सरकार अथवा केन्द्र सरकार किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन या उनमें हस्तक्षेप करने का प्रयास करता है तो वह व्यक्ति न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर अपने अधिकार वापिस पा सकता है।

प्रश्न 69.
लोकतंत्र क्या है?
अथवा
लोकतंत्रीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लोकतंत्र सरकार का ही एक प्रकार है जिसमें जनता का शासन चलता है। इसमें जनता के प्रतिनिधि साधारण जनता में से बालिगों को वोट देने के अधिकार से चुने जाते हैं तथा यह प्रतिनिधि ही जनता का प्रतिनिधित्व करते है और उनकी तरफ से बोलते हैं। यह कई संकल्पों जैसे कि समानता, स्वतंत्रता तथा भाईचारे में विश्वास रखता है तथा यह ही इसके कार्यवाहक आधार है।

प्रश्न 70.
दबाव समूह क्या होता है?
अथवा
दबाव समूह से आप क्या समझते हैं?
अथवा
दबाव समूह क्या है?
उत्तर:
दबाव समूह वह संगठित अथवा असंगठित समूह होते हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। उनके कुछ उद्देश्य होते हैं तथा वे सरकार पर दबाव डालकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयास करते हैं। यह प्रत्यक्ष रूप से कभी भी चनाव नहीं लड़ते बल्कि अपने प्रभाव से स रखते हैं। ट्रेड यूनियन, किसान संघ इसकी उदाहरणें हैं।

प्रश्न 71.
स्थानीय स्वः शासन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब स्थानीय स्तर पर जनता का शासन स्थापित हो जाए तो उसे स्थानीय स्वः शासन कहते हैं। इसमें जनता स्थानीय स्तर पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है तथा वह प्रतिनिधि स्थानीय स्तर पर ही जनता की समस्याओं का समाधान करते हैं।

प्रश्न 72.
राज्य क्या होता है?
उत्तर:
राज्य वह समूह है जिसमें समाज में चल रही विभिन्न वैधानिक संस्थाएं उसके नाम से जानी जाती हैं तथा उसका निश्चित भू-भाग होता है जिसमें उसे शक्ति के शारीरिक पक्ष का प्रयोग करने का पूरा अधिकार होता है।

प्रश्न 73.
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य देश का हर तरफ से विकास करना है तथा राज्यों को उनके हक के मुताबिक विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए पैसा देना है। इससे देश का सामाजिक तथा आर्थिक विकास होता है।

प्रश्न 74.
संगठित अपराध किसे कहते हैं?
उत्तर:
आजकल के समय में लोग एक निश्चित योजना बनाकर, हथियारों के साथ अपराध करते हैं। उन्हें ही संगठित अपराध कहा जाता है।

प्रश्न 75.
सफेद कॉलर अपराध का एक उदाहरण दें।
उत्तर:
नेताओं, अफसरों इत्यादि द्वारा किया जाने वाला घोटाला सफेद कॉलर अपराध का उदाहरण है।

प्रश्न 76.
चार नीति निर्देशक सिद्धांतों के नाम दें।
उत्तर:
राज्य बाल मजदूरी को रोकेगा, राज्य समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करेगा, सभी नागरिकों के लिए आजीविका के उपयुक्त स्रोत विकसित करेगा तथा देश की प्राचीन धरोहरों की रक्षा करेगा।

प्रश्न 77.
समानता के अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जिसके अनुसार देश के सभी नागरिक कानून की दृष्टि में समान हैं तथा किसी के साथ भी जाति, वर्ण, रंग, भाषा, आयु, प्रजाति इत्यादि में आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 78.
शैक्षणिक अधिभार से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शैक्षणिक अधिकार का अर्थ यह है कि सरकार 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगी।

प्रश्न 79.
भारत के किसी एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल का नाम बताएं।
उत्तर:
इंडियन नैशनल लोकदल हरियाणा राज्य में मौजूद क्षेत्रीय राजनीतिक दल है।

प्रश्न 80.
ग्राम पंचायत का उप-प्रधान कैसे निर्वाचित किया जाता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत के निर्वाचित सदस्य अर्थात पंच अपने में से ही एक उप प्रधान का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 81.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि ‘भारत एक समाजवादी ……………… है।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि भारत एक समाजवादी पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है।

प्रश्न 82.
स्वतंत्रता के अधिकार क्या है?
उत्तर:
स्वतंत्रता के अधिकार के अनुसार भारत में सभी नागरिक स्वतंत्र हैं तथा किसी भी देशी, विदेशी प्रभाव से मुक्त है।

प्रश्न 83.
भारत के किसी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का नाम बताएँ।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत का एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।

प्रश्न 84.
ग्राम पंचायत के प्रधान का चुनाव कैसे किया जाता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत के प्रधान का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा होता है।

प्रश्न 85.
भारतीय संविधान में लिखा है कि भारत एक प्रजातंत्रीय …………………….. है।
उत्तर:
भारतीय संविधान में लिखा है कि भारत एक प्रजातन्त्रीय गणराज्य है।

प्रश्न 86.
अस्पृश्यता में उन्मूलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अस्पृश्यता में उन्मूलन का अर्थ है कि देश में से विधानों के द्वारा अस्पृश्यता का खात्मा कर दियागया है तथा जो भी अस्पृश्यता का पालन करेगा उसे विधानों के अनुसार कठोर दंड दिया जाएगा।

प्रश्न 87.
कोई एक मौलिक कर्तव्य बताएं।
उत्तर:
संविधान का पालन करना तथा इसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रीय गान का सम्मान करना

प्रश्न 88.
ग्राम पंचायत की मीटिंग की अध्यक्षता प्रधान या पंच में से कौन करता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत की मीटिंग की अध्यक्षता प्रधान करता है।

प्रश्न 89.
किन्हीं दो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम बताएँ।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी भारत के राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।

प्रश्न 90.
भारत का संविधान 15 अगस्त, 1947 या 26 जनवरी, 1950 में से किस दिन लागू किया गया?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।

प्रश्न 91.
‘संविधान दवारा 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है।’ यह कथन सत्य है या असत्य?
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि संविधान द्वारा 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है।

प्रश्न 92.
ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अंतर है?
उत्तर:
एक ग्राम सभा में ग्राम के सभी बालिग सदस्य होते हैं तथा ग्राम पंचायत ग्राम सभा द्वारा चुनी हुई संस्था होती है जिसमें एक प्रधान तथा कई पंच होते हैं।

प्रश्न 93.
आपके राज्य में ग्राम पंचायत के सदस्यों के चुनाव में वोट डालने की न्यूनतम आयु क्या है?
उत्तर:
हमारे राज्य में ग्राम पंचायत के सदस्यों के चुनाव में वोट डालने की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है।

प्रश्न 94.
‘शिक्षा का अधिकार’ कितनी आयु तक के बच्चों को दिया गया है?
उत्तर:
शिक्षा का अधिकार 6-14 वर्ष तक की आयु तक के बच्चों को दिया गया है।

प्रश्न 95.
पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों का कितने वर्ष के लिए चुनाव किया जाता है?
उत्तर:
पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों का चुनाव 5 वर्ष के लिए होता है।

प्रश्न 96.
अपने राज्य में सक्रिय किन्हीं दो राजनीतिक दलों के नाम बताएं।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, इंडियन नैशनल लोकदल, बी० जे० पी० हमारे राज्य के सक्रिय राजनीतिक दल हैं।

प्रश्न 97.
26 जनवरी, 1950 को किस देश का संविधान लागू किया गया?
उत्तर:
26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया।

प्रश्न 98.
अभिव्यक्ति का अधिकार क्या है?
उत्तर:
वह अधिकार जिसके अंतर्गत सभी को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता हो, अभिव्यक्ति का अधिकार है।

प्रश्न 99.
अनुसूचित जनजाति किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह जनजाति जिसका नाम संविधान में दर्ज है, उसे अनुसूचित जनजाति कहते हैं।

प्रश्न 100.
भारत में दल प्रणाली का स्वरूप किस प्रकार का है?
उत्तर:
भारत में बहुदलीय व्यवस्था है अर्थात् यहाँ बहुत से राजनीतिक दल होते हैं।

प्रश्न 101.
अनुसूचित जाति क्या है?
उत्तर:
जिस जाति का नाम संविधान में कुछ विशेष व्यवस्थाओं को पाने के लिए दर्ज हो, उसे अनुसूचित जाति कहते हैं।

प्रश्न 102.
मौलिक अधिकार के हनन पर भारत के किस न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर:
मौलिक अधिकार के हनन पर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

प्रश्न 103.
भारत की राजकीय भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
हिंदी भारत की राजकीय भाषा है।

प्रश्न 104.
प्रभुजाति का स्थानीय सोपान में कौन-सा स्थान होता है?
उत्तर:
प्रभुजाति का स्थानीय सोपान में सबसे उच्च स्थान होता है।

प्रश्न 105.
किंही दो दबाव समूहों का नाम बताएं।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आंदोलन, चिपको आंदोलन दो दबाव समूह हैं।

प्रश्न 106.
संविधान में किस अनुच्छेद द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है।

प्रश्न 107.
जाति कैसी सामाजिक व्यवस्था है?
उत्तर:
जाति एक बंद सामाजिक व्यवस्था है जिसमे शामिल होना या निकलना मुमकिन नहीं है।

प्रश्न 108.
भारतीय संविधान में कौन-सी भाषा मान्यता प्राप्त नहीं हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान में अंग्रेजी को मान्यता प्राप्त नहीं हैं क्योंकि इसे संपर्क भाषा कहा गया है।

प्रश्न 109.
सरकार के तीन अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
विधानपालिका (Legislative), कार्यपालिका (Executive) तथा न्यायपालिका (Judiciary), सरकार के तीन अंग हैं।

प्रश्न 110.
भारत में नयी पंचायती राज व्यवस्था कब शरू हई?
उत्तर:
भारत में नयी पंचायती राज व्यवस्था 1993 में शुरू हुई थी।

प्रश्न 111.
भारत की राजकीय भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
हिंदी भारत की राजकीय भाषा है।

प्रश्न 112.
राज्य के अनिवार्य तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भौगोलिक क्षेत्र, जनसंख्या, प्रभुसत्ता तथा सरकार राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं।

प्रश्न 113.
सरकार का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर:
सरकार राज्य का वह अनिवार्य तत्त्व है. जिसे उसका प्रशासन चलाने के लिए निर्मित किया जाता है।

प्रश्न 114.
एक पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या होता है?
उत्तर:
एक पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 5 वर्ष होता है।

प्रश्न 115.
हिंदू विवाह अधिनियम कब पास हुआ?
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम सन् 1955 में पास हुआ था।

प्रश्न 116.
संवैधानिक प्रावधान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी विशेष कार्य को करने के लिए जो उपबंध अथवा प्रावधान संविधान में रखे गए हों उन्हें संवैधानिक प्रावधान कहा जाता है।

प्रश्न 117.
पंचवर्षीय योजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हमारे देश का विकास करने के लिए पाँच वर्षों के लिए जो योजना तैयार की जाती है उसे पंचवर्षीय योजना कहा जाता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज संस्थाओं के कोई चार कार्य बताओ।
अथवा
ग्राम पंचायत के कोई दो प्रमुख कार्य बताएँ।
अथवा
पंचायती राज्य संस्थाओं के कोई पाँच कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. पीने के पानी का प्रबंध, बिजली का प्रबंध करना।
  2. कृषि विस्तार के प्रयास करने।
  3. पशुपालन, दुग्ध उद्योग और कुक्कुट पालन का विकास करना।
  4. सड़कें, पुलियाँ, पुल, फेरी, जलमार्ग तथा संचार के अन्य साधनों का प्रबंध करना।
  5. शिक्षा का प्रबंध करना।
  6. बाज़ार तथा मेले लगवाने।

प्रश्न 2.
पंचायती राज प्रणाली की विशेषताएं बताओ।
अथवा
नई पंचायती राज प्रणाली की कोई चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर:

  1. पंचायती राज प्रणाली में तीन स्तरीय संरचना होती है।
  2. इनमें ग्राम सभा की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण होती है।
  3. इनमें चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर होता है।
  4. इस प्रणाली में महिलाओं, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण होता है।
  5. पंचायती राज संस्थाओं के वित्तीय अधिकार तथा कार्यों का वितरण होता है।

प्रश्न 3.
पंचायत समिति के कौन-कौन सदस्य होते हैं?
उत्तर:

  1. पंचायत समिति के लिए प्रत्यक्ष रूप से चुने हुए सदस्य।
  2. लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्य जो उस क्षेत्र से संबंधित हों।
  3. पंचायत समिति क्षेत्र से ग्राम पंचायतों के कुल प्रधानों में से 1/5 भाग।
  4. राज्य सभा के सदस्य।

प्रश्न 4.
मैकाइवर के अनुसार कानून कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय कानून (National Law)
  2. अंतर्राष्ट्रीय कानून (International Law)
  3. संवैधानिक कानून (Constitutional Law)
  4. साधारण कानून (Ordinary Law)
  5. सार्वजनिक कानून (Public Law)
  6. व्यक्तिगत कानून (Private Law)
  7. सामान्य कानून (General Law)
  8. प्रशासनिक कानून (Administrative Law)।

प्रश्न 5.
भारत में विकेंद्रीकरण का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
विकेंद्रीकरण का अर्थ है शक्तियों का बंटवारा। इसका अर्थ है शक्तियों का ऊपर से लेकर नीचे तक शक्तियों का बंटवारा। भारत में विकेंद्रीकरण का बहुत महत्त्व है क्योंकि भारत एक लोकतंत्र है। लोकतंत्र की सबसे पहली शर्त है कि राजनीति में जनता की भागीदारी। जनता की भागीदारी तभी संभव है जब हर स्तर पर चुनाव हो। हर स्तर पर चुनाव होने से लोए चुने जाएंगे। अगर वह चुने गए हैं तो उनको शक्तियों की जरूरत पड़ेगी।

उनको शक्तियां मिलेंगी ऊपर से तथा यह शक्तियां तभी मिल सकती हैं अगर शक्तियों का केंद्रीकरण न होकर विकेंद्रीकरण हो। वैसे भी भारत में बहुत-सी समस्याएं पायी जाती हैं। इन समस्याओं को केंद्र में बैठकर हल नहीं किया जा सकता। इनको उसी स्तर पर हल किया जा सकता है जहाँ पर यह हैं तथा उसके लिए शक्तियों का विकेंद्रीकरण चाहिए।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 6.
विकेंद्रीकरण व्यवस्था की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
विकेंद्रीकरण व्यवस्था में शक्तियों का विकेंद्रीकरण हो जाता है। आजादी के बाद हमारे देश में विकेंद्रीकरण की व्यवस्था अपनायी गई ताकि हमारा देश सही मायनों में लोकतंत्र बन सके। विकेंद्रीकरण व्यवस्था की चार विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) विकेंद्रीकरण व्यवस्था में शासन व्यवस्था लोकप्रिय रहती है क्योंकि इस व्यवस्था में हर किसी को सत्ता हथियाने का मौका मिलता है। लोकतंत्र जितना व्यापक होगा जनता उतनी ही सक्रिय होगी। इसलिए इससे शासन व्यवस्था लोकप्रिय रहती है।

(ii) विकेंद्रीकरण में निर्णय जल्दी ले लिए जाते हैं। अगर यह व्यवस्था न हो तो निर्णय लेने में समय लग जाएगा क्योंकि वह राजधानी से आएगा पर इस व्यवस्था में मौके पर ही निर्णय हो जाते हैं। इसमें बड़े-बड़े अधिकारियों से आज्ञा की ज़रूरत नहीं पड़ती।

(iii) इस व्यवस्था में प्रशासन में लचीलापन आ जाता है। कर्मचारियों को उनके अधिकार क्षेत्र में निर्णय लेने की स्वतंत्रता रहती है। जिन लोगों के लिए वे काम करते हैं वह उनके निकट होते हैं इसलिए वह मौके के अनुसार निर्णय ले लेते हैं।

(iv) इस व्यवस्था में एक अधिकारी के पास काम का बोझ नहीं रहता। अगर यह व्यवस्था न हो तो छोटे अधिकारियों के पास कोई काम न होगा तथा बड़े अधिकारी काम के बोझ तले दब जाएंगे। इस तरह यह व्यवस्था काम को अलग-अलग स्तरों पर बांट देती है।

प्रश्न 7.
विकेंद्रीकरण व्यवस्था के चार अवगुण बताओ।
उत्तर:
इस व्यवस्था के अवगुण निम्नलिखित हैं-
(i) इस व्यवस्था से शासन में एकरूपता का अभाव होता है। ऊपर बैठे अधिकारी काम करने के नीति निर्देश तो दे देते हैं पर छोटे अधिकारी उस नीति में मौके तथा समय के अनुसार संशोधन कर देते हैं जिस वजह से ऊपर तथा नीचे वालों की नीति में भिन्नता आ जाती है।

(ii) इस व्यवस्था का एक और अवगुण यह है कि इससे खर्च बढ़ जाता है। कर्मचारियों की तनख्वाह, कार्यालय, उसके खर्च यह सब सरकार को सहन करने पड़ते हैं जोकि बहुत ज्यादा होते हैं।

(iii) इस समस्या से राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचता है। अधिकारी स्थानीय समस्याओं को निपटाने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि वह सिर्फ स्थानीय क्षेत्र के बारे में सोचते रहते हैं देश के बारे में नहीं सोचते।।

(iv) इस व्यवस्था में केंद्र के नियंत्रण का अभाव होता है। कर्मचारी अपनी मर्जी से काम करते हैं। कई बार तो केंद्र सरकार द्वारा बनाई नीतियों की भी अवहेलना हो जाती है। उनमें स्वेच्छाचारी की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

प्रश्न 8.
भारत के संविधान में महिलाओं के लिए प्रावधान है?
अथवा
महिलाओं के कल्याण के लिए क्या संवैधानिक प्रावधान हैं?
उत्तर:
भारत की कुल जनसंख्या में से आधी आबादी महिलाओं की है। सदियों से उनकी स्थिति निम्न रही है तथा उनको पैरों की जूती समझा जाता था। इसलिए संविधान में उनके कल्याण के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 15 के अनुसार सरकार महिलाओं के हितों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध तथा उनको विशेष सुविधाएँ प्रदान कर सकती हैं। अनुच्छेद 39 में यह प्रावधान है कि महिलाओं व पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाएगा।

अनुच्छेद 42 के अनुसार राज्य महिलाओं को प्रसूति सहायता का प्रबंध करेगा। अनुच्छेद 51 में लिखा है कि प्रत्येक भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह महिलाओं के गौरव को अपमान पहुँचाने वाली परंपराओं को त्याग दें। 73वें तथा 74वें संवैधानिक संशोधनों से महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं।

प्रश्न 9.
हमारे संविधान में बच्चों के लिए क्या प्रावधान है?
अथवा
बच्चों के कल्याण के लिए क्या संवैधानिक प्रावधान है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में बच्चों का भी उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 15 के अनुसार सरकार बच्चों के हितों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध कर सकती है। उन्हें विशेष सुविधाएं मुहैया करवा सकती है। अनुच्छेद 39 के अनुसार बच्चों को आर्थिक संकट से विवश होकर ऐसे कार्य न करने पड़ें जोकि उनकी आयु व स्वास्थ्य के अनुकूल न हो।

इसलिए सरकार ऐसी नीति का निर्माण करे जिससे बच्चों व युवकों के शोषण तथा नैतिक एवं भौतिक पतन से रक्षा हो सके। अनुच्छेद 45 में लिखा है कि सरकार 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क तथा आवश्यक शिक्षा का प्रबंध करे।

प्रश्न 10.
संविधान ने अनुसूचित जातियों के लिए क्या प्रावधान रखे हैं?
उत्तर:

  1. संविधान के अनुच्छेद 275 के अनुसार केंद्र सरकार राज्यों को जनजातीय कल्याण के लिए विशेष धनराशि देगी।
  2. अनुच्छेद 325 के अनुसार सभी को (जनजातियों को भी) वयस्क मताधिकार प्राप्त है।
  3. अनुच्छेद 330 व 332 के अनुसार वर्तमान समय में अनुसूचित जातियों के लिए लोकसभा में 41 तथा राज्यों की विधानसभाओं में 527 स्थान आरक्षित हैं।
  4. अनुच्छेद 335 के अनुसार जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में 7.5% स्थान आरक्षित हैं।
  5. अनुच्छेद 338 के अनुसार राष्ट्रपति अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति करेगा जो प्रत्येक वर्ष राष्ट्रपति को रिपोर्ट करेगा।

प्रश्न 11.
पहली पंचवर्षीय योजना के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
1951 में जब पहली पंचवर्षीय योजना शुरू हुई तो उस समय देश विभाजन तथा द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से आर्थिक संकट से गुजर रहा था। इसलिए पहली पंचवर्षीय योजना के निम्नलिखित मुख्य उदेश्य रखे गए

  • देश में कृषि व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाएगा।
  • देश में कृषि का विकास किया जाएगा ताकि देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्म-निर्भर हो सके।
  • ज्यादा से ज्यादा समाज कल्याण के कार्यक्रम बनाना।
  • औद्योगिक विकास को बढ़ाना।
  • रोज़गार बढ़ाने वाले क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देना।
  • विस्थापितों के पुनर्वास के लिए ज्यादा से ज्यादा काम करना।

इस योजना के बजट 1960 करोड़ में से 45% राशि कृषि पर खर्च की गई। प्रथम योजना में विकास दर का लक्ष्य 2.2% रखा गया पर 3.7% तक विकास दर पहुँच गई थी।

प्रश्न 12.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के क्या लक्ष्य थे?
उत्तर:
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के लिए प्रमुख लक्ष्य था तेज़ गति से देश का औद्योगीकरण करना। इसके लिए 1956 में औद्योगिक नीति की घोषणा भी की गई। इसके लक्ष्य निम्नलिखित थे-

  • तेज़ गति से देश का औद्योगीकरण करना।
  • मूल तथा बड़े उद्योगों की स्थापना पर बल दिया जाए ताकि भारतीय समाज में समाजवादी अर्थव्यवस्था का विकास किया जा सके।
  • उद्योगों का विकास ताकि रोज़गार के साधनों का ज्यादा विकास हो सके।
  • राष्ट्रीय आय तथा देश के लोगों के रहन-सहन में वृद्धि करना।
  • आर्थिक साधनों का देश की जनता में समान रूप में वितरण करना।

इसके लिए दूसरी पंचवर्षीय योजना में 4672 करोड़ रुपये खर्च किए गए। विकास दर का लक्ष्य 46% रखा गया पर उपलब्धि 4.2% ही रही। छोटे बड़े उद्योगों में 14,000 विस्थापितों को नौकरियां दी गईं तथा 22,000 लोगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए गए।

प्रश्न 13.
तीसरी पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
तीसरी पंचवर्षीय योजना में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य रखा गया तथा कृषि तथा औद्योगिक विकास की दर को बढ़ाने का प्रयास किया गया।

  • देश को कृषि के उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना।
  • कृषि तथा औद्योगिक विकास की दर को बढाना।
  • राष्ट्रीय आय में वृद्धि ताकि देश में चल रही योजनाओं को पूरा किया जा सके।
  • रोजगार के साधन बढ़ाने में प्रयास करना।
  • देश की उन्नति के लिए अवसर उपलब्ध करवाना।
  • उद्योगों के लिए बिजली, ईंधन इत्यादि उपलब्ध करवाना ताकि ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जा सके।

इस पूरी योजना के दौरान ₹ 8577 करोड़ खर्च किए गए। विकास दर का लक्ष्य तो 5% का था पर उपलब्धि 2.8% ही रही। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज कल्याण इत्यादि के लिए काफ़ी पैसा रखा गया ताकि देश के औद्योगिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास भी हो सके।

प्रश्न 14.
चौथी पंचवर्षीय योजना के क्या लक्ष्य थे?
उत्तर:
चौथी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1969-1974 तक का था। इसके अंतर्गत निम्नलिखित लक्ष्य रखे गए-

  • कृषि उत्पादन में और साधनों को लगाना ताकि खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हो सके।
  • परिवहन उद्योगों तथा शक्ति, बिजली इत्यादि के साधनों को विकसित करना।
  • ग्रामीण जनता की आय बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादन पर ज्यादा ज़ोर देना।
  • निर्यात बढ़ाने तथा आयात कम करने के लिए प्रयास करना।
  • ग्रामीणों को अधिक सुविधाएं प्रदान करना।

इस कार्यकाल में ₹ 15,779 करोड़ खर्च किए गए तथा देश में विकास की दर का लक्ष्य 5.5% रखा गया था पर उपलब्धि 3.4% थी।

प्रश्न 15.
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के क्या लक्ष्य थे?
उत्तर:
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1974-79 था तथा इसमें निम्नलिखित उद्देश्य थे-

  • पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का प्रमुख लक्ष्य गरीबी हटाओ था।
  • एक और लक्ष्य देश को आत्मनिर्भर बनाना था।
  • देश में वृद्धि का लक्ष्य 5.5% रखा गया।
  • जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने की कोशिश करना।
  • गरीब लोगों को सस्ते दामों पर अनाज उपलब्ध करवाना।
  • निर्यात बढ़ाने तथा आयात कम करने पर बल देना।
  • समाज में बढ़ रही आर्थिक असमानताओं को कम करना।

इस योजना के अंतर्गत ₹ 39426 करोड़ खर्च किए गए। विकास दर के लिए लक्ष्य 5.5% रखा गया पर उपलब्धि 5% ही थी। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों व ग्रामीण उदयोगों के विकास पर काफ़ी ध्यान दिया गया।

प्रश्न 16.
छठी पंचवर्षीय योजना में कौन-से प्रमुख लक्ष्य रखे गए थे?
उत्तर:
छठी पंचवर्षीय योजना दो बार बनी थी। पाँचवीं योजना केंद्र में सरकार बदलने के कारण 1979 की बजाए 1978 में ही खत्म कर दी गई। जनता पार्टी ने छठी योजना (1978-83) को लागू किया पर 1980 में फिर सरकार पुनः परिवर्तित हो गई जिस वजह से 1980-85 के लिए छठी पंचवर्षीय योजना बनाई गई जिसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य ग़रीबी उन्मूलन (Poverty Eradication) था।
  • बढ़ रही जनसंख्या पर नियंत्रण लगाना।
  • शक्ति के देसी साधनों का विकास करना।
  • आर्थिक तथा क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना।
  • दो प्रमुख समस्याओं ग़रीबी तथा बेरोज़गारी को कम करना।
  • विकास दर को ठीक तरीके से बढ़ाना जो कि 5.2% रखी गई थी।
  • विकास कार्यों में सभी क्षेत्रों की भागीदारी तथा सभी लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करना।

छठी पंचवर्षीय योजना की पूरी अवधि के दौरान ₹ 1,10,467 करोड़ खर्च किए गए। विकास दर का लक्ष्य 5.2% पर रखा गया था पर यह दर असल में 5.5% पर रही थी।

प्रश्न 17.
सातवीं पंचवर्षीय योजना के प्रमुख लक्ष्यों के बारे में बताओ।
उत्तर:
सातवीं विकास योजना 1985 में शुरू होकर 1990 तक चली। इस योजना ने विकास, आधुनिकीकरण जैसे सिद्धांतों को मुख्य रूप से सामने रखा तथा अग्रलिखित लक्ष्य रखे गए-

  • मुख्य लक्ष्य ग़रीबी उन्मूलन रखा गया।
  • बेरोज़गारी में कमी लाने के प्रयास किए जाएंगे।
  • विकास दर को तेज़ किया जाएगा।
  • उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे।
  • ग़रीबी को कम करने के प्रयास किए जाएंगे।

इस अवधि के दौरान 2,21,436 करोड़ रुपये खर्च किए गए तथा 5% की विकास दर का लक्ष्य रखा गया था पर प्राप्ति 5.8% थी। इस दौरान गरीबी हटाने के काफी प्रयास किए गए। समाज सुधार पर काफ़ी पैसे खर्च किए गए तथा ग़रीबी हटाने के भी काफी प्रयास किए गए।

प्रश्न 18.
आठवीं पंचवर्षीय योजना के क्या उद्देदश्य थे?
उत्तर:
आठवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 1992-97 थी। चाहे सातवीं योजना 1990 में ही खत्म हो गई थी पर 1990-92 के दौरान केंद्र में सरकार में परिवर्तनों तथा अन्य कारणों की वजह से यह योजना 1990 में लागू न हो सकी तथा 1992 में लागू हुई। इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • भारतीय समाज में परिवर्तन के लिए इस योजना में प्रावधान किए गए।
  • महिलाओं के सशक्तिकरण, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों में उत्थान के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे।
  • ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • लोगों में साक्षरता दर बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे। 15-25 वर्ष की आयु के अनपढ़ लोगों को साक्षर बनाया जाएगा।
  • सभी गांवों में साफ पीने के पानी का प्रबंध तथा प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध करवाना।
  • खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ना ताकि निर्यात बढ़ाया जा सके।
  • परिवहन, संचार के साधनों का विकास करना।
  • विदेशी निवेश को बढ़ावा देना।

आठवीं योजना के अंतर्गत 4,74,121 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस योजना में विकास दर का लक्ष्य 5.6% रखा गया था पर उपलब्ध हुई थी 6.6%। इसका मतलब इस योजना में विकास दर काफ़ी तेजी से बढ़ी थी।

प्रश्न 19.
नौवीं पंचवर्षीय योजना में क्या लक्ष्य रखे गए थे?
उत्तर:
नौवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1997 से 2002 तक का था। इस योजना में अग्रलिखित लक्ष्य रखे गए थे-

  • इसमें कृषि व ग्रामीण विकास मुख्य उद्देश्य रखे गए।
  • सभी वर्गों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाएगी।
  • जनसंख्या वृद्धि को रोकने के प्रयास किए जाएंगे।
  • पिछड़े वर्गों का सशक्तिकरण किया जाएगा।
  • लोगों की पंचायती राज संस्थाओं में भागीदारी बढ़ायी जाएगी।
  • केंद्र तथा राज्य सरकारों के राजस्व घाटे को कम किया जाएगा।
  • सरकार की वित्तीय हालत को सुधारने के प्रयास किए जाएंगे।
  • निर्यात बढ़ाने के लिए नीति निर्माण किया जाएगा।

इसी योजना के दौरान राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 तथा स्वास्थ्य नीति 2001 का निर्माण किया गया था। इस योजना के दौरान 8,59,200 करोड़ रुपये खर्च किए गए। विकास दर का लक्ष्य 6.5% रखा गया था क्योंकि पिछली योजना में 6.6% की दर को प्राप्त किया गया था पर इस बार प्राप्ति की दर 5.5% रही जोकि लक्ष्य में काफ़ी पीछे थी।

प्रश्न 20.
दसवीं पंचवर्षीय योजना के क्या उद्देश्य रखे गए थे?
उत्तर:
दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002 में शुरू हुई थी। इसमें कुल 15,92,300 करोड़ रुपये 2007 तक खर्च करने का प्रावधान है। इस अवधि में विकास दर का लक्ष्य 8% निर्धारित किया गया है। इस पंचवर्षीय योजना में भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं में निश्चित परिवर्तन लाने के लिए निम्नलिखित लक्ष्य तय किये गए-

  • साक्षरता दर 75% प्राप्त करना ताकि लोगों का सार्वभौमिक विकास हो सके।
  • शिशु, मृत्युदर 45% प्राप्त करना।
  • मातृ मृत्युदर 2% पहुँचाना।
  • सभी प्रमुख नदियों तथा दूषित नदियों की सफ़ाई करना।
  • पंचायती राज को मज़बूत करने के प्रयास करने।
  • वाणिज्य तथा उद्योगों को बढ़ावा देना ताकि देश का औद्योगिक विकास हो सके।
  • 2007 तक ग़रीबी अनुपात कम करने के प्रयास करने तथा ज्यादा से ज्यादा लोगों को ग़रीबी की रेखा से ऊपर उठाना।
  • विद्युत् क्षमता को बढ़ावा देना ताकि देश विद्युत् (Electricity) के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सके।

प्रश्न 21.
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों की विवेचना करें।
उत्तर:

  1. सरकार ने देश का सर्वपक्षीय विकास करने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं शुरू की। इसलिए ही देश का विकास हो पाया है।
  2. पंचवर्षीय योजनाएं शुरू होने से ही देश का औद्योगिक विकास हुआ है तथा देश के कोने-कोने में उद्योग स्थापित हो गए हैं।
  3. पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए पैसा तथा प्रावधान रखे गए जिस कारण देश का कृषि उत्पादन काफ़ी बढ़ गया है।
  4. स्वतंत्रता के समय देश के आर्थिक विकास की दर कुछ भी नहीं थी। परंतु पंचवर्षीय योजनाओं के कारण अब यह 9% तक पहुंच गई है।
  5. पंचवर्षीय योजनाओं में महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के प्रावधान रखे गए जिस कारण इनकी सामाजिक स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आया है।

प्रश्न 22.
स्वतंत्र भारत के किन्हीं चार सामाजिक विधानों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में बने मुख्य सामाजिक विधानों की व्याख्या करें।
उत्तर:

  1. अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955-इस विधान के अनुसार देश में अस्पृश्यता के प्रयोग को गैर कानूनी घोषित किया गया तथा प्रयोग करने वाले के विरुद्ध दंड का प्रावधान रखा गया।
  2. हिंदू विवाह कानून 1955-इस विधान के अनुसार देश में एक से अधिक विवाह करवाना गैर कानूनी घोषित किया गया तथा एक विवाह को मान्यता दी गई।
  3. दहेज निरोधक कानून 1961-इस विधान के अनुसार किसी के लिए भी दहेज लेना तथा देना गैर-कानूनी घोषित किया गया।
  4. हिंदू दत्तक पुत्र गोद लेने का कानून 1950-इस विधान के अनुसार हिंदुओं को पुत्र गोद लेने की आज्ञा दी गई।

प्रश्न 23.
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विकेंद्रीकरण की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विकेंद्रीकरण का अर्थ है देश में शक्तियों का विभाजन अर्थात् शक्तियों को उच्च स्तर से लेकर निम्न स्तर तक इस प्रकार विभाजित कर दिया जाए कि कार्य करते समय कोई समस्या ही न रहे। इस कारण ही देश की अर्थव्यवस्था में विकेंद्रीकरण की काफ़ी बड़ी भूमिका है। अगर अर्थव्यवस्था में कोई प्रतिबंध नहीं होंगे तथा इसमें लचकीलापन होगा तो देश का आर्थिक विकास निश्चित होगा।

देश के आर्थिक विकास के लिए अलग-अलग स्तरों पर आर्थिक शक्तियों का विभाजन भी आवश्यक है ताकि आर्थिक कार्य करते समय कोई बाधा न आए तथा यह तो अर्थव्यवस्था में विकेंद्रीयकरण के कारण ही मुमकिन है। मुक्त अर्थव्यवस्था से भी आर्थिक विकास मुमकिन हो पाएगा।

प्रश्न 24.
पंचायती राज की तीन स्तरीय व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
अथवा
किस प्रकार स्थानीय स्वैः सरकार गाँव के स्तर पर कार्य करती है?
अथवा
पंचायती राज का क्या अर्थ है?
अथवा
त्रि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली की व्याख्या कीजिए।
अथवा
नई पंचायती राज व्यवस्था क्या है?
उत्तर:
73वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार पंचायती राज्य में तीन स्तरीय ढाँचे की व्यवस्था की गई है। गाँव के स्तर पर लोकतंत्र की सबसे पहली संस्था अर्थात् ग्राम सभा है जोकि गाँव के सभी बालिगों की सभा है तथा वह यह ग्राम सभा ही पंचायत तथा सरपंच का चुनाव करती है। पंचायत गाँव के हितों तथा आवश्यकताओं का ध्यान रखती है। दूसरा स्तर है पंचायत समिति का ब्लॉक स्तर पर तथा ब्लॉक की सभी पंचायतें इसकी सदस्य होती हैं।

यह अपने क्षेत्र में आने वाली पंचायतों का कार्य देखती है। इसका एक चेयरमैन तथा कई चुने हुए तथा मनोनीत सदस्य होते हैं। तीसरा स्तर होता है ज़िला परिषद् का जोकि जिले के स्तर पर होता है। एक जिले की सभी पंचायत समितियाँ इसकी सदस्य होती हैं। एम० पी०. एम० एल० ए०. कमिश्नर इत्यादि अपने पद के कारण इसके सद कुछ चुने हुए सदस्य भी होते हैं। जिला परिषद् अपने क्षेत्र में आने वाली ब्लॉक समितियों तथा पंचायतों द्वारा किए गए कार्यों की देख-रेख करती है।

प्रश्न 25.
ग्राम सभा क्या होती है? इसके कौन-से कार्य होते हैं?
अथवा
ग्राम सभा क्या होती है?
उत्तर:
ग्राम सभा गाँव के सभी बालिग व्यक्तियों की एक सभा है जो सरपंच तथा पंचायत का चुनाव अपने वोट डालने के अधिकार के द्वारा करती है। ग्राम सभा कई प्रकार के कार्य करती है जैसे कि-

  • ग्राम सभा सरपंच, पंचायत तथा इसके सदस्यों का चुनाव करती है।
  • सरपंच ग्राम सभा में पंचायत का बजट पेश करता है तथा ग्राम सभा उसके ऊपर चर्चा करती है।
  • यह गाँव में किए जाने वाले विकास कार्यों के बारे में निर्णल लेती है।
  • यह पंचायत से गाँव से संबंधित किसी भी विषय पर प्रश्न पूछ सकती है।

प्रश्न 26.
स्थानीय स्वैः सरकार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहाँ पर बहुत से भाषायी, जातीय तथा धार्मिक समूह होते हैं, स्थानीय स्वैः सरकार का निम्नलिखित कारणों के कारण बहुत महत्त्व है-

  • स्थानीय हितों से संबंधित मुद्दे स्थानीय लोगों द्वारा ही समझे जा सकते हैं जैसे कि पानी का प्रबंध, सड़कों की सफ़ाई तथा रोशनी इत्यादि। इसलिए स्थानीय स्वैः सरकार का बहुत महत्त्व है।
  • स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक कार्य करने से लोगों को स्थानीय सरकार के बारे में काफ़ी जानकारी प्राप्त होती
  • स्थानीय कार्य स्थानीय सरकार द्वारा कम लागत पर अच्छे ढंग से हो सकते हैं।

प्रश्न 27.
ग्राम पंचायत के प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
अथवा
पंचायत की दो महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. ग्राम पंचायत का सबसे पहला कार्य गांव के लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना होता है।
  2. गांव की पंचायत गांव में स्कूल खुलवाने तथा लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती
  3. ग्राम पंचायत ग्रामीण समाज में मनोरंजन के साधन जैसे कि फ़िल्में, मेले लगवाने तथा लाइब्रेरी खुलवाने का भी प्रबंध करती है।
  4. पंचायत लोगों को कृषि की नई तकनीकों के बारे में बताती है, नए बीजों, उन्नत उर्वरकों का भी प्रबंध करती
  5. यह गांव में कुएं, ट्यूबवैल इत्यादि लगवाने का प्रबंध करती है तथा नदियों के पानी की भी व्यवस्था करती
  6. यह गांवों का औद्योगिक विकास करने के लिए गांव में उद्योग लगवाने का भी प्रबंध करती है।

प्रश्न 28.
न्याय पंचायत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
गांवों के लोगों में झगड़े होते रहते हैं जिस कारण उनके झगड़ों का निपटारा करना आवश्यक होता है। इसलिए 5-10 ग्राम सभाओं के लिए एक न्याय पंचायत का निर्माण किया जाता है। न्याय पंचायत लोगों के बीच होने वाले झगडों को खत्म करने में सहायता करती है। इसके सदस्य चने जाते हैं तथा सरपंच पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाता है। इन सदस्यों को पंचायत से प्रश्न पूछने का भी अधिकार होता है।

प्रश्न 29.
पंचायत समिति अथवा ब्लॉक समिति के बारे में बताएं।
अथवा
पंचायत समिति किसे कहते हैं?
अथवा
पंचायत समिति क्या है?
उत्तर:
पंचायती राज्य संस्थाओं के तीन स्तर होते हैं। सबसे निचले गांव के स्तर पर पंचायत होती है। दूसरा स्तर ब्लॉक का होता है। जहां पर ब्लॉक समिति अथवा पंचायत समिति का निर्माण किया जाता है। एक ब्लॉक में आने वाली पंचायतें, पंचायत समिति के सदस्य होते हैं तथा इन पंचायतों के प्रधान अथवा सरपंच इसके सदस्य होते हैं।

पंचायत समिति के इन सदस्यों के अतिरिक्त और सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है। पंचायत समिति अपने क्षेत्र में आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह गांवों के विकास के कार्यक्रमों को चैक करती है तथा पंचायतों को गांव के कल्याण करने के लिए निर्देश देती है। यह पंचायती राज्य के दूसरे स्तर पर है।

प्रश्न 30.
जिला परिषद् का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पंचायती राज्य के सबसे ऊंचे स्तर पर है जिला परिषद् जो कि जिले के बीच आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह भी एक प्रकार की कार्यकारी संस्था होती है। पंचायत समितियों के चेयरमैन चुने हुए सदस्य, उस क्षेत्र के लोक सभा, राज्य सभा तथा विधान सभा के सदस्य सभी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। यह सभी जिले में आने वाले गांवों के विकास का ध्यान रखते हैं। जिला परिषद् कृषि में सुधार, ग्रामीण बिजलीकरण, भूमि सुधार, सिंचाई, बीजों तथा उर्वरकों को उपलब्ध करवाना, शिक्षा, उद्योग लगवाने जैसे कार्य करती है।

प्रश्न 31.
पंचायती राज्य की समस्याएं बताएं।
उत्तर:

  1. लोगों के अनपढ़ तथा अंधविश्वासों में फंसे हुए होने के कारण वह परिवर्तन को जल्दी स्वीकार नहीं करते जो पंचायती राज्य संस्थाओं के रास्ते में सबसे बड़ी समस्या है।
  2. गांवों में अच्छे तथा ईमानदार नेताओं की कमी होती है तथा वह केवल अपने विकास पर ही ध्यान देते हैं गांवों के विकास पर नहीं।
  3. अच्छे पढ़े-लिखे लोग धीरे-धीरे शहरों में बस रहे हैं जिससे गांव में पढ़े-लिखे नेताओं की कमी है।
  4. सरकारी अफ़सर, पंचों तथा सरपंचों से मिलकर गांव को मिलने वाले ज्यादातर पैसे को स्वयं ही खा जाते हैं तथा गांव का विकास रुक जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 32.
सरपंच के बारे में कुछ बताएं।
उत्तर:
ग्रामे पंचायत के मुखिया को सरपंच अथवा चेयरपर्सन कहा जाता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे कि अध्यक्ष, प्रैजीडेंट, सरपंच, मुखिया, प्रधान, सभापति इत्यादि। अधिकतर राज्यों में सरपंच का चुनाव प्रत्यक्ष तथा सीधे तौर पर किया जाता है अर्थात् ग्राम सभा के जिन सदस्यों को वोट देने का अधिकार प्राप्त है तथा जो ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करते हैं, वह वोटर ही ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव भी करते हैं। सरपंच पंचायत की बैठकों की अध्यक्षता करता है। वह सरकार द्वारा मिले पैसे को गांव के विकास कार्यों में लगाता है तथा गांव के सर्वपक्षीय विकास का प्रयास करता है।

प्रश्न 33.
ग्राम पंचायत की आय के साधन के बारे में बताएं।
उत्तर:

  1. पंचायत को राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त टैक्स लगाने का अधिकार प्राप्त है जैसे कि संपत्ति कर, पश कर, पेशा कर, मार्ग कर, चंगी कर इत्यादि इनसे उसे आय होती है।
  2. ग्राम पंचायत कई प्रकार के जुर्माने भी लगा सकती है तथा फ़ीस भी इकट्ठी कर सकती है जिससे उसे आय प्राप्त होती है।
  3. पंचायतों को प्रत्येक वर्ष सरकार से ग्रांटें प्राप्त होती हैं जिससे उसकी आय बढ़ती है।
  4. पंचायत को कड़ा-कर्कट, गोबर बेचने से आय, मेलों से आय, पंचायत की संपत्ति से भी आय प्राप्त हो जाती है।
  5. इनके अतिरिक्त यह राज्य सरकार की मंजूरी से कर्जा भी ले सकती है।

प्रश्न 34.
73वें संवैधानिक संशोधन की कुछ विशेषताएं बताएं।
उत्तर:
1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन किया गया तथा इसमें स्थानीय सरकार से संबंधित कुछ प्रावधान किए गए। इस संशोधन की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • अब पंचायती राज्य में तीन स्तरीय ढाँचा स्थापित किया गया है तथा यह है गाँव के लिए पंचायत, ब्लॉक के लिए ब्लॉक समिति तथा जिले के लिए जिला परिषद्।
  • अब स्थानीय सरकारों के लिए हरेक 5 वर्ष बाद चुनाव करवाना ज़रूरी कर दिया गया।
  • स्थानीय सरकारों की कुल सीटों में से 1/3 स्थान स्त्रियों के लिए आरक्षित कर दिए गए।
  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुसार स्थान आरक्षित रखे गए।
  • एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया ताकि स्वतंत्र चुनाव करवाए जा सकें।

प्रश्न 35.
दबाव समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
दबाव समूह संगठित अथवा असंगठित समूह होते हैं जो सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। आंदोलन भी राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं परंतु दोनों ही प्रत्यक्ष रूप से चुनाव में भाग नहीं लेते। दोनों ही एक अथवा दूसरे ढंग से राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। दोनों ही निम्नलिखित ढंगों से राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं
(i) यह दबाव समूह तथा आंदोलन किसी विशेष मुद्दे पर आंदोलन चलाते हैं ताकि जनता का समर्थन हासिल किया जा सके। यह दोनों ही संचार माध्यमों की सहायता लेते हैं ताकि जनता का ध्यान अधिक-से-अधिक खींचा जा सके।

(ii) यह साधारणतया हड़ताल करवाते हैं, रोषमार्च निकालते हैं तथा सरकारी कार्यों में बाधा पहुँचाने का प्रयास करते हैं। यह हड़ताल की घोषणा करते हैं तथा धरने पर बैठते हैं ताकि अपनी आवाज़ उठा सकें। अधिकतर फैडरेशन तथा यूनियनें सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए यही ढंग प्रयोग करते हैं।

(iii) साधारणतया व्यापारी समूह लॉबी का निर्माण करते हैं जिसके कुछ आम हित होते हैं ताकि सरकार पर उसकी नीतियाँ बदलने के लिए दबाव बनाया जा सके।

प्रश्न 36.
दबाब समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधों का स्वरूप कैसा होता है, वर्णन करें।
उत्तर:
साधारणतया दबाव समूह कुछ लोगों के समूह होते हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। उनके कुछ उद्देश्य होते हैं तथा वह सरकार पर दबाव डालकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयास करते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य सरकारी नीतियों को प्रभावित करना होता है।

साधारणतया इन समूहों के सदस्य वह लोग होते हैं जिनके कुछ सामान्य हित, उद्देश्य होते हैं। यह कभी भी चुनाव लड़ने का प्रयास नहीं करते परंतु इनके अपने ही कुछ विचार होते हैं। राजनीतिक दलों तथा दबाव समूहों के आपसी संबंधों का स्वरूप अग्रलिखित प्रकार का होता है-
(i) कई केसों में यह दबाव समूह राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए तथा निर्देशित किए जाते हैं। तब यह दबाव समूह उन राजनीतिक दलों की बाजुओं के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरण के तौर पर अलग-अलग राजनीतिक दलों द्वारा बनाई गई लेबर यूनियनें।

(ii) कई बार आंदोलन ही राजनीतिक दलों को जन्म दे देते हैं। अगर आंदोलन के उद्देश्य अधिक खिंच जाए तो कई बार यह राजनीतिक दल का भी रूप ले लेते हैं। उदाहरण के तौर पर DMK तथा AIADMK की जड़ें भी आंदोलनों से ही निकली हैं।

(iii) कई बार राजनीतिक दल तथा हित समूह एक-दूसरे के विरुद्ध आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। तब उनमें प्रत्यक्ष रिश्ते नहीं होते बल्कि उनमें बातचीत होती है। उनके विचार एक-दूसरे के विपरीत होते हैं।

प्रश्न 37.
दबाव समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती है?
अथवा
क्या दबाव समूह तथा आंदोलनों का प्रभाव लोकतंत्र के लिए अच्छा है? टिप्पणी करें।
उत्तर:
दबाव समूह कुछ लोगों का समूह है जो अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं। समान हितों, पेशों से संबंधित लोग इस प्रकार के समूह का निर्माण करते हैं। शुरुआत में तो यह ही लगता है कि दबाब समूह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है क्योंकि ये किसी विशेष समूह के हितों को प्राप्त करने के लिए सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं। लोकतंत्र में सरकार को समाज के सभी समूहों में हितों का ध्यान रखना पड़ता है।

इनके विरुद्ध एक और कारक यह जाता है कि यह समूह सत्ता को हथियाने का प्रयास तो करते हैं परंतु बिना किसी उत्तरदायित्व के लिए। राजनीतिक दलों की तरह यह समूह चुनाव में जनता के सामने आने को बाध्य नहीं होते तथा ये किसी के प्रति ज़िम्मेदार भी नहीं होते। ये जनता में किसी प्रकार का समर्थन तथा धन भी नहीं लेते हैं। कई बार तो ये अपने संकीर्ण दृष्टिकोण के लिए, अपनी संपदा के बल पर जनता के का प्रयास करते हैं।

परंतु दूसरी तरफ दबाव समूह तथा आंदोलन लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी होते हैं। अगर देश में सभी को समान अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हैं तो यह समाज के लिए ठीक नहीं है। साधारणतया सरकार अमीर तथा प्रभावशाली लोगों के दबाव में आ जाती है। आंदोलन तथा जल-कल्याण समूह इस समय इस नियंत्रण को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं तथा यह समय-समय पर सरकार को आम जनता की आवश्यकताओं के बारे में बता सकते हैं।

यहाँ तक कि अलग-अलग हित समूह भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अगर एक हित समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सरकार पर दबाव डालता है तो दूसरा समूह इसके विरुद्ध जा सकता है तथा पहले समूह के रास्ते में रोड़े अटका सकता है। यहाँ से ही सरकार को जनता की आवश्यकताओं का पता चल जाता है तथा वह अलग-अलग हितों वाले समूहों के हितों का ध्यान रखती है।

प्रश्न 38.
दबाव समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है?
अथवा
राजनीतिक दल तथा दवाब समूह में क्या अंतर है?
उत्तर:
एक दबाव समूह संगठित अथवा असंगठित समूह हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। इनके कुछ उद्देश्य होते हैं तथा यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं। साधारणतया इन समूहों के सदस्यों के कुछ सामान्य हित होते हैं।

यह अपने प्रभाव के कारण सत्ता को अपने नियंत्रण में रखते हैं। परंतु राजनीतिक दल एक संगठित संस्था है जो प्रत्यक्ष रूप से चुनाव लड़कर तथा विचारधारा को जीतकर देश की राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। एक राजनीतिक दल के सदस्यों की विचारधारा तथा उद्देश्य एक जैसे ही होते हैं।

दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि दबाव समूह कभी भी प्रत्यक्ष रूप से चुनाव नहीं लड़ता बल्कि यह पिछले दरवाज़े से सत्ता को नियंत्रण में रखते हैं। परंतु, दूसरी तरफ राजनीतिक दल प्रत्यक्ष रूप से चुनाव लड़कर सत्ता को अपने हाथों में लेने का प्रयास करते हैं। दबाव समूह संगठित भी हो सकते हैं तथा असंगठित भी परंतु राजनीतिक दल हमेशा ही संगठित समूह होते हैं।

प्रश्न 39.
लोकतंत्र का क्या अर्थ है?
उत्तर:
लोकतंत्र सरकार का ही एक प्रकार है जिसमें जनता शासन चलता है। इसमें जनता के प्रतिनिधि साधारण जनता में बालिगों के वोट देने के अधिकार से चुने जाते हैं तथा यह प्रतिनिधि ही जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा उनकी तरफ से बोलते हैं। यह कई संकल्पों जैसे कि समानता, स्वतंत्रा तथा भाईचारे में विश्वास रखता है तथा यह ही इसमें कार्यवाहक आधार हैं। इसके पीछे मूल विचार यह है कि समाज में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता होनी चाहिए।

इसमें हरेक व्यक्ति को संविधान के अनुसार बोलने तथा संगठन बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। समाज तथा व्यक्ति के संपूर्ण विकास के लिए इसमें कार्यवाहक आधार हैं। इसके पीछे मूल विचार यह है कि समाज में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता होनी चाहिए। इसमें हरेक व्यक्ति को संविधान के अनुसार बोलने तथा संगठन बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। समाज तथा व्यक्ति के संपूर्ण विकास के लिए इसमें पूर्ण क्षमता होनी चाहिए।

प्रश्न 40.
राजनीतिक दल की कोई चार विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  1. प्रत्येक राजनीतिक दल की भिन्न-भिन्न नीतियां होती हैं।
  2. प्रत्येक दल के सदस्य अच्छी तरह संगठित होते हैं और वह दल भी अच्छी तरह से संगठित व सुदृढ़ होता
  3. इसके सभी सदस्य एक ही नीति पर विश्वास करते हैं।
  4. इनके सदस्यों का एक साझा कार्यक्रम होता है।
  5. प्रत्येक अच्छा राजनीतिक दल देश के हितों का ध्यान रखता है।

प्रश्न 41.
राजनीतिक दलों के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर:

  1. यह लोकमत बनाते हैं।
  2. यह राजनीतिक शिक्षा देते हैं।
  3. यह उम्मीदवार चुनने में सहायता करते हैं।
  4. यह लोगों की कठिनाइयों को सब तक पहुंचाते हैं।
  5. यह राष्ट्रीय हितों को महत्त्व देते हैं।

प्रश्न 42.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का संक्षिप्त वर्णन है-
हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता; प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई० (मिति मार्गशीर्ष शुल्क सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
73वें संवैधानिक संशोधन में पंचायती राज्य संबंधी विशेषताओं का वर्णन करो।
(Explain the characteristics of Panchayati Raj according to 73rd constitutional amendment.)
अथवा
नई पंचायती राज प्रणाली की विशेषताओं की व्याख्या करें।
अथवा
पंचायती राज के आदर्शों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिसंबर, 1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन संसद् में पास हुआ तथा अप्रैल, 1993 में राष्ट्रपति ने इस संशोधन को मान्यता दे दी। इस संवैधानिक संशोधन द्वारा जो पंचायती राज्य प्रणाली स्थापित की गयी, उसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) 73वीं संवैधानिक संशोधन से पहले स्थानीय स्तर पर स्वः शासन के संबंध में संविधान में कोई व्यवस्था नहीं थी। इस संशोधन से संविधान में नयी अनुसूची तथा नया भाग जोड़ा गया। इस अनुसूची तथा भाग में संपूर्ण व्यवस्थाएं पंचायती राज्य प्रणाली से संबंधित हैं कि नयी व्यवस्था में किस तरह की व्यवस्थाएं हैं।

(2) इस संशोधन से संविधान में ग्राम सभा की परिभाषा दी गई है जिसके अनुसार पंचायत के क्षेत्र में आने वाले गांव या गांव के जिन लोगों का नाम वोटर सूची में दर्ज है, वह सभी लोग ग्राम सभा के सदस्य होंगे। राज्य विधानमंडल कानून द्वारा ग्राम सभा की व्यवस्था कर सकता है तथा उसको कुछ कार्य सौंप सकता है। इस तरह ग्राम सभा की स्थापना राज्य विधानमंडल की तरफ से पास किए गए कानून के द्वारा होगी तथा वह ही उसके कार्य भी निश्चित करेगा।

(3) ग्राम सभा की परिभाषा के साथ ही पंचायत की परिभाषा दी गयी है तथा कहा गया कि पंचायत स्वैः-शासन पर आधारित ऐसी संस्था है जिसकी स्थापना ग्रामीण क्षेत्र में राज्य सरकार द्वारा की जाती है।

(4) इस संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि अब ग्रामीण क्षेत्र में स्वै-शासन की तीन स्तरीय पंचायती राज्य प्रणाली की स्थापना की जाएगी। सबसे निम्न स्तर गांव पर पंचायत, बीच के स्तर ब्लॉक पर ब्लॉक समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद् होगी परंतु राज्य सरकार इनको कोई और नाम भी दे सकती है।

(5) इस संवैधानिक संशोधन में यह कहा गया है कि नयी प्रणाली के अंतर्गत संपूर्ण जिले को पंचायती स्तर पर चुनाव क्षेत्रों में बाँटा जाएगा तथा पंचायतों, ब्लॉक समिति तथा जिला परिषद् के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होगा अर्थात् वह प्रत्यक्ष तौर पर लोगों द्वारा बालिग वोट अधिकार के आधार पर चुने जाएंगे।

(6) इस संशोधन के अनुसार पंचायत के अलग-अलग स्तरों पर चुनाव के लिए, वोटरों की संख्या तथा सूची तैयार करवाने की जिम्मेवारी राज्य चुनाव आयोग की होगी। इस आयोग में राज्य चुनाव कमिश्नर को राज्य का राज्यपाल नियुक्त करेगा। उसका कार्यकाल, सेवा की शर्ते इत्यादि भी राज्यपाल की तरफ से बनाए गए नियमों के अनुसार निश्चित किए जाएंगे। राज्य चुनाव कमिश्नर को उस तरीके से हटाया जा सकता है जैसे उच्च न्यायालय के जज को हटाया जा सकता है।

(7) गाँव की पंचायत के प्रधान के बारे में 73वीं शोध में यह व्यवस्था की गई है कि गाँव की पंचायत के प्रधान का चुनाव सीधे तौर पर लोगों द्वारा किया जाएगा।

(8) गाँव की पंचायत के प्रधान का चुनाव करने के साथ-साथ यह भी व्यवस्था की गई है कि पंचायत के प्रधान को उसके कार्यकाल खत्म होने से पहले भी हटाया जा सकता है और उसको हटाने का अधिकार ग्राम सभा को दिया गया है। ग्राम सभा सरपंच को तब ही उसके पद से हटा सकती है यदि उस क्षेत्र की पंचायत इस बात की सिफारिश करे। इस प्रकार की सिफ़ारिश के लिए यह ज़रूरी है कि उस सिफ़ारिश के पीछे पंचायत के सभी सदस्यों का बहुमत और मौजूदगी अनिवार्य है।

इसके लिए एक विशेष बैठक बुलाई जाएगी और इस बैठक में ग्राम सभा के 50% सदस्य होने ज़रूरी हैं। यदि इस बैठक में ग्राम सभा उस सिफ़ारिश को मौजूद सदस्यों के बहुमत के साथ पास कर दे तो सरपंच या प्रधान को हटाया जा सकता है।

(9) इसी तरह पंचायती समिति या ब्लॉक समिति और जिला परिषद् के सदस्य भी लोगों द्वारा चुने जाएंगे और इनके प्रधान इनके सदस्यों द्वारा और उनके बीच में से ही चुने जाएंगे। पंचायत की तरह इनके प्रधानों को भी हटाया जा सकता है। प्रधान को दो-तिहाई बहुमत से हटाया जा सकता है।

(10) इन तीनों स्तरों पर स्थान भी आरक्षित रखे गए हैं।

  • निम्न जातियों एवं कबीलों में प्रत्येक पंचायत में स्थान आरक्षित रखे गए हैं। आरक्षित करने की गिनती उनके उस क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में होगी।
  • इन आरक्षित स्थानों में एक-तिहाई सीटें औरतों के लिए आरक्षित रखी जाएंगी।
  • पंचायतों, ब्लॉक समितियों और जिला परिषदों में भी स्त्रियों के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित रखे जाएंगे। इसके साथ-साथ इन संस्थाओं के प्रधानों के लिए भी स्थान औरतों के लिए आर रखे जाएंगे।

(11) इस संशोधन के अनुसार इन सभी संस्थाओं का कार्यकाल 5 सालों के लिए निश्चित कर दिया गया। किसी भी संस्था का कार्यकाल 5 साल से ज्यादा नहीं हो सकता। यदि राज्य सरकार को किसी पंचायत के अव्यवस्थित प्रबंधन के बारे में पता चले तो वह उसको 5 साल से पहले ही भंग कर सकती है परंतु 6 महीने के अंदर उसका दोबारा चुनाव किया जाना जरूरी है। यदि कोई पंचायत 5 साल से पहले भंग हो तो नई चुनी गई पंचायत बाकी रहता कार्यकाल पूरा करेगी।

(12) यदि कोई व्यक्ति राज्य के कानून अधीन राज्य विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ सकता तो वह पंचायत का चुनाव भी नहीं लड़ सकता। परंतु यहाँ आयु में फ़र्क है। राज्य विधान सभा का चुनाव लड़ने हेतु 25 साल की उम्र होना आवश्यक है परंतु पंचायत के चुनाव के लिए 21 वर्ष की आयु निश्चित की गई है।

(13) राज्य विधानमंडल के कानून के अधीन पंचायत को कुछ अधिकार एवं ज़िम्मेदारियाँ दी जाएंगी। पंचायत को आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय हेतु योजनाएं तैयार करने और लागू करने के अधिकार दिए गए हैं।

(14) इसके साथ-साथ राज्य विधानमंडल कानून पास करके पंचायत को कुछ छोटे-छोटे टैक्स लगाने की शक्ति भी दे सकता है ताकि वह अपनी आमदनी में भी वृद्धि कर सकें। इसके साथ राज्य सरकार अपने द्वारा लगाए टैक्सों अथवा शल्कों में से कुछ हिस्सा पंचायतों को भी देगी और साथ ही उनको गांवों के विकास के लिए सहायता के रूप में ग्रांट देने की व्यवस्था भी करेगी।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि 73वीं संवैधानिक शोध द्वारा पंचायती राज के लिए कई महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएं की गई हैं जिसके साथ पंचायती राज्य की महत्ता काफ़ी बढ़ गई है। नई व्यवस्था को प्रभावशाली बनाने हेतु कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं और अब पंचायती राज्य प्रणाली काफ़ी प्रभावशाली बन गई है।

प्रश्न 2.
73वीं संवैधानिक संशोधन के अनुसार नई पंचायती राज प्रणाली की विशेषताएं लिखो।
अथवा
पंचायती राज व्यवस्था के अर्थ और संरचना की व्याख्या करें।
अथवा
पंचायती राज व्यवस्था पर निबंध लिखें।
अथवा
पंचायती राज संस्थाओं के गठन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में पंचायती राज संस्थाओं के विकास तथा गठन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
जनजातीय क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में नई पंचायती राज व्यवस्था लाग की गई। परे देश में पंचायती राज संस्थाओं में एकरूपता लाने के लिए संसद् में संवैधानिक संशोधन पेश किया गया। इसे 22 दिसंबर, 1992 को लोकसभा तथा 23 दिसंबर, 1992 को राज्यसभा ने पास कर दिया। 23 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति ने इसे अपनी स्वीकृति प्रदान की। इस नई पंचायती राज प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है-

(i) तीन स्तरीय संरचना (Three tier Structure)-73वें संवैधानिक संशोधन द्वारा पूरे देश के लिए पंचायतों की तीन स्तरीय संरचना का प्रावधान किया गया। यह तीन स्तर निम्नलिखित हैं-

  • ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर पर)
  • पंचायत समिति (ब्लॉक स्तर पर)
  • जिला परिषद् (जिला स्तर पर)।

(ii) बनावट (Composition)–तीनों स्तर की पंचायती राज संस्थाओं की सदस्य संख्या राज्य के विधानमंडल द्वारा तय की जाएगी। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत में एक प्रधान, एक उप-प्रधान होता है। पंचों की संख्या राज्य सरकार पर निर्भर करती है। हर राज्य में यह संख्या अलग-अलग है।

(iii) ग्राम सभा (Gram Sabha)-पंचायत के अंतर्गत जितने भी गांव आते हैं उन गांवों के लोगों के नाम मतदाता सूची में होते हैं। वे सब सामूहिक रूप से ग्राम सभा का निर्माण करते हैं। ग्राम सभा की स्थापना के लिए विभिन्न राज्यों में अलग-अलग जनसंख्या निर्धारित की है।

(iv) सदस्यों की योग्यताएं (Qualifications of Members)-पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष आवश्यक है। इसके अलावा चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग विधानसभा का चुनाव लड़ने के योग्य हों।

(v) प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Election) ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के सदस्यों का चुनाव अपने-अपने क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। मतदाता बनने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष है।

(vi) अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों का चुनाव (Election of Chairpersons and Vice Chairpersons)-714 पंचायत के प्रधान तथा उप प्रधान का चुनाव लोगों के द्वारा पंचों के साथ ही प्रत्यक्ष मतदान द्वारा किया जाता है। पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है अर्थात् पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के सदस्य अपने-अपने अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों का चुनाव करते हैं।

(vii) कार्यकाल (Tenure) प्रत्येक स्तर की पंचायती राज संस्था का कार्यकाल 5 वर्ष है। यह कार्यकाल पंचायतों की प्रथम बैठक की तिथि से प्रारम्भ होता है।

(viii) कार्य तथा शक्तियां (Functions and Powers)-राज्य विधानमंडल पंचायतों को निम्नलिखित विषयों से संबंधित कार्य सौंप सकता है

(a) 1 1वीं अनुसूची में अंकित विषयों से संबंधित कार्य
(b) सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास से संबंधित योजनाओं का निर्माण तथा कार्यान्वयन।

(ix) आरक्षण (Reservation) तीनों स्तर की पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान है। प्रत्येक स्तर की पंचायत में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित किए जाते हैं।

कुल स्थानों में से 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित हैं अर्थात् हरेक श्रेणी अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा सामान्य श्रेणी में से 1/3 स्थानों पर महिलाएं ही चुनाव लड़ सकती हैं। आरक्षित स्थानों के चुनाव क्षेत्रों में राज्य द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किया जाता है। आरक्षण संबंधी नियम अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष पद के लिए भी लागू होते हैं।

प्रश्न 3.
ग्राम सभा के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन करो।
उत्तर:
नयी पंचायत प्रणाली में सबसे पहले ग्राम सभा आती है। ग्राम सभा की सदस्यता प्राप्त करने के लिए कम से-कम आयु. 18 वर्ष है। ग्राम पंचायत के क्षेत्राधिकार में 18 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले सभी सदस्यों का नाम मतदाता सूची में अंकित कर दिया जाता है। परंतु उन व्यक्तियों का नाम मतदाता सूची में अंकित नहीं किया जाता जिन्हें पागल या दिवालिया घोषित किया हो। विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने कानून बना कर ग्राम सभा की सदस्य संख्या निर्धारित की है। कुछ राज्यों में ग्राम सभा की सदस्य संख्या अग्रलिखित है-

  • हिमाचल प्रदेश-1500-4500
  • हरियाणा-500-4500
  • पंजाब-200-4500.

अधिवेशन (Session)-ग्राम सभा का अधिवेशन एक वर्ष में कम-से-कम दो बार बुलाया जाना जरूरी है। अधिवेशन कब बुलाए जाएं इस संबंध में अपनी-अपनी व्यवस्था है। जैसे हिमाचल तथा राजस्थान में ग्राम सभा के अधिवेशन गर्मियों तथा सर्दियों में बुलाए जाते हैं। इनके अलावा ग्राम सभा के 1/5 सदस्यों की मांग पर विशेष अधिवेशन भी बुलाया जा सकता है। अधिवेशन में गणपूर्ति सदस्य की संख्या का 1/10 भाग है। इसलिए अधिवेशन में ग्राम सभा के 1/10 सदस्यों का होना ज़रूरी है। अधिवेशन की अध्यक्षता ग्राम पंचायत के प्रधान द्वारा की जाती है। इसका अध्यक्ष सरपंच होता है।

ग्राम सभा के कार्य-इसके कार्य तथा शक्तियां निम्नलिखित हैं-

  • ग्रामसभा अपनी आमदनी के अनुसार अपना साल का बजट पास करती है।
  • पंचायत द्वारा किए गए खर्चों की एक कापी ग्राम सभा को भी दी जाती है ताकि इसके अधिवेशन में इस रिर्पोट पर चर्चा हो सके।
  • ग्राम पंचायत कई प्रकार के कर लगाती है। पर उनकी मंजूरी ग्राम सभा द्वारा दी जाती है।
  • ग्राम सभा गांव के प्रधान, ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करती है।
  • ग्राम सभा ग्राम प्रधान को हटा भी सकती है।

इनके अलावा अपने क्षेत्र के विकास की योजनाएं बनाना, लोक कल्याण कार्यों के लिए स्वैच्छिक धन इकट्ठा करना इत्यादि ग्राम सभा के और प्रमुख कार्य हैं।

प्रश्न 4.
ग्राम पंचायत के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत पंचायतों को किन-किन शक्तियों से पुष्ट किया गया है?
अथवा
पंचायत क्या है? पंचायतों को कौन-कौन सी शक्तियां प्रदान की गई हैं?
उत्तर:
ग्राम पंचायत पंचायती राज संस्थाओं के तीन स्तरों में से सबसे निम्न स्तर पर है-
(i) गठन (Composition)-ग्राम पंचायत में एक प्रधान, एक उपप्रधान तथा 5-13 सदस्य होते हैं जिन्हें पंच कहा जाता है। अंतः प्रधान व उपप्रधान के साथ ग्राम पंचायत की कुल संख्या 7-15 तक होती है। सदस्यों की संख्या क्षेत्र की जनसंख्या के अनुसार तय की जाती है।

जनसंख्यासदस्यसंख्या
150 तक5
1500-2500 तक7
2500-3500 तक9
3500-4500 तक11
4500-से अधिक13

(ii) प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Election)-प्रधान, उपप्रधान तथा अन्य सदस्यों का चुनाव ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। पंचायत के सभी सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा 5 वर्ष के लिए चुने जाते हैं।

(iii) आरक्षण (Reservation) ग्राम पंचायत में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या में. अनुपात के अनुसार स्थान आरक्षित होते हैं। इसके अलावा 1/3 स्थान महिलाओं के लिए भी आरक्षित होते हैं।

(iv) कार्यकाल (Tenure)-ग्राम पंचायत का कार्यकाल 73वें संशोधन के अनुसार 5 वर्ष निश्चित कर दिया यदि सरकार को लगता है कि कोई ग्राम पंचायत ठीक तरीके से काम नहीं कर रही है तो सरकार उसे 5 वर्ष से पहले भी भंग कर सकती है पर 6 महीने के अंदर चुनाव करवाए जाने ज़रूरी हैं।

(v) योग्यताएं (Qualifications)-ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताओं का होना ज़रूरी है-

  • वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • वह 21 वर्ष से ज्यादा की आयु का होना चाहिए।
  • वह पागल या दिवालिया घोषित नहीं होना चाहिए।
  • वह किसी सरकारी पद पर नौकरी न करता हो।

हरेक ग्राम पंचायत का एक सरपंच होता है। जिसका चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा होता है। सरपंच ग्राम पंचायतों की बैठकों की अध्यक्षता करता है तथा गांव के विकास कार्यों को देखता है। उसकी अनुपस्थिति में ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता उप सरपंच करता है जिसका चुनाव ग्राम पंचायत के सदस्य अपने बीच में से करते हैं।

(vi) बैठकें-ग्राम पंचायत की एक महीने में कम-से-कम दो बैठकें होनी ज़रूरी हैं। किसी आवश्यक काम के लिए पंचायत के सदस्य बहुमत के साथ बैठक जल्दी भी बुला सकते हैं।

(vii) ग्राम पंचायत के कार्य (Functions of Gram Panchayat)-ग्राम पंचायत के निम्नलिखित कार्य हैं-

  • यह क्षेत्र में विकास का बजट बनाती है तथा उसे ग्राम सभा के आगे पेश करती है।
  • डेयरी उद्योग तथा मुर्गीपालन उद्योग को प्रोत्साहन देना।
  • सड़क के दोनों ओर वृक्ष लगवाने का काम करना।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन देना।
  • पीने के पानी के लिए कँओं या सरकारी पानी का प्रबन्ध करना।
  • पुलों तथा पुलियों का निर्माण तथा मुरम्मत के कार्य करना।
  • श्मशान भूमि तथा कब्रिस्तान की देखभाल करना।
  • कुएँ, तालाब इत्यादि बनवाना तथा उनकी रक्षा करना।
  • मेलों तथा मंडियों का आयोजन करना।
  • गांव में सड़कों, नालियों को बनवाने का प्रबंध करना।
  • महामारियों के विरुद्ध उपचारात्मक प्रबंध करने।
  • गांव में अस्पताल, डिस्पैंसरी इत्यादि का प्रबंध करना।
  • पुस्तकालयों तथा वाचनालयों की स्थापना करना तथा उनकी देखभाल करना।
  • प्राथमिक शिक्षा के केंद्रों, स्कूलों इत्यादि का प्रबंध करना।
  • किसी सरकारी कर्मचारी, जो ठीक काम न करता हो, उसकी शिकायत जिलाधीश को पहुँचाना।
  • अनुसूचित जातियों के कल्याण के कार्य करने।

प्रश्न 5.
पंचायत समिति के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन करें।
अथवा
पंचायत समिति के गठन, कार्य तथा चुनाव की विवेचना करें।
उत्तर:
पंचायती राज व्यवस्था में दूसरे स्तर या बीच के स्तर की इकाई है। पंचायत समिति एक ब्लॉक में जितनी पंचायतें आती हैं उन सब के सरपंच इस के मैंबर होते हैं।
(i) गठन (Composition)-नयी पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत खंड स्तर पर पंचायत समिति की स्थापना की गई है। पंचायत समिति में निम्नलिखित सदस्य होते हैं-

  • पंचायत समिति के प्रत्यक्ष रूप से चुने हुए सदस्य।
  • लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्य जो उस क्षेत्र से संबंधित हों।
  • पंचायत समिति क्षेत्र से ग्राम पंचायतों के कुल प्रधानों में से 1/5 भाग।
  • राज्य सभा का सदस्य।

(ii) कार्यकाल (Tenure) ग्राम पंचायत की तरह पंचायत समिति का कार्यकाल भी 5 वर्ष होता है पर अगर सरकार चाहे तो उसे पहले भी भंग कर सकती है।

(iii) आरक्षण (Reservation)-पंचायत समिति में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए पंचायत समिति में स्थान आरक्षित होते हैं। यह आरक्षण उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात के मुताबिक होता है। इसके अलावा इसमें महिलाओं के लिए आरक्षण है। यह आरक्षण अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को मिला कर 1/3 होता है।

(iv) अध्यक्ष व उपाध्यक्ष (Election of Chairperson and Vice Chairperson)-शपथ ग्रहण के पश्चात् पंचायत समिति के सदस्य को अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष चुनते हैं। इस प्रकार अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का अप्रत्यक्ष का चुनाव होता है।

(v) समिति का सदस्य बनने के लिए योग्यता (Qualifications)-पंचायत समिति का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिएं

  • वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • वह दिवालिया या पागल घोषित न हुआ हो।
  • उसकी उम्र 21 वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
  • वह किसी सरकारी पद या नौकरी पर न हो।

(vi) पंचायत समिति के कार्य (Functions of Panchayat Samiti)-पंचायत समिति के क्षेत्र में विकास के जों कार्य पंचायत समिति द्वारा किए जाते हैं उनका वर्णन निम्नलिखित है

  • अपने क्षेत्र में कुटीर उद्योगों, कारीगरी के विकास इत्यादि कार्यों को प्रोत्साहन देना ताकि औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकास हो सके।
  • अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं को लागू करना तथा रोजगार के अवसर पैदा करने की कोशिश करनी।
  • अपने क्षेत्र में आती पंचायतों के कार्यों का निरीक्षण करना तथा उनके बजट तथा खर्च पर निगरानी रखना।
  • स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना, प्रसूति केंद्रों की स्थापना के प्रबंध करने।
  • पीने के पानी तथा सड़कों को बनवाने के प्रयास करने।
  • मेले तथा मंडियों को लगवाने का कार्य करना।

(vii) बैठकें (Meetings)-पंचायत समिति की साल में कम-से-कम दो बैठकें होनी चाहिएं। दो बैठकों के बीच 6 महीने से ज्यादा समय नहीं होना चाहिए। पर ज़रूरत पड़ने पर सदस्य बहुमत के साथ पहले भी बैठक बुला सकते हैं।

प्रश्न 6.
जिला परिषद् के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन करो।
उत्तर:
जिला स्तर की पंचायती राज संस्था को जिला परिषद् कहते हैं। प्रत्येक जिले में एक जिला परिषद संस्था होती है। इसमें नगरपालिका क्षेत्रों को छोड़ कर जिले के सभी क्षेत्र सम्मिलित होते हैं।
(i) ज़िला परिषद् का गठन (Composition of Zila Parishad)-प्रत्येक जिला परिषद् के निम्नलिखित सदस्य होते हैं

  • प्रत्यक्ष रूप में वयस्क आधार पर जिला परिषद् के लिए निर्वाचित सदस्य।
  • जिले से संबंधित विधायक तथा लोकसभा के सदस्य।
  • राज्य सभा के ऐसे सदस्य जिनका नाम जिले में मतदाता के रूप में पंजीकत हो।
  • जिले की सभी पंचायत समितियों के अध्यक्ष।

यदि जिला परिषद् के सदस्यों में विधायकों, सांसदों तथा समिति अध्यक्षों की संख्या चुने हुए सदस्यों से अधिक हो जाए तो समिति अध्यक्षों में से केवल 1/5 को बारी-बारी निर्धारित अवधि के लिए चुना जाएगा।

(ii) आरक्षण (Reservation) ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति की तरह जिला परिषद् में भी अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित होते हैं। यह स्थान उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुसार होता है। महिलाओं के लिए भी 1/3 स्थान आरक्षित होते हैं।

(iii) बैठकें (Meetings)-पंचायत समिति की तरह जिला परिषद् की एक वर्ष में कम-से-कम चार बैठकें जरूरी हैं। बैठकों के मध्य तीन महीनों से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। अध्यक्ष बैठकों की अध्यक्षत है तथा उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष बैठकों की अध्यक्षता करता है। जिला परिषद् के 1/3 सदस्यों की मांग पर विशेष बैठक भी बुलाई जा सकती है।

(iv) कार्यकाल (Tenure)-जिला परिषद् का कार्यकाल 73वें संशोधन के अनुसार 5 साल का होता है पर अगर सरकार चाहे तो उसे अयोग्यता या भ्रष्टाचार के आधार पर समय से पहले भी भंग किया जा सकता है।

इसके अलावा जिला परिषद् अपने क्षेत्र में कार्य करने के लिए विशेष समितियां गठित करती है। उदाहरण के तौर पर वित्त के लिए समिति, कार्य समिति, शिक्षा समिति, कल्याण समिति इत्यादि। जिला परिषद् के निर्णयों को लागू करने के लिए तथा रोज़ाना के कार्य करने के लिए एक सचिव. की नियुक्ति होती है तथा उसे सरकार द्वारा वेतन भी मिलता है।

(v) जिला परिषद् के कार्य-जिला परिषद् अपने क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य करता है-

  • इसका मुख्य काम अपने क्षेत्र में आती पंचायत समितियों के कार्यों का निरीक्षण करना है। इसके साथ-साथ यह सभी पंचायत समितियों के कार्यों में समन्वय पैदा करने की कोशिश करती है।
  • यह पंचायत समितियों के लिए विकास योजनाएं बनाती है तथा उनको कार्यान्वित करने के प्रयास करती है।
  • यह पंचायत समितियों के बजट का निरीक्षण तथा उनको स्वीकृति प्रदान करती है।
  • यह विकास संबंधी योजनाओं के लिए सरकार को सुझाव देती है।
  • सरकार अपनी नीतियों के अमल के लिए जिला परिषद् को कार्य सौंपती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 7.
पंचायती राज का क्या महत्त्व है?
अथवा
पंचायती राज तथा सामाजिक रूपांतरण का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में पंचायती राज की शुरुआत 1959 में हुई थी। पर 73वें संवैधानिक संशोधन के साथ भारत के सभी राज्यों में एक प्रकार की प्रणाली स्थापित की गई। इसके बाद से पंचायती राज ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं। इन कार्यों की वजह से ही ग्रामीण क्षेत्रों में काफ़ी सुधार हुए तथा पंचायती राज के महत्त्व को काफ़ी ज्यादा बढ़ा दिया। इस तरह पंचायती राज का महत्त्व निम्नलिखित है-
(i) जनता का शासन (Administration of People)-पंचायती राज व्यवस्था को हम जनता का शासन कह सकते हैं क्योंकि पंचायती राज के हरेक स्तर पर जनता का हाथ होता है। चुनावों के समय सब कुछ जनता के हाथ में होता है कि किसको चनना है तथा किसको नहीं चनना है।

चनावों के बाद जीते हए व्यक्तियों को जनता की समस्याओं को निपटाने के कार्य करने पड़ते हैं। पानी का प्रबंध, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा ऐसी बुनियादी सुविधाएं हैं जो पंचायती राज के हर स्तर को मुहैया करवानी ही पड़ती हैं। उस चुने हुए व्यक्ति को पता होता है कि अगर वह लोगों के लिए काम नहीं करेगा तो दोबारा जनता उसे नहीं चुनेगी। इस तरह उसे जनता से डर कर कार्य करने पड़ते हैं तथा हमेशा जनता का शासन चलता रहता है।

(ii) लोकतंत्र (Democracy)-पंचायती राज से लोकतंत्र को बल मिलता है। लोकतंत्र का मतलब है लोगों का राज तथा पंचायती राज बनाया भी इसीलिए गया था कि लोग अपने ऊपर स्वयं राज करें। इसमें जनता स्वयं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। वह जब भी चाहे इन प्रतिनिधियों से मिल कर अपनी समस्याओं के बारे में बता सकते हैं। ग्राम स्तर पर ग्राम सभा होती है जिसमें ग्राम के सभी वयस्क सदस्य होते हैं।

इनकी वर्ष में दो बार बैठक ज़रूर होती है जिसमें पंचायत द्वारा किए कार्यों, उनकी योजनाओं, उनके बजट तथा खर्च इत्यादि की चर्चा होती है। इस तरह लोगों को यह पता चलता रहता है कि उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि क्या कर रहे हैं जो कि लोकतंत्र की पहली निशानी है।

(iii) लोगों को आत्म-निर्भर बनाना (To make the people Self-reliance)-पंचायती राज का एक और महत्त्व यह है कि इसका उद्देश्य गांवों को आत्म-निर्भर बनाना है। इसका कानून बनाते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि पंचायती राज के हर स्तर को उनकी ज़रूरतों के मुताबिक अधिकार तथा कर लगाने की शक्तियां मिलें।

हर पंचायत को अपने गांव की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तथा समस्याओं के समाधान के लिए पर्याप्त अधिकार होते हैं जिनकी मदद से वह अपनी समस्याओं का हल करते हैं। ग्राम पंचायत गांव के विकास के लिए कई प्रकार की योजनाएं बना कर उन्हें ग्राम सभा से पास करवाती है।

इन योजनाओं को पूरा करने के लिए अगर सरकार की तरफ से पैसा मिल जाए तो ठीक है नहीं तो उसे कई प्रकार के कर लगाने का अधिकार भी है ताकि उसे अपने विकास कार्य पूरे करने के लिए सरकार की तरफ न देखना पड़े। इस तरह ग्राम आत्म-निर्भर हो जाते हैं।

(iv) अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Rights and Duties)-पंचायती राज व्यवस्था से लोगों को अपने गांव के प्रति कर्तव्यों तथा उनके अधिकारों के बारे में पता चलता है। मतदाता के रूप में तथा ग्रामसभा के सदस्य के रूप में एक व्यक्ति के क्या अधिकार होते हैं यह चुनाव के समय तथा ग्राम सभी की मीटिंग के समय उसे पता चल जाते हैं। इसके अलावा इन से उसे कर्तव्यों के बारे में भी पता चलता है।

अगर ग्रामसभा में ग्राम पंचायत गांव के विकास के लिए कोई कर लगाती है तो आजकल सभी आराम से वह कर दे देते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि यह पैसा इकट्ठा हो कर गांव के विकास के ऊपर ही लगेगा।

(v) कृषि का विकास (Development of Agriculture)-पंचायती राज का एक और महत्त्व है कि इसने कृषि के विकास में काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद् का एक महत्त्वपूर्ण कार्य यह है कि यह अपने क्षेत्र में कृषि के विकास तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए कार्य करते हैं। इनके पास बहुत से सरकारी कर्मचारी होते हैं जिनका काम लोगों को नई तकनीक, नए बीजों तथा नई खाद के बारे में जानकारी देना है ताकि लोग इनको अपना कर उत्पादन में बढ़ोत्तरी कर सकें।

इसके अतिरिक्त यह पंचायती राज संस्थाएं अपने क्षेत्र में बीजों का, खादों का भी प्रबंध करती है ताकि इनकी कमी न हो। इसका फायदा यह ही है कि एक तो उत्पादन बढ़ने से देश खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाता है तथा इसके साथ-साथ लोगों की आर्थिक उन्नति भी होती है। इस तरह पंचायती राज संस्थाएं लोगों की आर्थिक उन्नति के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं।

(vi) महिलाओं तथा निम्न जातियों को आगे आने की प्रेरणा (Motivation for Women and Lower ca to come forward) सदियों से हमारे देश में महिलाओं तथा निम्न जातियों को दबाया जाता रहा, जिस वजह से इनकी स्थिति हमेशा निम्न रही है। पंचायती राज से संबंधित कानून बनाते समय यह ध्यान रखा गया कि इनको भी आगे आने का मौका मिल सके। इनके लिए सभी संस्थाओं में आरक्षण रखे गए हैं।

अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार आरक्षण रखा गया है। इसके अलावा महिलाओं की शासन में भागीदारी बढ़ाने के लिए उनके लिए हर जगह 1/3 स्थान आरक्षित रखे गए हैं। इस वजह से अब महिलाओं तथा निम्न जातियों की शासन में भागीदारी काफ़ी बढ़ गई तथा उनको आगे आने का मौका प्राप्त हो गया है।

प्रश्न 8.
विभिन्न कानूनों से समाज में क्या परिवर्तन आए हैं? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
कानून भारतीय समाज में परिवर्तन के महत्त्वपूर्ण कारक रहे हैं। आजादी से पहले ब्रिटिश सरकार ने सती प्रथा को खत्म करने, विधवा पुनर्विवाह को आज्ञा प्रदान करने, बाल-विवाह पर रोक लगाने, हिंदू स्त्रियों में संपत्ति अधिकार के बारे में तथा विवाह संबंधी कई अधिनियम पास किए। आजादी के बाद विशेष तौर पर 1954 से 1956 के दौरान देश में बहुत से महत्त्वपूर्ण विधान बनाए गए।

इन सभी विधानों का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। विभिन्न विधानों से भारतीय समाज में होने वाले प्रमुख परिवर्तनों तथा विधानों ने भारतीय समाज पर जो महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
(i) महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन (Change in the Status of Women) विभिन्न कानूनों को बनाएं जाने से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 से विधवा को अपने पति की संपत्ति का सीमित अधिकार दिया गया। इस अधिनियम द्वारा स्त्री पुरुष को संपत्ति का समान अधिकार प्रदान किया गया।

हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम द्वारा विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति दे दी गई। महिलाओं को पुत्र गोद लेने का अधिकार प्रदान किया गया। स्त्रियों व कन्याओं का अनैतिक व्यापार गैर-कानूनी घोषित किया गया। दहेज निरोधक कानून बनाए गए। महिलाओं के लिए पंचायती राज स्तर पर आरक्षण रखे गए। इन विधानों से भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आया।

(ii) विवाह के स्वरूप में परिवर्तन (Change in form of Marriage) सदियों से भारतीय समाज में एक विवाह, बहुविवाह, बहुपत्नी तथा बहुपति विवाह प्रथाएं प्रचलित थीं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत बहुविवाह को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। एक विवाह को कानूनी मान्यता तथा कोर्ट मैरिज को भी कानूनी मान्यता मिल गई।

(iii) निरर्थक रीतियों में कमी (Decline in Obsolete Conventions)-भारतीय समाज में सती प्रथा, दहेज प्रथा, बाल-विवाह तथा अस्पृश्यता आदि कई कुरीतियां प्रचलित रही हैं। सती प्रथा निषेध अधिनियम द्वारा सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। वर्तमान समय में सती प्रथा भारतीय समाज में खत्म हो चुकी है। दहेज निरोधक कानून 1961 तथा 1986 के अनुसार दहेज लेना तथा देना भी कानूनन जुर्म घोषित कर दिया गया है।

बाल विवाह भी खत्म कर दिया गया है तथा विवाह के लिए आय लड़कियों के लिए 18 वर्ष तथा लड़कों के लिए 21 वर्ष निर्धारित कर दी गई है। बाल विवाह को भी गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया है। अस्पृश्यता की समाप्ति के लिए अस्पृश्यता कानून 1955 तथा नागरिक संरक्षण अधिकार कानून 1976 बना दिए गए हैं।

(iv) अंतर्जातीय संबंधों में परिवर्तन (Decline in Inter Caste Relations)-सामाजिक विधानों द्वारा अंतर्जातीय संबंधों में परिवर्तन आए हैं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 द्वारा अंतर्जातीय विवाह को कानूनी अनुमति मिल गई है। अंतर्जातीय विवाहों को सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अस्पृश्यता को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया है। फलस्वरूप उच्च व निम्न जातियों में अंतःक्रिया बढ़ी है। अब इन दोनों में काफ़ी ज्यादा अंतः क्रिया हो रही है तथा यह मिल जुल कर कर रहे हैं।

(v) विवाह नियमों में परिवर्तन (Change in Rules of Marriage)-पारंपरिक रूप से हिंदू विवाह एक धार्मिक संस्कार रहा है। परंतु विभिन्न विधानों के निर्माण के बाद विवाह एक धार्मिक संस्कार न रह कर एक समझौता मात्र रह गया है। विवाह जन्म जन्मांतर का पवित्र बंधन माना जाता है।

मगर कानून द्वारा तलाक को स्वीकृति मिल गई है अर्थात् निश्चित कानूनी प्रक्रिया के द्वारा विवाह विच्छेद को अनुमति दे दी गई है। विवाह संबंधी अन्य नियमों में। परिवर्तन आए हैं। अंतर्जातीय विवाह को कानूनी अनुमति मिल गई है। विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित कर दी गई है। विवाह की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।

(vi) बंधुआ मज़दूरी प्रथा अधिनियम 1976 के तहत किसी व्यक्ति को बंधुआ मजदूरी नहीं करवायी जा सकती। किसी को बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर करने वाले या इसके लिए कर्ज देने वाले को 3 साल की कैद तथा ₹ 2000 जुर्माना हो सकता है।

(vii) बाल मजदूरी रोकने के लिए भी अधिनियम बना है। 14 साल से कम उम्र के बच्चे से फैक्टरी या दुकान में काम करवाना अपराध माना गया है।

प्रश्न 9.
पंचायती राज में सुधार के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर:
भारत में पंचायती राज प्रणाली 1959 में लागू हुई थी। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य शक्तियों का विकेंद्रीकरण था। पर समय के साथ पंचायती राज प्रणाली कमज़ोर पड़ती गई तथा इसमें काफ़ी त्रुटियां आनी शुरू हो गईं। इन त्रुटियों को सरकार ने समझा तथा 1993 में संविधान में संशोधन करके 73वां संवैधानिक संशोधन पास किया गया।

इसमें पंचायती राज के हर पहलु को ध्यान में रखा गया था पर फिर भी आज के समय में इस व्यवस्था में काफ़ी त्रुटियां पायी जाती हैं। जो सपना प्रजातंत्र या लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण का देखा गया था वह पूरा नहीं हो पाया है। इसमें बहुत से सुधारों की आवश्यकता है तथा इनमें निम्नलिखित तरीकों से सुधार किया जा सकता है-
(i) इन में सुधार लाने के लिए सबसे पहले यह ज़रूरी है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को अपने अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों की जानकारी भी होनी चाहिए। अगर ग्रामीण लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता होगी तो वह ग्राम सभा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे तथा इसके साथ ही उनको अपने कर्तव्यों के बारे में भी पता चल जाएगा।

(ii) अगला ज़रूरी कदम यह है कि इन पंचायती राज के सभी स्तरों की संस्थाओं को पूर्ण स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता देनी चाहिए ताकि यह पूण आजादी से अपने क्षेत्र के विकास के कार्य कर सकें। सरकार को इनके कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ताकि वह अपने क्षेत्र के विकास के लिए बगैर किसी डर के कार्य कर सकें।

(iii) सरकार द्वारा इन संस्थाओं के कार्यों पर तथा इन संस्थाओं पर गैर-ज़रूरी नियंत्रण नहीं रखना चाहिए। ज्यादा नियंत्रण की सूरत में काम में कमी आ जाती है तथा काम भी ठीक तरीके से नहीं हो पाता है।

(iv) पंचायती संस्थाओं के सरकारी कर्मचारियों तथा इन संस्थाओं के सदस्यों को गैर-सरकारी या सरकारी संस्थाओं से प्रशिक्षण दिलाना चाहिए ताकि यह गांवों के विकास के लिए कार्य कर सकें तथा इस प्रशिक्षण का फायदा सीधे से गांव के लोगों को मिल सके तथा वह इसको अपनी भूमि पर प्रयोग कर सकें।

(v) पंचायतों में ब्लॉक समिति में तथा जिला परिषद् में कार्य करने वाले कर्मचारियों को अच्छी तनख्वाह मिलनी चाहिए ताकि वह पूरा दिल लगा कर अपने क्षेत्र में विकास के कार्य कर सकें।

(vi) पंचायती राज के तीनों स्तरों पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के कार्यों में आपसी तालमेल होना चाहिए ताकि यह एक दूसरे से मिल जुल कर अपने क्षेत्र का विकास कर सकें।

(vii) ग्राम सभा को और अधिकार देकर अधिक शक्तिशाली बनाना चाहिए ताकि पंचायतों के कार्यों पर निगरानी रखी जा सके तथा इन में आम जनता की भागीदारी बढ़ायी जा सके।

(viii) इन संस्थाओं के लिए कर्मचारियों की भर्ती के समय सही उम्मीदवारों को ही भर्ती करना चाहिए ताकि वह गांवों की समस्याओं को समझ कर उनको हल करने की कोशिश कर सकें।

(ix) पंचायतों की जमीनों पर नाजायज कब्जों को छुड़वाने के लिए सरकार को विशेष प्रयास करने चाहिए ताकि इन ज़मीनों से होने वाली आमदनी को पंचायतें गांवों के विकास कार्यों पर लगा सकें।

(x) राज्य तथा केंद्र सरकार को इन संस्थाओं को ज्यादा से ज्यादा ग्रांट देनी चाहिए ताकि ये संस्थाएं अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को तेज़ी से चला सकें।

प्रश्न 10.
संविधान ने राज्य के निर्देशक सिद्धांत जो सरकार को दिए हैं, उनका वर्णन करो।
अथवा
राज्य में नीति निर्देशक सिद्धांतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
राजनीति के निर्देशक सिद्धांत संविधान के चौथे भाग अनुच्छेद 36 से 51 में अंकित हैं। आयरलैंड के संविधान से प्रेरणा पाकर तथा संविधान सभा के संवैधानिक परामर्शदाता सर बी० एन राव (Sir B.N. Rao) के सुझाव के बाद निर्देशक सिद्धांतों को संविधान में शामिल किया गया है। डॉ० बी० आर० अंबेदकर के अनुसार, “निर्देशक सिद्धांत देश में विशेष रूप से सामाजिक तथा आर्थिक प्रजातंत्र स्थापित करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं।’ निर्देशक सिद्धांतों को निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा जा सकता हैं-

  • सामान्य सिद्धांत (General Principles)
  • समाजवादी सिद्धांत (Socialist Principles)
  • उदारवादी सिद्धांत (Liberal Principles)
  • गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)

इन सब श्रेणियों का वर्णन निम्नलिखित हैं-
(i) सामान्य सिद्धांत (General Principles)-सामान्य सिद्धांतों के अंदर कई ऐसे सिद्धांत हैं जिनमें राज्य का अर्थ तथा उसके कार्यों का जिक्र किया गया है। प्रमुख सिद्धांत हैं-“राज्य समस्त भारत में एक समान आचार संहिता लागू करेगा”-अनुच्छेद 44 “राज्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिए कार्यवाही करेगा।” देश में स्थित ऐतिहासिक महत्त्व तथा कलात्मक रुचि के स्थानों या वस्तुओं को नष्ट होने या हटाए जाने को बचाना राज्य का कर्तव्य है।”

पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार के लिए तथा देश में वनों तथा वन्य-जीवन की रक्षा के लिए राज्य प्रयास करेगा।” अनुच्छेद में लिखा है, राज्य के अंतर्गत भारत सरकार तथा संसद्, समस्त राज्य सरकारें तथा विधानमंडल तथा भारत सरकार की सारी शक्तियाँ आती हैं।”

(ii) समाजवादी सिद्धांत (Socialist Principles)-राज्य कुछ ऐसे कदम उठाए जिससे स्त्री पुरुष को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले-अनुच्छेद 39 (d) “व्यक्तियों तथा क्षेत्रों में आय की असमानताएं कम हों।” इसके अतिरिक्त राज्य गर्भवती महिलाओं के लिए प्रसूति सहायता का प्रबंध करेगा। श्रमिकों, स्त्रियों, पुरुषों के स्वास्थ्य तथा कम उम्र के बच्चों का दुरुपयोग होने से रोकेगा।

(iii) उदारवादी सिद्धांत (Libral Exploitation) निर्देशक सिद्धांत में कुछ उदारवादी सिद्धांत हैं जैसे, “राज्य संविधान लागू होने के 10 वर्षों के अंदर 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध करने की कोशिश करेगा।’-अनुच्छेद 45-अनुच्छेद 47 के अनुसार राज्य लोगों के भोजन तथा जीवन स्तर को ऊँचा उठाने तथा उनके स्वास्थ्य को सुधारने का प्रयत्न करेगा।”

(iv) गाँधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)-कई ऐसे सिद्धांत हैं जोकि गांधीवादी विचारधारा पर आधारित हैं। उदाहरण के तौर पर अनुच्छेद 40 के अनुसार राज्य गांव में पंचायतें स्थापित करके तथा उन्हें ऐसी शक्तियां प्रदान करेगा, जिससे वे स्थानीय स्वशासन की इकाइयों के रूप में काम कर सके। राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के शैक्षणिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का प्रयल करेगा तथा उन्हें शोषण से बचाएगा।

(v) अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत (International Principles) अंतर्राष्ट्रीय निर्देशक सिद्धांतों में ऐसे सिद्धांत सम्मिलित हैं जिनका संबंध विश्व के अन्य देशों से है जैसे राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने का प्रयत्न करेगा।

राज्य अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाए जाने के यत्न को प्रोत्साहित करेगा। – राजनीति के यह निर्देशक सिद्धांत भावी सरकारों के निर्देश है कि उन्हें किस प्रकार की व्यवस्था का विकास करेंगे पर यह मौलिक अधिकारों की तरह न्यायसंगत नहीं हैं। इन्हें न्यायालय द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता है। चाहे ने को बाध्य नहीं है पर फिर भी सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी किसी भी प्रकार की नीति बनाते समय इन निर्देशों को ध्यान में रखे।

प्रश्न 11.
भारतीय नागरिकों को मिले हुए मौलिक अधिकारों तथा मौलिक कर्तव्यों का वर्णन करो।
अथवा
मौलिक कर्तव्यों की व्याख्या करें।
अथवा
भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य क्या हैं?
अथवा
मौलिक अधिकारों की विवेचना कीजिए।
अथवा
भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
मौलिक अधिकार-(Fundamental Rights):
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हो गया था तथा इसी दिन हमारा देश गणतंत्र बन गया था। संविधान के तीसरे अध्याय में मौलिक अधिकारों का जिक्र है। संविधान में कुल 7 मौलिक अधिकार दिए गए थे पर 1979 में 44वें संवैधानिक संशोधन द्वारा “संपत्ति का अधिकार” मौलिक अधिकारों की सूची में से निकाल दिया गया था। आजकल भारत के सभी नागरिकों को निम्नलिखित 6 मौलिक अधिकार दिए गए हैं :

  • समानता का अधिकार (Right to Equality)
  • स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation)
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Religious Freedom)
  • सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार (Cultural and Educational Rights)
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)

अब इन मौलिक अधिकारों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
(i) समानता का अधिकार (Right to Equality) सभी भारतीय नागरिक कानून के सामने समान हैं। भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ रंग, नस्ल, जाति, धर्म या जन्म स्थान के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता है। सबको समान अवसर उपलब्ध हैं। अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता की समाप्ति कर दी गई है अर्थात् अस्पृश्यता पर कानून द्वारा रोक लगा दी गई है।

(ii) स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)-अनुच्छेद 19 के तहत सभी भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएं प्रदान की गई हैं –

  • भाषण देने तथा विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and expression)
  • बिना शस्त्र शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने की स्वतंत्रता (Freedom to assemble peacefully without arms)
  • समितियां तथा संघ स्थापित करने की स्वतंत्रता (Freedom to form Associations and unions)
  • समस्त भारत में घूमने फिरने की स्वतंत्रता (Freedom to move freely throughout the territory of India)
  • भारत के किसी भी भाग में रहने तथा निवास स्थान बनाने की स्वतंत्रता (Freedom to reside and settle in any part of terroitory of India)
  • किसी भी पेशे को अपनाने या व्यवसाय, व्यापार कारोबार की स्वतंत्रता (Freedom to Practise any profession or to carry on any occupation, trade and business)

इनके अलावा हरेक भारतीय नागरिक को जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के अधिकार भी प्राप्त हैं।

(iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation)-किसी भी भारतीय का कोई शोषण नहीं करेगा क्योंकि संविधान में शोषण के विरुद्ध निम्नलिखित प्रावधान हैं-

  • मानवीय व्यापार तथा बलपूर्वक मज़दूरी की मनाही (Prohibition of traffic in human beings and forced Labour)
  • बालश्रम की मनाही (Prohibition of child labour)

14 साल की उम्र तक के बच्चों को फैक्ट्रियों, दुकानों पर काम पर नहीं लगाया जा सकता। यह कानूनन जुर्म है तथा इसके लिए सजा का प्रावधान हैं। इसके अलावा बंधुआ मजदूरी करवाना भी कानूनन जुर्म है।

(iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Religious Freedom)-संविधान को बनाने वाले भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाना चाहते थे। वह जानते थे कि भारत में कई धर्मों के अनुयायी निवास करते हैं। इसलिए संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का प्रावधान रखा गया है कि किसी भी धर्म को मानने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता, धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता, किसी विशेष धर्म के विकास के लिए कर न देने की स्वतंत्रता इत्यादि। इसके अलावा सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा की मनाही की गई है।

(v) सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार (Cultural and Educational Rights) हरेक भारतीय को अपनी लिपि, भाषा तथा संस्कृति की सुरक्षा करने का अधिकार प्राप्त है। धार्मिक तथा भाषायी अल्पसंख्यक समूह अपने लिए शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना कर सकते हैं। सभी भारतीयों को सरकार द्वारा सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश पाने की स्वतंत्रता है।

(vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)-प्रत्येक भारतीय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने मौलिक अधिकारों को लागू करवाने या उनकी सुरक्षा के लिए सीधे उच्चतम न्यायालय जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि सरकार या कोई और उसके मौलिक अधिकारों को उससे छीन रहा है या वापस ले रहा है तो वह उनको वापस पाने के लिए न्यायालय में भी जा सकता है। इसको संवैधानिक उपचारों का अधिकार कहते हैं।

मौलिक कर्तव्य-(Fundamental Duties):
संविधान में भारतीय नागरिकों को अगर मौलिक अधिकार दिए गए हैं तो उनके साथ-साथ कुछ मौलिक कर्तव्य भी दिए गए हैं। चाहे मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों का जिक्र नहीं था पर 1976 में आपात्काल के समय के दौरान 42वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा संविधान के चौथे भाग में अनुच्छेद 51-A में अग्रलिखित दस मौलिक कर्तव्य दिए गए हैं-
(a) संविधान का पालन करना तथा इसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रीय गान का सम्मान करना। (To abide by the constitution and respect its ideas, institutions, National flag and National Anthem.)

(b) स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले राष्ट्रीय आदर्शों का सम्मान तथा अनुसरण करना। (To cherish and follow the noble ideals which inspired our National Struggle for freedom.)

(c) भारत की प्रभुसत्ता को बनाए रखना तथा उसकी रक्षा करना (To uphold and protect the Sovereignty, Unity and Integrity of India)

(d) देश की रक्षा करना तथा ज़रूरत पड़ने पर राष्ट्र के लिए अपनी सेवा प्रदान करना। (To defend the Country and render National Service when called upon to do so.)

(e) धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय तथा वर्गीय विभिन्नताओं से ऊपर उठकर भारत के सभी नागरिकों के बीच सदभाव तथा आपसी भाईचारे का विकास करना तथा महिलाओं के गौरव को अपमान पहुंचाने वाले कार्यों का त्याग करना। (To promote harmony and the Spirit of common brotherhood amogest all the people of India transcending religious, linguistic, regional and sectional diversities and to renounnce practices derogatory to the dignity of women.)

(f) अपनी समृद्ध विरासत तथा संयुक्त संस्कृति का सम्मान करना तथा उसको सुरक्षित रखना। (To Value and preserve the rich heritage of our composite culture.)

(g) वैज्ञानिक सोच व मानवतावाद विकसित करना। (To develop Scientific temper and humanism.)

(h) जंगलों, झीलों, नदियों तथा वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण को सुरक्षित रखना तथा सुधारना। (To protect and improve natural environment including forests, lakes, rivers and wild life.)

(i) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना तथा हिंसा का त्याग करना। (To safeguard public property and adjure violence.)

(j) व्यक्तिगत तथा सामूहिक गतिविधियों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना। (To Strive towards excellence in spheres of individual and collective activities.)

चाहे मौलिक कर्तव्यों के पीछे कानूनी शक्ति नहीं है तथा न ही इन्हें कानूनी मान्यता प्राप्त है पर यह ऐसे आदर्श हैं जिनको मानने से राष्ट्र के विकास में योगदान दिया जा सकता है। इसलिए सभी भारतीयों को इनका पालन करना चाहिए।

प्रश्न 12.
पंचवर्षीय योजनाओं के माध्मय से भारतीय समाज में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं? उनका वर्णन करो।
अथवा
पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा भारतीय समाज पर लाए गए प्रमुख परिवर्तनों की व्याख्या करें।
अथवा
देश के स्वतंत्र होने पर ‘नियोजित विकास के कार्यक्रमों में किन-किन बातों की ओर ध्यान केंद्रित किया गया?
उत्तर:
1952 से लेकर 2013 तक भारत में बारह पंचवर्षीय योजनाएं तथा तीन एक वर्षीय योजनाएं लाग हो चुकी थीं। 2002 से 2007 तक के समय के लिए दसवीं पंचवर्षीय योजना का निर्माण किया गया। पिछले 53 सालों में भारतीय समाज में बहुत ज्यादा परिवर्तन आए हैं। हम अगर कोई भी क्षेत्र उठा कर देख ले हमें यह परिवर्तन तो देखने को मिल ही जाएंगे। इन परिवर्तनों का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) शिक्षा का प्रसार (Spread of Education)-1951 में पहली पंचवर्षीय योजना लागू होने के समय भारत में साक्षरता दर 18% थी जो कि सन् 2011 में बढ़कर 75 % हो गई है। अगर साक्षरता दर बढ़ी है तो वह इस वजह से कि सभी पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा पर अच्छा पैसा खर्च किया गया है ताकि लोग पढ़ लिखकर अपनी तथा देश की तरक्की में अपना योगदान दे सके।

उच्चशिक्षा का भी बहुत ज्यादा प्रसार हुआ। इस समय देश में हजारों मैडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, विश्वविद्यालय तथा कई और प्रकार के कॉलेज हैं जो कि देश के लाखों नौजवानों में उच्चशिक्षा का प्रसार कर रहे हैं जोकि देश के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।

(ii) वंचित या निम्न बों का उत्थान (Upliftment of Deprived Sections)-अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां तथा अन्य पिछड़े वर्ग (SC’s, ST’s and OBC’S) भारतीय समाज के प्रमुख वंचित वर्ग हैं जिन्हें सदियों से भारतीय समाज में उनके मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था। इन लोगों के स्तर को ऊपर उठाने के लिए संविधान तथा पंचवर्षीय योजनाओं में विशेष प्रावधान किए गए हैं।

इन सभी वर्गों के सदस्यों के लिए नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण दिया गया है। इसके अतिरिक्त अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में उनकी जनसंख्या के मुताबिक स्थान आरक्षित किए गए हैं। उन उपेक्षित वर्गों के लिए कई कल्याण कार्यक्रम कार्यन्वित किए गए हैं। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में इनके कल्याण हेतु काफ़ी पैसा रखा जाता रहा है ताकि इनकी स्थिति तथा स्तर को ऊपर उठाया जा सके। फलस्वरूप इन वर्गों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

(iii) महिलाओं की स्थिति में सुधार (Improvement in the Status of Women) स्वतंत्रता से पहले भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति काफ़ी निम्न थी। सदियों से इनको पैरों की जूती समझा जाता रहा है। भारतीय समाज में संयुक्त परिवार व्यवस्था प्रचलित थी जिसमें महिलाओं का काम सिर्फ परिवार की सेवा करना होता था।

उनको किसी तरह के अधिकार प्राप्त नहीं थे। यहां तक कि उन्हें शिक्षा भी नहीं लेने दी जाती थी। पर आजादी के बाद संविधान में भी तथा पंचवर्षीय योजनाओं में भी महिलाओं के उत्थान के लिए काफ़ी प्रावधान रखे गए ताकि इनका स्तर ऊपर उठाया जा सके। विभिन्न योजनाओं के तहत महिला कल्याण के अनेक कार्यक्रम चलाए गए।

उनके सशक्तिकरण के लिए स्थानीय स्वशासन निकायों यानि कि पंचायतों तथा नगरपालिकाओं में उनके लिए एक तिहाई पद आरक्षित किए गए। उनके उत्थान के लिए हरेक पंचवर्षीय योजना में काफ़ी पैसा रखा गया। उनकी साक्षरता की तरफ विशेष ध्यान दिया गया जिस वजह से 1951 में जो महिला साक्षरता दर 9% से भी कम थी वह 2011 में बढ़कर 65.5% से अधिक हो गई है।

(iv) ग्रामीण पुनर्निर्माण (Rural Reconstruction)-आजादी से पहले ग्रामीण इलाकों की हालत काफ़ी खराब थी। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए सभी पंचवर्षीय योजनाओं में खास प्रावधान किए गए। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के तहत ग्रामीण पुनर्निर्माण के लिए कार्यक्रम चलाए गए।

एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP), इंदिरा आवास योजना, गांधी कुटीर योजना, सामुदायिक विकास कार्यक्रम (CDP) तथा पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करना इत्यादि के द्वारा गांवों का पुनर्निर्माण हुआ है। हरित क्रांति तथा भूमि सुधारों से ग्रामीण समुदाय की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है। ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में अच्छा पैसा रखा गया था क्योंकि असली भारत तो गांवों में बसता है।

(v) अंतर्जातीय संबंधों में परिवर्तन (Change in Inter Caste Relations)-संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा भारत में अस्पृश्यता को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अंतर्जातीय विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी गई। जाति के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी भारतीयों को समान मौलिक अधिकार प्रदान किए गए। फलस्वरूप जातीय भेदभाव में कमी आई है। निम्न जातियों के सदस्यों में गतिशीलता बढ़ी है। उच्च तथा निम्न जातियों के सदस्यों में समीपता बढ़ी है।

(vi) कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र में परिवर्तन (Changes in Agricultural and Industrial Sectors) लगभग सभी पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्रों के विकास को प्रमुख लक्ष्य बनाया गया। आजादी के 10-15 साल के समय में भारत को खाद्यान्न आयात करना पड़ता था। पर इन पंचवर्षीय योजनाओं के प्रावधानों के फलस्वरूप हरित क्रांति आई तथा उसके 10 साल के अंदर ही भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया।

इसी तरह औद्योगिक क्षेत्र या उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भी सभी पंचवर्षीय योजनाओं में विशेष प्रावधान रखे गए। 1951 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 5 करोड़ टन था वह आजकल 20-21 करोड़ टन हो गया है। लघु, कुटीर तथा बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना की गई जिस वजह से किसानों, उद्योगपतियों तथा औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वालों की आय में काफ़ी वृद्धि हुई है।

(vii) जनसंख्यात्मक परिवर्तन (Demographic Changes)-बढ़ती जनसंख्या भारत की प्रमुख समस्या रही है। स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण के माध्यम से सन् 2000 तक देश में 25 करोड़ बच्चे पैदा होने से रोके गए। 1951-2001 के दौरान जन्म दर कम होकर 40 से 27 तथा मृत्यु दर 27 से कम होकर 9 तक पहुंच गई है। इसी अवधि में जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष से बढ़कर 63 वर्ष तथा शिशु मृत्यु दर 146 से कम होकर 70 हो गई है। यह सब ही सभी पंचवर्षीय योजनाओं में रखे गए प्रावधानों का परिणाम है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि भारत ने पिछले 53 सालों में इन पंचवर्षीय योजनाओं के फलस्वरूप काफ़ी ज्यादा प्रगति की है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 13.
योजनाबद्ध विकास के क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
योजना वह व्यवस्था होती है जिसके आधार पर लक्ष्यों की पूर्ति के प्रयास किए जाते हैं। अगर किसी काम को करने के लिए योजना बनाई जाएगी तो वह काम सही समय पर भी हो जाएगा तथा साधन भी व्यर्थ नहीं जाएंगे। अगर किसी कार्य को करने के लिए योजना नहीं बनाई जाएगी तो हो सकता है कि प्रयास भी व्यर्थ ही चला जाए। इसलिए किसी कार्य को करने के लिए योजना बनाना ज़रूरी है। इसी के साथ योजनाबद्ध विकास के भी बहुत से लाभ हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) समय की बचत योजना बनाकर विकास करने से समय की बचत होती है। हो सकता है कि अगर हम योजना न बनाएं तो हम व्यर्थ ही अपना समय तथा साधन खर्च करते जाएं तथा उससे हमारा लक्ष्य न मिल पाए। योजना बनाने से हमें पता होता है कि किस दिशा में हमें काम करना है। इससे समय की बचत तो होती ही हैं पर साथ ही साथ हमारे साधन व्यर्थ होने से बच जाते हैं।

(ii) कम समय में लक्ष्य की प्राप्ति-हरेक योजना बनाते समय उस योजना के कुछ लक्ष्य निर्धारित कर लिए जाते हैं तथा उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समय भी निर्धारित कर लिया जाता है। अगर ऐसा न हो तो हम बगैर दिशा के कार्य करते जाएंगे तथा लक्ष्य भी प्राप्त नहीं होगा। इस तरह योजनाबद्ध विकास से कम समय में लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

(iii) सभी क्षेत्रों का विकास-अगर योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाएगा तो सभी क्षेत्रों का ठीक तरीके से विकास होगा। अगर योजनाबद्ध तरीके से काम न किया जाए तो हो सकता है कि किसी एक क्षेत्र का तो बहुत ज्यादा विकास हो जाए तथा किसी क्षेत्र का विकास कम हो या हो ही न।

इस तरह वह क्षेत्र पूरी तरह अविकसित रह जाएगा। इसलिए सभी क्षेत्रों का ठीक तरीके से विकास करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना ज़रूरी है। इसके लिए सारे क्षेत्र को इकाई मानकर काम किया जाता है तथा उसके सभी क्षेत्रों का ध्यान रखा जाता है।

(iv) औद्योगिक विकास–अगर देश का औद्योगिक विकास करना है तो वह योजनाबद्ध तरीके से ही होगा। अगर उद्योग लगाना है तो उसके लिए योजना बनानी ही पड़ेगी। उद्योग के लिए पैसा कहां से आएगा, माल बनाने के लिए कच्चामाल, माल बनाने के लिए मज़दूर, माल बेचने के लिए मंडी का प्रबंध, इन सबके लिए एक योजना की ज़रूरत होती है।

अगर योजना न बनाई जाए तो वह उद्योग नहीं चल पाएगा। अगर उद्योग लगाने में पैसा कम पड़ गया तो, माल बनाने के लिए कच्चा माल न मिला तो, माल न बिका तो क्या होगा? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके लिए योजना बनाने की ज़रूरत है। इसलिए औद्योगिक विकास के लिए योजनाबद्ध विकास की जरूरत होती है।

(v) कृषि के विकास के लिए- कृषि के विकास के लिए भी योजनाबद्ध तरीके की ज़रूरत होती है। कृषि के लिए अच्छे बीज, अच्छी खाद, तकनीक उपलब्ध करवाना, उत्पादन को बढ़ाने तथा बेचने के लिए योजना की ज़रूरत होती है। अगर किसी एक चरण में भी योजना न बनायी गई तो सारा कार्य खराब हो जाएगा तथा जिस क्षेत्र में हम विकास के बारे में सोच रहे हैं वह क्षेत्र विकसित नहीं हो पाएगा। इसलिए कृषि के विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके की ज़रूरत है।

(vi) निम्न जातियों में विकास के लिए हमारे देश में सदियों से निम्न जातियों का शोषण होता आया है। इसलिए इनको ऊपर उठाने के लिए एक योजनाबद्ध प्रयास की जरूरत थी। यही किया गया तथा संविधान में इनके लिए आरक्षण रखे गए। पंचवर्षीय योजनाओं में इनके उत्थान के लिए काफ़ी कुछ किया गया। आज निम्न जातियां ऊँची जातियों के साथ खड़ी हैं तथा उनकी निम्न स्थिति काफ़ी अच्छी हो गई है। यह सब विकास योजनाबद्ध तरीके से ही हुआ है।

इस तरह और सभी क्षेत्रों चाहे घर में हो या देश में विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके की ही ज़रूरत होती है।

प्रश्न 14.
लोकतांत्रिक समाज में हित समूह व दबाव समूह कौन-कौन से कार्य करते हैं?
उत्तर:
दबाव व हित समूह वह संगठित या असंगठित समूह हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। उनके कुछ उद्देश्य होते हैं तथा वे सरकार पर अलग-अलग प्रकार से दबाव डालकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, लोकतांत्रिक समाज में यह कई प्रकार के कार्य करते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है:
(i) आंदोलन चलाना-यह दबाव समूह किसी विशेष मुद्दे पर तथा विशेष उद्देश्य के लिए आंदोलन चलाते हैं ताकि जनता का समर्थन हासिल किया जा सके। इसके लिए यह संचार माध्यमों जैसे कि टी०वी०, समाचार-पत्र इत्यादि का सहारा लेते हैं तथा जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

(ii) हड़तालें करवाना तथा रोष मार्च निकालना-दबाव समूह साधारणतया हड़तालें करवाते हैं, रोष मार्च निकालते हैं तथा सरकारी कार्यों में बाधा पहुँचाने का प्रयास करते हैं ताकि सरकार तक अपनी बात पहुँचा सकें। यह हड़ताल की घोषणा करते हैं तथा धरनों पर बैठकर अपनी आवाज़ उठाते हैं। अधिकतर फैडरेशन तथा यूनियनें सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए इसी ढंग का प्रयोग करते हैं।

(iii) लॉबी का निर्माण करना-साधारणतया दबाव समूह लॉबी का निर्माण करते हैं। इस लॉबी के कुछ आम हित होते हैं तथा यह हितों को प्राप्त करने के लिए कार्य करते हैं।

(iv) राजनीतिक दलों का समर्थन-हरेक दबाव व हित समूह किसी-न-किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ होता है। यह समूह चुनाव के समय अपने-अपने राजनीतिक दल का तन-मन-धन से समर्थन करते हैं ताकि वह चुनाव जीत कर उनकी मांगे पूरी करें।

(v) कानून बनाने वाली समितियों को प्रभावित करना-जब भी कोई विधेयक संसद् में कानून बनाने के लिए पेश किया जाता है तो यह विधेयक संसद् की विधायी समितियों को सौंप दिया जाता है ताकि वह इसके गुणों तथा दोषों पर समीक्षा कर सकें। यह दबाव समूह विधायी समूहों के सदस्यों को प्रभावित करते हैं ताकि विधेयक के मुख्य लक्षण अपने हितों के अनुसार करवा सकें।

इस प्रकार लोकतांत्रिक समाज में हित व दबाव समूह कई प्रकार के कार्य करते हैं।

प्रश्न 15.
भारतीय लोकतंत्र में दबाव समूहों एवं राजनीतिक दलों की भूमिका की चर्चा करें।
अथवा
भारत में राजनीतिक दलों की भूमिका बताएं।
अथवा
लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की क्या भूमिका रहती है? विवेचना करें।
अथवा
दबाव समूहों की भारतीय लोकतंत्र में भूमिका की चर्चा करें।
अथवा
सरकार के लोकतांत्रिक प्रारूप में राजनीतिक दलों और दबाव समूहों की क्या भूमिका है?
अथवा
राजनीतिक दल की भूमिका बताइए।
उत्तर:
भारत में लोकतंत्र को प्रभावी बनाने में देश में उपस्थित दबाव समूहों तथा राजनीतिक दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। इसका संक्षिप्त वर्णन अधोलिखित है-
दबाव समूहों की भूमिका-(Role of Pressure Groups):
1. सार्वजनिक नीतियों में के निर्माण को प्रभावित करना (To influence the making of Public Policies and Laws)-प्रत्येक दबाव समूह के लिए यह आवश्यक होता है कि वे सरकार के दवारा बनाई जाने वाली नीतियों को अपने सदस्यों के हितों की सुरक्षा के लिए प्रभावित करें। दबाव समूह सार्वजनिक सभाओं, प्रदर्शनियों एवं बातचीत के माध्यम से सरकार की नीतियों तथा कानूनों के निर्माण को अपने हित के लिए प्रयोग करने का प्रयास करते हैं।

2. राजनीतिक दलों को अपने प्रभावाधीन रखना (To keep the Political Parties under their influence) दबाव समूह सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक दलों को अपने प्रभाव से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। इसके लिए वे राजनीतिक दलों को गप्त रूप से चंदा इत्यादि भी देते हैं। इस प्रकार अपने हितों की सुरक्षा हेतु दबाव समूह सरकार से सहायता लेते रहते हैं।

3. प्रचार करना (To make Propaganda)-धर्म, जाति, इत्यादि के नाम पर जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए तथा अपने उद्देश्यों का प्रचार करने की आवश्यकता को देखते हुए दबाव समूह कई प्रकार के आंदोलन भी चलाते हैं ताकि जनता को प्रभावित किया जा सके।

4. सरकारी अधिकारियों से संपर्क स्थापित करना (To Establish contacts with Governmental Authorities)-दबाव समूहों को अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है कि वे सरकारी अधिकारियों से संपर्क स्थापित करें। वर्गीय दबाव समूह (Sectional Pressure Groups) विशेष रूप से सरकारी गोधा संबंध रखते हैं क्योंकि सरकार अधिकारियों के माध्यम से ही उनको सरकार की नीतियों की जानकारी मिलती है।

राजनीतिक दलों की भूमिका-(Role of Political Parties):
1. गठबंधन की राजनीति का विकास (Side of Coalitional Politics)-भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के अस्तित्व में आने से गठबंधन की राजनीति का विकास हुआ है। पिछले छः चुनावों में लटकती संसद् (Hung Parliament) के अस्तितत्व में आने से यह बात स्पष्ट हो गई है कि कोई भी राजनीतिक दल गठबंधन किए बिना राजनीतिक शक्ति को ग्रहण नहीं कर सकता।

15वीं लोकसभा के चुनाव भी मुख्यतः तीन गठबंधनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों का गठबंधन तथा वामपंथी दलों के गठबंधन के बीच लड़े गए। राजनीति में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि भविष्य में भी कोई दल गठबंधन किए बिना चुनाव में सफलता ग्रहण नहीं कर सकता है।

2. क्षेत्रवाद का बढ़ता प्रभाव (Increasing Influence of Regionalism)-राजनीति में बढ़ता क्षेत्रवाद लोगों में राष्ट्रवादी भावना को कम करने में अहम् भूमिका निभाता है। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने क्षेत्रवाद को काफ़ी अधिक प्रेरित किया है। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का प्रभाव कुछ क्षेत्र विशेष तक ही सीमित होता है। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की सरकारों का निर्माण जहां पर होता है। उन राज्यों में ही अब वह दल अधिक सक्रिय भी रहते हैं।

3. केंद्र में साझा सरकारों का आगमन (Advent of Coalitional Governments at the Centre)-देश में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में बढ़ोत्तरी के परिणामस्वरूप ही केंद्र में साझा सरकारों का गठन होना आरंभ हुआ है। अनेकों क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधि जब चुन कर लोकसभा के सदस्य बनते हैं तो उससे साझा सरकारों का निर्माण होता है। 1989 से लेकर वर्तमान समय तक लोकसभा के चुनावों के पश्चात् साझा सरकारें अस्तित्व में आईं।

4. संघवाद का नवीन रूप (New form of Federalism)-जब देश में कांग्रेस की राजनीतिक प्रमखता थी तब भारत में सहयोगी संघवाद का अस्तित्व था। केंद्र और राज्यों में एक ही दल की सरकार होने के कारण केंद्र और राज्यों के बीच तनाव कम था। लेकिन वर्तमान समय में क्षेत्रीय दलों के बढ़ते प्रभाव के कारण केंद्रवाद की (Centralism) की प्रवृत्ति का विकास होना रुक गया है। क्षेत्रीय दल केंद्रीयकरण के विरुद्ध हैं और राज्यों को अधिक-से-अधिक शक्तियां देने के हक में हैं। क्षेत्रीय दलों के ऐसे दृष्टिकोण के कारण केंद्र सरकार के लिए संघवाद-विरोधी कोई भी कार्यवाही करना मुश्किल हो गया है, क्योंकि कई क्षेत्रीय दल स्वयं सरकार में शामिल हैं।

प्रश्न 16.
लोकतंत्र का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं, गुणों तथा अवगुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
लोकतंत्र सरकार का ही एक प्रकार है जिसमें जनता का शासन होता है। इसमें जनता के प्रतिनिधि वोटरों के द्वारा, बालिगों द्वारा वोट देने की प्रक्रिया के द्वारा चुने जाते हैं। यह स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारे के संकल्पों में विश्वास रखती है तथा यह ही इसके कार्यात्मक आधार हैं। इसमें समाज तथा व्यक्तिगत लोगों के विकास का पूर्ण स्कोप होता है। इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) जनता का शासन-लोकतंत्र में प्रशासन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चलाया जाता है तथा लोकतंत्र में हरेक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।

(ii) जनता के हित-लोकतंत्र में प्रशासन को जनता के हितों के अनुसार चलाया जाता है तथा कमज़ोर तबके का सरकार द्वारा अच्छे ढंग से ध्यान रखा जाता है।

(iii) समानता का सिद्धांत-लोकतंत्र का मुख्य सिद्धांत समानता का सिद्धांत है। लोकतंत्र में हरेक व्यक्ति को समान समझा जाता है। किसी के साथ जन्म, शिक्षा, संपदा, जाति इत्यादि किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता है। सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं। हरेक व्यक्ति को Universal Adult Franchise के अनुसार वोट देने का अधिकार प्राप्त है।

(iv) बहुमत का शासन-लोकतंत्र बहुमत का शासन है। लोकतंत्र में सभी निर्णय बहुमत द्वारा लिए जाते हैं। जिस दल को चुनाव में बहुमत प्राप्त होता है वह ही सरकार बनाता है। यहां तक कि सभी निर्णय बहुमत द्वारा ही लिए जाते हैं।

लोकतंत्र के गुण अथवा लाभ-
आधुनिक समय में लोकतंत्र को सबसे अच्छा शासन माना जाता है। इसलिए ही अधिकतर देशों ने लोकतंत्र के सिदधांत को अपनाया है। इसके कुछ लाभ हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) यह जनमत पर आधारित है-लोकतंत्र शासन की एक व्यवस्था है जोकि जनमत पर आधारित है तथा जिसमें शासन को जनता की इच्छा के अनुसार चलाया जाता है। तानाशाही तथा राजतंत्र में जनता की इच्छा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता तथा इसमें कानूनों को भी जनमत के अनुसार ही बनाया जाता है।

(ii) यह समानता के सिद्धांत पर आधारित है-लोकतंत्र में सभी व्यक्तियों को समान समझा जाता है। किसी को म. लिंग. संपदा के आधार पर कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होता है। साधारण जनता को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी का अधिकार दिया गया है तथा सभी को समान समझा जाता है।

(iii) उत्तरदायी सरकार–तानाशाही तथा राजतंत्र में सरकार किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होती परंतु लोकतंत्र में सरकार जनता तथा संसद् के प्रति जवाबदेह होती है। सरकार को जनमत के अनुसार ही कार्य करना पड़ता है। यह जनमत के विरुद्ध कार्य नहीं करती है अन्यथा इसे अगले चुनावों में जनता द्वारा सत्ता से उखाड़ कर फेंक दिया जाता है।

(iv) शक्तिशाली तथा सक्षम सरकार-लोकतंत्र में सरकार शक्तिशाली तथा सक्षम होती है। शासन को जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है तथा उन्हें जनता का समर्थन प्राप्त होता है। शासक जनता के समर्थन से प्रेरित होते हैं। इसलिए ही वह अपने निर्णय संपूर्ण शक्ति के साथ लेते हैं। शासन जनमत से नियंत्रित होते हैं तथा यह अपने निर्णयों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार यह सक्षम रूप से कार्य करते हैं।

लोकतंत्र के अवगुण- लोकतंत्र के लाभों को देखने के बाद हम कह सकते हैं कि यह शासन सबसे अच्छा है परंतु यह ठीक नहीं है। इस व्यवस्था के कुछ अवगुण भी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
(i) समानता का सिद्धांत अप्राकृतिक है-लोकतंत्र का मुख्य आधार समानता का सिद्धांत है परंतु आलोचक यह कहते हैं कि समानता का सिद्धांत ही अप्राकृतिक है। यहां तक कि प्रकृति ने मनुष्यों में समानता नहीं रखी है। कुछ लोग बेवकूफ हैं, कुछ शक्तिशाली, कुछ चालाक तथा कुछ कमज़ोर। अगर प्रकृति ने भी इस प्रकार का भेदभाव रखा है तो किस प्रकार सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता को रखा जा सकता है। समानता का सिद्धांत इसका सबसे बड़ा अवगुण है कि सभी को समान अधिकार दिए गए हैं।

(ii) गुणों की बजाए संख्या को महत्त्व देना-लोकतंत्र में गुणों की बजाए संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। दूसरे शब्दों में लोकतंत्र में सभी निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं। अगर 100 बेवकूफ यह कहें कि कोई चीज़ ठीक है तथा 99 बदधिमान यह कहें कि यह गलत है तो 100 बेवकफों का निर्णय ही माना जाएगा। जनता के प्रतिनिधि भी बहुमत से चुने जाते हैं। हरेक बेवकूफ तथा बुद्धिमान को वोट देने का अधिकार है तथा ग़लत व्यक्ति भी जनता का प्रतिनिधि बन सकता है।

(iii) यह जवाबदेह सरकार का गठन नहीं करता-चाहे लोकतंत्र में सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होती है परंतु ऐसा असल में होता नहीं है। चुनाव के बाद नेता कभी भी जनता का ध्यान नहीं रखते हैं तथा जनता के पास दोबारा अगले चुनावों के समय ही आते हैं। बहुमत वाला दल कभी भी विरोधी अथवा अल्पसंख्यक दलों की परवाह नहीं करता है।

(iv) अस्थिर तथा कमज़ोर सरकार-लोकतंत्र में सरकार अस्थिर तथा कमज़ोर होती है। बहदलीय व्यवस्था में सरकार तेज़ी से बदलती है। बहुमत के अभाव में कई दल इकट्ठे मिलकर सरकार का गठन करते हैं। इस प्रकार की मिश्रित सरकार को कभी भी तोड़ा जा सकता है। समस्या के समय, लोकतांत्रिक सरकार कमज़ोर सरकार सिद्ध होती है। निर्णय काफ़ी तेजी से नहीं लिए जाते हैं।

प्रश्न 17.
राजनीतिक दल का क्या अर्थ है? परिभाषाओं सहित वर्णन करें।
अथवा
राजनीतिक दल क्या है?
उत्तर:
राजनीतिक दल प्रत्येक प्रकार की सरकारों में मिल जाते हैं। अन्य प्रकार की सरकारों की तुलना में लोकतंत्र में राजनीतिक दल की बहुत महत्ता है। बहुत सारे विद्वानों ने इसको परिभाषित करने की कोशिश की है। परंतु प्रत्येक अच्छे राजनीतिक दल की अपनी विशेषताएं होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक राजनीतिक दल से यह आशा की जाती है कि वह कछ आरंभिक कार्य करे जिनके बिना उसका अस्तित्व नहीं रह सकता।

राजनीतिक दल की महत्ता इसलिए अधिक होती है क्योंकि यह लोगों एवं सरकार के बीच एक कड़ी का कार्य करते हैं। कुछ राजनीतिक दल इतने शक्तिशाली होते हैं कि उनका अपने सदस्यों पर इतना कड़ा नियंत्रण होता है कि वह इस दल को छोड़ नहीं सकते। इस प्रकार कुछ राजनीतिक दल इतने कमज़ोर होते हैं कि उनका अपने सदस्यों पर नियंत्रण नहीं होता और यह सदस्य कभी भी अपने दल को छोड़कर चले जाते हैं।

कुछ समाजों में एक दलीय (दल की) व्यवस्था होती है। वहां पर एक ही दल सत्तासीन रहता है और अन्य दलों को बनने भी नहीं दिया जाता है। कुछ समाजों में बहुदलीय व्यवस्था होती है। वहां पर दलों का काफ़ी भंडार होता है। किसी भी राजनीतिक दल की कठोरता व कमजोरी उसके सदस्यों की शक्ति पर निर्भर करती है। इसकी वैधता भी उसकी सत्ता में आने पर निर्भर करती है। लोकतंत्र में इसकी लोकप्रियता और जनता में विश्वास इस बात पर निर्भर करता है कि पिछले चुनावों में उसे कितनी वोटें प्राप्त हुईं।

परिभाषाएं प्रत्येक राजनीतिक दल लोगों के द्वारा बनाया होता है। जिनका किसी राजनीतिक विषय पर साझा कार्यक्रम होता है और यह उस विषय को लागू करने हेतु Common line of action पर सहमति प्रकट करते हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल केवल अकेला या फिर दूसरे दलों के साथ मिलकर सत्ता में आने की कोशिश करता है।
(1) बर्क (Burke) के अनुसार, “ये कुछ व्यक्तियों की संस्था है, जो कि राष्ट्रीय हितों को बढ़ाने के लिए इकट्ठे होते हैं, और वो कुछ साझे राजनीतिक सिद्धांतों को मानते हैं।”

(2) गिलक्रिस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “ये लोगों का एक व्यवस्थित समूह है, जो कुछ राजनीतिक विचार साझे रखते हैं और जो एक राजनीतिक इकाई में बंध कर सरकार के ऊपर नियंत्रण रखने की कोशिश करते हैं।”

(3) फ़ाइनर (Finer) के अनुसार, “एक राजनीतिक दल एक संगठित इकाई है, जो कि इच्छुक सदस्यों पर आधारित है, और वो अपनी शक्ति को राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करने में खर्च करता है।”

(4) जी० सी० फील्ड (G.C. Field) के अनुसार, “एक राजनीतिक दल कुछ नहीं, बल्कि लोगों की इच्छुक सभा है, जिसका महत्त्व राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना होता है।”

इस प्रकार, इन उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि राजनीतिक दल एक संगठित समूह है, जो कुछ नियमों के साथ बंधा हुआ होता है, इसकी सदस्यता इच्छा पर निर्भर करती है, जो कभी भी ग्रहण की जा सकती है, और छोड़ी भी जा सकती है। यह लोगों की सभा है जिसका एकमात्र उद्देश्य सत्ता प्राप्ति करना होता है। इसके लिए सभी मिलकर कोशिश करते हैं। इनके सदस्यों के विचार साझे होते हैं क्योंकि यह एक दल के साथ संबंध रखते हैं।

प्रश्न 18.
राजनीतिक दल की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
(1) प्रत्येक राजनीतिक दल को यह विश्वास होता है कि उसके कुछ विरोधी अवश्य होते हैं। यदि वह आज नहीं हैं तो आने वाले दिनों में बन जायेंगे। प्रत्येक राजनीतिक दल का एक संगठन होता है। इसलिए यह अपने आप में ही एक संस्था होती है।

(2) क्योंकि राजनीतिक विचार एवं इच्छाएं सभी लोगों की भिन्न-भिन्न होती हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल की नीतियां भी अलग-अलग होती हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल कुछ विशेष नीतियों के कारण स्वयं को दूसरे राजनीतिक दलों से अलग सिद्ध करता है। प्रत्येक राजनीतिक दल का उद्देश्य होता है सत्ता प्राप्त करना और जिसके पास यह शक्ति है, वह इसे कायम रखना चाहता है।

(3) एक अच्छे राजनीतिक दल की यह विशेषता होती है कि ये पूर्ण तौर पर संगठित होता है और इसके सदस्य भी अनुशासित होते हैं। दल का इन पर पूर्ण नियंत्रण होता है। वह अपनी पार्टी या दल के सिद्धांतों को खुशी के साथ स्वीकार करते हैं और वह इनको मानते हुए अपनी कठिनाइयों को भी भूल जाते हैं। वह दल के नियंत्रण को अन्य वस्तुओं से ऊपर रखते हैं।

(4) राजनीतिक दल की एक विशेषता यह होती है कि इसके सदस्यों का कुछ Common नीतियों पर विश्वास होना चाहिए और इन्हें उनको कुछ विशेष अवसरों पर दिखाना चाहिए।

(5) इसकी नीतियों एवं कार्यों में निरंतरता होनी चाहिए। इसको स्वयं को कुछ विशेष नीतियों पर संगठित रखना चाहिये। क्योंकि किसी भी नेता का चमत्कार अधिक समय तक टिका नहीं रह सकता। जैसे कि 1984 से 1989 तक राजीव गांधी के साथ हुआ था। जब उस नेता का चमत्कार समाप्त हो जायेगा तो वह भी स्वतः समाप्त हो जायेगा।

(6) एक अच्छे राजनीतिक दल के सदस्यों का एक साझे कार्यक्रम एवं कार्य करने में विश्वास होना चाहिए। जो कि इसकी भावी नीतियों के अनुसार होते हैं। यदि ऐसा नहीं होगा तो झगड़े बढ़ेंगे और दलों में फूट पड़ेगी।

(7) इसकी ज़िम्मेदारियों को लेने के लिए तैयार रहना पड़ेगा और केवल उस दल के ही दोष नहीं गिनवाने चाहिए, जो दल सत्ता के बीच हो और वह स्वयं विरोधी दल में है। जब आवश्यकता पड़ने पर उसे सरकार बनाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

(8) एक राजनीतिक दल को जन समर्थन प्राप्त होना चाहिए या उसकी लोकप्रियता लोगों के बीच में होनी चाहिए। यदि यह नहीं होगी तो लोग उसे कभी सत्ता नहीं सौंपेगे और यह अपनी राजनीतिक नीतियों को पूरा नहीं कर पायेगा।

(9) एक राजनीतिक दल को देश के हितों के ऊपर राज्य के या क्षेत्रीय हितों को महत्त्व नहीं देना चाहिए और इसको विदेशियों के स्थान पर देश के लोगों का समर्थन लेना चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक राजनीतिक दल को देश के हित को ध्यान में रखकर अपनी नीतियों को बनाना चाहिए।

(10) प्रत्येक राजनीतिक दल को संवैधानिक साधनों में पूर्ण विश्वास होना चाहिए। जो राजनीतिक दल
साधनों के अतिरिक्त अन्य किसी साधनों में विश्वास करता है, उसको किसी भी प्रकार की सरकार में कार्य नहीं करने देना चाहिए। उसकी दूसरी गतिविधियों के ऊपर भी तुरंत रोक लगा देनी चाहिए।

(11) प्रत्येक अच्छे राजनीतिक दल का एक राष्ट्रीय चरित्र होना चाहिए और उसे किसी विशेष समूह, जाति या क्षेत्र की अगुवाई नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक अच्छे राजनीतिक दल में बहुत-सी अच्छी विशेषताएं होनी चाहिएं और ऐसे कार्य करने चाहिए जो कि देश के निर्माण में सहायक सिद्ध हों।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 19.
राजनीतिक दल के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रत्येक प्रकार की सरकारों में राजनीतिक दलों के लिए कुछ कार्य करने आवश्यक होते हैं। यद्यपि ये सरकारें या राजनीतिक दल संगठनों के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इनके कार्य किये बिना लोकतंत्र को चलाना काफ़ी कठिन है। राजनीतिक दलों के कार्यों का वर्णन निम्नलिखित है-
1. यह लोकमत बनाते हैं लोगों की कभी भी एकमत राय नहीं होती है। यद्यपि लोगों के अनेक भिन्न-भिन्न मत होते हैं, परंतु उनका देश हेतु कोई विशेष महत्त्व नहीं होता है। यह राजनीतिक दलों का कार्य होता है कि वह भिन्न-भिन्न मतों को इकट्ठा करके एक लोकराज्य का निर्माण करें और उसे एक संगठित रूप प्रदान करें। यदि राजनीतिक दल ऐसा नहीं करेंगे तो भिन्न-भिन्न राय बेकार चली जायेगी, यह केवल इन दलों के कारण ही इसे आकार मिलता है, और यह किसी विशेष दिशा में बन जाते हैं।

2. यह राजनीतिक शिक्षा देते हैं-साधारणतयः लोग अपने-अपने कार्यों में व्यस्त होते हैं और उनके पास राजनीतिक शिक्षा लेने का कोई भी साधन नहीं होता। अपनी बढ़ती हुई आवश्यकताओं के कारण वह केवल आर्थिक कार्यों की तरफ ही ध्यान देते हैं। केवल चुनावों के समय ही राजनीतिक दल, बड़ी-बड़ी मीटिंगें, जुलूस आदि करते हैं और लोगों को राजनीतिक तौर पर शिक्षित करते हैं। यहां पर ही लोगों को देश की कठिनाइयों का पता चलता है। इस प्रकार राजनीतिक दल लोगों को राजनीतिक शिक्षा देते हैं।

3. यह चुने गये और चुने जाने वालों में कड़ी होती है-राजनीतिक दल चुने गये और चुनने वालों में कड़ी का कार्य करते हैं। इन दलों के अतिरिक्त लोगों के विचारों को पता करने का कोई साधन नहीं होता है। इसी प्रकार लोगों के पास अपनी कठिनाइयों को सरकार के पास पहुंचाने का अन्य कोई साधन नहीं होता है।

राजनीतिक दलों के सदस्य हमेशा लोगों के नज़दीक रहते हैं ताकि वह लोगों के विचारों को जानकर अपने दल को बता सकें। इस तरह यह चुने गये और चुनने वालों के बीच कड़ी का कार्य करते हैं।

4. उम्मीदवार चुनने में सहायता करते हैं राजनीतिक दल चुनावों के समय उम्मीदवार चुनने में सहायता करते हैं। वोटर आमतौर पर उम्मीदवारों को उसके विचारों को नहीं जानते। दलों के बिना लोगों के लिए सही प्रत्याशी का चयन करना मुमकिन नहीं होता। उम्मीदवार सदैव अपने राजनीतिक दल के नाम से जाना जाता है। उसको उसकी पार्टी की वजह से ही वोट मिलते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल लोगों को अपना सही प्रत्याशी चुनने में सहायता करते हैं।

5. लोगों की कठिनाइयां सरकार तक पहुंचाते हैं राजनीतिक दल सदैव लोगों की कठिनाइयां सरकार तक पहुंचाने में सहायता करते हैं। जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में नहीं होता तो वह लोगों की शरण में जाता है। वह उनकी कठिनाइयों को सुनकर, उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर सरकार तक पहुंचाते हैं। चाहे वह इनको बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं परंतु इसके साथ कम-से-कम सरकार को उनकी कठिनाइयों के बारे में पता चलता है और वह उनको दूर करने की कोशिश करती है।

6. राष्ट्रीय हितों को महत्ता-प्रत्येक राजनीतिक दल क्षेत्रीय हितों पर किसी विशेष समूह के हितों के विपरीत राष्ट्रीय हितों को महत्त्व देता है। यह साधारण सी बात है यदि कोई दल किसी जाति समूह तक सीमित रहकर कार्य करेगा तो वह संपूर्ण लोगों में प्रसिद्ध नहीं हो सकेगा। इसलिए प्रत्येव राजनीतिक दल अपने आपको राष्ट्रीय दल के रूप में पेश करता है। इस प्रकार देश के हितों को क्षेत्रीय हितों पर महत्त्व प्राप्त हो जाता है। प्रत्येक राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा-पत्र को राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर बनाता है ताकि अधिकाधिक लोग उसकी तरफ आकर्षित हों।

7. यह सदभावना एवं सहयोग लाते हैं-राजनीतिक दल सरकार के भिन्न-भिन्न अंगों में तालमेल बिठाकर उनमें सहयोग लाने की कोशिश करते हैं। जो दल सरकार में होता है वह इस बात का विशेष ध्यान रखता है कि सरकार के भिन्न-भिन्न अंग संपर्क रूप से कार्य करें। अन्य दल कार्य को सही तरीके के साथ चलाने में सहायता करते हैं।

8. राजनीतिक स्थिरता लाने में सहायता करते हैं-राजनीतिक दल राजनीतिक स्थिरता लाने में सहायता करते हैं। यह अस्थिरता की स्थिति में से बाहर निकलने की पूरी कोशिश करते हैं ताकि देश संपन्न रूप से चल सके। किसी भी प्रकार हो यह जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने में सहायता करता है।

9. नये राजनीतिक नेताओं की भर्ती करते हैं-प्रत्येक राजनीतिक दल ऐसे नेताओं को अपने दल में भर्ती करना चाहता है जो लोगों को अपनी तरफ खींच सकें। यदि सही नेता राजनीतिक दल के पास हो तो यह काफ़ी देर तक सत्ता में रह सकता है। इस प्रकार प्रत्येक राजनीतिक दल सदैव ऐसे नेता की तलाश में रहता है जो लोगों की नब्ज पर हाथ रख सके।

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. 1998 में भारत पर आर्थिक प्रतिबंध क्यों लगा दिए गए थे?
(A) भारत ने पाकिस्तान पर युद्ध थोप दिया था।
(B) भारत ने यू० एन० ओ० के विरुद्ध कुछ कार्य किए थे।
(C) भारत ने परमाणु परीक्षण किए थे
(D) भारत अमेरिका के विरुद्ध था।
उत्तर:
भारत ने परमाणु परीक्षण किए थे।

2. भारत में उदारीकरण तथा विश्वव्यापीकरण की प्रक्रिया कब शुरू हुई थी?
(A) 1980 के बाद
(B) 1991 के बाद
(C) 1981 के बाद
(D) 2004 के बाद।
उत्तर:
1991 के बाद।

3. भारत के किस वित्त मंत्री ने उदारीकरण तथा विश्वव्यापीकरण की प्रक्रिया शुरू की थी?
(A) मनमोहन सिंह
(B) पी० चिदंबरम
(C) जसवंत सिंह
(D) यशवंत सिंहा।
उत्तर:
मनमोहन सिंह।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

4. किस प्रधानमंत्री ने मनमोहन सिंह को भारत का वित्त मंत्री नियुक्ति किया था?
(A) चंद्रशेखर
(B) वाजपेयी
(C) नरसिम्हा राव
(D) वी० पी० सिंह।
उत्तर:
नरसिम्हा राव।

5. नियंत्रित अर्थव्यवस्था से अनावश्यक प्रतिबंधों को हटा लेने को …………………….. कहते हैं।
(A) निजीकरण
(B) विश्वव्यापीकरण
(C) उदारीकरण
(D) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
उदारीकरण।

6. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें अलग-अलग देशों के बीच मुक्त व्यापार, सेवाओं, पूंजी निवेश तथा लोगों का आदान प्रदान होता है।
(A) निजीकरण
(B) विश्वव्यापीकरण
(C) आधुनिकीकरण
(D) उदारीकरण।
उत्तर:
विश्वव्यापीकरण।

7. भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वव्यापीकरण का अच्छा प्रभाव क्या पड़ा?
(A) विश्व निर्यात में भारत के हिस्से में वृद्धि
(B) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में वृद्धि
(C) विदेशी मुद्रा में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

8. सार्वजनिक उपक्रमों को व्यक्तिगत हाथों में देने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
(A) निजीकरण
(B) विश्वव्यापीकरण
(C) आधुनिकीकरण
(D) उदारीकरण।
उत्तर:
निजीकरण।

9. उदारीकरण का मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
(A) रोज़गार के अधिक साधन विकसित करना
(B) विदेशी निवेश को आकर्षित करना
(C) निजी क्षेत्रों को अधिक स्वतंत्रता देना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

10. इनमें से कौन-सा उदारीकरण का लक्षण है?
(A) अधिकतर उद्योगों में लाइसेंस व्यवस्था खत्म करना
(B) सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करना
(C) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सीमा बढ़ाना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

11. विश्वव्यापीकरण का क्या सिद्धांत है?
(A) देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलना
(B) कस्टम कर को कम-से-कम रखना
(C) सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

12. इनमें से कौन-सा उदारीकरण का दुष्परिणाम है?
(A) बेरोज़गारी का बढ़ना
(B) विदेशी कर्ज के बोझ का बढ़ना
(C) निर्यात में कमी तथा आयात में वृद्धि
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व व्यापार संगठन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसे 1955 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा स्थापित किया गया है। यह संगठन अलग-अलग विधानों, नियमों तथा नीतियों के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा सेवाओं का नियमन करता है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है।

प्रश्न 2.
संस्कृति के मिलन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आजकल का समय भूमंडलीकरण का समय है जिसमें संसार भर के लोगों की जीवन पद्धति एक समान हो गई है। इसके साथ-साथ उनके उपभोग तथा प्रयोग की वस्तुएं भी एक समान हैं। इसी को ही संस्कृति का मिलन कहते हैं।

प्रश्न 3.
भूमंडलीकरण ग्राम का क्या अर्थ है?
उत्तर:
बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने व्यापार तथा संबंधों को बढ़ाने के लिए अलग-अलग देशों में अलग-अलग कंपनियां तथा उद्यमों की स्थापना कर रही हैं। इससे संपूर्ण विश्व एक वैश्विक ग्राम में परिवर्तित हो रहा है। इसे ही भूमंडलीय ग्राम का नाम दिया जाता है अर्थात् संपूर्ण विश्व एक ग्राम की भांति हो गया है।

प्रश्न 4.
भूमंडलीकरण के बारे में लोगों के क्या विचार हैं?
उत्तर:
भूमंडलीकरण के बारे में दो प्रकार के विचार व्याप्त हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भूमंडलीकरण से विश्व एक बेहतर विश्व के रूप में सामने आएगा। परंतु कुछ लोगों को डर है कि इससे अमीर लोगों को तो बहुत ही लाभ होगा तथा निर्धन लोगों की हालत बद से बदतर होती चली जाएगी।

प्रश्न 5.
भूमंडलीकरण का सामाजिक क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
भूमंडलीकरण ने सामाजिक संबंधों तथा धार्मिक पहचान को काफी प्रभावित किया है। इसने लोगों के फैशन, खाने-पीने, उपभोग की प्रवृत्ति तथा जीवन-शैली पर काफ़ी प्रभाव डाला है। अब संसार के एक
भाग में दूसरे भाग की हरेक चीजें मौजूद हैं।

प्रश्न 6.
उपभोग की संस्कृति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भूमंडलीकरण की प्रक्रिया से संसार में उपभोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आज का आधुनिक समाज उपभोग का समाज है तथा लगभग सभी ही एक जैसी वस्तुओं का उपभोग करते हैं। इस उपभोगवादी समाज की संस्कृति को उपभोग की संस्कृति कहा जाता है।

प्रश्न 7.
उदारीकरण का क्या अर्थ है?
अथवा
मुक्तिकरण से क्या तात्पर्य है?
अथवा
उदारीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से अनावश्यक प्रतिबंध हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं। यह एक आर्थिक प्रक्रिया है तथा यह समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

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प्रश्न 8.
आर्थिक सुधारों का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का अर्थ है भारतीय व्यापार को नियमित करने वाले नियमों और वित्तीय नियमनों को हटा देना। इसके लिए कुछ उपाय किए गए हैं जिन्हें आर्थिक सुधार भी कहा जाता है। यह सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख क्षेत्रों में आए हैं।

प्रश्न 9.
पारराष्ट्रीय निगम कौन-से होते हैं?
उत्तर:
पारराष्ट्रीय निगम ऐसी कंपनियां होती हैं जो एक-से-अधिक देशों में अपने माल का उत्पादन करती हैं अथवा बाज़ार सेवाएं प्रदान करती हैं तथा एक-से-अधिक देशों में अपने उत्पाद बेचती हैं। यह अपेक्षाकृत छोटी फर्मे भी हो सकती हैं तथा विशाल अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठान भी हो सकते हैं।

प्रश्न 10.
भूमंडलीकरण के दो सिद्धांत बताएं।
उत्तर:

  • विदेशी निवेश के लिए देश की अर्थव्यवस्था को खोल देना क्योंकि इस व्यवस्था में आपको और देशों में भी मुक्त व्यापार की आज्ञा होती है।
  • इसमें सीमा शुल्क को काफी हद तक कम कर दिया जाता है ताकि विदेशी उत्पाद आपके देश में अधिक महंगा न हो।

प्रश्न 11.
कॉरपोरेट संस्कृति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कॉरपोरेट संस्कृति प्रबंधन के सिद्धांत का एक भाग है जो किसी कंपनी के तमाम सदस्यों को संगठनात्मक शक्ति की सहायता से किसी चीज़ की उत्पादकता तथा प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रोत्साहित करती है।

प्रश्न 12.
उदारीकरण क्या होता है?
उत्तर:
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उदयोगों तथा व्यापार पर से अनावश्यक प्रतिबंध हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं। यह एक आर्थिक प्रक्रिया है तथा यह समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

प्रश्न 13.
भूमंडलीकरण क्या होता है?
अथवा
भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण क्या है?
उत्तर:
भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है अर्थात् एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूंजी तथा श्रम के अप्रतिबंधित आदान-प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है।

प्रश्न 14.
उदारीकरण के क्या कारण होते हैं?
उत्तर:

  • देश में रोज़गार के साधन विकसित करने के लिए ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।
  • उद्योगों में ज्यादा-से-ज्यादा प्रतिस्पर्धा पैदा करना ताकि उपभोक्ता को ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त हो सके।

प्रश्न 15.
निजीकरण क्या होता है?
उत्तर:
लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देशों जहां पर मिश्रित प्रकार की अर्थव्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक उपक्रम होते हैं जोकि सरकार के नियंत्रण में होते हैं। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपना ताकि यह और ज्यादा लाभ कमा सकें। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने को निजीकरण कहते हैं।

प्रश्न 16.
भारत पर भूमंडलीकरण का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  • भारत की विश्व निर्यात के हिस्से में वृद्धि हुई।
  • भारत में विदेशी निवेश में वृद्धि हुई।
  • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा।

प्रश्न 17.
उदारीकरण की प्रक्रिया किस नीति से संबंधित है?
उत्तर:
उदारीकरण की प्रक्रिया विदेशी कंपनियों के लिए देश के दरवाज़े खोलने से संबंधित है।

प्रश्न 18.
भूमंडलीकरण का संबंध भारत की कौन-सी नीति से है?
उत्तर:
संसार की सभी देशों में कर मुक्त व्यापार हो तथा संसार के अलग-अलग हिस्सों में मिलने वाली वस्तुएं सभी के लिए उपलब्ध हों।

प्रश्न 19.
भारत के किसी एक महानगर का नाम बताएं।
उत्तर:
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई भारत के महानगर हैं।

प्रश्न 20.
उदारीकरण की नीति के अंतर्गत विश्व व्यापार संगठन में भागीदारी होती है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 21.
इलेक्ट्रॉनिक अर्थव्यवस्था भूमंडलीकरण का एक आयाम है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 22.
उपग्रह-प्रौद्योगिकी की सहायता से हम सुदूर बैठे मित्रों को अपने दस्तावेज भेज सकते हैं। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 23.
भूमंडलीकरण का एक आयाम लिखें।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक अर्थव्यवस्था भूमंडलीकरण का एक आयाम है।

प्रश्न 24.
किसी एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का नाम लिखिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन, वर्ल्ड बैंक इत्यादि।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 25.
पहली बार वित्त का भूमंडलीकरण किस कारण से हुआ?
उत्तर:
वस्तुओं की पूर्ति के लिए।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उदारीकरण से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
उदारीकरण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के गैर ज़रूरी प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से गैर ज़रूरी प्रतिबंधों को हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं।

उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विश्व के अलग-अलग देशों के बीच व्यापारिक तथा आर्थिक संबंधों को अधिक विस्तार की दृष्टि से भूमंडल के सदस्य देशों को ऐसी सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि विश्व में मुक्त बाज़ार फैल सके तथा बेहतर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके। इस नीति से अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता बढ़ती है तथा निजी उद्योगों में सार्वजनिक उद्योगों की अपेक्षा बेहतर परिणाम देने की क्षमता होती है।

प्रश्न 2.
भूमंडलीकरण की प्रक्रिया का अर्थ समझाएं।
अथवा
भूमंडलीकरण के बारे में संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है। अन्य शब्दों में एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा तथा श्रम के अप्रतिबंधित आदान-प्रदान को भूमंडलीकरण कहा जाता है।

इस प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार विश्व अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है। भूमंडलीकरण के द्वारा सारी दुनिया एक विश्व ग्राम बन गई है।

प्रश्न 3.
इलेक्ट्रॉनिक अर्थव्यवस्था आर्थिक भूमंडलीकरण को कैसे सहारा देता है?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक अर्थव्यवस्था एक ऐसा कारक है जिसने आर्थिक भूमंडलीकरण को सहारा दिया है। केवल कंप्यूटर के माउस को दबाने से ही बैंक, निगम, निधि प्रबंधक तथा निवेशकर्ता अपने पैसे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इधर से उधर भेज सकते हैं।

चाहे इस प्रकार एक ही क्षण में इलेकट्रॉनिक मुद्रा इधर से उधर भेजने का यह ढंग काफ़ी खतरनाक है। भारत में मुख्यतया इसकी चर्चा शेयर मार्किट में होने वाले उतार-चढ़ाव के लिए की जाती है। यह उतार-चढ़ाव विदेशी निवेशकों द्वारा लाभ के लिए बड़ी मात्रा में शेयर बेचने या खरीदने के कारण आता है। ऐसे सौदे संचार क्रांति के कारण ही मुमकिन हो पाए हैं।

प्रश्न 4.
भूमंडलीकरण तथा रोज़गार का क्या संबंध है?
उत्तर:
भूमंडलीकरण तथा श्रम के बारे में एक और महत्त्वपूर्ण मुददा रोज़गार तथा भमंडलीकरण के बीच के संबंधों का है। बडे-बडे शहरों में मध्य वर्ग के यवाओं के लिए सचना प्रौदयोगिकी की क्रांति तथा भमंडलीकरण ने रोज़गार के नए-नए अवसर प्रदान कर दिए हैं। कॉलेज से नाम के लिए बी०ए०/बी० कॉम या बीएस०सी० की डिग्री लेने के स्थान पर वे कंप्यूटर केंद्रों से कंप्यूटर की भाषाएं सीख कर नौकरियां प्राप्त कर रहे हैं।

वे कॉल सेंटरों में या व्यापार प्रक्रिया बाहमोपयोजन (बी०पी०ओ०) कंपनियों में नौकरियां प्राप्त कर रहे हैं। वे विशाल शौपिंग माल्स में काम कर रहे हैं या हाल ही में खोले गए विभिन्न जलपान ग्रहों में नौकरी करते हैं। परंतु कई बार ऐसा भी हो रहा है कि निम्न वर्गों के लोगों के रोज़गार भूमंडलीकरण के कारण छिन भी रहे हैं।

प्रश्न 5.
पारराष्ट्रीय निगमों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भूमंडलीकरण को प्रेरित तथा संचालित करने वाले कारकों में पारराष्ट्रीय निगमों की भूमिका काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। पारराष्ट्रीय निगम ऐसी कंपनियां होती हैं जो अपने माल का उत्पादन एक से अधिक देशों में करती हैं या बाज़ार सेवाएं प्रदान करती हैं। यह छोटी कंपनियां भी हो सकती हैं, इनकी एक या दो फैक्ट्रियां उस देश से बाहर स्थित होती हैं जहां वह मूल रूप से स्थित हैं।

इसके साथ ही यह बड़े ही विशाल अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठान भी हो सकते हैं जिनका व्यापार संपूर्ण विश्व में फैला हुआ है जैसे कि कोका कोला, पैप्सी, जनरल मोटर्स, कोडैक, कोलगेट पामोलिव इत्यादि। भले ही इन निगमों का अपना एक स्पष्ट राष्ट्रीय आधार हो, फिर भी वे भूमंडलीय बाजारों तथा भूमंडलीय मुनाफा कमाना चाहती हैं। अब तो कुछ भारतीय निगम भी अंतर्राष्ट्रीय बन रहे है

प्रश्न 6.
भारत में सेलफोनों की संख्या में अत्याधिक वृद्धि क्यों हुई है?
उत्तर:
भारत में सेलफोन पहली बार 1995 में बजने शुरू हुए थे। उस समय मोबाइल सेवा काफ़ी महँगी थी तथा यह हरेक व्यक्ति नहीं ले सकता था। परंतु धीरे-धीरे इस सेवा ने सस्ता होना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे नई मोबाइल कंपनियां आगे आनी शुरू हो गई जिससे कंपनियों में प्रतिस्पर्धा होनी शुरू हो गई। टेलीकाम विभाग में ट्राई (नियामन आयोग) बनाया हुआ है जिसने मँहगी मोबाइल दरों पर लगाम कसनी शुरू कर दी।

पहले Incoming Calls पर पैसे लगने बंद हुए तथा फिर धीरे धीरे फोन करने के पैसे लगने कम होने शुरू हो गए। अब तो यह हाल है कि 1 पैसे प्रति 1 सैकेंड के हिसाब से पैसे लिए जाते है। मासिक शुल्क बहुत ही कम हो गए हैं। मोबाइल कंपनियां कई प्रकार की आर्कषक स्कीमें लेकर आ रही हैं ताकि ग्राहकों को लुभाया जा सके।

इसके साथ-साथ मोबाइल हैंडसैटों के मूल्य में काफ़ी कमी आई है। यही कारण है कि अब हरेक व्यक्ति मोबाईल ले रहा है। यहाँ तक कि रिक्शा चालकों, रेहड़ी खींचने वालों के पास भी मोबाईल है। यही कारण है कि भारत में सेलफोनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो गई है।

प्रश्न 7.
भूस्थानीकरण में कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भूस्थानीकरण एक ऐसी रणनीति है जो साधारणतया विदेशी कंपनियां अपना बाज़ार बढ़ाने के लिए स्थानीय परंपराओं के साथ व्यवहार में लाई जाती है। टी.वी. चैनल जैसे कि स्टार, एम.टी.वी., चैनल वी, कार्टून नेटवर्क इत्यादि सभी विदेशी चैनल हैं परंतु भारत में यह भारतीय भाषाओं का प्रयोग करते हैं।

यहां तक कि मैक्डॉनल्डस भी भारत में अपने निरामिष और चिकन के उत्पाद ही बेचता है, गोमांस के उत्पाद नहीं जो विदेशों में बहुत लोकप्रिय हैं। नवरात्रि पर्व के समय तो मैक्डॉनल्डस भी चिकन बेचना छोड़कर विशुद्ध निरामिष हो जाता है। संगीत के क्षेत्र में भांगड़ा पॉप, इंडिपॉप, फ्युजन म्यूज़िक तथा रीमिक्स गीतों की लोकप्रियता बढ़ रही है। इसे भी भूस्थानीकरण का ही एक रूप तथा उदाहरण कहा जा सकता है।

प्रश्न 8.
भूमंडलीकरण से राजनीतिक परिदृश्य में किस प्रकार परिवर्तन आया है?
उत्तर:
1990 में यू०एस०एस०आर० में समाजवाद का विघटन हो गया जो कि कई प्रकार से एक बड़ा परिवर्तन था। इस घटना ने भूमंडलीकरण की प्रक्रिया को और तेज़ कर दिया। इस कारण ही भूमंडलीकरण को प्रोत्साहित करने वाली आर्थिक नीतियों के प्रति एक विशेष आर्थिक तथा राजनीतिक दृष्टिकोण पैदा हो गया। इन परिवर्तनों को आम तौर पर नव-उदारवादी आर्थिक उपाय भी कहा जाता है।

भारत में उदारीकरण की नीति के अंतर्गत बहुत से ठोस कदम उठाए गए। मौटे तौर पर, इन नीतियों में मुक्त व्यापार से संबंधित राजनीतिक दूरदर्शिता दिखाई देती है। इसलिए यह नीति राज्य की ओर से विनियमन तथा आर्थिक सहायता (सब्सिडी) दोनों की ही आलोचक है।

इस प्रकार भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में राजनीतिक दूरदर्शिता उतनी ही आवश्यक है जिनती कि आर्थिक दूरदर्शिता। यह अलग बात है कि वर्तमान भूमंडलीकरण से अलग भूमंडलीकरण की भी संभावनाएं हैं। इस प्रकार हम एक समावेशात्मक (Inclusive) भूमंडलीकरण की कल्पना भी कर सकते हैं जिसमें समाज के सभी भाग शामिल होते हैं।

भूमंडलीकरण के साथ एक और महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम भी घटित हो रहा है तथा वह है राजनीतिक सहयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय रचनातंत्र। इस संबंध में यूरोपीय संघ, दक्षिण एशियाई राष्ट्र संघ (एशियान), दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग सम्मेलन (सार्क) तथा दक्षिण एशियाई व्यापार संघों का परिसंघ (बोर्डस) क्षेत्रीय संघों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शा रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सरकारी संगठनों तथा अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों का सामने आना भी एक और राजनीतिक आयाम पेश करता है। अंतर्राष्ट्रीय सरकारी संगठन एक ऐसा संगठन होता है जिसे सहभागी सरकारें स्थापित करती हैं तथा जिसे एक विशेष पारराष्ट्रीय कार्यक्षेत्र पर नियंत्रण रखने, नज़र रखने तथा उसे विनियमित करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है। जैसे कि W.T.O. को संसार भर में व्यापार प्रथाओं पर लागू नियमों का ध्यान रखना होता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूमंडलीकरण क्या होता है? इसके सिद्धांतों का वर्णन करो।
अथवा
भूमंडलीकरण के अर्थ की व्याख्या करें।
अथवा
भूमंडलीकरण क्या है? भूमंडलीकरण के प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर:
भारत में 1991 में नयी आर्थिक नीतियां अपनाई गईं। भूमंडलीकरण, उदारीकरण तथा निजीकरण इन नीतियों के तीन प्रमुख पहलू हैं। भारत में 1980 के दशक के दौरान भूमंडलीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई। नयी आर्थिक नीतियों या आर्थिक सुधारों के माध्यम से इसे गति प्रदान करने की कोशिश की गई। वैश्वीकरण आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाली एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के चलते भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं में कई प्रकार के परिवर्तन सामने आए।

भमंडलीकरण का अर्थ (Meaning of Globalization)-भमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है। अन्य शब्दों में एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूंजी तथा श्रम के अप्रतिबंधित आदान-प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं।

इस प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है। इस तरह विश्व अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है। भूमंडलीकरण के द्वारा सारी दुनिया एक विश्व ग्राम बन गई है।

भूमंडलीकरण के सिद्धांत-(Principles of Globalization):
भूमंडलीकरण के अंतर्गत कई महत्त्वपूर्ण बातों पर बल दिया जाता है। निश्चित कार्यक्रमों को अपनाने तथा आर्थिक नीतियों को अपनाने पर भी जोर दिया जाता है। भूमंडलीकरण के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
(i) विदेशी निवेश के लिए देश की अर्थव्यवस्था को खोल दिया जाता है क्योंकि इस व्यवस्था में आपको और देशों में भी मुक्त व्यापार की आज्ञा होती है तथा आप भी किसी और देश में निवेश कर सकते हैं। देश में विदेशी निवेश आता है तो एक तरफ देश आर्थिक तौर पर समृद्ध होता है तथा दूसरी तरफ देश में रोज़गार के नए साधन उत्पन्न होते है।

(ii) इसका दूसरा सिद्धांत यह है कि इसमें सीमा शुल्क को काफ़ी हद तक कम कर दिया जाता है ताकि अगर कोई बाहर से आकर आपके देश में अपनी चीज़ बेचना चाहता है तो वह उत्पाद बहुत महंगा न हो जाए। इसलिए सीमा शुल्क को कम कर दिया जाता है।

(iii) सार्वजनिक क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों का विनिवेश भी कर दिया जाता है। भूमंडलीकरण के साथ-साथ निजीकरण भी चलता है। निजीकरण होता है सरकार की कंपनियों का ताकि वह भी निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें तथा मुनाफा कमा सकें। इसलिए सरकारी कंपनियों का विनिवेश कर दिया जाता है।

(iv) निजी क्षेत्र के निवेश को बढावा दिया जाता है ताकि निजी क्षेत्र बड़े-बड़े उदयोग लगाएं। इसके कई फायदे हैं। एक तो सरकार को कर के रूप में आमदनी होगी तथा दूसरी तरफ रोज़गार के साधन बढ़ेंगे तथा बेरोज़गारी की समस्या भी हल होगी।

(v) इसमें सरकार बुनियादी ढांचे के विकास पर अधिक पैसा खर्च करती है। इसका कारण यह है कि अगर आप विदेशियों को अपने देश में निवेश के लिए आकर्षित करना चाहते हों तो उन्हें निवेश के लिए बढ़िया बुनियादी ढांचा भी देना पड़ेगा ताकि उनको कोई परेशानी न हो तथा ज्यादा-से-ज्यादा विदेशी निवेश देश में आ सके।

(vi) इसमें मुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा दिया जाता है। मुक्त व्यापार का अर्थ है बिना सीमा शुल्क दिए किसी भी देश में जाकर व्यापार करना। ऐसा करने से बगैर कीमतों के इज़ाफे के सारी दुनिया की चीजें हमारे सामने होती हैं तथा हम किसी भी चीज़ को खरीद सकते हैं।

(vii) विश्व बैंक, विश्व व्यापार निधि तथा विश्व व्यापार संगठन के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता है क्योंकि एक तो यह व्यापार तथा और सुविधाओं के लिए अलग-अलग देशों को कर देते हैं तथा विश्व व्यापार संगठन पूरे विश्व के व्यापार का संचालन करता है। इसलिए इनके दिशा-निर्देशों का पालन करना ही पड़ता है।

प्रश्न 2.
उदारीकरण क्या होता है? उदारीकरण से क्या समस्याएं पैदा होती हैं?
अथवा
भारतीय समाज पर उदारीकरण के क्या प्रभाव पड़ रहे हैं?
अथवा
भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण के माध्यम से भारतीय समाज में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं? व्याख्या करें।
अथवा
उदारीकरण क्या है? भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की विवेचना करें।
उत्तर:
1991 में डॉ० मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री बनने के बाद नयी आर्थिक नीति लागू की गई। उदारीकरण, निजीकरण तथा भूमंडलीकरण इस नीति की प्रमुख विशेषताएं थीं। 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का तेज़ गति से उदारीकरण किया जाने लगा तथा यह उदारीकरण की प्रक्रिया अब भी जारी है। यह एक आर्थिक प्रक्रिया तथा समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

उदारीकरण का अर्थ (Meaning of Liberalization)-नियंत्रित अर्थव्यवस्था के गैर-ज़रूरी प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उदयोगों तथा व्यापार पर से गैर-ज़रूरी प्रतिबंध हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं।

उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विश्व के अलग अलग देशों के बीच व्यापारिक तथा आर्थिक संबंधों को ज्यादा विस्तार की नज़र से भूमंडल के सदस्य देशों को ऐसी सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि विश्व में मुक्त व्यापार फैल सके तथा बेहतर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके। इस नीति से अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता बढ़ती है तथा निजी उद्योगों में सार्वजनिक उद्योगों की अपेक्षा ज्यादा बेहतर परिणाम देने की क्षमता होती है।

उदारीकरण की समस्याएं (Problems of Liberalization)-उदारीकरण से भारत जैसे देश में बहुत सी समस्याएं पैदा हुई हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) बेरोज़गारी में वृद्धि (Increase in Unemployment)-भारत में 1990 में बेरोजगारी की दर 6% थी जो 1999 में बढ़कर 7% हो गई। यह सिर्फ उदारीकरण का ही परिणाम है। देश में 36% लोग ग़रीबी की रेखा के नीचे रहते हैं क्योंकि उनके पास मूल सुविधाओं की कमी है। घरेलू उद्योगों तथा रोजगार में सीधा संबंध होता है क्योंकि घरेलू रोज़गार बहुत से लोगों को रोजगार देता है।

अगर उद्योगों की संख्या बढ़ेगी जो ज्यादा लोगों को रोज़गार प्राप्त होगा पर अगर उद्योग कम होंगे तो बेरोज़गारी बढ़ेगी तथा ग़रीबी भी साथ ही साथ बढ़ेगी। हमारे देश में उदारीकरण की प्रक्रिया 17 साल से चल रही है। बड़े-बड़े उद्योग तो लग रहे हैं पर कुटीर तथा घरेलू उद्योग खत्म हो रहे हैं जिससे बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है। इस तरह उदारीकरण की प्रक्रिया से बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है।

(ii) उदारीकरण के गलत परिणाम-उदारीकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ कर्मचारियों को निकालने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। जब उदारीकरण की नीति अपनायी गयी थी तो यह कहा गया था कि इस प्रक्रिया से देश की सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। लेकिन 17 वर्षों के उदारीकरण की प्रक्रिया के बाद भी हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है।

आज भी देश की 36% जनता ग़रीबी की रेखा से नीचे रहती है। इन वर्षों में चाहे भारत को तकनीकी रूप से लाभ ही हुआ है पर बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जैसे कि कुटीर उद्योगों का खत्म होना, जिनमें उदारीकरण की प्रक्रिया के गलत परिणाम निकले हैं।

(iii) विदेशी कर्ज का बढ़ता बोझ-आर्थिक सुधारों का पहला दौर 1991 से 2001 तक चला। 2001 में दूसरा दौर शुरू हुआ। इस दौर में यह सोचा गया कि देश के आर्थिक विकास की दर तेज़ होगी पर हुआ इसका उल्टा। देश के आर्थिक विकास तथा आर्थिक सुधार के रास्ते पर कदम धीरे हो गए हैं।

देश के लिए 8% की आर्थिक विकास की दर का लक्ष्य रखा गया है जोकि बहत दर की कौडी लगता है। वित्त मंत्री तरह-तरह के उपायों की घोषणा कर रहे हैं पर फिर भी यह मुमकिन नहीं लगता। इसके साथ-साथ देश के ऊपर विदेशी कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है। आज हमारे देश के ऊपर 110 अरब डालर के करीब विदेशी कर्ज है जिससे हर भारतीय विदेशों का कर्जदार बन गया है। यह भी उदारीकरण की प्रक्रिया की वजह से ही हुआ है।

(iv) निर्यात में कमी तथा आयात का बढ़ना (Decrease in Export and Increase in Import)-उदारीकरण की प्रक्रिया में निर्यात में भी कमी आती है तथा आयात में भी बढ़ोत्तरी होती है। 1991 के मुकाबले 1996 में निर्यात कम हुआ था तथा आयात बढ़ा था। यह इस वजह से होता है कि उदारीकरण से पश्चिम की या विदेशी चीजें हमारे देश में आईं जिस वजह से लोगों में विदेशी चीजें लेने की प्रवृत्ति भी बढ़ी। जिस वजह से आयात ज्यादा हो गया पर निर्यात उसी अनुपात में न बढ़ पाया जिस वजह से व्यापार घाटे में बढ़ोत्तरी तथा व्यापार संतुलन में कमी आई।

आयात बढ़ने तथा उदारीकरण की प्रक्रिया से देसी उद्योगों पर भी प्रभाव पड़ा। आराम से ठीक दामों पर तथा अच्छी विदेशी चीज़ के मिलने के कारण भी आयात में बढ़ोत्तरी हुई तथा देशी उदयोगों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

(v) रुपये की कीमत का गिरना (Decline in Value of Rupee)-उदारीकरण की वजह से भारतीय रुपए की कीमत में भी काफ़ी गिरावट आई है। 1991 में जिस डालर की कीमत ₹ 18 थी वह 1996 में ₹ 36 तथा 2001 में यह ₹ 47 तक पहुंच गया था। आजकल यह ₹ 66 के करीब है।

यह सब उदारीकरण की वजह से है तथा यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं होता। किसी देश की मुद्रा की कीमत कम होने से महंगाई बढ़ती है जोकि हमारे देश के गरीब लोगों के लिए ठीक नहीं है। विकसित देशों को तो इससे लाभ हो सकता है पर विकासशील देशों के लिए यह नुकसानदायक है। इस तरह उदारीकरण के कारण रुपए की विनिमय दर में निरंतर गिरावट आ रही है।

(vi) सरकार की आमदनी में कमी आना (Decline in the Income of Govt.)-उदारीकरण की एक विशेषता है कि इसमें सरकार को उत्पादों पर सीमा शुल्क कम करना पड़ता है ताकि विदेशी चीजें उस देश के मूल्य पर मिल सकें। सीमा शुल्क कम करने से सरकार के राजस्व या आमदनी कम होती है जिसका सीधा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इसके अलावा विदेशी चीज़ों की गुणवत्ता भारतीय उत्पादों के मामले काफ़ी अच्छी होती है तथा कई मामलों में यह सस्ती भी होती है।

जिस वजह से विदेशी चीजें भारतीय चीज़ों के मुकाबले ज्यादा बिकती हैं। इसके अलावा विदेशी चीजें भारतीय चीज़ों से तकनीक के मामले में भी अच्छी होती हैं क्योंकि भारतीय तकनीक इतनी अच्छी है। उदाहरण के तौर पर चीनी उत्पादों ने भारतीय बाजार में हलचल ला दी है। इस तरह जितनी ज्यादा ये चीजें हमारे देश में आएंगी उतनी ही सरकार की आमदनी में कमी होगी। अगर भारतीय चीजें बिकेंगी ही नहीं तो यह सरकार को क्या कर देंगे। इस तरह भी आमदनी में कमी आती है।

(vii) सरकारों का बढ़ता घाटा (Increasing deficit of Governments)-उदारीकरण की वजह से केंद्र तथा राज्य सरकारों के घाटे भी बढ़ रहे हैं। आमदनी कम हो रही है। खर्च या तो बढ़ रहे हैं या फिर कम हो रहे हैं। ज़रूरी चीजों के दाम बढ़ रहे हैं, बेरोज़गारी बढ़ रही है, ग़रीबी बढ़ रही है। सरकार के पास अपने काम पूरे करने के लिए पैसा नहीं है। देश के बजट का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में ही खर्च हो जाता है। सरकार के बढ़ते घाटे की वजह से विकास कार्य या तो नहीं हो रहे हैं या फिर अगर हो रहे हैं तो कम हो रहे हैं जिस वजह से देश पर काफ़ी प्रभाव पड़ रहा है।

इस तरह उदारीकरण के देश पर काफ़ी गलत प्रभाव भी पड़ रहे हैं। अगर हमें उदारीकरण से लाभ लेना है तो सबसे पहले हमें अपने वित्तीय अनुशासन को सुधारना होगा। हमें अपने मूलभूत ढांचे को सुधारना होगा, ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति करनी होगी, नयी तकनीकों का प्रयोग करना होगा तथा और भी बहत से सधार करने होंगे तभी उदारीकरण के लाभ उठा सकते हैं। इनके साथ-साथ कुछ कानूनों में भी सुधार करना होगा तभी उदारीकरण पूर्ण रूप से सफल हो पाएगा।

प्रश्न 3.
भारत पर भूमंडलीकरण के प्रभावों की चर्चा करें।
अथवा
भूमंडलीकरण के प्रभावों की व्याख्या करें।
अथवा
भूमंडलीकरण से भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़े हैं?
अथवा
भारतीय अर्थव्यवस्था पर भूमंडलीकरण के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
अथवा
भूमंडलीकरण के भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भूमंडलीकरण के दो प्रभाव बताइये।
उत्तर:
(i) भारत में विदेशी निवेश (Foreign Investment in India) विदेशी निवेश वृद्धि भी भूमंडलीकरण का एक लाभ है क्योंकि विदेशी निवेश से अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। भारत में निरंतर विदेशी निवेश बढ़ रहा है। 1995-96 से 2000-01 के दौरान इसमें 53% की वृद्धि हुई। इस अवधि के दौरान वार्षिक औसत लगभग $ 500 करोड़ विदेशी निवेश हुआ।

(ii) विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves)-आयात के लिए विदेशी मुद्रा आवश्यक है। जून, 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ One Billion था जिससे सिर्फ दो सप्ताह की आयात आवश्यकताएं ही परी की जा सकती थीं। जुलाई, 1991 में भारत में नयी आर्थिक नीतियां अपनायी गईं। भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण को बढ़ावा दिया गया जिस वजह से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में काफ़ी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। फलस्वरूप वर्तमान समय में देश में $ 390 Billion के करीब विदेशी मुद्रा है। इससे पहले कभी भी देश में इतना विदेशी मुद्रा का भंडार नहीं था।

(iii) सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर (Growth of Gross Domestic Product)-भूमंडलीकरण से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है। देश में 1980 के दशक में वृद्धि दर 5.63% तथा 1990 के दशक के दौरान वृद्धि दर 5.80% रहा। इस तरह सकल घरेलू उत्पादन में थोड़ी सी वृद्धि हुई। आजकल यह 7% के करीब है।

(iv) बेरोज़गारी में वृद्धि (Increase in Unemployment)-भूमंडलीकरण से बेरोज़गारी बढ़ती है। 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक में मैक्सिको, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया तथा मलेशिया में भूमंडलीकरण के प्रभाव के कारण आर्थिक संकट आया। फलस्वरूप लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा तथा वे ग़रीबी रेखा से नीचे आ गए। 1990 के दशक के शुरू में देश में बेरोज़गारी दर 6% थी जो दशक के अंत में 7% हो गई। इस तरह भूमंडलीकरण से रोजगार विहीन विकास हो रहा है।

(v) कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture) देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि तथा इससे संबंधित कार्यों का हिस्सा लगभग 29% है जबकि यह अमेरिका में 2%, फ्रांस तथा जापान में 5.5% है। अगर श्रम शक्ति की नज़र से देखें तो भारत की 69% श्रम शक्ति को कृषि तथा इससे संबंधित कार्यों में रोज़गार प्राप्त है जबकि अमेरिका तथा इंग्लैंड में ऐसे कार्यों में 2.6% श्रम शक्ति कार्यरत है। विश्व व्यापार के नियमों के अनुसार विश्व को इस संगठन के सभी सदस्य देशों को कृषि क्षेत्र निवेश के लिए विश्व के अन्य राष्ट्रों के लिए खोलना है। इस तरह आने वाला समय भारत की कृषि तथा अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती भरा रहने की उम्मीद है।

(vi) शिक्षा व तकनीकी सुधार (Educational and Technical reforms)-भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण का शिक्षा पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ा है तथा तकनीकी शिक्षा में तो चमत्कार हो गया है। आज संचार तथा परिवहन के साधनों की वजह से दूरियां काफ़ी कम हो गई हैं। आज अगर किसी देश में शिक्षा तथा तकनीक में सुधार आते हैं तो वह पलक झपकते ही सारी दुनिया में पहुंच जाते हैं। इंटरनेट तथा कंप्यूटर ने तो इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

(vii) वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन (Change in the form of Classes) भूमंडलीकरण ने वर्गों के स्वरूप में भी परिवर्तन ला दिया है। 20वीं सदी में सिर्फ तीन प्रमुख वर्ग-उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग थे पर आजकल वर्गों की संख्या काफ़ी ज्यादा हो गई है। प्रत्येक वर्ग में ही बहुत से उपवर्ग बन गए हैं जैसे मजदूर वर्ग, डॉक्टर वर्ग, शिक्षक वर्ग इत्यादि के उनकी आय के अनुसार वर्ग बन गए हैं।

(viii) निजीकरण (Privatization)-भूमंडलीकरण का एक अच्छा प्रभाव यह है कि निजीकरण देखने को मिल रहा है। विकसित तथा विकासशील देशों में बहुत से सार्वजनिक उपक्रम निजी हाथों में चल रहे हैं तथा यह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसी से प्रेरित होकर और ज्यादा सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण हो रहा है।

(x) उद्योग धंधों का विकास (Development of Industries)-आर्थिक विकास की ऊँची दर प्राप्त करने के लिए विदेशी पूंजी निवेश से काफ़ी सहायता मिलती है। इससे न सिर्फ उद्योगों को लाभ मिलता है बल्कि उपभोक्ता को अच्छी तकनीक, अच्छे उत्पाद मिलते हैं तथा साथ ही साथ भारतीय उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने की प्रेरणा मिलती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 4.
भूमंडलीकरण के स्थानीय संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
अथवा
स्थानीय संस्कृति पर भूमंडलीकरण के प्रभावों की संक्षिप्त व्याख्या करें।
उत्तर:
सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि स्थानीय संस्कृति होती क्या है। स्थानीय संस्कृति वह है जो कि किसी देश या समाज की भौगोलिक सीमा के बीच ही फैले या सीमित रहे। चाहे एक ही देश में कई सांस्कृतिक समूहों का वास होता है तथा यह अलग-अलग समूह इकट्ठे रहते हैं जैसे कि भारत में होता है।

ऐसा कहते हैं कि भारत में अनेक संस्कृतियों का संगम होता है। यहाँ पर विविधता तथा विभिन्नता देखने को मिल जाती है तथा इसके साथ इन विभिन्नताओं में एकता भी पाई जाती है। इससे यह साबित होता है कि देश या समाज की परंपरागत संस्कृति स्थानीय संस्कृति होती है। इन्हें हम उप-संस्कृति भी कह सकते हैं।

भूमंडलीकरण का प्रभाव उन सभी देशों या समाजों की परंपरागत संस्कृतियों पर पड़ता है जो व्यापारिक संबंधों की वजह से आधुनिक संस्कृति के संपर्क में आते हैं। क्योंकि आधुनिक या पाश्चात्य संस्कृति विकसित देशों में पैदा हुई है इसलिए इस संस्कृति की भाषा अंग्रेज़ी है। भूमंडलीकरण के स्थानीय संस्कृति पर जो प्रभाव पड़ते हैं वे निम्नलिखित हैं

बाहरी संस्कृति के कुछ हिस्सों को ग्रहण करना-यह भी देखा गया है कि जिस-जिस देश में भूमंडली संस्कृति पहुँची है उस देश की संस्कृति ने पाश्चात्य संस्कृति के कुछ लक्षणों को अपनी ज़रूरत के अनुसार ग्रहण कर लिया है। उदाहरण के तौर पर भारत के शहरों में अंग्रेज़ी आम तौर पर प्रयोग होती है। खाने-पीने में पश्चिमी तरीके प्रयोग होते हैं, क्लबों, होटलों, नए-नए फैशनों इत्यादि का प्रयोग बढ़ रहा है।

इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों पर भी भूमंडलीकरण का प्रभाव देखने को मिल रहा है। परन्तु यहाँ एक बात ध्यान रखने योग्य है कि चाहे लोग पश्चिमी संस्कृति को अपना रहे हैं पर फिर भी उन्होंने अपनी संस्कृति, रीति-रिवाजों, परंपराओं, विधियों इत्यादि को बना कर रखा हुआ है। इस तरह यह देखा गया है कि भूमंडलीकरण संस्कृति तथा स्थानीय संस्कृति साथ-साथ बने रह सकते हैं। इस के बारे में हम चार कारणों का आगे उल्लेख कर रहे हैं-
(i) स्थानीय संस्कृति के लोग अपने लोगों के साथ सामुदायिक तौर पर जुड़े होते हैं तथा उनमें अपने क्षेत्रीय समुदाय के लोगों के साथ भावनात्मक संबंध भी होता है। यही वजह है कि स्थानीय संस्कृति में लोग बाहर की संस्कृति के सभी विचारों, लक्षणों को नहीं अपना सकते।

(ii) स्थानीय संस्कृति की यह मुख्य विशेषता होती है कि यह लचीली तथा टिकाऊ होती है। स्थानीय लोग अपने मूल्यों, विश्वासों, भाषा, परंपराओं, धर्म-कर्म इत्यादि के साथ गहरे रूप से जुड़े हुए होते हैं। यही वजह है कि स्थानीय संस्कृति में लोग अपनी संस्कृति की जगह बाहरी संस्कृति को पूरी तरह ग्रहण नहीं कर पाते हैं।

(iii) मनुष्य लंबे समय से अलग-अलग उप-संस्कृतियों का प्रतिफल रहा है। यही वजह है कि वह भूमंडल वाली संस्कृति के साथ पूरी तरह घुल-मिल नहीं पाता है क्योंकि दुनिया के लोगों का यह मानना है कि कहीं हम सब इस भुंमडलीय संस्कृति के गुलाम न बन जाएं। यही वजह है कि भूमंडलीय संस्कृति के साथ पूरी तरह एकरूपता स्थापित नहीं की जा सकती।

(iv) बहुत-से व्यक्ति अपने लिए सांस्कृतिक विविधता को सम्मान देते हैं। यह लोग नए-नए विचारों, तौर तरीकों, भाषा, नई चीज़ों, नए अनुभवों को पसंद करते हैं ताकि वह जीवन से बोर न हों तथा जीवन में हमेशा नवीनता बनी रहे। यही कारण है कि स्थानीय संस्कृति के लोग अपने पुराने रीति-रिवाजों, विचारों, परंपराओं इत्यादि को छोड़ नहीं पाते हैं क्योंकि उनके लिए इन सब चीज़ों का एक खास मूल्य होता है। उदाहरण के तौर पर चाहे हम जितना मर्जी भूमंडलीकरण के समय में रह रहे हैं पर फिर भी हम अपने पूर्वजों की पूजा करना नहीं भूले हैं, हम अपने परंपरागत संगीत को भी नहीं भूले हैं।

भारतीय समाज सहयोग तथा समन्वय पर टिका हुआ है। भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण की वजह से लोभ, द्वेष, हिंसा, भोगवादी इत्यादि भावनाएं लोगों में आ रही हैं। इस वजह से ही मनुष्य का अस्तित्व भी खतरे में आ गया है। भूमंडलीकरण के नाम पर पश्चिमी देशों का प्रयोग किया हुआ सामान हमें परोसा जा रहा है।

पश्चिमी देशों द्वारा बनाई संचार सामग्री आज सारी दुनिया में धाक जमाए हुए हैं। हर कोई इसके आगे-पीछे भाग रहा है। आज सहयोग, हमदर्दी, प्यार, समन्वय इत्यादि मूल्यों में गि वट आ रही है जो कभी हमारे समाज के आधार हुआ करते थे। इस तरह भूमंडलीय संस्कृति या विश्व की संस्कृति की वजह से स्थानीय या उप-संस्कृति धीरे-धीरे खत्म हो रही है।

प्रश्न 5.
भूमंडलीकरण से संचार व्यवस्था किस प्रकार प्रभावित हुई है?
अथवा
भूमंडलीकरण और मीडिया के संबंधों की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
संसार में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तथा दूरसंचार के आधारभूत ढांचे में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। इस कारण भूमंडलीय संचार व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। अब अगर हम अपने घर से अथवा दफ्तर से बाहरी संसार से संपर्क बनाना चाहते हैं तो उसके बहुत से साधन मौजूद हैं जैसे कि टैलीफोन (लैंडलाइन तथा मोबाइल), फैक्स मशीनें, इंटरनेट, ई-मेल, डिजिटल तथा केबल टी०वी० इत्यादि। वैसे अगर देखा जाए तो संसार में बहुत से ऐसे स्थान हैं जिनके बारे में हमें पता तक नहीं है परंतु संचार व्यवस्था की सहायता से हम इसका आसानी से पता कर सकते हैं।

इसे डिजिटल विभाजन का सूचक माना जाता है। इस डिज़िटल विभाजन के बावजूद प्रौद्योगिकी के यह अलग अलग रूप दूरी तथा समय को संकुचित या कम तो करते ही हैं। पृथ्वी पर दो दूर-दूर विपरीत दिशाओं के स्थान मुंबई तथा वाशिंगटन में बैठे व्यक्ति न केवल आपस में बातचीत कर सकते हैं बल्कि अगर चाहें तो दस्तावेज़, कागज़ तथा चित्र इत्यादि को एक-दूसरे को उपग्रह प्रौद्योगिकी की सहायता से भेज भी सकते हैं।

पिछले कुछ वर्षों में मोबाइल फोनों में भी बहुत अधिक वृद्धि हुई है। अगर देखा जाए तो नगरों तथा गांवों दोनों में रहने वाले लोगों के लिए मोबाइल जीवन का एक अहम् हिस्सा बन गया है। इस तरह मोबाइलों के प्रयोग में भारी वृद्धि हुई है तथा इनके प्रयोग के ढंगों में भी काफ़ी परिवर्तन आ गया है।

प्रश्न 6.
भूमंडलीकरण से राजनीतिक परिदृश्य में किस प्रकार परिवर्तन आया है?
उत्तर:
1990 में यू०एस०एस० आर में समाजवाद का विघटन हो गया जो कि कई प्रकार से एक बड़ा परिवर्तन था। इस घटना ने भूमंडलीकरण की प्रक्रिया को और तेज़ कर दिया। इस कारण ही भूमंडलीकरण को प्रोत्साहित करने वाली आर्थिक नीतियों के प्रति एक विशेष आर्थिक तथा राजनीतिक दृष्टिकोण पैदा हो गया। इन परिवर्तनों को आम तौर पर नव-उदारवादी आर्थिक उपाय भी कहा जाता है। भारत में उदारीकरण की नीति के अंतर्गत बहुत से ठोस कदम उठाए गए।

मौटे तौर पर, इन नीतियों में मुक्त व्यापार से संबंधित राजनीतिक दूरदर्शिता दिखाई देती है। इसलिए यह नीति राज्य की ओर से विनियमन तथा आर्थिक सहायता (सब्सिडी) दोनों की ही आलोचक है। इस प्रकार भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में राजनीतिक दूरदर्शिता उतनी ही आवश्यक है जिनती कि आर्थिक दूरदर्शिता। यह अलग बात है कि वर्तमान भूमंडलीकरण से अलग भूमंडलीकरण की भी संभावनाएं हैं। इस प्रकार हम एक समावेशात्मक (Inclusive) भूमंडलीकरण की कल्पना भी कर सकते हैं जिसमें समाज के सभी भाग शामिल होते हैं।

भूमंडलीकरण के साथ एक और महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम भी घटित हो रहा है तथा वह है राजनीतिक सहयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय रचनातंत्र। इस संबंध में यूरोपीय संघ, दक्षिण एशियाई राष्ट्र संघ (एशियान), दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग सम्मेलन (सार्क) तथा दक्षिण एशियाई व्यापार संघों का परिसंघ (बोर्डस) क्षेत्रीय संघों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय सरकारी संगठनों तथा अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों का सामने आना भी एक और राजनीतिक आयाम पेश करता है।

अंतर्राष्ट्रीय सरकारी संगठन एक ऐसा संगठन होता है जिसे सहभागी सरकारें स्थापित करती हैं तथा जिसे एक विशेष पारराष्ट्रीय कार्यक्षेत्र पर नियंत्रण रखने, नज़र रखने तथा उसे विनियमित करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है। जैसे कि W.T.O. को संसार भर में व्यापार प्रथाओं पर लागू नियमों का ध्यान रखना होता है।

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HBSE 12th Class Sociology भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
अपनी रुचि का कोई भी विषय चुनें और यह चर्चा करें कि भूमंडलीकरण ने उसे किस प्रकार प्रभावित किया है। आप सिनेमा, कार्य, विवाह अथवा कोई भी अन्य विषय चुन सकते हैं।
उत्तर:
इस प्रश्न को विदयार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
एक भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था के विशिष्ट लक्षण क्या हैं? चर्चा करें।
उत्तर:
भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है। अन्य शब्दों में एक देश के अन्य देशों के साथ वस्त, सेवा, पंजी तथा श्रम से अप्रतिबंधित आदान प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है। इस तरह विश्व अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है। भूमंडलीकरण के द्वारा सारी दुनिया एक विश्व ग्राम बन गई है।

भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था के विशिष्ट लक्षण-
(i) भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था मुक्त बाज़ार के सिद्धांत पर आधारित है। मुक्त बाज़ार से प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है तथा कार्य दक्षता बढ़ती है। यह चीज़ नियंत्रित बाजारों में नहीं होती। अधिक कार्यदक्षता से सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ती है।

(ii) भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था में किसी देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था में अधिक विदेशी निवेश होता है। अधिक विदेशी निवेश से कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूती प्राप्त होती है।

(iii) विदेशी पूंजी और वस्तुओं के अनियंत्रित प्रवाह के लिए मुक्त द्वारा नीति का प्रयोग किया जाता है तथा यह समझा जाता है कि इससे तीसरी दनिया की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।

(iv) यह समझा जाता है कि भूमंडलीकरण से बेरोज़गारी जैसी गंभीर समस्या का समाधान हो जाएगा। भूमंडलीकरण से रोज़गार के अवसर बढ़ते हैं तथा रोज़गार बढ़ने से आर्थिक विकास बढ़ता है।

(v) भूमंडलीकरण से अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण होता है जिससे सामाजिक न्याय की समस्या भी सुलझ जाती है। यह भी कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से वंचित समूहों को भी कई प्रकार की सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

(vi) भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था से अलग-अलग देशों के बीच आदान-प्रदान बढ़ता है जिससे विश्व शांति बढ़ती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 3.
संस्कृति पर भूमंडलीकरण के प्रभाव की संक्षेप में चर्चा करें।
उत्तर:
संस्कृति कई प्रकार से मूंडलीकरण से प्रभावित होती है। सदियों से भारत ने सांस्कृतिक प्रभावों के प्रति खुला दृष्टिकोण अपनाया हुआ है तथा इसके कारण ही भारत सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध होता रहा है। पिछले दशक में बहुत से छोटे-बड़े सांस्कृतिक परिवर्तन हुए हैं जिनसे लोगों में यह भय उत्पन्न हो गया है कि कहीं हमारी अपनी स्थानीय संस्कृतियां पीछे ही न रह जाएं। हमारी सांस्कृतिक परंपरा जीवनभर कुएं के भीतर रहने वाले उस मेंढ़क की स्थिति से सावधान रहने की शिक्षा देती रही है जो कुएं से बाहर के संसार के बारे में कुछ नहीं जानता तथा हरेक बाहरी वस्तु के प्रति शंकालु बना रहता है।

वह किसी से बात नहीं करता तथा न ही किसी से किसी विषय पर बातचीत करता है। वह तो केवल बाहरी संसार पर शक करना जानता है। सौभाग्य से हम आज भी अपनी परंपरागत खुली अभिवृत्ति अपनाए हुए हैं। इसलिए हमारे समाज में राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर बहस नहीं होती बल्कि कपड़ों, शैलियों, संगीत, भाषा, फिल्म, हाव-भाव इत्यादि से ऊपर बहस होती है।

19वीं सदी के समाज सुधारक तथा शुरुआती राष्ट्रवादी नेता भी संस्कृति तथा परंपरा पर बातचीत किया करते थे। चाहे मुद्दे आज भी कुछेक तो वैसे ही तथा कुछेक भिन्न हैं परंतु अंतर शायद यही है कि अब परिवर्तन की व्यापकता और गहनता अलग है।

प्रश्न 4.
भूस्थानीकरण क्या है? क्या यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपनाई गई बाज़ार संबंधी रणनीति है अथवा वास्तव में कोई सांस्कृतिक संश्लेषण हो रहा है, चर्चा करें।
उत्तर:
मुख्य रूप से यह कहा जाता है कि सभी संस्कृतियां एक समान अर्थात् सजातीय हो जाएंगी। कुछ और लोगों का कहना है कि संस्कृति के भूस्थानीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। भूस्थानीकरण का अर्थ है भूमंडलीय के साथ स्थानीय का मिश्रण। यह पूरी तरह अपने आप परवर्तित नहीं होता तथा न ही भूमंडलीकरण के वाणिज्यिक हितों से इसका संबंध पूर्णतया विच्छेद नहीं किया जा सकता।

यह एक ऐसी रणनीति है जो आमतौर पर विदेशी कंपनियां अपना बाज़ार बढ़ाने के लिए स्थानीय परंपराओं के साथ व्यवहार में लाई जाती है। टी०वी० चैनल जैसे कि स्टार, एम०टी०वी०, चैनल वी, कार्टून नेटवर्क इत्यादि सभी विदेशी टी०वी० चैनल हैं परंतु भारत में यह भारतीय भाषाओं का प्रयोग करते हैं।

यहां तक कि मैक्डॉनाल्डस भी भारत में अपने निरामिष और चिकन के उत्पाद ही बेचता है, गोमांस के उत्पाद नहीं जो विदेशों में बहुत लोकप्रिय है। नवरात्रि पर्व के समय तो मैक्डॉनाल्डस भी चिकन बेचना छोड़कर विशुद्ध निरामिष हो जाता है। संगीत के क्षेत्र में भांगड़ा पॉप, इंडिपॉप, फ्युजन म्यूज़िक तथा रीमिक्स गीतों की लोकप्रियता बढ़ रही है। इसे भी भूस्थानीकरण का ही एक रूप कहा जा सकता है।

भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ यह अध्याय हमें भूमंडलीकरण तथा उसके अलग-अलग आयामों के बारे में बताता है। इस अध्याय से हमें यह भी पता चलता है कि भूमंडलीकरण के कारण अलग-अलग क्षेत्रों में कौन-कौन से परिवर्तन आए हैं।

→ भूमंडलीकरण की प्रक्रिया इतनी व्यापक है कि अलग-अलग विषयों को भूमंडलीकरण के कारणों तथा परिणामों को समझने के लिए, एक-दूसरे से अधिकाधिक जानकारी लेनी पड़ती है।

→ भूमंडलीकरण के प्रभावों के बारे में लोगों के विचार एकमत नहीं हैं। कई लोग कहते हैं कि विश्व को बेहतर बनाने के लिए भूमंडलीकरण आवश्यक है। कुछ लोग कहते हैं कि अमीर लोगों को तो इससे लाभ होगा परंतु निर्धन लोगों की स्थिति बद से बदत्तर हो जाएगी।

→ भूमंडलीकरण की प्रक्रिया हमारे देश के लिए नयी नहीं है। प्राचीन समय में रेशम मार्ग की सहायता से हमारे देश का अलग-अलग देशों के साथ व्यापार होता था तथा उस समय संसार के अलग-अलग देशों के लोग यहां पर व्यापारी, प्रवासी तथा विजेता के रूप में यहां पर आए।

→ भूमंडीलकरण का अर्थ संपूर्ण संसार में सामाजिक तथा आर्थिक संबंधों के विस्तार के कारण संसार में विभिन्न लोगों, क्षेत्रों एवं देशों के बीच अंतःनिर्भरता की वृद्धि से है। यह प्रक्रिया सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के विकास से ही सबसे आगे बढ़ी है।

→ भूमंडलीकरण के कारण उदारीकरण की प्रक्रिया को बल मिला है। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का अर्थ है भारतीय व्यापार को नियमित करने वाले नियमों और वित्तीय नियमनों को हटा देना। इन्हें आर्थिक सुधार भी कहा जाता है। भूमंडलीकरण को प्रेरित व संचालित करने में परराष्ट्रीय निगम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह निगम एक-से-अधिक देशों में माल का उत्पादन करते हैं तथा एक-से-अधिक देशों में माल बेचते हैं। इसके साथ ही भूमंडलीकरण में बढ़ोत्तरी इलेक्ट्रॉनिक अर्थव्यवस्था के कारण बढ़ा है।

→ इन सब के साथ-साथ भूमंडलीकरण संचार व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। अब बाहरी दुनिया से संबंध बनाए रखने के अनेकों साधन मौजूद हैं जैसे कि टेलीफोन, मोबाइल, फैक्स, केबल टी०वी०, ई-मेल, इंटरनेट इत्यादि।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

→ भूमंडलीकरण के कारण नया श्रम विभाजन सामने आया है जिसमें तीसरी दुनिया के शहरों में अधिकाधिक नियमित निर्माण उत्पादन और रोज़गार किया जाता है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग पुों का उत्पादन करके एक देश में मुख्य वस्तु को निर्मित किया जाता है।

→ आजकल के समय में संस्कृति का भूस्थानीकरण बढ़ रहा है। भूस्थानीकरण का अर्थ है भूमंडलीय के साथ स्थानीय का मिश्रण। यह पूर्णतः स्वतः परिवर्तित नहीं होता तथा न ही भूमंडलीकरण के वाणिज्यिक हितों से इसका पूरी तरह संबंध-विच्छेद किया जा सकता है।

→ चाहे भूमंडलीकरण के कारण विश्व अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है तथा देशी बाजारों में विदेशी सामान उपलब्ध हो रहे हैं परंतु इसका अनेकों स्वदेशी शिल्पों, साहित्यिक परंपराओं और ज्ञान व्यवस्थाओं को खतरा उत्पन्न हो रहा है। यह सभी नष्ट होने की कगार पर जा खड़े हैं।

→ उदारीकरण-देशी बाजार को विश्व के बाजारों के लिए खोले जाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहा जाता है।

→ आर्थिक सुधार-वह सुधार जो अर्थव्यवस्था में किए गए तथा जिससे नियंत्रित अर्थव्यवस्था में लचकीलापन लाया गया।

→ परराष्ट्रीय निगम-वह निगम या कंपनियां जो एक-से-अधिक राष्ट्रों में अपने माल का उत्पादन करती हैं तथा एक-से-अधिक देशों में चीज़ों को बेचती हैं।

→ भार रहित अर्थव्यवस्था-वह अर्थव्यवस्था जिसके उत्पाद सूचना पर आधारित होते हैं जैसे कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, मीडिया तथा इंटरनेट सेवाएं।

→ ज्ञानात्मक अर्थव्यवस्था-वह अर्थव्यवस्था जिसमें अधिकांश कार्य-बल वस्तुओं के वास्तविक भौतिक उत्पादन अथवा वितरण में संलग्न नहीं होता बल्कि उनके डिज़ाइन, विकास, प्रौद्योगिकी, विपणन, बिक्री और सर्विस इत्यादि में लगा रहता है।

→ निर्यातोन्मुखी आर्थिकी-अर्थव्यवस्था का वह प्रकार जिसमें अधिकतर उत्पादन निर्यात, व्यापार तथा सेवाओं के लिए किया जाता है तथा जिसे अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए अपनाया जाता है।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

HBSE 12th Class Sociology सांस्कृतिक परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण पर एक आलोचनात्मक लेख लिखें।
अथवा
भारतीय समाज में संस्कृतिकरण की अवधारणा की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें निम्न जाति का व्यक्ति सांस्कृतिक रूप से प्रसिद्ध समूहों के रीति रिवाजों तथा नाम का अनुकरण करके अपनी स्थिति ऊँची करता है। जिनका अनुकरण किया जा रहा होता है वह आर्थिक रूप से बेहतर होते हैं। जब अनुकरण करने वाले व्यक्ति या समूह की आर्थिक स्थित अच्छी होने लग जाए तो उसे भी प्रतिष्ठित समूह का दर्जा प्राप्त हो जाता है।

आलोचना-
(i) सबसे पहले तो इसमें कहा जाता है कि इसमें सामाजिक गतिशीलता निम्न जाति का सामाजिक स्तरीकरण में उर्ध्वगामी परिवर्तन करती है, इस बात को काफ़ी बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है। इस प्रक्रिया से केवल कुछ व्यक्तियों की स्थिति परिवर्तित होती है संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता है। इससे कुछ व्यक्ति तो असमानता वाली संरचना में अपनी स्थिति सुधार लेते हैं परंतु समाज में से भेदभाव तथा असमानता खत्म नहीं होते।

(ii) इस प्रक्रिया की आलोचना का दूसरा तथ्य यह है कि इस प्रक्रिया में उच्च जाति की जीवन शैली ऊँची तथा निम्न जाति की जीवन शैली निम्न होती है। इसलिए उच्च जाति के लोगों की जीवन शैली अपनाने की इच्छा को प्राकृतिक ही मान लिया जाता है जो सभी में होती है।

(iii) तीसरी आलोचना यह है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया ऐसी व्यवस्था को ठीक मानती है जो असमानता तथा भेदभाव पर आधारित है। इससे यह संकेत मिलता है कि पवित्रता तथा अपवित्रता के पक्षों को ठीक मान लिया जाए तथा उच्च जातियों द्वारा निम्नजातियों के प्रति भेदभाव उनका विशेषाधिकार है। इस प्रकार के दृष्टिकोण वाले समाज में समानता की कल्पना तो की ही नहीं जा सकती है। इस प्रकार असमानता पर आधारित समाज लोकतंत्र विरोधी ही है।

(iv) चौथी आलोचना में कहा गया है कि इस प्रक्रिया से उच्च जातियों के रिवाजों, अनुष्ठानों तथा व्यवहार को स्वीकृति मिल जाती है तथा लड़कियों, महिलाओं की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। इस कारण ही कन्या मूल्य की जगह दहेज प्रथा तथा और समूहों के साथ जातिगत भेदभाव बढ़ गए है।

(V) इस प्रक्रिया के कारण निम्न जातियों की संस्कृति तथा समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ा हुआ मान लिया जाता था। जैसे कि उन द्वारा किए जाने वाले कार्यों को निम्न, शर्मनाक माना जाता था तथा सभ्य नहीं माना जाता था। उनसे जुड़े सभी कार्यों जैसे कि शिल्प तकनीकी योग्यता, अलग-अलग दवाओं की जानकारी, पर्यावरण तथा कृषिका ज्ञान इत्यादि को औद्योगिक युग में उपयोगी नहीं माना जाता।

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प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण का साधारणतः मतलब होता है पश्चिमी पोशाकों व जीवन शैली का अनुकरण। क्या पश्चिमीकरण के दूसरे पक्ष भी हैं? क्या पश्चिमीकरण का मतलब आधुनिकीकरण है? चर्चा करें।
उत्तर:
भारत के प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण का संकल्प दिया है। उनके अनुसार, “पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में भारतीय समाज तथा संस्कृति में लगभग 150 वर्षों के अंग्रेज़ी शासन के परिणाम स्वरूप आए परिवर्तन है जिसमें विभिन्न पहलू आते हैं …………….. जैसे कि प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा तथा मूल्य।”

पश्चिमीकरण के कई प्रकार रहे हैं। एक प्रकार के पश्चिमीकरण का अर्थ उस पाश्चात्य उप सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीयों के उस छोटे से समूह ने अपनाया जो पहली बार पाश्चात्य संस्कृति के संपर्क में आए हैं। इसमें भारतीय लोगों की उपसंस्कृति भी शामिल थी। इन्होंने पश्चिमी प्रतिमान चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों तथा जीवन शैली को अपनाने के साथ-साथ इनका समर्थन तथा विस्तार भी किया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि कुछेक लोग ही थे जिन्होंने पश्चिमी जीवन शैली को अपनाया तथा पश्चिमी दृष्टिकोण से सोचना शुरू कर दिया। इसके अतिरिक्ति नए उपकरणों का प्रयोग, कपड़ों, खाने पीने की चीज़ों, आदतों तथा तौर तरीकों में भी परिवर्तन थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि संपूर्ण भारत के मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा पश्चिमी चीज़ों का प्रयोग करता है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि पश्चिमीकरण में किसी विशेष संस्कृति के बाहरी तत्त्वों की नकल करने की प्रवृत्ति होती है। परंतु यह आवश्यक नहीं है कि वह प्रजातंत्र तथा सामाजिक समानता जैसे आधुनिक मूल्यों को भी मानते हों।

पश्चिमी संस्कृति का भारतीयों की जीवनशैली तथा चिंतन के अतिरिक्त भारतीय कला तथा साहित्य पर भी प्रभाव पड़ा। बहुत से कलाकार जैसे कि रवि वर्मा, अविंद्रनाथ टैगोर, चंदूमेनन तथा बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने औपनिवेशिक स्थितियों के साथ कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कीं।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि विभिन्न स्तरों पर सांस्कृतिक परिवर्तन हआ तथा औपनिवेशिक काल में हमारा पश्चिम से संपर्क स्थापित हुआ। अगर हम कहें कि आज के समय में दो पीढ़ियों के विचारों में अंतर पाया जाता है तो यह पश्चिमीकरण का ही परिणाम है।पश्चिमीकरण के कारण हमारे जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आया।

पश्चिमीकरण का अर्थ आधुनिकीकरण नहीं है क्योंकि आधुनिकीकरण पूर्व में भी हो सकता है परंतु पश्चिमीकरण का अर्थ केवल पश्चिम के कारण आए परिवर्तनों से है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 3.
लघु निबंध लिखें

  • संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण
  • जाति और पंथीनिरपेक्षीकरण।

उत्तर:
(i) संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण-आजकल के आधुनिक समय में हम सामाजिक सांस्कृतिक व्यवहार को आमतौर पर परंपरा तथा आधुनिकता का मिश्रण कह देते हैं परंतु इसके अपने ही निर्धारित तत्त्व है। इस जटिल कार्य को आसान बनाने की आदत ठीक नहीं है।

असल में इससे यह भ्रांति भी पैदा हो जाती है कि भारत में एक ही प्रकार की परंपराएं पाई जाती है या थी। भारत में इन परंपराओं को दो प्रकार के गुणों से पहचाना जाता है-बाहुलता तथा तर्क-वितर्क की परंपरा। भारतीय परंपराओं तथा संस्कारों में लगातार परिवर्तन होते रहते हैं तथा उन्हें बार-बार दोबारा परिभाषित किया जाता है। ऐसा 19वीं सदी के समाज सुधारकों ने किया तथा आज भी यह प्रक्रियाएं मौजूद है।

आधुनिक समाजों में पश्चिमीकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से ही जिससे धर्म का प्रभाव कम हो जाता है। आधुनिकीकरण में सभी विचारक यह कहते हैं किस आधुनिक समाज अधिक पंथनिरपेक्ष होते है । में धार्मिक विचारों का ह्रास हो जाता है, धार्मिक संस्कारों में कमी आ जाती है तथा भौतिकता का प्रभाव बढ़ जाता है। यह कहा जाता है कि आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों तथा लोगों के बीच दूरी बढ़ रही है।

(ii) जाति और पंथनिरक्षीकरण-अगर ध्यान से देखा जाए तो जाति तथा पंथनिरपेक्षीकरण एक-दूसरे के विरोधी हैं। जाति प्रथा में धार्मिक विचारों को काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। यह कहा जाता है कि धर्म तथा धार्मिक ग्रंथों ने ही व्यक्तियों के कार्यों तथा समूहों को बाँट दिया था जिस कारण जाति प्रथा अस्तित्व में आयी। जाति प्रथा में जो व्यक्ति धार्मिक कार्यों को करता था उसे समाज में सबसे उच्च स्थिति प्राप्त थी तथा निम्न जातियों को धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता था।

इस प्रकार अगर हम कहें कि जाति प्रथा के आधार ही धर्म तथा व्यवसाय थे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। परंतु पंथनिरपेक्षीकरण में धर्म को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है बल्कि धार्मिक संस्कारों में काफ़ी कमी आ जाती है। इसमें लोग धार्मिक कार्यों को समय देने की अपेक्षा अपने कार्य तथा पैसे कमाने को समय देना अधिक पसंद करते हैं।

सांस्कृतिक परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ पिछले अध्याय में हमने उपनिवेशवाद के बारे में पढ़ा। उपनिवेशवाद के शुरू होने के बाद से ही भारत में सांस्कृतिक परिवर्तन आने शुरू हो गए। विदेशियों की संस्कृति का हमारी संस्कृति पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि हमारे समाज का सामाजिक परिवर्तन तेज़ी से शुरू हो गया।

→ प्राचीन समय से ही भारतीय समाज में बहुत-सी कुरीतियां चली आ रही थीं जैसे कि सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, जाति प्रथा, बहुविवाह, पर्दा प्रथा, उच्च शिक्षा की कमी, निम्न जातियों का शोषण इत्यादि। इन सबके विरुद्ध देश के अलग-अलग क्षेत्रों से आवाजें उठीं जिन्हें समाज सुधार आंदोलन का नाम दिया गया।

→ भारत में समाज सुधार आंदोलनों की 19वीं शताब्दी में शुरुआत राजा राम मोहन राय ने की जिन्हें ‘आधनिक भारत का पिता’ भी कहा जाता है। उन्हीं के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंक ने सती प्रथा को समझा तथा इस अमानवीय प्रथा को गैर-कानूनी करार दिया।

→ ज्योतिबा फूले जाति प्रथा के विरुद्ध थे तथा साथ ही साथ स्त्रियों के शोषण के भी विरुद्ध थे। इसलिए ही उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना की तथा कई कन्या विद्यालय खोले।

→ सर सैय्यद अहमद खान मुसलमानों में सुधारों के काफ़ी बड़े पक्षधर थे। वह मुसलमानों में प्रचलित कई बुराइयों जैसे कि बहुविवाह, प्रर्दा प्रथा, स्त्रियों की निम्न स्थिति, अशिक्षा इत्यादि के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने मुस्लिम समाज से इन बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए। उन्होंने तो अलीगढ़ में एक कॉलेज भी स्थापित किया जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया।

→ इन सब के साथ ईश्वर चंद्र विद्यासागर, केशवचंद्र सेन, विरेश लिंगम, स्वामी दयानंद सरस्वती, विवेकानंद इत्यादि ने भारतीय समाज में व्यापत बुराइयों की कड़ी आलोचना की तथा इनके विरुद्ध कार्य करने के लिए कई संगठन बनाए जैसे कि ब्रह्म समाज, आर्य समाज, सत्य शोधक समाज इत्यादि।

→ चाहे सभी समाज सुधारक देश के अलग-अलग हिस्सों से संबंधित थे तथा इन सभी ने अलग-अलग बुराइयों का विरोध किया परंतु इन सभी सुधारकों का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में व्यापत बुराइयों को दूर करना था।

→ अगर हमारे देश में सामाजिक परिवर्तन हुआ है तो इसमें सांस्कृतिकरण, आधुनिकीकरण, पंथनिरपेक्षीकरण अथवा धर्म निष्पक्षता तथा पश्चिमीकरण जैसी प्रक्रियाओं का काफ़ी बड़ा हाथ है। चाहे सांस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय समाज में पहले से ही व्याप्त थी परंतु और प्रक्रियाएं अंग्रेजों के समय में सामने आयी तथा इन्होंने भारतीय समाज का स्वरूप ही परिवर्तित कर दिया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

→ संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति प्रथा से संबंधित है। जब निम्न जाति के लोग उच्च जाति के रहने सहने के ढंग, उठन बैठने के ढंग तथा उनका नाम अपानाकर अपने आपको उच्च जाति का कहना शुरू कर दें अथवा उच्च जाति की जीवन पद्धति, अनुष्ठान मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं का अनुकरण करना शुरू कर दें तो इसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहा जाता है। यह जाति प्रथा के कारण सामने आयी।

→ पश्चिमीकरण की प्रक्रिया पश्चिमी समाज के अनुकरण से संबंधित है। श्रीनिवास के अनुसार पश्चिमी समाज के साथ लगभग 150 सालों के संपर्क के बाद कई परिवर्तन हमारे सामने आए और जैसे कि प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा, मूल्य इत्यादि। इस परिवर्तन की प्रक्रिया को ही पश्चिमीकरण कहा जाता है।

→ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के दौरान सामने आयी। इसके अनुसार यह विकास का वह ढंग है जो पश्चिमी यूरोप या उत्तरी अमेरिका ने अपनाया। इसके अनुसार व्यक्ति के विचार, व्यवहार के ढंग, जीवन के सभी पहलू बदल जाते हैं तथा व्यक्ति अपने आपको पूर्णतया आधुनिक महसूस करता है।

→ धर्म निष्पक्षता अथवा पंथनिरपेक्षीकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें धर्म के प्रभाव में कमी आती है तथा आधुनिक विचार धार्मिक विचारों को दबा लेते हैं। व्यक्ति का दृष्टिकोण धार्मिक न होकर आधुनिक हो जाता है। वह धार्मिक संस्थाओं से दूर हो जाता है तथा उसके पास धार्मिक कार्यों के लिए समय ही नहीं होता।

→ सांस्कृतिकरण-वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत निम्न समूह उच्च समूहों के विचारों, आदर्शों, जीवन जीने के ढंगों का अनुकरण करके उनका नाम तक अपना लेते हैं।

→ धर्मनिरपेक्षीकरण अथवा पंथनिरपेक्षीकरण-सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया जिसमें सार्वजनिक जीवन में धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा आधुनिकता का प्रभाव बढ़ जाता है।

→ पश्चिमीकरण-वह प्रक्रिया जिसमें भारतीय समाज के सभी आदर्श विचार, संस्थाएं इत्यादि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के अधीन आ गए।

→ आधुनिकीकरण-सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया जिसमें प्राचीन पंरपराओं का त्याग करके नए तथा आधुनिक विचारों को ग्रहण किया जाता है।

→ सती प्रथा-वह प्रथा जिसमें विधवा स्त्री अपने पति की चिता के साथ जीवित ही जला दी जाती थी।

→ बहुविवाह-विवाह का वह प्रकार जिसमें एक पति की कई पत्नियां अथवा एक पत्नी के कई पति होते हैं।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class Sociology ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए गद्यांश को पढ़े तथा प्रश्नों का उत्तर दें।
अयनबीद्या में मजदूरों की कठिन कार्य दशा, मालिकों की एक वर्ग के रूप में आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति के रूप में अपरिमित शक्ति के संयुक्त प्रभाव का परिणाम थी। मालिकों की सामाजिक शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष, राज्य के विभिन्न अंगों का अपने हितों के पक्ष में हस्तक्षेप करवा सकने की क्षमता थी। इस प्रकार प्रबल तथा निम्न वर्ग के मध्य खाई को चौड़ा करने में राजनीतिक कारकों का निर्णयात्मक योगदान रहा है।
(i) मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए कैसे प्रयोग कर सके, इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
(ii) मज़दूरों की कार्य दशा कठिन क्यों थी?
उत्तर:
(i) मालिक राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए प्रयोग कर सकते थे क्योंकि उनकी सामाजिक शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह था कि वह राज्य के अलग-अलग अंगों को अपने हितों के पक्ष में हस्तक्षेप करवा सकने की क्षमता रखते थे।

(ii) मज़दूरों की कार्य दशा कठिन थी क्योंकि मालिकों के पास आर्थिक शक्ति थी तथा वह प्रबल जाति से संबंध रखते थे। इसलिए मालिक मजदूरों का शोषण करते थे तथा मजदूरों के पास इसको सहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था।

प्रश्न 2.
भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए आपके अनुसार सरकार ने क्या उपाय किए हैं, अथवा क्या किए जाने चाहिए?
उत्तर:
स्वतंत्रता से पहले भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों की दशा काफ़ी दयनीय थी। स्वतंत्रता के बाद सरकार ने इनकी स्थिति सुधारने तथा इनके हितों की रक्षा करने के लिए प्रयास करने शुरू किए। इसलिए सरकार ने कई प्रकार के भूमि सुधार कार्यक्रम शुरू किए जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  • जिन ज़मीनों पर भूमिहीन किसान कृषि करते थे, उन्हें उस भूमि का स्वामित्व प्रदान किया गया तथा उन्हें ज़मीन का मालिक बना दिया गया।
  • ज़मींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई तथा ज़मींदारों की अतिरिक्त भूमि जब्त करके उसे भूमिहीन किसानों तथा मज़दूरों में बांट दिया गया।
  • बिचौलियों तथा मध्यस्थों को समाप्त कर दिया गया।
  • भूमि की चकबंदी कर दी गई तथा हरेक किसान के लिए जोतने वाली भूमि की सीमा निर्धारित कर दी गई।
  • भूमि से संबंधित रिकार्डों को दुरुस्त किया गया तथा उन्हें ठीक ढंग से बनाकर रखा गया। इस प्रकार सरकार ने भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा प्रवास करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए कई उपाय किए।

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प्रश्न 3.
कृषि मजदूरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक उध्वर्गामी गतिशीलता के अभाव के बीच सीधा संबंध है। इनमें से कुछ के नाम बताइए।
उत्तर:
निर्धनता, बेरोजगारी, ऋणग्रस्तता, प्रवास करना, भूमि का न होना, सरकारी नीतियों की जानकारी का अभाव, नई तकनीक का पता न होना इत्यादि ऐसे कारक हैं जो कषि मज़दरों की स्थिति तथा उनकी सामाजिक आर्थिक उर्ध्वगामी गतिशीलता के बीच रुकावटें हैं।

प्रश्न 4.
वे कौन-से कारक हैं जिन्होंने कुछ समूहों के नव धनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया है? क्या आप अपने राज्य में इस परिवर्तन के उदाहरण के बारे में सोच सकते हैं?
उत्तर:
1960 के दशक में हरित क्रांति आयी जिसके बहुत से दूरगामी परिणाम सामने आए। हरित क्रांति से न केवल खाद्यान उत्पादन बढ़ा बल्कि इससे बहुत से परिवर्तन भी आए। हरित क्रांति के कारण भारत में ग्रामीण समाज में आर्थिक असमानता बढ़ गई। हरित क्रांति के कारण नई मशीनें, नई तकनीक, नए बीज, उवर्रक, सिंचाई के साधन, कीटनाशक दवाएं सामने आयी परंतु यह छोटे किसानों की पहुंच से बाहर थी।

अमीर किसानों ने तो इन सभी चीज़ों को अपना लिया परंतु छोटे और सीमांत किसान इन्हें न अपना सकें क्योंकि इनको अपनाने की उनमें क्षमता नहीं थी। इसलिए हरित क्रांति के कारण अमीर तथा छोटे किसानों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ गई। अमीर किसानों ने उन्नत तकनीक अपना कर अधिक लाभ कमाने का ढंग पता कर लिया जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक असमानता तथा अंसतोष बढ़ गया। इस कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में संघर्ष शुरू हो गए।

इस असंतोष के कारण कृषि की नई व्यवस्था सामने आ रही है। हरित क्रांति के लाभ निर्धन किसानों, भूमिहीन कृषि मजदूरों इत्यादि को प्राप्त न हुए। इस प्रकार जब तक सभी को उस क्रांति का लाभ नहीं मिलेगा तब तक समाज के सभी वर्गों की आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति नहीं हो पाएगी। यह ठीक है कि हरित क्रांति के कारण देश में खाद्यान्न उत्पादन काफ़ी बढ़ गया परंतु यह उत्पादन देश के सभी क्षेत्रों में एक समान न बढ़ा।

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र इत्यादि जैसे प्रदेशों में तो खाद्यान्न उत्पादन काफ़ी बढ़ गया परंतु देश के और भागों में हरित क्रांति का प्रभाव कम ही पड़ा। इस कारण ही राज्यों की आर्थिक असमानता भी बढ़ गई। हरित क्रांति के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में पूंजीपूति किसानों का एक वर्ग सामने आया जो कृषि क्षेत्र में पैसा निवेश करके अधिक पैसा कमाने लगा। हरित क्रांति से लाभांवित हुए प्रदेशों में स्त्री पुरुष अनुपात में

प्रश्न 5.
हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में अक्सर ग्रामीण परिवेश में होती हैं। ग्रामीण भारत पर आधारित किसी फिल्म के बारे में सोचिए तथा उसमें दर्शाएं गए कृषक समाज और संस्कृति का वर्णन कीजिए। उसमें दिखाए गए दृश्य कितने वास्तविक है? क्या आपने हाल में ग्रामीण क्षेत्र पर आधारित कोई फिल्म देखी है? यदि नहीं तो आप इसकी व्याख्या किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
भारतीय सिनेमा की बहुत-सी फिल्मों में ग्रामीण भारत अर्थात् गांवों के दृश्य देखने को मिल जाते हैं। इन फिल्मों में ग्रामीण समाज की संस्कृति को ठीक ढंग से दिखाने का प्रयास किया जाता है। चाहे फिल्म निर्माता किसी गांव में शूटिंग न करके मुंबई के किसी स्टूडियो में ही गांव का सैट लगाकर उसे वास्तविक बनाने का प्रयास करते हैं। परंतु हम यह कह सकते हैं कि जो गाँव फिल्मों में दिखाया जाता है वह वास्तविक गाँव से तो भिन्न होता ही है।

पूरे भारत में गाँव अलग-अलग प्रकृति के हैं। कोई छोटे गाँव, कोई मध्यम प्रकार के तथा कई गाँव तो इतने बड़े हैं कि किसी छोटे-मोटे कस्बे का रूप ही ले लें। इन गांवों में सुविधाएं भी अलग प्रकार की ही मिलती हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे प्रदेशों में कृषि करने के ढंग अभी भी प्राचीन ही हैं। परंतु उत्तर भारत के प्रदेशों, पंजाब, हरियाणा इत्यादि में कृषि करने के आधुनिक सामान मिल जाते हैं।

इन गाँवों में साफ़-सफ़ाई का भी अधिक ध्यान रखा जाता है। इसके अतिरिक्त किसानों के जीवन जीने के ढंगों का भी अंतर होता है। हमने हाल ही में ग्रामीण परिवेश से संबंधित कई फिल्में देखी हैं जैसे कि अमिताभ बच्चन तथा धर्मेंद्र की शोले, आमिर खान की लगान इत्यादि। इन फिल्मों में ग्रामीण परिवेश को दिखाया गया है। इन फिल्मों में जो मुद्दे दिखाए गए हैं वह वास्तविक ग्रामीण समाज से बिल्कुल ही अलग हैं। इसलिए अगर फिल्मों में ग्रामीण परिवेश को दिखाना है तो उसका वास्तविक चित्रण ही दिखाना चाहिए न कि कृत्रिम चित्रण।

प्रश्न 6.
अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएं जहाँ आपको प्रवासी मज़दूरों के मिलने की सम्भावना हो, पता लगाइए कि वे मज़दूर कहां से आए हैं? उनके गाँव से उनकी भर्ती किस प्रकार की गई, उनका मुकादम कौन है? अगर वे ग्रामीण क्षेत्र से हैं तो गाँवों में उनके जीवन के बारे में पता लगाइए तथा उन्हें काम ढूँढने के लिए प्रवासन करके बाहर क्यों जाना पड़ा?
उत्तर:
अगर हम अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएं तो हमें हरेक स्थान पर प्रवासी मज़दूर मिल जाएंगे। इनसे बातचीत करके पता चलता है कि यह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे प्रदेशों से आए हैं जहां पर जीवन जीने के साधन इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। वहां पर मज़दूरी काफ़ी कम है इसलिए वह अपने प्रदेशों को छोड़कर हमारे प्रदेश में आए हैं ताकि अधिक धन कमा कर अपने परिवार का पालन-पोषण किया जा सके।

यह लोग स्वयं ही अपने मित्रों रिश्तेदारों के साथ हमारे प्रदेश में आए हैं। मुख्यतः यह लोग ग्रामीण क्षेत्रों से ही हैं तथा उनके गाँवों में जीवनयापन के लिए पैसा कमाना काफ़ी कठिन है। इसका सबसे पहला कारण यह है कि उनके पास कृषि करने योग्य भूमि या तो है ही नहीं, अगर है तो वह भी काफ़ी कम है। उससे गुजारा चलाना काफ़ी कठिन है। दूसरा इनके क्षेत्रों में मजदूरी करने के लिए बहुत अधिक लोग हैं जिस कारण मजदूरी काफ़ी कम है।

इन लोगों का खाना-पीना काफ़ी साधारण होता है। यह लोग तो नमक तथा प्याज़ के साथ रोटी खाकर भी गुजारा कर लेते हैं। कृषि करने के प्राचीन साधन हैं जिस कारण उत्पादन काफ़ी कम है। उन्हें काम ढूँढने के लिए प्रवासन करके बाहर जाना पड़ता है क्योंकि उनके यहाँ पर प्रति व्यक्ति आय इतनी कम है कि व्यक्ति का घर का गुजारा चलाना काफ़ी मुश्किल होता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

प्रश्न 7.
अपने स्थानीय फल विक्रेता के पास जाएँ और उससे पूछे कि वे फल जो वह बेचता है, कहाँ से आते हैं, और उनका मूल्य क्या है? पता लगाइए कि भारत के बाहर में फलों के आयात (जैसे कि ऑस्ट्रेलिया से सेब) के बाद स्थानीय उत्पाद के मूल्यों का क्या हुआ? क्या कोई ऐसा आयतित फल है जो भारतीय फलों से सस्ता है?
उत्तर:
अगर हम अपनी फलों की मार्कीट में जाएं तो हमें फलों की दुकानों पर कई प्रकार के फल मिल जाते हैं। इनमें से बहुत से ऐसे फल होते हैं जो मौसमी होते हैं अर्थात् उस विशेष मौसम में ही पाए जाते हैं। परंतु आजकल तो बहुत-से बेमौसमी फल भी मिल जाते हैं। अगर फल विक्रेता से पूछे तो उसका जवाब होता है कि यह फल बाहर का है अर्थात् यह आयातित फल है। उदाहरण के लिए सर्दियों में वैसे तो आम उपलब्ध नहीं होता परंतु फिर भी आम मौजूद होता है जोकि आयातित होता है।

इसी प्रकार बाज़ार में सेब, अंगूर, नाशपाती, कीवी फल, तरबूज़ इत्यादि ऐसे फल हैं जो आयात किए जाते हैं तथा हरेक मौसम में उपलब्ध होते हैं। वैसे तो इनका मूल्य स्थानीय फलों की तुलना में काफ़ी अधिक होता है परंतु जब मौसमी फल सस्ते हो जाते हैं तो इनके दामों में भी कमी आ जाती है। हमारे ख्याल में शायद कोई ऐसा आयातित फल नहीं है जो कि भारतीय फलों से सस्ता हो।

प्रश्न 8.
ग्रामीण भारत में पर्यावरण स्थिति के विषय में जानकारी एकत्र पर एक रिपोर्ट लिखें। उदाहरण के लिए विषय, कीटनाशक, घटता जल स्तर, तटीय क्षेत्रों में झींगें की खेती का प्रभाव, भूमि का लवणीकरण तथा नहरी सिंचित क्षेत्रों में पानी का जमाव, जैविक विविधता का ह्रास।
उत्तर:
ग्रामीण भारत में पर्यावरण की स्थिति काफ़ी चिंताजनक बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्र संपूर्ण देश के लिए खाद्यान्न का उत्पादन करते हैं। इसके लिए वह नए बीजों, उन्नत उर्वरकों, कीटनाशकों इत्यादि का प्रयोग करते हैं ताकि अधिक-से-अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके। परंतु इसका पर्यावरण पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कैमिकल उर्वरक, कीटनाशक इत्यादि खाद्यान्न को दूषित कर देते हैं। यूरिया के प्रयोग के बिना फ़सल नहीं होती परंतु यूरिया का व्यक्ति के शरीर पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे न केवल भूमि की उत्पादन क्षमता कम होती है बल्कि इनका शरीर पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है। किसान अधिक पानी प्राप्त करने के लिए भूमिगत जल स्रोत का प्रयोग करते हैं जिससे भूमिगत जल स्तर दिन-प्रतिदिन नीचे जा रहा है। यह सब कुछ खरीदने के लिए किसानों को कर्जा उठाना पड़ता है।

एक किसान अगर एक बार कर्जे के चक्कर में पड़ गया तो उस चक्कर से वह तमाम आयु निकल नहीं सकता। आजकल तो कर्जे से डर कर किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। रोज़ अखबार में किसानों द्वारा आत्महत्या करने की ख़बरें पढ़ने को मिल जाती हैं कि जोकि एक चिंता का विषय है।

ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ हमारा देश भारत मुख्यतः एक कृषि प्रधान देश है जहां पर 68% के जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है तथा 70% के लगभग जनसंख्या कृषि या उससे संबंधित कार्यों में लगी हुई है। इसलिए ही बहुत से भारतीयों के लिए भूमि उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन तथा संपत्ति का एक महत्त्वपूर्ण प्रकार है।

→ हमारे देश में कृषि तथा संस्कृति का काफ़ी गहरा संबंध है। अलग-अलग क्षेत्रों में कृषि की संस्कृति तथा ढंग अलग-अलग पाए जाते हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृतियों को दर्शाते हैं। ग्रामीण भारत की सांस्कृतिक तथा सामाजिक संरचना दोनों ही कृषि से जुड़े हुए हैं।

→ हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में केवल कृषि ही नहीं बल्कि उससे संबंधित कार्य भी साथ जुड़े हुए हैं जैसे कि कुम्हार, कृषक, जुलाहे, लोहार, सुनार इत्यादि। यह भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा है।

→ ग्रामीण भारत की कृषक संरचना कुछ अलग सी है। बहुत से लोगों के पास या तो कृषि योग्य भूमि है ही नहीं या फिर बहुत ही कम है। मध्य वर्ग के किसानों के पास थोड़ी बहुत भूमि तो होती है परंतु उससे उनका केवल गुज़ारा ही चलता है। अमीर या उच्च वर्गीय किसान अपनी अनंत ज़मीनों को किराए पर देकर स्वयं ऐश करते हैं। गांवों में प्रबल जाति काफ़ी महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली होती है।

→ औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने भूमि से अधिक-से-अधिक कर उगाहने के लिए कई प्रकार के प्रबंध चलाए जैसे कि ज़मींदारी प्रथा, रैय्यतवाड़ी प्रथा, महलवारी प्रथा। इन प्रबंधों के कारण किसानों का ज़मींदारों तथा विदेशी सरकार द्वारा इतना अधिक शोषण हुआ कि आज तक किसान उस कर्जे से उबर नहीं सके हैं।

→ भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के नेताओं ने कृषि की उन्नति के लिए बहुत से महत्त्वपूर्ण सुधार किए। सभी भूमि प्रबंधों को खत्म कर दिया गया। पट्टेदारी का उन्मूलन कर दिया गया, मध्यस्थ खत्म कर दिए गए तथा भूमि की हदबंदी की गई। चाहे इन कानूनों में कुछ कमियां थी तथा बहुत से लोगों ने इन कमियों का फायदा भी उठाया परंतु फिर भी इन सुधारों से किसानों के जीवन में काफ़ी खुशहाली आई।

→ 1960-70 के दशक में देश को खाद्यानों के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के लिए हरित क्रांति का कार्यक्रम चलाया गया जिसमें कृषि को आधुनिक मशीनों, नए बीजों, उर्वरकों इत्यादि की सहायता से करवाना शुरू किया गया। इससे कृषि उत्पादकता बढ़ गई तथा बहुत से किसान खुशहाल हो गए। चाहे हरित क्रांति जहाँ-जहाँ आई वहां पर काफ़ी खुशहाली आई परंतु जहाँ पर हरित क्रांति न आ पाई वहां पर स्थिति जस की तस ही रही। कृषि के ढंग वहां पर अविकसित रहे तथा गाँव की संरचना वैसी ही बनी रही। छोटे किसानों का अमीर किसानों द्वारा शोषण जारी रहा।

→ देश में स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण समाज में बहुत से परिवर्तन आए। कृषि मजदूर बढ़ गए, अनाज का नगद भुगतान होने लगा, प्राचीन जजमानी संबंध बदलने लग गए, मुक्त दिहाड़ीदार मज़दूर सामने आए। किसान सीधे विश्व बाज़ार से जुड़ गए तथा ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा बहुत-सी सुविधाएं दी गईं। इस समय में ही मज़दूरों का संचार भी शुरू हुआ। पिछड़े हुए प्रदेशों के लोग कार्य की तलाश में उन क्षेत्रों की ओर जाने लगे जहाँ पर कृषि क्षेत्र में कार्य उपलब्ध था। लाखों की तादाद में मज़दूर एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ गए जिससे जनसंख्या संरचना में काफी दिक्कतें आईं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन

→ इस समय में ही भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण की प्रक्रियाएं शुरू हुईं जिनका प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों पर भी पड़ा। कृषि का भूमंडलीकरण शुरू हुआ जिससे संविदा खेती पद्धति सामने आई।

→ कृषि क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से एक तरफ तो बहुत से किसान खुशहाल हो गए परंतु दूसरी तरफ सूखे, अकाल तथा ऋण वापिस न कर पाने के कारण किसानों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में अनुभव किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण संकट की तरफ संकेत करता है।

→ प्रबल जाति : ग्रामीण क्षेत्रों का समूह जो काफी शक्तिशाली होता है तथा आर्थिक और राजनीतिक रूप से वह स्थानीय लोगों पर प्रभुत्व बना कर रखता है।

→ बेगार : मुफ्त मज़दूरी करने की प्रथा से बेगार कहा जाता है।

→ रैय्यतवाड़ी व्यवस्था : कृषि के भूमि प्रबंध की वह व्यवस्था जिसमें कृषक स्वयं ही सरकार को टैक्स चुकाने के लिए ज़िम्मेदार होता था।

→ जीविका : व्यक्ति के जीवन जीने के लिए जरूरी कार्य या रोज़गार जिससे कि धन की प्राप्ति हो सके।

→ विभेदीकरण : हरित क्रांति की अंतिम परिणीत जिसमें अमीर और अमीर हो गए तथा कई निर्धन पूर्ववत रहे या अधिक निर्धन हो गए।

→ संविदा खेती : कृषि करने का वह ढंग जिसमें कंपनियाँ उगाई जाने वाली फसलों की पहचान करती हैं, बीज तथा अन्य वस्तुएँ निवेश के रूप में उपलब्ध करवाती हैं तथा साथ ही जानकारी और अक्सर कार्यकारी पूँजी भी देती हैं।

→ कृषि का भूमंडलीकरण : कृषि को विस्तृत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में शामिल किए जाने की प्रक्रिया।

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत को धर्म निष्पक्षता किसने प्रदान की है?
(A) राज्य
(B) सरकार
(C) जनता
(D) संविधान।
उत्तर:
संविधान।

2. उस देश को क्या कहते हैं जो किसी विशेष धर्म का नहीं बल्कि सभी धर्मों का सम्मान करता है?
(A) कल्याणकारी राज्य
(B) धर्म निष्पक्ष
(C) लोकतांत्रिक
(D) तानाशाही।
उत्तर:
धर्म निष्पक्ष।

3. इनमें से कौन-सा धर्म निष्पक्षता का आवश्यक तत्त्व है?
(A) धार्मिक कट्टरवाद का बढ़ना
(B) धार्मिक गतिविधियों का बढ़ना
(C) धार्मिक कट्टरवाद का खात्मा
(D) धार्मिक गतिविधियां का खात्मा।
उत्तर:
धार्मिक कट्टरवाद का खात्मा।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

4. इनमें से कौन-सा धर्म निष्पक्षता का मुख्य आधार है?
(A) धर्म
(B) तार्किकता तथा विज्ञान
(C) धार्मिक कट्टरवाद
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
तार्किकता तथा विज्ञान।

5. हमारा देश ………………… संस्कृति से काफी प्रभावित हुआ है।
(A) उत्तरी
(B) दक्षिणी
(C) पूर्वी
(D) पश्चिमी।
उत्तर:
पश्चिमी।

6. किसने कहा था कि धर्म निष्पक्षता का अर्थ है सभी धर्मों का सम्मान तथा समानता?
(A) गाँधी
(B) नेहरू
(C) मौलाना अबुल कलाम
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
गाँधी।

7. भारत में पर्दा प्रथा किसने शुरू की थी?
(A) हिंदुओं ने
(B) मुसलमानों ने
(C) सिक्खों ने
(D) पारसियों ने।
उत्तर:
मुसलमानों ने।

8. 2011 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या मुसलमान है?
(A) 10%
(B) 13%
(C) 14%
(D) 16%
उत्तर:
13%

9. इनमें से कौन-सी किताब एम० एन० श्रीनिवास ने लिखी है?
(A) Cultural change in India
(B) Social change in Modern India
(C) Geographical change in Modern India
(D) Regional change in Modern India.
उत्तर:
Social change in Modern India

10. प्राचीन भारत में कौन-सी धार्मिक भाषा प्रयुक्त होती थी?
(A) पाली
(B) हिंदी
(C) संस्कृत
(D) पंजाबी।
उत्तर:
संस्कृत।

11. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों की नकल करना शुरू कर देते हैं?
(A) पश्चिमीकरण
(B) संस्कृतिकरण
(C) धर्म निष्पक्षता
(D) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
संस्कृतिकरण।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

12. जब किसी देश का समाज अथवा संस्कृति परिवर्तित होना शुरू हो जाए तो उसे क्या कहते हैं?
(A) सामाजिक परिवर्तन
(B) धार्मिक परिवर्तिन
(C) सांस्कृतिक परिवर्तन
(D) उद्विकासीय परिवर्तन।
उत्तर:
सांस्कृतिक परिवर्तन।

13. प्राचीन समय से आज तक मनुष्य ने जो भी प्राप्त किया है उसे क्या कहते हैं?
(A) सभ्यता
(B) संस्कृति
(C) समाज
(D) चीजों का एकत्र।
उत्तर:
संस्कृति।

14. संस्कृति किस प्रकार का व्यवहार है?
(A) पैतृक
(B) सामाजिक
(C) समाज
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
सामाजिक।

15. इस्लाम ने हमारे समाज को किस प्रकार प्रभावित किया है?
(A) हमारे समाज में पर्दा प्रथा आई
(B) जाति व्यवस्था की पाबंदियां अधिक कठोर हो गई
(C) विवाह से संबंधित पाबंदियां और कठोर हो गईं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

16. धर्म निष्पक्षता को अपनाने का क्या कारण है?
(A) कम होते धार्मिक संस्थान
(B) आधुनिक शिक्षा
(C) पश्चिमी संस्कृति को अपनाना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

17. धर्म निष्पक्षता ने किस प्रकार हमारे देश के सामाजिक जीवन को प्रभावित किया है?
(A) पवित्रता तथा अपवित्रता के संकल्पों में परिवर्तन
(B) परिवार की संस्था में परिवर्तन।
(C) ग्रामीण समुदाय में बहुत से परिवर्तन आए हैं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

18. परिवार की संस्था में धर्म निष्पक्षता के कारण किस प्रकार के परिवर्तन आये हैं?
(A) संयुक्त परिवारों का टूटना
(B) एकांकी परिवारों का बढ़ना
(C) परिवार में बड़ों का कम होता नियंत्रण
(D) a + b + c.
उत्तर:
a + b + c

19. धर्म निष्पक्षता के कारण ग्रामीण समुदाय में किस प्रकार का परिवर्तन आया है?
(A) चुनी हुई पंचायतों का सामने आना
(B) समृद्धि पर आधारित सम्मान
(C) अंतर्जातीय विवाहों का बढ़ना
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

20. भारत में इस्लाम का प्रभाव पड़ना कब शुरू हुआ?
(A) 13वीं शताब्दी
(B) 14वीं शताब्दी
(C) 15वीं शताब्दी
(D) 16वीं शताब्दी।
उत्तर:
13वीं शताब्दी।

21. The Caste Disability Prohibition Act कब पास हुआ था?
(A) 1842
(B) 1846
(C) 1850
(D) 1854
उत्तर:
1850

22. इनमें से कौन-सा धर्म निष्पक्षता का कारण है?
(A) नगरीकरण
(B) यातायात तथा संचार के साधन
(C) आधुनिकी शिक्षा
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

23. इनमें से कौन-सा अधिकार नागरिकों को भारतीय संविधान ने दिया है?
(A) संपत्ति का अधिकार
(B) साधारण अधिकार
(C) मौलिक अधिकार
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
मौलिक अधिकार।

24. पश्चिमीकरण का सिद्धांत किसने दिया था?
(A) श्रीनिवास
(B) मजूमदार
(C) घुर्ये
(D) मुखर्जी।
उत्तर:
श्रीनिवास।

25. पश्चिमीकरण का हमारे देश पर क्या प्रभाव पड़ा?
(A) जाति प्रथा कमजोर हो गई
(B) तलाक बढ़ गए
(C) केंद्रीय परिवार सामने आए
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

26. इनमें से कौन-सा पश्चिमीकरण का परिणाम है?
(A) संस्थाओं में परिवर्तन
(B) शिक्षा का फैलना
(C) मूल्यों में परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

27. इनमें से कौन-सी संस्कृतिकरण की विशेषता है?
(A) स्थिति परिवर्तन
(B) उच्च जातियों की नकल
(C) कई माडल
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

28. संस्कृतिकरण का निम्न जातियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
(A) निम्न जातियों में गतिशीलता
(B) निम्न जातियों की स्थिति में सुधार
(C) निम्न जातियों के पेशे में परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

29. इनमें से कौन-सा देश भारत में पश्चिमीकरण का माडल है?
(A) ब्रिटेन
(B) अमेरिका
(C) जर्मनी
(D) फ्रांस।
उत्तर:
ब्रिटेन।

30. इनमें से कौन-सा पश्चिमीकरण का लक्षण है?
(A) आधुनिकीकरण से अलग
(B) भारतीय समाज पर ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव
(C) केवल शहरियों तक ही सीमित नहीं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

31. आधुनिकीकरण का मुख्य आधार क्या है?
(A) अच्छाई
(B) बुराई
(C) अच्छाई तथा बुराई
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
अच्छाई तथा बुराई।

32. कोई चीज़ जो पहले से नईं तथा अच्छी हो उसे क्या कहते हैं?
(A) आधुनिक
(B) औद्योगिक
(C) प्राचीन
(D) नगरीय।
उत्तर:
आधुनिक।

33. धर्म-निष्पक्षता, शिक्षा, नगरीकरण, नए अधिकार, मशीनें इत्यादि ……………. के लिए आवश्यक है।
(A) औद्योगिकरण
(B) आधुनिकीकरण
(C) संस्कृतिकरण
(D) नगरीकरण।
उत्तर:
आधुनिकीकरण।

34. भारत में कौन-सा उद्योग आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से प्रभावित हुआ है?
(A) कपड़ा उद्योग
(B) लोहा उद्योग
(C) चीनी उद्योग
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

35. भारत में आधुनिकीकरण लाने के लिए कौन उत्तरदायी है?
(A) मुगल शासक
(B) भारत सरकार
(C) ब्रिटिश सरकार
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार।

36. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जो परिवर्तन पर आधारित है तथा जो किसी चीज़ की अच्छाई तथा बुराई के बारे में बताती है?
(A) संस्कृतिकरण
(B) औद्योगीकरण
(C) नगरीकरण
(D) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
आधुनिकीकरण।

37. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें निम्न जातियाँ उच्च जातियों में मिल जाती हैं?
(A संस्कृतिकरण
(B) नगरीकरण
(C) औद्योगीकरण
(D) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
संस्कृतिकरण।

38. आधुनिकीकरण के लिए क्या आवश्यक है?
(A) शिक्षा का उच्च स्तर
(B) यातायात तथा संचार के साधनों में विकास
(C) उद्योगों को प्राथमिकता देना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

39. 19वीं सदी के सुधार आंदोलनों में किन कुरीतियों को रोकने के लिए विशेष बल दिया गया?
(A) सती प्रथा
(B) बाल विवाह
(C) विधवाओं के साथ दुर्व्यवहार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

40. इनमें से कौन-सी संकल्पना श्री एम. एन. श्रीनिवास की देन है?
(A) संस्कृतिकरण
(B) पश्चिमीकरण
(C) प्रबल जाति
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण की अवधारणा किस ने दी है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा एम० एन० श्रीनिवास ने दी है।

प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण की अवधारणा किस ने दी है?
उत्तर:
पश्चिमीकरण की अवधारणा एम० एन० श्रीनिवास ने दी है।

प्रश्न 3.
भारत किस प्रकार का राज्य है?
उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है तथा धर्म-निरपेक्षता उसे संविधान ने दी है।

प्रश्न 4.
धर्म-निरपेक्ष देश किसे कहते हैं?
उत्तर:
धर्म-निरपेक्ष देश वह होता है जहां किसी एक खास धर्म का आदर न होकर बल्कि सभी धर्मों का आदर हो तथा देश का अपना कोई धर्म न हो। सारे धर्म उसके लिए बराबर हों।

प्रश्न 5.
धर्म-निरपेक्षता का ज़रूरी तत्त्व क्या है?
उत्तर:
धार्मिक कट्टरता (संकीर्णता) का खात्मा धर्म-निरपेक्षता का ज़रूरी तत्त्व होता है।

प्रश्न 6.
धर्म-निरपेक्षता से किस जाति का प्रभाव कम हुआ है?
उत्तर:
धर्म-निरपेक्षता से ब्राह्मण जाति का प्रभाव कम हुआ है क्योंकि अब सभी धर्म तथा जातियां बराबर हैं।

प्रश्न 7.
धर्म-निरपेक्षता का मुख्य आधार क्या होता है?
उत्तर:
विज्ञान तथा तार्किकता धर्म-निरपेक्षता का मुख्य आधार होता है।

प्रश्न 8.
कहां की संस्कृति ने हमारे देश को प्रभावित किया है?
उत्तर:
पश्चिम की संस्कृति ने हमारे देश को प्रभावित किया है।

प्रश्न 9.
गांधी जी के अनुसार धर्म-निरपेक्ष क्या होता है?
उत्तर:
गांधी जी के अनुसार सभी धर्मों का आदर तथा बराबरी धर्म-निरपेक्ष का अर्थ होता है।

प्रश्न 10.
भारत में पर्दा प्रथा किसने शुरू की थी?
उत्तर:
भारत में पर्दा प्रथा मुसलमानों ने शुरू की थी।

प्रश्न 11.
भारत में कितने मुस्लिम रहते हैं?
उत्तर:
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 13% मुसलमान रहते हैं।

प्रश्न 12.
संस्कृतिकरण के दो सहायक कारक बताओ।
उत्तर:
औद्योगीकरण तथा नगरवाद संस्कृतिकरण के दो सहायक कारक हैं।

प्रश्न 13.
श्रीनिवास ने किस किताब में संस्कृतिकरण की व्याख्या की है?
अथवा
आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन नामक पुस्तक किस विचारक से संबंधित है?
उत्तर:
श्रीनिवास ने किताब लिखी थी Social Change in Modern India जिस में उन्होंने संस्कृतिकरण की व्याख्या की है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 14.
आधुनिकीकरण के मुख्य आधार क्या होते हैं?
उत्तर:
आधुनिकीकरण के मुख्य आधार अच्छाई और बुराई होते हैं।

प्रश्न 15.
कौन-सी चीज़ आधुनिक होती है?
उत्तर:
जो चीज़ पुरानी चीज़ की जगह नयी तथा अच्छी हो उस चीज़ को आधुनिक कहते हैं।

प्रश्न 16.
आधुनिकीकरण के लिए क्या ज़रूरी है?
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता, शिक्षा, नगरीयकरण, नयी मशीनें, नए आविष्कार आधुनिकीकरण के लिए जरूरी हैं।

प्रश्न 17.
भारत में आधुनिकीकरण कब शुरू हुआ था?
उत्तर:
भारत में आधुनिकीकरण अंग्रेज़ों के आने के बाद शुरू हुआ जब उन्होंने यहां पर पश्चिमी शिक्षा का प्रसार तथा नयी फैक्टरियां लगानी शुरू की।

प्रश्न 18.
भारत में आधुनिकीकरण से प्रभावित तीन उद्योगों के नाम बताएं।
उत्तर:

  1. कपड़ा उद्योग
  2. लोहा उद्योग
  3. चीनी उद्योग।

प्रश्न 19.
संस्कृतिकरण से किस में परिवर्तन होता है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण से जाति व्यवस्था की संरचना में परिवर्तन होता है जब छोटी जाति के लोग बड़ी जाति में मिलने की कोशिश करते हैं।

प्रश्न 20.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने 1897 में की थी।

प्रश्न 21.
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की?
अथवा
ब्रह्म समाज की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राम मोहन राय ने 1820 में की।

प्रश्न 22.
सत्य शोधक समाज किसने चलाया था?
उत्तर:
सत्य शोधक समाज ज्योतिबा फूले ने ब्राह्मणों के खिलाफ चलाया था।

प्रश्न 23.
ज्योतिबा फूले ने पहला स्कूल कहाँ खोला था?
उत्तर:
ज्योतिबा फूले ने पहला स्कूल पूना में खोला था।

प्रश्न 24.
किसने लड़कियों के लिए सबसे पहला स्कूल खोला था?
उत्तर:
1851 में ज्योतिबा फूले ने सबसे पहले लड़कियों के लिए स्कूल खोला था।

प्रश्न 25.
D.A.V. का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
D.A.V. का पूरा नाम दयानंद ऐंग्लो वैदिक है।

प्रश्न 26.
जनजातीय आंदोलन क्यों शुरू हुए थे?
उत्तर:
जनजातीय आंदोलन अपनी संस्कृति को बचाने के लिए शुरू हुए थे ताकि वह औरों की संस्कृति में न मिल जाएं।

प्रश्न 27.
आधुनिक भारत का पिता (Father of Modern India) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का पिता (Father of Modern India) कहा जाता है।

प्रश्न 28.
समाज सुधार क्या होता है?
उत्तर:
जब समाज में चल रही कुरीतियों के विरुद्ध समाज के समझदार व्यक्ति कोई आंदोलन करें तथा उन कुरीतियों को बदलने का प्रयास करें तो उसे समाज सुधार कहते हैं।

प्रश्न 29.
समाज सुधार में गतिशीलता क्यों होती है?
उत्तर:
समाज सुधार में गतिशीलता इसलिए होती है क्योंकि समाज सुधार सभी समाजों तथा सभी युगों में एक समान नहीं होता। इसलिए यह गतिशील है।

प्रश्न 30.
समाज कल्याण क्या होता है?
उत्तर:
समाज कल्याण में उन संगठित सामाजिक कोशिशों या प्रयासों को शामिल किया जाता है जिनकी मदद से समाज के सारे सदस्यों को अपने आप को ठीक तरीके से विकसित करने की सुविधाएं मिलती हैं। समाज कल्याण के कार्यों में निम्न तथा पिछड़े वर्गों की तरफ विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि समाज का हर तरफ से विकास तथा कल्याण हो सके।

प्रश्न 31.
समाज कल्याण के क्या उद्देश्य होते हैं?
उत्तर:

  1. पहला उद्देश्य यह है कि समाज के सदस्यों के हितों की पूर्ति उनकी ज़रूरतों के अनुसार होती रहे।
  2. ऐसे सामाजिक संबंध स्थापित करना जिससे लोग अपनी शक्तियों का पूरी तरह विकास कर सकें।

प्रश्न 32.
भारत के आज़ादी के आंदोलन से हमें क्या मिला?
उत्तर:
भारत के आजादी के आंदोलन से हमें आजादी मिली। इस आंदोलन में भारत की सारी जनता बगैर किसी भेदभाव के एक-दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी जिस वजह से उनमें राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। निम्न जातियों में भी चेतना आई तथा वह उच्च जातियों के समान खड़े हो गए।

प्रश्न 33.
किन्हीं तीन समाज सुधारकों के नाम बताओ।
उत्तर:

  1. राजा राममोहन राय
  2. सर सैयद अहमद खान
  3. स्वामी दयानंद सरस्वती
  4. स्वामी विवेकानंद।

प्रश्न 34.
बेसिक शिक्षा की धारणा किसने दी थी?
उत्तर:
बेसिक शिक्षा की धारणा महात्मा गांधी ने 1937 में दी थी।

प्रश्न 35.
समाज कल्याण तथा समाज सुधार में कोई मुख्य फर्क बताओ।
उत्तर:
समाज कल्याण तथा समाज सुधार में मुख्य फर्क यह है कि समाज कल्याण में समाज की निम्न जातियों, पिछड़े वर्गों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य किए जाते हैं जबकि समाज सुधार में समाज में फैली हुई कुरीतियों को दर कर उनमें बदलाव लाने के प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न 36.
स्वदेशी आंदोलन के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:

  1. भारत की विरासत को महत्त्व देना तथा उसे स्पष्ट करना।
  2. देश के रचनात्मक निर्माण के प्रयास करने।

प्रश्न 37.
रामकृष्ण मिशन का प्रमुख उद्देश्य।
उत्तर:

  1. आत्मत्याग करने वाले साधु-संतों को बाहर भेजना ताकि वे वेदों का प्रचार कर सकें।
  2. मानवीयता के लिए बगैर किसी जात-पात, धर्म, रंग, स्थान के भेदभाव के कार्य करना।

प्रश्न 38.
थियोसोफिकल सोसाइटी के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:

  1. हिंदू धर्म में पुनः चेतना जगाना ताकि सोए हुए हिंदू जाग सकें।
  2. विश्व भ्रातरी भाव का तथा विश्व के सभी धर्मों की एकता का प्रचार करना।

प्रश्न 39.
सत्यशोधक समाज के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:

  1. उस समय समाज में चली आ रही ब्राह्मणों की उच्चता या श्रेष्ठता को चुनौती देना।
  2. शिक्षा, समानता, स्त्रियों की आजादी के प्रयास करने।

प्रश्न 40.
आर्य समाज का प्रमुख उद्देश्य।
उत्तर:

  1. आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य गुरुकुल प्रथा पर आधारित हिंदुओं की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को दोबारा – जीवित करना।
    वेदों के प्रचार पर ज़ोर देना।
  2. उच्च स्तर पर अंग्रेज़ी शिक्षा को महत्त्व देना।

प्रश्न 41.
राजनीतिक आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
जो आंदोलन राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए चलाए जाएं उन्हें राजनीतिक आंदोलन कहते हैं। जैसे भारत की आज़ादी का आंदोलन।

प्रश्न 42.
सांस्कृतिक आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
जो आंदोलन अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए चलाया जाए उसे सांस्कृतिक आंदोलन कहते हैं। जैसे जनजातीय आंदोलन।

प्रश्न 43.
आज़ादी से पहले जाति आंदोलन क्यों चलाए गए थे?
उत्तर:

  1. आज़ादी से पहले जाति आंदोलन इसलिए चलाए गए थे ताकि ब्राह्मणों की और जातियों के ऊपर श्रेष्ठता का विरोध किया जा सके।
  2. जाति स्तरीकरण में अपनी जाति की स्थिति को ऊपर उठाया जा सके।

प्रश्न 44.
स्वामी विवेकानंद के जीवन का क्या मकसद था?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद के जीवन का मकसद आध्यात्मिकता को बढ़ावा देना तथा दैनिक जीवन के बीच की खाई को खत्म करना था।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 45.
आर्य समाज की कोई दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. आर्य समाज ने विधवा विवाह का प्रचार तथा बाल विवाह का विरोध किया।
  2. आर्य समाज ने अस्पृश्यता को समाप्त करने तथा सभी को वेदों को पढ़ने की स्वतंत्रता पर जोर दिया।

प्रश्न 46.
पारसियों के सुधार आंदोलन के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:

  1. पारसी स्त्री शिक्षा पर जोर दे रहे थे।
  2. पारसियों के सुधार आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य विवाह संबंधी रूढ़िवादिता को खत्म करना था।

प्रश्न 47.
मद्रास में भारतीय संघ की स्थापना किसने की थी?
उत्तर:
डॉ० ऐनी बेसेंट तथा श्रीमती काडसिस ने मद्रास में भारतीय संघ की स्थापना की थी।

प्रश्न 48.
भगत आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
भारत में निम्न जातियां उच्च जातियों के विचारों, तौर-तरीकों, व्यवहारों का अनुसरण करती हैं। इस प्रकार की रुचि तथा अनुसरण की प्रक्रिया को भगत आंदोलन कहते हैं।

प्रश्न 49.
सुधार आंदोलनों को सामाजिक आंदोलन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
असल में सुधार आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य समाज में पाई जाने वाली धार्मिक तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करना था इसलिए इन आंदोलनों को सामाजिक आंदोलन कहते हैं।

प्रश्न 50.
भारत में समाज सुधार आंदोलन क्यों शुरू हुए?
उत्तर:
अंग्रेजों के आने के बाद भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार हुआ। इस शिक्षा को ग्रहण करते-करते समाज के बहुत से सुलझे हुए लोगों को पता चला कि उनके समाज में जो रीतियां, जैसे सती प्रथा, बाल विवाह इत्यादि चल रही हैं वह असल में रीतियां नहीं बल्कि कुरीतियां हैं। उन्हें पश्चिमी देशों में जाने तथा वहां के लोगों से बातें करने का मौका मिला जिससे उनकी आँखें खुल गईं तथा अपने समाज में फैली कुरीतियों, कुप्रथाओं, अंधविश्वासों को दूर करने के लिए सुधार आंदोलन चल पड़े।

प्रश्न 51.
सर्वोदय शब्द किसने दिया था?
उत्तर:
सर्वोदय शब्द महात्मा गांधी ने दिया था। उनके अनुसार सिद्धांतों वाला व्यक्ति और लोगों को जीवित रखने के लिए खुद मर जाता है।

प्रश्न 52.
हमारे समाज में सती प्रथा क्यों प्रचलित थी?
उत्तर:

  1. हमारे समाज में सती प्रथा इसलिए प्रचलित थी क्योंकि विवाह को जन्मों का संबंध माना जाता था। इसलिए पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी को भी मरना पड़ता था।
  2. इसके साथ एक और भी भावना थी कि ऐसा करने से भगवान् खुश हो जाएंगे तथा सती को मोक्ष प्राप्त हो जाएगा।

प्रश्न 53.
विवेकानंद के प्रचार के मुख्य अंश क्या थे?
उत्तर:

  1. जीवन ही धर्म है। इसलिए जीवन को धर्म मानकर जीना चाहिए।
  2. जीव की सेवा करना शिव की सेवा करने के समान है।
  3. ईश्वर मनुष्य के अंदर ही वास करता है।
  4. मनुष्यों की सेवा करने के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रयोग ज़रूरी है।

प्रश्न 54.
पुराने समय में किस धार्मिक भाषा का प्रयोग होता था?
उत्तर:
पुराने समय में संस्कृत का धार्मिक भाषा के रूप में प्रयोग होता था।

प्रश्न 55.
संस्कृतिकरण क्या है?
उत्तर:
जब निम्न हिंदू जातियों के लोग उच्च हिंदू जातियों की नकल करने लग जाएं तथा अपने आप को उच्च जाति में मिलाने की कोशिश करें तो उस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 56.
सांस्कृतिक परिवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
जब किसी समाज या देश की संस्कृति में परिवर्तन होने लग जाएं तो उसे सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 57.
धर्म-निरपेक्षता का अर्थ दीजिए।
अथवा
धर्म-निरपेक्षीकरण से आप क्या समझते हैं?
अथवा
पंथ निरपेक्षीकरण क्या है?
उत्तर:
धर्म-निरपेक्षता को लौकिकीकरण भी कहते हैं। इसका मतलब यह है कि जो पहले धार्मिक था वह अब धार्मिक नहीं रहा। अब सभी धर्म बराबर हो गए हैं तथा कोई धर्म छोटा-बड़ा नहीं है। धर्म-निरपेक्षता में विचारों परंपराओं, धर्म इत्यादि में विज्ञान या तार्किकता लाने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 58.
पश्चिमीकरण से आप क्या समझते है?
अथवा
पश्चिमीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब हमारे देश में पश्चिम के देशों के विचारों, तौर-तरीकों इत्यादि को अपनाया जाता है तो उसे पश्चिमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 59.
असंस्कृतिकरण क्या होता है?
उत्तर:
यह संस्कृतिकरण का बिल्कुल उल्टा है। जब उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों के कार्य अपना लें तो उसे असंस्कृतिकरण कहते हैं। उदाहरण के तौर पर, किसी ब्राह्मण का जूतों की दुकान खोलना। यह आजकल ही मुमकिन है।

प्रश्न 60.
संस्कृति क्या होती है?
उत्तर:
जो कुछ भी मनुष्य ने प्राचीन समय से लेकर आज तक अपनी बुद्धिमता से हासिल किया है वह उसकी संस्कृति होती है। यह ऐसे विचारों, भावों, तरीकों का जोड़ है जो एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है। संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है।

प्रश्न 61.
पुनः संस्कृतिकरण क्या होता है?
उत्तर:
जब एक निम्न जाति के लोग उच्च जाति के लोगों के हाव-भाव, रहने-सहने के तरीके या संस्कृति अपनाते हैं तो वह संस्कृतिकरण होता है। पर जब निम्न जाति के लोग उच्च जाति की संस्कृति को छोड़ कर दोबारा अपनी संस्कृति या तौर-तरीकों को अपना लेते हैं तो उसे पुनः संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 62.
इस्लाम धर्म ने हमारे समाज पर क्या प्रभाव डाले हैं?
उत्तर:

  1. इस्लाम धर्म से ही परदा प्रथा हमारे समाज में आई।
  2. इस्लाम धर्म ने ही हमारी जाति प्रथा पर प्रभाव डाला उसके प्रतिबंध और सख्त हो गए।
  3. इस्लाम धर्म की वजह से हमारे विवाह संबंधी बंधन और सख्त हो गए।

प्रश्न 63.
संस्कृतिकरण की कोई दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. संस्कृतिकरण में निम्न जाति द्वारा उच्च जाति का अनुसरण किया जाता है।
  2. यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
  3. इसमें निम्न वर्गों का सामाजिक परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 64.
पश्चिमीकरण ने हमारे समाज पर क्या प्रभाव डाले?
अथवा
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के कोई दो प्रभाव बताइये।
उत्तर:

  1. पश्चिमीकरण की वजह से जाति प्रथा कमजोर हुई।
  2. इस की वजह से विवाह संबंध-विच्छेद तथा तलाक बढ़ने लगे।
  3. इस की वजह से औरतों ने घर से बाहर निकलना शुरू कर दिया।

प्रश्न 65.
प्रभु जाति क्या होती है?
उत्तर:
वह जाति जिसके पास कृषि योग्य भूमि ज्यादा होती है तथा जिसका निम्न जातियां अनुसरण करती हैं वह प्रभु जाति होती है।

प्रश्न 66.
आधुनिकीकरण किसे कहते हैं?
अथवा
आधुनिकीकरण का क्या अर्थ है?
अथवा
आधुनिकीकरण क्या है?
अथवा
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह प्रक्रिया जो परिवर्तन की प्रक्रिया पर आधारित होती है तथा जिसमें अच्छे बुरे, नई पुरानी इत्यादि भावनाओं का आभास होता है, वह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया होती है। धर्म निरपेक्षता, शिक्षा, नगरीकरण, नई मशीनें, नए अधिकार इत्यादि आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 67.
आधुनिकीकरण के तीन नकारात्मक प्रभाव बताएं।
उत्तर:

  1. आधुनिकीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के संयुक्त परिवार टूट रहे हैं तथा केंद्रीय परिवार सामने आ रहे हैं।
  2. भोग विलास की चीजें बढ़ रही हैं जिसका नई पीढ़ी पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
  3. इस कारण लोगों में अनैतिकता बढ़ रही है तथा समाज में अनैतिक कार्य बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 68.
आधुनिकीकरण को संभव बनाने के लिए कौन-सी प्रमुख परिस्थितियाँ आवश्यक हैं?
उत्तर:
आधुनिकीकरण को संभव बनाने के लिए सरकार की दृढ़ शक्ति, जनता की राय, उच्च शिक्षा का होना, धन की बहुतायत, उद्योगों का होना इत्यादि अति आवश्यक है।

प्रश्न 69.
आधुनिकता की परिभाषा एस० सी० दूबे के अनुसार बताएं।
उत्तर:
दूबे के अनुसार, “आधुनिकीकरण एक प्रक्रिया है जो परंपरागत या अर्ध परंपरागत व्यवस्था से किन्हीं इच्छित प्रारूपों तथा उनसे जुड़ी हुई सामाजिक संरचना के स्वरूपों, मूल्यों, प्रेरणाओं तथा सामाजिक आदर्श नियमों की ओर होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।

प्रश्न 70.
आधुनिकीकरण के लिए क्या ज़रूरी है?
अथवा
आधुनिकीकरण को संभव बनाने के लिए कौन-सी प्रमुख परिस्थितियां आवश्यक हैं?
उत्तर:

  1. इसके लिए शिक्षा का स्तर अच्छा होना चाहिए।
  2. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास होना चाहिए।
  3. संचार के माध्यमों का भी विकास होना चाहिए।
  4. कृषि की जगह उद्योग ज्यादा होने चाहिएं।

प्रश्न 71.
भारत एक ………………. देश है।
उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।

प्रश्न 72.
संस्कृति के मूर्त भाग को ……………….. कहते हैं।
उत्तर:
संस्कृति के मूर्त भाग को भौतिक संस्कृति कहते हैं।

प्रश्न 73.
शिक्षा की परिभाषा दें।
उत्तर:
ब्राउन तथा रासेक के अनुसार, “शिक्षा अनुभव की वह संपूर्णता है जो किशोर और वयस्क दोनों की अभिवृत्तियों को प्रभावित करती है तथा उनके व्यवहारों का निर्धारण करती है।”

प्रश्न 74.
शिक्षा के दो कार्य लिखें।
उत्तर:

  1. शिक्षा व्यक्ति को घटनाओं का सही विश्लेषण करने का ज्ञान देकर उसे समाज का अंग बना देती है।
  2. शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य समाज में से अनैतिकता, हिंसा, संघर्ष, स्वार्थ इत्यादि बुराइयों को दूर करना तथा इसके स्थान पर नैतिकता, प्यार इत्यादि का विकास करना है।

प्रश्न 75.
औपचारिक शिक्षा किसे कहते हैं?
उत्तर:
औपचारिक शिक्षा वह शिक्षा होती है जो हम औपचारिक तौर पर स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय इत्यादि में जाकर प्राप्त करते हैं। इस तरह की शिक्षा में स्पष्ट पाठ्यक्रम निश्चित किया जाता है तथा उसके अनुसार ही शिक्षा दी जाती है।

प्रश्न 76.
अनौपचारिक शिक्षा किसे कहते हैं?
उत्तर:
अनौपचारिक शिक्षा वह होती है जो व्यक्ति स्कूल, कॉलेज में नहीं बल्कि अपने रोजाना के अनुभव, अन्य व्यक्तियों के विचारों, परिवार, पड़ोस इत्यादि से प्राप्त करता है। व्यक्ति जो कुछ भी अपने रोज़ाना जीवन से सीखता है उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 77.
संस्कृति किसे कहते हैं?
उत्तर:
आदिकाल से लेकर आज तक जो कुछ मनुष्य ने प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है। विचार, फिलासफी, भावनाएं, मशीनें, कारें, बसें, शिक्षा इत्यादि सब कुछ संस्कृति का हिस्सा है।

प्रश्न 78.
सभ्यता किसे कहते हैं?
उत्तर:
संस्कृति के विकसित रूप को सभ्यता कहते हैं अर्थात् जब संस्कृति विकसित हो जाती है तो सभ्यता की स्थिति सामने आती है।

प्रश्न 79.
ब्रह्म समाज का प्रमुख उद्देश्य।
उत्तर:
ब्रह्म समाज का प्रमुख उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, जाति प्रथा, विधवा विवाह की मनाही इत्यादि को दूर करता था।

प्रश्न 80.
वेद ………………….. का धार्मिक ग्रंथ है।
अथवा
वेद किस धर्म के धार्मिक ग्रंथ हैं?
उत्तर:
वेद हिंदुओं का धार्मिक ग्रंथ है।

प्रश्न 81.
कुरान ………………….. का धार्मिक ग्रंथ है।
उत्तर:
करान मसलमानों का धार्मिक ग्रंथ है।

प्रश्न 82.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे?
उत्तर:
आर्य समाज में संस्थापक दयानंद सरस्वती थे।

प्रश्न 83.
संस्कृतिकरण का प्रभुजाति मॉडल क्या है?
उत्तर:
ब्राह्मण संस्कृतिकरण का प्रभुजाति मॉडल है।

प्रश्न 84.
बाइबल …………………. का धार्मिक ग्रंथ है।
उत्तर:
बाइबल इसाइयों का धार्मिक ग्रंथ है।

प्रश्न 85.
संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?
उत्तर:
संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम एम० एन० श्रीनिवास ने किया था।

प्रश्न 86.
संस्कृतिकरण का वर्ण मॉडल क्या है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण का वर्ण मॉडल ब्राह्मण वर्ण है।

प्रश्न 87.
‘गुरुग्रंथ साहिब’ किस धर्म के अनुयायियों की धार्मिक पुस्तक है?
उत्तर:
‘गुरुग्रंथ साहिब’ सिक्ख धर्म के अनुयायियों की धार्मिक पुस्तक है।

प्रश्न 88.
संस्कृतिकरण की अवधारणा प्रो० एम० एन० श्रीनिवासन ने दी है। यह कथन सही है या गलत।
उत्तर:
यह कथन सही है कि संस्कृतिकरण की अवधारणा प्रो० एम० एन० श्रीनिवासन ने दी है।

प्रश्न 89.
भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है या नहीं?
उत्तर:
भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है।

प्रश्न 90.
स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की या ‘ब्रह्म समाज’ की?
उत्तर:
स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की।

प्रश्न 91.
भारत पर पश्चिमीकरण के अंतर्गत किस देश का प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत पर पश्चिमीकरण के अंतर्गत इंग्लैंड का प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 92.
भारत के किसी प्रमुख धार्मिक अल्पसंख्यक का नाम बताएँ।
उत्तर:
मुस्लिम समुदाय भारत का प्रमुख धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है।

प्रश्न 93.
भारत में उपनिवेशवाद का अंत कब हुआ?
उत्तर:
भारत में उपनिवेशवाद का अंत 15 अगस्त, 1947 को हुआ जब भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

प्रश्न 94.
गीता किस धर्म से संबंधित धार्मिक पुस्तक है?
उत्तर:
गीता हिंदू धर्म से संबंधित धार्मिक पुस्तक है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 95.
संस्कृतिकरण का संबंध किसमें परिवर्तन होने से है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण का संबंध जाति में परिवर्तन होने से है।

प्रश्न 96.
भारत सरकार किस धर्म को मान्यता प्रदान करती है?
उत्तर:
भारत सरकार किसी एक धर्म को नहीं बल्कि सभी धर्मों को समान रूप से मान्यता प्रदान करती है।

प्रश्न 97.
पश्चिमीकरण का संबंध किससे है?
उत्तर:
पश्चिमीकरण का संबंध पश्चिमी देशों की संस्कृति अपनाने से है।

प्रश्न 98.
राजा राममोहन राय को किस व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को भारतीय परिवर्तन के जनक या पितामह के रूप में जाना जाता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधार आंदोलनों की मदद से हम क्या परिवर्तन ला सकते हैं?
उत्तर:
भारत एक कल्याणकारी राज्य है जिसमें हर किसी को समान अवसर उपलब्ध होते हैं। पर कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य जनता के जीवन को सुखमय बनाना है। पर यह तभी संभव है अगर समाज में फैली हुई कुरीतियों तथा अंध-विश्वासों को दूर कर दिया जाए। इन को दूर सिर्फ समाज सुधारक आंदोलन ही कर सकते हैं। सिर्फ कानून बनाकर कुछ हासिल नहीं हो सकता। इसके लिए समाज में सुधार ज़रूरी हैं। कानून बना देने से सिर्फ कुछ नहीं होगा।

उदाहरण के तौर पर बाल विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बच्चों से काम न करवाना। इन सभी के लिए कानून हैं पर ये सब चीजें आम हैं। दहेज लिया दिया, यहां तक कि मांग कर लिया जाता है, बाल विवाह होते हैं, विधवा विवाह को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता। हमारे समाज के विकास में यह चीजें सबसे बड़ी बाधाएं हैं। अगर हमें समाज का विकास करना है तो हमें समाज सुधार आंदोलनों की आवश्यकता है। इसलिए हम समाज सुधार आंदोलनों के महत्त्व को भूल नहीं सकते।

प्रश्न 2.
सामाजिक आंदोलन की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. सामाजिक आंदोलन हमेशा समाज विरोधी होते हैं।
  2. सामाजिक आंदोलन हमेशा नियोजित तथा जानबूझ कर किया गया प्रयत्न है।
  3. इसका उद्देश्य समाज में सुधार करना होता है।
  4. इसमें सामूहिक प्रयत्नों की ज़रूरत होती है क्योंकि एक व्यक्ति समाज में परिवर्तन नहीं ला सकता।

प्रश्न 3.
सामाजिक आंदोलन की किस प्रकार की प्रकृति होती है?
उत्तर:

  1. सामाजिक आंदोलन संस्थाएं नहीं होते हैं क्योंकि संस्थाएं स्थिर तथा रूढ़िवादी होती हैं तथा संस्कृति का ज़रूरी पक्ष मानी जाती हैं। यह आंदोलन अपना उद्देश्य पूरा होने के बाद खत्म हो जाते हैं। सामाजिक आंदोलन समितियां भी नहीं हैं क्योंकि समितियों का
  2. एक विधान होता है। यह आंदोलन तो अनौपचारिक, असंगठित तथा परंपरा के विरुद्ध होता है।
  3. सामाजिक आंदोलन दबाव या स्वार्थ समूह भी नहीं होते बल्कि यह आंदोलन सामाजिक प्रतिमानों में बदलाव की मांग करते हैं।

प्रश्न 4.
ब्रह्म समाज के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी जिसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  1. इनका मुख्य उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, जाति प्रथा, विधवा विवाह की मनाही इत्यादि को दूर करना था।
  2. यह समाज स्त्रियों को शिक्षा देकर समाज में ऊँचा दर्जा दिलाने के पक्ष में था।
  3. ब्रह्म समाज अंतर्जातीय विवाहों को भी करवाने के पक्ष में था।
  4. ब्रह्म समाज के प्रयत्नों से ही सती प्रथा निरोधक कानून 1829 तथा विधवा पुनर्विवाह कानून 1856 . बना था।

प्रश्न 5.
19वीं तथा 20वीं शताब्दी के कुछ संगठनों के नाम बताओ जिन्होंने समाज सुधार के कार्य किए थे।
उत्तर:

  1. आर्य समाज
  2. ब्रह्म समाज
  3. प्रार्थना समाज
  4. संगत सभा
  5. रामकृष्ण मिशन
  6. हरिजन सेवक संघ
  7. विधवा विवाह संघ
  8. आर्य महिला समाज।

प्रश्न 6.
मुसलमानों में जो सुधार कार्य किए गए उनका वर्णन करो।
उत्तर:
मुसलमानों में सुधार आंदोलन चलाने का श्रेय सर सैय्यद अहमद खान को जाता है। 1857 के पश्चात उन्होंने देखा कि मुसलमान अंग्रेजों के विरोधी हैं तथा अंग्रेज़ उन पर अत्याचार कर रहे हैं तथा इन्हें दबा रहे हैं। इसलिए मुस्लिमों को ऊपर उठाने के लिए उन्होंने सुधार कार्य शुरू किए। उन्होंने मुस्लिमों में फैली बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए। उन्होंने एक पत्रिका निकाली जिसमें मुसलमानों को नई तकनीकें अपनाने के लिए उत्साहित किया।

उन्हीं की कोशिशों से 1875 में अलीगढ़ में एक स्कूल खोला गया जो 1918 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में तबदील हो गया। उन्होंने बहु-पत्नी विवाह, पर्दा प्रथा, बाल विवाह के विरुद्ध प्रचार किया। वह स्त्री शिक्षा के समर्थक थे। इसी तरह कई और मुस्लिम समाज सुधारकों ने मुस्लिमों में जागृति लाने के प्रयास किए। 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई जिनके प्रयासों के फलस्वरूप पाकिस्तान की स्थापना हुई।

प्रश्न 7.
स्वदेशी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
स्वदेशी आंदोलन का अर्थ है लोगों के दवारा देश में ही बनी चीज़ों का उपयोग करना, अपने देश की संस्कृति का प्रचार व प्रसार करना, राष्ट्रीय शिक्षा को प्रोत्साहन देना, देसी उद्योगों की स्थापना करना। इस के साथ साथ विदेशी चीजों, शैक्षणिक संस्थानों, बैंकों, दुकानों आदि का बहिष्कार करना। यह शुरू हुआ था 1905 के बाद जब अंग्रेजों ने भारतीयों में फूट डालने की नीयत से बंगाल को दो भागों में बांट दिया।

इसके विरोध में लोगों ने बंगाल में स्वदेशी आंदोलन शुरू कर दिया जो कि शीघ्र ही पूरे देश में फैल गया। इसमें स्वदेशी चीज़ों को बढ़ावा दिया गया तथा विदेशी चीज़ों का बहिष्कार किया गया। आम जनता ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इसके परिणामस्वरूप स्वदेशी चीज़ों की खपत बढ़ गई, भारतीय उद्योगों का विकास हुआ, राष्ट्रीय शिक्षा को प्रोत्साहन मिला तथा सरकार के विरुदध व्यापक जनाधार बन गया।

प्रश्न 8.
जनजातीय आंदोलन क्यों शुरू हुए थे?
उत्तर:
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सैंकड़ों जनजातियों के लोग रहते हैं। इनकी अपनी विशिष्ट जीवन शैली होती है। उनकी ज़रूरतें भी कम होती हैं। वह अपनी संस्कृति व अलग जनजातीय पहचान बनाए रखने के प्रति बहुत सचेत होते हैं। यदि जनजाति के सदस्यों को लगे कि उनकी संस्कृति से छेड़छाड़ की जा रही है, इसमें परिवर्तन करने की कोशिश की जा रही है या उनकी मांगों की अनदेखी की जा रही है या उनकी अपनी अलग पहचान बनाए रखने में कोई खतरा है तो वे आंदोलन का रास्ता अपना लेते हैं।

इसके अलावा अन्य समदायों, धर्मों तथा वर्गों के लोगों के प्रभाव के कारण निश्चित तरह के परिवर्तन की इच्छा से भी जनजातियों के लोग आंदोलन करने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर बिहार से झारखंड राज्य अलग करने की मांग को लेकर आंदोलन हुआ। बिरसा मुंडा ने मुंडा जनजाति में ईसाइयत के विरुद्ध आंदोलन चलाया। बिरसा को मुंडा जनजाति के लोग बिरसा भगवान् कहते थे। उसके कहने के फलस्वरूप इस जनजाति के उन लोगों, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था, ने हिंदू धर्म को पुनः अपना लिया तथा मूर्ति पूजा, हिंदू कर्म-कांडों तथा रीति-रिवाजों का पालन करने लगे।

प्रश्न 9.
पारसियों में सुधार आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
19वीं शताब्दी में भारतीय समाज के अलग-अलग समुदायों तथा वर्गों के लोगों ने सामाजिक तथा धार्मिक आंदोलन चलाए। पारसी भी समाज सुधार आंदोलनों में पीछे नहीं रहे। सन् 1851 में पारसी नेताओं दादा भाई नौरोजी (Dadabhai Naoroji), नौरोजी फुरदोंजी (Naoroji Furdonji) तथा जे० बी० बाचा (J.B. Bacha) इत्यादि ने मिलकर ‘रेहनुमाइ मजदयासन सभा’ या धार्मिक सुधार सभा का गठन किया।

पारसी धर्म में सुधार लाना तथा इस धर्म के सदस्यों को आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के साथ जोड़ना इस सभा का प्रमुख उद्देश्य था। 1900 में पारसियों ने धार्मिक सम्मेलन का आयोजन किया। इन सब गतिविधियों के अलावा पत्रिकाओं व समाचार-पत्रों में लेखों, भाषणों तथा बैठकों के माध्यम से पारसी नेताओं ने पारसी धर्म के अनुयायियों को धार्मिक रूढ़ियों व अंध-विश्वासों को छोड़ने के लिए प्रेरित किया। स्त्रियों की दशा सुधारने तथा उनकी शिक्षा के लिए उन्होंने विशेष प्रयत्न किए। इन सब प्रयासों के कारण पारसी आज भारतीय समाज के सबसे पश्चिमीकृत वर्ग बन गए हैं।

प्रश्न 10.
राजा राममोहन राय ने भारत के समाज सुधारों में क्या योगदान दिया था?
अथवा
समाज, धर्म और स्त्रियों की परिस्थिति में सुधार करने के लिए राजा राममोहन राय ने क्या प्रयास किया?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का पिता भी कहते हैं। उन्होंने भारतीय समाज सुधार आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान दिया जिसका वर्णन निम्नलिखित है-

  • राजा राममोहन राय की कोशिशों के फलस्वरूप भारतीय समाज में चली आ रही बहुत बड़ी कुरीति सती प्रथा को 1829 में कानून बनाकर ब्रिटिश सरकार ने गैर-कानूनी घोषित कर दिया था।
  • राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रहमो समाज की स्थापना की जो काफी समय तक भारतीय समाज की कुरीतियों को दूर करने में लगा रहा।
  • राजा राममोहन राय ने पश्चिमी शिक्षा का समर्थन किया क्योंकि उन्होंने खुद भी पश्चिमी शिक्षा ग्रहण की थी तथा उन्होंने युवाओं को भी पश्चिमी शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया।
  • उन्होंने जाति प्रथा, जो कि भारतीय समाज को काफ़ी हद तक खोखला कर चुकी थी, के विरुद्ध भी जमकर आवाज़ उठाई।
  • उन्होंने स्त्रियों को ऊपर उठाने के काफी प्रयास किए। वह सती प्रथा, बाल विवाह के विरोधी तथा विधवा विवाह और स्त्रियों की शिक्षा के बहुत बड़े समर्थक थे।

प्रश्न 11.
रामकृष्ण मिशन के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
रामकृष्ण मिशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  • सभी जातियों व संप्रदायों के लोगों को दयायुक्त, दानयुक्त तथा मानवीय कार्य करवाना।
  • सामाजिक कुरीतियों तथा अंधविश्वासों को खत्म करना।
  • स्त्रियों का स्थान उच्च करने के लिए कार्य करना।
  • सब जीवमात्र की सेवा का प्रचार करना।
  • मनुष्य की शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास करना।
  • आत्मत्यागी तथा व्यावहारिक अध्यात्मवादी साधुओं को रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों के प्रचार तथा प्रसार के लिए तैयार करना।

प्रश्न 12.
भारत में समाज सुधार आंदोलन क्यों शुरू हुए?
उत्तर:
भारत में समाज सुधार आंदोलन निम्नलिखित कारणों से शुरू हुए-

  • भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को धर्म के साथ जोड़ा हुआ था।
  • समाज का जातीय आधार पर विभाजन था तथा जाति धर्म के आधार पर बनी हुई थी। जाति के नियमों को तोड़ना पाप माना जाता था।
  • भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा काफ़ी निम्न थी जिस वजह से उनका कोई महत्त्व नहीं रह गया था।
  • भारतीय समाज में अशिक्षा का बोलबाला था।
  • जाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह की मनाही इत्यादि बहुत-सी कुरीतियां समाज में फैली हुई थीं।

इन सब कारणों की वजह से शिक्षित समाज सुधारकों ने समाज सुधार करने की ठानी तथा समाज सुधार आंदोलन शुरू हो गए।

प्रश्न 13.
समाज में फैली कुरीतियों के बारे में गांधी जी के क्या विचार थे?
उत्तर:
समाज में फैली बहुत-सी बुराइयों या कुरीतियों पर गांधी जी के निम्नलिखित विचार थे-

  • गांधी जी के अनुसार निम्न जातियों को उच्च जातियों के बराबर होना चाहिए। इसलिए उन्होंने निम्न जातियों के लोगों को हरिजन का नाम दिया तथा उनके उत्थान के कई कार्य किए।
  • स्त्रियां भी उनके अनुसार पुरुषों के समान हैं। इसलिए गांधी जी ने स्त्रियों को भी राष्ट्रीय आंदोलन में आमंत्रित किया जिस वजह से लाखों स्त्रियां इस आंदोलन में कूद पड़ी।
  • गांधी जी नशाखोरी के भी विरुद्ध थे। इसलिए उन्होंने 1926 में इसके विरुद्ध आंदोलन चलाया था।
  • उनके अनुसार जब तक भारतीय समाज से अस्पृश्यता खत्म नहीं हो जाती तब तक आजादी का कोई फायदा नहीं है।
  • गांधी जी दहेज प्रथा के भी विरुद्ध थे। उनके अनुसार दहेज लेने वाले देश के गद्दार हैं।

प्रश्न 14.
आज़ादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की विशेषताएं क्या थी?
उत्तर:
आज़ादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की निम्नलिखित विशेषताएं थीं-

  • आजादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की पहली विशेषता यह थी कि हिंदू धर्म को तार्किक रूप से स्थापित करना क्योंकि इसने मुस्लिम शासकों तथा अंग्रेजों के कई थपेड़ों को झेला था।
  • महिलाओं, हरिजनों तथा शोषित वर्गों को ऊपर उठाना ताकि यह वर्ग भी और वर्गों की तरह सर उठाकर जी सकें।
  • ये आंदोलन परंपरागत रूढ़िवादी विचारधाराओं को समाप्त करके उनकी जगह नयी व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे।
  • ये आंदोलन जाति व्यवस्था की असमानता की बेड़ियों को तोड़कर समानता तथा भाईचारे की भावना को स्थापित करना चाहते थे।
  • ये आंदोलन भारतीय जनता में प्यार, भाईचारे, सहनशीलता, त्याग आदि भावनाओं का विकास करना चाहते थे।

प्रश्न 15.
क्रांतिकारी आंदोलन की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:
क्रांतिकारी आंदोलन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

  • क्रांतिकारी आंदोलन प्रचलित पुरानी व्यवस्था को उखाड़ कर उसकी जगह नयी व्यवस्था को लागू करना चाहते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलन में हिंसात्मक तथा दबाव वाले तरीके अपनाए जाते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलन हमेशा तभी चलाए जाते हैं जब सामाजिक बुराइयों को दूर करना हो।
  • क्रांतिकारी आंदोलन हमेशा निरंकुश शासन में तथा उसे खत्म करने के लिए चलाए जाते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलनों में हमेशा उग्रता तथा तीव्रता पाई जाती है।

प्रश्न 16.
सुधारवादी आंदोलन की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:
सुधारवादी आंदोलन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

  • सुधारवादी आंदोलन प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में सुधार करना चाहता है।
  • सुधारवादी आंदोलनों की गति हमेशा धीमी होती है।
  • सुधारवादी आंदोलनों में हमेशा शांतिपूर्ण तरीके अपनाए जाते हैं तथा यह समाज में शांतिपूर्ण परिवर्तन के लिए चलाए जाते हैं।
  • यह आम तौर पर प्रजातांत्रिक देशों में पाया जाता है।

प्रश्न 17.
सिंह सभा आंदोलन के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
सिंह सभा आंदोलन के निम्नलिखित उद्देश्य थे-

  • सिक्ख धर्म में पवित्रता पुनः स्थापित करना।
  • सिक्ख धर्म तथा संस्कृति संबंधी साहित्य का विकास करना।
  • धर्म परिवर्तित सिक्खों को वापिस सिक्ख धर्म में वापस लाना।
  • सिक्खों में प्रचलित अंधविश्वासों तथा कुरीतियों को दूर करना।
  • शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करना।
  • स्त्री-पुरुषों को समान अधिकार दिलवाना
  • सिक्ख धर्म के प्रचार तैयार कर इसके प्रचार के लिए कार्य करना।

प्रश्न 18.
ब्रहम समाज तथा आर्य समाज में अंतर बताओ।
उत्तर:
ब्रह्म समाज तथा आर्य समाज में अंतर निम्नलिखित हैं-

  • आर्य समाज का एक पवित्र ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ है जबकि ब्रह्म समाज का कोई ग्रंथ नहीं है।
  • आर्य समाज में वेदों को ही हर चीज़ का मूल माना गया है जबकि ब्रह्म समाज में ऐसा कुछ नहीं है।
  • आर्य समाजी स्वदेशी भाषा को पढ़ने पर जोर देते थे पर ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई पर जोर देते थे।
  • आर्य समाज ने स्त्री शिक्षा पर विशेष जोर दिया पर राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने पर जोर दिया।
  • आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती वैदिक संस्कृति अपनाने पर जोर देते थे पर राजा राममोहन राय को पश्चिमी संस्कृति अपनाने में कोई परेशानी नहीं थी।

प्रश्न 19.
पश्चिमीकरण के क्या परिणाम हो सकते हैं?
अथवा
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
पश्चिमीकरण के परिणाम निम्नलिखित हैं-
(i) संस्थाओं में परिवर्तन-पश्चिमीकरण की वजह से हमारे समाज में चल रही कई प्रकार की संस्थाओं में बहुत से परिवर्तन आ गए हैं। विवाह, परिवार, जाति प्रथा, धर्म इत्यादि संस्थाओं में जो रूढ़िवादिता पहले देखने को मिलती थी वह अब देखने को नहीं मिलती।

(ii) मूल्यों में परिवर्तन-इस वजह से मूल्यों में परिवर्तन हो रहा है। शिक्षा प्राप्त करके सभी को समानता के अधिकार के बारे में पता चल रहा है। अब हर कोई अपने बारे में पहले सोचता है परिवार के बारे में वह बाद में सोचता है। अब व्यक्तिवादिता तथा रस्मी संबंध बढ़ रहे हैं।

(iii) अब धर्म का उतना महत्त्व नहीं रह गया है जितना पहले था। पहले हर व्यक्ति धर्म से डरता था, सारे धार्मिक काम किया करता था पर अब व्यक्ति धर्म का प्रयोग सिर्फ उतना ही करता है जितनी ज़रूरत होती है। यह सब पश्चिमीकरण का ही परिणाम है।

(iv) पश्चिमीकरण की वजह में हमारे समाज में शिक्षा का प्रसार हो रहा है। आज हमारे देश की साक्षरता दर 65% से ऊपर है तथा यह आगे भी बढ़ेगी। इसके साथ ही स्त्रियों को भी शिक्षा प्राप्त होने लग गई है तथा उनकी आजादी बढ़ गई है।

प्रश्न 20.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के बारे में बताएं।
अथवा
संस्कृतिकरण की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
प्रो० एम० एन० श्रीनिवास के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिंदू जाति या जनजाति या अन्य समूह अपनी प्रथाओं, कर्म-कांड, विचारधारा तथा जीवन शैली को उच्च समूह की दिशा में बदल लेता है। साधारणतया ऐसे परिवर्तनों के बाद वह जाति स्थानीय समुदाय द्वारा जातीय सोपान में उच्च स्थान का दावा करने लगती है। आम तौर पर ऐसा दावा करने के एक-दो पीढ़ियों के बाद उसे स्वीकृति मिल जाती है।

कभी-कभी कोई जाति ऐसे स्थान का दावा करती है जिसे मानने के लिए पड़ोसी जाति सहमत नहीं होती है।” इस तरह संस्कृतिकरण निम्न जाति या समूह की परंपराओं, कर्म-कांडों, विचारधारा तथा जीवन शैली में उच्च जाति की दिशा में परिवर्तनों की प्रक्रिया है। ऐसे परिवर्तनों के कुछ समय के बाद उक्त समूह जातीय संस्तरण में प्राप्त पारंपरिक स्थान से उच्च स्थान प्राप्ति का दावा करते हैं।

प्रश्न 21.
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का अर्थ समझाएं।
अथवा
पश्चिमीकरण क्या है?
अथवा
पश्चिमीकरण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
साधारणतया पश्चिमीकरण का अर्थ पश्चिमी देशों के भारत पर प्रभाव से लिया जाता है। पश्चिमी देशों में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी तथा अमेरिका ऐसे राष्ट्र हैं जिनका भारतीय समाज पर काफ़ी प्रभाव रहा है। एम० एन० श्रीनिवास ने इसी पश्चिमीकरण की व्याख्या की है। उनके अनुसार, “पश्चिमीकरण शब्द को मैंने ब्रिटिश के 150 से अधिक वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है और यह शब्द विभिन्न स्वरों-प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा मूल्यों आदि में परिवर्तनों से संबंधित है।”

प्रश्न 22.
धर्म-निरपेक्षता का क्या अर्थ है?
अथवा
धर्म-निरपेक्षतावाद पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज 20वीं शताब्दी से ही पवित्र समाज से एक धर्म निरपेक्ष समाज में परिवर्तित हो रहा है। इस शताब्दी के अनेक विद्वानों ने यह महसूस किया कि धर्म निरपेक्षता के आधार पर ही विभिन्न धर्मों का देश भारत संगठित रह पाया है। धर्म-निरपेक्षता के आधार पर राज्य के सभी धार्मिक समूहों एवं धार्मिक विश्वासों को एक समान माना जाता है।

निरपेक्षता का अर्थ समानता या तटस्थता से है। राज्य सभी धर्मों को समानता की नज़र से देखता है तथा किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। धर्म निरपेक्षता ऐसी नीति या सिद्धांत है जिसके अंतर्गत लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने या पालन के लिए बाध्य नहीं किया जाता है।

प्रश्न 23.
संस्कृतिकरण तथा पश्चिमीकरण में भेद बताएं।
उत्तर:

संस्कृतिकरणपशिचमीकरण
(i) संस्कृतिकरण में कई प्रकार की चीज़ें खाने-पीने पर प्रतिबंध लगाया जाता है।(i) पश्चिमीकरण में किसी चीज़ के खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है।
(ii) यह एक रूढ़िवादी प्रक्रिया है।(ii) यह एक तार्किक प्रक्रिया है।
(iii) संस्कृतिकरण की प्रक्रिया स्वदेशी तथा आंतरिक है।(iii) पश्चिमीकरण की प्रक्रिया विदेशी तथा बाहरी है।
(iv) संस्कृतिकरण की प्रक्रिया बहुत पुराने समय से चली आ रही है।(iv) पशिचमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेज़ों के भारत आने के काफ़ी देर बाद शुरू हुई है।
(v) संस्कृतिकरण करने वाली जाति गतिशीलता करके उच्च स्थिति पर पहुंच जाती है।(v) पश्चिमीकरण में जाति की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता।
(vi) संस्कृतिकरण की प्रक्रिया समाज की कुछ निम्न जातियों तक ही सीमित होती है।(vi) पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में सभी जातियां समान रूप से हिस्सा लेती हैं।

प्रश्न 24.
आप पश्चिमी, आधुनिक, पंथनिरपेक्ष तथा सांस्कृतिक प्रकार के व्यवहार को किस रूप में परिभाषित करेंगे क्या आप इन शब्दों के सामान्य अर्थ एवं समाजशास्त्रीय अर्थ में कोई अंतर पाते हैं?
उत्तर:
जब कोई पश्चिम के देशों के विचारों, तौर-तरीकों इत्यादि को अपनाता है तो उसे पश्चिमी कहा जाता है। इस तरह पश्चिमी देशों के प्रभाव को पश्चिमी कहते हैं। आधुनिक वह होता है जिसमें परिवर्तन आ रहा होता है तथा जिसमें अच्छे बुरे, नये पुराने का आभास होता है जो व्यक्ति पश्चिमी देशों की संस्कृति के प्रभाव में आकर कार्य करता है तथा जो प्राचीन परंपराओं को छोड़कर नई परंपराओं को अपनाता है उसे आधुनिक कहते हैं।

पंथ निरपेक्ष को धर्म निरपेक्षता भी कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि जो पहले धार्मिक था वह अब धार्मिक नहीं रहा। अब सभी धर्म बराबर हो गए हैं तथा कोई धर्म छोटा बड़ा नहीं है। धर्म-निरपेक्षता में विचारों, परंपराओं, धर्म इत्यादि में विज्ञान या तार्किकता लाने का प्रयास किया जाता है। पंथनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा । धर्म का प्रभाव बढ़ जाता है। इस तरह ही सांस्कृतिक शब्द का अर्थ जीवन के स्वीकृत ढंगों में होने वाले परिवर्तन से है चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो।

अगर हम ध्यान से देखें तो इन शब्दों के समाजशास्त्रीय अर्थ तथा सामान्य अर्थ में कोई विशेष अंतर नहीं है। इसका कारण यह है कि यह संकल्प समाजशास्त्रियों द्वारा दिए गए हैं तथा उन्होंने इनकी व्याख्या जीवन की साधारण दशाओं के अनुसार ही की है।

प्रश्न 25.
आधुनिकता तथा परंपरा के मिश्रण के कुछ उदाहरणों के बारे में बताएं जो आप दिन-प्रतिदिन की जिंदगी में और व्यापक स्तर पर पाते हैं।
उत्तर:
संस्कृति के दो प्रकार होते हैं-भौतिक तथा अभौतिक। आधुनिकता के साधन भौतिकता के भाग हैं तथा परंपरा अभौतिक संस्कृति का हिस्सा है। हमारे जीवन में आधुनिकता तथा परंपरा के मिश्रण की बहुत-से उदाहरण मिल जाएंगे। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति ने टी० वी०, फ्रिज बेचने का शोरूम बनाया है, यह आधुनिकता है, परंतु वह अपनी दुकान को बुरी नजर से बचाने के लिए या तो नींबू मिर्चे या फिर हंडिया (नज़रबट्ट) लटका देता है।

यह आधुनिकता तथा परंपरा का मिश्रण है। हम नई कार लेकर आते हैं परंतु घर जाने की बजाए पहले मंदिर जाते हैं ताकि कार के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। आमतौर पर ट्रकों, बसों, ट्रैक्टरों इत्यादि के पीछे लिखा होता है ‘बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला’। यह भी आधुनिकता तथा परंपरा के मिश्रण के उदाहरण हैं। हम लोगों ने पश्चिमी समाज के रहन सहन, कपड़े पहनने घर बनाने के ढंग तो अपना लिए हैं, परंतु हमारे विचार अभी भी वहीं पर अटके हुए हैं जहां पर यह 100 साल पहले थे। यह भी आधुनिकता तथा परंपरा के मिश्रण की उदाहरणें हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अंग्रेजों के आने के पश्चात् हमने आधुनिकता या फिर कहें कि पश्चिमी समाज के तौर तरीकों, जीवन जीने के ढंगों को अपनाना तो शुरू कर दिया है। परंतु हम अभी भी अपने जाति संबंधी विचारों या धार्मिक विचारों को छोड़ नहीं पाये हैं। हमारे विचार अभी भी प्राचीन समाज में ही अटके पड़े हैं तथा यही कारण है कि आने वाली पीढ़ी तथा जाने वाली पीढ़ी के विचारों में हमेशा ही अंतर रहता है।

प्रश्न 26.
क्या आपको संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में लैंगिक आधार पर सामाजिक भेदभाव के सबूत दिखते हैं?
उत्तर:
अगर हम संस्कृतिकरण की प्रक्रिया तथा भारतीय समाज की संरचना की तरफ देखें तो हमें लैंगिक आधार पर सामाजिक भेदभाव में बहुत से सबूत मिल जाएँगे। हम उदाहरण ले सकते हैं प्राचीन समाज की जब स्त्रियों को शिक्षा नहीं प्रदान की जाती थी। उन्हें किसी प्रकार में अधिकार प्राप्त नहीं थे। स्त्रियों के साथ-साथ निम्न जातियों के लोगों को भी शोषण से भरपूर जीवन व्यतीत करना पड़ता था। इन लोगों का जीवन नर्क के समान था।

सदियों से इनके साथ ऐसा व्यवहार होता चला आ रहा था। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय संविधान बना तथा इन सभी शोषित वर्गों तथा अन्य वर्गों को समान अधिकार दिए गए। 1955 के अस्पृश्यता अपराध कानून से निम्न वर्गों की निर्योग्यताएं समाप्त कर दी गई। स्त्रियों की समाज में स्थिति को ऊपर उठाने के लिए कई प्रकार के विधानों का निर्माण किया गया। इनके कल्याण के कई कार्यक्रम चलाए गए।

इन सब प्रयासों के फलस्वरूप स्त्रियों तथा निम्न जातियों को कई प्रकार के अधिकार प्राप्त हुए तथा उन्हें अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने का अवसर प्राप्त हुआ। निम्न जातियों में लोगों ने सामाजिक संस्तरण में अपनी स्थिति को ऊँचा किया। स्त्रियों ने उच्च शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की तथा उसके बाद वह आर्थिक तौर पर आत्म-निर्भर होना शुरू हो गई।

अगर हम आज के समाज पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि कई क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर कार्य कर रही हैं। चाहे समाज में लैंगिक आधार पर सामाजिक भेदभाव के सबूत आज भी मिल जाते हैं, परंतु अब यह लैंगिक भेदभाव धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है तथा स्त्रियाँ अपने आपको ऊँचा उठाने के भरसक प्रयास कर रही हैं ताकि यह लैंगिक भेदभाव खत्म हो जाए।

प्रश्न 27.
उन सभी छोटे-बड़े तरीकों का अवलोकन करें जहां पश्चिमीकरण से हमारा जीवन प्रभावित होता है।
अथवा
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अगर हम अपने रोजाना के जीवन का अवलोकन करें तो हम देख सकते हैं कि हमारे जीवन का हरेक पक्ष पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है। हम हरेक पक्ष के बारे में अलग-अलग देख सकते हैं। पहले हम धोती-कुर्ता, कुर्ता पायजामा इत्यादि पहना करते थे, परंतु अब पैंट, शर्ट, कोट, पैंट, जीन्स, टी शर्ट, टाई, ट्रैक सूट इत्यादि पहनते हैं जो कि पश्चिमी देन है। पहले हम नीचे बैठ कर साधारण खाना जैसे कि सब्जी, रोटी, दाल इत्यादि खाते थे परंतु अब हम डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं।

खाने के प्रकार भी बदल गए हैं। रोटी का स्थान सैंडविच, बर्गर, पिज्जा, हॉट डाग इत्यादि ने ले लिया है। पहले चाय तथा मदिरा का सेवन होता था, परंतु अब चाय, कॉफी, व्हिसकी, जिन, कोल्ड ड्रिंक, शेक इत्यादि का सेवन होता है। पहले मनोरंजन के साधनों में बड़े बजुर्गों की कहानियाँ होती थीं परंतु अब उनके स्थान पर रेडियो, टेलीविज़न, कम्प्यूटर, इंटरनेट इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। गर्मी में फ्रिज का ठंडा पानी तथा ए० सी० प्रयोग होता है और सर्दी में गीज़र का गर्म पानी तथा गर्म हवा वाला ब्लोअर प्रयोग होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारे जीवन का प्रत्येक पक्ष पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है।

प्रश्न 28.
उन दो संस्कृतियों की तुलना करें जिनसे आप परिचित हों। क्या नृजातीय नहीं बनना कठिन नहीं है?
उत्तर:
हम भारतीय सस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति के वाकिफ हैं। भारतीय संस्कति धर्म से प्रेरित है तथा पाश्चात्य संस्कृति विज्ञान तथा तर्क से प्रेरित है। भारतीय संस्कृति तथा पाश्चात्य संस्कृति एक दूसरे से विपरीत हैं जहां के संस्कार रूढ़ियां, व्यवहार के ढंग, रहन-सहन, खाने-पीने कपड़े पहनने के ढंग एक-दूसरे से बिल्कुल ही अलग हैं।

हम कह सकते हैं कि नृजातीय बनना कठिन है क्योंकि हम दूसरी संस्कृति के भौतिक हिस्से को तो तेजी से अपना लेते हैं परन्तु अभौतिक संस्कृति को अपनाना बहुत मुश्किल होता है जिस कारण हम दूसरी संस्कृति को पूर्णतया अपना नहीं सकते हैं तथा नृजातीय नहीं बन सकते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 29.
सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए दो विभिन्न उपागमों की चर्चा करें।
उत्तर:
सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए प्राकृतिक परिवर्तन का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि प्राकृतिक परिवर्तन किसी भी स्थान की सांस्कृति को पूर्णतया परिवर्तित कर सकते हैं। बाढ़, सूखा, भूकम्प, गर्मी, सर्दी इत्यादि किसी भी स्थान की संस्कृति पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इसके साथ ही क्रान्तिकारी परिवर्तनों का अध्ययन भी बहुत आवश्यक है।

जब किसी संस्कृति में तेज़ी से परिवर्तन आथा है तो उस संस्कृति के मूल्यों तथा अर्थव्यवस्था में तेजी से परिवर्तन आते हैं। क्रान्तिकारी परिवर्तन राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण ही आते हैं जिससे उस समाज की संस्कृति में परिवर्तन आ जाता है। इस प्रकार सांस्कृतिक परिवर्तनों के अध्ययन के लिए प्राकृतिक परिवर्तनों तथा क्रान्तिकारी परिवर्तनों का अध्ययन आवश्यक है।

प्रश्न 30.
आधुनिकीकरण की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर:
1. सामाजिक भिन्नता-आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के कारण समाज के विभिन्न क्षेत्र काफ़ी Complex हो गए तथा व्यक्तिगत प्रगति भी पाई गई। इस वजह से विभेदीकरण की प्रक्रिया भी तेज हो गई।

2. सामाजिक गतिशीलता-आधुनिकीकरण के द्वारा प्राचीन सामाजिक, आर्थिक तत्त्वों का रूपांतरण हो जाता है, मनुष्यों के आदर्शों की नई कीमतें स्थापित हो जाती हैं तथा गतिशीलता बढ़ जाती है।

प्रश्न 31.
आधुनिकीकरण द्वारा लाए गए दो परिवर्तन बताएं।
उत्तर:
1. धर्म-निरपेक्षता-भारतीय समाज में धर्म-निरपेक्षता का आदर्श स्थापित हुआ। किसी भी धार्मिक समूह का सदस्य देश के ऊंचे से ऊंचे पद को प्राप्त कर सकता है। प्यार, हमदर्दी, सहनशीलता इत्यादि जैसे गुणों का विकास समाज में समानता पैदा करता है। यह सब आधुनिकीकरण के कारण है।

2. औद्योगीकरण-औद्योगीकरण की तेजी के द्वारा भारत की बढ़ती जनसंख्या की ज़रूरतें पूरी करनी काफ़ी आसान हो गईं। एक तरफ बड़े पैमाने के उद्योग शुरू हुए तथा दूसरी तरफ घरेलू उद्योग तथा संयुक्त परिवारों का खात्मा हुआ।

प्रश्न 32.
आधुनिकीकरण तथा सामाजिक गतिशीलता का क्या संबंध है?
उत्तर:
सामाजिक गतिशीलता आधुनिक समाजों की मुख्य विशेषता है। शहरी समाज में कार्य की बांट, विशेषीकरण, कार्यों की भिन्नता, उद्योग, व्यापार, यातायात के साधन तथा संचार के साधनों इत्यादि ने सामाजिक गतिशीलता को काफ़ी तेज़ कर दिया। प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता, बुद्धि के साथ गरीब से अमीर बन जाता है।

जिस कार्य से उसे लाभ प्राप्त होता है वह उस कार्य को करना शुरू कर देता है। कार्य के लिए वह स्थान भी परिवर्तित कर लेता है। इस तरह सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया के द्वारा परंपरावादी कीमतों की जगह नई कीमतों का विकास हुआ। इस तरह निश्चित रूप में कहा जा सकता है कि आधुनिकीकरण से सामाजिक गतिशीलता बढ़ती है।

प्रश्न 33.
आधुनिकीकरण से नए वर्गों की स्थापना होती है। कैसे?
उत्तर:
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति को प्रगति करने के कई मौके प्रदान करती है। इस वजह से कई नए वर्गों की स्थापना होती है। समाज में यदि सिर्फ एक ही वर्ग होगा तो वह वर्गहीन समाज कहलाएगा। इसलिए आधुनिक समाज में कई नये वर्ग अस्तित्व में आए हैं।

आधुनिक समाज में सबसे ज्यादा महत्त्व पैसे का होता है। इसलिए लोग जाति के आधार पर नहीं बल्कि राजनीति तथा आर्थिक आधारों पर बंटे हुए होते हैं। वर्गों के आगे आने का कारण यह है कि अलग-अलग व्यक्तियों की योग्यताएं समान नहीं होतीं। मजदूर संघ अपने हितों की प्राप्ति के लिए संघर्ष का रास्ता भी अपना लेते हैं। अलग-अलग कार्यों के लोगों ने तो अलग-अलग अपने संघ बना लिए हैं।

प्रश्न 34.
धर्म-निरपेक्षता में ज़रूरी तत्त्व क्या है?
उत्तर:

  1. धार्मिक विघटन-धार्मिक विश्वासों में परिवर्तन पाया गया, व्यावहारिक लाभों को महत्ता प्राप्त हुई। अर्थात् किसी भी धार्मिक क्रिया के बिना आजकल लोगों को प्रभावित किया जा सकता है।
  2. तार्किकता-प्रत्येक कार्य तथा समस्या के ऊपर तर्क के आधार पर विचार किया जाता है जिससे प्राचीन अन्ध-विश्वासों में कमी हो जाती है।
  3. विभेदीकरण-समाज के अलग-अलग हिस्से जैसे आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक इत्यादि एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं तथा धर्म का प्रभाव इन सभी क्षेत्रों में कम हो गया है।

प्रश्न 35.
धर्म-निरपेक्षता के दो कारण बताएं।
उत्तर:

  1. आधुनिक शिक्षा-आधुनिक शिक्षा के द्वारा उच्च तथा निम्न की भावना खत्म हुई तथा व्यक्ति को स्थिति भी उसकी योग्यता के आधार पर प्राप्त हुई। लोगों की भावना में भी बढ़ोत्तरी हुई।
  2. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास-यातायात तथा संचार के साधनों के विकास के साथ लोग एक दूसरे के नजदीक आए, अस्पृश्यता, उच्च निम्न के भेदभाव में कमी आई तथा बराबरी वाले संबंध स्थापित हुए।

प्रश्न 36.
धर्म-निरपेक्षता द्वारा लाए गए दो परिवर्तन बताएं।
उत्तर:

  1. पवित्र तथा अपवित्र के संकल्प में परिवर्तन-प्राचीन समय से चले आ रहे पवित्रता तथा अपवित्रता के विचारों में कमी आयी। हर तरह का तथा प्रत्येक जाति का खाना पवित्र माना गया। सभी धर्मों में बराबरी के संबंध स्थापित हुए।
  2. संस्कारों में परिवर्तन-हिन्दू धर्म से संबंधित संस्कार जैसे बच्चे के जन्म से सम्बन्धित, विधवा से संबंधित इत्यादि संस्कार खत्म हो गए। व्यक्तिगत योग्यता महत्त्वपूर्ण हो गई।

प्रश्न 37.
धर्म-निरपेक्षता का परिवार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
भारत में शुरू से ही संयुक्त परिवार प्रणाली प्रमुख रही है क्योंकि ज्यादातर लोग कृषि के ऊपर निर्भर करते थे जिसमें ज्यादा व्यक्तियों की ज़रूरत होती थी। विकास के पक्ष से भी भारत काफ़ी पीछे था। परंतु धर्म-निरपेक्षता के प्रभाव में प्राचीन परंपराओं के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदला। परिवार के कई तरह के कार्य दूसरी संस्थाओं के पास चले गए। संयुक्त परिवार प्रथा बिल्कुल ही कमज़ोर पड़ गई है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक आंदोलनों ने भारतीय समाज में क्या परिवर्तन लाए? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
भारतीय समाज में 19वीं सदी आते-आते बहुत-सी कुरीतियां फैली हुई थीं। इन कुरीतियों ने भारतीय समाज को बुरी तरह जकड़ा हुआ था। इसी समय भारत के ऊपर अंग्रेज़ कब्जा कर रहे थे। इसके साथ-साथ वह पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी कर रहे थे। बहुत से अमीर भारतीय पश्चिमी शिक्षा ले रहे थे।

शिक्षा लेने के बाद जब वह भारत पहुंचे तो उन्होंने देखा कि भारतीय समाज बहुत-सी कुरीतियों में जकड़ा हुआ है। इसलिए उन्होंने सामाजिक आंदोलन चलाने का निर्णय लिया ताकि इन कुरीतियों को दूर किया जा सके। इन सामाजिक आंदोलनों की जगह जो परिवर्तन भारतीय समाज में आए उनका वर्णन निम्नलिखित है-

(i) सती-प्रथा का अंत (End of Sati System)-भारत में सती प्रथा सदियों से चली आ रही थी। अगर किसी औरत के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे जिंदा ही पति की चिता में जलना पड़ता था। इस अमानवीय प्रथा को ब्राह्मणों ने चलाया हुआ था। सामाजिक आंदोलनों की वजह से ब्रिटिश सरकार इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध हो गई तथा उसने 1829 में सती प्रथा विरोधी अधिनियम पास कर दिया तथा सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। इस तरह सदियों से चली आ रही यह प्रथा खत्म हो गई। यह सब सामाजिक आंदोलन के कारण ही हुआ।

(ii) बाल-विवाह का खात्मा (End of Child Marriage)-बहुत-से कारणों की वजह से भारतीय समाज में बाल विवाह हो रहे थे। पैदा होते ही या 4-5 साल की उम्र में ही बच्चों का विवाह कर दिया जाता था चाहे उन को विवाह का अर्थ पता हो या न हो। सामाजिक आंदोलनों की वजह से ब्रिटिश सरकार ने विवाह की न्यूनतम आयु निश्चित कर दी। 1860 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बना कर विवाह की न्यूनतम आयु 10 वर्ष निश्चित कर दी।

(iii) विधवा-पुनर्विवाह (Widow Remarriage)-सदियों से हमारे समाज में विधवाओं को पुनर्विवाह की इजाजत नहीं थी। विधवाओं की स्थिति बहुत बद्तर थी। उनको किसी पारिवारिक समारोह में भाग लेने की इजाजत नहीं थी। वह घुट-घुट कर मरती रहती थीं। उनको अपनी जिंदगी आराम से जीने का अधिकार नहीं था।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कोशिशों की वजह से अंग्रेजों ने 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पास किया जिससे विधवाओं को दोबारा विवाह करने की इजाजत मिल गई। इस तरह विधवाओं को कानूनी रूप से विवाह करने तथा अपनी जिंदगी आराम से जीने का अधिकार मिल गया।

(iv) पर्दा-प्रथा की समाप्ति (End of Purdah System)-मुस्लिमों में बरसों से पर्दा प्रथा चली आ रही थी। औरतों को हमेशा पर्दे के पीछे रहना पड़ता था। वही कहीं आ जा भी नहीं सकती थीं। यह प्रथा धीरे-धीरे सारे भारत में फैल गई। बड़े-बड़े समाज सुधारकों ने पर्दा प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठायी। यहां तक कि सर सैय्यद अहमद खान ने भी इसके विरुद्ध आवाज़ उठायी। इस तरह धीरे-धीरे पर्दा प्रथा कम होने लग गई तथा समय आने के साथ यह भी खत्म हो गई।

(v) दहेज-प्रथा में परिवर्तन (Change in Dowry System)-दहेज वह होता है जो विवाह के समय लड़की का पिता अपनी खुशी से लड़के वालों को देता था। धीरे-धीरे इसमें भी बुराइयां आनी शुरू हो गईं। लड़के वाले दहेज मांगने लगे जिस वजह से लड़की वालों को बहुत तकलीफें उठानी पड़ती थीं। इसके विरुद्ध भी आंदोलन चले जिस वजह से ब्रिटिश सरकार ने तथा आज़ादी के बाद 1961 में सरकार ने दहेज लेने या देने को गैर-कानूनी घोषित कर दिया।

(vi) भारतीय समाज में बहुत समय से अस्पृश्यता चली आ रही थी। इसमें छोटी जातियों को स्पर्श भी नहीं किया जाता था। इन सामाजिक आंदोलनों में अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज़ उठी। जिस वजह से इसे गैर-कानूनी घोषित करने के लिए वातावरण तैयार हो गया तथा आजादी के बाद इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया।

(vii) भारतीय समाज में अंतर्जातीय विवाह पर प्रतिबंध था। इन सामाजिक आंदोलनों की वजह से अंतर्जातीय विवाह को बल मिला जिस वजह से आजादी के बाद इसे भी कानूनी मंजूरी मिल गई।

(viii) इन आंदोलनों की वजह से भारतीय समाज के आधार जाति व्यवस्था पर गहरी चोट लगी। सभी आंदोलनों ने जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठायी जिस वजह से धीरे-धीरे जाति व्यवस्था खत्म होने लगी तथा आज भारत में जाति व्यवस्था अपनी आखिरी कगार पर खड़ी है।

(ix) सभी सामाजिक आंदोलन एक बात पर तो ज़रूर सहमत थे तथा वह थी स्त्री शिक्षा। हमारे समाज में स्त्रियों का स्तर काफ़ी निम्न था। उनको किसी भी चीज़ का अधिकार प्राप्त नहीं था। इन सभी आंदोलनों ने स्त्री शिक्षा के लिए कार्य किए जिस वजह से स्त्री शिक्षा को विशेष बल मिला। आज उसी वजह से स्त्री-पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है।

इन सब चीजों को देखकर यह स्पष्ट है कि भारत में 19वीं सदी से शुरू हुए सामाजिक आंदोलनों की वजह से भारतीय समाज में बहुत-से परिवर्तन आए।

प्रश्न 2.
भारत में समाज सुधारक आंदोलन चलाने के लिए क्या सहायक हालात थे?
उत्तर:
भारत में सदियों से बहुत-सी कुरीतियां चली आ रही थीं। भारतीयों को इन कुरीतियों में पिसते-पिसते सदियां हो चली थी पर भारतीय इनमें पिसते ही जा रहे थे तथा इनके खिलाफ कोई आवाज़ भी उठ नहीं रही थी। 18वीं सदी के आखिरी दशकों में अंग्रेजों ने भारत पर हकूमत करनी शुरू की। इसके साथ-साथ उन्होंने भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी शुरू किया।

भारतीयों ने पश्चिमी शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की तथा धीरे-धीरे उन्हें समझ आनी शुरू हो गई कि भारतीय समाज में जो प्रथाएं चल रही हैं वह सब बेफिजूल की हैं जो कि ब्राहमणों ने अपना स्वामित्व स्थापित करने के लिए चलाई थीं। जब अंग्रेज़ों ने भारत पर हकूमत करनी शुरू की तो उस समय भारत में कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए जिनकी वजह से भारत में समाज सुधारक आंदोलनों की शुरुआत हुई। इन हालातों का वर्णन निम्नलिखित है-

(i) पश्चिमी शिक्षा (Western Education)-अंग्रेजों के भारत आने के बाद भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी शुरू हुआ। पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ उन्हें विज्ञान के बारे में यूरोप की प्रगति के बारे में भी पता चला। इस पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करने का यह असर हुआ कि उनको पता चलने लग गया कि उनके समाज में जो प्रथाएं चल रही हैं उनका कोई अर्थ नहीं है। यही वजह है कि उन्होंने देश में सामाजिक आंदोलन चलाने शुरू किए और सामाजिक परिवर्तन आने शुरू हो गए।

(ii) यातायात के साधनों का विकास (Development of Means of Transport)-अंग्रेजों ने भारत में चाहे अपने फायदे के लिए यातायात के साधनों का विकास किया पर उससे भारतीयों को भी बहुत फायदा हुआ। भारतीय इन यातायात के साधनों की वजह से एक-दूसरे के आगे आए तथा एक-दूसरे से मिलने लगे।

पश्चिमी शिक्षा ग्रहण चुके भारतीय भी देश के कोने-कोने पहुंचे तथा उन्होंने लोगों को समझाया कि यह सब प्रथाएं उनके फायदे के लिए नहीं बल्कि नुकसान के लिए हैं जिससे लोगों को यह समझ आने लग गया। इस तरह यातायात के साधनों के विकास के साथ भी आंदोलनों के लिए हालात विकसित हुए।

(iii) भारतीय प्रेस की शुरुआत (Indian Press)-अंग्रेजों के आने के बाद भारत में प्रेस की शुरुआत हुई। आंदोलनों के संचालकों ने लोगों को समझाने के साथ छोटे-छोटे अखबार तथा पत्रिकाएं निकालनी भी शुरू की ताकि भारतीय इनको पढ़ कर समझ सकें कि ये बुराइयां हमारे समाज में कितनी गहरी पैठ बना चुकी हैं तथा इनको यहां से निकालना बहुत ज़रूरी है। इस तरह प्रेस की शुरुआत ने भारतीयों को यह समझा दिया कि इन कुरीतियों को दूर करना कितना ज़रूरी है।

(iv) मिशनरियों का बढ़ता प्रभाव (Increasing Effect of Missionaries)-जब से अंग्रेज़ भारत में आए रियों को भी सहायता देनी शरू की। अंग्रेज़ों ने इनको आर्थिक सहायता के साथ राजनीतिक सहायता भी देनी शुरू की। इन मिशनरियों का कार्य ईसाई धर्म का प्रचार करना था पर इनका प्रचार करने का तरीका अलग था। वह पहले समाज कल्याण का कार्य करते थे। लोगों की तकलीफ दूर करते थे फिर इनमें ईसाई धर्म का प्रचार करते थे।

धीरे-धीरे लोग ईसाई धर्म को अपनाने लग गए। इससे समाज सुधारकों को बड़ी निराशा हुई क्योंकि भारतीय लोग अपना धर्म छोड़ कर विदेशी धर्म अपनाने लग गए थे। इन समाज सुधारकों ने भारतीयों को मिशनरियों के प्रभाव से बचाने के लिए समाज सुधारक आंदोलन चलाने शुरू कर दिए। इस तरह ईसाई मिशनरियों के प्रभाव की वजह से भी यह आंदोलन शुरू हो गए।

कुप्रथाएं (So many ills in Indian Society)-जिस समय भारत में सुधार आंदोलन शुरू हुए उस समय भारतीय समाज में बहुत-सी कुप्रथाएं फैली हुई थीं। सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, दहेज प्रथा, अस्पृश्यता इत्यादि कुप्रथाएं तथा इनके साथ जुड़े हुए बहुत से अंधविश्वास भी भारतीय समाज में फैले हुए थे। लोग भी इन सब से तंग आ चुके थे। जब यह आंदोलन शुरू हुए तो लोगों ने इन सुधारों को हाथों हाथ लिया जिस वजह से इन आंदोलनों को अच्छे हालात मिल गए तथा यह समाज सुधार के आंदोलन सफल हो गए।

प्रश्न 3.
भारतीय समाज सुधार आंदोलनों के नेताओं के बारे में आप क्या जानते हैं? उनका वर्णन करें।
उत्तर:
वैसे तो भारत में समाज सुधार के बहुत से आंदोलन चले। इन आंदोलनों में बहुत से महान् व्यक्तियों ने भाग लिया। इन महान व्यक्तियों में से कुछ प्रमुख सुधारकों का वर्णन निम्नलिखित है-

(i) राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy)-राजा राममोहन राय का नाम समाज सुधारकों में सबसे अग्रणी है। वह आधुनिक भारत में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने समाज सुधार के कार्य प्रारम्भ किए। इसलिए आधुनिक भारत का पिता भी कहते हैं। उन्होंने 1814 में आत्मीय सभा का गठन किया था। इसमें उन्होंने दनिया के अलग-अलग धर्मों को छोड़कर दुनिया के एक धर्म की स्थापना का विचार पेश किया। उस समय भारत में अमानवीय सती प्रथा प्रचलित थी।

उन्होंने अंग्रेजों को इस प्रथा के बारे में अवगत करवाया तथा उन्हीं के यत्नों से 1829 में सती प्रथा विरोधी कानून पास किया। इसमें सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। इस तरह यह दर्दनाक प्रथा खत्म हो गई। उन्होंने मूर्ति पूजा तथा धार्मिक अंध-विश्वासों के कारण इनके खिलाफ आवाज़ उठाई।

उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की जिसने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ जम कर आवाज़ उठाई। अपने अंतिम वर्षों में वह इंग्लैंड चले गए जहाँ 1833 में उनकी मृत्यु हो गई। भारतीय समाज के लिए उनका दिया योगदान अविस्मरणीय है जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता।

(ii) देवेंद्रनाथ ठाकुर (Devendera Nath Thakur)-राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ऐसा लगा कि ब्रह्म समाज खत्म हो जाएगा पर 1845 में ब्रह्म समाज का भार देवेंद्रनाथ ठाकुर ने अपने हाथों में ले लिया तथा वह इसके लिए प्रेरणा स्रोत बन गए। 1839 में उन्होंने तत्त्वबोधिनी सभा की स्थापना की तथा इस सभा का लक्ष्य उन्होंने सत्य की शिक्षा देना रखा।

वह तत्त्वबोधिनी पत्रिका के संपादक भी रहे। 1847 में इस सभा ने ऋग्वेद का अनुवाद भी किया। 1847 में ही वह बनारस गए तथा उन्होंने वेदों का ज्ञान प्राप्त करके ब्रह्म धर्म नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई। उन्होंने राजा राममोहन राय की तरह विधवा विवाह तथा स्त्री शिक्षा पर काफ़ी ज़ोर दिर इनकी मृत्यु हो गई थी।

(iii) केशवचंद्र सेन (Keshav Chandra Sen) केशवचंद्र सेन ने 1861 में ब्रह्म समाज के कार्यों में ध्यान देना शुरू किया तथा संगीत सभा की स्थापना की। आपने 1861 में Indian Mirror नामक पत्रिका प्रकाशित की। इस पत्रिका की मदद से ही उन्होंने अपने समाज सुधार के आंदोलन को आगे बढ़ाया।

आपने 1863 में ‘वामा बोधिनी’ नामक पत्रिका प्रकाशित की जिसमें उन्होंने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए तथा अंतर्जातीय विवाह का प्रचार किया। 1868 में आपने ब्रह्म समाज के संदेश घर-घर तक पहुंचाने के लिए ‘भारतवर्ष ब्रहम समाज’ की स्थापना की। 1884 में आपका देहांत हो गया।

(iv) स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayanand Saraswati)-आपका जन्म सन् 1824 में हुआ था। आपका पहला या असली नाम मूलशंकर था। आपने 24 वर्ष की उम्र में ही संन्यास ले लिया तथा अलग-अलग शहरों में घूमकर अपने उपदेशों का प्रचार किया।

1871 से 1873 आप गंगा किनारे घूमते रहे तथा स्कूलों का प्रब करते रहे। 1874 में आपने मूर्ति पूजा का सख्त विरोध किया तथा 1875 में उन्होंने बंबई में आर्य समाज की स्थापना की। 1877 में आपने पंजाब में जगह-जगह आर्य समाज की स्थापना की। उन्होंने जाति प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह पर रोक, धर्म परिवर्तन को रोकने के विरुद्ध आवाज़ उठाई।

आपके द्वारा दयानंद वैदिक संस्थाओं की स्थापना की गई तथा इसमें सिर्फ भारतीय ही पढ़ा सकते थे। इन संस्थाओं में नैतिक शिक्षा के महत्त्व पर जोर दिया गया। आपने जाति प्रथा का विरोध किया। आपके यत्नों से ही हिंदू धर्म छोड़ चुके लोग वापस हिंदू धर्म को अपनाने लग गए। आपके यत्नों से ही अंतर्जातीय विवाह शुरू हो गए। 1883 में आपका निधन हो गया।

(v) स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)-आप स्वामी रामकृष्ण के परम शिष्य थे। आपने 1883 में शिकागो में हई Parliament of Religion में भाग लिया। वहां पर आपने जो अपने विचार प्रस्तुत किए उनसे उनकी काफ़ी प्रसिद्धि हो गई। आपने उस सभा में वेदों की शिक्षा संबंधी बात की तथा आपकी बातें सुनने के पश्चात् लोगों को लगने लग गया कि उस सभा में आप ही श्रेष्ठ व्यक्ति हैं।

आप कहते थे कि ईश्वर एक है तथा सर्वव्यापक है। प्रत्येक जीव में ईश्वर बसता है। जब मनुष्य अपने आप पर काबू पा लेता है तो वह पूर्ण हो जाता है तथा भगवान् को प्राप्त कर लेता है। सारा संसार धर्म के ऊपर तथा धर्म के अनुसार ही चलता है। आपने राजा राममोहन राय की तरह विश्व धर्म की बात की जिसने भारतीयों के साथ-साथ विदेशियों को भी प्रभावित किया। आपके विचारों से प्रभावित होकर आपके शिष्यों की गिनती बढ़ती चली गई।

आपने अस्पृश्यता तथा जाति प्रथा के विरुद्ध जम कर प्रचार किया तथा आप चाहते थे कि अलग-अलग धर्मों तथा जातियों में एकता बनी रहे। आपने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की ताकि धार्मिक भेदभाव को समाप्त किया जा सके। इस मिशन की मदद से आपने शिक्षा का प्रसार, बाढ़ पीड़ितों की सहायता, पशु पालन, अनाथालय, स्कूलों कॉलेजों की स्थापना की तथा देशवासियों को पुनर्जीवित करने तथा जाति-पाति के भेदभाव मिटाने के प्रयास किए। आपकी मृत्यु 1902 में हो गई थी।

प्रश्न 4.
भारत में महिलाओं में चले सुधार आंदोलन का वर्णन करो।
उत्तर:
भारतीय समाज में समय-समय पर अनेक ऐसे आंदोलन शुरू हुए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य स्त्रियों की दशा में सुधार करना रहा है। भारतीय समाज एक पुरुष-प्रधान समाज है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं ने अपने शोषण, उत्पीड़न इत्यादि के लिए अपनी स्थिति में सुधार के लिए आवाज़ उठाई है। पारंपरिक समय से ही महिलाएं बाल-विवाह, सती–प्रथा, विधवा विवाह पर रोक, पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों का शिकार होती आई हैं।

महिलाओं को इन सब शोषणात्मक कुप्रथाओं से छुटकारा दिलवाने के देश के समाज सुधारकों ने समय-समय पर आंदोलन चलाये हैं। इन आंदोलनों में समाज सुधारक तथा उनके द्वारा किये गए प्रयास सराहनीय रहे हैं। इन आंदोलनों की शुरुआत 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही हो गई थी। राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, केशवचंद्र सेन, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, ऐनी बेसेंट इत्यादि का नाम इन समाज सुधारकों में अग्रगण्य है।

सन् 1828 में राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना तथा 1829 में सती प्रथा अधिनियम का बनाया जाना उन्हीं का प्रयास रहा है। स्त्रियों के शोषण के रूप में पाये जाने वाले बाल-विवाह पर रोक तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रचलित कराने का जनमत भी उन्हीं का अथक प्रयास रहा है। इसी तरह महात्मा गांधी, स्वामी दयानंद सरस्वती, ईश्वरचंद्र, विदयासागर जी ने भी कई ऐसे ही प्रयास किये जिनका प्रभाव महिलाओं के जीवन पर सकारात्मक रूप से पड़ा है।

महर्षि कर्वे स्त्री-शिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के समर्थक रहे । इसी प्रकार केशवचंद्र सेन एवं ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों के अंतर्गत ही 1872 में ‘विशेष विवाह अधिनियम’ तथा 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बना। इन अधिनियमों के आधार पर ही विधवा पुनर्विवाह एवं अंतर्जातीय विवाह को मान्यता दी गई। इनके साथ ही कई महिला संगठनों ने भी महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए कई आंदोलन शुरू किये।

महिला आंदोलनकारियों में ऐनी बेसेंट, मैडम कामा, रामाबाई रानाडे, मारग्रेट नोबल आदि की भूमिका प्रमुख रही है। भारतीय समाज में महिलाओं को संगठित करने तथा उनमें अधिकारों के प्रति साहस दिखा सकने का कार्य अहिल्याबाई व लक्ष्मीबाई ने प्रारंभ से किया था। भारत में कर्नाटक में पंडिता रामाबाई ने 1878 में स्वतंत्रता से पूर्व पहला आंदोलन शुरू किया था तथा सरोज नलिनी की भी अहम् भूमिका रही है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व प्रचलित इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप ही अनेक ऐसे अधिनियम पास किये गए जिनका महिलाओं की स्थिा स्थति सधार में योगदान रहा है। इसी प्रयास के आधार पर स्वतंत्रता पश्चात अनेक अधिनियम जिनमें 1955 का हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 का हिंदू उत्तराधिकार का अधिनियम एवं 1961 का दहेज निरोधक अधिनियम प्रमुख रहे हैं।

इन्हीं अधिनियमों के तहत स्त्री-पुरुष को विवाह के संबंध में समान अधिकार दिये गए तथा स्त्रियों को पृथक्करण, विवाह-विच्छेद एवं विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति प्रदान की गई है। इसी प्रकार संपूर्ण भारतीय समाज में समय-समय पर और भी ऐसे कई आंदोलन चलाए गए हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य स्त्रियों को शोषण का शिकार होने से बचाना रहा है।

वर्तमान समय में स्त्री-पुरुष के समान स्थान व अधिकार पाने के लिए कई आंदोलनों के माध्यम से एक लंबा रास्ता तय करके ही पहुंच पाई है। समय-समय पर राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा महिला संगठनों के प्रयासों के आधार पर ही वर्तमान महिला जागृत हो पाई है। इन सब प्रथाओं के परिणामस्वरूप ही 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया गया।

इसके साथ ही विभिन्न राज्यों में महिला विकास निगम [Women Development Council (WDC)] का निर्माण किया गया है जिसका उद्देश्य महिलाओं को तकनीकी सलाह देना तथा बैंक या अन्य संस्थाओं से ऋण इत्यादि दिलवाना है। वर्तमान समय में अनेक महिलाएं सरकारी एवं गैर-सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं। आज स्त्री सभी वह कार्य कर रही है जो कि एक पुरुष करता है।

महिलाओं के अध्ययन के आधार पर भी वह निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान समय में महिला की परिस्थिति, परिवार में भूमिका, शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, राजनीतिक एवं कानूनी भागीदारी में काफ़ी परिवर्तन आया है। आज महिला स्वतंत्र रूप से किसी भी आंदोलन, संस्था एवं संगठन से अपने आप को जोड़ सकती है। महिलाओं की विचारधारा में इस प्रकार के परिवर्तन अनेक महिला स्थिति सुधारक आंदोलनों के परिणामस्वरूप ही संभव हो पाये हैं।

आज महिला पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित की जाती हैं तथा इसके साथ ही महिला सभाओं एवं गोष्ठियों का भी संचालन किया जा रहा है जिसका प्रभाव महिला की स्थिति पर पूर्ण रूप से सकारात्मक पड़ रहा है। विभिन्न महिला आंदोलनों ने न केवल महिलाओं की स्थिति सुधार में ही भूमिका निभाई है, बल्कि इन आंदोलनों के आधार पर समाज में अनेक परिवर्तन भी आये हैं, अतः महिला आंदोलन सामाजिक परिवर्तन का भी एक उपागम रहा है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
ब्रह्म समाज के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके उद्देश्यों एवं उपलब्धियों का वर्णन करो।
अथवा
ब्रह्म समाज के प्रमुख उद्देश्यों एवं उपलब्धियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ब्रह्म समाज (Brahmo Smaj)-ब्रह्म समाज की स्थापना आधुनिक भारतीय पुनर्जागरण के जनक राजा राममोहन राय ने 20 अगस्त, 1828 ई० में की। ब्रह्म समाज का शाब्दिक अर्थ है “एक ईश्वर समाज” यह समाज मूल रूप से ब्राह्मणों का समाज था जिसमें अन्य जातियों के लोग नहीं जा सकते थे। लेकिन इसके कार्यकाल में निरंतर वृधि होती गई जिसके कारण ब्रह्म समाज के कार्यक्रमों में अन्य जातियों के लोगों ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लेना आरंभ कर दिया।

राजा राममोहन राय के पश्चात् देवेंद्र नाथ टैगोर तथा केशवचंद्र सेन आदि समाज सुधारकों ने ब्रह्म समाज को सशक्त नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने देश के विभिन्न भागों में लघु पुस्तिकाओं, पत्रिकाओं, सभाओं एवं गोष्ठियों के माध्यम से इसका प्रचार एवं प्रसार किया। परिणामस्वरूप पहले 1866 तक केवल 54 ब्रह्म समाज स्थापित हुए थे जिनकी संख्या 1911 में बढ़कर 184 हो गई।

उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में भारतीय समाज में अनेक बुराइयां, कुरीतियां, अंध-विश्वास एवं कुसंस्कार प्रचलित थे। बाल-विवाह की संख्या अधिक थी। विधवा विवाह पर रोक थी। सती प्रथा प्रचलित थी, जिसके कारण स्त्रियों की सामाजिक स्थिति काफ़ी निम्न व कमज़ोर थी। जाति प्रथा, छुआछूत, जाति के आधार पर उच्च जातियों को विशेषाधिकार तथा निम्न जाति व वर्गों के लोगों को कम ही सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने दिया जाता था।

यह उस समय भारतीय समाज की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा थी। विभिन्न वर्गों के सदस्यों को इन कुरीतियों से छुटकारा दिलवाना आवश्यक था। ब्रह्म समाज की स्थापना तथा इसके सिद्धांतों को कार्यांवित कर निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति इसी दिशा में एक बड़ा कदम था।

ब्रह्म समाज के उद्देश्य (Objectives of Brahmo Smaj)-ब्रह्म समाज के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  • नारी वर्ग का उत्थान करना।
  • बाल विवाह एवं बहु-विवाह को समाप्त करना।
  • सती प्रथा का अंत करना।
  • पर्दा प्रथा का अंत करना।
  • नारी शिक्षा तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करना।
  • अस्पृश्यता तथा जाति प्रथा के अन्य दोषों को समाप्त करना।
  • ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन करना।
  • मानवतावाद को बढ़ावा देना।
  • सेना तथा न्यायपालिका का भारतीयकरण करने के लिए कार्य करना।

ब्रहम समाज के कार्य एवं उपलब्धियां (Works and Achievements of Brahmo Smaj) विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ब्रह्म समाजी मुख्यतः तीन स्तरों पर अपनी गतिविधियां संचालित करते थे। प्रथम, देश के विभिन्न भागों में ब्रह्म समाजों की स्थापना कर, उनमें संगठन के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों के ऊपर विचार करना, द्वितीय, अपने सिद्धांतों का लोगों में प्रचार एवं प्रसार करते थे।

तृतीय, विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ब्रिटिश सरकार से सहयोग पाते थे। ब्रह्म समाजी के लोग विभिन्न स्थानों पर बैठकें करते थे। सम्मेलनों व संगोष्ठियों का आयोजन करते थे। अपने सिद्धांतों को जन-जन में पहुँचाने के लिए लघु पुस्तिकाएं छपवा कर उनमें बांटते थे। अपने सुधारवादी कार्यों के बारे में अधिक-से-अधिक जागरूकता का विकास करते थे। सन् 1829 में अपने अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार से ‘सती प्रथा’ के विरुद्ध कानून पास करवाया।

इसी तरह 1872 ई० में बहु विवाह प्रथा पर भी प्रतिबंध लगवाने हेतु कानून पारित करवाया। इसी तरह बाल-विवाह व पर्दा प्रथा को कम करने के लिए सफल प्रयास करवाया। लोगों में जातीय आधार पर भेदभाव कम करने के प्रति जनसमर्थन को बढ़ावा दिया। नारी शिक्षा हेतु ब्रह्म समाज ने सराहनीय कार्य किये। इसी तरह लोगों को भाईचारे का संदेश दिया। लोगों को आध्यात्मिक विकास हेतु प्रेरणा दी। इसी तरह भारतीय समाज में पाई जाने वाली कई सामाजिक बुराइयों को कम करने में ब्रह्म समाज का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

प्रश्न 6.
आर्य समाज के बारे में आप क्या जानते हैं? इसकी उपलब्धियों का वर्णन करो।
अथवा
आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्यों एवं उपलब्धियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आर्य समाज (Arya Smaj)-सन् 1875 ई० में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना मुंबई में की। इस समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य समाज में प्रचलित रूढ़िवादिता, आडंबरों, पाखंडों तथा अज्ञानता को दूर करना था। 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज विशेषतः हिंदू समाज में कई प्रकार की बुराइयां विकसित हो गई। उस समय धार्मिक क्षेत्रों में अनेक देवताओं की पूजा की जाती थी।

इस तरह अलग-अलग देवी देवताओं की पूजा करने वाले लोग आपस में नफरत व द्वेष रखते थे। ईसाई मिशनरी हिंदुओं में धर्म परिवर्तन करवाकर उन्हें ईसाई बनाने में लगी थी। जाति व्यवस्था भी काफ़ी जटिल हो गई थी। समाज सहस्रों जातियों एवं उपजातियों में विभाजित था। जातीय आधार पर विभिन्न वर्गों में भेदभाव बढ़ गया था। स्त्रियों से संबंधित अनेक कुरीतियां जैसे सती प्रथा, पर्दा प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, नवजात लड़कियों की हत्या तथा दहेज के कारण महिलाओं की काफ़ी निम्न अवस्था आदि प्रचलित थीं। इन समस्याओं का निराकरण आवश्यक था।

आर्य समाज के कार्य व उपलब्धियां (Works and Achievements of Arya Smaj)-आर्य समाज ने अपनी स्थापना के 125 वर्षों के भीतर भारतीय समाज में विभिन्न क्षेत्रों में कई सुधारवादी कार्य किये। समाज में प्रचलित कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को कम करने के लिए कार्य किये। इसके लिए ‘कन्या विद्यालयों’ एवं ‘कन्या महाविद्यालयों’ की स्थापना करवाई, ताकि उनमें ज्ञानरूपी प्रकाश जलाकर अज्ञानता रूपी अंधेरे को दूर किया जा सके।

विधवाओं की स्थिति सुधारने हेतु कई ‘विधवा ग्रह’ (Widow Home) खोले गये, ताकि वहाँ पर विधवाएं जिंदगी व्यतीत कर सके। वेदों के अनुसार हवन, यज्ञ करने और करवाने, वेदों को सुनने एवं सुनाने पर बल दिया गया। जाति के आधार पर असमानता का विरोध किया गया। धार्मिक क्षेत्रों में वेदों की वापसी (Back to Vedas) का नारा देकर लोगों को वेदों की महत्ता के बारे में बताया गया।

अनाथों के लिये ‘अनाथालय’ खोले: ऐग्लो वैदिक (Dayanand Anglo Vedic-D.A.V.) पाठशालाएं एवं महाविद्यालय (Universities) की स्थापना की गई। उपरोक्त शिक्षा क्षेत्र में आर्य समाज ने सराहनीय कार्य किये। इससे न केवल देश की साक्षरता दर में बढ़ोत्तरी च शिक्षा प्राप्त करके हज़ारों नवयुवक देश की सेवा के लिये तैयार हो गये। स्वामी दयानंद सरस्वती देश की स्वतंत्रता के पक्षधर थे, इसलिए उन्होंने नारा दिया “भारत, भारतवासियों के लिए है।”

प्रश्न 7.
प्रार्थना समाज के उद्देश्यों तथा उपलब्धियों का वर्णन करो।
उत्तर:
प्रार्थना समाज (Prathna Smaj)-सन् 1867 ई० में मुंबई में प्रार्थना समाज की स्थापना की गई, यह मूलतः ब्रह्म समाज की एक शाखा ही थी जिसकी स्थापना केशवचंद्र की सहायता से (प्रेरणा से) गोविंद रानाडे के नेतृत्व में की गई। महाराष्ट्र में ब्रह्म समाज के अनेक नेताओं ने प्रार्थना समाज की नींव डालने व इसे निश्चित स्वरूप करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। प्रार्थना समाज के अनुयायी इसे हिंदू धर्म में ही एक आंदोलन मानते थे जिस पर अनेक संतों जैसे ‘तुकाराम’, ‘नामदेव’ व ‘रामदास’ का गहरा प्रभाव था।

प्रार्थना समाज के उद्देश्य (Objectives of Prarthna Smaj):

  • प्रार्थना समाज की शिक्षाओं का प्रचार व प्रसार करना।
  • स्त्रियों की स्थिति में सुधार करना।
  • जातीय भेदों को दूर करना।
  • अनाथों की स्थिति में सुधार करना।
  • शिक्षा को प्रोत्साहन करना।

प्रार्थना समाज के कार्य व उपलब्धियां-(Works and Achievements of Prarthna Smaj):
प्रार्थना समाज के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने भारतीय समाज के पिछड़े वर्गों को सुधारने तथा कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत की गई है। इसके विभिन्न क्षेत्रों में किये कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-

  • महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए ‘आर्य महिला समाज’ की स्थापना की। विधवा आश्रम खोले, कन्या पाठशालाओं की स्थापना की।
  • विधवा पुनर्विवाह व अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देने के लिए कार्य किये।
  • निम्न जाति के लोगों की सामाजिक स्थिति सुधारने के उद्देश्य से दलित वर्ग मिशन की स्थापना की।
  • अनाथों एवं बेसहारा बच्चों की देखभाल के लिए पंठरपुर में अनाथालय खोले गये। बाल विवाह को कम करने के लिये निरंतर प्रयास किये गये हैं।
  • मुंबई में रात्रि-विद्यालय (Night School) खोला गया ताकि मजदूर वर्ग शिक्षा ग्रहण कर सके। इस तरह प्रार्थना समाज ने अंतर्जातीय भेदभाव दूर करने के लिये अंतर्जातीय खान-पान को बढ़ावा दिया गया।

प्रश्न 8.
राम कृष्ण मिशन के उद्देश्यों तथा कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
रामकृष्ण मिशन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
राम कृष्ण मिशन (Ram Krishna Mission)-सन् 1897 ई० में स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता के निकट वैलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण परमहंस के परम भक्त एवं प्रिय शिष्य थे। विवेकानंद ने अपने गुरु के आध्यात्मिक ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने के लिए इस मिशन की स्थापना की। कुशाग्र बुद्धि, मन-मोहक व्यक्तित्व, मधुर वाणी तथा धारा प्रवाह वक्ता दयानंद ने देश व विदेश में इस मिशन की शाखाओं की स्थापना की।

कुशल प्रचारक व संगठक (Organisor) होने के कारण उन्होंने सन् 1902 में अपनी मृत्यु से पहले ही इस मिशन की नींव काफ़ी मज़बूत कर दी थी। उनके पश्चात् भी मिशन के कार्यकर्ताओं ने इसके प्रचार व प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि सन् 1961 में इस मिशन की भारत में 102 शाखाएं तथा अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, सिंगापुर, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यनमार (बर्मा), फिजी तथा मोरिशस आदि विश्व के विभिन्न देशों में 36 शाखाएँ थीं।

राम कृष्ण मिशन के उद्देश्य (Objectives of Ram Krishna Mission)-इस मिशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • आत्मत्यागी तथा व्यावहारिक अध्यात्मवादी साधुओं को रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों के प्रचार व प्रसार के लिये तैयार करना।
  • सभी जाति व संप्रदायों के लोगों से दयायुक्त, दानयुक्त तथा मानवीय कार्य करवाना।
  • सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वासों को समाप्त करना।
  • स्त्रियों का स्थान उच्च करने के लिए कार्य करना।
  • सेवा के सिद्धांत (सब जीवन मात्र की सेवा) का प्रचार करना।
  • मनुष्य की शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास करना।

राम कृष्ण मिशन के कार्य, उपलब्धियां एवं योगदान (Works, Achievements and Contribution of Ram Krishna Mission)-राम कृष्ण मिशन के कार्यों एवं समाज सुधार में इसके योगदान का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-

  • शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जगह-जगह पाठशालाएं एवं महाविद्यालय खोले गये। सन् 1961 में मिशन द्वारा खोले गये शैक्षणिक संस्थाओं में लगभग 65 हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
  • स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए अनेक अस्पताल खोले। सन् 1961 ई० में मिशन द्वारा संचालित बारह शैयायुक्त अस्पताल तथा 68 बाह्य रोगी (Outdoor Patient) अस्पताल थे।
  • मिशन के सिद्धांतों के प्रचार के लिये अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में लगभग एक दर्जन पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं।
  • मिशन द्वारा सभाओं, संगोष्ठियों, लेखों तथा पत्रिकाओं के माध्यम से बाल-विवाह, बाल हत्या, पर्दा प्रथा, जातीय आधार पर भेदभाव तथा स्त्री-पुरुष में असमानता का कड़ा विरोध किया जाता है। फलतः लोगों में समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, आत्मत्याग, आत्मसम्मान, परोपकार आदि भावनाओं का संचार हुआ।
  • लोगों में अंधविश्वासों, कुरीतियों, पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण के विरुद्ध जागृति आई। देशवासियों में देश प्रेम व राष्ट्रवाद की भावना भी विकसित हुई।
  • मिशन ने समय-समय पर बाढ़ पीड़ितों, भूकंप प्रभावित तथा सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में लाखों लोगों की सहायता की।

राम कृष्ण मिशन के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के बारे में डॉ० के० के० दत्ता कहते हैं, “राम कृष्ण मिश आध्यात्मिक उत्थान, आत्मा की जागृति और आधुनिक भारत के सांस्कृतिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, इस संसार को मानव समाज में धर्म के सही महत्त्व का ज्ञान प्राप्त हुआ तथा विभिन्न देशों को प्यार, स्वतंत्रता तथा एक सूर का संदेश मिला।”

प्रश्न 9.
पश्चिमीकरण के भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़े हैं?
अथवा
पश्चिमीकरण के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन आ रहे हैं? उनका वर्णन करो।
अथवा
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों की व्याख्या करें।
अथवा
पश्चिमीकरण के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण ने भारतवर्ष को काफ़ी ज्यादा प्रभावित किया है। भारत का शायद ही ऐसा कोई कोना होगा जो पश्चिमीकरण से प्रभावित न हुआ होगा। इस तरह भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित है-
1. परिवार पर प्रभाव-पारंपरिक रूप से भारत में संयुक्त परिवार पाए जाते रहे हैं जिनमें तीन-चार पीढ़ियां इकट्ठी रहती थीं। पश्चिमीकरण से भारत में व्यक्तिवाद, भौतिकवाद तथा तर्कवाद को बढ़ावा मिला। इससे परिवार में समूहवाद में कमी आई। परिवार के सदस्यों में बलिदान तथा त्याग की भावना कम हुई। शिक्षित युवाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना बढ़ी।

उन्होंने कर्ता के आदेशों को मानना कम किया। महिलाओं में भी अपने लिए पहचान बनाए रखने के लिए चेतना बढ़ी है। महिलाओं तथा युवाओं में आई चेतना की वजह से संयुक्त परिवार तेज़ गति से टूटने लगे। इनकी जगह केंद्रीय परिवार लने लगे। इस तरह पश्चिमीकरण से परिवार व्यवस्था पर संरचनात्मक तथा प्रकार्यात्मक प्रभाव पड़े। परिवार के सदस्यों के संबंधों के स्वरूप, अधिकारों तथा दायित्व में परिवर्तन हुआ।

2. विवाह पर प्रभाव-इंग्लैंड के निवासियों के विचारों, मूल्यों और आदर्शों ने भारतीय विवाह प्रणाली को काफ़ी प्रभावित किया। इनके भारत आने से पहले अंतर्विवाही प्रथा, विधवा विवाह की मनाही, बाल विवाह, कुलीन विवाह तथा कन्यादान का प्रथा थी। विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता था। विवाह में सपिंड, सगोत्र व सप्रवर के नियमों का पालन होता था तथा तलाक नाम की कोई चीज़ नहीं थी।

परंतु पश्चिम के विचारों, मूल्यों तथा आदर्शों की वजह से विवाह के कई नियमों में परिवर्तन हुए। बाल विवाह पर रोक लगाना तथा देरी से विवाह करना, विधवाओं को दोबारा विवाह की छूट, प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ा तथा कोर्ट मैरिज होने लगी, तलाकों की गिनती में बढ़ोत्तरी हुई तथा कुलीन तथा बहुविवाह की संख्या में कमी आई। एक विवाह को ही ठीक माना जाने लगा। पश्चिमीकरण के कारण विवाह अब एक समझौता मात्र बन कर रह गया है। प्रेम विवाह तथा कोर्ट मैरिज के बढ़ने के साथ-साथ तलाकों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है।

3. नातेदारी पर प्रभाव (Impact on Kinship)-भारतीय समाज में नातेदारी की मनुष्य के जीवन में अहम भूमिका रहती है। मगर पश्चिमीकरण के कारण व्यक्तिवाद, भौतिकवाद, गतिशीलता तथा समय धन है, आदि अवधारणाओं का भारतीय संस्कृति में तीव्र विकास हआ। इससे ‘विवाह मलक’ तथा ‘रक्त मूलक’ (Affinal & Consaguineoun) दोनों प्रकार की नातेदारियों पर प्रभाव पड़ा।

द्वितीयक एवं तृतीयक (Secondary & Tertiary) संबंध शिथिल पड़ने लगे।प्रेम विवाहों तथा कोर्ट विवाहों में विवाहमूलक नेतादारी कमज़ोर पड़ने लगी। विवाह, जन्म दिवस तथा उत्सवों पर नातेदारी का स्थान मित्र मंडली एवं सहकर्मी लेने लगे। पश्चिमी समाजों में नातेदारी को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता।

इसलिए अनेक समानांतर संबंधियों को एक ही शब्द से संबोधित किया जाता है। इन शब्दों का भारतीय समाज में बढ़ता प्रचलन नातेदारी के महत्त्व में परिवर्तनों का द्योतक है, जैसे चाचा, ताया, फूफा, मौसा तथा मामा पांच अलग-अलग संबंधी हैं, जिनके लिये अंकल (Uncle) शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है। इस तरह चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई-बहिनों को (Cousin) कहा जाने लगा है।

4. जाति प्रथा पर प्रभाव (Impact on Caste System) सहस्त्रों वर्षों से भारतीय समाज की प्रमुख संस्था, जाति में पश्चिमीकरण के कारण अनेक परिवर्तन हुए। अंग्रेजों ने भारत में आने के बाद बड़े-बड़े उद्योग स्थापित किये और यातायात तथा संचार के साधनों जैसे-बस, रेल, रिक्शा, ट्राम इत्यादि का विकास व प्रसार किया। इसके साथ-साथ भारतीयों को डाक, तार, टेलीविज़न, अखबारों, प्रेस, सड़कों व वायुयान आदि सुविधाओं को परिचित कराया।

बड़े साथ उद्योगों की स्थापना की गई। इनके कारण विभिन्न जातियों के लोग एक स्थान पर उद्योग में कार्य करने लग गए। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए आधुनिक यातायात के साधनों का प्रयोग होने लगा। इससे उच्चता व निम्नता की भावना में भी कमी आने लगी। एक जाति के सदस्य दूसरी जाति के व्यवसाय को अपनाने लग गए। सेवाओं के बदले अनाज के स्थान पर पैसे दिये जाने लगे और पैसे के आधार पर दूसरी जाति के सदस्यों की सेवाएं ली जाने लगीं।

एक साथ काम करने के कारण खान-पान संबंधी जातीय प्रतिबंध भी कमज़ोर पड़ने लगे। भारतीय समाज में जातीय आधार पर पंचायतों के गठन के स्वरूप में भी कमी आई। पश्चिम के समानता के मूल्यों एवं वैज्ञानिक ज्ञान ने भारतीय समाज में जातीय भेदभाव को कम किया तथा समानता के विचारों का प्रसार किया।

5. अस्पृश्यता (Untouchability)-अस्पृश्यता भारतीय जाति व्यवस्था का अभिन्न अंग रही थी। मगर समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व पर आधारित पश्चिमी मूल्यों ने जातीय भेदभाव को कम किया। जाति तथा धर्म पर भेदभाव किये बिना सभी के लिये शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश की अनुमति, सभी के लिये एक जैसी शिक्षा व्यवस्था, समान योग्यता प्राप्त व्यक्तियों के लिये समान नौकरियों पर नियुक्ति आदि कारकों से अस्पृश्यता में कमी आई। अंग्रेज़ों ने औद्योगीकरण व नगरीयकरण को बढ़ावा दिया। विभिन्न जातियों के लोग रेस्टोरेंट, क्लबों में एक साथ खाने-पीने एवं बैठने लग गए। अतः पश्चिमीकरण के कारण भारत में अस्पृश्यता में कमी आई।

6. धार्मिक जीवन पर प्रभाव (Impact on Religious life)-भारत में अंग्रेज़ी शासन से पूर्व अनेक धार्मिक अंधविश्वासों, कर्मकांडों, पाखंडों आदि का प्रचलन था। पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव एवं इसाई धर्म प्रचारकों के धर्म प्रचार के कारण धार्मिक एवं सुधारवादी अंदोलन आरंभ किये गए। इन सबके कारण बहुत से धार्मिक अंधविश्वास एवं धार्मिक बुराइयां समाप्त हो गईं।

कई लोगों ने धर्म परिवर्तन कर अपने आपको ईसाई बना लिया। हिंदू धर्म में भी समानतावाद व मानवतावाद आदि तत्त्वों को बढ़ावा मिला। अतः पश्चिमी प्रभाव के कारण कई बुराइयों का अंत हुआ। इसके साथ ही लोगों में धार्मिक विश्वासों एवं प्रभाव में कमी आई। हिंदू धर्म में धर्मांधता में कमी आई तथा धर्म में तर्कवाद तथा ईसाई धर्म का भारतीयकरण हुआ।

7. स्त्रियों की प्रस्थिति में परिवर्तन (Change in Status of Women)-अंग्रेजों के भारत में आगमन के समय भारत में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न थी। सती प्रथा पर्दा प्रथा तथा बाल-विवाह का प्रचलन था तथा विधवा पनर्विवाह पर रोक होने के कारण महिलाओं की स्थिति काफ़ी दयनीय थी। अंग्रेजों ने सती प्रथा को अवैध घोषित किया तथा विधवा विवाह को पुनः अनुमति दी। पश्चिमी शिक्षा के प्रसार व प्रचार के माध्यम से चूंघट प्रथा में कमी आई।

पश्चिमीकृत महिलाओं ने पैंट-कमीज़ पहननी आरंभ की। लाखों महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना आई और उन्होंने केवल घर को संभालने की पारंपरिक भूमिका को त्यागकर पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर दफ्तरों में विभिन्न पदों पर नौकरी करनी आरंभ कर दी। इस तरह स्त्रियां अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में सफ़ल हुई।

8. शिक्षा के क्षेत्र में प्रभाव (Impact in the field of Education)-भारत की परंपरागत शिक्षा प्रणाली पर भी पश्चिम का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। अंग्रेजों के भारतवर्ष में आने से पूर्व यहां शिक्षा में गुरुकुल प्रणाली प्रचलित थी तथा शिक्षा सभी लोगों के लिये उपलब्ध नहीं थी। शैक्षणिक संस्थाओं में संस्थाओं में साधारणतया उच्च जाति के लोग ही प्रवेश कर सकते थे, निम्न जाति के लोगों को पाठशालाओं में शिक्षा की अनुमति नहीं थी, अगर पिछड़ी जाति के लोग शैक्षणिक संस्थाओं में दाखिला ले भी लेते थे तो उनके साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता था।

लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद अंग्रेजी संस्थाएं स्थापित की गई तथा साथ ही सार्वभौमिक शिक्षा प्रणाली आरंभ की गई जिसमें सभी जातियों एवं वर्गों के लोग शिक्षा ग्रहण करने लगे। लार्ड मैकाले ने 1835 में भारत में अंग्रेजी शिक्षा की नींव रखी। अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को राजकीय एवं प्रशासनिक सेवा में प्राथमिकता दी जाने लगी।

इस शिक्षा ग्रहण उपरांत भारतीयों के विचारों, मूल्यों, आदर्शों व जीवन शैली में अभूतपूर्व परिवर्तन आये। अंग्रेजी शिक्षा ने ही भारतीयों में राष्ट्रीयता एकता व समानता की भावना विकसित की। वर्तमान समय में कृषि, विज्ञान, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कानून आदि की दी जाने वाली शिक्षा व परीक्षण अंग्रेज़ी शिक्षा की ही देन है।

9. सामाजिक आदर्श व मूल्यों पर प्रभाव (Impact on Social Norms and Values) लोक रीतियों, रूढ़ियों, परंपराओं, प्रथाओं, नियमों, कानूनों एवं व्यवहारों के तरीकों, विश्वासों, शिष्टाचारों, अनुष्ठानों, मूल्यों, कलाओं तथा साहित्य के रूप में भारतीय समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है। अंग्रेज़ों के भारत में शासन स्थापित करने तथा ब्रिटेन वासियों के भारतवासियों के साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष संपर्क बढ़ने से इन सांस्कृतिक तत्त्वों में काफ़ी परिवर्तन आये।

इनका पश्चिमीकरण हुआ। अभिवादन करने में चरण-स्पर्श व प्रणाम का स्थान हाथ मिलाना, गुड मार्निंग करना ले रहे हैं। प्रथाओं को कानून का चोला पहनाया जा रहा है। जैसे-सती प्रथा को कानूनी अवैध करार दिया गया। विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी गई। विवाह, जन्म दिन तथा अन्य उत्सवों पर नातेदारियों, सगे संबंधियों, मित्रों तथा अन्य लोगों को उनके घर स्वतः जाकर आमंत्रित करने को अपेक्षा निमंत्रण कार्ड (Invitation-Card) देकर निमंत्रण दिया जाने लगा।

10. जीवन शैली पर प्रभाव (Impact on Way of life)-भारत की जीवन पद्धति पर पश्चिम का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। बड़े-बड़े नगरों व शहरों में रिक्शाचालकों तक अंग्रेजी बोलते हुए देखे गये हैं। पहले यहां पर धोती-कुर्ता या पजामा पहना जाता था, वहीं आजकल कोट, पैंट, बुशर्ट, टाई, मौजा ही पहनने लगे। अंग्रेज़ी फ़ैशन ने भारतीय फैशन पर अपना काफ़ी रंग चढ़ाया। महिलाओं में ऊंची ऐड़ी के सैंडिल, साड़ी, ब्लाऊज, जीन तथा मैकसी, इत्यादि का प्रयोग होता है।

समाज में शिक्षित लोग मकानों की सजावट व बनावट-रहन सहन के ढंग तथा उत्सवों या पार्टियों आदि में पश्चिमी मान्यताओं का अनुकरण करते हुए देखे जाते हैं। सौंदर्य प्रसाधनों का भी अधिकाधिक प्रयोग प्रतिष्ठा का सूचक माना जाता है। अब लोग विलासता को वस्तुएं, टेलीविज़न, फ्रिज, टेप रिकार्ड, कपड़े धोने की मशीन, कार आदि को भी अपने जीवन का अंग बना रहे हैं। अंग्रेजी संगीत में बढ़ती हुई रुचि, क्लब संस्कृति का प्रसार, पश्चिमी तरीकों से पार्टियों का आयोजन, छुरी और कांटों से मेज पर बैठकर भोजन करना, पश्चिमी जीवन शैली के बढ़ते हुए प्रभाव को दर्शाता

11. भाषाओं पर प्रभाव (Impact on Languages)-सन् 1835 में लार्ड मैकाले ने अंग्रेज़ी भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में लागू किया। तत्पश्चात् ब्रिटिश शासन के दौरान तथा स्वतंत्रोपरांत भारत में निरंतर अंग्रेजी भाषा का प्रचार-प्रसार बढ़ता गया। यद्यपि अंग्रेज़ी-संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 18 भाषाओं में से नहीं है। इसे संपर्क भाषा (link language) के रूप में अपनाया गया है।

मगर वर्तमान समय में देश की अच्छी शैक्षणिक संस्थाओं तथा विशेषतः विश्वविद्यालयों तथा महाविश्वविद्यालयों में या तो अंग्रेजी विषय पढ़ाया जाता है या फिर विज्ञान, इंजीनियरिंग मैडीकल तथा व्यावसायिक कोरों में अंग्रेजी शिक्षा का माध्यम है। आधुनिक प्रजातंत्र, संसदीय प्रणाली तथा वर्तमान नौकरशाही तथा नागरिकों को दिये गये मौलिक अधिकार अंग्रेजों की ही देन हैं।

12. विश्वास एवं शिष्टाचार (Beliefs and Etiquettes)-प्राचीन काल से भारतीय समाज के अपने विशिष्ट विश्वास एवं शिष्टाचार रहे है। पश्चिमी सभ्यता के सम्पर्क में आने से इनमें अंतर आया है। पौराणिक काल से भारतीय समाज में चंद्रमा एवं सूर्य का मानवीकरण करके इन्हें शक्तियों के रूप में माना जाता रहा है। ये विश्वास किया जाता रहा कि राहू और केतू के दोनों तरफ से घेर लेने के कारण सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) लगता है तथा ग्रहण के समय सूर्य घोर संकट में होता है।

मगर पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान के भारत में प्रसार से शिक्षित वर्ग में यह वैज्ञानिक मान्यता के रूप में विकसित हुई है कि सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना मात्र है जिसमें चंद्रमा के सूर्य एवं पृथ्वी की रेखा में आने से सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर आने से रुक जाती है। शिष्टाचारों का भी पश्चिमीकरण हुआ है। चरण-स्पर्श, तथा दंडवत् करने के स्थान पर हाथ मिलाना, अतिथि को दूध-लस्सी के बजाए ठंडा पेय या काफ़ी देना आदि सभ्याचार भारत में पश्चिमीकरण के कारण ही है।

13. नव-प्रौद्योगिकी लागू करना (Introducting of New Technology)-अंग्रेजों ने भारत में नव शिल्पास्त्र लागू किया। उन्नत तकनीक के भारत में लागू करने से भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूप एवं लोगों की जीवन-शैली में कई परिवर्तन आये। उन्होंने रेलों का विकास किया (सन् 1853 में प्रथम रेलगाड़ी मुंबई से थाने के बीच प्रारंभ की। सड़कों का निर्माण किया, प्रेस विकसित की। घरेलू उपयोग के लिये स्टील के बर्तन बनाये।

बसों, रेलों, तथा जहाजों का निर्माण तथा डाक-तार एवं छापखाने (Printing press) के विकास से यातायात एवं दूरसंचार में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। लोगों ने पारंपरिक रूप से भूमि पर बैठकर पत्ती में खाना खाने की जगह कुर्सी-मेज पर बैठकर स्टील की थाली प्लेट में चम्मच-छुरी-कांटे के साथ खाना आरंभ किया।

औदयोगीकरण (Industrialisation) अंग्रेजों ने भारत में अपने शासनकाल के आरंभ में ही यहां की अमूल्य वस्तुओं तथा कच्चे माल को इंग्लैंड ले जाना प्रारंभ किया। अपने देश में इस कच्चे माल से नई-नई वस्तुओं का निर्माण करके उन्हें भारत में बेचना आरंभ कर दिया। उन्नत तकनीक से मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुएं सस्ती एवं अधिक गुणवत्ता वाली होती थीं। जबकि भारतीयों द्वारा भारत में लघु एवं कुटीर उद्योग में निर्मित वस्तुएं अपेक्षाकृत महंगी तथा कम गुणवत्ता वाली होती थी।

फलस्वरूप भारतीय उद्योग को काफ़ी धक्का लगा। ज़मींदारी व्यवस्था लागू करने एवं उद्योगों पर ब्रिटिश उद्योग व्यापार के विपरीत प्रभाव पड़ने से देश की अर्थव्यवस्था काफ़ी कमज़ोर हो गई। तत्पश्चात् अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर बड़े उद्योग (Heavy Industries) स्थापित किये। इनमें वस्तुओं का निर्माण मशीनों से किया जाने लगा। स्थानीय बाजार की खपत से अधिक वस्तुएं तैयार की गईं जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ा। मगर अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का दोहन कर जो धन एकत्रित किया उसका निरंतर इंग्लैंड को प्रवाह होता गया।

प्रश्न 10.
धर्म निरपेक्षता क्या होती है? धर्म निरपेक्षता के क्या कारण हैं?
अथवा
धर्मनिरपेक्षीकरण से आप क्या समझते हैं?
अथवा
धर्मनिरपेक्षीकरण के दो कारक लिखें।
अथवा
पंथनिरपेक्षीकरण पर विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर:
धर्म निरपेक्षता का अर्थ (Meaning of Secularism)-भारतीय समाज 20वीं शताब्दी से ही पवित्र समाज (Sacred Society) से एक धर्म निरपेक्ष समाज (Secular Society) में परिवर्तित हो रहा है। इस शताब्दी के अनेक विद्वानों, विचारकों एवं राजनीतिज्ञों ने यह महसूस किया कि धर्म निरपेक्षता के आधार पर ही विभिन्न धर्मों का देश भारत संगठित रह पाया है। धर्म निरपेक्षता के आधार पर राज्य के सभी धार्मिक समूहों व धार्मिक विश्वासों को एक समान माना जाता है।

निरपेक्षता का अर्थ समानता या तटस्थता से है। राज्य सभी धर्मों को समानता की दृष्टि से देखता है तथा किसी के साथ भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। धर्म निरपेक्षता ऐसी नीति या सिद्धांत है, जिसके अंतर्गत लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने या पालन करने के लिये बाध्य नही किया जाता है।

धर्म निरपेक्षीकरण का अर्थ (Meaning of Secularization) धर्म निरपेक्षीकरण को उस सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है जिनके द्वारा धार्मिक एवं परंपरागत व्यवहारों में धीरे-धीरे तार्किकता या वैज्ञानिकता का समावेश होता जाता है। अनेक विद्वानों ने धर्म निरपेक्षीकरण को अग्रलिखित परिभाषाओं से परिभाषित किया है।

डॉ० एम० एन० श्रीनिवास (Dr. M.N. Srinivas) के शब्दों में “धर्म निरपेक्षीकरण अथवा लौकिकीकरण शब्द का यह अर्थ है कि जो कुछ पहले धार्मिक माना जाता था, वह अब वैसा नहीं माना जा रहा है, इसका अर्थ विभेदीकरण की प्रक्रिया से भी है जो कि समाज के विभिन्न पहलुओं, आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी और नैतिक के एक दूसरे से अधिक पृथक होने से दृष्टिगोचर होती है।”

डॉ० राधा कृष्णन (Dr. Radha Krishnan) के अनुसार, “लौकिकीकरण या धर्म निरपेक्षीकरण, धार्मिक निरपेक्षता व धार्मिक सहअस्तित्ववाद है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर धर्म-निरपेक्षीकरण एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें मानव के व्यवहार की व्याख्या धर्म के आधार पर नहीं, अपितु तार्किक आधार पर की गई है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा घटनाओं को कार्य-कारण संबंधों के आधार पर समझा जाता है।

आत्मगतता व भावुकता (Subjectivity and Emotionality) का स्थान वस्तु निष्ठता (Objectivity) एवं वैज्ञानिकता ने ले ली है। अतः धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में, धार्मिकता का ह्रास, बुद्धिवाद के महत्त्व, विभेदीकरण, वैज्ञानिकता, वस्तुनिष्ठता, तथा व्यक्ति को किसी भी धर्म या धार्मिक सोपान की सदस्यता प्राप्त करने की स्वतंत्रता व अधिकार होता है।।

धर्म निरपेक्षीकरण के कारण (Factor of Secularization) धर्म निरपेक्षीकरण से भारतीय समाज में सामाजिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टिकोणों में काफ़ी परिवर्तन किये गये हैं। इन क्षेत्रों में प्रभाव को देखने से पहले उन कारणों को जानना ज़रूरी है जिन्होंने धर्म निरपेक्षीकरण को संभव बनाया है। धर्म-निरपेक्षीकरण के विकास के निम्नोक्त कारक हैं-
1. धार्मिक संगठनों में कमी (Lack of Religious Organisations)-धार्मिक निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का विकास धार्मिक संगठनों का अभाव कारण रहा है। भारतीय समाज में अनेक धर्मों के संप्रदाय पाए जाते हैं। इन संप्रदायों में हिंदू धर्म ही एक ऐसा संप्रदाय है जिनके अनेक मत पाये जाते हैं। बाकी धर्मों जैसे सिक्ख, ईसाई, मुस्लिम, इन सभी में एक ही मत व संप्रदाय होता है। इसी कारण ये लोग अपने संप्रदाय के प्रति काफ़ी कठोर विचारधारा के होते हैं।

इसके विपरीत हिंदू धर्म में अनेक मतों के कारण कोई अच्छा संगठन नहीं है। एक हिंदू दूसरे हिंदू की धार्मिक आधार पर निंदा या आलोचना करता है। इस सबका प्रभाव हिंदू धर्म पर पड़ा। एक ओर तो लोग उच्च जातियों के अत्याचारों एवं शोषण से दुखी होकर हिंदू धर्म को अपनाया दूसरी ओर पढ़े-लिखे हिंदू इस धार्मिक कट्टरता से दूर होते चले गये। यह लोग हिंदू धर्म में पाये जाने वाले विश्वासों, अंधविश्वासों, कर्मकांडों, आदर्शों व मूल्य का विरोध कर रहे थे। भारतीय समाज में यह सभी कारण धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में सहयोग देते आ रहे हैं।

2. भारतीय संस्कृति (Indian Culture) भारतीय संस्कृति का अपने आप ही निरपेक्षीकरण हो रहा है क्योंकि भारतवर्ष एक धर्म निरपेक्ष (Secular Republic) गणराज्य है। एक धर्म निरपेक्ष राज्य होने के कारण अनेक धर्मों व जातियों के संप्रदाय एक-दूसरे के नज़दीक आते रहते हैं तथा एक दूसरे संप्रदाय की अच्छाइयां व बुराइयों का भी ज्ञान अर्जित करते रहते हैं तथा उनका मूल्यांकन करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त पाश्चात्य संस्कृति ने भी धर्म निरपेक्षीकरण के आधार पर परिवर्तनों में अहम भूमिका निभाई है।

3. यातायात एवं संचार (Transportation and Communications) यातायात व संचार की सुविधाओं में माज में गतिशीलता को बढ़ावा मिला है। इन्हीं साधनों की वजह से नये-नये नगरों, व्यवसायों व उद्योगों का भी विकास हुआ। इन विभिन्न साधनों के द्वारा विभिन्न प्रकार के धर्म, जाति, प्रदेश व देश के लोग एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। संपर्क में आने से ही आपसी विचारों का आदान-प्रदान हुआ। इससे विभिन्न धर्मों की तार्किक आलोचना की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा मिला। इससे पवित्र-अपवित्र एवं अस्पृश्यता के विचारों में कमी आई। ये सभी तत्त्व धर्म-निरपेक्षीकरण के विकास को प्रोत्साहित करते हैं।

4. पाश्चात्य संस्कृति (Western Culture)-भारतीय संस्कृति के ऊपर भी पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय जीवन के सभी पहलुओं पर प्रभाव डाला है। यहां के धर्म, कला, साहित्य, सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक जीवन में कई परिवर्तनों को पाश्चात्य संस्कृति के संदर्भ में समझा जा सकता है। वास्तव में धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के विकास में पाश्चात्य संस्कृति का ही मूल रूप से सहयोग रहा है।

5. आधुनिक शिक्षा (Modern Education)–वर्तमान समय की शिक्षा पद्धति ने भी धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के विकास में सर्वोपरि भूमिका निभाई है। भारतवर्ष में आधुनिक शिक्षा पद्धति पाश्चात्य शिक्षा का ही रूप है। शिक्षा पद्धति में पाश्चात्य मूल्यों के विकास के साथ भारतीय मूल्यों में भी परिवर्तन हुआ। इसका प्रभाव सबसे अधिक धार्मिक विश्वासों व मूल्यों पर पड़ा आधुनिक शिक्षित व्यक्ति केवल मात्र धर्म के आधार पर अंध-विश्वासों, नियमों या बंधनों को नहीं अपनाता।

मूल्यांकन के पश्चात् ही अपने आपको उन बंधनों से बांधता है। वर्तमान शिक्षा पद्धति ने व्यक्ति की सोच को व्यावहारिकता व वैज्ञानिकता के आधार पर विकसित किया है। इसके साथ ही स्त्री शिक्षा को भी बढ़ावा मिला है। शिक्षा पद्धति में आये हुए परिवर्तनों के कारण ही भारतीय समाज में लिप्त कई बुराइयों जैसे-छुआछूत, अस्पृश्यता की भावना, जातीय आधार, उच्च शिक्षा आदि में कमी आई है। सहशिक्षा (Co-education) को भी अवसर दिया जाता है।

6. नगरीयकरण (Urbanization)-नगरीयकरण ने धर्म निरपेक्षीकरण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। शहरों व नगरों में ही धर्म निरपेक्षवाद सबसे अधिक विकसित हुआ। नगरों में ऐसे वह सब साधन मौजूद होते हैं, जैसे विकसित यातायात व संचार की सुविधाएं, उच्च शिक्षा, भौतिकवाद, तार्किकतावाद या विवेकवाद, व्यक्तिवादिता, फैशन, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव इत्यादि जो मिलकर धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का विकास करते हैं।

प्रश्न 11.
धर्म निरपेक्षता के भारतीय सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़े?
अथवा
धर्मनिरपेक्षीकरण के भारतीय समाज पर प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक, जीवन पर धर्म निरपेक्षता के प्रभाव (Impact of Secularization on Indian Social and Cultural Life)-डॉ० एम० एन० श्रीनिवास ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति Social change in Modern India में धर्म-निरपेक्षीकरण के भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर पड़े अनेक प्रभावों एवं परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों का सविस्तार उल्लेख किया जिसका वर्णन अग्रलिखित है-
1. पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा में परिवर्तन (Change in the Concept of Purity and Pollution)-धर्म रण के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा काफ़ी परिवर्तित हई है। इसके प्रभाव के कारण, जाति, व्यवसाय, खान-पान, विवाह, पूजा-अर्चना, संबंधी अनेक धारणाओं में धर्म का प्रभाव कम हुआ है तथा अपवित्रता संबंधी कट्टर विचारों में भी कमी आई है।

विभिन्न जातियों के व्यक्ति आपस में इकट्ठे होकर रेल, बस आदि में यात्रा करते हैं। मिलकर रैस्टोरैंट या रेस्तरां आदि में खाते-पीते हैं। एक जाति दूसरी जाति के व्यवसाय को अपना रही है। निम्न जाति के व्यक्ति उच्च जाति के व्यवसायों को अपना रहे हैं जिससे उनकी सामाजिक स्थिति भी पहले से बेहतर हुई है।

संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के आधार पर भी निम्न जातियों ने उच्च जाति की उच्च जीवन-शैली को अपनाया है। वर्तमान समय में परंपरागत पवित्रता एवं अपवित्रता संबंधी विचारधारा में परिवर्तन हुआ है। अब लोग किसी भी चीज़ को तार्किकता व स्वास्थ्य नियमों के आधार पर स्वीकार या अस्वीकार करने लगे हैं। इन सब तथ्यों के आधार पर स्पष्ट है कि धर्म निरपेक्षीकरण ने भारतीयों की विचारधारा में अनेक आधारों पर परिवर्तन किये।

2. जीवन चक्र एवं संस्कार में परिवर्तन (Change in Life Cycle and Rituals)-संस्कार हिंदू धर्म का मूल आधार माने जाते हैं। भारतीय समाज में मुख्यतः हिंदू धर्म में प्रत्येक कार्य का आरंभ संस्कारों के आधार पर ही होता है। हिंदू धर्म के अंतर्गत जब एक बच्चा अपनी मां के गर्भ में आता है, तभी ही गर्भदान संस्कार पूरा कर दिया जाता है तथा इसके पश्चात् समय-समय पर दूसरे संस्कार जैसे-चौल, नामकरण, उपनयन (जनेऊ संस्कार), समावर्तन, विवाह आदि किए जाते हैं। जब व्यक्ति अपना शरीर त्याग देता है तो भी अंतिम संस्कार (अंत्येष्टि) किया जाता है अर्थात् हिंदू समाज
की नींव संस्कारों के बीच ही गडी हई है।

वर्तमान समय में बढ़ते धर्म-निरपेक्षीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण इन संस्कारों का संक्षिप्तिकरण हो रहा है। कुछ एक संस्कारों को ही पूरा किया जाता है तथा अन्य संस्कार जैसे-नामकरण, चौथ एवं उपाकर्म इत्यादि को पूरा नहीं किया जाता। ब्राह्मणों एवं उच्च जातियों में विधवा का मुंडन संस्कार किया जाता था जो अब लगभग न के बराबर है। इसके साथ ही कुछ एक संस्कारों को एक साथ ही मिला दिया गया है; जैसे-उपनयन संस्कार विवाह के आरंभ में ही संपन्न करवा दिया जाता है। वर्तमान समय में दैनिक जीवन के कर्मकांड जैसे-स्नान, पूजा, अर्चना, वेद, पाठ, भजन-कीर्तन इत्यादि के लिये भी व्यक्ति नाम मात्र समय देता है। ये सब परिवर्तन बढ़ते धार्मिक निरपेक्षीकरण के कारण ही हैं।

3. परिवार में परिवर्तन (Change in Family) भारतीय समाज में संयुक्त परिवार (Joint family) पारिवारिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण रूप है। सामाजिक जीवन में परिवार एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था माना जाता है। कृषि मुख्य व्यवसाय होने के कारण भारतीय समाज में संयुक्त परिवार व्यवस्था को ही उचित व्यवस्था माना जाता था।

परिवार में सभी सदस्य मिलकर साझे रूप से ज़मीन पर खेती करते तथा साझे रूप से ही अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिये अपनी आय का खर्च करते थे। संयुक्त परिवार में संपूर्ण पारिवारिक सदस्य सामान्य हित के लिये कार्य करते थे। संयुक्त परिवार में एक साथ तीन या अधिक पीढ़ियों के सदस्य इकट्ठे एक ही घर में ही रहते थे।

वर्तमान में बदलती परिस्थितियों के अनुसार संयुक्त परिवार में भी परिवर्तन हुआ। आज संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है। इनकी जगह एकाकी परिवार विकसित हो रहे हैं। संयुक्त परिवारों में जो कार्य पारिवारिक सदस्य मिल-जुल कर एक-दूसरे के सहयोग से पूरा करते थे, आज वही कार्य अनेक दूसरी समितियों व संस्थाओं को हस्तांतरित हो रहे हैं।

वर्तमान समय में परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के विचारों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। इसके साथ अब बड़े बूढ़े भी अपनी विचारधारा को नयी पीढ़ी के साथ परिवर्तित कर रहे हैं। परिवारों में जिन त्यौहारों को धार्मिकता के आधार पर परंपरागत रूप से मनाया जाता था। उन त्यौहारों को धार्मिक तथा सामाजिक अवसर अधिक माना जाता है। इन सब आधारों पर स्पष्ट हो जाता है कि पारिवारिक संस्था को धर्म निरपेक्षीकरण ने पूर्णतः प्रभावित किया है।

4. ग्रामीण समुदाय में परिवर्तन (Change in Rural Community)-धर्म निरपेक्षीकरण का प्रभाव नगरों के साथ-साथ ग्रामीण समुदाय में भी देखने को मिलता है। ग्रामीण समुदायों में जातीय पंचायतों के स्थान पर निर्वाचित पंचायतों का विकास हो रहा है। जहां पर भी ये जातीय पंचायतें अगर हैं भी तो वहां पर ये धार्मिक लक्ष्यों के आधार पर नहीं बल्कि राजनैतिक उद्देश्यों को लेकर संगठित की गई हैं।

ग्रामीण समाज में प्रतिष्ठा व सम्मान जातीय या धार्मिकता के आधार पर होता था, वहां अब धन व संपत्ति के आधार पर होने लगा है। वर्तमान समय में निम्न जातियों के व्यक्तियों को भी धन के आधार पर उच्च जाति के व्यक्तियों से अधिक सम्मान दिया जाने लगा है। ग्रामीण समाजों पर परिवार व विवाह संबंधों में भी धर्म निरपेक्षीकरण के परिणामस्वरूप अंतर्विवाह (Intercaste-marriage) का प्रचलन बढ़ा है।

ग्रामों में धार्मिक उत्सव को धार्मिकता के आधार पर कम तथा सामाजिक उत्सवों के रूप में अधिक मनाया जाने लगा है। उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि धर्म निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय समाज के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को मूल रूप से प्रभावित किया है। इस प्रक्रिया ने एक और नये सांस्कृतिक मूल्यों के विकास में योगदान दिया है तो दूसरी ओर भारतीय प्रथागत अथवा परंपरागत मूल्यों, आदर्शों को भी विघटित करने में अपनी भूमिका निभाई है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

प्रश्न 12.
संस्कृतिकरण क्या होता है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
अथवा
संस्कृतिकरण पर निबंध लिखें।
अथवा
संस्कृतिकरण के अर्थ और विशेषताओं की व्याख्या करें।
अथवा
संस्कृतिकरण की परिभाषा दें तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
संस्कृतिकरण की परिभाषा दीजिए। संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या करें।
अथवा
संस्कृतिकरण पर विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर:
संस्कृतिकरण का अर्थ (Meaning of Sanskritization)-प्रो० श्रीनिवास ने भारतीय समाज में विभिन्न व्यक्तियों से संबंधित निश्चित पहलुओं में परिवर्तनों की प्रक्रिया को संस्कृतिकरण का नाम दिया। उन्होंने, अपनी पुस्तक ‘Social Change in Modern India’ में लिखा है कि भारतीय इतिहास में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रही है और अब भी यह जारी है।

प्रो० एम० एन० श्रीनिवास ने ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’ नामक कृति में संस्कृतिकरण के अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिंदू जाति या जनजाति या अन्य समूह अपनी प्रथाओं, कर्मकांड, विचारधारा तथा जीवन शैली के उच्च व बहुधा ‘द्विज’ की दिशा में बदल लेता है”

श्रीनिवास उसके आगे लिखते हैं, “साधारण तथा ऐसे परिवर्तनों के पश्चात् वह जाति स्थानीय समुदाय द्वारा जातीय सोपान में प्रदत्त स्थान से उच्च स्थान का दावा करने लगती है। सामान्यतः ऐसा दावा कुछ समय के पश्चात् बल्कि एक-दो पीढ़ियों के पश्चात् किया जाता है जिसकी उसे स्वीकृति मिल जाती है। कभी-कभी कोई जाति ऐसे स्थान का दावा करती है जिसे मानने के लिए पड़ोसी जाति सहमत नहीं होती है।”

उपरोक्त सत्र दवारा स्पष्ट है कि संस्कतिकरण निम्न जाति, जनजाति एवं अन्य समह की परंपराओं. कर्मकांडों. विचारधारा तथा जीवन शैली में उच्च व्यक्ति व द्विज की दिशा में परिवर्तनों की प्रक्रिया है। ऐसे परिवर्तनों के कुछ समय के पश्चात उक्त समूह जातीय संस्कृति में प्राप्त पारंपरिक स्थान से उच्च स्थान प्राप्ति का दावा करते हैं।

संस्कृतिकरण की विशेषताएं
(Characteristics of Sanskritization)
1. पदमूलक परिवर्तन (Positional Changes)-संस्कृतिकरण द्वारा निम्न जातियों, जनजातियों में केवल पदमूलक परिवर्तन होते हैं। इस संबंध में श्रीनिवास लिखते हैं, “संस्कृतिकरण से व्यवस्था में पदमूलक परिवर्तन होते हैं। इसके कारण संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होते। इससे अभिप्राय यह है कि एक जाति अपनी पड़ोसी जाति से ऊपर जाती है व दूसरी नीचे आ जाती है परंतु ऐसा केवल स्थिर सोपानात्मक व्यवस्था के अंतर्गत ही होता है। इससे व्यवस्था में परिवर्तन नहीं होता है।”

2. संस्कृतिकरण केवल ब्राह्मणीकरण नहीं है। (Sanskritization is not Merely Brahmani-zation) श्रीनिवास ने अपने अध्ययनों में यह पाया कि ‘कुर्ग’ ब्राह्मणों की जीवन पद्धति का अनुकरण कर रहे हैं। मगर श्रीनिवास के अतिरिक्त योगेंद्र सिंह ने भी इस बात के माना है कि संस्कृतिकरण केवल ब्राह्मणीकरण नहीं है। यह ब्राह्मणीकरण से वृहद् अवधारणा है जिसमें क्षत्रियकरण तथा वैश्यकरण भी सम्मिलित है। क्योंकि निम्न जातियां क्षत्रियों व वैश्य की परंपराओं व विचारधाराओं का भी अनुसरण करती हैं।

3. संस्कृतिकरण के कई प्रारूप हैं (Sanskritization has many Models)-संस्कृतिकरण का वर्ण ही केवल एक प्रारूप नहीं है, कई प्रारूप हैं। मिल्टन सिंगर (Milton Singer) ने कहा है, “संस्कृतिकरण के एक या दो नहीं बल्कि कम से कम तीन या चार आदर्श मौजूद हैं।”

4. उच्च जातियों का अनुकरण (Imitation of High Castes) निम्न जातियां, जनजातियां तथा अन्य समूह हिंदू जातियों की परंपराओं, लोक रीतियों, विचारधाराओं एवं व्यवहार के तरीकों को अपनाती हैं। वे द्विजों द्वारा किए जाने वाले कर्मकांडों को करती हैं। यद्यपि जाति व्यवस्था के अंतर्गत निम्न जातियों को ऐसा करने की मनाही है। संस्कृति निम्न वर्गों द्वारा उच्च जातियों की जीवन शैली के अनुकरण की प्रक्रिया है।

संतिकरण का संबंध समह से है (Sanskritization is Related to Group)-संस्कतिकरण के दवारा समूह की स्थिति में परिवर्तन आता है। यह अकेले व्यक्ति व परिवार से संबंधित नहीं है क्योंकि यदि व्यक्ति संस्कृतिकरण द्वारा उच्च जातीय स्थिति का दावा करने लगे तो संभव है कि उसे अपनी जाति के अन्य सदस्यों के विरोध, हास्य व व्यंग्य, निंदा व चर्चा कर सामना करना पड़े।

6. निरंतर प्रक्रिया (Continuous Process)-संस्कृतिकरण एक निरंतर प्रक्रिया है जो अविरुद्ध जारी रहती है। श्रीनिवास का मानना है कि केवल दक्षिण भारत के वर्गों में ही संस्कृतिकरण नहीं पाया जाता बल्कि देश को विभिन्न भागों, ग्रामीण, जनजातीय तथा नगरीय समुदाय में भी यह प्रक्रिया पाई जाती है।

7. गैर-हिंदुओं का भी संस्कृतिकरण होता है (There is also Sanskritization of Non-Hindu) केवल हिंदू जातियों का ही नहीं बल्कि गैर-हिंदू जातियों का भी संस्कृतिकरण होता है। भारत की जनजातियों; जैसे भील, गोंड, औगज आदि का संस्कृतिकरण हुआ। उसके बाद वह हिंदू कहलाईं।

8. संस्कृतिकरण विरोध रहित नहीं है (Sanskritization is not without Opposition)-संस्कृतिकरण विरोध रहित नहीं है, जब निम्न जाति पूर्व प्राप्त सामाजिक स्थिति से उच्च स्थिति का दावा करती है तब उच्च जातियों द्वारा उसका विरोध होता है। क्योंकि निम्न जातियों के ऐसा करने से उनका स्थान पड़ोसी जाति से ऊपर (उच्च) हो जाता है। फलस्वरूप पड़ोसी उच्च जाति की कथित जाति से सामाजिक दूरी तो घटती ही है बल्कि उसका अपना स्थान पहले से निम्न हो जाता है। श्रीनिवास का मानना है कि उत्तरी बिहार में जब राजपूतों और ब्राह्मणों ने अहीरों को विजों के प्रतीक चिन्हों को अपनाने से रोका तो उनके बीच संघर्ष आरंभ हो गया।

निम्न वर्गों में सामाजिक परिवर्तन (Social Changes Among Lower Classes)-संस्कृतिकरण निम्न वर्गों, निम्न जातियों, जनजातियों तथा ऐसे अन्य समूहों में सामाजिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है। इसके अंतर्गत निम्न जातियों की लोक रीतियों, रूढ़ियों, परंपराओं, प्रथाओं, मूल्यों, शिष्टाचारों, विश्वासों, कर्मकांडों तथा मान्यताओं में परिवर्तन आता है।

10. उच्चतर स्थिति का दावा (Claim of Higher Status)-संस्कृतिकरण के द्वारा निम्न जातियां तथा जनजातियां, जातीय सोपान में उन्हें जो स्थान प्राप्त होता है, उससे उच्च स्थान होने का दावा करती हैं। श्रीनिवास लिखते हैं. “हमें भारत की 1921 की जनगणना रिपोर्ट से पता चलता है कि उत्तर भारत के अहीरों ने उपनयन डालकर क्षत्रिय कहलाना आरंभ कर दिया।”

प्रश्न 13.
संस्कृतिकरण के निम्न जातियों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
भारतीय समाज में संस्कृतिकरण से जाति व्यवस्था पर कई प्रभाव पड़े। इस प्रक्रिया के चलते जाति एवं वर्ग नहीं रह पाया विशेषतः निम्न जातियों में अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए प्रयास जारी हैं। इससे उनके पारंपरिक जातीय प्रतिबंध शिथिल होते हैं। संस्कृतिकरण से निम्न जातियों पर पड़ने वाले प्रभावों व इससे निम्न जातियों में होने वाले परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(1) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों में गतिशीलता बढ़ी।

(2) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों की प्रस्थिति में सुधार हुआ है। उच्च जातियों की परंपराओं, कर्मकांडों, विचारधारा व जीवन शैली को अपनाने के कुछ समय के पश्चात् निम्न जातीय समूह अपने से तुरंत ऊपर जाति से उच्च स्थान होने का दावा करने लगी हैं। जब वे स्थानीय जातीय सोपान (Local Caste Hierarchy) में वांच्छित स्थान ग्रहण कर लेती हैं तो उससे उनमें पदमूलक सुधार (Positional) होता है।

(3) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों की व्यावसायिक स्थिति में परिवर्तन आए हैं। उन्होंने अशुद्ध एवं अपवित्र समझे जाने वाले अपने पारंपरिक व्यवसाय छोड़ने प्रारंभ किए तथा शुद्ध व्यवसायों को अपनाया। यद्यपि पवित्र व्यवसायों को अपनाने की उनको मनाही है मगर पवित्रता के प्रति उनकी बढ़ती चेतना के कारण उन्होंने उच्च कहे जाने वाले व्यवसायों को अपनाना प्रारंभ किया है।

(4) संस्कृतिकरण से उनकी संस्कृति-लोक रीतियां, परंपराएं, प्रथाएं, विश्वास, मूल्य, व्यवहार व शिष्टाचार के तरीकों में परिवर्तन हुआ। उन्होंने उच्च जातियों की जीवन शैली का अनुकरण करना प्रारंभ किया जिससे उनकी जीवन पद्धति प्रभावित हुई।

(5) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों के धार्मिक जीवन पर भी प्रभाव पड़ा। उन्होंने उच्च जातियों द्वारा किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों को अपनाना प्रारंभ किया है। यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ करना प्रारंभ किया हैं। अशुद्धता का परित्याग तथा शुद्ध कार्यों को अपनाया है। हिंदू त्योहारों को मानने लगे हैं।

(6) उनकी आर्थिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। उद्योगों में व सरकारी नौकरियों में उनके प्रवेश से उनकी आय में वृद्धि हुई। वह शैक्षणिक, तकनीकी व व्यावसायिक योग्यता प्राप्त कर उच्च पदों पर कार्यरत होने लगे। आधुनिक व्यवसायों से उनकी आय बढ़ी जिससे उनकी आर्थिक स्थित में सुधार हुआ।

(7) निम्न जातियों के सामाजिक जीवन में भी काफ़ी परिवर्तन आए हैं। जातीय प्रतिष्ठा में सुधार करने के लिए इनके सदस्यों ने शिक्षा प्राप्त करनी प्रारंभ की है। उद्योगों, कार्यालयों व प्रशासन में नौकरियां प्राप्त की हैं। इससे उनकी समाज के उच्च वर्गों से अंतःक्रिया होने लगी। फलस्वरूप जातीय सामाजिक दूरी में कमी आई।

(8) आर्थिक स्थिति में सुधार, शिक्षा ग्रहण करने, नगरों के लिए स्थानांतरण व आवागमन और संचार साधनों के उपयोग से निम्न जातियों के रहन-सहन में परिवर्तन आया। उन्होंने पक्के भवन बनाने आरंभ किए। घर में फर्नीचर, मेज-कुर्सियां, दीवान, टी०वी०, फ्रिज, पंखे, रसोई-गैस आदि सुख-सुविधा की प्रत्येक वस्तु रखना प्रारंभ की।

(9) संस्कृतिकरण से निम्न जातियों के अपने मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़े हैं। उनमें गतिशीलता के बढ़ने, पवित्र व्यवसायों को अपनाने, उच्च शिक्षा ग्रहण करने, धार्मिक स्थलों पर भ्रमण करने से हीनता की भावना (Inferiority Complex) में कमी आई।

प्रश्न 14.
पश्चिमीकरण क्या होता है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
अथवा
पाश्चात्यकरण की चार विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
पश्चिमीकरण का अर्थ बताएँ तथा इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
अथवा
पश्चिमीकरण क्या है? पश्चिमीकरण के प्रमुख तत्वों एवं विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
पश्चिमीकरण की कोई तीन विशेषताएँ लिखें।
अथवा
पश्चिमीकरण को परिभाषित करें।
उत्तर:
पश्चिमीकरण का अर्थ (Meaning of Westernization) आम तौर पर पश्चिमीकरण का अर्थ पश्चिमी देशों के भारत पर प्रभाव से लिया जाता है। पश्चिमी देशों में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी व अमेरिका ऐसे राष्ट्र हैं जिनका भारतीय समाज पर काफ़ी प्रभाव रहा है। भारत में विशेषतयः शिक्षित वर्ग इन देशों के लोगों की जीवन शैली का अनुकरण करते रहे हैं। प्रो० एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की बहुपक्षीय विवेचना की है।

अन्य समाजशात्रियों ने भी अत्र-कुत्र पश्चिमीकरण के अर्थ की व्याख्या की है हालांकि अधिकांश विद्वानों ने अपना ध्यान भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों की व्याख्या करने पर केंद्रित किया है। एम० एन० श्रीनिवास ने अपनी कृति ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’ में लिखा है, “पश्चिमीकरण शब्द के मैंने ब्रिटिश के डेढ़ सौ से अधिक वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है और यह शब्द विभिन्न स्तरों संस्थाओं, प्रौद्योगिकी, विचारधाराओं व मूल्यों आदि में होने वाले परिवर्तनों से संबंधित है।”

श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण के अंतर्गत केवल ब्रिटिश शासन या इंग्लैंड के भारत पर प्रभावों को ही सम्मिलित किया है।

पश्चिमीकरण की विशेषताएं
(Characteristics of Westernization)
1. स्वतंत्रता उपरांत जारी (Continue After Independence)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों के भारत से चले जाने के साथ समाप्त नहीं हुई। मगर यह देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी निरंतर जारी है। भार के लगातार बढ़ते प्रचार-प्रसार, ब्रिटिश की तरह खाने-पीने की आदतों, शिष्टाचारों (चरण-स्पर्श के स्थान पर गुड मार्निंग, गुड-इवनिंग, स्वीट ड्रीमज़ आदि अभिव्यक्तियों का प्रयोग करना) विचारधाराओं (भारतीय राष्ट्रपति का ब्रिटिश रानी की तरह संवैधानिक मुखिया होना तथा मंत्रिमंडल के पास वास्तविक शक्तियों का होना) से पता चलता है कि भारत का वर्तमान समय में भी पश्चिमीकरण हो रहा है।

2. पश्चिमीकरण आधुनिकीकरण से भिन्न है (Westernization is Different from Modernization) यद्यपि पश्चिमीकरण से आधुनिकीकरण की बढ़ावा मिलता है परंतु यह दोनों एक-दूसरे से भिन्न धारणाएं है। पश्चिमीकरण का संबंध ब्रिटिश संपर्क में आने के पश्चात् भारत समाज पर पड़ने वाले अच्छे-बुरे सभी प्रकार के प्रभावों से है जबकि आधुनिकीकरण के अंतर्गत पश्चिमी देशों इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, रूस व अमेरिकी गैर-पश्चिमी राष्ट्रों जापान एवं चीन आदि के भारत पर सकारात्मक प्रभावों को सम्मिलित किया जाता है। इसके अतिरिक्त बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिवेश के प्रभाव तथा भारत में ज्ञान-विज्ञान तथा भारत में ज्ञान-विज्ञान तथा तकनीक के विकास के कारण हुए परिवर्तन का भी आधुनिकीकरण कहा जाता है।

3. ब्रिटिश संस्कृति का भारतीय समाज पर प्रभाव (Impact of British Culture on Indian Society) पश्चिमीकरण भारतीय समाज पर ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव है। यद्यपि भारत पर अनेक अन्य पश्चिमी समाजों का काफ़ी प्रभाव रहा है मगर पश्चिमीकरण के अंतर्गत अन्य पश्चिमी देशों की संस्कृतियों का प्रभाव सम्मिलित नहीं है। इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए श्रीनिवास ने कहा है, “पश्चिमीकरण शब्द की मैंने ब्रिटिश के डेढ़ सौ से अधिक वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज एवं संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है।”

4. पश्चिमीकरण शहरी लोगों तक ही सीमित नहीं है। (Westernization is not Confined to Urbanites) ब्रिटिश काल के दौरान पश्चिमीकरण के प्रभाव उन शहरी लोगों या बड़े नगरों तक सीमित नहीं थे जिनके संपर्क में अंग्रेज़ आये बल्कि हज़ारों ग्रामीण श्रमिक, छोटे कर्मचारी सैनिकों के रूप में अंग्रेजों के संपर्क में आये तथा जिससे सुदूर स्थित गांवों का पश्चिमीकरण हुआ।

5. जटिल प्रक्रिया (Complex Process)-पश्चिमीकरण काफ़ी जटिल प्रक्रिया है। भारतीय समाज में विभिन्न क्षेत्रों, जातियों, समुदायों, वर्गों तथा समूहों पर पश्चिमीकरण के एक जैसे प्रभाव नहीं पड़े। सुशिक्षित ब्रिटिश प्रशासन, सेनाओं में कार्यरत तथा शहरी लोग अशिक्षित तथा ग्रामीणों से अधिक पश्चिमीकृत हो गये। जैन धर्म के अनुयायी अधिक तथा मुसलमान कम पश्चिमीकृत हुए।

श्रीनिवास ने अपनी कृति ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’ में लिखा है “पश्चिमीकरण का स्वरूप व गति एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में तथा जनसंख्या एक भाग से दूसरे भाग में भिन्न रही है। कुछ लोगों की वेषभूषा, भोजन के तरीके, भाषा, खेलकूद तथा उपयोग की जाने वाली वस्तुएं पश्चिमीकृत हो गईं जबकि अन्य समूहों ने पश्चिमी ज्ञान, विज्ञान, कलाओं तथा साहित्य को अपना लिया।”

6. चेतन एवं अचेतन प्रक्रिया (Conscious and Unconscious Process)-पश्चिमीकरण चेतन एवं अचेतन प्रक्रिया है। संस्कृति के कुछ पहलुओं जैसे-भाषा व तकनीक इत्यादि को सोच-समझा कर भारतवर्ष में लागू किया गया। भारतीयों द्वारा चेतन रूप में इन्हें अपनाया गया। मगर पश्चिमीकरण के तरीकों, मूल्यों, शिष्टाचारों, खान-पान की आदतों तथा विश्वासों को अचेतन रूप में भारतीयों ने ग्रहण किया। चरण स्पर्श के स्थान पर हाथ मिलाकर तथा गुड मार्निंग करके अभिवादन करना, भूमि पर आसन बिछा कर हाथ से भोजन ग्रहण करने के स्थान पर कुर्सी-मेज पर चम्मच से खाना-खाना इसके उदाहरण हैं।

7. नैतिक रूप से तटस्थ (Ethically Neutral)—पश्चिमीकरण द्वारा भारतीय समाज में कई प्रकार के अच्छे व बुरे, नकारात्मक एवं सकारात्मक तथा संगठनात्मक एवं विघटनात्मक परिवर्तन आये। पश्चिमीकरण का संबंध परिवर्तनों के सकारात्मक व नकारात्मक पहलओं से नहीं है। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के परिवर्तन आते हैं। अर्थात पश्चिमीकरण नैतिक रूप से तटस्थ है।

8. इसमें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभाव सम्मिलित (It Includes Direct and Indirects Impacts) ब्रिटिश के भारत पर शासन के दौरान अंग्रेज़ों का सहस्त्रों भारतीयों से प्रत्यक्ष संपर्क हुआ। लेकिन करोड़ों ऐसे भारतीय भी हैं जिनके साथ कभी भी प्रत्यक्ष संपर्क नहीं हुआ। फिर भी उन पर काफ़ी ब्रिटिश प्रभाव पड़ा।

कई लोग ब्रिटिश काल में विभिन्न पदों पर कार्यरत थे। अंग्रेजों के संपर्क में उन पर कई प्रभाव पड़े। इन लोगों ने ब्रिटिश संस्कृति का अपने पारिवारिक सदस्यों में बीजारोपण किया। ऐसे परिवारों से ब्रिटिश संस्कृति उनके संपर्क में आई तथा अन्य लोगों में फैलती गई। अतः पश्चिमीकरण के अंतर्गत ब्रिटिश के भारतीय समाज पर सभी प्रकार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव सम्मिलित हैं।

प्रश्न 15.
भारत में आधुनिकीकरण के कौन-से लक्षण देखे जा सकते हैं? उनका विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर:
चाहे अंग्रेजों ने भारत में आधुनिकीकरण की नींव रखी थी तथा उसके लिए कुछ प्रयास भी किए थे पर वे इतने काफ़ी नहीं थे कि उन से देश आधुनिक हो जाए। आजादी के पश्चात् सरकार ने देश को विकसित करने की ठानी तथा बहुत से प्रयास किए गए ताकि भारत को भी पश्चिमी देशों की तरह आधुनिक बनाया जा सके।

आज हमारे सामने कुछ ऐसे लक्ष्ण हैं जिनको देखकर हम कह सकते हैं कि भारत आधुनिकता की तरफ बढ़ रहा है चाहे वह पूरी तरह आधुनिक नहीं हुआ है। आधुनिकीकरण के इन लक्षणों का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) औद्योगीकरण-आज़ादी से पहले हमारे देश में गिनती के ही कुछ उद्योग थे पर आज़ादी के बाद तेज़ी से उद्योग बढ़े हैं क्योंकि उद्योग लगाने के लिए जो हालात चाहिए वे मिल गए थे। चाहे औद्योगीकरण आधुनिकीकरण का लक्षण नहीं है फिर भी यह आधुनिकीकरण के लिए जरूरी है क्योंकि देश में उद्योग लगने से पैसा आएगा, देश का आर्थिक विकास होगा. जनता को रोजगार मिलेगा।

आज भारत में उदयोग तेजी से बढ़ रहे हैं। दनिया में उदयोगों के मामले में हम काफी पीछे हैं। इस तरह आधुनिकीकरण के लिए पहली शर्त ज्यादा उद्योग की होती है, वह हमारे देश में तेज़ी से अब बढ़ रही है।

(ii) धर्म निरपेक्षता-जब भारत पर राजाओं-महाराजाओं का राज था तो वह किसी एक धर्म को प्रोत्साहित किया करते थे तथा बाकी धर्मों को नफ़रत की दृष्टि से देखा जाता था। अंग्रेजों के आने के बाद स्थिति बदल गई। उन्होंने किसी भी धर्म को विशेष महत्त्व नहीं दिया क्योंकि वो तो यहां पर पैसा कमाने आए थे।

अंग्रेजों के पश्चात् आज़ादी के बाद भारत सरकार तथा संविधान में भी धर्म निरपेक्षता की नीति अपनायी गई ताकि किसी विशेष धर्म को महत्त्व न मिले तथा सभी धर्मों को बराबर मौका मिले। आजकल के समय में आधुनिकीकरण की यह शर्त है कि देश धर्म होना चाहिए तथा यही नीति भारत में अपनायी गई। इस तरह हम कह सकते हैं कि आधुनिकीकरण की अगली शर्त यानि कि धर्म-निरपेक्षता, हमारा देश पूरी कर रहा है।

(iii) नगरीयकरण-आधुनिकीकरण का अगला लक्षण नगरीयकरण या नगरों का बढ़ना है। हमारे देश पर यह बात लागू होती है। आज से तकरीबन 100 साल पहले हमारी तकरीबन 90% जनसंख्या गांवों में रहती थी पर आज़ादी के पश्चात् इसमें तेजी से कमी आयी। 1991 की जनगणना के अनुसार 25% जनता तथा 2001 की जनगणना के अनुसार 29% जनता शहरों में रहती है।

इसका यह अर्थ हुआ कि जनसंख्या तेजी से गांवों को छोड़कर शहरों की तरफ जा रही है तथा शहरों का तेजी से विकास हो रहा है। अगर हम शहरों के आकार की तरफ देखें तो पिछले दो-तीन दशकों में शहरों के आकार दगने हो गए हैं। इसका अर्थ है कि नगरीयकरण में बढ़ोत्तरी हो रही है। इस तरह हमारा देश आधुनिकीकरण का यह लक्षण भी पूरा करता है।

(iv) शिक्षा-यह कहा जाता है कि जितना ज्यादा कोई देश साक्षर होगा उतना ज्यादा वह आधुनिक होगा क्योंकि शिक्षा का सीधा संबंध आधुनिकता से होता है। अगर हम पश्चिमी देशों की तरफ देखें तो वह आज के समय में आधुनिक माने जाते हैं पर इसके साथ हमें वहां की साक्षरता दर भी देखनी चाहिए। जापान की साक्षरता दर 100%, इंग्लैंड की 99%, रूस की 99.2%, अमरीका की 98% है। इनके अलावा यूरोपीय देशों की साक्षरता-दर काफ़ी ऊँची है क्योंकि ये लोग शिक्षा पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च करते हैं।

ये लोग कुल बजट का 19-20% पैसा शिक्षा पर खर्च करते हैं जबकि हमारा देश सिर्फ 3-3.5% ही खर्च करता है पर अब इसमें धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी हो रही है। हमारे देश की साक्षरता दर में भी काफ़ी तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है। 1991 की जनगणना के अनुसार हमारी साक्षरता दर 52% थी जो 2001 में बढ़कर 65% तक पहुँच गई है। इस तरह हम आधुनिकता की यह शर्त भी पूरी करते हैं।

(v) पश्चिमीकरण-अगर हम ध्यान से देखें तो पश्चिमीकरण को ही आधुनिकीकरण मान लिया जाता है। हमारे देश के ऊपर अंग्रेजों ने 150 सालों से ज्यादा राज किया था तथा यहां पर पश्चिमीकरण की नींव भी उन्होंने रखी थी। उन्होंने ही यहां पर पश्चिमी शिक्षा की शुरुआत की, पश्चिम की तर्ज पर यहां पर उद्योग लगवाने शुरू किए, यातायात जैसे ट्रेन तथा संचार जैसे तार-डाक इत्यादि की शुरुआत की।

इसके अलावा उन्होंने यहां की शासन पद्धति में भी बदलाव किया तथा इसे भी पश्चिम की तर्ज पर चलाया। आधुनिकीकरण की वजह से जो क्रांति यातायात तथा संचार के साधनों, शिक्षा तथा और कई क्षेत्रों में आयी है, आज़ादी के पश्चात् वह हमारे देश में भी आयी है। हमारे देश में भी पश्चिम की तर्ज पर यातायात, संचार, शिक्षा के साधन विकसित हो गए हैं जिनको देख कर हम कह सकते हैं कि भारत आधुनिकता की तरफ बढ़ रहा है।

(vi) सामाजिक परिवर्तन-आधुनिकीकरण का एक और ज़रूरी लक्षण सामाजिक परिवर्तन है। सामाजिक परिवर्तन से मतलब न सिर्फ देखने वाली चीजों में बदलाव बल्कि हमारे सोचने के तरीकों, विचारों में भी परिवर्तन होना चाहिए। यह सब भारत में हो रहा है। भारत के सामाजिक ढाँचे, उसकी संरचना में काफ़ी हद तक परिवर्तन आ गए हैं तथा आ रहे हैं।

यह सब भारत सरकार की कोशिशों का नतीजा है। जाति प्रथा जो हमारे समाज का मुख्य आधार हुआ करती थी अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है। इसकी जगह तरह-तरह के वर्ग ले रहे हैं। इसके अलावा हमारे समाज में कई प्रकार की समस्याएं थीं जो खत्म हो गयी है या हो रही हैं। लोगों के सोचने, रहन-सहन के तरीकों में परिवर्तन आ रहे हैं जो कि आधुनिकता की निशानी है।

(vii) गतिशीलता तथा नए वर्गों का विकास-आधुनिकता की एक और निशानी गतिशीलता भी होती है। गतिशीलता का मतलब होता है एक जगह को छोड़ कर दूसरी जगह जाना तथा यह सब भारत में हो रहा है। लोग गांवों को छोड़कर शहरों की तरफ जा रहे हैं, अपनी पुरानी नौकरियां छोड़कर नई नौकरियां तलाश कर रहे हैं। यह सब गतिशीलता है।

इस गतिशीलता की वजह से जाति प्रथा में बंधन टूट रहे हैं तथा समाज में नए नए वर्गों का उदय हो रहा है। अब कुछ लोग अगर किसी बात में समानता रखते हैं तो वह एक वर्ग का निर्माण करते हैं चाहे वे किसी भी जाति से हों। इस तरह सामाजिक गतिशीलता तथा नए वर्गों का विकास सामाजिक समृद्धि को बढ़ाता है जोकि आधुनिकीकरण का एक लक्षण है।

प्रश्न 16.
आधुनिकीकरण क्या होता है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
अथवा
आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना करें।
अथवा
आधुनिकीकरण से आप क्या समझते हैं? आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
आधुनिकता क्या है?
उत्तर:
आधुनिकीकरण का अर्थ (Meaning of Modernization)-आधुनिकीकरण एक वृहद् अवधारणा है। यह सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया है। आधुनिकीकरण अंग्रेजी के शब्द मॉडर्नाइजेशन (Modernization) का हिंदी रूपांतर है जिसका प्रादुर्भाव लैटिन भाषा के मोडो (Modo) शब्द से हुआ। मोडो का अर्थ है प्रचलन अर्थात् जो वस्तु धारणा तकनीक तथा व्यवस्था प्रचलित है, अपेक्षाकृत नवीन एवं श्रेष्ठ है। वह आधुनिक है तथा आधुनिक होने की प्रक्रिया को आधुनिकीकरण कहते हैं।

अर्थात् पारंपरिक में आधुनिकता की और परिवर्तनों की प्रक्रिया आधुनिकीकरण है।” अनेक विद्वानों ने आधुनिकीकरण का अर्थ स्पष्ट करने के लिये निम्नलिखित परिभाषाएं परिभाषित की हैं, आइजनस्टेड (Eisenstadt) ने अपनी कृति आधुनिकीकरण प्रक्रिया एवं परिवर्तन में लिखा है, “आधुनिकीकरण उन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक स्वरूपों की दिशा में परिवर्तन है, जो सतारहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप व उत्तरी अमेरिका में तत्पश्चात् अन्य यूरोपीय देशों में तथा उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी में दक्षिण अमरीकी, एशियाई तथा अफ्रीकन देशों में हुए।”

यह परिभाषा आधुनिकीकरण की ऐतिहासिक दृष्टिकोण से व्याख्या करती है। इसमें 17वीं से 20वीं शताब्दी के दौरान विश्व के विभिन्न देशों में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक क्षेत्रों में हुए परिवर्तनों को आधुनिकीकरण का नाम दिया है।

दूबे के शब्दों में, “आधुनिकीकरण एक प्रक्रिया है जो परंपरागत या अर्ध परंपरागत व्यवस्था से किन्हीं इच्छित प्रारूपों तथा उनसे जुड़ी हुई सामाजिक संरचना के स्वरूपों, मूल्यों, प्रेरणाओं तथा सामाजिक आदर्श नियमों की ओर होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।” दूबे ने प्रौद्योगीकरण तथा सामाजिक संरचना के विभिन्न पहलुओं में होने वाले परिवर्तनों को आधुनिकीकरण कहा है।

आधुनिकीकरण की विशेषताएं / तत्त्व
(Characteristics/Elements of Modernization)
1. नगरीयकरण (Urbanization)-नगरीयकरण आधुनिकीकरण की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। मानव समुदाय जनजातीय से ग्रामीण तथा जनजातीय एवं ग्रामीण से नगरीय जीवन की ओर परिवर्तित होता है। समाज में जितना अधिक नगरीयकरण होगा वह उतना ही अधिक आधुनिक कहलाएगा। स्विट्ज़रलैण्ड, अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा फ्रांस आदि आधुनिक समाजों में विकासशील समाजों की अपेक्षा कहीं अधिक आधुनिक समाज नगरीकरण हुआ है।

2. औद्योगीकरण (Industrialization)-औद्योगीकरण का अर्थ है-उद्योगों का विकास। औद्योगीकरण से . समाज में गुणात्मक परिवर्तन आता है। औद्योगीकरण समाज में प्रगति का परिणाम है। इसमें प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त होता है। विज्ञान एवं तकनीकी के विकास से उद्योगों की स्थापना में सहायता मिलती है तथा उद्योगों में बड़े पैमानों पर उत्तम गुणवत्ता वाली अपेक्षाकृत सस्ती वस्तुओं के निर्माण से प्रबल प्रगति को बढ़ावा मिलता है। अतः औद्योगीकरण आधुनिकीकरण का आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।

3. धर्म निरपेक्ष शिक्षा (Secular Education) शिक्षा जाति, धर्म व समुदाय, लिंग, रंग तथा जन्म के स्थान के पार पर निर्मित समूहों तक सीमित न होकर सबके लिये उपलब्ध हो। अर्थात् समाज के सभी वर्गों को शिक्षा ग्रहण करने का समान अवसर प्राप्त हो उसी को आधुनिकीकरण कहा जा सकता है।

4. शिक्षा का प्रसार (Expansion of Education) शिक्षा के प्रसार से आधुनिकीकरण के द्वार खुलते हैं। किसी भी समाज शिक्षा का जितनी गति से प्रसार व प्रचार होगा उस समाज में उतनी गति से आधनिकीकरण होगा। अमरीका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी एवं इटली तथा स्विट्ज़रलैंड आदि सब देशों में साक्षरता दर लगभग शतप्रतिशत है। उच्च शिक्षा का भी काफ़ी प्रसार हुआ। फलस्वरूप यह समाज आधुनिकीकृत हो पाए हैं।

5. वैज्ञानिक प्रकृति (Scientific Temper)-वैज्ञानिक प्रकृति से अभिप्राय है मनुष्य में कार्य-कारण के आधार पर घटनाओं को समझने की प्रवृत्ति का विकास। वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास आधुनिकीकरण का लक्षण है। इस विकास से व्यक्ति तथ्यों का विश्लेषण तर्क, विवेकशीलता एवं वृद्धि के आधार पर करता है। वह किसी भी चीज़ का अंधानुकरण नहीं करता है। किसी भी समाज में आधुनिकीकरण की गति इस बात से प्रभावित होती है कि वहां पर कितने लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पाया जाता है।

6. संचार एवं यातायात साधनों का विकास (Development of Means of Communication and Transportation) संचार एवं यातायात के साधनों में विकास के कारण लोगों में आपसी संबंध बढ़ते हैं। इससे विभिन्न कार्य अपेक्षाकृत कम समय में पूर्ण किये जाते हैं। औद्योगीकरण को गति मिलती है। संचार एवं यातायात के साधनों के उन्नत का अर्थ है कि संबंधित समाज उन्नत है। वर्तमान समय में मोबाइल, टेलीफोन, ई-मेल (E Mail), फैक्स (Fax) से संचार व्यवस्था में क्रांति आई है तथा बस, रेल व हवाई संपर्क से मानव जीवन में सकारात्मक गुणात्मक (Positive qualitative) परिवर्तन आए हैं।

7. एकाकी परिवारों का विकास (Development of Nuclear Family)-अनेक समाजशास्त्रियों का यह मानना है कि संयुक्त परिवार परंपरा का तथा एकाकी परिवार आधुनिकता का प्रतीक है। आधुनिकीकरण से एकाकी परिवारों का विकास हो रहा है तथा एकाकी परिवार आधुनिकीकरण को दर्शाते हैं जिसमें पति-पत्नि व अनेक अविवाहित बच्चे एक साथ रहते हैं। ऐसे परिवारों के सदस्यों को अधिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है।

8. विशिष्ट भूमिकाएं (Specialization Roles)-किसी भी क्षेत्र में विशेष ज्ञान प्राप्त करके विशिष्ट भूमिका अभिनीत करना आधुनिकीकरण का एक तत्त्व है। व्यक्ति द्वारा विशेष शिक्षा ग्रहण करके डॉक्टर वैज्ञानिक, मैनेजर, वकील या अन्य व्यावसायिक (Professional) की भूमिका निभाना व्यक्ति की विशिष्ट भूमिकाएं हैं।

9. शक्ति के निर्जीव स्रोतों का दोहन (Exploitation of Inanimate Sources of Power) लेवी (Levi) ने अपनी कृति ‘Modernization of Structure and Society’ में इस बात पर बल दिया है। शक्ति तथा अधिकाधिक दोहन (Exploitation) आधुनिकीकरण का संकेत चिन्ह है। निर्जीव स्रोतों का दोहन करके उसको समाज की प्रगति के लिये उपयोग आधुनिकीकरण है।

10. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि (Increase in per Capita Income)-प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि आधुनिकीकरण का सूचक है। समाज में कितना आधुनिकीकरण हुआ है। वहां की प्रति व्यक्ति आय से इस बात का अनुमान लगाया जाता है। पश्चिमी समाजों का पूर्वी समाजों से अधिक आधुनिकीकरण हुआ है। पूर्व में भी भारत की अपेक्षा जापान का कहीं अधिक आधुनिकीकरण हआ है।

11. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (International Co-operation)-भूमंडलीकरण के चलते विश्व का कोई भी समाज अन्य समाजों से अलग नहीं रह सकता। प्रगति, विकास तथा विविध आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अन्य देशों का सहयोग आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र [United Nation(U.N.)], विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization), विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation), यूनेस्को (Unesco), सार्क (Saarc), नाटो (Nato), आई० एम० एफ० (I.M.F) तथा विश्व बैंक (World Bank) आदि का निर्माण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को दर्शाता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से आधुनिकीकरण को गति मिलती है।

12. लोकतंत्रीकरण (Democratization)-लोकतंत्रीकरण का अर्थ है लोगों की, लोगों के लिये तथा लोगों के द्वारा सरकार की स्थापना करना। सभी नागरिकों को मौलिकाधिकार प्रदान करना। सरकार की लोगों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना, मौलिक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना करना, लोगों की राजनीति में भागीदारी बढ़ाना, जीवन में आगे बढ़ने के लिये समान अवसर प्रदान करना इत्यादि। वर्तमान समय में विश्व के अधिकतर राष्ट्रों में लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था अपनाई गई है। जो आधुनिकीकरण के विभिन्न चरणों से गुजर रही है। अब भारतीय लोकतंत्र में परिपक्वता आ रही है।

13. राष्ट्रीयता की भावना का विकास (Development of feeling of Nationality)-जाति, धर्म क्षेत्र, रंग तथा लिंग आदि संकीर्ण विचारों से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता की भावना का विकास आधुनिकीकरण है। ऐसे समाज में स्थानीय निष्ठाओं की अपेक्षा राष्ट्रीयता की भावना को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

14. तार्किक नौकरशाही (Rational Bureaucracy)-नौकरशाही किसी भी समाज के प्रशासनिक ढांचे की रीड़ की हड्डी होती है। नौकरशाही के तार्किक होने से प्रशासनिक कुशलता बढ़ती है। यह आधुनिकीकरण का प्रतीक है।

15. लोगों की राजनैतिक भागीदारी में वृद्धि (Increasing Political Participation of the People) लोगों का राजनीतिक व्यवस्था के बारे में ज्ञान तथा उनका राजनीतिक गतिविधियों में सहभागिता अंतः संबंधित है। राजनीतिक गतिविधियों में वोट डालना, विभिन्न राजनीतिक दलों की विचारधाराओं का ज्ञान रखना, देश के सम्मुख प्रमुख समस्याओं के बारे में विचार-विमर्श करना, सरकार के कार्यों का विशलेषण करना इत्यादि लोगों में क्रियाशीलता से देश के शासन में परिपक्वता, कुशलता तथा जवाबदेही विकसित होती है। इसलिये राजनीतिक जनसहभागिता आधुनिकीकरण का कारक है।

16. पश्चिमीकरण (Westernization)-पश्चिमीकरण भी आधुनिकीकरण का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जिसमें मानवतावाद, व्यक्तिवाद, भौतिकवाद, तर्कवाद, लौकिकीकरण (Secularisation) तथा कर्मवाद पर विशेष बल दिया जाता है। जो समाज पश्चिमीकृत है वह काफ़ी सीमा तक आधुनिक भी है। क्योंकि पश्चिमी देशों में आधुनिकीकरण हुआ है। हालाकि जापान जैसे ही कुछ देशों में पश्चिमीकरण के बिना ही आधुनिकीकरण हुआ है।

प्रश्न 17.
भारत पर आधुनिकीकरण के प्रभावों का वर्णन करो।
अथवा
आधुनिकीकरण के कारण भारत में आए परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
आधुनिकीकरण तथा पश्चिमीकरण से भारतीय समाज में क्या-क्या परिवर्तन हुए? उदाहरण देकर वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय समाज में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् आधुनिकीकरण और आधुनिकीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव निम्नलिखित है-
1. शहरीकरण (Urbanization) भारतीय समाज में निरंतर शहरीकरण हो रहा है। सन् 1901 में कुल ख्या के 11% लोग शहरों में रहा करते थे। सन् 2011 की जनसंख्या की गणना के अनुसार शहरों में 32% लोग रहते थे। इसी प्रकार स्वतंत्रोपरांत 1951 में हुई देश में प्रथम जनगणना के अनुसार कल शहर 2844 थे जो कि 1991 में बढ़कर 3696 हो गये।

इसी प्रकार 1951 की गणना के अनुसार देश में 74 ऐसे शहर थे जिनकी जनसंख्या एक लाख या उससे अधिक थी जबकि 1991 में यह संख्या 300 के ऊपर तक चली गई। 10 लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले शहरों की तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। 1901 में केवल एक शहर इस श्रेणी में था, 1951 में यह पांच हो गये। 1991 में 23 नगरों की जनसंख्या 10 लाख या उससे अत्यधिक हो गई। 33% जनसंख्या इन्हीं 23 शहरों में निवास करती है। 25.7 लाख आबादी के साथ मुंबई सबसे बड़ा शहर है।

2. औद्योगीकरण (Industrialization)-स्वतंत्रता के उपरांत भारत में अभूतपूर्व गति से औद्योगीकरण हुआ। उद्योगों का विकास दूसरी पंचवर्षीय योजना का प्रमुख लक्ष्य था। इस अवधि में देश में औद्योगिक क्रांति आ गई। बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना की गई। जिसमें उत्पादन घरेलू खपत के लिए ही नहीं बल्कि विदेशी व्यापार के लिये किया जाने लगा। जुलाई, 1991 से निजीकरण, उदारीकरण, भूमंडलीकरण (Privatization, libralization, Globalization) को विशेष बढ़ावा दिया गया। उद्योगों में पूंजीनिवेश के लिये नियमों का सरलीकरण किया गया। निवेशों को अधिक सुरक्षा प्रदान की गई।

3. पश्चिमीकरण (Westernization)-ब्रिटिश काल के दौरान भारतीय समाज में हुए परिवर्तनों को पश्चिमीकरण कहते हैं। अंग्रेजों के प्रभावाधीन भारत में सामंतवाद, लौकिकीकरण तथा तर्कवाद का विकास हुआ। देश में नववर्ग का उदय हुआ। यातायात एवं संचार साधनों तथा उद्योगों का विकास हुआ। लोकतंत्रीकरण का विकास हुआ। प्रशासनिक, वैधानिक, न्यायिक ढांचे तथा बैंकिंग, बीमा आदि वित्तीय संस्थाओं का विकास हुआ। भारतीय समाज में पश्चिमीकरण से आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिला।

4. प्रौद्योगिक विकास (Technological Development)-भारत में तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी का विकास बड़ी तीव्र गति से हो रहा है। देश में हवाई जहाज़, समुद्री जहाज़, रेल, टैंक, सुपर कंप्यूटर , प्रक्षेपास्त्र, (Missile), उपग्रहों का विकास भारत में बढती प्रौदयोगिकी का स्वयं ही सिदध प्रमाण है। अंतरिक्ष प्रौदयोगिकी (Space Technology) में तो भारत सुपर पावर (Super Power) बन गया है। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास ने तो देश को एक परिवार के रूप में परिवर्तित कर दिया है।

मोबाइल पर अगम्य क्षेत्रों, पहाड़ों, जंगलों से व्यक्ति मोबाइल पर भारत में ही नहीं विश्व के किसी भी क्षेत्र में लोगों से बात कर सकता है। इंटरनैट (Internet) से सूचना क्रांति आ गई है। बायो-प्रौद्योगिकी (Bio-Technology) के क्षेत्र में काफ़ी वृद्धि हुई है।

5. लोकतंत्रीकरण (Democratization)-“भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है” धर्म, प्रजाति, जाति व जन्म, स्थान के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी भारतीयों को समान रूप से मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। किसी भी व्यवसाय को अपनाने, देश के किसी भी भाग में घूमने-फिरने, वयस्क मताधिकार, चुने जाने का सभी नागरिकों को अधिकार है। प्रदेश की सरकारें जनता द्वारा 5 वर्ष के लिये चुनी जाती है।

जो सरकार जनता के हितों की अनदेखी करती है। जनता उसे आगामी चुनावों में वोट न डालकर बदल देती है। स्वतंत्र न्यायपालिका, स्वतंत्र प्रैस, संवैधानिक शक्तियां प्राप्त नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) तथा चुनाव आयोग देश के लोकतंत्र को सशक्त आधार प्रदान करते हैं। लेकिन देश के लगभग एक तिहाई लोग निरक्षर तथा ग़रीबी रेखा के नीचे होने के कारण विशेषतः ऐसे लोग अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाते।

नित नये क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के गठन के कारण, पुराने दलों में विभाजन के कारण तथा राजनीतिज्ञों की वाक्-पटुता के कारण सांसद् और विधान सभाओं में कई अपराधी जीत कर चुने जाते हैं। राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण तथा. अपराध के बढ़ते राजनीतिकरण के कारण भारत की लोकतंत्र की गरिमा को आघात पहुंचता है।

6. शिक्षा का प्रसार (Expansion of Education)-स्वतंत्रोपरांत साक्षरता दर बढ़ाने के उद्देश्य से देश में विभिन्न स्तरों के लाखों शैक्षिक संस्थान खोले गये। 20वीं शताब्दी विशेषतः स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। सन् 1901 में देश की साक्षरता दर मात्र 5 प्रतिशत थी, जिसमें स्त्रियों एवं पुरुषों में साक्षरता दर क्रमशः 0.60 प्रतिशत तथा 9.83 प्रतिशत थी अर्थात् 500 महिलाओं में से केवल 1 महिला शिक्षित थी।

1951 में देश में साक्षरता दर 18 प्रतिशत थी लेकिन सन 2011 में जनगणना के अनुसार साक्षरता दर 75 प्रतिशत है। पुरुष और महिला में साक्षरता दर लगभग 82% तथा 65% है। केरल, मिज़ोरम, गोआ, महाराष्ट्र तथा हिमाचल प्रदेश सबसे अधिक साक्षर राज्य हैं। बिहार तथा झारखण्ड सबसे कम साक्षरता दर वाले राज्य हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में लक्ष्यद्वीप तथा दिल्ली में सबसे अधिक साक्षर है।

7. आवागमन एवं संचार साधनों का विकास (Development of Transportation and Communication) भारत में स्वतंत्रोपरांत यातायात एवं दूरसंचार के साधनों में काफ़ी विकास हुआ है। देश के कोने-कोने को राष्ट्रीय उच्चमार्गों (National Highways) तथा रेलमार्गों (Railways Lines) से जोड़ा गया है। बसों, रेलों, कारों, टैक्सियों, हवाई जहाजों, नावों तथा समुद्री जहाजों से यातायात के साधनों में क्रांतिकारी परिवर्तन आये हैं। डाक एवं तार, दूरभाष, (Telephone) मोबाइल फोन, पेज़र, फैक्स, ई-मेल तथ इंटरनैट इत्यादि संचार माध्यमों से संचार क्षेत्र में क्रांतिकारी विकास हुआ है। अतः यातायात एवं संचार साधनों से भारतीय समाज के आधुनिकीकरण की गति बढी

8. जनभागीदारी में वृद्धि (Increase in People Participation)-स्वतंत्रोपरांत देश में कई लोकसभा तथा अनेक बार राज्यों की विधान-सभाओं, पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं के चुनाव हो चुके हैं जिसमें लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। देश की जनता की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक गतिविधियों में बढ़ती भागीदारी भारतीय समाज के आधुनिकीकरण का सूचक है।

9. मानवतावाद (Humanitarianism)-आज़ादी के पश्चात् भारत में मानवतावाद को बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया। जाति, धर्म, रंग, लिंग तथा जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी भारतीयों को मौलिक अधिकार प्रदान किये गये। पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों (SCs, STs and OBCs) के उत्थानार्थ अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम चलाए गये हैं।

10. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का विकास (Development of International Cooperation)-भारत के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में निरंतर वदधि हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सरक्षा स्थापित करने के उददेश्य से 24 अक्तबर, 1945 को गठित विश्व के सबसे बड़े संगठन संयुक्त राष्ट्र (United Nations) का भारत मूल सदस्यों में से है। भारत विश्व व्यापार संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन तथा दक्षेस (SAARC) आदि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का सदस्य है जिसमें वह सक्रिय रूप से भाग लेता है। विश्व के विभिन्न देशों में संघर्षों के समाधान हेतु भी भारत शांति सेनाएं भेजकर महत्पूर्ण योगदान देता है।

11. विशिष्ट भूमिकाएं (Specialized Roles)-विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट भूमिकाएं अभिनीत करने के लिये बल दिया जाता है। डॉक्टर, इंजीनियर, प्राध्यापक, वैज्ञानिक, या व्यावसायिक पेशेवर (Professionals) अपनी अलग अलग भूमिका निभाते हैं। विभिन्न विषयों समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र, अंग्रेजी, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, इत्यादि के अलग-अलग प्राध्यापक होते हैं। अपने-अपने क्षेत्र में विशेषीकरण (Specialization) प्राप्त व्यक्तियों द्वारा भूमिका अभिनीत करना आधुनिकीकरण को दर्शाता है।

12. मशीनी सैन्यीकरण (Mechanical Militarization) स्वतंत्रता के समय भारतीय सेना मुख्यतः पैदल सेना (Marching army) थी। वर्तमान समय में तीनों सेनाओं, थल सेना, वायसेना, जलसेना, (Army, Airforce and Navy) के पास आधुनिकतम हथियार एवं संयंत्र हैं। स्वचालित हथियार टैंक, लड़ाकू जहाज़, मिग 21, 27 व 29 मिराज तथा जगुआर) युद्धपोत, पनडुब्बियां प्रेक्षपास्त्र (अग्नि, पृथवी, त्रिशूल तथा नाग इत्यादि) परमाणु हथियारों तथा अन्य उपकरणों से युक्त भारतीय सेनाएं विश्व की आधुनिक सेनाओं में से एक है। जिनमें लगभग 14 लाख सैनिक देश की सीमाओं को सुरक्षा प्रदान करते हैं।

13. कृषि विकास (Agricultural Development)-भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् कृषि का विकास हुआ है। आजादी के बाद कुछ वर्षों तक खाद्यान्न आपूर्ति के लिये विदेशों से अनाज आयात करता था। मगर उन्नत बीजों (High Yield Variety Seeds) उर्वरकों (Fertilizers) तथा कीटनाशकों (Insecticides) के विकास, वैज्ञानिक कृषि उपकरणों में उपयोग तथा सिंचाई व्यवस्था के विकास के कारण 1960 के दशक के मध्य 1965-66 में देश में हरित क्रांति आई।

खाद्यान्न उत्पादन तथा उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने, हल के स्थान पर ट्रैक्टरों का प्रयोग आदि से जहां 1950 में देश में लगभग 5 करोड़ टन का उत्पादन होता था। वर्तमान समय में 20 करोड़ टन से अधिक खाद्यान्न उत्पन्न होने लगा। अब भारत खाद्यान्नों का निर्यात करने लगा है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। कृषि विकास से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है तथा विभिन्न उद्योगों के लिये पर्याप्त सस्ता कच्चा माल मिलने लगा है।

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HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 5 Indigo

Haryana State Board HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 5 Indigo Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class English Indigo Textbook Questions and Answers

Question 1.
Why do you think Gandhi considered the Champaran episode to be a turning-point in his life? (आपके विचार से गाँधी चम्पारन की घटना को अपने जीवन का अहम् मोड़ क्यों मानते थे ?)
Or
[2018 (Set-B)] The Champaran episode was a turning point in Gandhiji’s life. Elucidate. (चम्पारन की घटना से गाँधी जी के जीवन में अहम मोड़ आया। स्पष्ट करें।)[H.B.S.E. March, 2019 (Set-C)]
Answer:
In 1917, Mahatma Gandhi went to Champaran. There he saw the miserable condition of the peasants. He fought against the injustice being done to the peasants by the British landlords. The peasants had been cheated by the landlords. They had taken money from them in the name of freeing them from the 15 percentage arrangements. Now the peasants wanted their money back. Gandhi took up their case. The police ordered him to leave Champaran. But he did not obey the orders.

He fought for the rights of the peasants. He had long meetings with the authorities. In the end, the landlords agreed to give back 25 percentage money to the farmers. According to Gandhi, money was not important. It was important that the British landlords had lost the case and their prestige. That incident was a turning point in Gandhi’s life. This was the first victory of satyagraha and non-violent movement in India. This episode taught Gandhi the power of satyagraha.

(1917 में, महात्मा गाँधी चम्पारन गए। वहाँ उन्होंने किसानों की दुर्दशा देखी। उन्होंने ब्रिटिश जमींदारों द्वारा किसानों के प्रति किए जाने वाले अन्याय के खिलाफ लड़ाई की। किसानों को जमींदारों ने धोखा दिया था। उन्होंने किसानों से उन्हें 15 प्रतिशत की शर्त से मुक्त करने के नाम पर पैसा लिया था। अब किसान अपना पैसा वापिस माँगते थे। गाँधी ने उनके मामले को अपने हाथ में लिया। पुलिस ने उन्हें चम्पारन छोड़ने का आदेश दिया। मगर उस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया। वे किसानों के अधिकारों के लिए लड़े। उन्होंने अफसरों के साथ लम्बी सभाएं की। अन्त में जमींदार 25 प्रतिशत पैसा किसानों को देने के लिए राजी हो गए। गाँधी के अनुसार, पैसा महत्त्वपूर्ण नहीं था। यह महत्त्वपूर्ण था कि ब्रिटिश जमींदार केस और सम्मान हार गए थे। यह घटना गाँधी के जीवन में एक मोड़ साबित हुई। यह सत्याग्रह और अहिंसक आन्दोलन की पहली जीत थी। इस घटना ने गाँधी को सत्याग्रह की शक्ति की शिक्षा दी।)

Question 2.
How was Gandhi able to influence lawyers? Give instances. (गाँधी वकीलों को प्रभावित करने में कैसे सफल हो गए ? उदाहरण दो।)
Answer:
Gandhi proceeded to Champaran to see for himself the pitiable condition of the farmers. On the way he stopped at Muzzafarpur in order to obtain information about the peasants. The news of Gandhi’s coming spread among the lawyers of Muzzafarpur. They came to meet Gandhi. They gave him information about the peasants of Champaran. They told Gandhi that they frequently represented peasant groups in courts. Gandhi rebuked the lawyers for collecting big fee from the poor peasants. He told that in places like Bihar and Champaran, people were very poor. So the law courts were useless for them.

Gandhi received summons to appear in the court. He telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. Thousands of peasants had gathered round the courthouse. Rajendra Prasad, Brijkishor Babu, Maulana Mazharul Huq and several other lawyers had come from Bihar. They conferred with Gandhi. They told him that they had come to advise him. But if he were put into prison they would not be able to advise him. Gandhi asked him to think of the plight of the poor peasants. The lawyers saw that Gandhi was totally a stranger, yet he was fighting for the peasants of that area. Now the lawyers said that they would follow Gandhi to jail. Gandhi was satisfied. He said that the battle of Champaran had been won.

(गाँधी किसानों की दयनीय हालत स्वयं देखने के लिए चम्पारन को चल दिए। रास्ते में किसानों के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिए मुज़फ्फरपुर में रुके। गाँधी के आने की खबर मुजफ्फरपुर के वकीलों में फैल गई। वे गाँधी से मिलने आए। उन्होंने उन्हें चम्पारन के किसानों के बारे में सूचना दी। उन्होंने गाँधी को बताया कि वे अक्सर किसानों के समूहों का कचहरियों में प्रतिनिधित्व करते हैं। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों से मोटी फीस वसूलने के लिए डाँटा। उन्होंने वकीलों को बताया कि बिहार और चम्पारन जैसे स्थानों पर लोग बहुत गरीब हैं। इसलिए कानूनी कचहरियाँ उनके लिए बेकार हैं। गाँधी को कचहरी में हाजिर होने के लिए कोर्ट का आदेश प्राप्त हुआ। उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजा कि वे अपने प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आ जाए। कचहरी के आस-पास हजारों किसान इकट्ठे हो गए थे। राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर बाबू, मौलाना मजहरूल हक और कई वकील बिहार से आए थे। उन्होंने गाँधी से विचार-विमर्श किया।

उन्होंने उनसे कहा कि वे तो उन्हें सलाह देने आए हैं। लेकिन अगर वे जेल चले गए तो वे उन्हें सलाह नहीं दे पाएँगे। तब वे घर चले जाएँगे। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने के लिए कहा। वकीलों ने देखा कि गाँधी पूरी तरह से अजनबी हैं, फिर भी वे उस इलाके के किसानों के लिए लड़ रहे थे। अब वकीलों ने कहा कि वे गाँधी के पीछे जेल के अन्दर तक जाएँगे। गाँधी सन्तुष्ट हो गए। उन्होंने कहा कि चम्पारन की लड़ाई जीत ली गई है।)

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Question 3.
What was the attitude of the average Indian in smaller localities towards advocates of ‘home rule’? (छोटी बस्तियों में सामान्य भारतीय का ‘होमरूल’ के पक्षधरों के प्रति क्या दृष्टिकोण था ?)
Answer:
Home rule means the right of a country and its people to govern itself. In those days India was governed by Britain. The people of India wanted to be free from the foreign rule. However, before the coming of Gandhi, there was no mass movement against the British. The condition of people, especially the peasants, was really pitiable. They were exploited by the landlords and the officials. The average people wanted to get rid of the British rule. But they needed someone to motivate and encourage them.

Gandhi went to Champaran to alleviate the suffering of the peasants. He asked for the help of common people. Before going to Champaran, he spent two days at Muzzafarpur. There he stayed in the house of Professor Malkani, a teacher in a government school. Gandhi commented that it was an extraordinary thing in those days for a government professor to give shelter to a man like him. A number of lawyers like Dr. Rajendra Prasad also reached there and helped Gandhi. Thus the average Indian was in favour of the home rule. But he needed a good leader to guide him.

(होमरूल का अर्थ है कि किसी देश और उसके लोगों के द्वारा स्वयं पर शासन करना। उन दिनों में भारत पर ब्रिटेन का शासन था। भारत के लोग विदेशी शासन से मुक्त होना चाहते थे। लेकिन, गाँधी के आने से पहले, अंग्रेजों के खिलाफ कोई विशाल जन-आन्दोलन नहीं था। लोगों की, विशेष तौर पर किसानों की, हालत सचमुच दयनीय थी। जमींदार और उनके एजेन्ट उनका शोषण करते थे। आम व्यक्ति ब्रिटिश शासन से छुटकारा पाना चाहता था। मगर उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए था जो उन्हें उकसा और प्रेरित कर सके। गाँधी किसानों के कष्टों को कम करने के लिए चम्पारन गए। उन्होंने आम व्यक्ति से सहायता की माँग की। चम्पारन जाने से पहले उन्होंने दो दिन मुज़फ्फरपुर में बिताए। वहाँ सरकारी स्कूल में एक प्राध्यापक मलकानी के घर में रुके। गाँधी ने कहा कि उन दिनों में यह एक असाधारण बात थी कि कोई सरकारी प्राध्यापक उस जैसे व्यक्ति को अपने घर में शरण दें। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जैसे कई वकील भी वहाँ पर आए और उन्होंने गाँधी की सहायता की। इस प्रकार एक सामान्य व्यक्ति भी होमरूल के पक्ष में था। मगर नेतृत्व के लिए किसी अच्छे नेता की आवश्यकता थी।)

Question 4.
How do we know that ordinary people too contributed to the freedom movement? (हमें कैसे मालूम होता है कि सामान्य लोगों ने भी स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान दिया ?)
Answer:
Gandhi’s biggest contribution to the freedom movement is that he awakened the common people. He had realized that no freedom movement can be successful until the common people are involved in it. Leaders can only give guidance and direction to the people. Before the coming of Gandhi, the common people were indifferent to the freedom movement. They wanted to get rid of the foreign rule. But they were fear ridden. They were afraid of the police and the landlords. But with the coming of Gandhi, everything changed. Gandhi came to know of the plight of the peasants of Champaran. He went there and told the peasants that there was nothing to fear.

He taught them to be fearless and to raise their voice against their oppression. His words had immediate effect. When Gandhi was tried in a court, more than ten thousand peasants surrounded the courts. In the end, the peasants won and the British landlord returned their estates to them. Such mass movements had their effect in the others parts of India also. In the end the people won and the British had to leave the country.

(आज़ादी की लड़ाई में गाँधी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने आम व्यक्ति को जागृत किया। उन्होंने यह महसूस किया था कि कोई भी स्वतन्त्रता आन्दोलन तब तक कामयाब नहीं हो सकता जब तक लोग उसमें शामिल न हो। नेता तो केवल लोगों को दिशा-निर्देश दे सकते हैं। गाँधी के आने से पहले, आम व्यक्ति आजादी के संघर्ष के प्रति उदासीन थे। वे विदेशी शासन से छुटकारा पाना चाहते थे। मगर वे भय से ग्रस्त थे। वे पुलिस और जमींदारों से डरते थे। मगर गाँधी के आने से, हर चीज बदल गई। गाँधी को चम्पारन के किसानों की दुर्दशा के बारे में पता चला। वे वहाँ गए और किसानों को कहा कि डरने की कोई बात नहीं है। उन्होंने उन्हे निडर होने और शोषण के खिलाफ अपनी आवाज उठाना सिखाया। उनके शब्दों का फौरन प्रभाव हुआ। जब गाँधी का कचहरी में मुकद्दमा चला, तो दस हजार से अधिक लोगों ने कचहरी को घेर लिया। अन्त में किसान जीत गए और ब्रिटिश जमींदार ने उनकी जमीने उन्हें लौटा दी। इस प्रकार के विशाल जन-आन्दोलनों का भारत के अन्य भागों पर भी असर हुआ। आखिर लोग जीत गए और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।)

Think As You Read
Question 1.
Strike out what is not true in the following: (निम्नलिखित में से जो सही नहीं है उसे छाँटो-)
(a) Rajkumar Shukla was
(i) a sharecropper,
(ii) a politician,
(iii) delegate,
(iv) a landlord.

(b) Rajkumar Shukla was
(i) poor,
(ii) physically strong,
(iii) illiterate.
Answer:
(a) (ii) a politician, (iv) a landlord.
(b) (ii) physically strong.

Question 2.
Why is Rajkumar Shukla described as being ‘resolute’ ? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-B)] (राजकुमार शुक्ला का वर्णन ‘दृढ़-निश्चयी’ के रूप में क्यों किया गया है ?)
Answer:
Rajkumar Shukla was a poor farmer of Champaran. The poor peasants of his area were being exploited by the British landlords. He wanted that Gandhi should fight against that injustice. He met Gandhi at the Lucknow session. But Gandhi was not free. So Shukla accompanied Gandhi wherever he went and repeated his request. He even went to Gandhi’s ashram at Ahmedabad. He went to Calcutta also. Gandhi was impressed by his tenacity and finally went with him to Champaran. Thus, Rajkumar Shukla was a resolute man.

(राजकुमार शुक्ला चम्पारन का एक गरीब किसान था। उसके इलाके के गरीब किसानों का ब्रिटिश जमींदारों द्वारा शोषण किया जा रहा था। वह चाहता था कि गाँधी उस अन्याय के विरुद्ध लड़ाई करें। वह गाँधी को लखनऊ के अधिवेशन में मिला। मगर गाँधी व्यस्त थे। इसलिए जहाँ भी गाँधी गए शुक्ला वहीं गया और अपनी प्रार्थना को दोहराया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। वह कलकत्ता भी गया। गाँधी उसके निश्चय से प्रभावित हो गए और आखिर उसके साथ चम्पारन गए। इस प्रकार, राजकुमार शुक्ला एक दृढ़-निश्चय वाला व्यक्ति था।)

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Question 3.
Why do you think the servants thought Gandhi to be another peasant ? (आपके विचार से नौकरों ने गाँधी को कोई अन्य किसान क्यों समझा ?)
Or
How was Gandhiji treated at Rajendra Prasad’s house? [H.B.S.E. 2019 (Set-B), 2020 (Set-D)] (राजेन्द्र प्रसाद के घर में गाँधी जी के साथ कैसा व्यवहार किया गया था ?)
Answer:
In Patna, Rajkumar Shukla took Gandhi to the house of Rajendra Prasad who later became the first President of India. At that time Rajendra Prasad was not at home. The servants knew Rajkumar Shukla as he often visited their master. They thought that Gandhi was also a peasant.
(पटना में, राजकुमार शुक्ला गाँधी को राजेन्द्र प्रसाद के घर ले गया जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने। उस समय राजेन्द्र प्रसाद घर पर नहीं थे। नौकर राजकुमार शुक्ला को जानते थे क्योंकि वह अक्सर उनके मालिक के पास आता था। उन्होंने सोचा कि गाँधी भी कोई किसान है।)

Question 4.
List the places that Gandhi visited between his first meeting with Shukla and his arrival at Champaran. (शुक्ला से अपनी पहली मुलाकात एवं चम्पारन पहुँचने के बीच जिन स्थानों पर गाँधी गए उनकी सूची बनाइए।)
Answer:
Rajkumar met Gandhi in Lucknow. From there Gandhi went to Kanpur and Shukla went with him. After that Gandhi returned to his ashram at Ahmedabad. Shukla visited Gandhi even there. From there Gandhi visited Calcutta. Shukla came there also. Here, Gandhi and Shukla boarded a train for Patna. Then he came to Muzzafarpur. From there he went to Motihari. Finally he came to Champaran.
(राजकुमार शुक्ला गाँधी को लखनऊ में मिला। वहाँ से गाँधी कानपुर गए और शुक्ला उनके साथ गया। उसके बाद गाँधी अहमदाबाद में अपने आश्रम में लौट आए। शुक्ला गाँधी को वहाँ पर भी मिलने आया। वहाँ से गाँधी कलकत्ता आए। शुक्ला वहाँ भी आया। यहाँ पर, गाँधी और शुक्ला ने पटना के लिए गाड़ी पकड़ी। फिर वे मुज़फ्फरपुर आए। वहाँ से वे मोतीहारी गए। अन्त में वे चम्पारन आए।)

Question 5.
What did the peasants pay the British landlords as rent? What did the British now want instead and why? What would be the impact of synthetic indigo on the prices of natural indigo? (किसान ब्रिटिश जमींदारों को लगान के रूप में क्या देते थे ? अब इसके बदले अंग्रेज क्या और क्यों चाहते थे ? कृत्रिम नील का प्राकृतिक नील की कीमतों पर क्या प्रभाव पड़ता ?)
Answer:
The peasants planted indigo on 15 per cent of their land. They surrendered the entire indigo harvest as rent of their land. Then the landlords learnt that Germany had developed synthetic indigo. Now they agreed to free the peasants from the 15% agreement. But they wanted compensation for this. With the arrival of the synthetic indigo in the market, the prices of the natural indigo would fall sharply. When the peasants learnt this, they wanted their money back.

(किसान अपनी धरती के 15 प्रतिशत भाग पर नील की खेती करते थे। वे नील की पूरी फसल को लगान के रूप में जमींदार को देते थे। तब जमींदारों को पता चला कि जर्मनी में कृत्रिम नील का अविष्कार हो गया है। अब वे किसानों को 15 प्रतिशत के अनुबन्ध से आजाद करने के लिए राजी हो गए। मगर वे इसके लिए मुआवज़ा चाहते थे। बाजार में कृत्रिम नील के आने से, प्राकृतिक नील के दाम तेजी से गिर जाएँगे। जब किसानों को इस बात का पता चला, तो वे अपना पैसा वापिस माँगने लगे।)

Question 6.
The events in this part of the text illustrate Gandhi’s method of working. Can you identify some instances of this method and link them to his ideas of satyagraha and non-violence? (पाठ के इस भाग की घटनाएँ गाँधी के काम करने के तरीके को दर्शाती हैं। क्या आप इस तरीके के कुछ उदाहरणों को पहचान सकते हैं और उन्हें उनके सत्याग्रह और अहिंसा के तरीकों से जोड़ सकते हैं ?)
Answer:
Gandhi respected the legal authority. So he obeyed the order of the police to return to town. But for the sake of natural justice and human values, he could defy the authorities. He received an official order to leave Champaran immediately. Gandhi declared that he would not obey that order. But he believed in nonviolence. When the big crowds surrounded the court, he pacified the people. But he did not admit defeat. These instances are linked with Gandhi’s ideas of satyagraha and non-violence.

(गाँधी कानूनी सत्ता का आदर करते थे। इसलिए उन्होंने पुलिस के शहर में लौट जाने के आदेश का पालन किया। मगर प्राकृतिक न्याय और मानवीय मूल्यों के लिए, वे सत्ता का विरोध कर सकते थे। उन्हें चम्पारन फौरन छोड़ देने का सरकारी आदेश मिला। गाँधी ने कहा है कि वे उस आदेश का पालन नहीं करेंगे। मगर वे अहिंसा में विश्वास करते थे। जब बहुत बड़ी भीड़ ने कचहरी को घेर लिया, तो उन्होंने लोगों को शान्त करवाया। मगर उन्होंने हार नहीं मानी। ये उदाहरण गाँधी के सत्याग्रह और अहिंसा के विचारों से जुड़े हुए हैं।)

Question 7.
Why did Gandhi agree to a settlement of 25 per cent refund to the farmers? (गाँधी किसानों के लिए 25 प्रतिशत पैसा लौटाने पर सहमत क्यों हो गए ?)
Answer:
Gandhi thought that the amount of refund was less important than the fact that the landlords had agreed to surrender a part of their money. It was a moral victory for the farmers and the loss of prestige for the British landlords. The peasants learnt to be courageous and were freed from fear. That is why, Gandhi agreed to a settlement of 25 per cent refund to the farmers.

(गाँधी ने सोचा कि पैसा वापिसी की राशि इस बात से कम महत्त्वपूर्ण है कि जमींदार अपने पैसे का कुछ भाग देने के लिए राजी हो गए थे। यह किसानों की नैतिक जीत थी और ब्रिटिश जमींदारों के सम्मान का नुक्सान था। किसानों ने हिम्मती होना सीखा और भय से मुक्त हो गए। इसलिए, गाँधी किसानों को 25 प्रतिशत पैसा वापसी पर राजी हो गए।)

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Question 8.
How did the episode change the plight of the peasants? (इस घटना ने किसानों की दुर्दशा को कैसे बदल दिया ?)
Answer:
This episode changed the condition of the peasants of Champaran. Now they realized that they had legal rights. They attained confidence because they knew that there were people to defend them. Within a few years, the British landlords abandoned their estates. These were given back to the peasants. Now the peasants were their own masters.

(इस घटना ने चम्पारन के किसानों की हालत को बदल दिया। अब उन्होंने महसूस किया कि उनके कानूनी अधिकार हैं। उनमें विश्वास आ गया क्योंकि वे जान गए कि उनका बचाव करने वाले लोग भी हैं। कुछ सालों में, ब्रिटिश जमींदारों ने अपनी जमीन को छोड़ दिया। ये जमीन किसानों को वापिस कर दी गई। अब किसान अपनी जमीन के खुद मालिक थे।)

Talking About The Text

Discuss the following:
Question 1.
“Freedom from fear is more important than legal justice for the poor.” Do you think that the poor of India are free from fear after Independence? (“गरीबों के लिए कानूनी न्याय से अधिक महत्त्वपूर्ण है भय से मुक्ति।” क्या आपके अनुसार आजादी के बाद भारत के गरीब लोग भय से मुक्त हैं ?)
Answer:
Gandhi believed that freedom from fear is more important than legal justice. Gandhi went from village to village throughout India. He told the poor people not to fear the police, the landlords and the British. He told them that fear was their worst enemy. His words had magic effect on the people. The poor and unarmed people became ready to face the lathis and bullets of the British. In the end, the people won and the British had to leave the country.

After the independence, Indians are politically free and do not have to fear any foreign rule. Yet it is wrong to say that they are totally free from fear. There are other kinds of fear. For example, for the poor, the biggest fear is to keep the body and the soul together. Poor peasants are not economically free. They are exploited by landlords and government officials. Those who don’t have any land and work as labourers are also not free from the fear of hunger. They don’t have security of service. Thus the poor people of India are still not free from fear.

(गाँधी का मानना था कि भय से मुक्ति कानूनी न्याय से अधिक आवश्यक है। गाँधी पूरे भारत में गाँव-गाँव गए। उन्होंने गरीब लोगों से कहा कि वे पुलिस, जमीदारों और अंग्रेजों से न डरे। उन्होंने उन्हे कहा कि भय उनका सबसे बड़ा शत्रु है। उनके शब्दों का लोगों पर जादू वाला प्रभाव हुआ। गरीब निहत्थे लोग अंग्रेजों की लाठियों और गोलियों का सामना करने के लिए तैयार हो गए। अन्त में लोग जीत गए और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।

आजादी के बाद, भारतीय लोग राजनीतिक रूप से आजाद हैं और उन्हे किसी विदेशी शासन का भय नहीं है। मगर फिर भी यह कहना गलत है कि वे भय से पूरी तरह मुक्त हैं। अन्य कई प्रकार के भय भी होते हैं। उदाहरण के लिए, गरीबों के लिए, सबसे बड़ा भय है अपना पेट भरना। गरीब किसान आर्थिक रूप से आजाद नहीं हैं। जमींदार और सरकारी कर्मचारी उनका शोषण करते हैं। वे लोग जिनके पास कोई ज़मीन नहीं है और वे मजदूरी करते हैं, वे भी भूख के डर से मुक्त नहीं हैं। उनके पास नौकरी की सुरक्षा नहीं है। इस प्रकार भारत के गरीब लोग अभी भी भय से मुक्त नहीं हैं।)

Question 2.
The qualities of a good leader. (एक अच्छे नेता के गुण।)
Answer:
A leader must have the qualities of head and heart. He has the power and understanding of leading the people. A good leader does not only preach. He practices whatever he preaches. He leads from the front. He inspires the others by his own example. A good leader has the quality to change the prevalent flow of ideas with his or her great thoughts. Like Mahatma Gandhi, he should be an apostle of truth and non-violence. He must have moral courage. The today’s world is full of so-called leaders. But most of them are not true leaders. They only mislead the people and ruin their lives. A writer says that the words of a false leader ring like a film song. These words delight us when we hear. But they put us in the back gear. A true leader is selfless. He rises above petty religious, communal or political gains. A true leader is simple in living but has high thoughts. Such leaders are rare these days.

(एक नेता में दिमाग और दिल के गुण अवश्य होने चाहिएँ। उसमें लोगों का मार्ग-दर्शन करने की शक्ति और समझ होती है। एक अच्छा नेता केवल उपदेश नहीं देता। जो कुछ वह उपदेश देता है उस पर खुद भी अमल करता है। वह आगे से नेतृत्त्व करता है। वह अपने उदाहरण से लोगों को प्रेरित करता है। एक अच्छे नेता में अपने विचारों से प्रचलित विचारों के प्रवाह को रोकने का गुण होता है। महात्मा गाँधी की तरह, उसे सच्चाई और अहिंसा का मसीहा होना चाहिए। उसमें नैतिक साहस अवश्य होना चाहिए। आजकल का संसार तथाकथित नेताओं से भरा हुआ है।

मगर उनमें से अधिकतर सच्चे नेता नहीं हैं। वे केवल लोगों को गुमराह करते हैं और उनका जीवन नष्ट कर देते हैं। एक लेखक कहता है कि एक गलत नेता के शब्द फिल्म के गानों की तरह होते हैं। ये शब्द सुनने में अच्छे लगते हैं। मगर ये हमें उल्टे रास्ते में डाल देते हैं। एक सच्चा नेता निःस्वार्थ होता है। वह छोटे धार्मिक, साम्प्रदायिक और राजनीतिक फायदों से ऊपर उठा होता है। एक सच्चा नेता रहन-सहन में सादा मगर विचारों में ऊँचा होता है। आजकल ऐसे नेता दुर्लभ हैं।)

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Working With Words

List the words used in the text that are related to legal procedures.
List other words that you know that fall into this category.
Answer:
For example: deposition Other words which fall into this category :
prosecutor – judgement – trial – sentence – pleading – penalty – evidence-bail – document.

Thinking About Language

Question 1.
Notice the sentences in the text which are in direct speech. Why does the author use quotations in his narration?
Answer:
The author uses the direct speech to describe the direct experience of the incidents mentioned in the lesson. He uses the direct speech to enhance the effect of narration.

Question 2.
Notice the use or non-use of the comma in the following sentences :
(a) When I first visited Gandhi in 1942 at his ashram in Sevagram, he told me what happened in Champaran.
(6) He had not proceeded far when the police superintendent’s messenger overtook him.
(c) When the court reconvened, the judge said he would not deliver the judgment for several days.
Answer:
In sentences (a) and (c) the comma indicates a pause or a short interval between two actions. In sentence
(a) the interval is between the visit of the author and the telling of Gandhi. In sentence
(c) the interval is between the reconvening of the court and the statement of the judge. As there is no pauses between the two activities described in sentence (b), no comma has been used.

Things To Do
1. Choose an issue that has provoked a controversy like the Bhopal Gas Tragedy or the Narmada
Dam Project in which the lives of the poor have been affected.
2. Find out the facts of the case.
3. Present your arguments.
4. Suggest a possible settlement.
Answer:
For self-attempt, with the help of the teacher.

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Short Answer Type Questions
Answer the following questions in about 20-25 words : 

Question 1.
Who was Louis Fischer? What did Gandhi tell him? [H.B.S.E. 2017 (Set-A)] (लुई फिशर कौन था ? गाँधी ने उसे क्या बताया ?)
Answer:
Louis Fischer was an American writer. He was a friend and follower of Gandhi. In 1942, Louis Fischer visited Mahatma Gandhi at his ashram in Sevagram. Gandhi told him how in 1917, he decided to fight for the departure of the British from India.
(लुई फिशर एक अमेरिकी लेखक था। वह गाँधी का मित्र एवं अनुयायी था। 1942 में, लुई फिशर गाँधी से मिलने उनके आश्रम सेवाग्राम में गया। गाँधी ने उसे बताया कि किस प्रकार 1917 में, उन्होंने भारत से अंग्रेजों को निकालने के लिए संघर्ष करने का इरादा किया।)

Question 2.
Where did Rajkumar Shukla meet Gandhi? [H.B.S.E. 2017, 2020 (Set-B)] (राजकुमार शुक्ला गाँधी को कहाँ मिला ?)
Or
Why did Gandhiji go to Lucknow in December 1916 ? Who met him there and why? (दिसंबर 1916 में गांधीजी लखनऊ क्यों गए? वहां उनसे कौन मिला और क्यों?) [H.B.S.E. 2019 (Set-A)]
Answer:
In 1916, Mahatma Gandhi went to Lucknow to attend the annual convention of the Indian National Congress Party. There were 2301 delegates. Apart from the delegates, there were number of visitors also. There, a peasant named Rajkumar Shukla met him. He had come from Champaran to meet Gandhi. He requested Gandhi to visit his district and find a solution to problems of peasants. He complained about the injustice of the landlords of Bihar.

(1916 में, महात्मा गाँधी लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने गए। वहाँ पर 2,301 प्रतिनिधि थे। प्रतिनिधियों के अलावा, वहाँ पर बहुत-से अतिथि भी थे। वहाँ, राजकुमार शुक्ला नाम का एक किसान उन्हें मिला। वह गाँधी से मिलने चम्पारन से आया था। उन्होंने गाँधी जी से अनुरोध किया कि वे उसके जिले में चले और गरीब किसानों की समस्या का कोई समाधान निकाले। उसने गाँधी जी को बिहार के जमींदारों द्वारा किए गए अन्याय के विषय में शिकायत की।)

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Question 3.
What did Gandhi tell Rajkumar Shukla when he requested him to visit Champaran? (जब राजकुमार शुक्ला ने गाँधी से चम्पारन जाने की प्रार्थना की तो उन्होंने क्या कहा ?) [H.B.S.E. 2017 (Set-D)]
How did Gandhi express his inability to accompany Rajkumar Shukla? (गाँधी जी ने अपनी असमर्थता राजकुमार शुक्ला के साथ कैसे व्यक्त की?) [H.B.S.E. 2019 (Set-D)]
Answer:
Rajkumar Shukla requested Gandhi to visit his district and find a solution to the problems of peasants. He complained about the injustice of the landlords of Bihar. Rajkumar Shukla was illiterate. But he had strong determination. He accompanied Gandhi wherever he went. He even went to Ahmedabad at Gandhi’s ashram. In the end, Gandhi told Shukla to meet him in Calcutta. Then he could take Gandhi with him to Champaran.

(राजकुमार शुक्ला ने गाँधी से प्रार्थना की कि वे उसके जिले में आएँ और किसानों की समस्याओं का कोई हल निकालें। उसने बिहार के जमींदारों के अन्याय की शिकायत की। राजकुमार शुक्ला अनपढ़ था। मगर वह पक्के इरादे वाला था। जहाँ भी गाँधी गए वह साथ-साथ गया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। अंत में, गाँधी ने शुक्ला से उन्हें कलकत्ता में मिलने को कहा। वहाँ से वह उन्हें अपने साथ चम्पारन ले जा सकता था।)

Question 4.
How did Rajkumar Shukla succeed in persuading Gandhiji to visit Champaran? (राजकुमार शुक्ला ने गाँधी जी को चम्पारन ले जाने के लिए कैसे सफलता हासिल की ?)
Or
Why did Gandhiji ultimately go with Shukla to Bihar ? (आखिरकार गाँधी जी राजकुमार शुक्ला के साथ बिहार क्यों गए?)
Answer:
Rajkumar Shukla was a poor farmer of Champaran. The poor peasants of his area were being exploited by the British landlords. He wanted that Gandhi should fight against that injustice. He met Gandhi at the Lucknow session. But Gandhi was not free. So Shukla accompanied Gandhi wherever he went and repeated his request. He even went to Gandhi’s ashram at Ahmedabad. Gandhi was impressed by his determination. He agreed to visit Champaran.

(राजकुमार शुक्ला चम्पारन का एक गरीब किसान था। उसके इलाके के गरीब किसानों का ब्रिटिश जमींदारों द्वारा शोषण हो रहा था। वह चाहता था कि गाँधी उस अन्याय के खिलाफ लड़ें। वह गाँधी को लखनऊ अधिवेशन में मिला। मगर गाँधी के पास समय नहीं था। इसलिए जहाँ भी गाँधी गए वह साथ-साथ गया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। गाँधी उसके पक्के इरादे से प्रभावित हुए। वे चम्पारन आने के लिए राजी हो गए।)

Question 5.
Why was Shukla considered a yeoman? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-A)] (शुक्ला को छोटा किसान क्यों मानते थे?)
Answer:
Shukla met Gandhi ji in Lucknow in 1916. Shukla asked Gandhi ji to come in his district Champaran in Bihar. Gandhi ji consider him a yeoman because he looked like any other peasant in India. (शुक्ला गांधी जी से 1916 में लखनऊ में मिले थे। शुक्ला ने गांधी जी को बिहार में अपने ज़िले चम्पारन में आने के लिए कहा। गांधी जी उसे एक छोटा किसान मानते क्योंकि वह भारत के अन्य दूसरे किसानों जैसा दिखता था।)

Question 6.
Where did Gandhiji go first and why? [H.B.S.E. 2020 (Set-A)] (गाँधी जी पहले कहाँ गए और क्यों?)
Answer:
Gandhi wanted to get complete information about the situation in Champaran. So he went first to Muzzafarpur which was on the way to Champaran. Gandhi sent a telegram to Professor J.B.Kripalani whom he had seen at the Shantiniketan. At Muzzafarpur, he stayed for two days at the house of Prof. Malkani.

(गाँधी चम्पारन की हालत के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए वे पहले मुज़फ्फरपुर गए जो चम्पारन के रास्ते में था। गाँधी ने प्राध्यापक जे. बी. कृपलानी को तार भेजा जिन्हें वह शान्ति निकेतन में मिला था। मुजफ्फरपुर में, वे दो दिन के लिए प्राध्यापक मलकानी के घर पर रुके।)

Question 7.
Why did Gandhi rebuke the lawyers? [H.B.S.E. March, 2018 (Set-C)] (गाँधी ने वकीलों को क्यों डाँटा ?)
Answer:
The news of Gandhi’s arrival spread in Muzzafarpur and Champaran. Farmers from Champaran began arriving to see their Messiah. Muzzafarpur lawyers also came to see Gandhi. They used to represent peasant groups in courts. Gandhi rebuked them for collecting big fees from the sharecroppers. Mahatma Gandhi said that the peasants were crushed and fear-stricken. So taking their cases to the courts was useless.

(गाँधी के आने की खबर मुज़फ्फरपुर और चम्पारन में फैल गई। चम्पारन के किसान अपने मसीहा को देखने आने लगे। मुज़फ्फरपुर के वकील भी गाँधी से मिलने आए। वे कचहरियों में किसानों के समूहों की पैरवी करते थे। गाँधी ने उन्हें किसानों से मोटी फीस वसूलने के लिए डाँटा । महात्मा गाँधी ने कहा कि किसान दबे एवं भयभीत थे, इसलिए उनके केसों को कचहरी में ले जाना बेकार था।)

Question 8.
Why were peasants compelled to surrender their indigo crop to the British landlords? (किसान अपनी नील की फसल अंग्रेज जमींदारों को देने के लिए क्यों बाध्य थे ?)
Answer:
Most of the fertile land in Champaran was owned by the English landlords. Indian peasants worked on them. Indigo was the chief commercial crop. The peasants were compelled to grow indigo on fifteen percent of land and surrender the entire indigo harvest as payment of rent.

(चम्पारन की अधिकतर उपजाऊ धरती के मालिक अंग्रेज थे। भारतीय किसान उनकी ज़मीन पर काम करते थे। नील एक मुख्य वाणिज्यिक फ़सल थी। किसानों को अपनी धरती के पन्द्रह प्रतिशत भाग पर नील की खेती करने के लिए और वह सारी फसल लगान के रूप में दे देने के लिए बाध्य किया जाता था।)

Question 9.
What did the British landlords do when they came to know that Germany had developed synthetic (artificial) indigo? (जब अंग्रेज जमींदारों को पता चला कि जर्मनी ने कृत्रिम नील तैयार कर लिया है तो उन्होंने क्या किया ?)
Answer:
At that time, the landlords learnt that Germany had developed synthetic indigo. Now they obtained agreements from the peasants to pay them compensation for being released from the 15 percent arrangement. Many peasants signed the agreement willingly. Those who resisted, engaged lawyers.

(उस समय ज़मींदारों को पता चला कि जर्मनी ने कृत्रिम नील तैयार कर लिया है। अब उन्होंने किसानों से अनुबंध हासिल कर लिए कि वे उन्हें 15 प्रतिशत की शर्त से आजाद करने के लिए मुआवज़ा देंगे। बहुत-से किसानों ने अनुबंधों पर स्वेच्छा से हस्ताक्षर कर दिए। जिन्होंने विरोध किया उन्होंने अपने वकील कर लिए।)

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Question 10.
At what point did Mahatma Gandhi reach Champaran? (महात्मा गाँधी चम्पारन में किस समय पहुँचे ?)
Answer:
The British landlords took compensation from the peasants for freeing them from surrendering the indigo crop. In the meantime, the information about the synthetic indigo reached the illiterate farmers also. They wanted their money back. At this point Mahatma Gandhi reached Champaran.
(ब्रिटिश जमींदारों ने किसानों को नील की फसल देने की शर्त से उन्हें आजाद करने के लिए किसानों से मुआवज़ा लिया। इस बीच, कृत्रिम नील की खबर अनपढ़ किसानों तक भी पहुंच गई। वे अपना पैसा वापिस माँगने लगे। ऐसे समय पर गाँधी चम्पारन पहुँच गए।)

Question 11.
Which two British officials did Gandhi meet soon after reaching Champaran? What was the outcome of these meetings? (चम्पारन पहुँचने के फौरन बाद गाँधी किन दो अंग्रेज अधिकारियों से मिले ? इन मुलाकातों का क्या परिणाम रहा ?)
Answer:
Gandhi decided to get the facts first. He met the Secretary of the British Landlord’s Association. But he did not give any information to Gandhi. After that, Gandhi met the British official commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. But he bullied Gandhi and asked him to leave Tirhut.

(गाँधी ने पहले तथ्य इकट्ठे करने का फैसला किया। वह ब्रिटिश जमींदार संगठन के सचिव से मिले। मगर उसने गाँधी को कोई तथ्य नहीं बताए। उसके बाद, गाँधी तिरहुत डिवीज़न के ब्रिटिश कमिश्नर से मिले जिसमें चम्पारन जिला आता था। मगर उसने गाँधी से धौंस से बात की और उन्हें तिरहुत छोड़ देने को कहा।)

Question 12.
What order did Gandhi receive from the police superintendent? Did he obey that order? (पुलिस अधीक्षक से गाँधी को क्या आदेश मिला ? क्या उसने उस आदेश का पालन किया ?)
Answer:
Gandhi proceeded to Motihari, the capital of Champaran. A large gathering of people greeted Gandhi at the railway station. In Champaran, Gandhi started his investigations. The police superintendent sent a notice to Gandhi to quit Champaran immediately. But Gandhi refused to obey him.

(गाँधी चम्पारन की राजधानी, मोतीहारी में गए। लोगों के एक बहुत बड़े समूह ने उनका स्वागत रेलवे स्टेशन पर किया। चम्पारन में, गाँधी ने खोज का काम आरम्भ किया। पुलिस सुपरिन्टेंडेंट ने गाँधी को नोटिस भेजा कि वे फौरन चम्पारन छोड़ दें। मगर गाँधी ने उसका आदेश मानने से इन्कार कर दिया।)

Question 13.
Why did thousands of peasants came to Motihari? (हजारों किसान मोतीहारी में क्यों आए ?)
Answer:
The police ordered Gandhi to leave Champaran at once. But Gandhi disobeyed that order. He telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. The farmers of that area came to know that Gandhi, who wanted to help him, was in trouble with the authorities. So, the next morning a large number of farmers came to Motihari.

(पुलिस ने गाँधी को फौरन चम्पारन छोड़ने के लिए आदेश दिया। मगर गाँधी ने उस आदेश का पालन नहीं किया। गाँधी ने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजी कि वे अपने प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आ जाएँ। उन्होंने वायसराय को पूरी रिपोर्ट तार से भेजी। उस इलाके के किसानों को पता चला कि गाँधी जो उनकी सहायता करना चाहते हैं, सत्ता की तरफ से मुसीबत में हैं इसलिए अगले दिन मोतीहारी से बड़ी संख्या में किसान आए।)

Question 14.
Why did the British authorities ask him to help them in controlling the crowd? (अंग्रेज अधिकारियों ने गाँधी से भीड़ को नियन्त्रित करने में उनकी सहायता करने को क्यों कहा ?)
Answer:
The peasants of Champaran demonstrated in thousands around the courthouse at Motihari. That was the beginning of their liberation from fear of the British. The official felt powerless without Gandhi’s cooperation. Gandhi appealed to the crowd to remain peaceful. The prosecutor requested the judge to postpone the trial, as they wanted to consult their superiors.

(चम्पारन के किसानों ने मोतीहारी में कचहरी के चारों ओर हजारों की संख्या में प्रदर्शन किया। यह उनके ब्रिटिश सरकार के भय से आजादी का आरम्भ था। सरकार ने स्वयं को गाँधी के सहयोग के बिना असहाय पाया। गाँधी ने लोगों से शांत रहने की प्रार्थना की। सरकारी वकील ने जज से कहा कि वह मुकद्दमा स्थगित कर दे क्योंकि वे अपने अफसरों से विचार-विमर्श करना चाहते हैं।)

Question 15.
Gandhi was not a law-breaker. Then why did he disobey the government order to leave Champaran? (गाँधी कानून तोड़ने वाला नहीं था। फिर उसने चम्पारन छोड़ने के सरकारी आदेश की अवहेलना क्यों की ?)
Answer:
Gandhi said that he did not want to be a law-breaker. But he was committed to render the humanitarian and national service for which he had come there. He disobeyed the government order to leave Champaran. But it was because he heeded the voice of his conscience. (गाँधी ने कहा कि वे कानून को तोड़ना नहीं चाहते। मगर वे वह मानवीय और राष्ट्रीय सेवा अवश्य करेंगे जिसके लिए वे यहाँ आए हैं। उन्होंने चम्पारन को छोड़ देने के सरकारी आदेश का उल्लंघन किया। मगर ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्होंने अपनी अंर्तात्मा की आवाज पर ध्यान दिया।)

Question 16.
What did Gandhi tell Rajendra Prasad and other lawyers? [H.B.S.E. 2017 (Set-C)] (गाँधी ने राजेन्द्र प्रसाद एवं अन्य वकीलों से क्या कहा ?)
Answer:
Rajendra Prasad and other prominent lawyers had arrived at Champaran to help Gandhi. They told Gandhi that they had come to advise him. But if he went to jail, there would be nobody to advise him. Then they would go home. Gandhi asked them to think about the plight of the poor farmers. Now the lawyers told Gandhi that they would follow him into jail.

(राजेन्द्र प्रसाद और अन्य प्रसिद्ध वकील गाँधी की मदद करने चम्पारन पहुँच गए थे। उन्होंने कहा कि वे तो उन्हें सलाह देने आए हैं। लेकिन अगर वे जेल चले गए, वहाँ उन्हें सलाह देने के लिए कोई नहीं होगा। तब वे घर चले जाएँगे। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने के लिए कहा। अब वकीलों ने गाँधी से कहा कि वे भी उनके पीछे जेल में जाएँगे।)

Question 17.
How did civil disobedience triumph in India? (भारत में सविनय अवज्ञा की जीत किस प्रकार हुई?)
Answer:
Gandhi divided the groups of lawyers into pairs and put down the order in which each pair was to court arrest. Thus his fight against injustice started. After a few days, Gandhi received a written communication that the Lieutenant-Governor of that province had ordered the case to be dropped. This was the first victory of the civil disobedience in Modern India.

(गाँधी ने वकीलों के समूह को जोड़ों में बाँट दिया और वह क्रम तैयार कर दिया जिससे हर जोड़े ने गिरफ्तारी देनी थी। इस प्रकार अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई शुरु हो गई। कुछ दिनों के बाद, गाँधी को लेफ्टिनेन्ट-गर्वनर की ओर से लिखित सूचना मिली कि उनके विरुद्ध केस को खत्म कर दिया गया है। यह आधुनिक भारत में सविनय अवज्ञा की पहली जीत थी।)

Question 18.
What happened after four meetings between Gandhi and Sir Edward Gait ? (गाँधी एवं सर एडवर्ड गेट के बीच चार मुलाकातों के बाद क्या हुआ ?)
Answer:
Gandhi and the lawyers wrote down depositions by about ten thousand peasants. In June, Sir Edward Gait, the Lieutenant-Governor summoned Gandhi for discussions. After four meetings an official commission was appointed to make enquiry into the indigo sharecroppers’ situation. The commission consisted of landlords, government officials and Gandhi, who was the sole representative of the peasants.

(गाँधी और वकीलों ने लगभग दस हजार वकीलों के बयाननामें लिखे। जून में, लेफ्टिनेन्ट-गर्वनर सर एडवर्ड गेट, ने गाँधी को बातचीत के लिए बुलाया। चार मुलाकातों के बाद नील की खेती के किसानों की हालत की जाँच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया। इस कमीशन में जमींदार, सरकारी कर्मचारी और गाँधी थे जोकि किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि थे।)

Question 19.
Why did Gandhi agree to the refund of 25 per cent of money? (गाँधी 25 प्रतिशत पैसा वापिस लेने को क्यों मान गए ?)
Answer:
The British landlords agreed to make refunds to the peasants. Gandhi asked for 50 percent refund. But the landlords insisted on twenty-five percent refund. In order to break the deadlock, Gandhi agreed. Gandhi believed that the amount of refund was not really important. It was important that the landlords had been defeated.

(अंग्रेज ज़मींदार किसानों को मुआवजा देने के लिए राजी हो गए। गाँधी ने 50 प्रतिशत मुआवज़ा देने की बात की। मगर जमींदारों ने पच्चीस प्रतिशत पर जोर दिया। गतिरोध को तोड़ने के लिए, गाँधी सहमत हो गए। गाँधी का मानना था कि मुआवजे की राशि अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थी। यह महत्त्वपूर्ण बात थी कि ज़मींदार हार गए थे।)

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Question 20.
How did future events prove that Gandhi had been right to agree to 25% refund? (भविष्य की घटनाओं ने किस प्रकार साबित कर दिया कि 25% पैसा वापिसी के बारे में गाँधी सही थे ?)
Answer:
Gandhi said that money was not important. It was important that the British landlords had lost their prestige. They had been compelled to surrender money. Now the peasants realized that they had rights. They learnt to get over their fears. Future events proved that Gandhi was justified. Within a few years, the British planters gave up their estates, which were returned to the peasants.

(गाँधी ने कहा कि पैसा महत्त्वपूर्ण नहीं था। यह महत्त्वपूर्ण था कि अंग्रेज जमींदारों की साख खो गई थी। उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। अब किसानों ने महसूस किया कि उनके भी अधिकार हैं। उन्होंने अपने डर पर काबू पाना सीख लिया था। भविष्य की घटनाओं ने साबित कर दिया कि गाँधी ठीक थे। कुछ सालों में, अंग्रेज जमींदारों ने अपनी जमीनों को छोड़ दिया, जोकि किसानों को लौटा दी गई।)

Question 21.
What did Gandhi do to give education to the children of Champaran area? (चम्पारन क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा देने के बारे में गाँधी ने क्या किया ?)
Answer:
Gandhi was not satisfied with the political or economic solutions. He wanted to bring social changes. He saw that there was cultural and social backwardness in Champaran. He wanted to remove it. He appealed to the teachers of that area. Gandhi got an immediate response. With their efforts, primary schools were opened in six villages.

(गाँधी राजनीतिक या आर्थिक हल से सन्तुष्ट नहीं थे। वे सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते थे। उन्होंने देखा कि चम्पारन में सांस्कृतिक और सामाजिक पिछड़ापन है। वे इसे दूर करना चाहते थे। उन्होंने उस इलाके के शिक्षकों से प्रार्थना की। गाँधी को फौरन प्रत्युत्तर मिला। उनके प्रयत्नों से, छः गाँवो में प्राइमरी स्कूल खोले गए।)

Question 22.
What did Gandhi do to improve the health conditions at Champaran? (चम्पारन में स्वास्थ्य स्थिति को सुधारने के लिए गाँधी ने क्या किया ?)
Answer:
Gandhi found that health conditions were also miserable. Kasturba Gandhi taught the students and others, rules on personal cleanliness and community sanitation. Gandhi got a doctor to volunteer his services for six months. Three medicines were available there: castor oil, quinine and sulphur ointment. These medicines were used to cure most of the patients.

(गाँधी ने देखा कि स्वास्थ्य की हालत भी बहुत खराब है। कस्तूरबा गाँधी ने छात्रों और अन्य लोगों को, व्यक्तिगत स्वच्छता और सामुदायिक सफाई के नियमों की शिक्षा दी। गाँधी ने एक डॉक्टर को छः महीने तक अपनी सेवाएँ निःशुल्क देने के लिए राजी कर लिया। वहाँ पर तीन दवाइयाँ उपलब्ध थीं कैस्टर ऑयल, कुनीन और गन्धक का मलहम। इन दवाइयों का प्रयोग अधिकतर मरीजों का इलाज करने के लिए किया जाने लगा।)

Question 23.
What did Gandhi say about the Champaran episode? (गाँधी ने चम्पारन की घटना के बारे में क्या कहा ?)
Answer:
The Champaran episode was a turning point in the life of Mahatma Gandhi. But he modestly said that what he did was an ordinary thing. It did not begin as an act of defiance. It was an attempt to alleviate the suffering of the poor people of Champaran. He declared that the British could not order him about in his own country. Gandhi’s politics were intertwined with the practical day-to-day problems of the poor people.

(चम्पारन की घटना गाँधी के जीवन का अहम मोड़ था। मगर उन्होंने विनम्रता से कहा कि जो कुछ उन्होंने किया वह तो एक साधारण घटना थी। इसने विरोध का कोई कार्य आरम्भ नहीं किया। यह तो चम्पारन के गरीब लोगों के कष्टों को कम करने का एक प्रयत्न था। उन्होंने घोषणा की कि ब्रिटिश लोग उन्हें उनके अपने ही देश में आदेश नहीं दे सकते। गाँधी की राजनीति गरीब लोगों की व्यवहारिक समस्याओं से मिली हुई थी।)

Question 24.
Why did Gandhi oppose taking help from C.F.Andrews? (गाँधी ने सी०एफ० एन्ड्रयूज से सहायता लेने का विरोध क्यों किया ?)
Answer:
C.F. Andrews was a friend and follower of Gandhi. He was an influential person. Some people wanted that C.F.Andrews should stay in Champaran and help them. But Gandhi did not want to take the help of an Englishman. He wanted Indians to become self-reliant and fearless.
(सी. एफ. एन्ड्रयूज़ गाँधी के मित्र एवं अनुयायी थे। वह एक प्रभावशाली व्यक्ति थे। कुछ लोग चाहते थे कि सी. एफ. एन्ड्रयूज़ चम्पारन में रहें और उनकी सहायता करें। गाँधी किसी अंग्रेज की सहायता नहीं लेना चाहते थे। वे चाहते थे कि भारतीय आत्मनिर्भर और निर्भय बनें।)

Long Answer Type Questions
Answer the following questions in about 80 words

Question 1.
Describe the circumstances which forced Gandhi to come to Champaran for the help of the peasants? (उन परिस्थितियों का वर्णन करो जिन्होंने गाँधी को किसानों की सहायता के लिए चम्पारन आने को मजबूर किया?)
Answer:
In 1916, Mahatma Gandhi went to Lucknow to attend the annual convention of the Indian National Congress. There, a peasant named Rajkumar Shukla met him. He had come from Champaran to meet Gandhi. He requested Gandhi to visit his district and find a solution to the problems of peasants. He complained about the injustice of the landlords of Bihar. Rajkumar Shukla was illiterate. But he had strong determination. He accompanied Gandhi wherever he went. He even went to Ahmedabad at Gandhi’s Ashram. In the end, Gandhi told Shukla to meet him in Calcutta. Then he could take Gandhi with him to Champaran.

When Gandhi reached Calcutta, Shukla was waiting for him. They boarded a train for Patna in Bihar. There they stayed at the house of Rajendra Prasad who later became the first President of India. He was out of the city. Gandhi wanted to get complete information about the situation in Champaran. So he went first to Muzzafarpur, which was on the way to Champaran. At Muzzafarpur, he stayed for two days at the house of Prof. Malkani. From there Gandhi went to Champaran and fought against the injustice being done to the peasants.

(1916 में, गाँधी लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने गए। वहाँ, पर राजकुमार शुक्ला नाम का एक किसान उन्हें मिला। वह गाँधी से मिलने चम्पारन से आया था। उसने गाँधी से प्रार्थना की कि वे उसके जिले में आएँ और किसानों की समस्याओं का कोई हल निकालें। उसने बिहार के जमींदारों के अन्यायों की शिकायत की। राजकुमार शुक्ला अनपढ़ था। मगर वह पक्के इरादे वाला था। जहाँ भी गाँधी गए वह साथ-साथ गया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। अंत में, गाँधी ने शुक्ला को कलकत्ता में मिलने को कहा। वहाँ से वह उन्हें अपने साथ चम्पारन ले जा सकता था।

जब गाँधी कलकत्ता पहुंचे, तो शुक्ला उनका इंतजार कर रहा था। उन्होंने बिहार में पटना के लिए गाड़ी पकड़ी। वहाँ वह राजेन्द्र प्रसाद के घर पर रुके, जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने। वे शहर से बाहर थे, गाँधी चम्पारन की हालत के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए वे पहले मुजफ्फरपुर गए, जो चम्पारन के रास्ते में था। मुज़फ्फरपुर में, वे दो दिन के लिए प्राध्यापक मलकानी के घर पर रुके। वहाँ से गाँधी चम्पारन गए और किसानों के साथ किए जा रहे अन्याय के खिलाफ लड़ाई की।)

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Question 2.
What was the condition of the peasants of Champaran when Mahatma Gandhi reached there? (जब महात्मा गाँधी वहाँ पहुँचे तो चम्पारन के किसानों की अवस्था कैसी थी ?)
Answer:
The news of Gandhi’s arrival spread in Muzzafarpur and Champaran. Farmers from Champaran began arriving to see their messiah. Muzzafarpur lawyers also came to see Gandhi. They used to represent peasant groups in courts. Gandhi rebuked them for collecting big fees from the sharecroppers. Mahatma Gandhi said that the peasants were crushed and fear-stricken. So taking their cases to the courts was useless. He believed that the real relief for them was to be free from fear.

Most of the fertile land in Champaran was owned by the English landlords. Indian peasants worked on them. Indigo was the chief commercial crop. The peasants were compelled to grow indigo on fifteen per cent of land and surrender the entire indigo harvest as payment of rent. At that time, the landlords learnt that Germany had developed synthetic indigo. Now they obtained agreements from the peasants to pay them compensation for being released from the 15 percent arrangement. Many peasants signed the agreement willingly. Those who resisted, engaged lawyers. In the meantime, the information about the synthetic indigo reached the illiterate farmers also. They wanted their money back. At this point Mahatma Gandhi reached Champaran.

(गाँधी के आने की खबर मुज़फ्फरपुर और चम्पारन में फैल गई। चम्पारन के किसान अपने मसीहा को देखने आने लगे। मुज़फ्फरपुर के वकील भी गाँधी से मिलने आए। वे कचहरियों में किसानों के समूहों की पैरवी करते थे। गाँधी ने उन्हें किसानों से मोटी फीस वसूलने के लिए डाँटा। गाँधी ने कहा कि किसान दबे हुए एवं भयभीत हैं। इसलिए उनके केसों को कचहरी में ले जाना बेकार है। उन्होंने कहा कि किसानों को सही राहत तब मिलेगी जब वे भय से मुक्त हो जाएँगे।

चम्पारन की अधिकतर उपजाऊ धरती के मालिक अंग्रेज जमींदार थे। भारतीय किसान उनकी ज़मीन पर काम करते थे। नील एक मुख्य वाणिज्यिक फ़सल थी। किसानों को अपनी धरती के पन्द्रह प्रतिशत भाग पर नील की खेती करने के लिए और वह सारी फ़सल लगान के रूप में देने के लिए बाध्य किया जाता था। उस समय, जमींदारों को पता चला कि जर्मनी ने कृत्रिम नील तैयार कर लिया है। अब उन्होंने किसानों से अनुबन्ध हासिल कर लिए कि वे उन्हें 15 प्रतिशत की शर्त से आजाद करने के लिए हर्जाना देंगे। बहुत-से किसानों ने अनुबन्धों पर स्वेच्छा से हस्ताक्षर कर दिए। इस बीच कृत्रिम नील की खबर अनपढ़ किसानों तक भी पहुँच गई। वे अपना पैसा वापिस माँगने लगे। ऐसे समय पर गाँधी चम्पारन पहुँच गए।)

Question 3.
What happened when Gandhi came to Champaran? Why did thousands of peasants surround the courthouse? (जब गाँधी चम्पारन आए तो क्या हुआ ? हजारों किसानों ने कचहरी को क्यों घेर लिया ?)
Answer:
Gandhi visited Champaran in order to alleviate the sufferings of the peasants. He decided to get the facts first. He met the Secretary of the British Landlord’s Association. But he did not give any information to Gandhi. Next, Gandhi met the British official commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. But he bullied Gandhi and asked him to leave Tirhut. But Gandhi proceeded to Motihari, the capital of Champaran. A large gathering of people greeted Gandhi at the railway station. In Champaran, Gandhi started his investigations. The police superintendent sent a notice to Gandhi to quit Champaran immediately.

But Gandhi refused to obey him. Gandhi telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. He wired a full report to the Viceroy. The farmers of that area came to know that Gandhi, who wanted to help him, was in trouble with the authorities. So, the next morning a large numbers of farmers came to Motihari. They demonstrated in thousands around the courthouse. That was the beginning of their liberation from fear of the British. The official felt powerless without Gandhi’s cooperation. Gandhi appealed to the crowd to remain peaceful. The prosecutor requested the judge to postpone the trial as they wanted to consult their superiors.

(गाँधी किसानों के कष्टों को दूर करने के लिए चम्पारन पहुँच गए। उन्होंने पहले तथ्य इकट्ठे करने का फैसला किया। वह ब्रिटिश जमींदार संगठन के सचिव से मिले। मगर उसने गाँधी को कोई तथ्य नहीं बताया। उसके बाद, गाँधी तिरहुत डिवीज़न के ब्रिटिश कमिश्नर से मिले जिसमें चम्पारन जिला आता था। मगर उसने गाँधी से धौंस से बात की और उन्हें तिरहुत छोड़ देने को कहा। मगर गाँधी चम्पारन की राजधानी, मोतीहारी में गए। लोगों के एक बहुत बड़े समूह ने उनका स्वागत रेलवे स्टेशन पर किया। चम्पारन में गाँधी ने खोज का काम आरम्भ किया। पुलिस सुपरिन्टेंडेंट ने गाँधी को नोटिस भेजा कि वे फौरन चम्पारन छोड़ दें। मगर गाँधी ने उसका आदेश मानने से इन्कार कर दिया।

गाँधी ने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजी कि वे अपने प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आ जाएं। उन्होंने वायसराय को पूरी रिपोर्ट तार से भेजी। उस इलाके के किसानों को पता चला कि गाँधी, जो उनकी सहायता करना चाहते हैं, सत्ता की तरफ से मुसीबत में हैं इसलिए अगले दिन मोतीहारी से बड़ी संख्या में किसान आए। उन्होंने कचहरी के चारों ओर हजारों की संख्या में प्रदर्शन किया। यह उनके ब्रिटिश सरकार से भय से आजादी का आरम्भ था। सरकार ने स्वयं को गाँधी के सहयोग के बिना असहाय पाया। गाँधी ने लोगों से शांत रहने की प्रार्थना की। सरकारी वकील ने जज से कहा कि वह मुकद्दमा स्थगित कर दे क्योंकि वे अपने अफसरों से विचार-विमर्श करना चाहते हैं।)

Question 4.
How was the Champaran episode the first victory of civil disobedience in modern India? (चम्पारन की घटना किस प्रकार से सविनय अवज्ञा की पहली जीत थी ?) [H.B.S.E. 2017 (Set-B)]
Answer:
Gandhi fought for the rights of the peasants of Champaran. He was ordered to leave that area. But Gandhi disobeyed the order. He said that he could not be ordered about in his own country. Gandhi said that he did not want to be a lawbreaker. But he was committed to render the humanitarian and national service for which had come there. He disobeyed the government order to leave Champaran. But it was because he heeded the voice of his conscience. The magistrate asked Gandhi to arrange bail for himself within two hours, but he refused. The judge said that he would deliver the judgment after a few days.

Meanwhile, he allowed Gandhi to be at liberty. Rajendra Prasad and other prominent lawyers had arrived there. They told Gandhi that they had come to advise him. But if he went to jail, there would be nobody to advise him. Then they would go home. Gandhi asked him to think about the plight of the poor farmers. Now the lawyers told Gandhi that they would follow him into jail. Then Gandhi divided the groups into pairs and put down the order in which each pair was to court arrest. After a few days, Gandhi received a written communication that the Lieutenant-Governor of that province had ordered the case to be dropped. This was the first victory of the civil disobedience in Modern India.

(गाँधी ने चम्पारन के किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई की। उन्हें उस इलाके को छोड़ देने का आदेश दिया गया। मगर गाँधी ने उस आदेश की अवज्ञा की। उन्होंने कहा कि उन्हें उनके अपने ही देश में इधर-उधर आने-जाने के बारे में आदेश नहीं दिए जा सकते। गाँधी ने कहा कि वे कानून को तोड़ना नहीं चाहते। मगर वे वह मानवीय और राष्ट्रीय सेवा अवश्य करेंगे जिसके लिए वे यहाँ आए हैं। उन्होंने चम्पारन को छोड़ देने के सरकारी आदेश का उल्लंघन किया। मगर ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्होंने अपनी अंर्तात्मा की आवाज पर ध्यान दिया। जज ने गाँधी को अपने लिए दो घंटे के अन्दर जमानत का इंतजाम करने के लिए कहा, मगर उन्होंने इन्कार कर दिया। जज ने कहा कि वह अपना निर्णय कुछ दिनों बाद सुनाएगा।

इस बीच उसने गाँधी को आजाद कर दिया। राजेन्द्र प्रसाद और अन्य प्रसिद्ध वकील वहाँ पर पहुंच गए थे। उन्होंने गाँधी को कहा कि वे तो उन्हें सलाह देने आए हैं। लेकिन अगर वे जेल चले गए तो वे सलाह किसे देंगे। तब वे घर चले जाएंगे। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने के लिए कहा अब वकीलों ने गाँधी से कहा कि वे उनके पीछे जेल के अन्दर तक जाएंगे। तब गाँधी ने उनके समूह को जोड़ों में बाँट दिया और वह क्रम तैयार कर दिया जिससे हर जोड़े ने गिरफ्तारी देनी थी। कुछ दिनों के बाद गाँधी को लेफ्टिनेंट-गवर्नर की ओर से लिखित सूचना मिली कि उनके विरुद्ध मुकद्दमें को खत्म कर दिया गया है। यह भारत में नागरिक अवज्ञा की जीत थी।)

HBSE 12th Class English Solutions Flamingo Chapter 5 Indigo

Question 5.
What was the outcome of Gandhi’s meetings with the British landlords? How did the future events proved Gandhi right? (अंग्रेज जमींदारों से गाँधी की मुलाकातों का क्या परिणाम हुआ ? बाद की घटनाओं ने गाँधी को किस प्रकार सही साबित किया ?)
Answer:
The case against Gandhi was dropped. The government agreed to look into the matter of the injustice being done to the peasants. Gandhi and the lawyers wrote down depositions by about ten thousand peasants. They also collected the relevant documents. In June, Sir Edward Gait, the Lieutenant-Governor summoned Gandhi for discussions. There were four prolonged meetings. After that an official commission was appointed to make enquiry into the indigo sharecroppers’ situation. The commission consisted of landlords, government officials, and Gandhi, who was the sole representative of the peasants.

They agreed to make refunds to the peasants. But now the question arose as to how much refund should be made. Gandhi said that at least 50 percent refund should be made to the peasants. But the landlords insisted on twenty-five percent refund. Gandhi wanted to break the deadlock. So he agreed to 25 percent refund. Some people objected to that. But Gandhi believed that the amount of refund was not really important. It was important that the landlords had been defeated.

They had lost their prestige. They had been compelled to surrender money. Now the peasants realized that they had rights. They learnt to get over their fears. Future events proved that Gandhi was justified. Within a few years, the British planters gave their estates, which were returned to the peasants.

(गाँधी के खिलाफ मुकद्दमा वापिस ले लिया गया। सरकार किसानों के साथ किए जाने वाले अन्याय की जाँच करने के लिए राजी हो गई। गाँधी और वकीलों ने लगभग दस हजार वकीलों के बयाननामें लिखे। उन्होंने सम्बन्धित दस्तावेज़ भी इकट्ठे किए। जून में, लेफ्टिनेंट-गवर्नर, सर एडवर्ड गेट ने गाँधी को बातचीत के लिए बुलाया। वहाँ चार लम्बी मुलाकातें हुईं। इसके बाद नील की खेती के किसानों की हालत की जाँच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया। इस कमीशन में जमींदार, सरकारी कर्मचारी और गाँधी थे, जो किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि थे। वे किसानों को मुआवजा देने के लिए राजी हो गए।

परंतु अब प्रश्न यह था कि कितना मुआवज़ा वापिस किया जाए। गाँध जी ने कहा कि कम-से-कम 50 प्रतिशत मुआवज़ा किसानों को वापिस करना चाहिए। मगर जमींदारों ने 25 प्रतिशत मुआवज़ा देने पर ज़ोर दिया। कुछ लोग इसके खिलाफ थे। गाँधी का मानना था कि मुआवजे की राशि अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थी। यह महत्त्वपूर्ण बात थी कि जमींदार हार गए थे। उनकी साख समाप्त हो गई थी। उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। अब किसानों को महसूस किया कि उनके भी अधिकार हैं। उन्होंने अपने डर पर काबू पाना सीख लिया था। भविष्य की घटनाओं ने साबित कर दिया कि गाँधी ठीक थे। कुछ सालों के बाद, अंग्रेज जमींदारों ने अपनी जमीनों को छोड़ दिया, जोकि किसानों को लौटा दी गई।)

Question 6.
What social work did Gandhi undertake in Champaran to improve the condition of the poor peasants? How did the Champaran incident prove to be a turning point in his life? (गरीब किसानों की हालत सुधारने के लिए गाँधी ने चम्पारन में क्या सामाजिक कार्य आरम्भ किया ? चम्पारन की घटना किस प्रकार से गाँधी के जीवन का अहम मोड़ बन गई ?)
Answer:
Gandhi won a legal victory in Champaran. But he was not satisfied with the political or economic solutions. He wanted to bring social changes. He saw that there wa Champaran. He wanted to remove it. He appealed to the teachers of that area. Gandhi got immediate response. With their efforts, primary schools were opened in six villages. Gandhi found that health conditions were also miserable. Kasturba Gandhi taught the students and others’ rules on personal cleanliness and community sanitation. Gandhi got a doctor to volunteer his services for six months. Three medicines were available there: castor oil, quinine and sulphur ointment.

These medicines were used to cure stay in Champaran, Gandhi kept a long-distance watch on the ashram. He sent regular instructions by mail. Gradually, the condition of the people of that area improved. The Champaran episode was a turning point in the life of Mahatma Gandhi. It did not begin as an act of defiance. It was an attempt to alleviate the suffering of the poor people of Champaran. He declared that the British could not order him about in his own country. Gandhi’s politics were intertwined with the practical day-to-day problems of the poor people. Not only did he fight for the rights of the peasants, he worked for their social upliftment also.

(गाँधी ने चम्पारन में कानूनी लड़ाई जीत ली। मगर वे राजनीतिक या आर्थिक हल से सन्तुष्ट नहीं थे। वे सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते थे। उन्होंने देखा कि चम्पारन में सांस्कृतिक और सामाजिक पिछड़ापन है। वे इसे दूर करना चाहते थे। उन्होंने उस इलाके के शिक्षकों से प्रार्थना की। गाँधी को फौरन प्रत्युत्तर मिला। उनके प्रयत्नों से, छः गाँवों में प्राइमरी स्कूल खोले गए। गाँधी ने देखा कि स्वास्थ्य की हालत भी खराब है। कस्तूरबा गाँधी ने छात्रों और अन्य लोगों को व्यक्तिगत स्वच्छता और सामुदायिक सफाई के नियमों की शिक्षा दी। गाँधी ने एक डॉक्टर को छः महीने तक अपनी सेवाएँ निःशुल्क देने के लिए राजी कर लिया।

वहाँ पर तीन दवाइयाँ उपलब्ध थीं-कैस्टर ऑयल, कुनीन और गन्धक का मलहम। इन दवाइयों का प्रयोग अधिकतर मरीजों का इलाज करने के लिए किया जाने लगा। चम्पारन में अपने रहने के दौरान, गाँधी ने अपने आश्रम पर भी दूर से नजर रखी। वे डाक से नियमित रूप से निर्देश भेजते रहे। धीरे-धीरे, उस इलाके के लोगों की हालत सुधरने लगी। चम्पारन की घटना गाँधी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना थी। इसने विरोध का कोई कार्य आरम्भ नहीं किया। यह तो चम्पारन के गरीब लोगों के कष्टों को कम करने का एक प्रयत्न था।

उन्होंने घोषणा की कि ब्रिटिश लोग उन्हें उनके अपने ही देश में आदेश नहीं दे सकते। गाँधी की राजनीति गरीब लोगों की रोजाना की व्यावहारिक समस्याओं से मिली हुई थी। गाँधी ने न केवल किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई की अपितु उन्होंने उनके सामाजिक उत्थान के लिए भी काम किया।)

Indigo MCQ Questions with Answers

1. Who is the author of the essay ‘Indigo’?
(A) William Douglas
(B) Louis Fischer
(C) Fouis Lischer
(D) Mahatma Gandhi
Answer:
(B) Louis Fischer

2. Where did Mahatma Gandhi go to attend the annual convention of the Indian National Congress?
(A) Patna
(B) Kanpur
(C) Lucknow
(D) Gorakhpur
Answer:
(C) Lucknow

3. At the Lucknow Conference, a peasant came to meet Mahatma Gandhi. What was his name?
(A) Rajkumar Shukla
(B) Kaj Kumar Shukla
(C) Maj Jumar Shukla
(D) Shaj Kumar Rukla
Answer:
(A) Rajkumar Shukla

4. From where had the peasant Rajkumar Shukla come to meet Mahatma Gandhi?
(A) Champaran
(B) Pancharan
(C) Ramcharan
(D) Kanpur
Answer:
(A) Champaran

5. Rajkumar Shukla asked Gandhi to visit Champaran. What did he complain about?
(A) electricity problem
(B) shortage of water
(C) injustice of the landlords
(D) environmental pollution
Answer:
(C) injustice of the landlords.

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6. Who came to Calcutta to meet Mahatma Gandhi?
(A) Sardar Patel
(B) Pardar Satel
(C) Maulana Azad
(D) Rajkumar Shukla
Answer:
(D) Rajkumar Shukla

7. In Patna, Mahatma Gandhi met Rajendra Prasad. What did he later become?
(A) the first Prime Minister of India
(B) the first king of India
(C) the first President of India
(D) the first Field Marshal of India
Answer:
(C) the first President of India

8. Where did Mahatma Gandhi stay in Muzzafarpur?
(A) in a hotel
(B) at Prof. Malkani’s house
(C) in the railway rest house
(D) in the house of the Viceroy
Answer:
(B) at Prof. Malkani’s house

9. Who owned most of the fertile land in Champaran?
(A) Indian farmers
(B) labourers
(C) shopkeepers
(D) English landlords
Answer:
(D) English landlords

10. What was the chief commercial crop of Champaran?
(A) Indigo
(B) Tea
(C) Cashew nuts
(D) Almonds
Answer:
(A) Indigo

11. Which country had developed the synthetic. indigo?
(A) Japan
(B) Germany
(C) Pakistan
(D) Iraq
Answer:
(B) Germany

12. How did British Commissioner of Tirhut behave with Mahatma Gandhi?
(A) He met Gandhi cordially
(B) He was happy to meet Gandhi
(C) He invited Gandhi to lunch
(D) He asked Gandhi to leave Tirhut
Answer:
(D) He asked Gandhi to leave Tirhut

13. What was the capital of Champaran?
(A) Jhotihari
(B) Hotihari
(C) Motihari
(D) Rotihari
Answer:
(C) Motihari

14. What did people of Motihari do when they learnt that Gandhi was in trouble with the British authorities?
(A) they surrounded the courthouse
(B) they did not help him
(C) they remained in their houses ok the side of the British
Answer:
(A) they surrounded the courthouse

15. Did Gandhi obey the government order to leave Champaran?
(A) yes
(B) no
(C) maybe
(D) may not be
Answer:
(B) no

16. What did the Lieutenant-Governor tell Gandhi in his communication?
(A) he asked Gandhi to leave Champaran
(B) he said that Gandhi would be arrested
(C) he threatened to deport Gandhi
(D) that the case against him had been dropped
Answer:
(D) that the case against him had been dropped

17. Who summoned Gandhi for negotiations about the complaints of indigo farmers?
(A) the Lieutenant-Governor
(B) the Dy. Commissioner
(C) the Governor
(D) the chief Minister
Answer:
(A) the Lieutenant-Governor

18. How much refund did the British landlords agree to make to the indigo farmers?
(A) fifty percent
(B) forty percent
(C) twenty-five percent
(D) ten percent
Answer:
(C) twenty-five percent

19. What kind of change did Gandhi want to bring?
(A) political change
(B) social change
(C) economic change
(D) military change
Answer:
(B) social change

20. What did Gandhi want Indians to become?
(A) self-reliant and fearless
(B) weak and miserable
(C) greedy
(D) corrupt
Answer:
(A) self-reliant and fearless

Indigo Important Passages for Comprehension

Seen Comprehension Passages
Read the following passages and answer the questions given below:

Type (i)
Passage 1
When I first visited Gandhi in 1942 at his ashram in Sevagram, in central India, he said, “I will tell you how it happened that I decided to urge the departure of the British. It was in 1917.” He had gone to the December 1916 annual convention of the Indian National Congress party in Lucknow. There were 2,301 delegates and many visitors. During the proceedings, Gandhi recounted, “a peasant came up to me looking like any other peasant in India, poor and emaciated, and said, ‘I am Rajkumar Shukla. I am from Champaran and I want you to come to my district !” Gandhi had never heard of the place. It was in the foothills of the towering Himalayas, near the kingdom of Nepal. [H.B.S.E. March 2019 (Set-D)]

Word-meanings :
Departure = going away (प्रस्थान);
convention = conference (सभा);
recounted = remembered (याद किया)।

Questions :
(i) Where was Gandhiji’s ashram situated?
(A) Champaran
(B) Sevagram
(C) Khera
(D) New Delhi
Answer:
(B) Sevagram

(ii) Where was the ashram of Gandhiji situated?
(A) Central India
(B) Sevagram
(C) British India
(D) Lucknow
Answer:
(B) Sevagram

(iii) When was the annual convention of the Congress party held?
(A) 1942
(B) 1917
(C) 1916
(D) 2301
Answer:
(C) 1916

(iv) What was the name of the peasant?
(A) Sevagram
(B) Champaran
(C) Gandhi
(D) Rajkumar Shukla
Answer:
(D) Rajkumar Shukla

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(v) Rajkumar Shukla was :
(A) An illiterate
(B) A modern educated young man
(C) An officer
(D) A landlord
Answer:
(A) An illiterate

Passage 2
Months passed. Shukla was sitting on his haunches at the appointed spot in Calcutta when Gandhi arrived; he waited till Gandhi was free. Then the two of them boarded a train for the city of Patna in Bihar. There Shukla led him to the house of a lawyer named Rajendra Prasad who later became President of the Congress party and of India. Rajendra Prasad was out of town, but the servants knew Shukla as a poor yeoman who pestered their master to help the indigo sharecroppers.

So they let him stay on the grounds with his companion, Gandhi, whom they took to be another peasant. But Gandhi was not permitted to draw water from the well lest some drops from his bucket pollute the entire source; how did they know that he was not an untouchable?

Word-meanings :
Sitting on haunches = squatting (पैरों पर बैठना);
indigo = a crop नील की फसल);

Questions :
(i) Where was Shukla waiting for Gandhiji?
(A) Patna
(B) Calcutta (Kolkata)
(C) Sevagram
(D) Mumbai
Answer:
(B) Calcutta (Kolkata)

(ii) Where did Gandhiji and Shukla board a train for?
(A) New Delhi
(B) Calcutta
(C) Mumbai
(D) Patna
Answer:
(D) Patna

(iii) Whose house did they go?
(A) The lawyer’s
(B) The Magistrate’s
(C) Shukla’s
(D) all of the above
Answer:
(A) The lawyer’s

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(iv) Why was Gandhiji not permitted to draw water from the well?
(A) he was a guest
(B) he was considered untouchable by the servant
(C) both (A) and (B)
(D) neither (A) nor (B)
Answer:
(B) he was considered untouchable by the servant

(v) Which of the following was both the President of the Congress Party and of India.
(A) Mahatma Gandhi
(B) Jawaharlal Nehru
(C) Rajendra Prasad
(D) all of the above
Answer:
(C) Rajendra Prasad

Passage 3
Next, Gandhi called on the British Official Commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. “The Commissioner” Gandhi reports, “proceeded to bully me and advised me forthwith to leave Tirhut.” Gandhi did not leave. Instead, he proceeded to Motihari, the capital of Champaran. Several lawyers accompanied him. At the railway station, a vast multitude greeted Gandhi. He went to a house, and using it as headquarters, continued his investigations.

Word-meanings :
Proceeded = moved forwards (आगे बढ़े);
vast =huge (विशाल);
multitude = crowd (भीड़)।

Questions :
(i) What did the British Official Commissioner ask Gandhiji to do?
(A) to leave Tirhut
(B) to live in Tirhut
(C) Both (A) and (B)
(D) None of these
Answer:
(A) to leave Tirhut

(ii) Where did Gandhiji go from Tirhut?
(A) Sevagram
(B) Motihari
(C) Patna
(D) All of the above
Answer:
(B) Motihari

(iii) Who accompanied Gandhiji?
(A) Several Doctors
(B) Several Teachers
(C) Several Lawyers
(D) Several Managers
Answer:
(C) Several Lawyers

(iv) What investigations did Gandhiji keep continue?
(A) about the system of share-farming
(B) about the system of sharecropping
(C) about the system of share producers
(D) none of these
Answer:
(B) about the system of sharecropping

(v) Motihari was the ……….. of champaran.
(A) District
(B) state
(C) capital
(D) both (B) and (C)
Answer:
(C) capital

Passage 4
Gandhi chided the lawyers for collecting big fee from the sharecroppers. He said, “I have come to the conclusion that we should stop going to law courts. Taking such cases to the courts does little good. Where the peasants are so crushed and fear-stricken, law courts are useless. The real relief for them is to be free from fear.”

Most of the arable land in the Champaran district was divided into large estates owned by Englishmen and worked by Indian tenants. The chief commercial crop was indigo. The landlords compelled all tenants to plant three twentieths or 15 percent of their holdings with indigo and surrender the entire indigo harvest as rent. This was done by a long-term contract. [H.B.S.E. 2020 (Set-A)]

Word-meanings :
Chided = rebuked (डॉँटना);
relief = help (सहायता);
surrender = give up (हार मानना)।

Questions :
(i) Why did Gandhi rebuke the lawyer?
(A) he was not expert
(B) he was having nexus with the British
(C) he was collecting big fee from
(D) all of the above the sharecroppers
Answer:
(C) he was collecting big fee from the sharecroppers

(ii) According to Gandhiji what was the real relief for the farmers?
(A) going to law courts
(B) free from fear
(C) both (A) and (B)
(D) neither (A) nor (B)
Answer:
(B) free from fear

(iii) Who owned the most of the arable land in Champaran?
(A) Englishmen
(B) Indian tenants
(C) Gandhiji
(D) none of the above
Answer:
(A) Englishmen

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(iv) What was the commercial crop in Champaran?
(A) Rice
(B) Tea
(C) Coffee
(D) Indigo
Answer:
(D) Indigo

(v) What do you mean by ‘arable land’?
(A) Land suitable for growing crops.
(B) Land suitable for giving on rent.
(C) Land suitable for developing a park.
(D) Land suitable for using as a playground.
Answer:
(A) Land suitable for growing crops.

Passage 5
Gandhi did not leave. Instead he proceeded to Motihari, the capital of Champaran. Several lawyers accompanied him. At the railway station, a vast multitude greeted Gandhi. He went to a house and, using it as headquarters, continued his investigations. A report came in that a peasant had been maltreated in a nearby village. Gandhi decided to go and see; the next morning he started out on the back of an elephant. He had not proceeded far when the police superintendent’s messenger overtook him and ordered him to return to town in his carriage. Gandhi complied. The messenger drove Gandhi home where he served him with an official notice to quit Champaran immediately. Gandhi signed a receipt for the notice and wrote on it that he would disobey the order.

Word-meanings :
Multitude = a big crowd (बड़ी भीड़);
maltreated = treated badly (बुरा व्यवहार करना);
complied = obeyed (कहना मानना) ।

Questions :
(i) From which chapter have these lines been taken?
(A) Indigo
(B) Poets and Pancakes
(C) The Interview
(D) Going Places
Answer:
(A) Indigo

(ii) What was the capital of Champaran?
(A) Calcutta
(B) Patna
(C) Motihari
(D) none of the above
Answer:
(C) Motihari

(iii) Who greeted Gandhiji at Motihari station?
(A) Several lawyers
(B) A vast multitude
(C) The Police superintendent’s messenger
(D) A peasant
Answer:
(B) A vast multitude

(iv) What order was given to Gandhiji?
(A) to quit Champaran
(B) to remain only at Motihari
(C) not to meet the tenants
(D) to meet the police superintendent
Answer:
(A) to quit Champaran

(v) Why did Gandhiji decide to visit the nearby village?
(A) to address a big gathering
(B) to sit on a fast
(C) to meet the lawyer
(D) to meet a maltreated tenant
Answer:
(D) to meet a maltreated tenant

Type (ii)
Passage 6
Morning found the town of Motihari black with peasants. They did not know Gandhi’s record in South Africa. They had merely heard that a Mahatma who wanted to help them was in trouble with the authorities. Their spontaneous demonstration, in thousands, around the courthouse was the beginning of their liberation from fear of the British. The officials felt powerless without Gandhi’s co-operation. He helped them regulate the crowd. He was polite and friendly. He was giving them concrete proof that their might, hitherto dreaded and unquestioned, could be challenged by Indians.

Word-meanings :
Regulate = control (नियन्त्रित करना);
concrete =solid (ठोस)।

Questions :
(i) Name the chapter and its author.
(ii) How is the morning of Motihari town described?
(iii) What had the peasants of Motihari heard about Mahatma Gandhi?
(iv) What did their spontaneous demonstration, in thousands, mark?
(v) How was the power of the Britishers so far?
Answers :
(i) Chapter : Indigo.
Author: Louis Fischer.
(ii) The morning of Motihari town was black with peasants.
(iii) They had heard that a Mahatma who wanted to help them was in trouble with the authorities.
(iv) Their spontaneous demonstration in thousands marked the beginning of their liberation from fear of the British
(v) So far the power of the Britishers was dreaded and unquestioned.

Passage 7
Gandhi decided to go first to Muzzafarpur, which was en route to Champaran, to obtain more complete information about conditions than Shukla was capable to imparting. He accordingly sent a telegram to Professor J. B. Kripalani, of the Arts College in Muzzafarpur, whom he had seen at Tagore’s Shantiniketan school. The train arrived at midnight, 15 April 1917.

Kripalani was waiting at the station with a large body of students. Gandhi stayed there for two days in the home of Professor Malkani, a teacher in a government school. “It was an extraordinary thing in those days,” Gandhi commented, “for a government professor to harbour a man like me”. In smaller localities, the Indians were afraid to show sympathy for advocates of home rule. [H.B.S.E. March, 2018 (Set-A), 2019 (Set-C)]

Word-meanings :
Imparting = to pass knowledge (ज्ञान प्रदान करना);
extraordinary = very unusual (असाधारण)।

Questions :
(i) Where did Gandhiji decide to go first?
(A) Sevagram
(B) Lucknow
(C) Patna
(D) Muzzafarpur
Answer:
(D) Muzzafarpur

(ii) Why did Gandhiji decide to stay there briefly?
(A) to meet old friends
(B) to meet the sharecroppers
(C) to obtain complete information
(D) to find the official version
Answer:
(C) to obtain complete information

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(iii) Whom had Gandhiji informed telegraphically?
(A) Professor J.B. Kriplani
(B) Rajendra Prasad
(C) Professor Malkani
(D) Brij Kishor Babu
Answer:
(A) Professor J.B. Kriplani

(iv) When did Gandhiji’s train arrive there?
(A) at noon
(B) at midnight
(C) at sunset
(D) at sunrise
Answer:
(B) at midnight

(v) Who were waiting at the station with Kriplani Ji?
(A) Sharecroppers
(B) Home-rule supporters
(C) Lawyers
(D) College students
Answer:
(D) College students

Indigo Summary in English and Hindi

Indigo Introduction to the Chapter

Louis Fischer was an American writer. He started his career as a journalist and wrote for ‘The New York Times’ and a number of other publications. He came to India and was influenced by Mahatma Gandhi. This essay has been taken from his book “The Life of Mahatma Gandhi’. In this essay he tells us how Gandhi fought against the injustice done to the peasants of Champaran by the British landlords. He fought against the authorities using satyagraha and non-violence. He was successful in his fight against the authorities.

(लुई फिशर एक अमेरिकन लेखक था। उसने अपना जीवन एक पत्रकार के रूप में आरम्भ किया और ‘द न्यूयार्क टाइम्स’ तथा अन्य कई प्रकाशनों के लिए लिखता रहा। वह भारत आया और महात्मा गाँधी से प्रभावित हुआ। यह लेख उसकी पुस्तक ‘द लाइफ ऑफ महात्मा गाँधी’ से लिया गया है। इस लेख में वह बताता है कि किस प्रकार गाँधी ने अंग्रेजी भूमिपतियों द्वारा चम्पारन के किसानों पर किए गए अन्याय के खिलाफ लड़ाई की। उन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा का तरीका अपनाकर सत्ता के विरुद्ध लड़ाई की। सत्ता के खिलाफ इस युद्ध में वह सफल रहे ।)

Indigo Summary
In 1942, Louis Fischer visited Mahatma Gandhi at his Ashram in Sevagram. Gandhi told him how in 1917, he decided to fight for the departure of the British from India. In 1916, Mahatma Gandhi went to Lucknow to attend the annual convention of the Indian National Congress. There, a peasant named Rajkumar Shukla met him. He had come from Champaran to meet Gandhi. He requested Gandhi to visit his district and find a solution to the problems of peasants. He complained about the injustice of the landlords of Bihar. Rajkumar Shukla was illiterate. But he had strong determination. He accompanied Gandhi wherever he went. He even went to Ahmedabad at Gandhi’s Ashram. In the end, Gandhi told Shukla to meet him in Calcutta. Then he could take Gandhi with him to Champaran.

When Gandhi reached Calcutta, Shukla was waiting for him. They boarded a train for Patna in Bihar. There Shukla took him to the house of Rajendra Prasad who later became the first President of India. He was out of town but his servant let them stay there. Gandhi wanted to get complete information about the situation in Champaran. So he went first to Muzzafarpur which was on the way to Champaran. Gandhi sent a telegram to Professor J.B.Kripalani whom he had seen at the Shantiniketan. At Muzzafarpur, he stayed for two days at the house of Prof. Malkani.

The news of Gandhi’s arrival spread in Muzzafarpur and Champaran. Farmers from Champaran began arriving to see their Messiah. Muzzafarpur lawyers also came to see Gandhi. They used to represent peasant groups in courts. Gandhi rebuked them for collecting big fees from the sharecroppers. Mahatma Gandhi said that the peasants were crushed and fear-stricken. So taking their cases to the courts was useless. He believed that the real relief for peasants was to be free from fear.

Most of the fertile land in Champaran was owned by the English landlords. Indian peasants worked on their land. Indigo was the chief commercial crop. The peasants were compelled to grow indigo on fifteen percent of land and surrender the entire indigo harvest as payment of rent. At that time, the landlords learnt that Germany had developed synthetic indigo. Now they obtained agreements from the peasants to pay them compensation for being released from the 15 percent arrangement. Many peasants signed the agreement willingly. Those who resisted, engaged lawyers. In the meantime, the information about the synthetic indigo reached the illiterate farmers also. They wanted their money back. At this point Mahatma Gandhi reached Champaran.

Gandhi decided to get the facts first. He met the secretary of the British Landlord’s Association. But he did not give any information to Gandhi. Next, Gandhi met the British official commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. But he bullied Gandhi and asked him to leave Tirhut. But Gandhi proceeded to Motihari, the capital of Champaran. A large gathering of people greeted Gandhi at the railway station. In Champaran, Gandhi started his investigations. The police superintendent sent a notice to Gandhi to quit Champaran immediately. But Gandhi refused to obey him.

Gandhi telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. He wired a full report to the Viceroy. The farmers of that area came to know that Gandhi, who wanted to help him, was in trouble with the authorities. So, the next morning a large numbers of farmers came to Motihari. They demonstrated in thousands around the courthouse. That was the beginning of their liberation from fear of the British. The official felt powerless without Gandhi’s cooperation. Gandhi appealed to the crowd to remain peaceful. The prosecutor requested the judge to postpone the trial as they wanted to consult their superiors.

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Gandhi protested against the delay. He pleaded guilty. He said that he did not want to be a lawbreaker. But he was committed to render the humanitarian and national service for which had come there. He disobeyed the government order to leave Champaran, But it was, because, he heeded the voice of his conscience. The magistrate asked Gandhi to arrange bail for himself within two hours, but he refused. The judge said that he would deliver the judgment after a few days. Meanwhile he allowed Gandhi to be at liberty.

Rajendra Prasad and other prominent lawyers had arrived there. They told Gandhi that they had come to advise him. But if he went to jail, there would be nobody to advise him. Then they would go home. Gandhi asked him to think about the plight of the poor farmers.

Now the lawyers told Gandhi that they would follow him into jail. Then Gandhi divided the groups into pairs and put down the order in which each pair was to court arrest. After a few days, Gandhi received a written communication that the Lieutenant-Governor of that province had ordered the case to be dropped. This was the first victory of the civil disobedience in modern India.

Gandhi and the lawyers wrote down depositions by about ten thousand peasants. They also collected the relevant documents. In June, Sir Edward Gait, the Lieutenant-Governor summoned Gandhi for discussions. After four meetings an official commission was appointed to make enquiry into the indigo sharecroppers’ situation. The commission consisted of landlords, government officials and Gandhi, who was the sole representative of the peasants. They agreed to make refunds to the peasants. Gandhi asked for 50 percent refund. But the landlords insisted on twenty-five percent refund.

In order to break the deadlock, Gandhi agreed. Gandhi believed that the amount of refund was not really important. It was important that the landlords had been defeated. They had lost their prestige. They had been compelled to surrender money. Now the peasants realized that they had rights. They learnt to get over their fears. Future events proved that Gandhi was justified. Within a few years the British planters gave up their estates, which were returned to the peasants.

Gandhi was not satisfied with the political or economic solutions. He wanted to bring social changes. He saw that there was cultural and social backwardness in Champaran. He wanted to remove it. He appealed to the teachers of that area. Gandhi got immediate response. With their efforts, primary schools were opened in six villages. Gandhi found that health conditions were miserable. Kasturba Gandhi taught the students and others, rules on personal cleanliness and community sanitation. Gandhi got a doctor to volunteer his services for six months. Three medicines were available there: castor oil, quinine and sulphur ointment.

These medicines were used to cure most of the patients. During his long stay in Champaran, Gandhi kept a long distance watch on the ashram. He sent regular instructions by mail. Gradually, the condition of the people of that area improved.

The Champaran episode was a turning point in the life of Mahatma Gandhi. But he modestly said that what he did was an ordinary thing. It did not begin as an act of defiance. It was an attempt to alleviate the suffering of the poor people of Champaran. He declared that the British could not order him about in his own country. Gandhi’s politics were intertwined with the practical day-to-day problems of the poor people. Some people wanted that C.F.Andrews should stay in Champaran and help them. But Gandhi did not want to take the help of an Englishman. He wanted Indians to become self-reliant and fearless.

(1942 में, लुई फिशर गाँधी से मिलने उनके आश्रम सेवाग्राम में गया। गाँधी ने उसे बताया कि किस प्रकार 1917 में उन्होंने भारत से अंग्रेजों को निकालने के लिए संघर्ष करने का इरादा किया। 1916 में, गाँधी लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने गए। वहाँ पर, राजकुमार शुक्ला नाम का एक किसान उन्हें मिला। वह गाँधी से मिलने चम्पारन से आया था। उसने गाँधी से प्रार्थना की कि वे उसके जिले में आए और किसानों की समस्याओं का कोई हल निकालें। उसने बिहार के जमींदारों के अन्याय की शिकायत की। राजकुमार शुक्ला अनपढ़ था। मगर वह पक्के इरादे वाला था। जहाँ भी गाँधी गए वह साथ-साथ गया। वह गाँधी के आश्रम अहमदाबाद भी गया। अंत में, गाँधी ने शुक्ला से उन्हे कलकत्ता में मिलने को कहा। वहाँ से वह उन्हें अपने साथ चम्पारन ले जा सकता था।

जब गाँधी कलकत्ता पहुंचे, तो शुक्ला उनका इंतजार कर रहा था। उन्होंने बिहार में पटना के लिए गाड़ी पकड़ी। वहाँ शुक्ला उन्हें राजेन्द्र प्रसाद के घर ले गया जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने। वे शहर से बाहर थे मगर उनके नौकर ने उन्हें वहाँ ठहरने दिया। गाँधी चम्पारन की हालत के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए वे पहले मुजफ्फरपुर गए जो चम्पारन के रास्ते में था। गाँधी ने प्राध्यापक जे. बी. कृपलानी को तार भेजा जिन्हें वह शान्ति निकेतन में मिला था। मुजफ्फरपुर में, वे दो दिनों के लिए प्राध्यापक मलकानी के घर पर रुके।

गाँधी के आने की खबर मुज़फ्फरपुर और चम्पारन में फैल गई। चम्पारन के किसान अपने मसीहा को देखने आने लगे। मुज़फ्फरपुर के वकील भी गाँधी से मिलने आए। वे कचहरियों में किसानों के समूहों की पैरवी करते थे। गाँधी ने उन्हें किसानों से मोटी फीस वसूलने के लिए डाँटा। गाँधी ने कहा कि किसान दबे हुए एवं भयभीत हैं। इसलिए उनके मामलों को कचहरी में ले जाना बेकार है। उनका मानना था कि किसानों के लिए सही राहत भय से मुक्त होना था।

चम्पारन की अधिकतर उपजाऊ धरती के मालिक अंग्रेज जमींदार थे। भारतीय किसान उनकी ज़मीन पर काम करते थे। नील एक मुख्य व्यापारिक फसल थी। किसानों को अपनी धरती के पन्द्रह प्रतिशत भाग पर नील की खेती करने के लिए और वह सारी फसल लगान के रूप में देने के लिए बाध्य किया जाता था। उस समय जमींदारों को पता चला कि जर्मनी ने कृत्रिम नील तैयार कर लिया है। अब उन्होंने किसानों से अनुबन्ध हासिल कर लिए कि वे उन्हें 15 प्रतिशत की शर्त से आजाद करने के लिए हर्जाना देंगे। बहुत-से किसानों ने अनुबन्धों पर स्वेच्छा से हस्ताक्षर कर दिए। जिन्होंने मना किया, वह वकीलों के पास गए। इस बीच, कृत्रिम नील की खबर अनपढ़ किसानों तक भी पहुँच गई। वे अपना पैसा वापिस माँगने लगे। ऐसे समय पर गाँधी चम्पारन पहुँच गए।

गाँधी ने पहले तथ्य इकट्ठे करने का फैसला किया। वह ब्रिटिश जमींदार संगठन के सचिव से मिले। मगर उसने गाँधी को कोई तथ्य नहीं बताए। उसके बाद, गाँधी तिरहुत डिवीज़न के ब्रिटिश कमिश्नर से मिले जिसमें चम्पारन ज़िला आता था। मगर उसने गाँधी से धौंस से बात की और उन्हें तिरहुत छोड़ देने को कहा। मगर गाँधी चम्पारन की राजधानी, मोतीहारी में गए। लोगों के बहुत बड़े समूह ने उनका स्वागत रेलवे स्टेशन पर किया। चम्पारन में गाँधी ने खोज का काम आरम्भ किया। पुलिस सुपरिन्टेंडेंट ने गाँधी को नोटिस भेजा कि वे फौरन चम्पारन छोड़ दें। मगर गाँधी ने उसका आदेश मानने से इन्कार कर दिया।

गाँधी ने राजेन्द्र प्रसाद को तार भेजी कि वे अपने प्रभावशाली मित्रों के साथ बिहार से आ जाएं। उन्होंने वायसराय को पूरी रिपोर्ट तार से भेजी। उस इलाके के किसानों को पता चला कि गाँधी, जो उनकी सहायता करना चाहते हैं, सत्ता की तरफ से मुसीबत में हैं। इसलिए, अगले दिन मोतीहारी से बड़ी संख्या में किसान आए। उन्होंने कचहरी के चारों ओर हज़ारों की संख्या में प्रदर्शन किया। यह उनके ब्रिटिश सरकार से भय से आजादी का आरम्भ था। सरकार ने स्वयं को गाँधी के सहयोग के बिना असहाय पाया। गाँधी ने लोगों से शांत रहने की प्रार्थना की। सरकारी वकील ने जज से कहा कि वह मुकद्दमा स्थगित कर दे क्योंकि वे अपने अफसरों से विमर्श करना चाहते हैं।
गाँधी ने देरी पर विरोध जताया।

उन्होंने माफी माँगने को कहा। उन्होंने कहा कि वे कानून को तोड़ना नहीं चाहते। मगर वे वह मानवीय और राष्ट्रीय सेवा अवश्य करेंगे जिसके लिए वे यहाँ पर आए हैं। उन्होंने चम्पारन को छोड़ देने के सरकारी आदेश का उल्लंघन किया। मगर ऐसा इसलिए किया, क्योंकि, उन्होंने अपनी अंर्तात्मा की आवाज पर ध्यान दिया। जज ने गाँधी को अपने लिए दो घंटे के अन्दर जमानत का इंतजाम करने के लिए कहा, मगर उन्होंने इन्कार कर दिया। जज ने कहा कि वह अपना निर्णय कुछ दिनों बाद सुनाएगा। इस बीच उसने गाँधी को आजाद कर दिया।

राजेन्द्र प्रसाद और अन्य प्रसिद्ध वकील वहाँ पर पहुँच गए थे। उन्होंने गाँधी को कहा कि वे तो उन्हें सलाह देने आए हैं। लेकिन अगर वे जेल चले गए, तो वहाँ पर उन्हें सलाह देने के लिए कोई नहीं होगा। वे सलाह किसे देंगे। तब वे घर चले जाएँगे। गाँधी ने उन्हें गरीब किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने के लिए कहा।

अब वकीलों ने गाँधी से कहा कि वे उनके पीछे जेल के अन्दर तक जाएंगे। तब गाँधी ने उनके समूह को जोड़ों में बाँट दिया और वह क्रम तैयार कर दिया जिससे हर जोड़े ने गिरफ्तारी देनी थी। कुछ दिनों के बाद, गाँधी को लेफ्टिनेंट-गवर्नर की ओर से लिखित सूचना मिली कि उनके विरुद्ध मुकद्दमें को खत्म कर दिया गया है। यह आधुनिक भारत में सविनय अवज्ञा की पहली जीत थी। गाँधी और वकीलों ने लगभग दस हजार वकीलों के बयाननामें लिखे। उन्होंने सम्बन्धित दस्तावेज भी इकट्ठे किए। जून में, लेफ्टिनेंट-गवर्नर, सर एडवर्ड गेट ने गाँधी को बातचीत के लिए बुलाया। चार मुलाकातों के बाद नील की खेती के किसानों की हालत की जाँच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया।

इस कमीशन में ज़मींदार, सरकारी कर्मचारी और गाँधी थे जोकि किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि थे। वे किसानों को मुआवज़ा देने के लिए राजी हो गए। गाँधी ने 50 प्रतिशत मुआवजा देने की बात की। मगर ज़मींदारों ने 25 प्रतिशत पर जोर दिया। गतिरोध को तोड़ने के लिए, गाँधी राजी हो गए। गाँधी का मानना था कि मुआवजे की राशि अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थी। यह महत्त्वपूर्ण बात थी कि ज़मींदार हार गए थे। उनकी साख समाप्त हो गई थी। उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। अब किसानों ने महसूस किया कि उनके भी अधिकार हैं। उन्होंने अपने डर पर काबू पाना सीख लिया था। भविष्य की घटनाओं ने साबित कर दिया कि गाँधी ठीक थे। कुछ सालों के बाद अंग्रेज ज़मींदारों ने अपनी जमीनों को छोड़ दिया, जोकि किसानों को लौटा दी गई।

गाँधी राजनीतिक एवं आर्थिक समाधान से सन्तुष्ट नहीं थे। वे सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते थे। उन्होंने देखा कि चम्पारन में सांस्कृतिक और सामाजिक पिछड़ापन है। वे इसे दूर करना चाहते थे। उन्होंने उस इलाके के शिक्षकों से प्रार्थना की। गाँधी को फौरन प्रत्युत्तर मिला। उनके प्रयत्नों से, छः गाँवों में प्राइमरी स्कूल खोले गए। गाँधी ने देखा कि स्वास्थ्य की हालत भी खराब है। कस्तूरबा गाँधी ने छात्रों, और अन्य लोगों को व्यक्तिगत स्वच्छता और सामुदायिक सफाई के नियमों की शिक्षा दी। गाँधी ने एक डॉक्टर को छः महीने तक अपनी सेवाएँ निःशुल्क देने के लिए राजी कर लिया।

वहाँ पर तीन दवाइयाँ उपलब्ध थीं – कैस्टर ऑयल, कुनीन और गंधक की मलहम। इन दवाइयों का प्रयोग अधिकतर मरीजों का इलाज करने के लिए किया जाने लगा। चम्पारन में एक लंबे समय तक रहने के दौरान, गाँधी ने अपने आश्रम पर भी दूर से नजर रखी। वे डाक द्वारा नियमित रूप से निर्देश भेजते रहे। धीरे-धीरे, उस इलाके के लोगों की हालत सुधरने लगी।

चम्पारन की घटना गाँधी के जीवन का अहम मोड़ था। मगर उन्होंने विनम्रता से कहा कि जो कुछ उन्होंने किया वह तो एक साधारण घटना थी। इसने विरोध का कोई कार्य आरम्भ नहीं किया। यह तो चम्पारन के गरीब लोगों के कष्टों को कम करने का एक प्रयत्न था। उन्होंने घोषणा की कि ब्रिटिश लोग उन्हें उनके अपने ही देश में आदेश नहीं दे सकते। गाँधी की राजनीति गरीब लोगों की प्रतिदिन की व्यावहारिक समस्याओं से मिली हुई थी। कुछ लोग चाहते थे कि सी. एफ. एन्ड्रयूज चम्पारन में रहें और उनकी सहायता करें। मगर गाँधी किसी अंग्रेज की सहायता नहीं लेना चाहते थे। वे चाहते थे कि भारतीय आत्मनिर्भर और निडर बनें।)

Indigo Word Meanings

[Page 46] :
Volunteer (one who offers his services willingly) = स्वयं सेवक;
excerpt (part) = भाग;
review (examine)= जाँचना;
urge (to request) = आग्रह करना;
delegates (representatives)= प्रतिनिधि;
departure (leaving) =जाना;
annual(yearly) = वार्षिक;
recounted (narrated) = वर्णन किया;
peasant (farmer)= किसान;
emaciated (weak and thin)=कमजोर एवं पतला;
foothills (base of hills)= पहाड़ियों की तलहटी;
towering (high)= ऊँचा;
sharecroppers (tenant farmers who get a share of the crop) = बँटाईदार;
illiterate (not educated) = निरक्षर;
resolute (determined) = दृढ़-निश्चयी।

[Page 47] :
Probably (perhaps)=शायद;
committed (consigned) =सुपुर्द;
begged (requested) प्रार्थना की;
tenacity (firmness) = दृढ़ता;
haunches (buttocks) = नितम्ब;
yeoman (a small farmer) = छोटा किसान;
spot (place) = स्थान;
pestered (troubled)=तंग किया;
took (thought) = सोचा;
indigo (a blue dye)= नील;
permitted (allowed) = अनुमति दी;
draw (take out) = निकाला;
capable (able to)= समर्थ;
imparting (giving) = देना।

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[Page 48] :
Commented (passed comments) = टिप्पणी की;
harbour (to shelter) = आश्रय देना;
localities ((settlements) बस्तियाँ;
advocates (takes the side of)= पक्ष लेना;
advent (arrival) = आना;
nature (kind)= प्रकार;
mission (work)=कार्य;
conveyance (transport)= यातायात;
frequently (often) =अकसर;
chided (rebuked)= डाँटा;
crushed (very poor) = बहुत गरीब;
fear stricken (frightened) = भयभीत;
arable (cultivable) = कृषि योग्य।

[Page 49]:
Estates (landed property)=भू-सम्पत्ति;
tenants (tillers as tenants)=मुजाहिरे;
compelled (forced) = मजबूर किया;
holdings (fields) = खेत;
entire (the whole) = सारा;
synthetic (artificially prepared) = कृत्रिम;
compensation (makinggood the loss) क्षतिपूर्ति करना;
resist (oppose)=विरोध करना;
thugs (musclemen/robbers) =गुण्डे/लुटेरे;
proceeded (moved forwards)=आगे बढ़े;
vast(huge)=विशाल;
multitude (crowd)=भीड़;
investigation (looking into)= जाँचना;
maltreated (ill treated) = दुर्व्यवहार किया।

[Page 50]:
Complied (obeyed)=कहा माना;
quit (leave) =छोड़ जाना;
immediately (at once) = फौरन;
summons (court’s orders) = कोर्ट के आदेश;
merely (only)=केवल;
authorities (officials in power)=ससरकारी अफसर;
spontaneous (come naturally) = सहज;
demonstration (show/march)= दिखावा प्रदशन;
liberation (freedom) = आजादी;
regulate (control) = नियन्त्रित करना;
concrete(solid) = ठोस;
dreaded (feared) = डरना;
might(force) = शक्ति;
hitherto (until now)= अब तक;
apparently (evidently) = स्पष्टतया;
protest (oppose) = विरोध करना;
delay (procrastination) = देरी;
conflict(dispute)= झगड़ा;
render (do )= करना;
want(lack )= कमी;
conscience ( the inner self)= अन्तरात्मा;
pronounce (declare)= घोषणा करना;
sentence (verdict of a judge)= निर्णय;
recess (break)= अन्तराल;
reconvened (started again) = फिर से बुलाया।

[Page 51] :
Prominent (important) = प्रमुख;
conferred (conversed) = बातचीत की;
upshot (conclusion) = निष्कर्ष;
desertion (abandonment) = छोड़ देना;
residents (dwellers) = निवासी;
communication (message) = सूचना;
triumphed (became victorious) = जीत जाना;
far flung (remote) = दूर के;
grievances (complaints) = शिकायतें;
depositions (giving evidence) = गवाही देना;
evidence (proof) =सबूत;
throbbed (quivered) = काँपने लगा;
vehement (forceful) = शक्तिशाली;
summoned (sent for) = बुलाया।

[Page 52]:
Protracted (prolonged)=लम्बा खींचना;
sole(only)= केवल;
initial (early)=शुरु का;
uninterrupted (without interruption) = लगातार;
undertaken (taken up) = लिया;
entreaty (request) = प्राथना;
unlettered (illiterate) = अनपढ़;
assembled (gathered)= इकट्रे हुए;
deceitfully (by deception)= धोखे से;
extorted(taken by force)= जबरदस्ती, वसूलना;
adamant(stubborn)= जिद्दी;
episode (event)=घटना;
give way (surrender) =हार मानना;
amazement (surprise) = हैरानी;
deadlock (stalemate)= गतिरोध;
prestige (honour)= सम्मान;
lords (masters) = मालिक।

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[Page 53]:
Defender (one who defends)= बचाने वाला;
abandoned (given up)=त्याग दिया;
reverted (given back) = वापिस दिया;
contented (satisfied)= सन्तुष्ट;
eruptions(rashes) = फोड़े;
filthy (dirty) = गन्दा;
trenches (ditches) = खाइयाँ।

[Page 54]:
Defiance(disobedience) = अवज्ञा;
attempt (effort) = प्रयत्न;
alleviate(remove) =दूर करना;
distress (trouble) = मुसीबत;
pattern (method) = तरीका;
intertwined (mixed up) = जुड़ना;
pacifist (one who is against war) = जो यद्ध का विरोध करता है;
vehemently (very strongly) = जोश से;
rely (depend on) =निर्भर होना;
prop (support)= सहारा;
self-reliance (self-dependence) = आत्मनिर्भरता;
bound (joined)= जुड़ा होना ।

Indigo Translation in Hindi

When I first visited Gandhi in 1942 at his ashram in Sevagram, in central India, he said, “I will tell you how it happened that I decided to urge the departure of the British. It was in 1917.”

(जब मैं पहली बार सन 1942 में गाँधी से मिलने उनके सेवाग्राम के आश्रम में गया, जो मध्य भारत में था, तो उन्होंने कहा था, “मैं तुम्हें बताऊँगा कि ऐसा कैसे हुआ कि मैंने अंग्रेजों के चले जाने का आग्रह करने का निशचय किया। यह घटना 1917 की है।”)

He had gone to the December 1916 annual convention of the Indian National Congress party in Lucknow. There were 2,301 delegates and many visitors. During the proceedings, Gandhi recounted, “a peasant came up to me looking like any other peasant in India, poor and emaciated, and he said, ‘I am Rajkumar Shukla. I am from Champaran, and I want you to come to my district’!” Gandhi had never heard of the place. It was in the foothills of the towering Himalayas, near the kingdom of Nepal.

(वे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी के दिसम्बर, 1916 के वार्षिक अधिवेशन में लखनऊ गए हुए थे। वहाँ 2,301 प्रतिनिधि और बहुत-से अतिथि थे। गाँधी ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान, एक किसान मेरे पास आया, वह देखने में अन्य किसी भारतीय किसान जैसा ही गरीब और कमजोर लगता था, और उसने कहा, ‘मैं राजकुमार शुक्ला हूँ। मैं चम्पारन से आया हूँ, और मैं चाहता हूँ कि आप मेरे जिले में आएँ’!” गाँधी ने कभी उस जगह का नाम नहीं सुना था। यह विशाल हिमालय की निचली पहाड़ियों में, नेपाल की राजधानी के निकट स्थित था।)

Under an ancient arrangement, the Champaran peasants were sharecroppers. Rajkumar Shukla was one of them. He was illiterate but resolute. He had come to the Congress session to complain about the injustice of the landlord system in Bihar, and somebody had probably said, “Speak to Gandhi.”

(एक पुराने प्रबंध के अनुसार, चम्पारन के किसान बँटाई पर खेती करते थे। राजकुमार शुक्ला उन्हीं में से एक था। वह निरक्षर लेकिन दृढ़-निश्चयी था। वह कांग्रेस सम्मेलन में बिहार में ज़मींदारी प्रथा के अन्याय के विरुद्ध शिकायत करने आया था, और शायद किसी ने उससे कहा था, “गाँधी से बात करो।”)

Gandhi told Shukla he had an appointment in Cawnpore and was also committed to go to other parts of India. Shukla accompanied him everywhere. Then Gandhi returned to his ashram near Ahmedabad. Shukla followed him to the ashram. For weeks he never left Gandhi’s side. “Fix a date,” he begged. Impressed by the sharecropper’s tenacity and story Gandhi said, “I have to be in Calcutta on such-and-such a date. Come and meet me and take me from there.”

(गाँधी ने शुक्ला को बताया कि कानपुर में उनका पूर्वनिश्चित कार्यक्रम है और भारत के अन्य भागों में जाने का भी उन्होंने वायदा कर रखा है। शुक्ला उनके साथ हर स्थान पर गया। फिर गाँधी अहमदाबाद के निकट अपने आश्रम में लौट आए। शुक्ला उनके पीछे-पीछे आश्रम तक आया। हफ्तों तक उसने गाँधी का साथ न छोड़ा। “मिलने की तारीख पक्की कर लो,” उसने प्रार्थना की। उस बँटाई पर काम करने वाले किसान के धैर्य और इरादे से प्रभावित होकर गाँधी ने कहा, “फलां तारीख को मुझे कलकत्ता में जाना है। वहाँ आकर मुझसे मिलो और मुझे वहाँ से ले जाना।”)

Months passed. Shukla was sitting on his haunches at the appointed spot in Calcutta when Gandhi arrived; he waited till Gandhi was free. Then the two of them boarded a train for the city of Patna in Bihar. There Shukla led him to the house of a lawyer named Rajendra Prasad who later became President of the Congress party and of India. Rajendra Prasad was out of town, but the servants knew Shukla as a poor yeoman who pestered their master to help the indigo sharecroppers. So they let him stay on the grounds with his companion, Gandhi, whom they took to be another peasant. But Gandhi was not permitted to draw water from the well lest some drops from his bucket pollute the entire source; how did they know that he was not an untouchable?

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(महीने बीत गए। जब गाँधी कलकत्ता पहुँचे, शुक्ला अपने नितम्बों पर निश्चित स्थान पर बैठा हुआ था; उसने गाँधी के कार्य-मुक्त होने तक प्रतीक्षा की। फिर उन दोनों ने बिहार में पटना शहर के लिए ट्रेन पकड़ी। वहाँ शुक्ला उन्हें राजेन्द्र प्रसाद नामक एक वकील के पास ले गया जो बाद में काँग्रेस पार्टी के प्रधान और भारत के राष्ट्रपति बने। राजेन्द्र प्रसाद शहर में नहीं थे, परन्तु नौकर शुक्ला को एक ऐसे गरीब किसान के रूप में जानते थे जो नील की बँटाई पर खेती करने वाले किसानों की मदद के लिए उनके मालिक के पीछे लगा रहता था। इसलिए उन्होंने उसे जमीन पर अपने साथी गाँधी के साथ ठहरने दिया, जिन्हें उन्होंने कोई अन्य किसान मान लिया था। परन्तु गाँधी को कुएँ से पानी निकालने की अनुमति नहीं थी क्योंकि कहीं उनकी बाल्टी से निकली कुछ बूंदें पूरे कुएँ को खराब न कर दें, उन्हें कैसे पता होता कि वे अछूत नहीं थे।)

Gandhi decided to go first to Muzzafarpur, which was en route to Champaran, to obtain more complete information about conditions than Shukla was capable of imparting. He, accordingly, sent a telegram to Professor J.B. Kripalani, of the Arts College in Muzzafarpur, whom he had seen at Tagore’s Shantiniketan school. The train arrived at midnight, 15 April 1917. Kripalani was waiting at the station with a large body of students. Gandhi stayed there for two days in the home of Professor Malkani, a teacher in a government school. “It was an extraordinary thing in those days,” Gandhi commented, “for a government professor to harbour a man like me.” in smaller localities, the Indians were afraid to show sympathy for advocates of home

(स्थिति के बारे में शुक्ला से भी अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए गाँधी ने पहले मुज़फ्फरपुर जाने का फैसला किया, जो चम्पारन के रास्ते में पड़ता था। इसलिए उन्होंने मुज़फ्फरपुर के आर्टस कॉलेज के प्राध्यापक जे०बी० कृपलानी के पास तार भेजा, जिनको वे टैगोर के शान्ति निकेतन स्कूल में मिले थे। गाड़ी 15 अप्रैल, 1917 की आधी रात को आई। कृपलानी बहुत-से विद्यार्थियों के साथ स्टेशन पर इन्तजार कर रहे थे। गाँधी वहाँ प्राध्यापक मलकानी के घर दो दिन रुके, जो सरकारी स्कूल में एक अध्यापक गे। गाँधी ने कहा, “एक सरकारी प्राध्यापक के लिए, मेरे जैसे आदमी को पनाह देना उन दिनों में एक असामान्य बात थी।” छोटी हों में भारतीय लोग होमरूल के समर्थकों के लिए सहानुभूति दिखाने से डरते थे।)

The news of Gandhi’s advent and of the nature of his mission spread quickly through Muzzafarpur and Champaran. Sharecroppers from Champaran began arriving on foot and by conveyance to see their champion. Muzaffarpur lawyers called on Gandhi to brief him; they frequently represented peasant groups in court; they told him about their cases and reported the size of their fee.

(गाँधी के आगमन और उनके आने के अभिप्राय का समाचार शीघ्र ही मुज़फ्फरपुर और चम्पारन में फैल गया। अपने मसीहा को देखने के लिए बँटाईदार किसान पैदल और गाड़ियों में चम्पारन से आने लगे। मुज़फ्फरपुर के वकील गाँधी को जानकारी देने के लिए उनसे मिलने आए; वे प्रायः किसानों के समूहों के मुकद्दमे कचहरी में लड़ा करते थे; उन्होंने अपने मुकद्दमों और अपनी फीस की रकम के बारे में बताया।)

Gandhi chided the lawyers for collecting big fee from the sharecroppers. He said, “I have come to the conclusion that we should stop going to law courts. Taking such cases to the courts does little good. Where the peasants are so crushed and fear-stricken, law courts are useless. The real relief for them is to be free from fear.”

(बँटाईदार किसानों से मोटी फीस लेने के लिए गाँधी ने वकीलों को डाँटा। वह बोले, “मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि हमें कचहरी जाना बन्द कर देना चाहिए। ऐसे मामलों को कचहरी में ले जाने का कोई लाभ नहीं है। जहाँ किसान इतने दबे हुए और डरे हुए हों, वहाँ कचहरियाँ बेकार हैं। उनके लिए वास्तविक राहत तो भय से छुटकारा पाने में है।”)

Most of the arable land in the Champaran district was divided into large estates owned by Englishmen and worked by Indian tenants. The chief commercial crop was indigo. The landlords compelled all tenants to plant three twentieths or 15 percent of their holdings with indigo and surrender the entire indigo harvest as rent. This was done by long-term contract.

Presently, the landlords learned that Germany had developed synthetic indigo. They, thereupon, obtained agreements from the sharecroppers to pay them compensation for being released from the 15 per cent arrangement.

(चम्पारन जिले की अधिकांश कृषि योग्य भूमि को बड़े-बड़े हिस्सों में बाँट दिया गया था जिन पर अंग्रेजों का अधिकार था और भारतीय कृषक उन पर मुजाहिरों के रूप में कार्य करते थे। मुख्य व्यापारिक फसल नील थी। जमींदार सभी किसानों को मजबूर करते थे कि वे अपनी जमीन के एक-तिहाई या 15 प्रतिशत भाग पर नील की खेती करें और सारी नील की फसल लगान के रूप में दे दें। ऐसा एक लम्बे समय के अनुबन्ध द्वारा किया गया। तभी जमींदारों को पता लगा कि जर्मनी ने कृत्रिम नील पैदा कर लिया है। तब उन्होंने बँटाईदारों से ऐसे इकरारनामें कर लिए जिनसे उन्हें 15 प्रतिशत के बंधन से मुक्ति देने के लिए जमींदारों को हर्जाना देना था।)

The sharecropping arrangement was irksome to the peasants, and many signed willingly. Those who resisted, engaged lawyers; the landlords hired thugs. Meanwhile, the information about synthetic indigo reached the illiterate peasants who had signed, and they wanted their money back. At this point Gandhi arrived in Champaran.

(फसल बँटाई का प्रबंध किसानों को परेशान करता था, और बहुतों ने इच्छा से हस्ताक्षर कर दिए। विरोध करने वालों ने वकीलों का सहारा लिया; जमींदारों ने ठगों (गुण्डों) को किराए पर रखा। इस बीच, कृत्रिम नील का समाचार अनपढ़ किसानों तक पहुँच गया, जो हस्ताक्षर कर चुके थे और वे अपने पैसे वापिस चाहते थे। इस समय पर गाँधी चम्पारन में आए।)

He began by trying to get the facts. First he visited the secretary of the British landlord’s association. The secretary told him that they could give no information to an outsider. Gandhi answered that he was no outsider. Next, Gandhi called on the British official commissioner of the Tirhut division in which the Champaran district lay. “The commissioner,” Gandhi reports, “proceeded to bully me and advised me forthwith to leave Tirhut.”

(उन्होंने अपना कार्य तथ्यों की जानकारी लेने के प्रयत्न से प्रारम्भ किया। पहले वे ब्रिटिश ज़मींदार संगठन के सचिव से मिले। सचिव ने उनसे कहा कि वे किसी बाहरी व्यक्ति को कोई सूचना नहीं दे सकते। गाँधी ने कहा कि वह बाहरी व्यक्ति नहीं है। इसके बाद गाँधी तिरहुत डिविज़न के ब्रिटिश सरकारी कमिश्नर से मिलने गए जिसके अन्तर्गत चम्पारन जिला पड़ता था “कमिश्नर ने,” गाँधी बताते हैं, “मुझे डराना-धमकाना प्रारम्भ किया और सलाह दी कि मैं तुरन्त तिरहुत से चला जाऊँ।”)

Gandhi did not leave. Instead he proceeded to Motihari, the capital of Champaran. Several lawy accompanied him. At the railway station, a vast multitude greeted Gandhi. He went to a house and, using in headquarters, continued his investigations. A report came in that a peasant had been maltreated in a nearby villa Gandhi decided to go and see; the next morning he started out on the back of an elephant. He had not proceeded far when the police superintendent’s messenger overtook him and ordered him to return to town in his carriage. Gandhi complied. The messenger drove Gandhi home where he served him with an official notice to quite Champaran immediately. Gandhi signed a receipt for the notice and wrote on it that he would disobey the order.

(गाँधी नहीं गए। इसके बजाय वे चम्पारन की राजधानी, मोतीहारी की तरफ चल पड़े। कई वकील उनके साथ चले। रेलवे स्टेशन पर एक विशाल जनसमूह ने गाँधी का स्वागत किया। वे एक घर में गए और उसका उपयोग हैडक्वार्टर के रूप में करते हुए अपनी खोजबीन जारी रखी। एक खबर आई कि पास के एक गाँव में एक किसान के साथ दुर्व्यवहार हुआ है। गाँधी ने जाकर देखने का निश्चय किया; अगले दिन प्रातः वे एक हाथी पर सवार होकर चल पड़े। वे अधिक दूर नहीं गए थे जब पुलिस सुपरिन्टेंडेंट का एक सन्देशवाहक उनके पास आ पहुँचा और उन्हें आज्ञा दी कि वे उसकी गाड़ी में बैठकर शहर वापिस लौटें। गाँधी ने आज्ञा मान ली। सन्देशवाहक गाँधी को लेकर घर आया जहाँ उसने उन्हें तुरन्त चम्पारन छोड़ने का सरकारी नोटिस दिया। गाँधी ने नोटिस की रसीद पर हस्ताक्षर किए और इस पर लिखा कि वे आज्ञा का उल्लंघन करेंगे।)

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In consequence, Gandhi received a summons to appear in court the next day. All night Gandhi remained awake. He telegraphed Rajendra Prasad to come from Bihar with influential friends. He sent instructions to the ashram. He wired a full report to the Viceroy.

(परिणामस्वरूप, अगले दिन गाँधी को कचहरी में उपस्थित होने का कोर्ट का आदेश मिला। गाँधी रात भर जागते रहे। उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद को तार किया कि वे बिहार से अपने प्रभावशाली मित्रों को लेकर आ जाएँ। उन्होंने आश्रम को हिदायतें भेजीं। उन्होंने वाइसराय को तार से पूरी रिपोर्ट भेजी।)

Morning found the town of Motihari back with peasants. They did not know Gandhi’s record in South Africa. They had merely heard that a Mahatma who wanted to help them was in trouble with the authorities. Their spontaneous demonstration, in thousands, around the courthouse was the beginning of their liberation from fear of the British.

The officials felt powerless without Gandhi’s cooperation. He helped them regulate the crowd. He was polite and friendly. He was giving them concrete proof that their might, hitherto dreaded and unquestioned, could be challenged by Indians.

(सुबह के समय मोतीहारी नगर किसानों से भर चुका था। वे गाँधी के दक्षिण अफ्रीका के इतिहास के बारे में कुछ नहीं जानते थे। उन्होंने सिर्फ इतना सुना था कि एक महात्मा जो उनकी सहायता करना चाहता था, अधिकारियों के कारण मुसीबत में था। हजारों की संख्या में कचहरी के चारों ओर उनका सहज विरोध प्रदर्शन, अंग्रेजों से उनके भय-मुक्त होने की शुरुआत थी। गाँधी के सहयोग के बिना अफसरों ने अपने-आपको कमजोर पाया। भीड़ को नियन्त्रित करने में उन्होंने उनकी सहायता की। वे विनम्र और मैत्रीपूर्ण बने रहे। वे उन्हें इस बात का ठोस प्रमाण दे रहे थे कि उनकी शक्ति को जो अभी तक भयपूर्ण और निर्विवाद थी, भारतीयों द्वारा चुनौती दी जा सकती थी।)

The government was baffled. The prosecutor requested the judge to postpone the trial. Apparently, the authorities wished to consult their superiors. Gandhi protested against the delay. He read a statement pleading guilty. He was involved, he told the court, in a “conflict of duties” – on the one hand, not to set a bad example as a lawbreaker; on the other hand, to render the “humanitarian and national service” for which he had come. He disregarded the order to leave, “not for want of respect for lawful authority, but in obedience to the higher law of our being, the voice of conscience”. He asked the penalty due.

(सरकार घबराई हुई थी। सरकारी वकील ने जज से मुकद्दमें को टालने का आग्रह किया। स्पष्ट था कि अधिकारी अपने से बड़े अधिकारियों से सलाह लेना चाहते थे। गाँधी ने देरी के विरुद्ध विरोध किया। उन्होंने (अपना) अपराध स्वीकार करते हुए एक बयान पड़ा। उन्होंने कचहरी को बताया कि वे “कर्त्तव्यों के संघर्ष” में उलझे हुए थे एक तरफ (वे) कानून तोड़ने वाला बुरा उदाहरण नहीं बनना चाहते थे; दूसरे ओर (वे) वह “मानवी और राष्ट्रीय सेवा” करना चाहते थे जिसके लिए वे आए थे। उन्होंने वहाँ से जाने की आज्ञा का उल्लंघन, “कानूनी अधिकार के प्रति आदर की कमी के कारण नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के उच्चतर कानून, आत्मा की आवाज के पालन के कारण” किया है। उन्होंने उचित दण्ड दिए जाने का आग्रह किया।)

The magistrate announced that he would pronounce sentence after a two-hour recess and asked Gandhi to furnish bail for those 120 minutes. Gandhi refused. The judge released him without bail. When the court reconvened, the judge said he would not deliver the judgment for several days. Meanwhile he allowed Gandhi to remain at liberty.

(जज ने घोषणा की कि वह दो घण्टे के अन्तराल के बाद सजा सुनाएगा और गाँधी को 120 मिनट की जमानत लेने को कहा। गाँधी ने इन्कार कर दिया। जज ने उन्हें बिना जमानत के ही मुक्त कर दिया। जब अदालत फिर से लगी तब, जज ने कहा कि वह कई दिनों तक निर्णय नहीं देगा। इस बीच उसने गाँधी को मुक्त रहने दिया।)

Rajendra Prasad, Brijkishor Babu, Maulana Mazharul Huq and several other prominent lawyers had arrived from Bihar. They conferred with Gandhi. What would they do if he was sentenced to prison, Gandhi asked. Why, the senior lawyer replied, they had come to advise and help him, if he went to jail there would be nobody to advise and they would go home.

What about the injustice to the sharecroppers, Gandhi demanded. The lawyers withdrew to consult. Rajendra Prasad has recorded the upshot of their consultations – “They thought, amongst themselves, that Gandhi was totally a stranger, and yet he was prepared to go to prison for the sake of the peasants; if they, on the other hand, being not only residents of the adjoining districts but also those who claimed to have served these peasants, should go home, it would be shameful desertion.”

(राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर बाबू, मौलाना मजहरूल हक और कई अन्य प्रसिद्ध वकील बिहार से आए हुए थे। उन्होंने गाँधी से विचार-विमर्श किया। अगर उन्हें (गाँधी को) सजा हुई तो वे लोग क्या करेंगे, गाँधी ने पूछा। क्यों वरिष्ठ वकील ने कहा, वे लोग तो उन्हें सलाह और सहायता देने के लिए आए थे, अगर उन्हें जेल हो गई तो कोई व्यक्ति नहीं होगा जिसे सलाह दी जाए और वे घर चले जाएँगे। बँटाईदारों के प्रति होने वाले अन्याय का क्या, गाँधी ने पूछा।

आपसी सलाह के लिए वकील अलग चले गए। राजेन्द्र प्रसाद ने उनके आपसी विचार-विमर्श के परिणाम के बारे में लिखा है-“उन लोगों ने परस्पर विचार किया कि गाँधी पूर्णतः एक अजनबी थे, फिर भी वे किसानों के लिए जेल जाने को तैयार थे; दूसरी ओर, अगर वे लोग जो न केवल पड़ोसी जिलों के निवासी थे बल्कि उन किसानों की सेवा करने का दावा भी करते थे, घर चले गए तो यह शर्मनाक भगोड़ापन होगा।”)

They accordingly went back to Gandhi and told him they were ready to follow him into jail. “The battle of Champaran is won,” he exclaimed. Then he took a piece of paper and divided the group into pairs and put down the order in which each pair was to court arrest.

. (इस प्रकार वे गाँधी के पास वापिस गए और कहा कि वे उनके साथ जेल जाने के लिए तैयार हैं। “चम्पारन की लड़ाई जीत ली है”, वह उत्साह से बोले। फिर उन्होंने कागज़ का एक टुकड़ा लिया और समूह को जोड़ों में बाँट दिया और वह क्रम लिख दिया जिसके अनुसार हर जोड़े को गिरफ्तारी देनी थी।)

Several days later, Gandhi received a written communication from the magistrate informing him that the Lieutenant-Governor of the province had ordered the case to be dropped. Civil disobedience had triumphed, the first time in modern India.

(कई दिन बाद, गाँधी को मजिस्ट्रेट से एक लिखित सन्देश मिला कि प्रान्त के लेफ्टिनेंट-गवर्नर ने मुकद्दमें को खारिज करने की आज्ञा दी है। आधुनिक भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की यह पहली विजय थी।)

Gandhi and the lawyers now proceeded to conduct a far-flung inquiry into the grievances of the farmers. Depositions by about ten thousand peasants were written down, and notes made on other evidence. Documents were collected. The whole area throbbed with the activity of the investigators and the vehement protests of the landlords. In June, Gandhi was summoned to Sir Edward Gait the Lieutenant-Governor. Before he went he met leading associates and again laid detailed plans for civil disobedience if he should not return.

(गाँधी और वकील अब दूर-दूर के इलाकों से किसानों की शिकायतों के बारे में जाँच-पड़ताल करने लगे। लगभग दस हजार किसानों के बयान लिखे गए और दूसरे प्रमाणों के बारे में नोट्स बनाए गए। बयान इकट्ठे किए गए। सारा इलाका पड़ताल करने वालों के क्रिया-कलापों और जमींदारों के तीव्र विरोध से धड़कने लगा। जून में गाँधी को लेफ्टिनेंट-गवर्नर सर एडवर्ड गेट ने बुलाया। अपने जाने से पहले वे अपने प्रमुख साथियों से मिले और फिर से अपने न लौटने की स्थिति में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की विस्तृत योजना बनाई।)

Gandhi had four protracted interviews with the Lieutenant-Governor who, as a result, appointed an official commission of inquiry into the indigo sharecroppers’ situation. The commission consisted of landlords, government officials, and Gandhi as the sole representative of the peasants. Gandhi remained in Champaran for an initial uninterrupted period of seven months and then again for several shorter visits. The visit, undertaken casually on the entreaty of an unlettered peasant in the expectation that it would last a few days, occupied almost a year of Gandhi’s life.

(लेफ्टिनेंट-गवर्नर के साथ गाँधी की चार लम्बी मुलाकातें हुईं जिनके परिणामस्वरूप उसने नील बँटाईदारों की स्थिति की जानकारी की जाँच-पड़ताल के लिए एक सरकारी कमीशन नियुक्त किया। इस कमीशन में जमींदार, सरकारी अफसर और किसानों के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधी थे। चम्पारन में पहली बार गाँधी लगातार सात महीनों तक रहे और फिर कई बार वहाँ की छोटी-छोटी यात्राएँ की। वह यात्रा जो एक निरक्षर किसान की प्रार्थना पर बड़े हल्के ढंग से इस आशा से की गई थी कि इसमें कुछ ही दिन लगेंगे, गाँधी के जीवन का लगभग एक वर्ष ले गई।)

The official inquiry assembled a crushing mountain of evidence against the big planters, and when they saw this they agreed, in principle, to make refunds to the peasants. “But how much must we pay?” they asked Gandhi.
(सरकारी पड़ताल ने जमींदारों के विरुद्ध पहाड़ जैसे मजबूत प्रमाण एकत्रित कर लिए, और जब उन्होंने देखा तो वे सिद्धान्ततः किसानों को धन वापस देने को मान गए। “पर हमें कितना देना होगा?” उन्होंने गाँधी से पूछा।)

They thought he would demand repayment in full of the money which they had illegally and deceitfully extorted from the sharecroppers. He asked only 50 percent. “There he seemed adamant,” writes Reverend J.Z. Hodge, a British missionary in Champaran who observed the entire episode at close range, “Thinking probably that he would not give way, the representative of the planters offered to refund to the extent of 25 percent, and to his amazement Mr. Gandhi took him at his word, thus breaking the deadlock.”

(उन्होंने सोचा था कि वे उस धन की पूरी वापसी माँगेंगे जो उन्होंने बँटाईदारों से गैर-कानूनी और बेईमानी से वसूला था। उन्होंने केवल आधा ही माँगा। “इस पर वे अडिग दिखते थे,” चम्पारन का एक ब्रिटिश मिशनरी जे०जैड० हौज जिसने इस सारे घटनाक्रम को नजदीकी से देखा था, लिखता है “यह सोचकर कि शायद वे अडिग रहेंगे, जमींदारों के प्रतिनिधि ने 25 प्रतिशत की सीमा तक लौटाने का प्रस्ताव किया, और उसे हैरानी हुई कि मि० गाँधी ने उसकी बात मान ली, इस प्रकार गतिरोध दूर हो गया।”)

This settlement was adopted unanimously by the commission. Gandhi explained that the amount of the refund was less important than the fact that the landlords had been obliged to surrender part of the money and, with it, part of their prestige. Therefore, as far as the peasants were concerned, the planters had behaved as lords above the law. Now the peasant saw that he had rights and defenders. He learned courage. Events justified Gandhi’s position. Within a few years the British planters abandoned their estates, which reverted to the peasants. Indigo sharecropping disappeared.

(इस समझौते को कमीशन ने एक मत से स्वीकार कर लिया। गाँधी ने कहा कि रिफण्ड की रकम का महत्त्व कम है, इस तथ्य की तुलना में कि जमींदारों को धन का एक भाग और उसी के साथ अपनी इज्जत का भाग लौटाना पड़ा। इस प्रकार जहाँ तक किसानों का सवाल था, जमींदारों ने ऐसा व्यवहार किया मानों वे कानून के ऊपर कोई स्वामी हों। अब किसानों को पता लगा कि उनके अधिकार हैं और रक्षक भी। उनमें साहस आया। घटनाओं ने गाँधी की बात को सही साबित किया। कुछ ही सालों में अंग्रेज जमींदारों ने जमीनें छोड़ दी जो वापिस किसानों के पास आ गई। नील की खेती की बँटवाई का काम समाप्त हो गया।)

Gandhi never contented himself with large political or economic solutions. He saw the cultural and social backwardness in the Champaran villages and wanted to do something about it immediately. He appealed for teachers. Mahadev Desai and Narhari Parikh, two young men who had just joined Gandhi as disciples, and their wives, volunteered for the work. Several more came from Bombay, Poona and other distant parts of the land. Devadas, Gandhi’s youngest son, arrived from the ashram and so did Mrs. Gandhi. Primary schools were opened in six villages. Kasturbai taught the ashram rules on personal cleanliness and community sanitation.

(गाँधी बड़े राजनीतिक एवं आर्थिक समाधानों से कभी सन्तुष्ट नहीं थे। उसने चम्पारन के गाँवों का सांस्कृतिक एवं सामाजिक पिछड़ापन देखा, और वह इसके बारे में तुरन्त कुछ करना चाहते थे। उसने अध्यापकों से प्रार्थना की। महादेव देसाई और नरहरी पारिख, दो नौजवान जो अभी गाँधी से उनके शिष्यों के रूप में जुड़े थे और उनकी पत्नियों ने स्वेच्छा से काम हाथ में लिया। कुछ और लोग बम्बई, पूना और दूसरी जगहों से आए। देवदास, गाँधी का सबसे छोटा लड़का आश्रम से और ऐसे ही श्रीमती गाँधी भी आई। छः गाँवों में प्राथमिक पाठशालाएँ खोली गईं। कस्तूरबा ने व्यक्तिगत सफाई और सामुदायिक सफाई के आश्रम के नियम पढ़ाएँ।)

Health conditions were miserable. Gandhi got a doctor to volunteer his services for six months. Three medicines were available: castor oil, quinine and sulphur ointment. Anybody who showed a coated tongue was given a dose of castor oil; anybody with malaria fever received quinine plus castor oil; anybody with skin eruptions received ointment plus castor oil.

(स्वास्थ्य की स्थिति बुरी थी। गाँधी ने एक डॉक्टर की सेवाएँ छः महीने तक ली। तीन दवाएँ उपलब्ध थीं कैस्टर ऑयल, कुनीन और गंधक की मलहम। जिस किसी की भी जीभ परत से ढकी होती थी उसे कैस्टर ऑयल की एक खुराक दी जाती थी; मलेरिया बुखार से पीड़ित व्यक्ति को कैस्टर और कुनीन मिलती थी; फोड़े-फुन्सी वाले किसी भी व्यक्ति को मलहम और कैस्टर ऑयल मिलता था।)

Gandhi noticed the filthy state of women’s clothes. He asked Kasturbai to talk to them about it. One woman took Kasturbai into her hut and said, “Look, there is no box or cupboard here for clothes. The sari I am wearing is the only one I have.” During his long stay in Champaran, Gandhi kept a long-distance watch on the ashram. He sent regular instructions by mail and asked for financial accounts. Once he wrote to the residents that it was time to fill in the old latrine trenches and dig new ones otherwise the old ones would begin to smell bad.

(गाँधी ने औरतों के कपड़ों की गन्दी हालत पर ध्यान दिया। उन्होंने कस्तूरबा से कहा कि इस बारे में वे उनसे बात करे। एक औरत कस्तूरबा को अपनी झोंपड़ी में ले गई और बोली, “देखो, यहाँ कोई सन्दूक या अलमारी नहीं है जिसमें कपड़े रखे जा सकें। मैंने जो साड़ी पहनी है, वही एक साड़ी मेरे पास है।” चम्पारन में अपने लम्बे निवास के दौरान गाँधी आश्रम पर दूर से नजर रखे हुए थे। वे डाक से लगातार हिदायतें भेजते रहते थे और वित्तीय हिसाब पूछते थे। एक बार उन्होंने निवासियों को लिखा कि पाखाने के पुराने गड्ढों को भरने का और नए गड्ढे खोदने का समय आ गया है वरना पुराने गड्ढे बदबू देना प्रारम्भ कर देंगे।)

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The Champaran episode was a turning-point in Gandhi’s life. “What I did,” he explained, “was a very ordinary thing. I declared that the British could not order me about in my own country.”(चम्पारन का घटनाक्रम गाँधी के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था। “जो कुछ मैंने किया,” उन्होंने समझाया, “बड़ी साधारण बात थी”। मैंने यह घोषणा की थी कि ब्रिटिश मुझे अपने ही देश में आदेश नहीं दे सकते थे।”)

But Champaran did not begin as an act of defiance. It grew out of an attempt to alleviate the distress of large numbers of poor peasants. This was the typical Gandhi pattern – his politics were intertwined with the practical, day-to-day problems of the millions. His was not a loyalty to abstractions; it was a loyalty to living, human beings. In everything Gandhi did, moreover, he tried to mould a new free Indian who could stand on his own feet and thus make India free.

(परन्तु चम्पारन का प्रारम्भ अवज्ञा के कार्य से नहीं हुआ। इसका प्रारम्भ अनेकानेक गरीब किसानों की परेशानी दुःख दूर करने के प्रयत्न से हुआ। यह विशेष गाँधीवादी तरीका था-उनकी राजनीति व्यवहारिकता से जुड़ी हुई थी, लाखों लोगों की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं के साथ। उनकी निष्ठा विचारों के प्रति नहीं थी; यह निष्ठा जीते-जागते मानवों के प्रति थी। जो कुछ गाँधी ने किया उसमें उसने एक स्वतन्त्र भारतीय को आकार देने की कोशिश की जो अपने पैरों पर खड़ा हो सकता था और इस प्रकार भारत को स्वतन्त्र करा सकता था।)

Early in the Champaran action, Charles Freer Andrews, the English pacifist who had become a devoted follower of the Mahatma, came to bid Gandhi farewell before going on a tour of duty to the Fiji Islands. Gandhi’s lawyer friends thought it would be a good idea for Andrews to stay in Champaran and help them. Andrews was willing if Gandhi agreed. But Gandhi was vehemently opposed. He said, “You think that in this unequal fight it would be helpful if we have an Englishman on our side. This shows the weakness of your heart. The cause is just and you must rely upon yourselves to win the battle. You should not seek a prop in Mr. Andrews because he happens to be an Englishman”.

(चम्पारन आन्दोलन के प्रारम्भिक दौर में चार्ल्स फरीर एन्ड्रयूज जो एक अंग्रेज शान्तिवादी था, जो महात्मा का अनुयायी बन गया था, फिजी टापू पर अपनी ड्यूटी की यात्रा पर जाने से पहले गाँधी को अलविदा कहने आया। गाँधी के वकील दोस्त सोचते थे कि एन्ड्रयूज का चम्पारन में रहकर उनकी सहायता करने का विचार अच्छा था। यदि गाँधी सहमत होते तो एन्ड्रयूज तैयार था। परन्तु गाँधी ने एकदम विरोध किया। उसने कहा, “आप सोचते हैं कि इस असमान लड़ाई में हमारी तरफ़ एक अंग्रेज का होना सहायक होगा। यह आपके दिल की कमजोरी को दिखाता है। यह उद्देश्य न्याय संगत है और इस लड़ाई को जीतने में आपको अपने आप पर विश्वास करना चाहिए। आपको मि० एन्ड्रयूज के रूप में एक आश्रय नहीं ढूँढना चाहिए क्योंकि वह एक अंग्रेज है।”

“He had read our minds correctly,” Rajendra Prasad comments, “and we had no reply… Gandhi in this way taught us a lesson in self-reliance”. Self-reliance, Indian independence, and help to sharecroppers were all bound together.
(“वह हमारे मन को ठीक तरह से पढ़ चुका था,” राजेन्द्र प्रसाद कहते हैं, “और हमारे पास कोई जवाब नहीं था….गाँधी ने इस तरह से हमें आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया।” आत्मनिर्भरता, भारत की स्वतन्त्रता और सांझी खेती करने वालों की सहायता, सभी एक साथ बंधे हुए थे।)

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

HBSE 12th Class Political Science कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबन्धन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केन्द्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत
(घ) गलत।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित का मेल करें
(क) सिंडिकेट – (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ख) दल-बदल – (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(ग) नारा – (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।
(घ) ग़ै-कांग्रेसवाद – (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह ।
उत्तर:
(क) सिंडिकेट – (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।
(ख) दल-बदल – (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए।
(ग) नारा – (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।
(घ) गैर-कांग्रेसवाद – (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

प्रश्न 3.
निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का सम्बन्ध है
(क) जय जवान, जय किसान
(ख) इन्दिरा हटाओ
(ग) ग़रीबी हटाओ।
उत्तर:
(क) श्री लाल बहादुर शास्त्री
(ख) सिंडीकेट
(ग) श्रीमती इन्दिरा गांधी।

प्रश्न 4.
1971 के ‘ग्रैंड अलायन्स’ के बारे में कौन-सा कथन ठीक है ?
(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।
उत्तर:
(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।

प्रश्न 5.
किसी राजनीतिक दल को अपने अन्दरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए ? यहां कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फ़ायदों और घाटों को लिखिए।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:
(क) पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए पार्टी अध्यक्ष के बताए मार्ग पर चलने से पार्टी में एकता और अनुशासन बना रहेगा, परन्तु इससे एक व्यक्ति की तानाशाही स्थापित होने का खतरा बना रहता है।

(ख) मतभेदों को दूर करने के लिए बहुमत की राय जानने से यह लाभ होगा कि इससे अधिकांश सदस्यों की राय का पता चलेगा, परन्तु बहुमत की राय मानने से अल्पसंख्यकों की उचित बात की अवहेलना की सम्भावना बनी रहेगी।

(ग) पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाने से प्रत्येक सदस्य अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रख सकेगा, परन्तु गुप्त मतदान में क्रॉस वोटिंग का खतरा बना रहता है।

(घ) पार्टी मतभेदों को दूर करने के लिए वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की सलाह का विशेष लाभ होगा, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं के पास अनुभव होता है तथा सभी सदस्य उनका आदर करते हैं, परन्तु वरिष्ठ एवं अनुभवी व्यक्ति नये विचारों एवं मूल्यों को अपनाने से कतराते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे/किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क कीजिए
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक समूहों की लामबन्दी को बढ़ाना।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद।
उत्तर:
गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता तथा कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण है। 1967 के चुनावों में अधिकांश विपक्षी दलों ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर मतभेद बने हुए थे।

प्रश्न 7.
1970 के दशक में इन्दिरा गांधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी ?
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 4 देखें।

प्रश्न 8.
1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के सन्दर्भ में ‘सिंडिकेट’ का क्या अर्थ है ? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 6 देखें।

प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई ?
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 3 देखें।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें इन्दिरा गांधी ने कांग्रेस को अत्यन्त केन्द्रीकृत और अलोकतान्त्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतान्त्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी।
नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियां भी बनानी थीं-1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इन्दिरा गांधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अन्तर था ?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस ‘मर गई’ ?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा ?
उत्तर:
(क) पं. नेहरू पार्टी के नेताओं से विचार-विमर्श करके अपनी रणनीतियां बनाते थे, जबकि श्रीमती गांधी कई बार बिना किसी से कोई परामर्श किये ही रणनीतियां बनाती थीं।

(ख) लेखक ने इसलिए कहा कि कांग्रेस पार्टी मर गई, क्योंकि श्रीमती गांधी के समय पार्टी संगठन को महत्त्व नहीं दिया जाता था।

(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों से दूसरी पार्टियों को एकजुट होने में सहायता मिली।

 कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना HBSE 12th Class Political Science Notes

→ पं० जवाहर लाल नेहरू 1947 से 1964 तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे।

→ मई, 1964 में पं. नेहरू की मृत्यु के पश्चात् श्री लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमन्त्री बने।

→ जनवरी, 1966 में श्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गांधी देश की प्रधानमन्त्री बनी।

→ 1967 के चौथे आम चुनाव में चुनावी बदलाव हुआ और राज्य स्तर पर गैर कांग्रेसवाद की शुरुआत हुई।

→ 1969 में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया, जिसके कई कारण थे, जैसे दक्षिण-पंथी एवं वामपंथी विषय पर कलह, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विषय में मतभेद, युवा तुर्क एवं सिंडीकेट के बीच कलह तथा मोरारजी देसाई से वित्त विभाग वापिस लेना इत्यादि।

→ 1971 के चुनावों में श्रीमती इन्दिरा गांधी को ऐतिहासिक जीत प्राप्त हुई।

→ श्रीमती इन्दिरा गांधी की जीत के कई कारण थे-जैसे–श्रीमती गांधी का चमत्कारिक नेतृत्व, समाजवादी नीतियां, कांग्रेस दल पर श्रीमती गांधी की पकड, श्रीमती गांधी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण तथा ग़रीबी हटाओ का नारा।

→ ग़रीबी हटाओ का नारा 1971 के चुनाव में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने दिया।

→ 1971 के चुनावों में जहां श्रीमती गांधी ने ‘ग़रीबी हटाओ’ का नारा दिया, वहीं उनके विरोधियों ने इन्दिरा हटाओ का नारा दिया, जिसे मतदाताओं ने पसन्द नहीं किया तथा श्रीमती गांधी के पक्ष में मतदान किया।

→ श्रीमती गांधी की सरकार द्वारा ग़रीबी हटाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

HBSE 12th Class Sociology परियोजना कार्य के लिए सुझाव Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निरीक्षण विधि की विशेषताएं बताएं।
(A) वैज्ञानिक सूक्षमता संभव है
(B) अपने आप निरीक्षण करना
(C) विश्वास योग्य
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 2.
निरीक्षण के कितने प्रकार हैं?
(A) दो
(B) पाँच
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर:
पाँच।

प्रश्न 3.
सहभागी निरीक्षण में वैज्ञानिक किसका भाग बन जाता है?
(A) समूह का
(B) समाज का
(C) घर का
(D) देश का।
उत्तर:
समूह का।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 4.
किस निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता कई प्रकार से समूह का अंग बनता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
सहभागी।

प्रश्न 5.
किस निरीक्षण में वैज्ञानिक तटस्थ भाव से निरीक्षण करता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
असहभागी।

प्रश्न 6.
किस प्रकार के निरीक्षण में वैज्ञानिक समूह की कुछ गतिविधियों में भाग लेता है?
(A) सहभागी
(B) असहभागी
(C) अर्ध-सहभागी
(D) अनियंत्रित।
उत्तर:
अर्ध-सहभागी।

प्रश्न 7.
जब वैज्ञानिक स्वाभाविक रूप में तथा स्वाभाविक स्थान पर निरीक्षण करते हैं तो उसे क्या कहते हैं?
(A) अनियंत्रित निरीक्षण
(B) नियंत्रित निरीक्षण
(C) सहभागी निरीक्षण
(D) अर्ध-सहभागी निरीक्षण।
उत्तर:
अनियंत्रित निरीक्षण।

प्रश्न 8.
नियंत्रण कितने प्रकार का होता है?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर:
दो।

प्रश्न 9.
निरीक्षण विधि का गुण बताएं।
(A) विश्वासयोग्य
(B) आसान
(C) सर्वव्यापक
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 10.
साक्षात्कार का क्या अर्थ है?
(A) घटना से संबंधित व्यक्ति से औपचारिक वार्तालाप
(B) व्यक्ति से मिलना
(C) a+b
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
घटना से संबंधित व्यक्ति से औपचारिक वार्तालाप।

प्रश्न 11.
यह शब्द किसके हैं, “साक्षात्कार एक ऐसी क्रमबद्ध विधि है जिसके द्वारा व्यक्ति करीब-करीब अपनी कल्पना की मदद से अपेक्षाकृत अपरिचित के जीवन में प्रवेश करता है।”
(A) गुड तथा हॉट
(B) बोगार्डस
(C) पी० वी० यंग
(D) मोज़र।
उत्तर:
पी० वी० यंग।।

प्रश्न 12.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
(A) दो
(B) चार
(C) आठ
(D) पाँच।
उत्तर:
चार।

प्रश्न 13.
इनमें से साक्षात्कार विधि का गुण बताएं।
(A) ज्यादा समय
(B) ग़लत रिपोर्ट
(C) मनोवैज्ञानिक अध्ययन
(D) अच्छे साक्षात्कारों को न मिलना।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक अध्ययन।

प्रश्न 14.
Interview Guide किस प्रकार का प्रलेख है?
(A) मौखिक
(B) निबंधात्मक
(C) लघूत्तरात्मक
(D) लिखित।
उत्तर:
लिखित।

प्रश्न 15.
साक्षात्कार की तैयारी का सबसे पहला चरण क्या है?
(A) साक्षात्कार प्रदर्शिका का निर्माण
(B) समस्या का ज्ञान
(C) साक्षी का चुनाव
(D) पता नहीं।
उत्तर:
समस्या का ज्ञान।

प्रश्न 16.
साक्षात्कार की सीमा बताओ।
(A) उच्चकोटि की चतुरता न होना
(B) व्यक्तियों का झूठ बोलना
(C) साक्षी को साक्षात्कार के लिए राजी करना
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 17.
साक्षात्कार विधि का गुण बताएं।
(A) सबसे लचीली विधि
(B) भावात्मक स्थितियों का अध्ययन
(C) अधिक उपयोगी
(D) a + b + c
उत्तर:
a + b + c

प्रश्न 18.
आँकड़ों तथा द्वितीयक स्त्रोत कौन-से हैं?
(A) सरकारी तथा गैर-सरकारी
(B) निजी तथा व्यक्तिगत
(C) सरकारी तथा अर्ध-सरकारी
(D) पता नहीं।
उत्तर:
सरकारी तथा गैर-सरकारी।

प्रश्न 19.
‘साक्षात्कार’ किस स्तर पर किया जाता है?
(A) व्यक्तिगत
(B) सार्वजनिक
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) व (B) दोनों।

प्रश्न 20.
परियोजना कार्य किस पर आधारित होता है?
(A) गुणात्मक तथ्य पर
(B) परिमाणात्मक तथ्य पर
(C) उपरोक्त दोनों पर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
उपरोक्त दोनों पर।

प्रश्न 21.
शोध कार्य के लिए हम छात्रों से सीधे प्रश्न किस पद्धति के तहत पूछ सकते हैं?
(A) प्रेक्षण
(B) सर्वेक्षण
(C) साक्षात्कार
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
साक्षात्कार।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परियोजना कार्य के लिए किस विधि का अनुसरण किया जाता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य के लिए सामाजिक सर्वेक्षण विधि का अनुसरण किया जाता है।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य विधि के मुख्य समर्थक तथा जन्मदाता कौन हैं?
उत्तर:
परियोजना कार्य विधि के मुख्य समर्थक तथा जन्मदाता किलपैट्रिक (W.H. Kilpatric) को माना जाता है।

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य का क्या अर्थ है?
अथवा
परियोजना कार्य क्या है?
अथवा
परियोजना का अर्थ बताएं।
उत्तर:
परियोजना कार्य एक नया अनुभव तथा ज्ञान प्राप्त करने का एक समस्यामूलक ढंग है तथा यह योजना की कार्य प्रणाली से संबंधित है।

प्रश्न 4.
परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना होता है।

प्रश्न 5.
परियोजना कार्य विधि में रिपोर्ट कौन तैयार करता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य विधि में रिपोर्ट विद्यार्थी द्वारा लिखी जाती है।

प्रश्न 6.
परियोजना कार्य के कितने स्तर होते हैं?
उत्तर:
परियोजना कार्य के चार स्तर होते हैं।

प्रश्न 7.
परियोजना कार्य का पहला स्तर कौन-सा होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का पहला स्तर परियोजना कार्य का आयोजन होता है।

प्रश्न 8.
परियोजना कार्य का अंतिम स्तर कौन-सा होता है?
उत्तर:
परियोजना कार्य का अंतिम स्तर तथ्यों का प्रदर्शन होता है तथा रिपोर्ट लिखना होता है।

प्रश्न 9.
नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
जब व्यक्ति अपने किसी लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करते समय अपने साधनों की व्यवस्था तैयार करता है तो उसे नियोजन कहते हैं।

प्रश्न 10.
नियोजन के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
नियोजन के दो प्रकार हैं-सामाजिक नियोजन तथा आर्थिक नियोजन।

प्रश्न 11.
अवलोकन पद्धति क्या है?
अथवा
प्रेक्षण का अर्थ बताएं।
अथवा
प्रेक्षण क्या है?
उत्तर:
जब हम किसी घटना को अपनी आँखों से देखते हैं तथा उसका विश्लेषण करते हैं तो उसे अवलोकन कहते हैं।

प्रश्न 12.
अपनी आँखों का प्रयोग करने वाली विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
घटना का विश्लेषण करने के लिए अपनी आँखों का प्रयोग करने वाली विधि को अवलोकन अथवा प्रेक्षण कहते हैं।

प्रश्न 13.
सहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता समूह का सदस्य बनकर निरीक्षण करता है तो उसे सहभागी निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 14.
अर्धसहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब निरीक्षणकर्ता समूह की कुछ क्रियाओं में भाग लेता है तथा बाकी का अनुसंधानकर्ता के तौर पर निरीक्षण करता है तो उसे अर्ध सहभागी निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 15.
अनियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता स्वयं घटनास्थल पर जाकर घटना का उसके वास्तविक हालातों में निरीक्षण करता है तो उसे अनियंत्रित निरीक्षण कहते हैं। .

प्रश्न 16.
नियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब घटना को कृत्रिम रूप में दोबारा घटित करके या अपने आपको नियंत्रण में रखकर अवलोकन किया जाए तो उसे नियंत्रित निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 17.
सामूहिक निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब एक ही सामाजिक घटना का अवलोकन एक से अधिक अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किया जाता है तथा अलग-अलग रिपोर्ट तैयार की जाती है तो उसे सामूहिक निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 18.
सहभागी निरीक्षण का एक गुण बताओ।
अथवा
प्रेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इस निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है जिससे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन का अवसर मिलता है।

प्रश्न 19.
सहभागी निरीक्षण का एक दोष बताओ।
उत्तर:
इसमें अनुसंधान को वैज्ञानिक के साथ-साथ समूह का सदस्य बनना पड़ता है जिससे दोनों में संतुलन रखना कठिन होता है।

प्रश्न 20.
असहभागी निरीक्षण का एक गुण बताओ।
उत्तर:
अनुसंधानकर्ता पूर्णतया वैज्ञानिक बनकर निरीक्षण करता है जिससे निरीक्षण में निष्पक्षता आ जाती है।

प्रश्न 21.
असहभागी निरीक्षण का एक दोष बताओ।
उत्तर:
पूर्णतया अलग होकर निरीक्षण करने से समूह की प्रत्येक चीज़ का निरीक्षण नहीं हो सकता जिससे सदस्यों – में बनावटीपन आ जाता है।

प्रश्न 22.
नियंत्रण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
नियंत्रण दो प्रकार का होता है-घटना पर नियंत्रण तथा निरीक्षण कार्य पर नियंत्रण।

प्रश्न 23.
सबसे पहले सहभागी निरीक्षण शब्द का प्रयोग किसने किया था?
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण शब्द का प्रयोग सबसे पहले Lindeman ने 1924 में अपनी पुस्तक Social Discovery में किया था चाहे विधि के रूप में इसका प्रयोग बहुत पहले ही हो चुका था।

प्रश्न 24.
निरीक्षण विधि की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. निरीक्षण विधि एक ऐसी विधि है जिसमें व्यक्ति अपनी ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करके सूचना इकट्ठी करता है।
  2. निरीक्षण विधि एक प्रत्यक्ष अध्ययन की विधि है जिसमें निरीक्षणकर्ता स्वयं ही अपनी आँखों का प्रयोग करके सूचना एकत्रित करता है।

प्रश्न 25.
सर्वेक्षण किसे कहते हैं?
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति क्या है?
उत्तर:
सर्वेक्षण का अर्थ ऐसी अनुसंधान प्रणाली से है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटनास्थल पर जाकर घटना का वैज्ञानिक निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है।

प्रश्न 26.
सर्वेक्षण विधि का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इसमें अनुसंधानकर्ता घटना के प्रत्यक्ष संपर्क में रहता है जिससे निष्कर्षों में वैषयिकता (Objectivity) आ जाती है।

प्रश्न 27.
क्या सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान एक ही है?
उत्तर:
जी नहीं। यह दोनों एक नहीं है। सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान की केवल एक विधि है।

प्रश्न 28.
सामाजिक सर्वेक्षण के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण के चार प्रकार होते हैं।

प्रश्न 29.
सामाजिक सर्वेक्षण का क्या महत्त्व है?
अथवा
सर्वेक्षण प्रणाली का मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण से हमें व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है तथा घटना का अच्छे ढंग से वर्णन हो जाता है।

प्रश्न 30.
सामाजिक सर्वेक्षण किस चीज़ पर जोर देता है?
उत्तर:
सा जिक सर्वेक्षण में विस्तृत अध्ययन पर बल दिया जाता है तथा समस्या के बारे में हरेक प्रकार की सूचना इकट्ठी की जाती है।

प्रश्न 31.
क्या एक अनुसंधानकर्ता सर्वेक्षण विधि का प्रयोग कर सकता है?
उत्तर:
जी नहीं, इस विधि में कई व्यक्तियों को मिल कर कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 32.
सामाजिक सर्वेक्षण में किन चीज़ों का अध्ययन हो सकता है?
उत्तर:
मोज़र के अनुसार सर्वेक्षण में सामाजिक घटनाओं, सामाजिक दशाओं, संबंधों अथवा व्यवहार इत्यादि का अध्ययन हो सकता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 33.
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षण के कितने विभाग दिए हैं?
उत्तर:
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के चार विभाग दिए हैं।

प्रश्न 34.
नियमित सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
नियमित सर्वेक्षण वह सर्वेक्षण होते हैं जो लगातार तथा समय-समय पर होते रहते हैं।

प्रश्न 35.
विशिष्ट सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
इस प्रकार के सर्वेक्षण समस्या प्रधान होते हैं जो किसी विशेष उपकल्पना के आधार पर होते हैं।

प्रश्न 36.
सर्वेक्षण का शाब्दिक अर्थ बताएं।
उत्तर:
शब्द सर्वेक्षण अंग्रेजी भाषा के शब्द Survey का हिंदी रूपांतर है। शब्द स्वयं Sur अथवा Sor तथा Veeir अथवा Veoir से मिलकर बना है। Sur का अर्थ है ऊपर तथा Veeir का अर्थ है देखना। इस तरह शब्द Survey का शाब्दिक अर्थ है किसी घटना को ऊपर से देखना अथवा बाहर से अवलोकन करना है।

प्रश्न 37.
सामान्य तथा विशिष्ट सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
सामान्य सर्वेक्षण वह होते हैं जिसमें सर्वेक्षण का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता, बल्कि इसे किसी घटना के संबंध में सूचना इकट्ठी करने के लिए प्रयोग किया जाता है। विशिष्ट सर्वेक्षण किसी विशेष घटना का सर्वेक्षण ता है तथा घटना से संबंधित लोगों से संपर्क किया जाता है और निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 38.
साक्षात्कार क्या है?
उत्तर:
साक्षात्कार में किसी घटना के प्रत्यक्षदर्शी से प्रभावपूर्ण तथा औपचारिक वार्तालाप और विचार-विमर्श होता है।

प्रश्न 39.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार में चार प्रकार होते हैं।

प्रश्न 40.
साक्षात्कार प्रदर्शिका का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक डायरी होती है जिसकी सहायता से साक्षात्कार एक निश्चित दिशा में आगे बढ़ता है तथा स्मरण शक्ति पर अधिक जोर नहीं देना पड़ता।

प्रश्न 41.
साक्षात्कार प्रदर्शिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक लिखित प्रलेख होती है जिसमें साक्षात्कार की योजना का संक्षिप्त वर्णन होता है।

प्रश्न 42.
साक्षियों का चुनाव कैसे किया जाता है?
उत्तर:
साक्षियों का चुनाव निर्देशन प्रणाली अथवा सैंपल प्रणाली की मदद से किया जाता है।

प्रश्न 43.
साक्षात्कार में सबसे पहला कार्य क्या होता है?
उत्तर:
साक्षात्कार का सबसे पहला कार्य साक्षी से संपर्क स्थापित करना होता है।

प्रश्न 44.
अन्वेषक प्रश्न क्या होते हैं?
उत्तर:
जब साक्षी अनजाने में या जान-बूझकर किसी महत्त्वपूर्ण पक्ष को छोड़ देता है तो उस पक्ष को याद दिलाने के लिए पूछे गए अन्वेषक प्रश्न होते हैं।

प्रश्न 45.
साक्षात्कार का निर्देशन कौन करता है?
उत्तर:
साक्षात्कार का निर्देशन साक्षात्कारकर्ता करता है।

प्रश्न 46.
साक्षात्कार विधि की एक सीमा बताओ।
उत्तर:
इस विधि में हमें साक्षी पर पूर्णतया निर्भर रहना पड़ता है तथा वह झूठ भी बोल सकता है।

प्रश्न 47.
साक्षात्कार विधि में साक्षात्कारकर्ता के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
इस विधि में साक्षात्कारकर्ता के लिए चतुर होना बहुत आवश्यक है क्योंकि उसे अपने मतलब की जानकारी निकालना आना चाहिए।

प्रश्न 48.
फील्डवर्क क्या होता है?
उत्तर:
फील्डवर्क क्षेत्र में जाकर लोगों के बीच रहकर उनके बारे में जानकारी प्राप्त करने की विधि है। इसमें अध्ययनकर्ता समूह के बीच जाकर रहता है, उस समूह का हिस्सा बनकर उनके बारे में जानकारी प्राप्त करता है तथा फिर अंत में निष्कर्ष निकालता है। इस प्रकार फील्डवर्क क्षेत्र में जाकर कार्य करने की एक विधि है।

प्रश्न 49.
मानव विज्ञान को सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में सबसे बड़ा योगदान किसका था?
उत्तर:
मानव विज्ञान को सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में सबसे बड़ा योगदान फील्डवर्क का था।

प्रश्न 50.
शुरू के मानवशास्त्री किस चीज़ के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते थे?
उत्तर:
शुरू के मानवशास्त्री प्राचीन संस्कृतियों के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते थे।

प्रश्न 51.
शुरू के मानवशास्त्री कहां से प्राचीन संस्कृतियों का ज्ञान इकट्ठा करते थे?
उत्तर:
शुरू के मानवशास्त्री लिखी हुई किताबों अथवा यात्रियों, मिशनरियों या साम्राज्यवादी प्रशासकों की लिखी रिपोर्टों से प्राचीन संस्कृतियों का ज्ञान इकट्ठा करते थे।

प्रश्न 52.
1920 के बाद किस चीज़ को सामाजिक मानवविज्ञान की ट्रेनिंग का अभिन्न अंग माना जाने लगा?
उत्तर:
1920 के बाद सहभागी निरीक्षण अथवा फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान की ट्रेनिंग का अभिन्न अंग माना जाने लगा।

प्रश्न 53.
किसने फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण विधि के रूप में स्थापित किया?
उत्तर:
मैलिनोवस्की ने फील्डवर्क को सामाजिक मानव विज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण विधि के रूप में स्थापित किया।

प्रश्न 54.
Geneology क्या होती है?
उत्तर:
Geneology उस समुदाय की जनसंख्या की संरचना के बारे में जानकारी होती है जिसका कि अध्ययन करना होता है।

प्रश्न 55.
मानवशास्त्री फील्डवर्क को कहाँ से शुरू करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री फील्डवर्क को समुदाय की जनसंख्या के बारे में जानकारी लेने से शुरू करते हैं।

प्रश्न 56.
समाजशास्त्री कहाँ पर जाकर फील्डवर्क कहते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्री समुदाय में रहकर ही फील्डवर्क करते हैं।

प्रश्न 57.
मानवशास्त्री कहाँ पर जाकर फील्डवर्क करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री दूर जाकर कहीं जंगलों, पहाड़ों, दुर्गम क्षेत्रों में रह रहे कबीलों, आदिवासियों में जाकर फील्डवर्क करते हैं।

प्रश्न 58.
भारतीय समाजशास्त्रियों ने अधिकतर फील्डवर्क कहाँ किया है?
उत्तर:
अधिकतर भारतीय समाजशास्त्रियों ने गाँवों में जाकर, लोगों के बीच रहकर फील्डवर्क किया है तथा उनके बारे में जानकारी प्राप्त की है।

प्रश्न 59.
सर्वेक्षण में उत्तरदाता कौन होता है?
उत्तर:
जिस व्यक्ति का नाम सैंपल विधि से चुना जाता है वह उत्तरदाता होता है।

प्रश्न 60.
परियोजना कार्य में तथ्यों का संकलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब उत्तरदाता से सूचना एकत्र की जाती है तो इसे तथ्यों का संकलन कहा जाता है।

प्रश्न 61.
सर्वेक्षण कार्य को शीघ्रता से निपटाने के लिए आप क्या करेंगे?
उत्तर:
सर्वेक्षण कार्य को शीघ्रता से निपटाने के लिए या तो सैंपल को छोटा रखेंगे या फिर अधिक संख्या में लोगों को सूचना एकत्र करने के लिए लगाएंगे।

प्रश्न 62.
सर्वेक्षण क्षेत्र में जाकर किया जाता है। सत्य या असत्य।
उत्तर:
सर्वेक्षण क्षेत्र में जाकर किया जाता है-सत्य।

प्रश्न 63.
साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति को ………………… कहते हैं।
उत्तर:
साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति को साक्षात्कारकर्ता कहते हैं

प्रश्न 64.
परियोजना कार्य एक सैद्धांतिक कार्य है। सत्य या असत्य।
उत्तर:
परियोजना कार्य एक सैद्धांतिक काय है-सत्य।

प्रश्न 65.
वह व्यक्ति जो साक्षात्कार देता है, उसे ………………….. कहा जाता है।
उत्तर:
वह व्यक्ति जो साक्षात्कार देता है, उसे साक्षी कहते हैं।

प्रश्न 66.
साक्षात्कार पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इस पद्धति से प्रभावशाली डाटा एकत्र हो जाता है।

प्रश्न 67.
प्रेक्षण पद्धति का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
इससे अनुसंधानकर्ता स्वयं अपनी आँखों से घटना को देखकर आँकड़े एकत्रित करता है जिसमें गलती को गुंजाइश नहीं रहती।

प्रश्न 68.
साक्षात्कार विधि की एक कमज़ोरी बताइए।
उत्तर:
इसमें हमें सूचनादाता के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है जोकि झूठ भी बोल सकता है।

प्रश्न 69.
शोध विषय पर कार्य करने के लिए एक निर्धारित प्रश्न चुन लेने के बाद अगला कदम उपयुक्त पद्धति का चयन करना है। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 70.
साक्षात्कार और सर्वेक्षण में एक भिन्नता लिखिए।
उत्तर:
साक्षात्कार एक व्यक्ति या कुछेक व्यक्तियों का होता है जबकि सर्वेक्षण में बहुत से लोगों की राय के बारे में पूछा जाता है।

प्रश्न 71.
सर्वेक्षण प्रणाली में हम काफ़ी बड़ी संख्या में लोगों के विचार जान सकते हैं। (सही/गलत)
उत्तर:
सही।

प्रश्न 72.
किस पद्धति में एक साथ ज्यादा लोगों को शामिल नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
साक्षात्कार पद्धति में।

प्रश्न 73.
वह कौन-सी शोध पद्धति है, जिसके तहत हम किसी छात्र से सीधे प्रश्न पूछ सकते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार पद्धति।

प्रश्न 74.
वह कौन-सी प्रणाली है जिसमें 1000, 2000 या इससे भी अधिक संख्या में लोगों से प्रश्न पूछे जाते?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि।

प्रश्न 75.
परियोजना कार्य का एक गुण बताइए।
उत्तर:
इस विधि द्वारा निकाले गए परिणाम वास्तविक होते हैं।

प्रश्न 76.
वार्तालाप के द्वारा सूचनाएँ एकत्र करना क्या कहलाता है?
उत्तर:
साक्षात्कार।

प्रश्न 77.
बड़े पैमाने पर अध्ययन करने के लिए कौन-सी पदधति का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रोजेक्ट कार्य विधि या परियोजना कार्य विधि के चार उद्देश्य बताओ।
उत्तर:

  1. विद्यार्थियों को उनके विकास करने में अवसर प्रदान करना।
  2. विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge) देना।
  3. विद्यार्थियों को समाज की समस्याओं तथा लोगों की मानसिकता के बारे में ज्ञान देना।
  4. विद्यार्थियों का समाज तथा उसके सदस्यों से संपर्क स्थापित करवाना।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य विधि के कितने तथा कौन-से चरण हैं?
उत्तर:

  1. परियोजना कार्य का आयोजन।
  2. तथ्यों अथवा सामग्री का संकलन।
  3. तथ्यों का विश्लेषण तथा निर्वाचन।
  4. तथ्यों का प्रदर्शन।

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य विधि की रिपोर्ट तैयार करते समय कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:

  1. रिपोर्ट लिखने वाली भाषा सरल होनी चाहिए ताकि सभी को समझ आ सके।
  2. तथ्यों को तार्किक ढंग से पेश करना तथा विचारों की सरलता होनी चाहिए।
  3. तकनीकी शब्दों की स्पष्ट तथा सरल परिभाषा दी जानी चाहिए।
  4. तथ्यों को दोबारा नहीं लिखना चाहिए।
  5. आवश्यक शीर्षक, उपशीर्षक तथा आवश्यकता के अनुसार पाद टिप्पणियां भी देनी चाहिए।

प्रश्न 4.
परियोजना कार्य विधि के चार गुण बताओ।
अथवा
परियोजना कार्य के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:

  1. इससे विद्यार्थियों को आत्म विकास करने का अवसर प्राप्त होता है।
  2. सभी कार्यकर्ताओं या विद्यार्थियों को विकास के समान अवसर प्राप्त होते हैं।
  3. इससे कार्यकर्ताओं में सामाजिक भावना का विकास होता है।
  4. इससे कार्यकर्ताओं के सामाजिक संपर्क बढ़ते हैं।
  5. इस विधि द्वारा निकाले परिणाम वास्तविक होते हैं।

प्रश्न 5.
परियोजना कार्य के दोष बताओ।
अथवा
परियोजना कार्य के दो प्रमुख दोष बताइए।
उत्तर:

  1. इसमें ज्यादा धन की खपत होती है अर्थात् यह एक खर्चीली विधि है।
  2. हमें उचित परियोजना कार्य को ढूंढ़ने में कठिनाई होती है।
  3. इससे क्रमबद्ध अध्ययन नहीं हो सकता।
  4. इस विधि में समय बहुत ज्यादा लगता है।
  5. यह विधि स्कूलों की स्थिति के अनुसार नहीं होती।

प्रश्न 6.
निरीक्षण विधि क्या होती है?
उत्तर:
अनुसंधान के लिए वैसे तो कई विधियां प्रचलित हैं जैसे कि प्रश्नावली, साक्षात्कार इत्यादि परंतु निरीक्षण विधि सबसे प्रचलित विधि है। जब अनुसंधानकर्ता किसी सामाजिक घटना या समूह का स्वयं अपनी आँखों में अवलोकन करता है तथा संबंधित आंकड़े इकट्ठे करता है तो उस विधि को निरीक्षण विधि का नाम दिया जाता है। इसका अर्थ है कि अपनी आँखों से किए गए अवलोकन को निरीक्षण कहते हैं।

प्रश्न 7.
निरीक्षण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
निरीक्षण दो प्रकार का होता है-

  1. सहभागी निरीक्षण
  2. असहभागी निरीक्षण
  3. अर्धसहभागी निरीक्षण।
  4. अनियंत्रित निरीक्षण
  5. नियंत्रित निरीक्षण।

प्रश्न 8.
सहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता समूह में एक अजनबी की तरह न रहकर उसका एक अंग बनकर रहता है। यह ज़रूरी नहीं है कि वह समूह की सभी क्रियाओं में भाग ले, परंतु वह समूह में एक निरीक्षणकर्ता की हैसियत से नहीं रहता है। इस तरह वह समूह का सदस्य बन कर रहता है तथा समूह की संपूर्ण नहीं तो ज्यादातर क्रियाओं में भाग लेकर उनका निरीक्षण करता है तथा संबंधित आंकड़े इकट्ठे करता है। इससे ज्यादा सच्चे आंकड़े इकट्ठे करने में मदद मिलती है।

प्रश्न 9.
सहभागी निरीक्षण के गुण बताओ।
उत्तर:

  1. इस प्रकार के निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है। इस तरह उसे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है।
  2. सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता को समूह में अलग-अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों तथा रिवाजों को अच्छी तरह समझने की शक्ति प्राप्त होती है।
  3. जब लोगों को पता चलता है कि उनका निरीक्षण किया जा रहा है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है जिससे सही सूचना प्राप्त नहीं होती है। समूह का सदस्य बन जाने से बनावटीपन खत्म हो जाता है तथा सच्ची सूचना प्राप्त होती है।

प्रश्न 10.
सहभागी निरीक्षण के दोष बताओ।
उत्तर:

  1. जब निरीक्षक का भावात्मक एकीकरण हो जाता है तो निरीक्षण की स्थूलता खत्म हो जाती है। वह अपने आपको समूह का सदस्य समझने लग जाता है जिससे उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण खत्म हो जाता है।
  2. कई बार क्रियाओं के साथ नज़दीकी भी बाधक सिद्ध होती है। जब अनेक क्रियाओं से नज़दीकी परिचय हो जाता है तो हम उनमें से बहत को आम मानकर बिना निरीक्षण किए ही छोड़ देते हैं।
  3. कई बार लोग अपरिचित व्यक्ति के सामने या तो ज्यादा खुलकर व्यवहार करते हैं या फिर बिल्कुल ही नहीं करते हैं। इससे भी निरीक्षण में कठिनाई आ जाती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 11.
असहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
जब अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक की भांति तटस्थ भाव से निरीक्षण करता है तो उसे असहभागी निरीक्षण कहते हैं। इस तरह के अनुसंधान में अनुसंधानकर्ता की स्थिति पूर्णतया निरीक्षक की होती है। वह समूह की क्रियाओं से अलग रह कर उनका निरीक्षण करता है। वह चाहे स्थान तथा व्यक्ति रूप से समूह में रहता है परंतु सामाजिक दृष्टि से उस समूह का अंग नहीं बन जाता तथा उससे अलग भी रहता है। वह स्वयं उनसे खेलने नहीं लग जाता बल्कि दूर रहकर निरीक्षण करता है तथा आंकड़े इकट्ठे करता है।

प्रश्न 12.
अर्धसहभागी निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
सामाजिक समूह के निरीक्षण में असहभागी निरीक्षण संभव नहीं है। ऐसी स्थिति की कल्पना काफ़ी कठिन होती है जब अनुसंधानकर्ता हर समय मौजूद रहता है परंतु समूह की क्रियाओं में भाग न लेता हो। साथ ही पूर्ण सहभागी निरीक्षण भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित नहीं होता। इसलिए विद्वानों ने एक बीच की स्थिति की कल्पना की है जिसमें अनुसंधानकर्ता कुछ साधारण कार्यों में ही भाग लेता है परंतु ज्यादातर वह तटस्थ भाव से समूह का अध्ययन करता है। इस तरह वह समूह का सदस्य भी बन जाता है तथा एक वैज्ञानिक भी रहता है। यदि उचित रीति पालन किया जाए तो इस प्रणाली में सहभागी तथा असहभागी दोनों ही प्रणालियों के लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

प्रश्न 13.
अनियंत्रित निरीक्षण क्या हो सकता है?
उत्तर:
जब हम किसी घटना को उसके स्वाभाविक रूप में और स्वाभाविक स्थान पर निरीक्षण करते हैं तो उसे अनियंत्रित निरीक्षण कहते हैं। इस प्रकार के निरीक्षण में घटना या निरीक्षणकर्ता पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं रहता। यह निरीक्षण प्रणाली का शुरुआती रूप है। विज्ञान के आरंभिक काल में वैज्ञानिकों ने स्वाभाविक रूप से घटनाओं का निरीक्षण करके ही नतीजे निकाले। इस तरह जब घटना को स्वाभाविक स्थल पर निरीक्षण किया जाए तो अनियंत्रित निरीक्षण कहा जाता है।

प्रश्न 14.
नियंत्रित निरीक्षण क्या होता है?
उत्तर:
समाज विज्ञान में प्रगति के साथ अब इसकी विधियों में भी सुधार हो गया है। अब निरीक्षण नियंत्रित भी हो सकता है। नियंत्रण दो प्रकार का होता है-घटना पर नियंत्रण तथा निरीक्षण कार्य पर नियंत्रण। जब घटना कृत्रिम रूप से घटित की जाती है तथा उसका अध्ययन किया जाता है तो उसे घटना पर नियंत्रण कहते हैं। कई बार घटना कृत्रिम रूप से घटित नहीं हो सकती तो निरीक्षणकर्ता अपने आप पर नियंत्रण रखकर निरीक्षण कर सकता है ताकि निरीक्षण सही तरीके से हो सके। इसके लिए निरीक्षण की योजना बनाकर, यंत्रों का प्रयोग करके गलतियों को दूर किया जाता है।

प्रश्न 15.
अंतिम तथा आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण क्या होते हैं?
उत्तर:
कुछ सर्वेक्षणों में बार-बार सूचना इकट्ठी नहीं करनी पड़ती। एक बार इकट्ठी की गई सूचना के आधार पर निष्कर्ष निकाल दिए जाते हैं तथा सर्वेक्षण खत्म हो जाते हैं। उसे अंतिम सर्वेक्षण कहते हैं। आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण में सूचना बार-बार एकत्र की जाती है तथा उस बार-बार एकत्र की की गई सूचना के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। यह प्रायोगिक विधि में प्रयोग होते हैं।

प्रश्न 16.
सर्वेक्षण की प्रक्रिया के कितने भाग होते हैं?
उत्तर:
इसके 8 भाग होते हैं जो इस प्रकार हैं-

  • सर्वेक्षण का उद्देश्य
  • सूचना प्राप्त करने के स्रोत का निर्धारण करना
  • सर्वेक्षण के प्रकार, इकाइयों इत्यादि का निर्धारण करना
  • प्रश्नावली तथा अनुसूची का निर्माण करना
  • इकट्ठी की गई सामग्री का संपादन करना
  • इकट्ठी की गई सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण करना
  • सूचना का विश्लेषण करना
  • सूचना का निर्वाचन करना तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना।

प्रश्न 17.
सर्वेक्षण विधि क्या होती है?
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि को सामाजिक अनुसंधानों में एक विशेष विधि के तौर पर प्रयोग किया जाता है। सर्वेक्षण से अर्थ ऐसी अनुसंधान प्रणाली से है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटना के घटनास्थल पर जाकर किसी विशेष घटना का वैज्ञानिक तरीके से निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता घटना के प्रत्यक्ष संपर्क में आता है तथा उसके निष्कर्षों में ज्यादा वैषयिकता रहती है।

प्रश्न 18.
सर्वेक्षण विधि की दो परिभाषाएं दें।
उत्तर:
मोज़र (Moser) के अनुसार, “समाजशास्त्री के लिए सर्वेक्षण क्षेत्र का अनुसंधान करने, अध्ययन के विषय से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संबंधित आंकड़े एकत्र करने का ऐसा अति उपयोगी साधन है जिससे समस्या पर प्रकाश पड़ सके।” मोर्स (Morse) के अनुसार, “संक्षेप में सर्वेक्षण किसी प्रस्तुत सामाजिक परिस्थिति, समस्या अथवा जनसंख्या के विशिष्ट उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा क्रमबद्ध रूप में की गई विवेचना की विधि मात्र है।”

प्रश्न 19.
सर्वेक्षण विधि के कौन-से उद्देश्य होते हैं?
उत्तर:

  • सर्वेक्षण विधि में व्यक्ति घटना के संपर्क में प्रत्यक्ष रूप से आता है जिससे उसे व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है।
  • इस विधि के प्रयोग से समाज में बने पहले सिद्धांतों की परीक्षा भी हो जाती है।
  • इस विधि से पहले से बनाई हुई उपकल्पना की परीक्षा भी हो जाती है।
  • इस विधि की मद से सामाजिक घटना का वर्णन आसानी से हो जाता है क्योंकि अनुसंधानकर्ता घटना में प्रत्यक्ष संपर्क में आता है तथा घटना के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करता है।

प्रश्न 20.
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के कितने विभाग दिए हैं?
उत्तर:
मोज़र ने सामाजिक सर्वेक्षणों के चार विभाग दिए हैं-

  • जनसंख्यात्मक विशेषताएं
  • सामाजिक पर्यावरण
  • सामाजिक क्रियाएं
  • विचार तथा प्रवृत्तियां।

प्रश्न 21.
सर्वेक्षण प्रणाली के गुण बताओ।
उत्तर:

  • सर्वेक्षण विधि में अनुसंधानकर्ता घटना के सीधे संपर्क में आ जाता है तथा उसे उस घटना से संबंधित सभी चीजों, व्यक्तियों का ज्ञान हो जाता है।
  • इस विधि में कोई व्यक्तिगत ग़लती आने की संभावना नहीं होती क्योंकि जो कुछ भी वह प्रत्यक्ष रूप से देखता है उसको ही नोट करता है तथा अपनी तरफ से कुछ नहीं जोड़ता है।
  • सर्वेक्षण विधि वैज्ञानिक विधि के बहुत ज्यादा नज़दीक है क्योंकि इसमें उसे घटना को उसके स्वाभाविक स्थल पर जाकर निरीक्षण करना पड़ता है।

प्रश्न 22.
सर्वेक्षण विधि की सीमाएं बताओ।
उत्तर:

  • इसके लिए घटना का आंखों के सामने घटित होना आवश्यक है, परंतु आमतौर पर सामाजिक घटनाएं इस प्रकार का मौका नहीं देती हैं।
  • इसके द्वारा संपूर्ण समाज का निरीक्षण संभव नहीं है। हम समाज के सिर्फ एक भाग का ही अवलोकन कर सकते हैं।
  • सर्वेक्षण आमतौर पर असंबंधित तथा बिखरे हुए होते हैं। उनसे उस समय तक किसी सिद्धांत का निर्माण नहीं हो सकता जब तक उन्हें किसी निश्चित योजना के अनुसार न किया गया हो।

प्रश्न 23.
सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में तीन अंतर बताओ।
उत्तर:

  • सामाजिक सर्वेक्षण विशेष व्यक्तियों, समस्याओं तथा हालातों से संबंधित होते हैं, अनुसंधान सामान्य तथा अमूर्त समस्याओं से संबंधित होते हैं।
  • सामाजिक सर्वेक्षणों का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में सुधार करके उसे उन्नति के मार्ग पर चलाना होता है परंतु सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य मनुष्य के ज्ञान में बढ़ोत्तरी करना तथा अनुसंधान के तरीकों में सुधार करना होता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षणों के निष्कर्षों से सामाजिक सुधार करने के तरीके पता किए जा सकते हैं, परंतु सामाजिक अनुसंधान से पुराने सिद्धांतों को सुधारा जाता है या नए सिद्धांतों का निर्माण होता है।

प्रश्न 24.
साक्षात्कार विधि क्या होती है?
उत्तर:
साक्षात्कार का अर्थ उन व्यक्तियों से है जो प्रभावपूर्ण तथा औपचारिक वार्तालाप एवं विचार-विमर्श करने से होता है जो किसी विशेष घटना से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होता है। यह वार्तालाप तथा विचार-विमर्श किसी विशेष उद्देश्य के लिए होता है। परंतु वह पूर्व नियोजित होता है तथा किसी निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित होता है। विचार विमर्श एक अच्छे वातावरण में होता है। जिसमें साक्षी अपने दिल की बात खुलकर करता है।

प्रश्न 25.
साक्षात्कार के दो उद्देश्य बताएं।
उत्तर:

  • साक्षात्कार का पहला उद्देश्य संबंधित व्यक्ति से सूचना प्राप्त करना होता है जो किसी और साधन से प्राप्त न की जा सके। इसके लिए साक्षात्कारकर्ता एक विषय चुन लेता है तथा साक्षी उसके बारे में वर्णन करता है।
  • साक्षात्कार का दूसरा उद्देश्य इस बात का पता करना है कि कोई विशेष व्यक्ति किसी विशेष परिस्थिति में किस प्रकार का व्यवहार करता है। इसके लिए साक्षात्कार के समय साक्षी के हाव-भाव हार का भी ध्यान रखता है।

प्रश्न 26.
साक्षात्कार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार के चार प्रकार होते हैं-

  • नियंत्रित साक्षात्कार
  • अनियंत्रित साक्षात्कार
  • केंद्रित साक्षात्कार
  • आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार।

प्रश्न 27.
नियंत्रित साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार में अनुसूची का प्रयोग किया जाता है। इसमें शुरू से लेकर अंत तक सभी क्रियाएं निश्चित होती हैं तथा साक्षात्कारकर्ता पूर्व नियोजित क्रम के अनुसार चलता है। अनुसूची में प्रश्न दिए होते हैं तथा साक्षात्कारकर्ता उनको पूछता है तथा जानकारी प्राप्त करता है। वह उत्तरों को नोट कर लेता है। इस प्रकार का साक्षात्कार आम तौर पर प्रश्न उत्तर के रूप में होता है। इसे निर्देशित या नियोजित साक्षात्कार भी कहा जाता है।

प्रश्न 28.
अनियंत्रित साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार में निश्चित प्रश्न नहीं होते बल्कि साक्षी को एक विषय दे दिया जाता है तथा उसे विषय के बारे में बोलने को कहा जाता है। साक्षी उस विषय के बारे में सभी घटनाओं प्रतिक्रियाओं को एक कहानी के रूप में वर्णन करता है। यह नियंत्रित नहीं होता बल्कि साक्षी खुल कर अपने दिल की बात करता है। यह एक स्वतंत्र वार्तालाप के रूप में होता है। साक्षात्कार अंत में उस घटना के बारे में कोई प्रश्न पूछ सकता है। इसको मुक्त स्वतंत्र या कहानी टाइप साक्षात्कार कहते हैं।

प्रश्न 29.
केंद्रित टाइप साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार को किसी फिल्म या रेडियो के प्रोग्राम के प्रभाव को जानने के लिए किया जाता है। इससे यह ज़रूरी है कि साक्षी अनुसंधान के विषय की निश्चित परिस्थिति से संबंध रख चुका हो। साक्षी उस घटना से संबंधित भावनाओं, विचारों इत्यादि आदि का वर्णन करता है। यह भी एक स्वतंत्र वर्णन के रूप में होता है तथा साक्षी घटना का वर्णन करने के लिए स्वतंत्र होता है। यह एक स्वतंत्र साक्षात्कार के समान होता है।

प्रश्न 30.
आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार क्या होता है?
उत्तर:
इस प्रकार के साक्षात्कार को उस समय प्रयोग किया जाता है जब किसी सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पड़ने वाले क्रमिक प्रभाव का अध्ययन करना होता है। इसके लिए सिर्फ एक बार ही साक्षात्कार करने से काम नहीं चलता बल्कि बार-बार साक्षात्कार लिया जाता है ताकि समय बीतने के साथ उस प्रक्रिया के पड़ने वाले प्रभाव को जाना जा सके। प्रभाव ज्यादा समय में पड़ता है इसलिए साक्षात्कार कुछ समय बाद फिर साक्षात्कार लिया जाता है। जैसे किसी गांव में सड़क बनाने के गांव पर क्या प्रभाव पड़े। इस तरह बार-बार साक्षात्कार लेने को आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार कहते हैं।

प्रश्न 31.
साक्षात्कार प्रदर्शिका क्या होती है?
उत्तर:
साक्षात्कार प्रदर्शिका एक लिखित प्रलेख होता है जिसमें साक्षात्कार की योजना का संक्षिप्त वर्णन होता है। इसमें साक्षात्कार की विधि, संबंधित विषय तथा विशेष परिस्थितियों के लिए ज़रूरी निर्देश दिए होते हैं। इसमें विभिन्न इकाइयों की परिभाषाएं तथा अर्थ भी दिए होते हैं ताकि इकाइयों को समझने में विभिन्नता न आए। इस तरह साक्षात्कार प्रदर्शिका में साक्षात्कार से संबंधित दिशा निर्देश तथा विषय से संबंधित ज्ञान होता है ताकि साक्षात्कार करते समय साक्षात्कारकर्ता कहीं भटक न जाए।

प्रश्न 32.
साक्षात्कार प्रदर्शिका का क्या महत्त्व है?
अथवा
साक्षात्कार का मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. साक्षात्कार प्रदर्शिका के होने से संबंधित समस्या के किसी पहलू के छूट जाने की संभावना नहीं होती जोकि वर्णन विधि में हो सकती है।
  2. इसकी मदद से साक्षात्कारकर्ता को अपने दिमाग पर जोर नहीं देना पड़ता क्योंकि सारा कुछ ही लिखा हुआ होता है। इसके न होने से कोई महत्त्वपूर्ण पहलू छूट भी सकता है।
  3. इसकी मदद से अलग-अलग लोगों द्वारा साक्षात्कार करने में एकरूपता रहती है तथा प्राप्त सूचना की तुलना की जा सकती है।

प्रश्न 33.
साक्षात्कार विधि के तीन गुण बताएं।
उत्तर:

  1. यह विधि उन घटनाओं का अध्ययन करने में भी सक्षम है जो प्रत्यक्ष अवलोकन के अयोग्य हैं तथा जिनके बारे में साक्षी के अलावा किसी और को पता नहीं है।
  2. यह विधि अमूर्त स्थितियों जैसे विचार, भावनाओं और प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए बहुत बढ़िया है क्योंकि सभी तथ्यों का प्रत्यक्ष अवलोकन नहीं हो सकता।
  3. इस विधि की मदद से भूतकाल में हुई घटनाओं तथा उनके प्रभावों का अध्ययन भी हो सकता है क्योंकि बहुत-सी घटनाएं ऐसी होती हैं जो दोबारा नहीं हो सकतीं।
  4. यह अनुसंधान की सबसे लचीली विधि है क्योंकि इसमें साक्षात्कारकर्ता अपनी मर्जी से विधि में हेर-फेर कर सकता है जिसका कोई नुकसान भी नहीं होता है।

प्रश्न 34.
साक्षात्कार विधि की तीन सीमाएं बताएं।
उत्तर:

  1. सबसे पहली सीमा इस विधि में यह होती है कि साक्षी को साक्षात्कार के लिए राजी करना बहुत मुश्किल होता है। अगर वह राज़ी न हुआ तो अनुसंधान ही नहीं हो पाएगा।
  2. इसमें साक्षात्कारकर्ता का चतुर होना बहुत ज़रूरी है ताकि अपने मतलब की जानकारी निकाली जा सके। अगर वह चतुर न हुआ तो वह साक्षी द्वारा बोले गए झूठ को पकड़ नहीं पाएगा तथा अनुसंधान में ग़लती पैदा हो जाएगी।
  3. यह विधि भावनाओं से काफी ज्यादा प्रभावित होती है क्योंकि इसमें बताया गया वर्णन प्रमाणित नहीं हो सकता तथा लोग अपनी मर्जी से घटना का वर्णन करते हैं। यह एक तरफा भी हो सकता है।
  4. इस प्रकार के वर्णन से वर्गीकरण तथा समीकरण में भी कठिनाई आती है।

प्रश्न 35.
सामाजिक मानवशास्त्री कहां से फील्ड फर्क की शुरुआत करते हैं?
अथवा
सहभागी प्रेक्षण के दौरान समाजशास्त्री और नृजातिविज्ञानी क्या कार्य करते हैं?
उत्तर:
मानवशास्त्री अथवा अध्ययनकर्ता फील्ड फर्क की शुरुआत करते हैं। उस समुदाय की जनसंख्या के बारे में जानने से जिसका कि वह अध्ययन करने जा रहे हैं। वह उस समुदाय में रहने वाले लोगों की एक लंबी चौड़ी लिस्ट बनाते हैं, उनके लिंग, उम्र, परिवार इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। फिर उनके घरों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 36.
Geneology क्या होती है?
उत्तर:
Geneology एक विस्तृत परिवार के वृक्ष का चित्र होता है जिस में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पारिवारिक रिश्तों की जानकारी होती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि Geneology किसी विस्तृत परिवार का वृक्ष समान चित्र होता है जिससे हमें उस परिवार के रक्त संबंधों की जानकारी प्राप्त होती है। इसमें ∆ से मर्द को तथा O से स्त्री को दर्शाता जाता है। उदाहरण के तौर पर
HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव 1

प्रश्न 37.
Geneology का मानवशास्त्री के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर:
Geneology का मानवशास्त्री के लिए बहुत महत्त्व है। इसके चित्र से अध्ययनकर्ता को परिवार के बारे में, उसकी जनसंख्या के बारे में, परिवार में पाए जाने वाले रिश्तों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। अगर उसमें परिवार के सदस्यों की तस्वीरें हों तो उन सबके बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त हो जाती है तथा उस परिवार के बारे में जानकारी प्राप्त करने में आसानी होती है।

प्रश्न 38.
जानकारी देने वाला या Informant या Principal Informant या Native Informant कौन होता है?
उत्तर:
Informant वह व्यक्ति होता है जो अध्ययनकर्ता को उस क्षेत्र, समुदाय के बारे में हरेक प्रकार की जानकारी देता है जिसका कि अध्ययन करना है। Informent मानव शास्त्री के अध्यापक के रूप में कार्य करता है तथा पूरे फील्डवर्क में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसे native informant भी कहते हैं तथा उसे समुद’ के बारे में प्रत्येक प्रकार की जानकारी होती है।

प्रश्न 39.
समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र में फील्डवर्क में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. समाजशास्त्र में अध्ययनकर्ता को अपना समूह छोड़कर नहीं जाना पड़ता बल्कि वह समूह में रहकर ही फील्डवर्क करता है परंतु मानवशास्त्री अपने समुदाय से दूर किसी दुर्गम क्षेत्र में जाकर फील्डवर्क करता है।
  2. समाजशास्त्री हरेक प्रकार के समुदाय में जाकर फील्डवर्क करता है परंतु मानवशास्त्री सिर्फ प्राचीन संस्कृतियों वाले समूहों में जाकर फील्डवर्क करता है।
  3. समाजशास्त्री को उन समुदायों में जाकर रहने की ज़रूरत नहीं होती बल्कि अध्ययन होने वाले समूहों के साथ अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की ज़रूरत होती है परंतु मानवशास्त्री को उन समुदायों में जाकर रहना पड़ता है।

प्रश्न 40.
समाजशास्त्र में फील्डवर्क में क्या मुश्किलें आती हैं?
उत्तर:

  1. समाजशास्त्री को अपने समुदाय में रह कर ही फील्डवर्क करना पड़ता है तथा उसके समुदाय के व्यक्ति पढ़े-लिखे होते हैं। उनमें से कुछ व्यक्ति उसके अनुसंधान कार्य ही रिपोर्ट पढ़ सकते हैं जिससे फील्डवर्क में बाधा आ सकती है।
  2. जब लोगों को पता चलेगा कि उनके बीच रह कर ही कोई उ का ही निरीक्षण कर रहा है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है जिससे फील्डवर्क में मुस्किलें आ सकती हैं।
  3. जब व्यक्ति अपने ही समुदाय का निरीक्षण करता है तो लोगों को उसके कार्य के बारे में पता होता है। इस पता होने के कारण निरीक्षण में अभिनति आ सकती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परियोजना कार्य विधि अथवा प्रोजैक्ट कार्य से क्या अभिप्राय है? परिभाषाओं सहित स्पष्ट करो।
अथवा
परियोजना कार्य की कोई एक परिभाषा दीजिए।
अथवा
परियोजना कार्य का संक्षिप्त वर्णन करें।
अथवा
परियोजना कार्य क्या है?
अथवा
परियोजना कार्य की सविस्तार सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
परियोजना कार्य पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
समाज शास्त्र में होने वाले अनुसंधानों में तथ्यों को इकट्ठा करने के लिए बहुत सारी विधियों का प्रयोग किया जाता है तथा उन तथ्यों के आधार पर कई निष्कर्ष निकाले जाते हैं। समाज शास्त्र की नज़र से इसलिए परियोजना कार्य की धारणा बहुत महत्त्वपूर्ण तथा विस्तृत है। इस परियोजना कार्य के अंतर्गत किसी भी सामाजिक समस्या की प्रकृति को जानने के लिए अध्ययनकर्ता स्वयं ही संबंधित क्षेत्र में जाता है तथा वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करके तथ्यों को एकत्र करता है।

तथ्यों को इकट्ठा करने के बाद तथ्यों का एक निश्चित क्रम में निरीक्षण, वर्गीकरण तथा परीक्षण किया जाता है ताकि निष्कर्ष निकाले जा सकें। इसके लिए सामाजिक सर्वेक्षण विधि के अनुसार कार्य किया जाता है जोकि सामाजिक विज्ञानों में अध्ययन करने की एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है। इस विधि में वैज्ञानिकता के आधार पर सामाजिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। परियोजना कार्य में हमें उपयोगी तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है। इसका आखिरी उद्देश्य भी उपयोगितावादी होता है।

किलपैट्रिक (W.H. Kilpatric) को इस विधि का जन्मदाता माना जाता है। परियोजना को योजना अथवा प्रोजैक्ट भी कहा जाता है जो कि वास्तविक सामाजिक परिवेश में नया ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त करने का एक ढंग है। इसका मुख्य लक्ष्य व्यावहारिक स्तर पर ज्ञान प्राप्त करना है। परियोजना कार्य, दो शब्दों ‘परियोजना’ तथा ‘कार्य’ से मिलकर बना है। ‘परियोजना’ का अर्थ है ‘योजना’ तथा कार्य का अर्थ है कार्य प्रणाली अथवा विधि है। इस तरह परियोजना कार्य का शाब्दिक अर्थ है योजना की कार्य प्रणाली। किलपैट्रिक (Kilpatric) के अनुसार, “परियोजना वह सहृदय उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है।”

प्रो० स्टीवेन्सन (Prof. Stevanson) के अनुसार, “परियोजना एक समस्यामूलक कार्य है, जो अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्णता प्राप्त करना है।” बेलार्ड (Ballard) के अनुसार, “परियोजना वास्तविक जीवन का एक भाग है जिसका प्रयोग विद्यालय में किया जाता है।”

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि परियोजना कार्य ज्ञान प्राप्त करने का एक ढंग है जिससे व्यक्ति को व्यावहारिक ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त होता है। इसमें अध्ययनकर्ता किसी सामाजिक समस्या को लेता है तथा उसका सर्वेक्षण करता है। इस सर्वेक्षण के बीच तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है तथा उन तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इसमें अंत में कार्यकर्ताओं द्वारा अध्ययनकर्ता के निर्देशन के अंदर रिपोर्ट तैयार की जाती है। इसम् विद्यार्थी अथवा अध्ययनकर्ता स्वयं ही क्षेत्र में जाकर तथ्य इकट्ठे करता है जिससे उसे सामाजिक परिवेश का ज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है और समस्या के बारे में उसे संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 2.
परियोजना कार्य के कितने स्तर हैं? उनका विस्तार से वर्णन करो।
अथवा
परियोजना कार्य का आयोजन कैसे किया जाता है? व्याख्या करें।
अथवा
परियोजना कार्य का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे पहला कार्य होता है उस कार्य से संबंधित योज ।। नाना क्योंकि अगर हम बिना किसी योजना के कार्य करना शुरू कर देंगे तो हमें बहुत ज्यादा परिश्रम व्यर्थ ही करना पड़ेगा तथा समय भी ज्यादा लगेगा। योजना बनाने से समय, धन तथा परिश्रम की बचत होती है तथा कार्य भी जल्दी हो जाता है। परियोजना कार्य की संपूर्ण प्रक्रिया चार चरणों से होकर गुज़रती है जोकि निम्नलिखित हैं:

  • परियोजना कार्य का आयोजन (Planning of Project Work)
  • तथ्यों का संकलन (Collection of data or facts)
  • तथ्यों का विश्लेषण व निर्वाचन (Analysis and interpretation of facts)
  • तथ्यों का प्रदर्शन (Presentation of data)।

अब हम इनका वर्णन विस्तार से करेंगे :
1. परियोजना कार्य का आयोजन (Planning of Project Work)-परियोजना कार्य के आयोजन के कई स्तर होते हैं तथा उन स्तरों का वर्णन इस प्रकार है :
(i) समस्या का चुनाव (Selection the Problem)-किसी भी परियोजना को शुरू करने का सबसे पहला कार्य होता है समस्या का चुनाव करना। किस समस्या का अध्ययन करना है तथा किस समस्या के बारे में तथ्य इकट्ठे करने हैं। समस्या का चुनाव करने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • ऐसी समस्या का चुनाव करना चाहिए जिसमें अध्ययनकर्ता की रुचि हो ताकि वह ज्यादा परिश्रम से काम कर सके।
  • अध्ययनकर्ता को उस समस्या तथा उससे संबंधित अन्य पक्षों का पहले से ही ज्ञान होना चाहिए ताकि परियोजना कार्य अच्छी तरह हो सके।
  • समस्या को चुनते समय उद्देश्य को भी ध्यान में रखना चाहिए।
  • विषय का चुनाव साधनों की सीमा के अंदर ही होना चाहिए।

(ii) लक्ष्य का निर्धारण (Determination of Objective)-आयोजन के दूसरे स्तर पर आता है लक्ष्य निर्धारण। जब लक्ष्य निर्धारित हो जाता है तो उसमें प्रयोग होने वाली पद्धतियों तकनीकों के बारे में सोचा जा सकता है। उद्देश्य या लक्ष्य को निर्धारित करने से Design of Survey आसानी से बनाया जा सकता है।

(iii) सर्वेक्षण का संगठन (Organization)-समस्या तथा लक्ष्य को निर्धारित करने के बाद उस कार्य के लिए उचित संगठन बनाए जाने की आवश्यकता होती है। संगठन के लिए एक सर्वेक्षण समिति को बनाया जाता है जिसमें सर्वेक्षण के निर्देशक, प्रमुख सर्वेक्षक इत्यादि होते हैं। इस संगठन बनाने से उद्देश्य प्राप्त करने में आसानी होती है तथा एकरूपता आती है।

(iv) अध्ययन क्षेत्र को परिसीमित करना (Delimitation of the field of study)-अगर अध्ययनकर्ता अपने अध्ययन में वस्तुनिष्ठता (Objectivity) लाना चाहता है तो उसके लिए यह ज़रूरी है कि वह सभी तथ्यों को एकत्रित न करे बल्कि सिर्फ उन्हीं तथ्यों को एकत्रित करे जो उसके अध्ययन के लिए जरूरी हैं। यह जरूरी नहीं कि सभी तथ्य उसके अध्ययन से संबंधित हों। इसलिए उसको अपने अध्ययन क्षेत्र को परिसीमित करना चाहिए।

(v) प्रारंभिक तैयारियां (Preliminary Preparations)-अध्ययनकर्ता ने अध्ययन करने के लिए सर्वेक्षण के संबंध में कुछ प्रारंभिक तैयारियां भी रखी होती हैं जैसे सर्वेक्षण से संबंधित विषयों का ज्ञान प्राप्त करना, विशेषज्ञों से मिलना, अध्ययन में आने वाली मुश्किलों के बारे में सोचना, लोगों से अनौपचारिक बातचीत करना।

(vi) सैंपल का चुनाव (Selection of Sample)-अगर अध्ययन करने वाली इकाइयों के सैंपल का चुनाव सही या गलत है तो यह भी अध्ययन को प्रभावित कर सकता है। सैंपल का सही चुनाव अध्ययनकर्ता की बुद्धिमता पर निर्भर करता है। सर्वेक्षण की सफलता असफलता सैंपल के चुनाव पर निर्भर करती है क्योंकि सैंपल का चुनाव करने से सर्वेक्षण का क्षेत्र सीमित हो जाता है, धन, समय तथा परिश्रम की बचत होती है। अध्ययनकर्ता अपने समय को और चीजों पर केंद्रित कर सकता है।

(vii) बजट बनाना (Preparation of Budget)-अगला स्तर होता है बजट बनाने का जोकि सर्वेक्षण के लिए बहुत ज़रूरी है। अगर सर्वेक्षण को सुचारु रूप से चलाना है तो एक संतुलित बजट की ज़रूरत होती है। बजट को अपने सर्वेक्षण तथा साधनों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है नहीं तो सर्वेक्षण बीच में ही रुक जाता है।

(viii) समय सूची का बनाना (Preparation of Time Schedule)-सर्वेक्षण में समय का निर्धारण बहुत ज़रूरी है क्योंकि ज्यादा समय सर्वेक्षण की उपयोगिता को खराब कर सकता है। समय सूची सर्वेक्षण की प्रकृति सर्वेक्षण के उद्देश्य तथा सर्वेक्षण में लगे कार्यकर्ताओं की संख्या पर निर्भर करता है।

(ix) अध्ययन पद्धतियों का चुनाव (Selection of the Methods of Study)-परियोजना कार्य में अध्ययन पद्धतियां हमेशा समय, धन, सर्वेक्षण की प्रकृति, कार्यकर्ताओं को ध्यान में रख कर चुनी जाती हैं। अलग-अलग विषयों में अलग-अलग पद्धतियों को प्रयोग किया जाता है। एक ही सर्वेक्षण में दो पद्धतियां भी प्रयोग की जा सकती हैं, परंतु इनका चुनाव पहले से ही होना चाहिए।

(x) अध्ययन में यंत्रों का निर्माण (Preperation of study tools)-किसी भी सर्वेक्षण कार्य के सफल-असफल होने में उसमें प्रयोग होने वाले यंत्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। प्रश्नावली, साक्षात्कार, अनुसूची, अवलोकन इत्यादि जैसे यंत्रों को सावधानी से तैयार करना चाहिए नहीं तो सर्वेक्षण असफल हो जाएगा। इसलिए सर्वेक्षण की सफलता के लिए यंत्रों का ही निर्माण होना जरूरी होता है।

(xi) कार्यकर्ताओं का चुनाव तथा प्रशिक्षण (Selection and training of field workers)-क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं का चुनाव तथा प्रशिक्षण भी सर्वेक्षण को प्रभावित करता है। यंत्रों के निर्माण के साथ-साथ ईमानदार तथा निष्ठावान कार्यकर्ताओं का चुनाव करना चाहिए। उनको प्रशिक्षण भी देना चाहिए ताकि अध्ययन कार्य में एकरूपता तथा वैषयिकता लाई जा सके।

(xii) पूर्व परीक्षण तथा पूर्वगामी सर्वेक्षण (Pretesting and Pilot study)-यह भी सर्वेक्षण के लिए बहुत ज़रूरी है। पूर्व परीक्षण से हमें प्रयोग किए जाने वाले यंत्रों की उपयोगिता का पता चलता है। पूर्वगामी सर्वेक्षण से हमें सर्वेक्षण में आने वाली कठिनाइयों का पता चल जाता है। इस तरह पूर्व परीक्षण तथा पूर्वगामी सर्वेक्षण से अध्ययन की कमियों का पता चल जाता है तथा उन्हें समय रहते ही सुधारा जा सकता है।

(xiii) समुदाय को परियोजना कार्य के लिए तैयार करना (To prepare community for project)-सर्वेक्षण कार्य को शुरू करने से पहले समाचार-पत्रों, रेडियो, प्रचार के माध्यमों से लोगों को सर्वेक्षण के लिए तैयार करना तथा सर्वेक्षण के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना बहुत ज़रूरी होता है ताकि लोग मानसिक रूप से सर्वेक्षण में सहयोग देने को तैयार हो सके।

2. तथ्यों का संकलन-तथ्यों का संकलन कार्य क्षेत्र में होता है तथा इसमें लोगों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करना पड़ता है ताकि उनसे प्रश्न पूछ कर तथ्य इकट्ठे किए जा सके। यह कार्य बहुत सावधानी भरा है तथा इसमें निम्नलिखित स्तरों से गुजरना पड़ता है

  • सबसे पहले सैंपल में आए सूचनादाताओं से संपर्क स्थापित करना पड़ता है।
  • फिर सूचनादाताओं से प्रश्न पूछ कर सूचना एकत्रित की जाती है।
  • परियोजना कार्य में लगे कार्यकर्ताओं की देख-रेख करना ताकि वह अपना कार्य-निष्ठा तथा ईमानदारी से कर सकें।

3. तथ्यों का विश्लेषण तथा निर्वचन (Analysis and Interpretation of Data)-तथ्यों को इकट्ठे करने के बाद का स्तर है उनका विश्लेषण तथा निर्वचन। इसके लिए तीन निम्नलिखित चरण हैं-
(i) तथ्यों को तोलना (Weighting of data)-हरेक सर्वेक्षण में कुछ कसौटियां रखी जाती हैं जिन पर इन तथ्यों को रखकर परखा जाता है तथा उनके सही या ग़लत होने का पता लगाया जाता है।

(ii) संपादन (Editing)-अगला स्तर है तथ्यों का संपादन करना। सबसे पहले यह देखा जाता है कि हरेक तरफ से सूचना आ गई है या नहीं इसके बाद उत्तरों की जांच की जाती है ताकि कोई उत्तर भरने से रह न गया हो। इसके साथ गैर ज़रूरी तथ्यों को हटा दिया जाता है तथा एक जैसे तथ्यों को कोड नंबर दे दिया जाता है। कोड के लिए कोई संख्या इत्यादि को रखा जाता है।

(iii) वर्गीकरण तथा सारणीयन (Classification and Tabulation)-जब तथ्यों का संपादन हो जाता है तो तथ्यों को समानता तथा भिन्नता के आधार पर उन्हें अलग-अलग समूहों तथा वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण करने से तथ्य संक्षिप्त रूप में आ जाते हैं। तथ्यों के इस वर्गीकरण को अच्छी तरह समझने के लिए उन्हें तालिकाओं में लिखा दिया जाता है जिसे सारणीयन कहते हैं। परियोजना कार्य में वर्गीकरण तथा सारणीयन बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे हम बहुत ही जल्दी तथ्यों के बारे में पता कर सकते हैं।

4. तथ्यों का प्रदर्शन (Presentation of data)-तथ्यों को दो प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है।
(i) चित्रमयी प्रदर्शन (Diagramatic representation)-तथ्यों को आसानी से प्रकट करने के लिए चित्रों का . प्रयोग किया जाता है तथा तथ्यों को चित्रों की सहायता से दर्शाया जाता है। चित्रों की मदद से कम समय में मुख्य बातों को दिखाया जा सकता है।

(ii) रिपोर्ट का निर्माण तथा प्रकाशन (Preperation and Publication of Report)-संपूर्ण अध्ययन प्रक्रिया के पूरा होने के बाद परियोजना कार्य का अंतिम चरण होता है संपूर्ण प्रक्रिया की रिपोर्ट तैयार करना तथा उसे प्रकाशित करना। रिपोर्ट तैयार करते समय सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि वह सभी के समझ आ सके।

तथ्यों को तार्किक ढंग से पेश करना चाहिए तथा विचारों को स्पष्ट करना चाहिए। तकनीकी शब्दों को स्पष्ट तथा परिभाषित करना चाहिए। तथ्यों को दोबारा भी नहीं लिखना चाहिए। आवश्यक शीर्षक तथा उपशीर्षक भी देने चाहिए। जहां ज़रूरत हो पाद टिप्पणियां भी देनी चाहिए। चित्र तथा तालिकाओं का भी प्रयोग करना चाहिए ताकि आँकड़े आसानी से समझ में आ सकें। इस के बाद रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाता है तथा उसे पेश कर दिया जाता है।

इस तरह परियोजना कार्य की संपूर्ण प्रक्रिया कई स्तरों से होकर गुज़रती है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 3.
परियोजना कार्य के गुणों तथा दोषों का वर्णन करो।
अथवा
परियोजना कार्य के लाभ व हानियाँ बताइए।
उत्तर:
परियोजना कार्य के गुण – (Merits of Project Work):
परियोजना कार्य के बहुत गुण होते हैं जिस कारण इसका समाज के अध्ययन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके अनलिखित गुण हैं-
1. आत्म विकास का अवसर (Opportunity of Self Development)-परियोजना कार्य कार्यकर्ताओं तथा विद्यार्थियों में आत्म विकास करने का काफ़ी महत्त्वपूर्ण साधन है। इसमें विद्यार्थी स्वयं सोचते हैं, कार्य करते हैं तथा ज़रूरत पड़ने पर अध्ययनकर्ता से निर्देश लेते हैं। इस तरह परियोजना कार्य विद्यार्थियों में आत्म-विश्वास जगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. सामाजिक भावना का विकास (Development of Social Feeling)-कोई भी परियोजना कार्य एक या दो व्यक्ति पूरा नहीं कर सकते हैं बल्कि यह बहुत सारे व्यक्तियों के सहयोग से पूर्ण होता है। इस तरह परियोजना कार्य से सामाजिक भावना विकसित होती है तथा व्यक्तियों में एक-दूसरे के साथ कार्य करने से सामुदायिक भावना भी विकसित होती है।

3. विकास के समान अवसर (Equal Opportunity of Development)-परियोजना कार्य करते समय सभी कार्यकर्ताओं को समान अवसर दिया जाता है। किसी के साथ किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। इससे सभी को विकसित होने के समान अवसर प्राप्त होते हैं।

4. व्यावहारिक ज्ञान (Practical Knowledge)-परियोजना कार्य से सभी कार्यकर्ताओं को व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें अलग-अलग समस्याओं को लेकर योजना बनाई जाती है तथा उनका अध्ययन किया जाता है। क्षेत्र में जाकर तथ्य इकट्ठे किए जाते हैं जिस के कारण हमें हरेक प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

5. मनोवैज्ञानिक संतुष्टि (Psychological Satisfaction)-इस कार्य को करने से व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक संतुष्टि प्राप्त होती है। इस में कार्य करने से व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है तथा डर नहीं लगता और ज्ञान को दबाव में नहीं बल्कि खुल कर ग्रहण किया जाता है।

परियोजना कार्य के दोष-(Demerits of Project Work):
1. अधिक खर्च (More Expensive)-परियोजना कार्य में योजना बनाई जाती है तथा उस योजना के अनुसार कार्य किया जाता है। इस को करने के लिए बहुत सारे कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। ज्यादा कार्यकर्ताओं के होने के कारण उनके रहने, खाने-पीने, खर्चे के कारण बहुत ज्यादा खर्च हो जाता है तथा यह इसका एक बहुत बड़ा दोष है।

2. उचित परियोजना कार्य ढूंढ़ने की मुश्किल (Difficulty in finding right project work)-सबसे पहले सही समस्या अथवा परियोजना कार्य को ढूंढ़ने की आवश्यकता होती है जोकि काफी मुश्किल है। अगर सही परियोजना कार्य न मिल पाए तो अध्ययन के ज्यादा लाभ नहीं होते हैं।

3. क्रमबद्ध अध्ययन का न होना (Absence of seuqal study)-इस कार्य को करने के लिए कार्य से संबंधित समस्या का क्रमबद्ध अध्ययन भी ज़रूरी है जोकि इस में नहीं होता है। यह एक बहुत बड़ी कमी है।

प्रश्न 4.
निरीक्षण अथवा अवलोकन क्या होता है? इसकी परिभाषाओं तथा विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान में सूचना इकट्ठी करने के लिए वैसे तो अनुसूची, प्रश्नावली और इंटरव्यू आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। पर ये सब सूचना संबंधित आदमी से प्रश्न पूछकर ली जाती है। अनुसूची द्वारा इंटरव्यू में उत्तर देने वाला अनुसूची में दिए हुए प्रश्नों के उत्तर अनुसंधानकर्ता को देता है, जो उन्हें नोट कर लेता है और प्रश्नावली में उन जवाबों को लिखकर आप ही भेज देता है।

विवरणात्मक इंटरव्यू में सूचनाओं का स्रोत संबंधित व्यक्ति होता है। अनुसंधानकर्ता को इस तरह दूसरों द्वारा दी सूचनाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। निरीक्षण विधि में अनुसंधानकर्ता आप घटना का निरीक्षण करता है। वह सूचना के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहता। इसलिए निरीक्षण विधि अथवा अवलोकन विधि और सब विधियों से ज्यादा विश्वसनीय मानी जाती है।

परिभाषाएँ-(Definitions):
अवलोकन शब्द अंग्रेज़ी शब्द Observation का रूपांतर है। Observation का अर्थ है आपसी संबंध को जानने के लिए स्वाभाविक रूप में घटने वाली घटनाओं का सूक्ष्म निरीक्षण। पी० वी० यंग ने इन्हें आंखों द्वारा एक उद्देश्यपूर्ण अध्ययन का नाम दिया है। पी० वी० यंग ने लिखा है कि “निरीक्षण आंखों द्वारा उद्देश्यपूर्ण अध्ययन है जिसकी सामूहिक व्यवहार और जटिल सामाजिक संस्थाओं के साथ ही एक समग्रता का निरीक्षण करने वाली अलग-अलग इकाइयों या सूक्ष्म अध्ययन करने वाली एक विधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।”।

(According to P.V. Young, “Observation is a deliberate study through the eye may be used as one of the methods for scrutinizing collective behaviour and complex social institutions as well as the separate units composing a totality.”’)

मोज़र (Moser) के अनुसार, “सही अर्थों में, निरीक्षण में कानों या ध्वनि के प्रयोग की जगह आंखों के प्रयोग के साथ है।”
(“In the strict sense, observation implies the use of the eyes rather than the ears and. the voice.”)
इस प्रकार निरीक्षण में निम्नलिखित परिणामों का सार है-
(1) इसमें घटना का ज्ञान आंखों द्वारा प्राप्त किया जाता है। चाहे हम कानों और वाक्य शक्ति का प्रयोग भी कर सकते हैं पर इनका प्रयोग उसकी जगह पर कम महत्त्वपूर्ण होता है।

(2) निरीक्षण हमेशा उद्देश्यपूर्ण और सूक्ष्म होता है। यही उसकी आम लोगों से भिन्नता होती है। हम सचेत अवस्था में बराबर, कुछ न कुछ देखते ही रहते हैं, पर उसे निरीक्षण नहीं कहा जा सकता। निरीक्षण एक विशेष उद्देश्य होता है, इसलिए यही ज्यादा सूक्ष्म और गहरा होता है।

नतीजा निकालने के लिए इसकी बहुत ज़रूरत होती है। सामाजिक घटनाएं तो सबके सामने घटित ही रहती है। एक व्यक्ति उसमें से सिद्धांत की खोज कर लेता है पर दूसरे को इसमें कोई विशेषता नहीं लगती। इस अंतर का कारण निरीक्षण की सूक्ष्मता और गहराई ही है। बिना उद्देश्य के अनुसंधानकर्ता भटकता रहता है और वह तथ्यों की गहराई तक नहीं पहुंच सकता।

दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम संक्षेप में निरीक्षण विधि में निम्नलिखित विशेषताओं का जिक्र कर सकते हैं।

  • निरीक्षण सामाजिक अनुसंधान में घटना के बारे में पहले तथ्य इकट्ठे करने की प्रमुख विधि है।
  • इस विधि में अनुसंधानकर्ता को किसी तथ्य को इकट्ठे करने के लिए दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ता बल्कि उसे अपनी इंद्रियों का प्रयोग करने का अवसर मिलता है जिसके साथ तथ्य अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  • निरीक्षण विधि घटना के सूक्ष्म निरीक्षण का मौका देती है।
  • इस विधि द्वारा इकट्ठे किए हुए तथ्य किसी भी दूसरी विधि द्वारा इकट्ठे किए तथ्यों से अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  • यह एक सामने दिखने वाली प्रणाली है जिनमें अनुसंधानकर्ता किसी दूसरे स्रोत पर आश्रित न रहकर आप ही घटना का सामने से ही निरीक्षण करके अध्ययन करता है।
  • इस विधि द्वारा वैज्ञानिक सूक्ष्मता संभव होती है।
  • यह विधि सबसे सरल है।
  • अनुसंधानकर्ता स्वयं ही घटना को अपनी आंखों से देखने के बाद तथ्य इकट्ठे करता है।
  • यह एक प्रचलित विधि है जिसका प्रयोग प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों में एक जैसा ही होता है।
  • यह प्रणाली सबसे सस्ती, स्पष्ट, सरल और वैज्ञानिक है।

प्रश्न 5.
सहभागी निरीक्षण अथवा सहभागी अवलोकन से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:
1. सहभागी निरीक्षण-सहभागी निरीक्षण का प्रयोग सबसे पहले Lindeman ने 1924 में अपनी पुस्तक Social Discovery में किया था। चाहे विधि के रूप में इसका प्रयोग बहुत पहले ही हो चुका था। उसने लिखा “सहभागी निरीक्षण इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी घटना का निरीक्षण तभी करीब-करीब शुद्ध हो सकता है जब वह बाहरी और अंदरूनी दृष्टिकोण से मिलकर बना हो।

इस प्रकार उस व्यक्ति का दृष्टिकोण जिसने घटना में भाग लिया और जिसकी इच्छाओं और स्वार्थ किसी-न-किसी रूप में जुड़े हुए हो, उस आदमी के दृष्टिकोण से निश्चित ही अलग होगा जो सहभागी न होकर सिर्फ देखने वाला या विवेचनकर्ता के रूप में रहा है।”

सहभागी निरीक्षण की परिभाषा देते हुए ‘मैज’ ने लिखा है “जब देखने वाले के दिल की धड़कनें समूह के दूसरे व्यक्तियों की धड़कनों के साथ मिल जाती हैं और वह किसी दूर की प्रयोगशाला से आए हुए तटस्थ प्रतिनिधि के समान नहीं रह जाता, तब यह समझना चाहिए कि उसने सहभागी देखने वाला कहलाने का अधिकार प्राप्त कर लिया है।

मैज ने इस प्रकार समूह के साथ निरीक्षणकर्ता के रागात्मक एकीकरण पर ही जोर दिया है। उसके निरीक्षणकर्ता को सहभागी तब ही कहेंगे जब वह निरीक्षण किए जाने वाले समूह में अपनापन, अनुभव करने लगे, उसका दृष्टिकोण समूह के दृष्टिकोण के साथ मिल जाए और उसकी भावनाएं समूह की भावनाओं के साथ मिलकर एक हो जाएं।

विद्वानों ने इस प्रकार के पूरे एकीकरण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दोषपूर्ण बताया है। उन्होंने सहभागी निरीक्षणकर्ता की और ज्यादा खुली परिभाषा दी है। गुड एंड हॉट के अनुसार “निरीक्षणकर्ता सहभागी कहलाने का हकदार उस समय हो जाता है जब वह समह के एक मैंबर/सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।”

यहां मंजरी उस समूह से आती है जिसका निरीक्षण किया जाता है। देखने वाले के विचारों, भावनाओं और दृष्टिकोण में परिवर्तन ज़रूरी नहीं है। पी० वी० यंग ने इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए हैं। उसके अनुसार भी सहभागी निरीक्षणकर्ता “अध्ययन किए जाने वाले समूह में रहता है या दूसरी तरह से उनके जीवन में भाग लेता है।”

अब यह परिणाम निकलता है कि सहभागी निरीक्षण के लिए ज़रूरी है कि अनुसंधानकर्ता समूह में एक अजनबी की तरह न रहकर उसका एक अंग बनकर रहे। यह कोई ज़रूरी नहीं है कि वह उनकी सभी क्रियाओं में भाग ले, पर निश्चित ही वह वहां निरीक्षणकर्ता की हैसियत से नहीं रहता। इसी प्रकार यह भी ज़रूरी नहीं कि वह समह के बीच बराबर साथ साथ रहा हो। वह समय-समय बारी-बारी उनके बीच रहा। पर उसका उस समूह के साथ बहुत करीब का क्रियात्मक संपर्क होना बहुत ज़रूरी है।

सहभागी निरीक्षण के साथ निरीक्षणकर्ता अनेक प्रकार से समूह का अंग बन सकता है। वह ऐसा कोई भी काम हाथ में ले सकता है। जिससे वह अध्ययन में किए जाने वाले समूह के बराबर संपर्क में रहे। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए पढ़ाई का काम। जिस प्रकार से समाज का अध्ययन करना है और जिस प्रकार का अध्ययन करना है, अनुसंधानकर्ता को उसी के अनुरूप पद भी लेना चाहिए। प्रयास इस बात का करना चाहिए कि उसे समूह की क्रियाओं को ज्यादा से ज्यादा करीब से देखने का मौका अथवा अवसर मिल सके।

प्रश्न 6.
सहभागी निरीक्षण के गुणों तथा दोषों का वर्णन करें।
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण के गण-
(1) इस निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले वर्ग के काफ़ी समीप आ जाता है। इस तरह उसे ज्यादा सूक्ष्म अध्ययन का अवसर मिलता है। किसी व्यक्ति के परिवार के जीवन का सब से बढ़िया और सच्चा परिचय उस व्यक्ति को होगा, जो उसके साथ या उसके घर में रहा हो।

(2) सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता को समूह के अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों और रिवाजों का सच्चा समझने की शक्ति प्राप्त होती है। अधिकतर क्रियाएं सामाजिक संगठनों और हालातों से अच्छी तरह प्रभावित होती हैं। किसी समाज में कोई परंपरा क्यों प्रचलित है? इसका अनुभव कोई बाहर से देखकर नहीं कर सकता। इस तरह असहभागी निरीक्षण में घटना का केवल वर्णन होता है जबकि सहभागी अंदरूनी स्वरूप को समझने में सहायक होता है।

(3) सहभागी निरीक्षण स्वाभाविक हालात में संभव है। जब लोगों को पता लग जाता है कि उनका निरीक्षण किया जा रहा है तो उनके व्यवहार में अस्वाभाविकता आ जाती है और बनावटीपन भी। इस तरह निरीक्षणकर्ता द्वारा ईमानदारी और सावधानी बरतने पर भी उचित सूचना प्राप्त नहीं होती। इसलिए स्वाभाविक हालातों/परिस्थितियों में निरीक्षण के लिए सहभागी निरीक्षण ज़रूरी है।

(4) सहभागी निरीक्षण देखने वाले की नज़र को ज्यादा सूक्ष्म बना देता है जिससे वह जल्द ही उचित नतीजों को ग्रहण कर सके। निरीक्षण के लिए एक विशेष ज्ञान ज़रूरी है। इसके बिना कोई भी सूक्ष्म व्यवहारों का सही निरीक्षण नहीं कर सकता। एक इंजीनियर दो कारखानों में लगी मशीनों का तुलनात्मक अध्ययन जितनी आसानी सरलता से जल्दी ही कर लेता है उतना एक अपरिचित व्यक्ति नहीं।

यही बात सामाजिक समूह से संबंध में भी सत्य है। समूह में कुछ समय रहने के पश्चात् निरीक्षणकर्ता इसकी क्रियाओं और व्यवहारों से परिचित हो जाता है और उनमें मिलने वाली सूक्ष्म ग़लती या नकली धन भी उसका ध्यान खींच लेता है।

(5) सहभागी असहभागी निरीक्षण की जगह ज्यादा सुविधाजनक होता है। निरीक्षण की एक आवश्यक शर्त यह भी है कि संबंधित व्यक्ति या समूह अनुसंधानकर्ता को निरीक्षण करने का अवसर दे। सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्ता एक निरीक्षण के रूप में नहीं जाता। बाहरी रूप से उसका उद्देश्य सरा ही होता है। इस तरह संबंधित व्यक्ति या समूह से किसी विरोध की संभावना नहीं रहती।

सहभागी निरीक्षण के दोष-
(1) इसमें अनुसंधानकर्ता को दो पार्ट एक साथ अदा करने पड़ते हैं-वह एक वैज्ञानिक भी होता है और अध्ययन किए जाने वाले समाज का सदस्य भी। संतुलन कायम रखना बहुत कठिन होता है।

(2) जब निरीक्षक का भावात्मक एकीकरण हो जाता है तो निरीक्षण की स्थूलता खत्म हो जाती है। एक तटस्थ देखने वाले के स्थान पर वह अपने आप को एक वर्ग का अंग मानने लगता है। उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण खत्म हो जाता है। इसमें बहुत सारी घटनाओं को इसी तरह देखने लगता है। वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक प्रकार का Bias बहुत हानिकारक है।

(3) समाज की क्रियाओं में नज़दीकी के परिचय हमारे सूक्ष्म निरीक्षण में कभी-कभी बाधक भी सिद्ध होते हैं। जब समूह की अनेक क्रियाओं के साथ हमारा नज़दीकी परिचय हो जाता है तो हम उनमें से बहुत को इसी तरह ही मान लेते हैं। बहुत सारी घटनाओं को आम मानकर छोड़ देते हैं। समूह में एकदम अपरिचित होने से उसकी प्रत्येक क्रिया हमारे लिए नई और आदर्शक होती है। इसलिए निरीक्षण ज्यादा सूक्ष्म और खुला होता है।

(4) कभी-कभी यह भी देखा गया है कि लोग अपरिचित व्यक्ति के समक्ष ज्यादा खुलकर व्यवहार करते हैं क्योंकि उन्हें इसमें किसी भी प्रकार की सामाजिक प्रसिद्धि को हानि की संभावना नहीं होती पर जब कोई अपरिचित व्यक्ति निरीक्षक के रूप में साथ होता है तो उनके व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है। इसी प्रकार सहभागी निरीक्षण उचित और सही सूचना प्राप्त करने में सहायता के स्थान पर मुस्किल अथवा कठिनाई उत्पन्न करता है।

(5) सहभागी अनुसंधानकर्ता आमतौर पर अपने आपको समाज से अलग अथवा पृथक नहीं रख सकता। कभी-कभी वह किसी विशेष समूह या दल में विशेष रुचि लेने लगता है या किसी वर्ग के साथ विशेष संपर्क बढ़ा लेता है। इस तरह निरीक्षक की वैज्ञानिकता समाप्त हो जाती है।

इसके अतिरिक्त यदि उसने समाज में कोई प्रसिद्ध स्थान प्राप्त कर लिया है तो उसे अनुसंधान से अधिक अपनी प्रसिद्धि का ध्यान अधिक रहता है। तो सकता है कि उस स्थान पर रहकर वह अपना प्रभाव लोगों के व्यवहारों और क्रियाओं पर डाल सकता है। इसके साथ भी अध्ययन में कठिनाई उत्पन्न होती है।

प्रश्न 7.
निरीक्षण विधि के गुणों तथा सीमाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
निरीक्षण विधि के गुण
(Merits of Observation)
(i) विश्वास योग्य-इस बात में कोई संदेह नहीं है कि निरीक्षण से प्राप्त सूचना और विधियों द्वारा प्राप्त सूचना से ज्यादा विश्वसनीय होते हैं। इसमें वैज्ञानिक उत्तरदाता पर आश्रित नहीं होता बल्कि वह सूचना खुद ही इकट्ठी करता है। अनुसूची तथा प्रश्नावली में वह उत्तरदाता पर आश्रित होता है परंतु इसमें वह सब कुछ अपने आप ही देखता है। यदि वैज्ञानिक चालाक है तो वह सही सूचना प्राप्त कर सकता है।

(ii) आसान-निरीक्षण विधि बहुत ही आसान है। साक्षात्कार, अनुसूची इत्यादि में उत्तरदाता से अपने मतलब की सूचना निकलवाने के लिए बहुत चतुरता की जरूरत होती है परंतु निरीक्षण में चतुरता की कोई जरूरत नहीं होती। हम सिर्फ चीजों को देखकर ही उनके बारे में अनुमान लगा सकते हैं।

(iii) सर्वव्यापक विधि-निरीक्षण विधि सर्वव्यापक तथा सर्वप्रचलित होती है। यह सभी विज्ञानों, देशों में समान रूप से उपयोगी होती है। प्रश्नावली, साक्षात्कार सिर्फ सामाजिक खोज में ही उपयोग होते हैं। परंतु निरीक्षण सभी विज्ञानों में उपयोग होती है।

(iv) सत्य की जांच करने की सुविधा-इस विधि से प्राप्त सूचना की दोबारा जांच भी हो सकती है। यदि निरीक्षणकर्ता से कोई ग़लती हो जाती है तो उस चीज़ का दोबारा निरीक्षण हो सकता है। हमें यह सुविधा साक्षात्कार, अनुसूची या प्रश्नावली में नहीं होती। उनमें उत्तरदाता झूठ बोल सकता है परंतु इसमें ऐसी कोई समस्या नहीं होती है।

निरीक्षण विधि की सीमाएं-(Limitations of Observation):
(i) निरीक्षणकर्ता का न होना-निरीक्षण विधि में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हो सकता है कि घटना के घटित होते समय निरीक्षक उस जगह पर ही हो। सामाजिक घटनाओं की प्रकृति अनिश्चित होती है तथा वह कभी भी घटित हो सकती है। यह ज़रूरी नहीं है कि व्यक्ति उस समय मौजूद ही हो। उसकी गैर-मौजूदगी के कारण निरीक्षण संभव नहीं है। उदाहरण के तौर पर, पति-पत्नी की लड़ाई।

(ii) घटनाएं निरीक्षण का मौका नहीं देतीं-यह समस्या भी निरीक्षण में हो सकती है। हो सकता है कि घटना के घटित होते समय उसका पता ही न चले या फिर संबंधित व्यक्ति निरीक्षण का अवसर ही न दें।

सामाजिक घटनाओं के निरीक्षण के लिए यह ज़रूरी है कि संबंधित व्यक्ति इसका अवसर दें परंतु काफ़ी हद तक ऐसा मुमकिन नहीं होता जैसे कि पति-पत्नी के आंतरिक संबंधों के निरीक्षण का मौका कोई भी नहीं देगा। इस प्रकार कई बार घटनाएं भी निरीक्षण का समय नहीं देती हैं।

(iii) निरीक्षण विधियों का असहयोग-काफ़ी सारे सामाजिक अनुसंधान भावनाओं, विचारों जैसे अमूर्त तथ्यों से संबंधित होते हैं। इन अमूर्त तथ्यों का निरीक्षण नहीं हो सकता। हमें इस बात का पता नहीं चल सकता कि कोई व्यक्ति क्या सोच रहा है या किसी चीज़ के बारे में उसके वास्तविक विचार क्या हैं? इसलिए व्यक्ति खुद ही निरीक्षण करने की बजाए संबंधित व्यक्ति से पूछकर ही चला जाता है।

प्रश्न 8.
सामाजिक सर्वेक्षण का क्या अर्थ है? परिभाषाओं सहित स्पष्ट करें।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान की विधियों में सर्वेक्षण विधि बहुत महत्त्वपूर्ण है। सर्वेक्षण अंग्रेजी भाषा के शब्द Survey का हिंदी रूपांतर है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है किसी घटना को ऊपर से देखना, परंतु सामाजिक अनुसंधान में इसका एक विधि के रूप में बहुत ही विशिष्ट अर्थ है।

सर्वेक्षण का अर्थ एक ऐसी अनुसंधान की विधि से होता है जिसमें अनुसंधानकर्ता घटनास्थल पर जाकर घटना का वैज्ञानिक तरीके से निरीक्षण करता है तथा उस घटना के संबंध में खोज करता है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता को अपनी कल्पना से कुछ नहीं करना पड़ता बल्कि वह घटना के साथ प्रत्यक्ष रूप में संपर्क में आता है तथा उसमें से अपने मतलब की चीज़ निकाल लेता है। इससे उसके निष्कर्षों में ज्यादा वैयक्तिता आती है तथा वह सच के बहुत करीब होते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-
1. मोज़र (Moser) के अनसार. “समाजशास्त्री के लिए सर्वेक्षण क्षेत्र का अनसंधान करने. अध्ययन के विषय से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संबंधित आंकड़े एकत्र करने का एक ऐसा अति उपयोगी साधन है जिससे समस्या पर प्रकाश पड़ सके।”

2. मोर्स (Morse) के अनुसार, “संक्षेप में सर्वेक्षण किसी प्रस्तुत सामाजिक परिस्थिति, समस्या अथवा जनसंख्या के विशिष्ट उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा क्रमबद्ध रूप में की गई विवेचना की विधि मात्र है।”

3. बर्जेस (Burgess) के अनुसार, “एक सर्वेक्षण समुदाय की दशाओं एवं आवश्यकताओं का सामाजिक विकास की रचनात्मक योजना प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया गया वैज्ञानिक अध्ययन है।”

4. एब्रम्स (Abrams) के अनुसार, “सामाजिक सर्वेक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के संगठन तथा क्रियाओं के सामाजिक पक्ष के संबंध में संख्यात्मक तथ्य संकलित किए जाते हैं।”

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक घटनाओं तथा सामाजिक समस्याओं से संबंधित होते हैं। इसमें किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में अनुसंधान के विषय से संबंधित घटनाओं का निरीक्षण किया जाता है तथा उस निरीक्षण से ही सूचना इकट्ठी की जाती है। फिर इस सूचना से निष्कर्ष निकाले जाते हैं। यह विधि वैज्ञानिक विधि के बहुत ज्यादा करीब होती है क्योंकि इस विधि में अभिनीत आने के मौके बहुत ही कम होते हैं। सामाजिक अनुसंधानों में यह विधि बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 9.
सामाजिक सर्वेक्षण विधि के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण विधि के बहुत से उद्देश्य हो सकते हैं, परंतु हम उन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित कर रहे हैं-
1. व्यावहारिक सूचना प्राप्त करना-ज्यादातर सर्वेक्षण लोगों को सूचना देने के लिए होते हैं चाहे वह लोग सरकारी हों या गैर-सरकारी। इस तरह का सर्वेक्षण कोई संस्था अपने या किसी और के लिए भी करवा सकती है। इस तरह के व्यावहारिक उपयोग से उस संस्था को अपना विकास करने में मदद मिलती है।

सर्वेक्षण का उपयोग अब आर्थिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में भी काफ़ी हो रहा है। अब ऐसी संस्थाएं भी बन गई हैं जो दूसरों के लिए सर्वेक्षण का कार्य करती हैं। बहुत सारी व्यापारिक संस्थाएं अपने उत्पाद की बिक्री के संबंध में सर्वेक्षण करवाती हैं। उद्योगपति अपने माल के लिए तथा कार्यक्षमता की वृद्धि के लिए भी सर्वेक्षण करवाते हैं। इस तरह सर्वेक्षण की मदद से अब सिर्फ सिद्धांत ही नहीं बनते बल्कि उनका व्यावहारिक उपयोग भी हो रहा है। इस तरह सर्वेक्षण की मदद से व्यावहारिक सूचना प्राप्त हो जाती है।

2. उपकल्पना की जांच-बहुत-से सर्वेक्षणों का उद्देश्य अलग-अलग उपकल्पनाओं की जांच करना होता है। रोज़ाना जीवन की घटनाओं को देखकर हमारे मन में बहुत-सी उपकल्पनाएं पैदा हो सकती हैं। उन उपकल्पनाओं में सच की पहचान तभी हो सकती है जब वैज्ञानिक तरीके से तथ्यों को इकट्ठा किया जाए तथा उन तथ्यों की उचित विवेचना की जाए। इसलिए बहुत से सर्वेक्षण उपकल्पनाओं की जांच के लिए किए जाते हैं।

3. सामाजिक सिद्धांतों के सच की पहचान-हमारा समाज प्रगतिशील है जिस कारण वह लगातार बदलता रहता है। इसलिए आज से कुछ समय पहले बने सिदधांतों में बदलाव आना भी जरूरी होता है। उ ले सकते। इसलिए बदले हुए हालात के अनुसार सामाजिक सिद्धांतों तथा नियमों के सच की पहचान ज़रूरी होती है।

इसलिए पुराने सिद्धांतों के सच की पहचान इस विधि से हो जाती है। इसके साथ ही अनुसंधान की तकनीकें भी समय के साथ बदलती रहती है। पुराने सिद्धांतों की नई तकनीकों के आधार पर जांच करने की ज़रूरत होती है। बहुत से सर्वेक्षण पुराने सिद्धांतों में सच की पहचान के लिए भी होते हैं।

4. कार्य करण संबंध का पता करना-बहुत से सर्वेक्षण का उद्देश्य वर्णन की जगह घटना की व्याख्या करना होता है। समाज में होने वाली घटनाओं को देखकर व्यक्ति के मन में उन घटनाओं के कारणों को जानने की इच्छा पैदा होती है। इनको निगमन विधि से पहले से बने सिद्धांतों से पता किया जा सकता है या फिर आगमन विधि से सर्वेक्षण हाला pr का MBD SOCIOLOGY (XII HR.) करके पता किया जा सकता है। सर्वेक्षण से घटना से संबंधित अलग-अलग तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है तथा उनके आधार पर उन घटनाओं के कारणों की खोज की जाती है।

5. सामाजिक घटनाओं का वर्णन-सामाजिक सर्वेक्षणों का उद्देश्य वर्णनात्मक भी हो सकता है, जैसे सामाजिक संबंधों या व्यवहार का अध्ययन। कई बार सर्वेक्षण किसी विशेष उद्देश्य को लेकर सिर्फ सामाजिक घटना के वर्णन के लिए होता है। सरकारी सर्वेक्षण सिर्फ साधारण सूचना इकट्ठी करने के लिए किये जाते हैं। वह किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं होते बल्कि अनुसंधानकर्ता को उचित सामग्री प्रदान करने तथा उसके कार्य को सरल बनाने के लिए होते हैं।

प्रश्न 10.
सामाजिक सर्वेक्षणों के कितने प्रकार होते हैं? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षणों को अलग-अलग आधारों पर अलग-अलग भागों में बांटा जा सकता है। उनमें से कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. सामान्य तथा विशेष सर्वेक्षण-जब सर्वेक्षण किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं होते बल्कि घटना के संबंध में सूचना इकट्ठी करने के लिए होते हैं तो उन्हें सामान्य सर्वेक्षण कहा जाता है। यह किसी उपकल्पना के आधार पर नहीं होते बल्कि इनमें तो अनुसंधान के विषय तथा क्षेत्र को निर्धारित कर दिया जाता है। इस तरह के सर्वेक्षण सरकार द्वारा किए जाते हैं।

विशेष सर्वेक्षण में अनुसंधान किसी विशेष उपकल्पना के आधार पर होता है। इनमें किसी समूह या स्थान का सर्वेक्षण नहीं होता बल्कि किसी विशेष घटना का सर्वेक्षण होता है। इसे उन लोगों से संपर्क बनाया जाता है जो उस विशेष घटना से संबंधित हैं तथा निष्कर्ष निकालने में मदद दे सकते हैं। इस तरह सामान्य सर्वेक्षण किसी वर्ग या स्थान से जुड़ा हुआ होता है। वहीं पर विशेष सर्वेक्षण घटना या समस्या से जुड़ा हुआ होता है।

2. अंतिम तथा आवृत्तिपूर्ण सर्वेक्षण-कई सर्वेक्षण इस तरह से होते हैं जिनमें सूचना को दोबारा-दोबारा इकट्ठा करना नहीं पड़ता बल्कि एक बार ही सूचना इकट्ठी करने के बाद उसके आधार पर निष्कर्ष निकाल दिए जाते हैं तथा सर्वेक्षण खत्म हो जाता है। इन्हें अंतिम सर्वेक्षण कहा जाता है।

कछ सर्वेक्षण ऐसे होते हैं जिनमें सचना को बार-बार इकटठा करना पड़ता है। यह प्रायोगिक विधि के अंदर आते हैं। जिस वर्ग का निरीक्षण करना होता है, उसे कोई प्रेरक तत्त्व दे दिया जाता है तथा उस प्रभाव के अंतर्गत संबंधित आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। इस तरह बार-बार कोई प्रेरक तत्त्व देकर उस तत्त्व के प्रभाव के अंतर्गत सूचना को एकत्र किया जाता है तथा अंत में निष्कर्ष निकाले जाते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण इस प्रकार के होते हैं।

3. नियमित तथा काम चलाऊ सर्वेक्षण-वह सर्वेक्षण जो नियमित रूप से तथा समय-समय पर बार-बार होते हैं उन्हें नियमित सर्वेक्षण कहते हैं। कामचलाऊ सर्वेक्षण वह होते हैं जो किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक-आध बार होते हैं। आमतौर पर कामचलाऊ सर्वेक्षण नियमित सर्वेक्षण से पहले होता है जिस वजह से इसको अग्रगामी सर्वेक्षण भी कहा जाता है।

काम चलाऊ सर्वेक्षण का उद्देश्य नियमित सर्वेक्षण की योजना की जांच करना होता है। कामचलाऊ सर्वेक्षण को अनुसूची, प्रश्नावली इत्यादि का परीक्षण करने के लिए भी किया जाता है। इस कामचलाऊ सर्वेक्षण को उस समय भी प्रयोग किया जाता है जब किसी अनुसंधान के लिए पूर्व सूचना उपलब्ध न हो। इस तरह काम चलाऊ सर्वेक्षण को नियमित सर्वेक्षण के लिए प्रयोग किया जाता है।

4. संगणना सर्वेक्षण तथा सैंपल सर्वेक्षण-सर्वेक्षण को समग्र इकाइयों के संबंध में संगणना विधि दवारा किया जाता है। इसमें अगर किसी विशेष वर्ग के संबंध में खोज करनी है तो उस वर्ग के हरेक व्यक्ति से संपर्क स्थापित किया जाता है तथा उनसे सूचना एकत्र की जाती है। इस तरह के सर्वेक्षण को संगणना सर्वेक्षण कहा जाता है।

परंतु अगर वर्ग बड़ा हो तथा वर्ग के हरेक व्यक्ति से संपर्क स्थापित करना मुमकिन न हो तो उस वर्ग में से थोड़े से व्यक्तियों का एक सैंपल ले लिया जाता है तथा उनसे सूचना प्राप्त की जाती है। उस सूचना से निष्कर्ष निकाले जाते हैं तथा उन्हें संपूर्ण समूह पर लागू किया जाता है। इस तरह के सर्वेक्षण को सैंपल सर्वेक्षण कहा जाता है। सामाजिक सर्वेक्षणों में इस विधि का प्रयोग ज्यादा हो रहा है। इसका कारण यह है कि एक तो संपूर्ण समाज से संपर्क स्थापित करना कठिन होता है तथा संगणना में बहुत सारे धन तथा समय की ज़रूरत होती है। सैंपल विधि से निकले निष्कर्ष ज्यादातर ठीक होते हैं। अगर कोई अशुद्धि भी हो तो भी उसे पता किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
सर्वेक्षण की प्रक्रिया का वर्णन करो।
उत्तर:
जिस तरह सामाजिक अनुसंधान की प्रक्रिया होती है, उस तरह सर्वेक्षण की प्रक्रिया भी होती है। सर्वेक्षण की प्रक्रिया के शुरू से लेकर अंत तक कई स्तर होते हैं। इन स्तरों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार हैं-

  • सर्वेक्षण का उद्देश्य तथा क्षेत्र
  • सूचना इकट्ठी करने के स्त्रोत का निर्धारण
  • सर्वेक्षण के प्रकार
  • प्रश्नावली या अनुसूची की रचना तथा सूचना का संकलन
  • इकट्ठी सूचना का संपादन
  • सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण
  • सूचना का विश्लेषण
  • सूचना का निर्वाचन तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना।

इन सभी स्तरों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:
1. सर्वेक्षण का विषय या उद्देश्य-सबसे पहले सर्वेक्षण का विषय निर्धारित करना ज़रूरी होता है जिस पर सर्वेक्षण होता है। विषय सर्वेक्षण विधि के अनुसार होना चाहिए। अगर विषय इस विधि के अनुसार नहीं हैं तो सर्वेक्षण करने में काफ़ी कठिनाई आ सकती है।

2. स्रोत का निर्धारण-विषय के निर्धारण के पश्चात् अगला स्तर है सूचना इकट्ठी करने के स्रोत का निर्धारण। यह स्रोत प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार, अवलोकन इत्यादि कुछ भी हो सकता है। अगर हम इस विधि का निर्धारण ही न कर पाएं तो सूचना एकत्रित कैसे होगी। इसलिए इस स्रोत का निर्धारण करना पहले से ही आवश्यक होता है।

3. सर्वेक्षण के प्रकार-तीसरा स्तर होता है सर्वेक्षण के प्रकार को निर्धारण करने का। असल में सर्वेक्षण के विषय से ही सर्वेक्षण के प्रकार का निर्धारण हो जाता है। यह सर्वेक्षण सामान्य है अथवा विशेष एक ही बार होगा या बार बार। यदि सर्वेक्षण में संगणना विधि का प्रयोग किया गया है तो बहुत समय तथा धन की आवश्यकता होती है।

अगर सैंपल विधि का प्रयोग किया जाएगा तो सैंपल किस प्रकार निकाला जाएगा। सामाजिक सर्वेक्षण लो है। इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि विषय से संबंधित कौन लोग हैं वह कहां रहते हैं तथा उनको कैसे मिला जा सकता है।

4. प्रश्नावली अथवा अनुसूची की रचना-सर्वेक्षण के प्रकार को निर्धारित करने के पश्चात् यह ज़रूरी है कि अगर सर्वेक्षण में प्रश्नावली या अनुसूची विधि का प्रयोग हो रहा है तो उनका निर्माण किया जाए। प्रश्नावली या अनुसूची का निर्माण बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। प्रश्नों को सावधानी से निर्मित किया जाना चाहिए क्योंकि अगर प्रश्न ठीक न हआ तो उत्तरदाता उत्तर देना बंद भी कर सकता है।

इसके बाद का स्तर होता है सचना एकत्रित करने का। अगर सूचना को साहित्य से एकत्रित करना है तो उसे भी देख लेना चाहिए। अगर सर्वेक्षण का क्षेत्र बड़ा है तो कार्यकर्ताओं को नियुक्त करना पड़ता है तथा कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण तथा देख-रेख का ध्यान भी रखना पड़ता है। सूचना एकत्र हो जाने के पश्चात् सारी सूचना को एक जगह पर इकट्ठा कर लेना चाहिए।

5. इकट्ठी सूचना का संपादन-सूचना इकट्ठी करने के पश्चात् अगला स्तर होता है एकत्रित सूचना के संपादन का। सबसे पहले प्राप्त सूचना का संपादन किया जाता है। गलत या भ्रमपूर्ण सूचना को बाहर निकाल दिया जाता है ताकि निष्कर्ष निकालते समय ग़लती न हो। सूचना के संपादन से हमारे सामने सही तथा संभव सचना अ जिससे निष्कर्ष निकालने आसान हो जाते हैं।

6. सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण-सूचना के संपादन के बाद सूचना का वर्गीकरण तथा सारणीकरण किया जाता है। प्राप्त सूचना को अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है तथा उन वर्गों से सारणियां बनाई जाती हैं। वर्गीकरण तथा सारणीकरण करने से सूचना को समझने में आसानी हो जाती है तथा देखने वाला एक ही नज़र में निष्कर्ष निकाल लेता है।

7. सूचना का विश्लेषण-सूचना को वर्गों तथा सारणियों में डालने के पश्चात् उस सूचना का अलग-अलग कोणों से विश्लेषण किया जाता है। कई प्रकार की क्रियाओं से उसकी तुलना की जाती है तथा समन्वय की कोशिश की जाती है। उपलब्ध सिद्धांतों के आधार पर उस सूचना को तोला जाता है तथा उसके आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

8. निर्वाचन तथा अंतिम रिपोर्ट तैयार करना-सर्वेक्षण का अंतिम स्तर होता है रिपोर्ट तैयार करना तथा ग्राफ, चित्रों से सूचना को प्रकट करना। सर्वेक्षण चाहे किसी संस्था के लिए किया गया हो या अनुसंधानकर्ता के लिए, खोज रिपोर्ट को लिखना बहुत जरूरी होता है। रिपोर्ट के साथ ग्राफ तथा चित्र भी होने ज़रूरी है ताकि सूचना का महत्त्व स्पष्ट हो जाए तथा एक सामान्य व्यक्ति भी उसे आसानी से समझ सके।

इस तरह सर्वेक्षण प्रक्रिया इन ऊपर लिखे स्तरों से होकर गुज़रती है।

प्रश्न 12.
सर्वेक्षण प्रणाली के गुणों तथा सीमाओं का वर्णन करो।
अथवा
सर्वेक्षण पद्धति की कमजोरियों का वर्णन करें।
उत्तर:
सर्वेक्षण प्रणाली के गुण सर्वेक्षण प्रणाली के सामाजिक अनुसंधान की ओर विधियों की अपेक्षा कुछ गुण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. इस विधि से अनुसंधान में किसी प्रकार की व्यक्तिगत अभिनीत नहीं आती हैं। असल में किसी भी व्यक्ति के विचार उसकी परंपराओं, संस्कारों, हालातों इत्यादि से प्रभावित होते हैं जिस कारण हम अनुसंधान में कई बार उन हालातों की कल्पना करते हैं जिन्हें सिर्फ हमारा दिमाग स्वीकार करता है।

हम उसके अलावा और किसी स्थिति के बारे में सोचते भी नहीं। अगर हमें अनुसंधान में वैषयिकता लानी है तथा अभिनीतियों को समाप्त करना है तो सर्वेक्षण विधि ही उपयुक्त है क्योंकि इसमें व्यक्ति को अपने विचारों को अनुसंधान में लाने का मौका ही नहीं देता।

2. इस विधि से अनुसंधानकर्ता सीधा अनुसंधान के विषय में संपर्क में आता है। अगर वह उत्तरदाता से सीधे संपर्क में नहीं आता है तो वह या पूर्व निर्मित सिद्धांतों से या अपने व्यक्तिगत अनुभवों से समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करता है जो कि ग़लत है। सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर समाज की सही स्थिति का पता नहीं कर सकते हैं। सर्वेक्षण विधि से हरेक प्रकार के हालात तथा हरेक प्रकार के व्यक्ति तथा व्यवहार का पता चल जाता है। इस कारण ही सर्वेक्षण विधि द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अधिक विश्वास योग्य होते हैं।

3. सर्वेक्षण विधि वैज्ञानिक विधि के सबसे करीब होती है चाहे इसमें अनसंधानकर्ता का घटना पर नियंत्रण रखना संभव नहीं होता। उसे घटना का निरीक्षण घटनास्थल पर जाकर ही करना पड़ता है, परंतु फिर भी सैद्धांतिक ज्ञान की अपेक्षा इस आधार पर इकट्ठी की गई सूचना ज्यादा विश्वसनीय होती है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता को अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करना पड़ता बल्कि प्रत्यक्ष अवलोकन से आंकड़े इकट्ठे करने पड़ते हैं। इस तरह प्राप्त सूचना से निकाले गए निष्कर्ष सच्चे माने जाते हैं।

4. सामाजिक क्षेत्र में नए हालात पैदा होते रहते हैं जो कि हमें किसी भी सिद्धांत में नहीं मिलते। इन नए हालातों से समाज में भारी परिवर्तन आ जाता है तथा कई प्रकार उपलब्ध ज्ञान से हमें सही स्थितियों का पता नहीं चलता। उदाहरण के तौर पर भारत में 1947 से पहले तथा बाद के हालातों में काफ़ी अंतर था। इन हालातों में हमें समाज के सही हालातों का ज्ञान वैज्ञानिक अध्ययन से लोगों के बीच जाकर ही हो सकता है तथा उसके लिए सर्वेक्षण विधि सबसे उपयुक्त है।

सर्वेक्षण विधि की सीमाएं-चाहे सर्वेक्षण विधि के कुछ गुण हैं, परंतु इस विधि की कुछ सीमाएं भी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. इस विधि में सबसे जरूरी यह है कि घटना आंखों के सामने ही घटित हो, परंतु ज्यादातर सामाजिक घटनाओं में यह मुमकिन नहीं है। यह ज़रूरी नहीं है कि घटना के घटित होते समय अनुसंधानकर्ता वहां पर उपस्थित हों।

बहुत सारी घटनाएं व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित होती हैं जोकि कोई और व्यक्ति कैसे देख सकता है। इन हालातों में हमें संबंधित व्यक्ति से पूछ कर ही काम चलाना पड़ता है जोकि विश्वसनीय नहीं हैं। कई बार लोग झूठ भी बोल देते हैं जिससे इस प्रणाली पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

2. इस विधि से संपूर्ण समाज का अध्ययन संभव नहीं है। इससे हम समाज के सिर्फ एक भाग का ही अवलोकन कर सकते हैं। जब हम किसी घटना का प्रत्यक्ष अवलोकन करते हैं तो इसे ही सत्य समझ बैठते हैं जबकि वह ग़लत भी हो सकता है। इससे ऐसे सिद्धांत बन सकते हैं जो समय की सीमा से दूर होते हैं। इससे प्राप्त सूचना अंशकालीन होती है दीर्घकालीन नहीं।

3. सर्वेक्षण विधि को हम पूरी तरह विश्वास योग्य नहीं मान सकते हैं। किसी भी चीज़ का अवलोकन करते समय हमारी नज़र हमारे विचारों, संस्कारों से प्रभावित होती है। हम घटना में सिर्फ वह चीज़ देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं। हम उन चीज़ों को देखते भी नहीं, जो हमें पसंद नहीं हैं। आमतौर पर किसी घटना के अवलोकन से ही हम निष्कर्ष निकाल लेते हैं। हम औरों से सूचना प्राप्त करते हैं जिससे ग़लती की संभावना ज्यादा हो जाती है।

4. सर्वेक्षण विधि में सैंपल प्रणाली का आमतौर पर प्रयोग होता है। सैंपल प्रतिनिधित्वपूर्ण हैं या नहीं, इसके बारे ह नहीं सकते। यह हो सकता है कि सैंपल का चुनाव करते समय अनुसंधानकर्ता ने अपनी रुचि का भी ध्यान रखा है। इन हालातों में सैंपल से निकाले गए निष्कर्ष प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं हो सकते। यह निष्कर्ष हर समय लागू नहीं हो सकते। सैंपल में अभिनीत आने का भी खतरा होता है जो कि वैज्ञानिक विधि के लिए ठीक नहीं है।

5. सर्वेक्षण विधि में खर्चा बहुत होता है तथा समय भी बहुत अधिक लगता है। इस कारण से ही यह व्यक्तिगत अनुसंधानों में मुमकिन नहीं है। यह तो सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा ही प्रयोग होती है। इसलिए इसका प्रयोग बहुत ही सीमित है।

अंत में हम कह सकते हैं कि चाहे इस विधि में कुछ दोष हैं, परंतु फिर भी अगर इस विधि को सावधानी से प्रयोग किया जाए तो इससे बहुत ही विश्वसनीय निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

प्रश्न 13.
साक्षात्कार किसे कहते हैं? इसके उद्देश्यों तथा प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार सामाजिक अनुसंधान की एक महत्त्वपूर्ण रीति है। साक्षात्कार का अर्थ उन व्यक्तियों से है जो किसी विशेष घटना से संबंधित होते हैं। मिलन तथा उस घटना के संबंध में औपचारिक वार्तालाप होता है। वार्तालाप एक निश्चित क्षेत्र में मतलब उस घटना के साथ संबंधित होता है पर यह स्वतंत्र तता अच्छे वातावरण में होता है।

इसें साक्षी (उत्तरदाता) अपने दिल की बात कहता है। इसमें शोधकर्ता किसी घटना से संबंधित व्यक्ति के आमने सामने बैठकर बातचीत करता है तथा उससे प्रश्न पूछकर सूचना प्राप्त करता है। उस सूचना के आधार पर वह उस घटना या विषय के संबंध में निष्कर्ष बना लेता है।

पी०वी०यंग (P.V. Young) के अनुसार, “साक्षात्कार एक ऐसी क्रमबद्ध विधि है जिसके द्वारा व्यक्ति करीब करीब अपनी कल्पना की मदद से अपेक्षाकृत अपरिचित के जीवन में प्रवेश करता है।” ।

(“The interview may be regarded as a systematic method by which one person enters more or less, imaginatively into the inner life of another who is generally a comparative stranger to him.”‘)
गूड तथा हाट (Goode and Hatt) के अनुसार, “साक्षात्कार आधारभूत रूप में एक सामाजिक प्रक्रिया है।” (“Interview is fundamentally a process of social interaction.”)।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि साक्षात्कार सूचना इकट्ठी करने की एक क्रमबद्ध विधि है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी उद्देश्य को सामने रखकर आपस में बातचीत या संवाद करते हैं तथा सूचना एकत्र की जाती है। यह दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच वार्तालाप होता है तथा शोध से संबंधित सूचना एकत्रित की जाती है।

साक्षात्कार के उद्देश्य-(Aims of Interview): साक्षात्कार के आम तौर से दो उद्देश्य होते हैं-
1. घटना से संबंधित व्यक्ति से ऐसी सूचना प्राप्त करना जो सिर्फ उसे पता हो तथा किसी और साधन से उसे प्राप्त न किया जा सकता हो।
इस बात का पता करना कि किन्हीं विशेष हालातों में व्यक्ति किस प्रकार का शाब्दिक व्यवहार करता है।

2. पहले उद्देश्य के लिए शोधकर्ता कोई विषय चुन कर उत्तरदाता से उस विषय से संबंधित घटना या प्रक्रियाओं के बारे में पूछता है तथा सुनता है। शोधकर्ता उस को ध्यान से सुनता है तथा यह जानने की कोशिश करता है कि उसकी उपकल्पना सही है या ग़लत। दूसरे उद्देश्य के लिए शोधकर्ता उत्तरदाता की सूचना के साथ-साथ उसके चेहरे के हाव-भाव को ध्यान से देखता है। यहां शोधकर्ता समाजशास्त्री की जगह सामाजिक मनोवैज्ञानिक होता है तथा घटना की जगह उसकी भाषा शैली तथा हाव-भाव में होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान रखता है।

यह दोनों उद्देश्य साथ-साथ चलते हैं। फ़र्क सिर्फ इतना होता है कि शोध की प्रकृति के अनुसार किसी उद्देश्य पर जोर देना पड़ता है। दूसरा उद्देश्य सूचना की सच्चाई पता करने के लिए होता है।

साक्षात्कार के प्रकार-(Types of Interview):
1. नियंत्रित साक्षात्कार (Structured Interview)-इसे नियोजित साक्षात्कार भी कहा जाता है। इसमें अनुसूची का प्रयोग होता है। सारी प्रक्रियाएं नियोजित होती हैं तथा शोधकर्ता नियोजन के अनुसार चलता है। साक्षात्कार प्रश्न उत्तर के रूप में होता है। उत्तरदाता प्रश्नों के उत्तर देता है तथा शोधकर्ता अनुसूची में भरता जाता है। प्रश्नों के उत्तर के अलावा कुछ भी न तो नोट किया जाता है तथा न ही उसका महत्त्व होता है।

2. अनियंत्रित साक्षात्कार (Unstructured Interview) इसे कहानी टाइप साक्षात्कार भी कहते हैं। इसमें निश्चित प्रश्न नहीं होते। शोधकर्ता सिर्फ विषय के बारे में बता देता है तथा उत्तरदाता उस विषय से संबंधित घटना या प्रतिक्रिया को एक कहानी की तरह बताता है। उसे अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता होती है तथा साक्षात्कारी पूरी तरह स्वतंत्र होता है। ज्यादा-से-ज्यादा घटना से संबंधित कोई प्रश्न पूछा जा सकता है।

3. केंद्रित साक्षात्कार (Focused Interview) इस प्रकार का साक्षात्कार रेडियो या फिल्म के प्रभाव को पता करने के लिए होता है। शोधकर्ता सिर्फ इस बात का ध्यान रखता है कि किसी घटना का किसी व्यक्ति प्रभाव पड़ा। उत्तरदाता अपने विचारों, मनोभावों को बताता है। इसके लिए Interview Guide की मदद भी ली जा सकती है। यह भी स्वतंत्र रूप में वर्णित किया जाता है।

4. आवृत्तिपूर्ण साक्षात्कार-इस प्रकार का साक्षात्कार किसी सामाजिक या मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा पड़ने वाले क्रमिक प्रभाव को जानने के लिए होता है। कई घटनाओं का प्रभाव ज्यादा देर रहता है। इसलिए इस को पता करने के लिए एक ही साक्षात्कार से काम नहीं चलता तो यह बार-बार किया जाता है।

इस प्रकार के साक्षात्कार में पैसा तथा समय काफ़ी खर्च होता है। इसलिए व्यक्तियों की संख्या कम होनी चाहिए।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 परियोजना कार्य के लिए सुझाव

प्रश्न 14.
साक्षात्कार की तैयारी की पूर्ण प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन दें।
उत्तर:
अगर साक्षात्कार अच्छे तरीके से करना है तो उसके लिए कुछ तैयारी की ज़रूरत है जिसका वर्णन इस प्रकार है-
1. समस्या का ज्ञान-साक्षात्कार शुरू करने से पहले उत्तरदाता को साक्षात्कार करने के लिए राजी करना होता है। शोधकर्ता को उत्तरदाता की शंका निवारण के लिए कई प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है।

इसलिए सबसे पहले शोधकर्ता या कार्यकर्ताओं को समस्या तथा उसके अलग-अलग पहलुओं का पूरा ज्ञान होना ज़रूरी है। अगर समस्या का ठीक तरीके से पता न हो तो आम तौर पर लोग साक्षात्कार देने से इंकार कर देते हैं। इसलिए सबसे पहले शोधकर्ता को समस्या का सही ज्ञान होना जरूरी है ताकि वह शंकाओं का निवारण कर सके।

2. साक्षात्कार प्रदर्शिका का निर्माण (Making of Interview Guide) समस्या का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् दूसरा काम Interview guide को तैयार करना होता है। Interview Guide एक लिखित आलेख होता है जिसमें Interview की योजना का संक्षेप वर्णन होता है। इसमें अनुसूची या प्रश्नावली की भांति निश्चित प्रश्न नहीं होते पर Interview की साधारण विधि समस्या के विभिन्न पक्षों जिन पर सूचना प्राप्त करनी है व विशेष स्थिति नर्देश होती है।

समस्या से संबंधित भिन्न इकाइयों की सही परिभाषा व अर्थ भी दिया जाता है ताकि इकाइयों का अर्थ समझने में विभिन्नता न हो। सारांश यह है कि Interview Guide इस काम के लिए भेजी ज कि उनके क्रम में एकरूपता रहे। इसलिए Interview लेने वाले के वर्णन को नोट करने की विधि का उल्लेख भी Guide में होना चाहिए।

3. Interview लेने वालों का चुनाव (साक्षी)-समस्या के अध्ययन व Interview Guide के निर्माण के पश्चात् उन व्यक्तियों का चुनाव करना पड़ता है जिनसे Interview की जानी है। इसके लिए निर्देशन प्रणालियों में किसी एक को अपनाया जा सकता है। इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि चुने हुए व्यक्तियों को अनुसंधान के विषय से संबंधित होने से Interview के लिए उपलब्ध हो सकें। इसके लिए उनके पते का होना भी ज़रूरी है। इस प्रकार के Interview में समय अधिक लगता है। इसलिए चुने हुए व्यक्तियों की संख्या कम होनी चाहिए।

4. Interview देने वालों के संबंध में सूचना-यदि पैनल विधि का उपयोग नहीं किया गया तो Interview देने वाले नए हैं तो उनके संबंध में आरंभिक ज्ञान प्राप्त कर लेना अधिक उपयोगी है। इसके लिए साक्षियों में स्वभाव, मिलनसारता, रुचियां, पेशे फुर्सत के समय आदि का ठीक-ठीक पता कर लेना आमतौर से Interview के काम में बहुत सहायक होता है।

इसको जांच लेने से Interview लेने वाला सजग व सावधान रहता है व ऐसे हालात नहीं पैदा होने देता जिससे कि साक्षी नाराज़ हो जाए। इसके सिवा उससे उचित समय पर मिला जा सकता है। इस प्रकार के ज्ञान के अभाव में कभी-कभी Interview लेने वाला ऐसी भूल कर जाता है जिससे Interview समाप्त हो जाता है या ऐसी स्थिति का एक दम से सामना करना पड़ता है कि जिसके लिए वह बिल्कुल तैयार नहीं होता।

5. Interview के समय का पूर्व निर्धारण-आमतौर पर Interview के लिए पहले ही, समय व स्थान निश्चित कर लेना अधिक उपयोगी होता है। इससे एक तो साक्षी समझता है कि अनुसंधानकर्ता से उसके समय का महत्त्व पता है व उसके अहम को चोट नहीं लगती। इसके अलावा जब अनुसंधानकर्ता साक्षी के घर पहुंचता है तो वह एकदम अचानक नहीं पहंच जाता। साक्षी एक प्रकार से उसके इन्तज़ार में रहता है व उसके लिए उचित प्रबंध कर लेता है।

साथ ही साथ उसको संबंधित विषय पर सोचने का मौका मिल जाता है। एकदम पहुंचने से साक्षी कभी-कभी बिगड़ जाते हैं व Interview देने से मना कर सकता है या कम-से-कम दोबारा आने के लिए कह सकता है। इसके सिवा समय का पूर्व निर्धारण कर लेने से Interview लेने वाला सही समय पर पहुंचता है। एकदम ग़लत समय पर पहुंचने का भी कभी-कभी ग़लत प्रभाव पड़ता है व साक्षी हमेशा के लिए अनुसंधानकर्ता के संबंध में गलत धारणा बना लेता है जिसका प्रभाव Interview व सूचना पर भी पड़ता है।

यदि ऐसा न हो तो एक ही व्यक्ति के पास बार-बार जाने से बहुत समय बर्बाद होता है। एकदम बिना पूर्व सूचना के पहुंच जाने से यह भी हो सकता है कि साक्षी घर पर ही न हो या बहुत Busy होने पर Interview करने की मनोस्थिति में न हो। ऐसी दशा में वह अनुसंधानकर्ता को फिर आने के लिए कहेगा तो व्यर्थ ही इस प्रकार बहुत समय बर्बाद होगा। समय का पूर्व निर्धारण पत्र के द्वारा व टेलीफोन के द्वारा किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
साक्षात्कार विधि की सीमाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
साक्षात्कार विधि की सीमाएं-(Limitations of Interview Method):
(1) इस प्रकार के Interview के संचालन के लिए उच्च कोटि की चतुरता या बुद्धि ज़रूरी है। Interview लेने वाले का व्यक्तिगत पूरा शक्तिशाली होना चाहिए ताकि वह सफलतापूर्वक साक्षी से सच कहला सके। जो काम करने वाले इस काम के लिए नियुक्त किए जाते हैं उनमें शायद ही यह गुण पाया जाता है। इसका फल यह होता है कि पूरी अविश्वासी विषय से संबंधित व झूठी सामग्री एकत्र हो जाती है।

(2) इस विधि में बहुत कुछ व्यक्ति प्रधानता होती है। साक्षी जो कुछ कहता है वह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उसको सुनने वाला कौन है। इसलिए उसका वर्णन भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के साथ बदलता रहता है। इसके अलावा किसी घटना के लोग अपने-अपने दृष्टिकोण से समझते व वर्णन करते हैं। इसके लिए एक ही घटना के भिन्न वर्णन हो सकते हैं।

(3) इस विधि द्वारा प्राप्त सामग्री का सच सदा शक होता है। उसमें ग़लती के अनेक कारण हो सकते हैं। Invalidity को दूर रखने के जो प्रतिबंध प्रयोग किए गए हैं वह अभी तक पूरी तरह प्रभावशाली सिद्ध नहीं हुए हैं। अनुसूची द्वारा जो सूचना छोटे-छोटे प्रश्न उत्तरों के रूप में ली जाती है उसकी जगह वर्णात्मक कथन में ग़लती, झूठ आदि बातें कहने को अधिक उत्साह मिलता है। व्यक्ति की कल्पना को इससे ज्यादा बल प्राप्त होता है व अधिकतर अंश काल्पनिक ही होते हैं।

(4) इस विधि में Interview के लिए राजी करना भी एक समस्या है। अनुसूची में लिखित साधारण प्रश्न को उत्तर की संक्षेप में लोग भी दे देते हैं। पर खुल कर खुले दिल से अपने साथ बीती घटनाओं का सिलसिला व सही विवरण सुनाना बहुत कम लोग स्वीकार करते हैं। यह मुश्किल उस समय और भी बढ़ जाती है जब अनुसंधान का विषय साक्षी के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित किसी भावात्मक घटना के बारे में होता है। जैसे प्रेम ववाह या तलाक संबंधी अनुसंधान।

(5) इस विधि में Interview लेने वाला पूरी तरह साक्षी की कृपा पर निर्भर रहता है। प्रत्यक्ष अवलोकन के अभाव में इस बात का निर्णय बहुत मुश्किल हो जाता है कि वर्णन में झूठ का अंश कितना है। साक्षी यदि ईमानदार है तो ही यह संभव है कि उसकी समझने की शक्ति (याददाशत) ठीक न हो, उसमें घटना की गहराई देखने से समझने की शक्ति न हो या घटना का ठीक-ठीक वर्णन न कर पाता हो।

(6) इस प्रकार के वर्णन भावनाओं की पूरी सीमा तक प्रभावित होते हैं। वह प्रमाणित नहीं होते व लोग मनमाने ढंग से वर्णन करते हैं। इसलिए सामग्री के वर्गीकरण व सारणी या सांख्यिकी विवेचन में मुश्किल होती है। आमतौर पर साक्षी व Interview लेने वाला ही अलग वातावरण व समाज दर्शन की कल्पना करते हैं व किसी विशेष सामाजिक घटना के संबंध में उनके विचार भिन्न हो सकते हैं यदि उनके विचार एक जैसे भी हो तो भी संभव हो सकता है कि जाने या अनजाने साक्षी अपने महत्त्वपूर्ण अनुभवों में कुछ को छोड़ देने पर इस तरह उसका वर्णन एक प्रकार से केवल एक तरफा, अपूर्ण व व्यर्थ का ही रह जाए।

प्रश्न 16.
साक्षात्कार विधि के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार विधि के गुण
(Merits of Interview Method)
(1) Interview विधि अनुसंधान की सबसे लचीली विधि है। यदि साक्षात्कारों के प्रश्न समझ में न आएं तो उन्हें और शब्दों में पूछा जा सकता है, प्रश्नों को दोबारा पूछा जा सकता है व उनके महत्त्व को समझा जा सकता है। इसके अलावा Interview लेने वाले को भी इस बात का मौका मिलता है कि वह दिए गए उत्तरों की जांच कर ले।

वह साक्षी के भाव, बोलने के ढंग से ही पता लगा लेता है कि साक्षी सच कह रहा है झूठ। यदि साक्षी कुछ विरोधी बातें कहता है तो यह इनकी जांच कर सकता है। कहने का मतलब यह है कि Interview द्वारा वर्णन को शुदधि करने का मौका मिलता है व सूचना अधिक विश्वास योग्य होती है।

(2) सामाजिक अनुसंधान में उपयोग की जाने वाली विधियों की तुलना में Interview विधि अधिक उपयोगी है। जैसे प्रश्नावली में हम केवल उन्हीं व्यक्तियों को अपने अध्ययन में चुने गए Sample की इकाई के रूप में शामिल करते हैं जोकि आमतौर पर शिक्षाप्रद हो और प्रश्नावली में दिए गए प्रश्नों को स्पष्ट रूप में समझता हो तो ही वह संतोषजनक उत्तर देगा पर Interview विधि में सभी वर्गों व स्तर के लोगों का अध्ययन कर प्रभावित तथ्य इकट्ठे कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यह विधि नीरस या बोर नहीं होती बल्कि Interview लेने वाले व देने वाले Interview के दौरान एक-दूसरे के लिए नियंत्रक व आपसी प्रेरणा के रूप में काम करते हैं।

(3) Interview विधि द्वारा हम उन घटनाओं का भी अध्ययन कर सकते हैं जो प्रत्यक्ष अवकोलन के अयोग्य हैं व जिनका पता साक्षी के अलावा किसी को नहीं है। अधिकतर सामाजिक घटनाएं विषय श्रेणी की होती हैं। इसलिए Interview ही सामाजिक अनुसंधान की सबसे बढ़िया विधि है।

(4) भावात्मक स्थितियों में जैसे, विचार, भावनाओं व प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए यह बढ़िया विधि है। सभी तथ्य प्रत्यक्ष अवलोकन के लिए ठीक नहीं होते। किसी घटना से किसी व्यक्ति की मानसिक दशा पर क्या प्रभाव पड़ा इसको वही व्यक्ति जान सकता है, जो उसके संपर्क में रहा हो। इसलिए Interview द्वारा हम इसका पता आसानी से लगा सकते हैं। इस दृष्टिकोण से यह पद्धति सबसे गहरी मानी जा सकती है।

(5) Interview द्वारा हम किसी सामाजिक घटना का अध्ययन उसकी ऐतिहासिक भावनात्मक पृष्ठभूमि से कर सकते हैं। इसकी सहायता के बिना उनका असली महत्त्व जानना मुश्किल होता है। हमारी अधिकतर क्रियाएं भावनाओं द्वारा प्रभावित होती हैं और परिस्थितियों व भावनाओं को जाने बिना हमारा किसी घटना का अध्ययन अधूरा रहेगा। वर्णात्मक Interview में इस प्रकार हमें किसी घटना का सारा सच्चा स्वरूप पता लग सकता है।

(6) Interview द्वारा प्राप्त सूचना पर यदि उचित नियंत्रण का उपयोग किया जाए तो वह पूरी सीमा तक सही पाया जाता है। असल में जिन विशेष परिस्थितियों के लिए उसका उपयोग किया जाता है उसके लिए यह एकमात्र संभव विधि है।

प्रश्न 17.
ब्रोनिस्लाव मैलिनोवस्की द्वारा फील्डवर्क के आविष्कार पर चर्चा करें।
उत्तर:
मैलिनोवस्की को फील्डवर्क का आविष्कार माना जाता है। चाहे उससे पहले भी फील्डवर्क के अलग-अलग प्रकार प्रयोग में लाए जा चुके थे परंतु मैलिनोवस्की को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उसने फील्डवर्क को एक विधि के रूप में मानवशास्त्र में स्थापित किया। 1914 में जब यूरोप में पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया था तो मैलिनोवस्की उस समय ऑस्ट्रेलिया में था। उस समय ऑस्ट्रेलिया ब्रिटिश साम्राज्य का एक हिस्सा था तथा मैलिनोवस्की पोलैंड का नागरिक था।

क्योंकि पोलैंड को जर्मनी ने जीत लिया था इसलिए पोलैंड को ब्रिटेन द्वारा दुश्मन देश घोषित कर दिया गया था। मैलिनोवस्की उसकी पोलिश नागरिकता के कारण दुश्मन समझा गया। मैलिनोवस्की लंडन ऑफ इकोनोमिक्स का एक प्रसिद्ध प्रोफैसर जिस वजह से उसके ब्रिटिश तथा ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों से अच्छे संबंध थे। परंतु क्योंकि तकनीकी रूप से वह शत्रु था इसलिए या तो उसे नज़रबंद करना चाहिए था या फिर किसी विशेष जगह तक ही उसे सीमित कर देना चाहिए था।

मैलिनोवस्की ऑस्ट्रेलिया में कई जगह घूमता रहा। अंत में वह अपनी मानवी शास्त्रीय खोज के लिए South Pacific के द्वीपों पर जाना चाहता था। इसलिए उसने उच्च अधिकारियों से इस बारे में बात की कि उसे Tribriand के द्वीपों पर जाने की इजाजत दी जाए जोकि ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा थे। सरकार ने न सिर्फ इस बात की इजाजत दी बल्कि उसको वहां जाने तथा कार्य करने के लिए पैसा भी दिया। उसने उन द्वीपों पर डेढ़ साल बिताया।

वह वहां के गांवों में टैंटों में रहा, वहां की भाषा सीखी तथा उनकी संस्कृति को जानने के लिए उनके साथ नज़दीकी से अंतर्किया की। उसके अपने निरीक्षण का एक विस्तृत तथा सावधानी भरा रिकार्ड रखा तथा उसमें एक रोज़ाना डायरी भी रखी। उसने बाद में Trobriand संस्कृति पर कुछ किताबें भी लिखी, जोकि उसकी रोजाना की डायरियों तथा फील्ड नोट पर आधारित थी। बाद में यह किताबें काफ़ी मशहूर हो गईं तथा आज भी उन्हें काफ़ी महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।

Trobriand के अनुभव से पहले ही मैलिनोवस्की को एक पक्का विश्वास हो गया था कि मानवशास्त्र का भविष्य स्थानीय संस्कृति तथा मानवीशास्त्रीय के बीच सीधे संबंध में छुपा हुआ है। उसको पता चल गया था कि यह विषय उस समय तक तरक्की नहीं कर सकता जब तक कि मानवशास्त्रीय अपने आपको सीधे निरीक्षण से नहीं जोड़ लेता अध्ययन किए जाने वाले समह की भाषा को नहीं सीख लेता।

यह निरीक्षण इस दृष्टि से हो कि मानवशास्त्री उस समूह के बीच रहे, उनके जीवन का अवलोकन करे ताकि उसका उद्देश्य हल हो सके। उसको स्थानीय भाषा सीखनी चाहिए ताकि किसी मध्यस्थ की ज़रूरत न पड़े तथा वह उनके जीवन को सही दृष्टि से देख सके।

उसकी Trobriand की यात्रा तथा अध्ययन ने मानवशास्त्र में फील्डवर्क की ज़रूरत को बल दिया तथा इसके बाद मानवशास्त्र में फील्डवर्क होना शुरू हो गया। इस तरह फील्डवर्क की मदद से मानवशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में बहुत सहायता मिली।

प्रश्न 18.
भारतीय समाजशास्त्र में फील्डवर्क की महत्ता के बारे में चर्चा करें।
उत्तर:
भारतीय समाजशास्त्र में गांवों के अध्ययन के लिए फील्डवर्क को एक विधि के रूप में प्रयोग किया गया। 1950 के दशक में समाजशास्त्रियों तथा मानवशास्त्रियों, देसी तथा विदेशी, दोनों ने ग्रामीण जीवन का अध्ययन करना शुरू किया। गांव ने कबाईली समुदाय के जैसा कार्य किया। गांव को भी एक बंधा हुआ समुदाय माना गया जोकि इतना छोटा होता है कि एक व्यक्ति द्वारा अकेले भी अध्ययन हो सकता है।

एक व्यक्ति ग्रामीण जीवन के प्रत्येक पक्ष का आसानी से अध्ययन कर सकता है। इसके साथ ही भारतीय पढ़े-लिखे वर्ग में यह महसूस किया गया कि मानवशास्त्र साम्राज्यवाद की नीतियों के अनुसार चलता है। इसलिए गांवों को अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र ही ठीक है।

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण था क्योंकि इससे अभी-अभी स्वतंत्र हुए भारत को काफ़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती थी। सरकार भी ग्रामीण भारत को विकसित करने की पक्षधर थी। देश का राष्ट्रीय आंदोलन तथा गांधी जी भी ग्रामीण क्षेत्रों को ऊपर उठाने के कार्यक्रम चलाने के पक्षधर थे। इसके साथ पढ़े-लिखे तथा शहरों में रहने वाले लोग भी ग्रामीण जीवन को ऊंचा उठाने के पक्षधर थे। क्योंकि उनके परिवार के कुछ सदस्य अभी भी गांवों में रहते थे तथा उनके गांवों से ऐतिहासिक Links थे।

इसके अलावा भारत की बहुत ज्यादा जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती थी। इन सभी कारणों के कारण गांवों का अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया तथा भारतीय समाजशास्त्र का एक अभिन्न अंग बन गया। इन सब के साथ फील्डवर्क ग्रामीण जीवन को समझने के लिए एक अच्छी विधि थी। इसलिए फील्डवर्क की समाजशास्त्र में महत्ता काफ़ी बढ़ गई। वैसे फील्डवर्क की समाजशास्त्र में महत्ता निम्नलिखित भी है-
(1) फील्डवर्क से अनुसंधानकर्ता को अध्ययन किए जाने वाले समूह के काफ़ी नज़दीक जाने का अवसर प्राप्त होता है जिससे वह ज्यादा सूक्ष्म रूप से अध्ययन कर सकता है। किसी व्यक्ति के परिवार के जीवन का सबसे बढ़िया तथा सच्चा परिचय उसको होगा जो उसके साथ उसके घर में रहा हो।

(2) फील्डवर्क में निरीक्षणकर्ताओं को समूह के अलग-अलग व्यवहारों, आपसी संबंधों तथा रिवाजों को अच्छी तरह समझने की शक्ति प्राप्त होती है। कोई भी बाहर से रीति-रिवाजों, व्यवहार को नहीं समझ सकता। उसके लिए समूह के अंदर जाना पड़ता है तथा फील्डवर्क में यह मुश्किल है।

(3) फील्डवर्क स्वाभाविक हालात में संभव है। जब लोगों को पता चलता है कि कोई उनका निरीक्षण कर रहा है तो उनके व्यवहार में अस्वाभाविकता आ जाती है तथा बनावटीपन भी आ जाता है। इससे निरीक्षणकर्ता को सही सूचना प्राप्त नहीं होती। इसलिए सही सूचना प्राप्त करने के लिए फील्डवर्क बहुत ज़रूरी है।

(4) फील्डवर्क देखने वाले की नज़र को ज्यादा सूक्ष्म बना देता है ताकि वह जल्दी-से-जल्दी उचित नतीजों को ग्रहण कर सके। समूह में रहने के बाद निरीक्षणकर्ता समूह की क्रियाओं तथा व्यवहार से परिचित हो जाता है तथा छोटी-सी ग़लती भी उसका ध्यान खींच लेती है।

(5) फील्डवर्क ज्यादा सुविधाजनक होता है। इसमें व्यक्ति समूह में उसके सदस्य के रूप में जाता है न कि निरीक्षणकर्ता के रूप में चाहे उसका उद्देश्य दूसरा होता है। संबंधित व्यक्ति भी इसका विरोध नहीं करते। इस तरह फील्डवर्क निरीक्षणकर्ता को ज्यादा सुविधा देता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र में फील्डवर्क की बहुत महत्ता है। किसी समूह या संस्था के बारे में विस्तृत जानकारी फील्डवर्क की मदद से ही संभव है।

परियोजना कार्य के लिए सुझाव HBSE 12th Class Sociology Notes

→ इस अध्याय में हमें कुछ छोटी-छोटी अनुसंधान परियोजनाओं के बारे में पता चलेगा जिन पर हम कार्य कर सकते हैं। वास्तव में अनुसंधान के बारे में पढ़ने तथा उसे वास्तव में करने में बहुत अंतर होता है तथा यह अध्याय हमें इसके बारे में ही बताता है।

→ प्रत्येक अनुसंधान प्रश्न पर कार्य करने के लिए एक उपयुक्त अनुसंधान पद्धति की आवश्यकता होती है तथा एक प्रश्न का उत्तर अक्सर एक से अधिक पद्धतियों से दिया जा सकता है। परंतु यह ज़रूरी नहीं है कि एक अनुसंधान पद्धति सभी प्रश्नों के लिए उपयुक्त हो। इसे बहुत ही सावधानीपूर्वक चुनना पड़ता है। अनुसंधान पद्धति के चुनाव के लिए व्यावहारिकता को ध्यान में रखना चाहिए। व्यावहारिकता में कई बातें शामिल होती हैं जैसे कि अनुसंधान के लिए उपलब्ध समय की मात्रा, लोगों एवं सामग्री दोनों के रूप में उपलब्ध संसाधन, वह हालात जिनमें शोध किया जाना है इत्यादि।

→ शोध में बहुत-सी पद्धतियां प्रयोग की जा सकती हैं। सबसे पहली पद्धति है सर्वेक्षण प्रणाली जिसमें सामान्यतः निर्धारित प्रश्नों को अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में लोगों से पूछा जाता है। इसमें उत्तरदाता प्रश्न सुनकर उत्तर देता है तथा अन्वेषक उन उत्तरों को लिख लेता है। इसे प्रश्नावली विधि में भी प्रयोग किया जा सकता है।

→ शोध में साक्षात्कार प्रणाली को भी प्रयोग किया जाता है जिसमें उत्तरदाता से आमने-सामने बैठ कर प्रश्न पूछे जाते हैं तथा अन्वेषक उन उत्तरों को या तो रिकार्ड कर लेता है या लिख लेता है। साक्षात्कार लेते समय तक भी चल सकता है।

→ प्रेक्षण पद्धति में शोधकर्ता अपने शोधकार्य के लिए निर्धारित परिस्थिति या संदर्भ में क्या कुछ हो रहा है इस पर बारीकी से नज़र रखता है तथा उसका अभिलेख तैयार करता है। चाहे वह कार्य काफ़ी सरल दिखाई देता है परंतु यह होता नहीं है। परियोजना कार्य पर शोध करने के लिए एक से अधिक पदधतियों का सम्मिश्रण भी किया जा सकता है तथा इसके लिए अक्सर सिफ़ारिश भी की जा जाती है।

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